जादुई मूर्ति | Jadui Murti | Hindi Kahani | Jadui Kahani | Magical Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई मूर्ति ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Jadui Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


चूनागढ़ राज्य में भैरव सिंह का शासन हुआ करता था। चुनागढ़ राज्य में ही कलुआ नाम का एक मूर्तिकार रहा करता था।

कलुआ मूर्तियाँ बनाने में निपुण था। उसकी बनाई हुई मूर्तियों के चर्चे दूर-दूर के राज्यों तक फैले हुए थे।

एक दिन कलुआ मूर्तियाँ बनाने के लिए अपनी दुकान पर जा रहा था कि तभी उसका मित्र रास्ते में मिल गया।

मित्र, “आज कल देख रहा हूँ मूर्तियाँ बनाने में तुम कुछ ज्यादा ही व्यस्त चल रहे हो।”

कलुआ, “तुम तो जानते हो, मैं सारा दिन मेहनत से मूर्तियाँ बनाता हूँ। मगर मेरी बनाई हुई मूर्ति एक भी नहीं बिकती।”

मित्र, “तुम्हारे हाथ की बनाई हुई मूर्तियाँ भी जरूर बिकेंगी। बस, तुम्हें थोड़ी सी मेहनत करने की जरूरत है।

तुम्हें अपनी बनाई हुई मूर्तियों के रंगों पर ध्यान देना चाहिए। तुम्हारी कारीगरी तो अच्छी है, बस तुम रंगों पर थोड़ा सा ध्यान दे दो तो तुम्हारी बनाई हुई मूर्तियाँ भी कमाल की बन जाएँगी।”

कलुआ, “शायद तुम बिलकुल सही कह रहे हो। अब से मैं और ज्यादा मेहनत करूँगा और तुम्हारे बताए हुए अनुसार रंगों पर ध्यान केंद्रित करूँगा।”

मित्र, ” ये हुई ना बात… और फिर मैं तो तुम्हारी मदद के लिए हमेशा तैयार रहता हूं।

कलुआ, “ठीक है, बिलुआ, अब मैं चलता हूँ।”

इतना कहकर कलुआ अपनी दुकान पर चला गया। कई महीने ऐसे ही बीत गए। एक दिन भैरव सिंह के सैनिक कलुआ की दुकान पर आकर रुक गए।

सैनिक, “क्या तुम्हारा ही नाम कलुआ है?”

कलुआ, “जी, मेरा ही नाम कलुआ है।”

सैनिक, “हमारे महाराज भैरव सिंह अक्सर आम आदमी का भेष बदलकर अपनी प्रजा का हाल-चाल मालूम करते रहते हैं।

एक दिन राजा की नज़र तुम्हारी बनाई हुई मूर्तियों पर पड़ी, जो उन्हें बहुत पसंद आई। कुछ दिनों बाद भैरव सिंह अपने राज्य में एक बहुत बड़ा समारोह करवाने वाले हैं।

तुम्हें भैरव सिंह के लिए एक ऐसी मूर्ति बनाकर तैयार करनी होगी, जो बिलकुल इंसानों जैसी लगे। याद रखना, मूर्ति एक सुंदर युवती की होनी चाहिए।

तुम ऐसी सुंदर युवती की मूर्ति बनाकर तैयार करोगे, जिसे देखकर समारोह में आए अन्य राजाओं का मुँह फटा का फटा रह जाए। ये चूनागढ़ के राज्य की साख का सवाल है।”

कलुआ, “लेकिन भैरवसिंह सभा में मूर्ति क्यों लगवाना चाहते हैं?”

सैनिक, “उस समारोह में निशानेबाजी का कार्यक्रम भी होगा। उस मूर्ति के सिर पर एक सेब रखा जाएगा।

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और उस पर दूर से कोई एक राजा निशाना लगाएगा। जिसका तीर सटीक लगेगा, वो राजा विजय घोषित होगा।

भैरव सिंह को विश्वास है कि अन्य राज्यों के राजा मूर्ति की सुंदरता में खो जाएंगे और अपने निशाने से भटक जाएंगे, और भैरव सिंह ही विजय होंगे।”

इतना कहकर सैनिक वहाँ से चला गया। सैनिक के जाने के बाद, बिलुआ कलुआ की दुकान पर आ गया।

बिलुआ, “सब कुशल मंगल तो है कलुआ? सैनिक तुम्हारी दुकान पर क्या करने आए थे? कहीं तुम्हें बंदी बनाने तो नहीं आए थे?”

कलुआ, “अरे ! नहीं नहीं बिलुआ, मेरी मेहनत सफल हो गई। सैनिकों ने मुझे बताया कि भैरव सिंह अक्सर अपना भेष बदलकर प्रजा का हाल-चाल लेते हैं।

एक दिन भैरव सिंह की नज़र मेरी बनाई मूर्ति पर पड़ी, जो उन्हें बहुत पसंद आई। भैरव सिंह महल में एक समारोह करवाने वाले हैं और उन्होंने उस समारोह के लिए एक सुंदर युवती की मूर्ति बनाने का आदेश मुझे ही दिया है।”

कलुआ, “लगता है अब मेरे दिन बदलने वाले हैं।”

बिलुआ, “ये तो तुमने बिलकुल सही कहा, कलुआ।”

मगर अंदर ही अंदर कलुआ की सफलता देखकर बिलुआ जल भून रहा था। कलुआ उस दिन के बाद पूरी मेहनत और लगन से मूर्ति बनाने के कार्य में लग गया।

वह रात-रात भर काम करता रहता था। कुछ ही दिनों में कलुआ ने एक बहुत सुंदर दिखने वाली युवती की मूर्ति तैयार करके खड़ी कर दी।

बिलुआ, “वाह कलुआ! तुमने तो बिलकुल असली युवती जैसी मूर्ति बनाकर तैयार कर दी। इसे देख कर कोई भी इंसान धोखा खा सकता है।”

कलुआ, “ये मूर्ति तुम्हें तो पसंद आई है बिलुआ, लेकिन ये भैरव सिंह को भी पसंद आनी चाहिए। अगर उन्हें ये मूर्ति पसंद आ गई, तब मैं अपनी कारीगरी को सफल मानूंगा।”

कलुआ, “बिलुआ, क्या तुम इस मूर्ति को अपनी दुकान पर रख सकते हो? आजकल राज्य में चोर बहुत घूम रहे हैं और मुझे सबसे ज्यादा विश्वास तुम पर है।”

बिलुआ ने उस मूर्ति को अपनी दुकान पर ले जाकर रख दी।

बिलुआ, “मैं वैसे भी इस मूर्ति को ठिकाने लगाने की सोच रहा था और इस मूर्ख ने तो स्वयं ही मूर्ति मुझे सौंप दी।

देखता हूं ये कलुआ का बच्चा राजा को मूर्ति कैसे दे पाता है? क्योंकि मैं कल सुबह ही इस मूर्ति को बेचकर इस शहर और इस राज्य से कुछ महीनों के लिए रफू चक्कर हो जाऊंगा।

मूर्ति तैयार ना पाकर राजा कलुआ को वैसे भी नहीं छोड़ेगा। मेरे दोनों हाथों में तो लड्डू ही लड्डू हैं।”

अगली सुबह जब कलुआ बिलुआ की दुकान पर गया तो उसे पता लगा कि बिलुआ मूर्ति बेचकर इस राज्य से चला गया है।

कलुआ बुरी तरह से घबरा गया।

कलुआ, “अब क्या होगा? राजा के सैनिक जब मूर्ति लेने आएँगे, अगर उन्हें मूर्ति तैयार नहीं मिली तो राजा बुरी तरह से क्रोधित हो जाएंगे और मैं इतनी जल्दी मूर्ति भी तैयार नहीं कर सकता।

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मैं एक काम करता हूँ, इस राज्य से भाग जाता हूँ नहीं तो राजा मुझे मार डालेगा।”

कलुआ घबराता हुआ सीधा जंगलों के रास्ते दूसरे राज्य की ओर भागने लगा। तभी उसके कानों में बहुत से सैनिकों के घोड़े की टापों की आवाजें टकराईं।

कलुआ के दौड़ते हुए कदम अचानक रुक गए।

कलुआ, “ये तो सैनिकों के घोड़े की आवाज हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि सैनिक मेरे पीछे मेरी दुकान पर सुबह ही आ गए हों और मेरे पीछे लग गए हों? हे ईश्वर! अब क्या होगा?”

कलुआ घने पेड़ों के पीछे छुप गया। कुछ ही देर बाद बहुत से सैनिक वहाँ से निकलते हुए चले गए।

कलुआ वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी उसके कानों में किसी स्त्री के कराहने का स्वर टकराया।

कलुआ ने देखा कि एक युवती घायल अवस्था में पेड़ के नीचे लेटी हुई थी। कलुआ दौड़ता हुआ उस घायल युवती के पास पहुँच गया।

कलुआ, “कौन हो तुम?”

युवती, “मैं तुम्हें नहीं बता सकती कि मैं कौन हूँ? मैं बस तुम्हें इतना बताना चाहती हूँ कि तुम इसकी रक्षा करना।

इसे अपने घर ले जाओ। इसे किसी भी तरह से राजा के हाथ मत लगने देना, नहीं तो अनर्थ हो जाएगा।”

कलुआ, “तुम किसकी रक्षा की बात कर रही हो? यहाँ तो मेरे और तुम्हारे अलावा कोई भी नहीं है।”

युवती ने एक पेड़ की ओर इशारा करके कहा, “मैं उस मूर्ति की बात कर रही हूँ।”

कलुआ ने जैसे ही देखा, उसकी आँखों के सामने एक बेहद सुंदर युवती काले वस्त्र पहने खड़ी थी।

कलुआ, “वह तो इंसान है, कोई मूर्ति नहीं।”

युवती, “नहीं, ये मूर्ति है। तुम जल्दी से इसे अपने घर ले जाओ।

कलुआ, “लेकिन, तुम तो बुरी तरह से घायल हो।”

युवती, “मेरी चिंता मत करो। तुम बस इसे ले जाओ और वचन दो कि तुम इस मूर्ति की रक्षा करोगे और इस बारे में किसी को नहीं बताओगे।”

कलुआ, “ठीक है, मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि मैं इस मूर्ति की रक्षा करूँगा।”

कलुआ ने इतना कहा ही था कि वह युवती बेहोश हो गई। कलुआ उस मूर्ति को लेकर घर चला गया।

कलुआ, “आज रात इस मूर्ति को अपने घर पर ही रख लेता हूँ। सुबह होते ही इस मूर्ति को लेकर इस राज्य को छोड़कर चला जाऊंगा।”

कलुआ ने इतना कहा ही था कि तभी उसके कानों में किसी स्त्री का मधुर स्वर टकराया।

स्त्री, “तुम्हें भागने की कोई जरूरत नहीं है। भागना कायरता होती है।”

स्त्री का मधुर स्वर सुनकर कलुआ चौंककर इधर-उधर देखने लगा।

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कलुआ, “एक बार मुझे ऐसा लगा जैसे इस मूर्ति ने मुझसे बात की हो। लगता है मैं भी पागल हो गया हूँ। भला मूर्ति क्या बात करती है?”

कलुआ उस मूर्ति को निहारते हुए सो गया। अगली सुबह कलुआ ने उस मूर्ति को देख कर बोला,

कलुआ, “तुम तो बिलकुल इंसान जैसी मालूम पड़ती हो। मेरी उम्र 24 वर्ष की हो चुकी है, मगर मुझे अभी तक विवाह के लिए कोई भी स्त्री पसंद नहीं आई।

अगर तुम इंसान होती तो मैं तुमसे ही विवाह करता। सच तो ये है कि पहली ही नजर में मुझे तुम्हें देखकर प्रेम हो गया है।”

मूर्ति, “मुझे भी तुमसे प्रेम हो गया है।”

कलुआ, “अरे! फिर से वही स्त्री का स्वर..? लेकिन मेरे अलावा तो यहाँ पर और कोई मौजूद नहीं है।”

तभी कलुआ का दरवाजा कोई जोर-जोर से पीटने लगा। कलुआ ने जैसे ही दरवाजा खोला, बाहर खड़ा बिलुआ तुरंत घर के अंदर घुस आया और उस मूर्ति को हैरत भरी नजरों से देखने लगा।

कलुआ, “तुम यहाँ पर क्यों आए हो, बिलवा? मैंने तुम पर कितना विश्वास करके अपनी मूर्ति तुम्हें सौंपी थी, और तुमने चंद पैसों के लालच में आकर उसे बेच दिया?”

बिलुआ, “क्योंकि मैं तुझसे ज्यादा बेहतर मूर्ति बनाना जानता हूँ, मगर इसके बावजूद भैरव सिंह ने मूर्ति बनाने के लिए तुझे चुना।”

कलुआ, “अब यहाँ क्या करने आए हो?”

बिलुआ, “जब मैं इस राज्य को छोड़कर जा रहा था, तब मैंने तुम्हें इस मूर्ति को ले जाते हुए देखा।

इतनी सुंदर मूर्ति को तुम नहीं बना सकते। बताओ, ये मूर्ति किसकी चुराकर लाए हो तुम?”

कलुआ “चोर को चोर ही नजर आता है। लेकिन मैं तुम्हारी तरह चोर नहीं हूँ। सीधी तरह से यहाँ से दफा हो जाओ।”

बिलुआ, “दफा तो मैं हो जाऊँगा कलुआ, लेकिन इस मूर्ति को ले जाकर।”

कलुआ, “ये मूर्ति मेरी नहीं है बिलुआ, इसलिए मैं इसे तुम्हें नहीं ले जाने दे सकता।”

बिलुआ “मैं जानता हूँ, ये मूर्ति तुम्हारी नहीं है। सीधी तरह से ये मूर्ति मुझे दे दो कलुआ, नहीं तो मैं सैनिकों को ये बताऊँगा कि तुमने लालच में आकर राजा के साथ विश्वासघात किया है।”

इतना कहकर बिलुआ मूर्ति की तरफ जैसे ही गया, अचानक से उस मूर्ति की आँखों से रंग-बिरंगी किरणें निकलीं और देखते ही देखते बिलुआ के शरीर में आग लग गई और वो वहीं पर मर गया। यह देखकर कलुआ के हाथ-पैर फूल गए।

तभी कलुआ का दरवाजा कोई पीटने लगा। कलुआ ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने राजा के सैनिक खड़े थे।

सैनिक, “क्या तुमने मूर्ति बना दी, कलुआ? कल समारोह प्रारंभ होने वाला है। तुम्हें इसी समय वो मूर्ति हमारे साथ राजमहल लेकर चलना है।”

कलुआ, “मैं क्षमा चाहता हूँ। राजा के आदेश पर मैंने एक सुंदर युवती की मूर्ति बनाकर तैयार की थी, लेकिन बिलुआ उसे बेचकर भाग गया।”

सैनिक, “झूठ बोलते हो तुम। मैं तुम्हारी दुकान पर गया, तुम्हारे दोस्त बिलुआ ने बताया कि तुमने उस सुंदर मूर्ति को लालच में आकर किसी दूसरे राज्य में बेच दिया।

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तुम्हें इसका दंड मिलेगा, और तुमने अपने दोस्त बिलवा को भी मार डाला?”

कलुआ, “बिलुआ झूठ बोल रहा था और मैंने बिलवा को नहीं मारा।”

सैनिक, “लेकिन सच तो तुम भी नहीं बोल रहे, कलुआ। मूर्ति तो मेरे सामने खड़ी है।”

कलुआ, ” मैं इस मूर्ति को आप लोगों को नहीं ले जाने दूँगा। ये मूर्ति मेरी बनाई हुई नहीं है।”

सैनिक, “किसी की भी बनाई हुई हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? फिलहाल तो ये राजमहल की शोभा बनेगी।

अगर ये मूर्ति तुमने नहीं बनाई कलुआ, तो मेरा दावा है कि इतनी सुंदर मूर्ति तुम भी नहीं बना सकते थे।”

कलुआ, “मैं इस मूर्ति को आपको नहीं ले जाने दूंगा।”

सैनिक, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, कलुआ? कल समारोह शुरू होने वाला है। राजा को अपमानित करवाओगे क्या?”

इतना बोलकर उसने मूर्ति को उठाने का आदेश दिया। मगर कलुआ ज़िद पर अड़ गया।

सैनिक, “गिरफ्तार कर लो इस कलुआ को। इसने दो अपराध किए हैं।

एक तो भैरव सिंह के लिए बनाई हुई मूर्ति लालच में आकर बेच दी, और दूसरा अपराध इसने अपने ही दोस्त को जान से मारकर किया है।”

सैनिकों ने कलुआ को भी गिरफ्तार कर लिया। वह कलुआ और उस मूर्ति को राजमहल के अंदर लेकर चले गए। मूर्ति को देखकर राजा का मुँह हैरत से फटा का फटा रह गया।

राजा, “तुमने कलुआ को गिरफ्तार करके क्यों रखा हुआ है? इसने तो बहुत सुंदर मूर्ति बनाई है।”

सैनिक, “इसका दावा है कि ये मूर्ति इसने नहीं बनाई और ये इस मूर्ति को देने में आनाकानी कर रहा था। और तो और इसने मित्र को भी जान से मार दिया।”

कलुआ, “मैंने अपने दोस्त की जान नहीं ली।”

राजा के कहने पर सैनिक ने उसके हाथ से रस्सियाँ खोल दी और उसे आज़ाद कर दिया।

राजा, “तुम इस मूर्ति को देने में आनाकानी क्यों कर रहे थे, कलुआ? क्या तुम्हें अपने राज्य पर विश्वास नहीं है?

क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं तुम्हें इसकी कीमत नहीं दूंगा? मैं तुम्हें इस मूर्ति के बदले इतना सोना दूंगा कि तुम्हारी सात पुश्तें बैठकर खाएंगी।”

कलुआ, “मुझे कभी धन का लालच नहीं रहा, महाराज। लेकिन ये मूर्ति मेरी नहीं, किसी की अमानत है। और मैंने उसे वचन दिया है कि इस मूर्ति की मैं रक्षा करूँगा।”

राजा, “रक्षा इंसानों की की जाती है, मूर्तियों की नहीं। और तुम्हें अपने दोस्त की हत्या करने के जुर्म में दंड मिलेगा।”

तभी राजा का एक घायल सैनिक दौड़ता हुआ राजा के पास आकर बोला,

सैनिक, “महाराज! पड़ोसी राज्य के राजा चंद्रसिंह ने आक्रमण कर दिया है और सारे राज्य पर कब्जा भी कर लिया है। कुछ ही क्षणों में वो आपके पास पहुँचता होगा।”

इतना कहकर वह सैनिक वहीं पर बेहोश हो गया। तभी वहाँ पर राजा चंद्रसिंह अपने सैनिकों के साथ आकर बोले,

राजा चंद्रसिंह, “अपने आप को मेरे हवाले कर दो, भैरव सिंह। तुम्हारी सेना हार चुकी है।”

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भैरव सिंह: “यह गलत है चंद्र सिंह, तुमने पीठ पीछे और धोखे से वार किया है। इसे युद्ध नहीं कहते, बल्कि धोखा कहते हैं।”

चंद्रसिंह, “जो भी हो, लेकिन जीत मेरी हुई है। अब से चुनागढ़ राज्य मेरा हुआ।”

तभी राजा चंद्रसिंह की नजर उस मूर्ति पर पड़ी।

चंद्रसिंह, “इस मूर्ति की तलाश में तो मैं पता नहीं कब से भटक रहा था? तुम्हारे पास ये मूर्ति कहाँ से आई?”

भैरव सिंह, “ये मूर्ति मेरे ही राज्य के कुशल कारीगर ने बनाई है। इस तरह के कुशल कारीगर तुम्हें सिर्फ मेरे ही राज्य में मिलेंगे।”

चंद्रसिंह, “भैरव सिंह, तुम जिसे मूर्ति समझ रहे हो ना, वो दरअसल मूर्ति नहीं, बल्कि कुछ और ही है।”

इतना कहकर राजा चंद्रसिंह ने अपनी जेब से एक सफेद पाउडर मूर्ति के ऊपर फेंक दिया।

अचानक मूर्ति के ऊपर रंग-बिरंगी किरणें कूटने लगीं और मूर्ति एक बेहद सुंदर युवती, मतलब एक इंसान में परिवर्तित हो गई और क्रोधित होकर राजा चंद्र शसिंह से बोली,

युवती, “ये तुमने यह अच्छा नहीं किया, राजा चंद्रसिंह। जब तुम मेरे राज्य को जीत नहीं पाए, तब तुमने कपटी साधू की तंत्र क्रिया से मुझे एक मूर्ति में परिवर्तित कर दिया।”

भैरव सिंह: “कौन हो तुम?”

युवती, “मैं रायगढ़ रियासत राज्य की राजकुमारी विभा हूँ।”

चंद्रसिंह, “हां और अब मैं इस राजकुमारी से विवाह करके सुंदर नगर पर भी कब्जा कर लूँगा।”

तभी कलुआ ने अचानक राजा की तलवार निकालकर राजा चंद्रसिंह पर हमला बोल दिया। कलुआ के एक ही वार से राजा चंद्रसिंह ढेर हो गया।

भैरव सिंह, “तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद, कलुआ! अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो मेरे हाथ से मेरा राज्य छिन जाता और राजकुमारी विभा को यह जबरदस्ती अपनी पत्नी बना लेता।”

विभा, “तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद! इस चंद्रसिंह ने मुझे कपटी साधू द्वारा मूर्ति में परिवर्तित कर दिया था, लेकिन मैं मूर्ति बनने के बाद भी सब कुछ देख और सुन सकती थी।

तुम्हें जंगल में जो घायल दासी मिली थी, वो मेरी दासी थी जो मुझे राजा चंद्र सिंह से बचाती हुई फिर रही थी।

मगर राजा चंद्रसिंह के सैनिकों ने उस पर हमला कर दिया और इत्तफाक से वहाँ तुम मिले। सच तो यह है कलुआ, कि मुझे भी तुमसे पहली नजर में ही प्रेम हो गया है।

जिस तरह से तुमने चंद्रसिंह पर वार किया है, तुम में कुशल राजा बनने के भी लक्षण हैं। तुम्हारा दोस्त उस समय तुम्हें मारने की नीयत से आया था, इसीलिए मैंने बिलुआ की जान ली।”

अगले दिन भैरव सिंह ने धूमधाम से कलुआ और राजकुमारी विभा का विवाह सम्पन्न कर दिया। आज कलुआ राजकुमारी विभा के साथ मिलकर रायगढ़ रियासत पर शासन कर रहा है।


दोस्तो ये Jadui Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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