गरीब मछुआरा | Gareeb Machhuara | Hindi Kahani | Gaon Ki Kahani | Moral Stories | Bedtime Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब मछुआरा ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Gaon Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक बार की बात है। कई सालों पहले नगर खजूरा नाम का एक गांव हुआ करता था।

समुद्र के अत्यधिक पास होने के कारण वहाँ के सभी लोग पानी से जुड़े हुए काम करके अपनी रोज़ी-रोटी कमाते थे।

उन्हीं में से एक था भीमा मछुआरा, जो समुद्र के किनारे से मछलियां पकड़ने और उन्हें बेचने का काम करता था।

अगले दिन समुद्र के किनारे के पास…

किशन, “आज तो समुद्र के किनारे बहुत सारी मछलियां पड़ी हैं। लगता है कल कोई बड़ी लहर आई थी।”

भीमा, “लगता है यही हाल है आजकल समुद्र में भी। बहुत उफान आने लगा है, भैया। पहले की तरह शांति नहीं रहती।

किशन, “लेकिन हमारे लिए किसी भी फायदे की नहीं। ये मछलियां तो कल की मरी पड़ी होंगी।

बाजार में हम सिर्फ ताजा मछलियां ही बेच पाते हैं। चलो तुम अपना जाल लगाओ, मैं अपना लगाता हूँ। आज का काम शुरू करते हैं।”

भीमा और किशन दोनों बचपन से ही एक साथ रहते थे। वे एक-दूसरे के अच्छे पड़ोसी और दोस्त थे।

अब जैसे ही वे दोनों अपने दिन का काम खत्म करके घर लौट रहे थे, रास्ते में कुछ लोग हंसते हुए महेंद्र से कहते हैं।

पहला आदमी,”अरे भीमा! तुम काम करके इतनी रात को जा रहे हो। ना तो तुम्हारे कोई औलाद हैं और ना किसी प्रकार का कोई खर्चा, फिर रात-दिन इतना क्यों मेहनत करते हो काम के पीछे?”

दूसरा आदमी, “हाँ-हाँ, हमें देखो। कितना भी कमा लें लेकिन परिवार के खर्चे पूरे नहीं होते? लेकिन संतान होने में सुख तो हैं।”

भीमा की शादी को 10 साल हो चुके थे, लेकिन उसे अभी तक कोई औलाद नहीं थी।

गांव वालों की ऐसी बातें सुनकर भीमा को बहुत बुरा लगता था, लेकिन फिर भी वह चुप्पी साधे रहता है। तभी किशन गुस्से से बोल पड़ता है।

किशन, “तो इसमें हंसने वाली कौन सी बात है? यह तो भगवान की देन है।

अभी नहीं है तो क्या हुआ? संतान भी हो जाएगी। लेकिन फिर तुम लोग किसे ताना मारोगे?”

पहला आदमी, “अरे! हम तो बस इतना कह रहे थे कि अब बुढ़ापा आ चुका है। इतना तो कमाई कर ही लिए होंगे भीमा भैया कि बाकी का जीवन सुकून से कट जाए। आजकल तो किसी को सलाह देने का ज़माना ही नहीं रहा।”

दूसरा आदमी, “हाँ-हाँ, अगर ये कुछ छोड़ दे तो हम जैसे नये मछुआरे भी कुछ आमदनी करें। लेकिन सारी मछलियां तो ये ले जाते हैं।”

किशन, “तो सीधे-सीधे कहो ना, यह बात है। भीमा की तरक्की से तुम्हें जलन होती है।

उस बात को घुमा-फिरा कर कहने की क्या जरूरत है? और आइंदा परिवार को बीच में मत लाना, समझे?”

भीमा, “अरे! रहने दो किशन, इनसे बहस करने का कोई फायदा नहीं। चलो घर चलते हैं यार, देरी हो रही है।”

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वहाँ से जाते वक्त बसंत सुंदर से कहता है।

बसंत, “अरे यार! तुम भीमा को इतना नापसंद क्यों करते हो? जब भी उसे देखते हो तो गुस्से से लाल-पीले हो जाते हो।”

सुंदर, “अरे! कुछ नहीं, बस मैं बचपन में हर चीज़ में इससे अच्छा था। इसके बाप-दादा हमारे यहाँ से उधार मांगा करते थे और आज देखो, सारे गांव के लोग इसकी बात सुनते हैं और हमें कोई पूछता तक नहीं।”

बसंत, “अच्छा… तो तुम्हें उसके पैसे से जलन है। समझ गया, समझ गया। लेकिन एक बात बताओ, उसके पैसे ना होने से बच्चे का क्या लेना-देना?”

सुंदर, “वही तो बात है। किसी को बताओगे तो नहीं? तो फिर तुम्हें बता ही देता हूँ। भीमा के कभी भी बच्चा नहीं होगा।”

बसंत, “तुम ये बात इतना यकीन से कैसे कह सकते हो भैया?”

सुंदर, “क्योंकि मैंने ही एक तांत्रिक से विद्या पढ़ाई है कि उन्हें कभी बच्चा नहीं होगा।”

सुंदर की यह बात सुनकर बसंत दंग रह जाता है, पर डर के कारण कुछ नहीं कहता। भीमा बचपन से ही मछुआरे का काम कर रहा था।

वह अपने काम में बहुत माहिर था और उसकी आमदनी सभी मछुआरों से काफी ज्यादा थी।

पैसे की उसे ज्यादा कोई कमी नहीं थी, परंतु फिर भी संतान ना होने के कारण उसके जीवन में एक सूखापन था।

उन व्यक्तियों की बातें उसके दिमाग में गूंजती रही और वह उदास होकर घर पहुंचा। लेकिन उसे अभी पूरी सच्चाई पता ही नहीं थी।

रमा, “क्या हुआ जी..? आज आप इतने उदास क्यों हैं?”

भीमा, “कुछ नहीं, रमा। क्या तुमने खाना लगा दिया?”

रमा, “जी, मैंने खाना कब का लगा दिया है? आप मुँह धोकर खाना खा लीजिए। मैं जानती हूँ आप किसी बात से परेशान हैं।

लोगों का तो काम है कहना। आप उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान मत दीजिए। इससे आपकी सेहत पर असर पड़ेगा।”

भीमा, “हाँ रमा, मैं जानता हूँ। मुझे इन लोगों की बातों से फर्क नहीं पड़ता, लेकिन दिन व दिन हमारी उम्र भी तो बढ़ती जा रही है।”

रमा, “भगवान एक ना एक दिन सबकी सुनता है। बस आप उसका नाम लेकर आराम से सो जाइए, इस बात की ज्यादा चिंता मत करिए।”

रमा, “अब तो मैंने सब ऊपर वाले पर ही छोड़ दिया है।”

यह बात करके रमा और भीमा दोनों दुखी मन से सो जाते हैं।

अगले दिन रोज़ की तरह भीमा सुबह 5 बजे उठकर समुद्र के किनारे मछली पकड़ने पहुँच जाता है। अब वह रोज़ की तरह अपनी नौका में बैठकर समुद्र के बीच में जाकर अपना जाल फेंकता है।

और उसमें बहुत सारी मछलियां फंस जाती हैं, लेकिन उसमें से एक बहुत बड़ी गोल्डन कलर की मछली भी फंस जाती है।

अब वह जैसे ही जाल ऊपर खींचता है, तो वह देखता है कि मछली बोल रही है।

गोल्डन मछली, “मुझे छोड़ दो मछुआरे, मैं कोई आम मछली नहीं हूँ। अगर तुम मुझे समुद्र में वापस छोड़ दोगे तो मैं तुम्हें तुम्हारी मन चाही इच्छा पूरी करने का वरदान दूंगी।”

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पहले तो भीमा उस मछली को बोलते देख बहुत डर जाता है, पर बाद में अपने नरम स्वभाव के कारण वह मछली को मुस्कुराकर कहता है।

भीमा, “मैं भगवान की दिव्य शक्तियों में विश्वास रखता हूँ। मैं तुम्हें अवश्य ही छोड़ दूंगा।

अगर तुम बोल सकती हो तो तुम जरूर इंसानों की ही तरह किसी दूसरे दिव्य दुनिया से हो।”

इतना कहकर वह उस गोल्डन मछली को समुद्र में वापस छोड़ देता है। उस मछलियों को समुद्र में छोड़ते ही वह देखता है कि मछली एक सुंदर महिला में बदल जाती है।

वह सफेद कपड़े पहने समुद्र के बीचो-बीच खड़ी हो जाती है और भीमा से कहती है।

मछली, “मैं समुद्र में रहने वाले जीव-जंतुओं की महारानी जल देवी हूँ। मैं गलती से राजमहल से दूर हो गई थी और समुद्र के किनारे आ गई थी।

मैं तुम्हारी सुदारता से बहुत प्रसन्न हूँ। बताओ, तुम मुझसे क्या मांगना चाहोगे? धन, दौलत, मकान, जो तुम मांगना चाहो।”

भीमा, “पहले तो मैं समुद्र की रानी को प्रणाम करता हूँ। वैसे तो मुझे आपसे धन-दौलत जैसा कुछ नहीं चाहिए।

परंतु मेरी कोई संतान नहीं है। अगर आप मुझे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देतीं तो मैं उसे जीवन दान की तरह समझूंगा।”

जल देवी, “तथास्तु वत्स।”

जल देवी के हाथ से बहुत तेज बिजली की रौशनी चमकती है। तभी भीमा के हाथ में एक फल आ जाता है।

जल देवी, “यह फल जाकर अपनी पत्नी को दे देना। वह इसे आज से 5 दिन बाद पूर्णिमा की रात को खा लेगी।

उसके बाद से सब ठीक हो जाएगा। यह मेरा आशीर्वाद है। ध्यान रहे, तुम मेरे बारे में और इस फल के बारे में किसी को कभी नहीं बता सकते।”

भीमा, “जी महारानी, मैं ध्यान रखूंगा। मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा कि मैं आपका सच गलती से भी किसी के सामने ना बोलूं।”

जल देवी, “एक बात और, तुम्हारे बच्चे के पेट में होने के वक्त पर तुम्हें उसका बहुत ध्यान रखना है। कोई है जो उसे नुकसान पहुंचाना चाहेगा।”

अब भीमा को इतना जरूर पता था कि रानी की बात में कुछ छुपा हुआ संदेश है और वह फल जरूर कोई जादुई फल है, जिसमें जल की रानी का आशीर्वाद छुपा हुआ है।

वह खुशी के मारे जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर अपने घर चला जाता है। जाते हुए रास्ते में वह सोचता है,

भीमा, “यह जरूर भगवान का ही कोई संकेत है।”

और यही सोचते-सोचते उसकी आँखों में आंसू आ जाते हैं।

भीमा, “रमा, देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया हूँ?”

रमा, “क्या हुआ, क्यों इतना चिल्ला रहे हो?”

भीमा, “देखो मुझे आज क्या मिला? मैं रास्ते से जब घर आ रहा था तो एक बूढ़े बाबा ने आशीर्वाद में मुझे एक फल दिया और बोला कि इसे तुम्हें दे दूं।”

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रमा, “अच्छा इधर लाओ, मुझे दे दो। पर इसमें इतना खुश होने की बात क्या है?”

रमा बिना सारी सच्चाई जानें उस फल को आराम से खा लेती है और उसे खाते हुए भीमा की आँखों में नमी और अपने भविष्य की आशा झलक पड़ती है। ठीक महारानी के कहे अनुसार उसने रमा को कुछ नहीं बताया।

दो महीने बाद रमा को अचानक से चक्कर और उल्टी जैसा महसूस होने लगा।

पहले-पहल तो वह इसे आम बात समझकर टाल देती है, लेकिन जब दो-तीन दिनों तक लगातार यह सब होता रहता है, तब वह भीमा को जाकर बताती है।

रमा, “अजी जी सुनते हो, मेरी तबियत दो-तीन दिन से बहुत खराब है।”

भीमा, “रमा, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? हमें तुरंत डॉक्टर के पास चलना चाहिए।”

अब वे दोनों डॉक्टर के पास जाते हैं और सारे चेकअप कराते हैं। कुछ ही देर बाद डॉक्टर आते हैं और बोलते हैं,

डॉक्टर, “भीमा जी, आपकी पत्नी बिल्कुल ठीक है। खुशखबरी की बात यह है कि ये प्रेग्नेंट हैं। पर क्योंकि यह लेट प्रेगनेंसी है, इन्हें खास ख्याल रखना होगा।”

यह सुनकर भीमा और रमा खुशी से फूले नहीं समाते और डॉक्टर से कहते हैं,

भीमा, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! हम बिल्कुल अपने बच्चे का खास ख्याल रखेंगे। भगवान ने बहुत दिनों बाद हमारी पुकार सुनी है।”

तभी यह बात सुंदर को पता चलती है और वह भीमा के घर चला जाता है।

सुंदर, “भीमा, रमा भाभी… कोई घर पर है?”

रमा, “हाँ सुंदर भैया, बोलिए।”

सुंदर, “कुछ नहीं, खुशखबरी का पता चला तो हाल-चाल पूछने आ गया और कुछ फल भी लाया था आपके लिए।”

रमा, “अरे भैया! इसकी क्या जरूरत थी? आइए ना, बैठिए। भीमा आने वाले ही होंगे।”

सुंदर, “नहीं, बस चलता हूँ।”

भीमा, “यह क्या तुम सेब खा रही हो? पर मैं तो सेब लाया ही नहीं था।”

रमा, “अरे! सुंदर भैया आए थे, वो देकर गए हैं।”

यह सुनते ही भीमा डर जाता है और रमा के हाथ से सारा फल छीनकर फेंक देता है।

भीमा, “मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, जब तक मेरी लाई हुई चीज़ ना हो, तुम्हें नहीं खानी है। तुम्हें समझ क्यों नहीं आता?”

अब भीमा डरकर मन ही मन सोचता है,

भीमा, “महारानी, मेरे बच्चे की रक्षा करना।”

कुछ महीनों बाद रमा और भीमा की ज़िन्दगी में अब खुशियाँ छा गई थीं। उनके यहाँ एक लड़के ने जन्म लिया था, जो बहुत ही सुंदर था।

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उसकी आँखें नीली थीं। इतना सुंदर था कि जो देखता, देखता ही रह जाता।

भीमा, “देखो, कैसे खिलखिला रहा है। बिलकुल तुम पर गया है।”

रमा, “हाँ, वो तो है। पर हम इसका नाम क्या रखेंगे?”

भीमा, “इसका नाम हम बट्टू रखेंगे।”

रमा, “पर क्यों? और भी तो बहुत अच्छे-अच्छे नाम हैं।”

भीमा मुस्कुरा देता है। यह नाम उसने पानी से जुड़ा हुआ रखा था।

वह मछली वाली बात अपनी जुबान पर नहीं आने देता। उसने यह बात सालों से छुपाकर रखी थी।

रमा, “अजी, सुनते हो… लड़का हुआ है, कम से कम मोहल्ले में मिठाई तो बांटनी ही चाहिए।”

भीमा, “हाँ हाँ, मिठाई तो जरूर बांटेंगे। हमारे घर खुशियाँ जो आई हैं।”

अब जैसे ही यह बात गाँव में फैलती है और सुंदर को पता चलता है।

सुंदर, “ये मिठाई किस खुशी में बांट रहे हो, भाई?”

आदमी, “अरे! भीमा को लड़का हुआ है।”

सुंदर (मन में), “पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने तो उसके पेट पड़ते ही भीमा की पत्नी को दवाई दे दी थी।”

अब मन ही मन सुंदर यह सब सोचने लगता है, लेकिन उसे यह नहीं पता कि बट्टू कोई मामूली बच्चा नहीं है।

चार साल बाद देखते ही देखते बट्टू बड़ा हो चुका था। उसकी नीली चमकती आँखें और उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा पहले जैसा ही था।

रमा, “बट्टू, ज़रा इधर आना तो।”

बट्टू, “पापा, किधर हैं? मुझे उनके पास जाना है।”

रमा, “पापा बाहर काम पर गए हैं, बेटा। तुम उनके पास नहीं जा सकते।”

किसी वजह से बट्टू रोते-रोते चुप ही नहीं होता, तभी रमा कहती है,

रमा, “ये आज इतना क्यों रो रहा है, यह तो कभी इतना नहीं रोता।”

रमा जैसे ही उसे घर के बाहर अपने पिता से मिलवाने ले जाती हैं, बट्टू समुद्र की तरफ बहुत तेजी से भागता है। वह सुनते ही अपने पिता के कपड़े पकड़ कर उन्हें घर की तरफ खींचने लगता है।

भीमा, “क्या हुआ है बट्टू? इतनी तेजी से क्यों भाग रहे हो?”

बट्टू, “पापा, तूफान आ रहा है। घर चलो, सब चलो।”

जब भीमा देखता है तो मौसम एकदम साफ था, लेकिन वह समझ जाता है कि बट्टू जल परी के आशीर्वाद से जन्मा है, इसलिए वह पता लगा सकता है कि आगे तूफान आएगा या नहीं।

भीमा, “सभी लोग किनारे से हट जाओ। मैं फिर से कह रहा हूँ कि बहुत तेज़ तूफान आ रहा है, सभी लोग वहाँ से जल्दी से जल्दी हट जाएँ।”

सुंदर, “अरे! यह तो हमारा बेवकूफ बना रहा है। मौसम तो बिलकुल साफ नजर आ रहा है देखो।”

बसंत, “अरे! मैं समझ गया, इसकी चाल। यह सब इसलिए कर रहा है ताकि सारी मछलियाँ यह पकड़ कर ले जाए। हम तो यहाँ से कहीं नहीं जाएंगे।”

कुछ देर बाद ही बट्टू के बताए अनुसार बहुत तेज़ तूफान आया और समुद्र से लंबी भयानक लहर उठती है।

लोगों के घर, नौका और बहुत सारी चीज़ें बह जाती हैं। सुंदर और बसंत भीमा की बात नहीं सुनते और वे समुद्र में बह जाते हैं।

बट्टू, “पापा, उन नीले शर्ट वाले अंकल को बचा लो।”

अब जैसे ही भीमा पीछे मुड़कर देखता है तो सुंदर और बसंत तेज लहरों के साथ बह रहे होते हैं। तब भीमा सोचता है,

भीमा, “मैं इन्हें कैसे बचाऊँ? लहरें बहुत तेज हैं, इन्हें बचाने गया तो मैं भी साथ में बह जाऊँगा।”

बट्टू, “आप उन अंकल को बचाने जाओ, पापा। बाकी सब मैं संभाल लूँगा।”

भीमा को बट्टू की बात पर विश्वास था, क्योंकि उसे पता था कि जल की देवी के आशीर्वाद से जन्मा है ये।

अब वह बिना कुछ सोचे-समझे तेज लहरों में कूद पड़ता है और सुंदर और बसंत को बचा लेता है।

थोड़ी दूर खड़ा बट्टू समुद्र की ओर जल की रानी, जल देवी को देखकर मुस्कुराने लगता है। तभी सुंदर और बसंत आते हैं और सुंदर बट्टू को गले से लगा लेता है।

सुंदर, “अगर आज तुम ना होते, तो शायद हम सभी ना बच पाते। मैंने जलन के कारण हमेशा तुम्हारे जीवन में गलत चीजें की और उसका ही एक शिकार तुम जैसी नन्ही जान बन गई। मुझे माफ़ कर दो, बेटे।”

बट्टू, “कोई बात नहीं अंकल, मैं आपसे गुस्सा नहीं हूँ।”

इसके बाद वह बिना किसी डर के खुशी से रहने लगते हैं। बट्टू की इस मासूम भरी बात पर सभी जोर-जोर से हंसने लगते हैं।


दोस्तो ये Bedtime Story आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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