हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” धोखेबाज नौकर ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में धनीराम नाम का एक ज़मींदार रहता था, जो बेहद क्रूर स्वभाव का था। धनीराम अपनी हवेली के नौकर दिनेश को दिन-रात दौड़ाता रहता था।
आज धनीराम से मिलने शहर से एक बैंक मैनेजर आने वाला था। धनीराम सुबह से ही उसके आवभगत का इंतजाम दिनेश से करवा रहा था।
दिनेश बाजार से लौट रहा था कि तभी गांव का बल्ली दिनेश से बोला,
बल्ली, “अरे भैया! सुबह-सुबह इतनी जल्दी बाजी में कहाँ जा रहे हो?”
दिनेश, “अरे! आज बड़े मालिक के यहाँ पर बैंक मैनेजर आने वाले हैं। बड़े मालिक ने उनकी आवभगत के लिए सारा सामान बाजार से मंगाया है।”
बल्ली, “अरे यार! मुझे तुम पर ना कभी-कभी बहुत तरस आता है। यार, तुम्हारा मालिक धनीराम एक नंबर का जल्लाद है।
तुम दिल के कितने अच्छे हो, यार भाई? और वो तुम पर कितना अत्याचार करता है। तुम यहाँ से भाग क्यों नहीं जाते?”
दिनेश, “कभी-कभी मेरे भी दिल में विचार आता है, बल्ली चाचा। लेकिन फिर सोचता हूँ कि भागकर जाऊंगा भी तो कहाँ?
और कभी-कभी तो मेरे मन में आत्महत्या करने तक का विचार आता है।”
बल्ली, “ऐसा भूलकर भी मत सोचना। आत्महत्या किसी भी मसले का हल नहीं है। सब कुछ सही हो जाएगा।
ठीक है? अच्छा तुम जल्दी जाओ, वरना धनीराम फिर से तुम्हें बुरी तरह से पीटने लगेगा।”
दिनेश तुरंत घर पहुंचा। धनीराम क्रोधित होकर दिनेश से बोला,
धनीराम, “आज शहर से मुझसे मिलने बैंक की सबसे बड़ी ब्रांच का मैनेजर आने वाला है। उसके स्वागत में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ना।”
दिनेश, “मैंने आपके बताए हुए सारे इंतजाम करवा दिए हैं, बड़े मालिक। आपके कहे अनुसार आपका मनपसंद सारा भोजन भी तैयार करवा दिया है।”
धनीराम, “सुनो, एक घंटे बाद वो यहाँ पर आ जाएगा। तब तक तुम यहाँ से कहीं नहीं जाना, समझे? तुम्हें याद है ना कि तुम्हें क्या करना है?”
दिनेश, “हाँ जी मालिक, मुझे अच्छे से याद है। हर बार की तरह मुझे एक कागज़ पर अंगूठा लगाना है।
लेकिन मालिक, मेरी एक बात ये समझ में नहीं आती कि आखिर आप मुझसे ही अंगूठा क्यों लगवाते हो?”
धनीराम, “यह समझना तुम्हारा काम नहीं है, समझे? तुम्हारा काम है सिर्फ मेरे आदेश का पालन करना।”
दिनेश वहाँ से चला गया कि तभी धनीराम की 22 वर्षीय पुत्री सीमा वहाँ पर आकर बोली,
सीमा, “क्या कर रहे हो दिनेश?”
दिनेश, “कुछ नहीं, आज शहर से बैंक मैनेजर बड़े मालिक से मिलने आने वाले हैं। मैं किचन की सफाई कर रहा था, छोटी मालकिन।”
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सीमा, “तुमसे कितनी बार कहा है, मुझे सिर्फ सीमा बोला करो? अब मुझे ये बताओ कि तुम पिताजी से हमारे विवाह की बात कब करोगे?”
सीमा की बात सुनकर दिनेश गहरी सोच में डूब गया। दरअसल, सीमा और दिनेश बचपन से एक दूसरे से प्रेम करते थे।
दिनेश बचपन से ही धनीराम के घर पर ही रहा करता था। उन दोनों के प्रेम प्रसंग के बारे में धनीराम अभी तक अनजान था।
सीमा, “क्या सोच रहे हो? आखिर कब तक हम दोनों एक दूसरे से छुप-छुप कर मिलते रहेंगे और फिर कब तक तुम सबके सामने मुझे छोटी मालकिन कहकर पुकारना रहोगे?”
दिनेश, “तुम तो जानती हो सीमा कि बड़े मालिक ने ही मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया है। मुझे डर लगता है कि अगर कहीं मैंने हम दोनों के विवाह की बात उनसे कही तो कहीं वो मुझे जान से ही ना मार दे?
आखिर तुम्हारी और मेरी हैसियत में जमीन-आसमान का अंतर है।”
सीमा, “दिनेश, ये सब तो तुम्हें मुझसे प्रेम करने से पहले सोचना चाहिए था ना? मुझे कुछ नहीं पता, अगर तुम पिताजी से बात नहीं करोगे तो मैं स्वयं जाकर उन्हें बता दूंगी।
पर अगर मेरा विवाह तुमसे नहीं हुआ तो फिर मैं जीवन भर कुंआरी ही रहूंगी।”
यह कहकर सीमा वहाँ से चली गई। कुछ ही देर बाद बैंक मैनेजर धनीराम के घर आ पहुंचा और धनीराम बैंक मैनेजर की आवभगत करने लगा और हमेशा की तरह धनीराम बैंक मैनेजर के सामने दिनेश ने बहुत ही प्यार से बात कर रहा था, मानो दिनेश उसका नौकर नहीं बल्कि उसका पुत्र हो।
बैंक मैनेजर, “मैंने तुम्हारे जैसा ईमानदार व्यक्ति कभी नहीं देखा। तुमने तो बिल्कुल अपने ही बेटे की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया है। भला आज के जमाने में इतना ईमानदार कौन होता है?”
बैंक मैनेजर की बात सुनकर धनीराम अचानक चौंक गया क्योंकि इससे पहले उसके सामने ऐसी बात कभी भी नहीं बोली गई थी।
धनीराम, “अब आपको क्या बताऊँ, बैंक मैनेजर साहब? जो कुछ भी है सब दिनेश का ही है। मैं तो बस उसका एक छोटा सा नौकर हूँ।”
बैंक मैनेजर, “नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है धनीराम जी। आपने तो अपना पूरा कर्तव्य निभाया है।
आज के जमाने में कोई किसी के लिए इतना नहीं करता जितना कि आपने इस लड़के के लिए किया।”
तभी धनीराम ने दिनेश की ओर देखकर बोला,
धनीराम, “अरे दिनेश! मैं तो भूल ही गया, हमारे बैंक मैनेजर को हमारे गांव के बिरजू हलवाई की रबड़ी बहुत पसंद आती है, उसे तो मैं मंगाना ही भूल गया। जाओ जाकर बिरजू हलवाई की दुकान से रबड़ी ले आओ।”
बैंक मैनेजर, “अरे! नहीं नहीं धनीराम जी, इसकी क्या जरूरत है? वैसे भी मैंने मीठा खाना कम कर दिया है।”
धनीराम, “बैंक मैनेजर साहब, आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं आपको बिना मुँह मीठा कराये नहीं जाने देता।”
धनीराम, “तुम जाओ, जाओ जाकर रबड़ी ले आओ।”
दिनेश चुपचाप रबड़ी लेने चला गया। दिनेश रबड़ी लेकर लौटा ही था कि उसे बैंक मैनेजर की आवाज सुनाई दी।
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दिनेश चुपचाप बाहर बैंक मैनेजर और धनीराम की बातें सुनने लगा। बैंक मैनेजर धनीराम से बोल रहा था,
बैंक मैनेजर, “आपने दिनेश की परवरिश बहुत अच्छी तरह से की है धनीराम जी, लेकिन मेरी एक बात समझ में ये नहीं आई कि आपने उसे पढ़ाया-लिखाया क्यों नहीं?
जब वो कागज पर अंगूठा लगाता है तो मुझे बहुत ज्यादा अफसोस होता है। आपको उसे पढ़ाना-लिखाना भी चाहिए था।”
धनीराम, “अब आपको क्या बताऊँ, बैंक मैनेजर साहब? बगैर माँ-बाप का ये लड़का था, इसका पढ़ाई में मन नहीं लगा और मैं दिनेश पर ज्यादा दबाव भी नहीं डाल सका।
वो क्या है ना, बैंक मैनेजर साहब… मैं दिनेश की आँखों में आंसू नहीं देख सकता क्योंकि उसके माता-पिता के मुझ पर बहुत ज्यादा अहसान हैं।
इसीलिए वो अनपढ़ ही रह गया और वैसे भी पढ़ाई-लिखाई से आखिर दिनेश को क्या फायदा होने वाला है? सब कुछ उसी का ही तो है।”
बैंक मैनेजर, “बात तो आपकी सही है धनीराम जी, लेकिन फिर भी शिक्षा बहुत ज्यादा जरूरी होती है। अब दिनेश बड़ा हो गया है।
कम से कम उसे इतना तो पढ़ा-लिखा दीजिए कि वो सिग्नेचर करना सीख जाए। और हाँ, नदियापुर गांव में आप दिनेश को ले जाने वाले थे। आप वहाँ की जमीन जो हटाने वाले थे।”
धनीराम श, “मैं इसी बारे में आपसे बात करना चाहता था। क्या दिनेश को नदियापुर गांव ले जाना जरूरी है क्या?
ऐसा नहीं हो सकता कि नदियापुर गांव सिर्फ हम दोनों जाएँ और हमेशा की तरह दिनेश से अंगूठा लगवा लिया जाए?
आखिर सब कुछ दिनेश की मर्जी से ही हो रहा है। अगर आपको विश्वास ना हो तो आप दिनेश से पूछ लीजिए।”
धनीराम, “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? मुझे आप पर पूरा विश्वास है। आप बगैर दिनेश की मर्जी के कुछ भी नहीं कर सकते।”
दिनेश उन दोनों की बातें सुनकर बुरी तरीके से हैरान रह गया कि तभी धनीराम की नजर दिनेश पर पड़ गई।
धनीराम, “अरे दिनेश! अब तुम बाहर क्यों खड़े हुए हो? अंदर आओ, तुमने बताया नहीं कि तुम रबड़ी लेकर आ गए।”
दिनेश ने चुपचाप रबड़ी धनीराम के हाथ पर थमा दी। धनीराम ने हमेशा की तरह एक सादा पेपर दिनेश के सामने रख दिया।
दिनेश ने उस सादा पेपर पर अंगूठा लगाया। बैंक मैनेजर के जाने के बाद धनीराम क्रोधित होते हुए दिनेश के पास आकर बोला,
धनीराम, “तो अब तेरी हिम्मत यहाँ तक बढ़ गई कि तू छुप-छुपकर हमारी बातें सुने।”
दिनेश, “नहीं बड़े मालिक, मैंने आप दोनों की कोई बात छुपकर नहीं सुनी।”
धनीराम, “अगर बातें छुपकर नहीं सुन रहे थे तो बाहर खड़ा क्या कर रहे थे? तुम्हें रबड़ी लेकर सीधे अंदर आना चाहिए था।”
इतना कहकर धनीराम एक लाठी लेकर आया और दिनेश को पीटने लगा।
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दिनेश, “मेरी बात का विश्वास कीजिए, मालिक। मुझे मत मारिए, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मालिक।”
धनीराम, “अगर दर्द हो रहा है तो उसे बर्दाश्त कर। मत भूल तेरे शरीर से जो खून निकल रहा है, उस पर भी मेरा अधिकार है।
अरे! तेरी माँ ने तो तुझे पैदा होते ही कूड़े के ढेर में फेंक दिया था। मैं तुझ पर तरस खाकर तुझे कूड़े के ढेर से उठा कर लाया और तेरी इतनी हिम्मत कि तू हमारी छुप-छुपकर बातें सुने?
मत भूल कि तू सिर्फ एक नौकर है और कुछ नहीं।”
धनीराम इतना कहकर पैर पटकता हुआ वहाँ से चला गया।
दिनेश आँखों में आंसू लिए बेहोश हो गया था। उस दिन धनीराम ने उसे भोजन भी नहीं दिया।
दिनेश रात के समय भूखा पेट अपने गले में एक लॉकेट को देखकर रोता रहा, जो उसकी माँ की आखिरी निशानी थी।
दिनेश, “आखिर तुम मुझे छोड़कर क्यों चली गई माँ? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है।
क्यों तुमने मुझे पैदा होते ही मार नहीं दिया? कम से कम मुझे ये सब तो नहीं झेलना पड़ता।”
कुछ महीने ऐसे ही बीत गए और एक दिन दिनेश कमरे की सफाई कर रहा था कि तभी सीमा वहाँ पर आ गई।
सीमा, “तुम्हें कुछ पता है दिनेश, पिताजी ने मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है? तुम आज ही पिताजी से हमारे विवाह की बात करोगे।”
दिनेश, “मैं अभी ऐसा नहीं कर सकता, सीमा। तुम्हारे पिताजी ने कुछ महीने पहले ही मुझे कितना पीटा था?”
तभी धनीराम वहाँ पर आ पहुंचा और क्रोधित होता हुआ दिनेश की ओर देखकर बोला,
धनीराम, “नमक हराम, जिस थाली में खाता है उसी थाली में छेद करता है। सबके सामने मेरी बेटी को छोटी मालकिन बोलता है और उसका अकेले में फायदा उठाता है।”
दिनेश, “नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है बड़े मालिक। मैंने कभी भी छोटी मालकिन को गलत नजर से नहीं देखा और मैं और छोटी मालकिन एक दूसरे से प्रेम करते हैं।”
धनीराम, “प्रेम करने से पहले अपनी एक बार औकात तो देख लेता कि कहाँ तू और कहाँ हम। और सीमा तुम, तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई? तुमने भी ये नहीं सोचा कि तुम कितने अमीर बाप की संतान हो?”
सीमा, “बस कीजिए पिताजी, इससे आगे एक शब्द भी मत बोलिएगा। मैं सब जानती हूँ।
अगर मैंने दिनेश को सब बता दिया तो आपकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं रहेंगी।”
सीमा की बात सुनकर धनीराम बुरी तरह से क्रोधित हो उठा और उसने एक थप्पड़ सीमा के गाल पर मारा और बुरी तरह से दिनेश को पीटना शुरू कर दिया।
दिनेश मार खाकर बेहोश हो गया। होश आने पर उसने सीमा को हवेली से लापता पाया।
दिनेश, “कहीं ऐसा तो नहीं कि मालिक ने सीमा को जान से मार दिया हो? अगर सीमा भी मुझे छोड़कर चली गई तो मैं इस संसार में अकेला ही रह जाऊंगा।”
तभी धनीराम क्रोधित होता हुआ वहाँ कुछ पुलिसवालों के साथ आ धमका,
धनीराम, “इसे गिरफ्तार कर लीजिए, इंस्पेक्टर साहब। इसने मेरी बेटी का अपहरण किया है।”
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पुलिसवाला, “ये तो इसकी शक्ल सही मालूम पड़ रहा है।”
धनीराम, “इस नमक हराम को मैंने पाल पोसकर बड़ा किया और देखिए, इसने मेरे ही घर पर डांका डाल दिया।”
पुलिसवाला,” हवालात में जब मैं इसकी टांगें तोड़ूंगा ना, तो यह सब बता देगा कि तुम्हारी बेटी को कहाँ छुपा के रखा है?”
दिनेश, “ये क्या कह रहे आप? मैं तो आपसे स्वयं पूछने वाला था कि सीमा कहां है?”
धनीराम ने जोरदार चांटा दिनेश के गाल पर मारा।
धनीराम, “सीमा नहीं, छोटी मालकिन बोल। नमक हराम, तेरी इतनी हिम्मत कि अब तू मेरी बेटी को नाम से पुकारेगा?”
इंस्पेक्टर दिनेश को गिरफ्तार करने ही वाला था कि तभी वही बैंक मैनेजर वहाँ पर आ गया।
धनीराम, “अरे! आप..? इस बार आने से पहले फोन नहीं किया?”
बैंक मैनेजर, “मैं यहाँ से गुजर रहा था तो सोचा कि तुमसे मिलता चलूँ। लेकिन तुम्हारे घर में ये पुलिस कैसी? सब ठीक तो है?”
धनीराम, “वो सब मैं आपको बाद में समझा दूंगा। आप चलिए मेरे साथ।”
पुलिसवाला, “इस दो कौड़ी के नमक हराम दिनेश ने धनीराम जी की बेटी को अगवा कर लिया है।”
बैंक मैनेजर,” ये क्या बोल रहे हैं आप?”
पुलिसवाला, “जो सच है वही बोल रहा हूं।”
बैंक मैनेजर, “अरे दिनेश कब से नौकर हो गया इन्स्पेक्टर साहब? दिनेश तो मालिक है। नौकर तो ये उल्टा धनीराम है।”
बैंक मैनेजर की बात सुनकर इंस्पेक्टर और दिनेश बुरी तरह से हैरान रह गए कि तभी सीमा दो लोगों के साथ वहाँ पर अचानक आ गई।
सीमा और उन दो लोगों को देखकर धनीराम बुरी तरह से घबरा गया।
दिनेश, “मुझे लगा था कि सीमा की तुमने जान ले ली है और ये तुम्हारे साथ कौन है?”
सीमा, “मेरे पिता ने मुझे एक कमरे में कैद करके रखा था। वहाँ से मैं चुपके से भाग गई और सीधी नदियापुर गांव पहुंची।
वहाँ पहुँचकर मेरी इन दोनों ने मदद की। जानते हो ये कौन हैं? ये तुम्हारे माता-पिता हैं। इनके गले में भी वही लॉकेट लटक रहा है जो तुम्हारे गले में है।
जब मैंने इन्हें पिताजी और तुम्हारे बारे में बताया तो ये दोनों बिचारे रोने लगे। इसीलिए मैं इन्हें अपने साथ ले आई।”
दिनेश, “यह सब क्या हो रहा है, मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?”
दिनेश की मां, “जिस धनीराम को तुम मालिक समझ रहे हो, वह धनीराम हमारा नौकर था… एक बेईमान नौकर।
तुम हमारे बेटे हो। तुम्हारे पिताजी ने धनीराम के लिए क्या नहीं किया और बदले में इस बेईमान नौकर ने हमसे हमारी सारी खुशियाँ छीन लीं।”
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दिनेश के पिता, “जब यह हरामखोर धनीराम 15 वर्ष का था, तब मैंने इसे सड़क से उठाकर अपने घर लाया था।
मैंने इसे पाल पोसकर बड़ा किया था। लेकिन समय के साथ मैं और मेरी पत्नी समझ गए कि इसकी नजर हमारी सारी संपत्ति पर है।
एक व्यक्ति द्वारा मुझे पता लगा कि धनीराम संपत्ति के लालच में मेरी और मेरी पत्नी की हत्या करना चाहता है।
उस समय तुम सिर्फ दो वर्ष के थे। मैंने अपनी सारी संपत्ति और सारा बैंक बैलेंस तुम्हारे नाम कर दिया।
जब यह बात धनीराम को पता लगी तो वह क्रोधित होकर तुम्हें हमसे छीनकर ले गया।”
दिनेश,” अगर ऐसी बात थी तो फिर आपने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?”
मां, “उस समय पुलिस भी उससे मिली हुई थी बेटा। और धनीराम ने हमें धमकी दी थी कि अगर हमने किसी भी तरह की जानकारी पुलिस को दी तो वह तुम्हें जान से मार देगा।
हम सिर्फ तुम्हारी जान बचाने के लिए आज तक चुप रहे, लेकिन अब नहीं। मुझे विश्वास था कि एक ना एक दिन तुम जरूर मिलोगे।”
बैंक मैनेजर, “दिनेश, ये दोनों बूढ़े पति-पत्नी सही कह रहे हैं। मैं इन्हें पहचानता हूँ। ये दोनों तुम्हारे माता-पिता ही हैं।
धनीराम ने मुझे अब तक यही बताया कि ये दोनों काफी वर्षों पहले मर चुके हैं। मुझे अभी भी यकीन नहीं कि धनीराम इतना बड़ा धोखेबाज हो सकता है।”
बैंक मैनेजर, “इंस्पेक्टर साहब, इस धोखेबाज को तुरंत गिरफ्तार कर लीजिए।”
धनीराम के हाथ-पैर फूल गए। वह हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा,
धनीराम, “मुझे माफ कर दो, मालिक। मैंने दिनेश को अपने बेटे की ही तरह पाला है।”
दिनेश, “झूठ मत बोल बेईमान नौकर। तूने मुझे हमेशा नौकर की तरह रखा है जबकि तू मेरा नौकर था।
तेरी वजह से मैं इतने वर्षों अपने माता-पिता से दूर रहा। तेरी असली जगह जेल में ही है।”
दिनेश, “गिरफ्तार कर लीजिए इसको।”
पुलिस ने धनीराम को गिरफ्तार करके जेल में भिजवा दिया और दिनेश ने धनीराम की ही पुत्री सीमा के साथ विवाह कर लिया और वे सब सुखी परिवार की तरह साथ-साथ रहने लगे।
दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!