धुंध | DHUNDH | Horror Kahani | Scary Stories | Darawani Kahaniyan | Most Horror Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” धुंध ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


बतौर फॉरेस्ट ऑफिसर राठौरगढ़ के जंगल में कबीर का आज पहला दिन है जहाँ पहुँचते पहुँचते उससे शाम हो गई।

फिर ऑफिस के बाहर वो जैसे ही खुले आसमान में निकला, तो उसे पश्चिम की ओर से तेज़ धुंध का बादल आसमान में उड़ता दिखा मानो जैसे पूरा जंगल जल रहा हो।

ये नजारा देखते ही कबीर ने ना आव देखा ना ताव और जिप्सी पर बैठ कर जंगल की ओर निकल गया।

कबीर को जंगल में जाता देख उसके सहयोगी भी दूसरी गाडी से उसके पीछे निकल पड़े।

कबीर बेतहाशा जंगल में बढ़ता हुआ पहाड़ी के एक टैलेंट पर पहुँच चुका था जहाँ से पश्चिम का वो जंगल साफ़ साफ़ दिखने लगा था।

कबीर ने जब ध्यान से देखा तो आग कहीं नहीं लगी हुई थी फिर ये धुंध कैसी थी? ये सवाल कबीर की समझ से परे था।

तभी कबीर के पास उसके सहयोगी भी पहुंचे, जिसे देख कबीर ने कहा,

कबीर, “माजरा क्या है? जंगल के में इतनी धुंध क्यों है?”

सहयोगी, “ये तो आज तक कोई नहीं समझ पाया और जिसने भी समझने की कोशिश की, उसकी जान चली गई।।”

सहयोगी के मुँह से ये बात सुन कबीर आग बबूला हो उठा और इससे पहले कि वो कुछ बोलता,

तभी उसने देखा कि नीचे जंगल में कुछ लोग उस धुंध की तरफ बढ़ रहे हैं जिसमें से एक के हाथ में मशाल है, जो किसी पुजारी की तरह लग रहा था।

वहीं उनके पीछे कुछ लोग जानवरों को बांधे अपने साथ ले जा रहे थे।

कबीर, “जंगल से जानवर लेकर कहाँ जा रहे है ये लोग?”

अपने सहयोगी से कहते हुए कबीर गाड़ी की तरफ बड़ा ही था कि तभी सहयोगी ने उसे रोकते हुए पूछा, “सर, कहां जा रहे है आप?”

कबीर, “भले तुम लोगों से कुछ नहीं हो पाया, पर अब मैं आ गया हूँ। अब मेरे रहते जंगल में पोचिंग बिलकुल भी नहीं हो सकती।”

कबीर अपनी गाड़ी पे बैठी रहा था कि तभी उसके सहयोगी ने कहा।

सहयोगी, “सर, ये कोई शातिर शिकारी नहीं, बल्कि गांव के मासूम लोग है जो धुंध से राक्षसों को शांत करने के लिए बलि देने जा रहे है।”

अपने सहयोगी के मुँह से राक्षस की बात सुन कबीर ने उसे ऐसे देखा जैसे वो जाहिल इंसान हो और बेकार की कहानी बना रहा।

इसलिए वो खुद ही अपना गुस्सा पीकर सबको साथ लेकर चलने को हुआ ही था कि एक और मुसीबत खड़ी हो गई।

सबने कहा कि वहाँ पहुँचते पहुँचते रात हो जाएगी और तब तक उनकी पूजा भी खत्म।

ये सब सुन कबीर ने कहा, “ठीक है, मेरी नजर में पहली बार है इसलिए छोड़ रहा हूँ। आइंदा से ऐसा ना हो, खबर भिजवा देना।”

कबीर की इस बात को सुन उसका सहयोगी बोला, “आप अभी जंगल में नए नए आए हैं साहब, क्यों गांव वालों के इन पचडों में पड़ रहे है?

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अरे! वो किसी लायन ऑर्डर को नहीं मानते। बीच में पड़े तो आपकी जान को भी खतरा है।”

कबीर, “अबे! तू फॉरस्ट डिपार्टमेंट का आदमी है गांव का?”

सहयोगी, “पहले गांव का हूं साहब, समझ लीजिये। हर मामले में सहरी लोग टांग ना घुसाएं तो ही अच्छा होगा।”

दूसरा सहयोगी, “ऐ ऐ ऐ… तू सर से कैसा बात कर रहा है?”

पहला सहयोगी, “माफ़ कीजिये सर, पर सही कह रहा हूं। सदियों से ये सब चलता है पर अगर आप रोकेंगे तो दिक्कत हो सकती है।”

कबीर, “जंगल अपने बाप का समझा है क्या इन गांव वालों ने, जो मन में आएगा वो करेंगे।

याद रखो, अब और दुबारा उस ओर जाते देखा, तो तुम्हारी छुट्टी हो जाएगी। फिर घर बैठ के मनाते रहना राक्षस को।”

इतना कह कबीर वापस ऑफिस चला गया। देखते ही देखते गांव वालों के बीच उसकी सख्ती के चर्चे तेज होने लगते है।

क्योंकि वो दिन पर दिन जंगल से जुड़े नियम कानून पर अपनी नकीलें कसते ही जा रहा था। साथ ही नियम तोड़ने वालों की हालत पस्त कर रहा था।

अब ना तो गांव वाले जंगल से लकड़ियां ला पा रहे थे और ना ही अपने मवेशियों को जंगल में चराने जा पा रहे थे।

फिर देखते ही देखते वो दिन आ गया, जब जंगल के पश्चिम में धुंध बननी शुरू हो गई।

कबीर वहीं पहाड़ी पर बैठा सिगरेट पी रहा था। तभी एक बार फिर से उसकी नजर उसी धुंध पर गई और देखते ही उसने सिगरेट को फेंका

और पहाड़ी से उतरते हुए जंगल में उसी ओर बढ़ गया। जैसे शाम अपने सुरूर पर चढ़ रही थी, जंगल के उस हिस्से में धुंध तेज होती जा रही थी

और अंत में धुंध इतनी बढ़ गई कि कबीर को अपने आगे कुछ नहीं दिख रहा था।

और इसी चक्कर में उसकी गाडी जाकर एक बड़े पेड़ से टकरा गई। बढ़ती धुंध के साथ अब आसमान भी काना स्याह हो गया था

और गाडी पेड़ से टकराने की वजह से कबीर भी थोड़ा चोटिल हो गया था।

वो गाडी से पैदल आगे बढ़ने लगा, तभी किसी ने पीछे से उसके पीठ पर वार किया और फिर वापस से धुंध में गायब हो गया।

कबीर, “कौन था ये? सामने आओ, कायरों की तरह पीठ पर क्या वार करते हो?”

कबीर ने इतना कहा ही था कि तभी जंगल की तरफ से घोड़ों के हिन्हेनाने की डरावनी आवाजें आने लगती है

और साथ ही ऐसा लगा जैसे कि वो उसकी तरफ ही बढ़ रहे हों। पर आवाज़ इस तरह से चारों ओर से आ रही थी

कि कबीर के लिए तय कर पाना मुश्किल था कि खतरा किस दिशा से उसके पास आ रहा है?

तभी उसे सामने धुंध में कुछ चमकता हुआ अपने पास नजर आया। डर के मारे अब कबीर के भी पसीने छूटने लगे थे, फिर भी अपनी हिम्मत बांध कबीर ने कहा।

कबीर, “अरे! कौन है, बताता क्यों नहीं? साफ साफ बताओ, वरना मैं गोली चला दूंगा।”

कबीर ने इतना कहा ही था कि उसे धुंध में एक मशाल दिखी जिस पर किसने क्या फेका पता नहीं?

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लेकिन मशाल से आग टकराते ही चारों तरफ एक चिंगारी फैल गई।

तभी कबीर की नजर मशाल के पीछे खड़े एक इंसान पर गई, जो शायद वही पुजारी था जिसे उसने कभी पहाड़ी के ऊपर से देखा था।

पर तब कबीर ने यह नहीं सोचा था कि जब वह सामने आएगा, तो उसे देख उसकी रूह जाएगी।

क्योंकि वह पुजारी था ही ऐसा कि उसे अगर कोई देख ले, तो मौत आ जाए।

और उसकी एक आंख तो ऐसे बंद थी जैसे मानो किसी ने सुई धागे से सिल रखी हो।

कबीर ने जैसे तैसे हिम्मत कर उससे कहा, “ये तुम्हीं थे जिसने मुझ पर वार किया? और एक सरकारी अफसर पर हाथ।

उड़ाने का मतलब भी जानते हो तुम? अच्छा पोचिंग… इसलिए मारना चाहते हो तुम मुझे।”

पुजारी, “मैंने बचाया है तुम्हें, नहीं तो मारे जाते तुम उस धुंध राक्षस के हाथों। अब रास्ते से हट जाओ, नहीं तो बली में देरी हुई तो हम सब मारे जाएंगे।”

कबीर, “पागल समझा है क्या? गांव वाले को राक्षस के नाम पर बेवकूफ बना सकते हो, मुझे नहीं।

चलो जानवर को छोड़ो और चलते बनो, नहीं तो यहीं पर पांचों को ठोंक दूंगा।”

पुजारी लगातार कबीर को समझाने की कोशिश कर रहा था कि ये बली कितनी जरूरी है?

पर उसने उनकी एक नहीं सुनी और अपने बंदूक के दम पर जानवर को आज़ाद करवा उन सभी को वापस जाने का बोल दिया।

लेकिन उससे पहले कि कोई कुछ करता, कहीं से ज़ोर की चीखने की आवाज आई

और अगले ही पल वो पांचों आदमी औंधे मुँह जमीन पर गिर पड़े और खींचे खींचे जंगल के अंदर जाने लगे।

मगर कबीर सही सलामत खड़ा था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर वो गिरे कैसे और अपने आप कैसे खींचे जा रहे हैं?

इसीलिए वो भी उनके पीछे दौड़ जाता है ताकि सच का पता लगा सके। भागते भागते वो धुंध के उस पार एक कांट के घर के पास आ पहुंचा।

जहां वो चार आदमी तो नहीं दिखे, मगर वो पुजारी अपनी शक्तियां से एक विशाल धुंध के साए से लड़ता हुआ दिखाई दिया।

तभी कभी कबीर आनन पानन में उस धुंध के राक्षस पर गोली चला करके अंदर चला गया।

कबीर, “क्या हो रहा है ये और बाकी चार कहाँ गए?”

पुजारी, “ले गया वो राक्षस उन्हें।”

कबीर, “आप साफ साफ बताएंगे कि हो क्या रहा है?”

कबीर के पूछते ही घर के अंदर से उन चारों की चीख गूंजने लगती है और बादल गरजने लगते हैं।

और एक बार फिर चारों तरफ से घोड़े के पास आने की डरावनी आवाज आने लगती है

और पुजारी काँपते हुए कहता है, “अब हम में से कोई नहीं बचेगा, उसका बदला आज पूरा हो जायेगा।”

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और उसी के साथ उसने कबीर को वर्षों पुरानी कहानी बतानी शुरू कर दी।

इस गांव में बाहर से एक व्यापारी बसने आया था, लेकिन उसकी तरक्की देख गांव का जमींदार उससे जलने लगा और उसकी संपत्ति को हड़प उसे गांव से भगा दिया।

बाहर का होने के कारण वो कुछ नहीं कर पाया और अपने छुपाई गई संपत्ति को लेकर वो अपने परिवार

और घोड़े के साथ छुपकर जंगल में रहने लगा। लेकिन जब ये बात जमींदार को पता चली,

तो वो वहाँ भी उस पर टूट गया और अपने चारों बेटों के साथ में लूटपाट मचा दी और इस बार वो यहीं नहीं रुके।

संपत्ति लूटने के साथ उसने उनकी घर की इज्जत भी लूटी। और फिर इन सब को मार दिया।

जमींदार इतना खूंखार था कि उसने घोड़े को भी जान से मार दिया और पूरे घर में आग लगा दी।

फिर कब उस आग के धुएं ने एक राक्षस का रूप ले लिया, ये किसी को पता नहीं चला? जमींदार उन लूटे हुए संपत्ति से और अमीर हो गया,

लेकिन उसे पता था कि उसने उस धन को कैसे पाया हैं? किसी तरह की अनहोनी ना हो, इसीलिए उसने शांति हवन कराने के लिए पुजारी को बुलाया।

लेकिन किसी वजह से पुजारी को देरी हो गई और इससे पहले कि पुजारी वहाँ पहुँचता,

व्यापारी के परिवार की आत्मा ने धुंध का रूप ले जमींदार की हवेली पर कहर बन बरस गया और सभी जिंदा लाश बन हवा में तैरने लगे।

बदले की आग में झुलस रही आत्माओं ने घर और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। सभी को हवा में लटकाए मौत का इंतजार करवा रहे थे, क्योंकि उन्हें बदला लेना था।

सबसे पहले जमींदार से जिसकी हालत के राक्षस ने ऐसी कर दी थी कि वो खून की उलटियां करते करते मर गया।

तभी पुजारी भी वहाँ पहुंचा। उसे पूरा मामला नहीं पता था। इसीलिए उसने सबसे पहले उसे बचाने की सोची और अपने तंत्र मंत्र के सहारे सभी आत्मा से अकेले लड़ने लगा

और इसी सबके बीच उसे अपना चेहरा खोना पड़ा, क्योंकि धुंध के राक्षस को शांत करना इतना भी आसान नहीं था।

पुजारी जमींदार को तो नहीं बचा पाया, पर उनके बेटे को बचाने का उपाय बताया, जो बली के रूप में था।

और अब ये बली पुजारी के लिए भी ज़रूरी थी, क्योंकि उसने भी उन्हें बचाने में उनकी मदद की थी।

लेकिन कबीर की वजह से इस बार वो बली अधूरी रह गई और वो चारों धुंध के राक्षस के शिकार हो गए।

पूरी कहानी जानने के बाद कबीर कहता है, “अपने कर्मों की सजा मिली उन्हें, पर तुम्हारा क्या होगा पुजारी?”

पुजारी, “वही… जो इन चारों का हुआ।”

कबीर ने जैसे ही सब होते देखा, वो उल्टे पांव वहाँ से भाग निकला बिना पीछे देखे।

लेकिन तभी एक पत्थर से उसका पांव टकराया और वह गिर पड़ा, जिसके बाद उसकी आँखें बंद हो गई।

और जब खुली, तो वहाँ कोई धुंध नहीं थी। साथ ही सुबह भी हो चुकी थी। और जानवर उसी के आजू बाजू में थे, जिसे उसने आजाद करवाया था।

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शायद इसलिए ताकि बेहोशी के वक्त कोई और जानवर कबीर पर हमला ना करे।

कबीर खुद को जिंदा पा ये सब समझ गया और उन जानवरों को प्यार करने लगा।

साथ ही ये भी समझ गया कि उस धुंध के राक्षस ने उसे इसीलिए नहीं मारा, क्योंकि उसने बली को रोक उन्हें अपना बदला लेने में मदद की थी।


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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