हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” काला जादू ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
10 साल का ध्रुव अपनी बड़ी बहन शाना के साथ छत पर सो रहा था।
रात के तकरीबन 1 बज रहे थे कि अचानक ही ध्रुव की आँख खुली।
उसे ऐसा लगा जैसे उसकी आँखों के सामने काला साया उड़ते हुए नीचे गया है।
ध्रुव ने जब नीचे झांककर देखा तो उसे एक बूढ़ी औरत दिखी, जो कोने में बैठी उसे ही अपने पास बुला रही थी।
ध्रुव भी बेसुध होकर उसकी तरफ बढ़े जा रहा था। उसे इस वक्त बिल्कुल भी होश नहीं था कि वो आधा छत से लटक चुका है
और अगर एक इंच भी आगे बढ़ा तो छत से गिर जाएगा। पर ध्रुव का सारा ध्यान तो इस वक्त उस बूढ़ी औरत पर ही था।
वो जैसे ही आगे हुआ कि तभी उसकी बड़ी बहन सारा ने ध्रुव को पैर से पकड़कर उसे गिरने से बचा लिया।
सारा, “ध्रुव, ये क्या कर रहे हो तुम? तुम्हारी नींद में चलने की बिमारी कब ठीक होगी राम जाने?”
सारा ने ध्रुव को बचा तो लिया था पर वो ठंड के मारे कांपने लगा था। उसे बहुत तेज ठंड लग रही थी।
सारा ने जब ध्रुव का माथा छुआ, तो उसे बहुत तेज बुखार था। सारा तुरंत ही ध्रुव को अपनी गोद में उठा नीचे कमरे में ले आई और घर में रखी हल्की फुल्की बुखार की दवा दे दी।
उस रात तो ध्रुव चैन से सो गया पर सुबह होते ही ध्रुव का बदन बुखार से तपने लगा था।
अगले दिन भी सारा ने ध्रुव को बुखार की दवाई देकर उसे सुला दिया। पर बुखार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
बुखार उतरने के इंतजार में अब शाम हो गई थी। जब सारा की बात समझ नहीं आई, तो वो ध्रुव को सीधा डॉक्टर के पास ले गई।
डॉक्टर, “इतना घबराने की बात नहीं है, मौसमी बुखार है हमारे पहलवान को।
मैं कुछ दवाई लिख देता हूँ जिससे जल्दी आराम मिल जाएगा… डोन्ट वर्री।”
डॉक्टर की बात सुन सारा का मन कुछ पल के लिए संभल गया था।
वो दवाइयाँ लेकर वापस घर आ गयी थी। घर आकर उसने सोचा भी कि क्यों ना माँ पापा को फ़ोन करके सब कुछ बता दे?
पर एक हफ्ते के लिए घूमने गए उनके माँ पापा को वो इतनी सी बात के लिए परेशान नहीं करना चाहती थी।
आज पूरे 2 दिन हो गए थे लेकिन ध्रुव का बुखार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
हालात इतने खराब हो चुके थे कि ध्रुव अब नींद में ही कुछ ना कुछ बड़बड़ाता रहता था।
कभी चीख था, तो कभी ज़ोर ज़ोर से रोने लगता। रात के करीब 1 बज रहे थे।
ध्रुव का बुखार पूरी तरह से उतर चुका था। उसने जब आँख खोली, तो सारा उसके पैर के पास ही सोयी पड़ी थी।
वो बिना अपनी दीदी को उठाये बिस्तर से नीचे उतरा ही था कि अचानक ही किसी ने ध्रुव का पैर पकड़ उसे पलंग से नीचे घसीट लिया।
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पलंग के नीचे जाते ही ध्रुव भी चीखने लगा था। वो दर्द से कराह रहा था, मगर उसकी चीख सारा तक पहुँच नहीं रही थी।
मानो जैसे वो किसी और ही दुनिया में चला गया हो। अगली सुबह जब सारा की नींद खुली, तो वो ध्रुप को बिस्तर पर ना पाकर बैचेन हो गयी।
उसने तुरंत ही पूरा घर छान मारा, पर उसे ध्रुव का कहीं अता पता नहीं चला।
उसका भी मन उदास हो गया, आँखें नाम हो गयी कि तभी गौर से सुनने पर उसे किसी के ठंड में ठिठुरने की आवाज आई।
सारा ने जब सिसकियों का पीछा किया, तो उसे पलंग के नीचे ध्रुव ठंड से ठिठुरता दिखा।
सारा तुरंत ही ध्रुव को अपनी गोद में उठा उसे गर्म कपड़ों से ढक देती है।
सारा, “तुम नीचे क्या कर रहे हो, ध्रुव? तुम्हारी तबियत कितनी खराब है?
फिर भी तुम मेरी एक नहीं सुनते। अगर तुम को कुछ हो जाता, तो मैं माँ पापा को क्या जवाब देती, बोलो?”
सारा की बात सुन ध्रुव कुछ न कुछ बड़बड़ाने लगा था, पर सारा ने उसे नज़र अन्दाज़ कर उसकी बंद आँखों को खोला, तो उसके होश उड़ गए।
ध्रुव की आँखों में किसी बूढ़ी औरत का साया नजर आ रहा था जिसकी उंगलियां ध्रुव की आँखों से बाहर आ रही थीं।
पर इससे पहले कि सारा पलंग से उतर किसी को मदद के लिए बुला पाती, पलंग हवा में उड़ने लगा और ध्रुव का शरीर बिस्तर पर ही अकड़ने लगा था।
मानो जैसे कोई जानबूझकर एक एक कर ध्रुव के जिस्म की हड्डियां तोड़ रहा है।
सारा भी हड्डियों के टूटने के आवाज़ साफ़ साफ़ सुन रही थी। पर इतने दर्द में होने के बाद भी ध्रुव ज़ोर ज़ोर से हंस रहा था।
ध्रुव की डरावनी हँसी देखकर सारा का खून सूखने लगा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ध्रुव के साथ ये सब क्या हो रहा है?
तभी ध्रुव बिस्तर से उठ हवा में अपनी दीदी सारा के सामने आ गया था।
ध्रुव, “बुला उसको वरना मैं तेरे भाई को अभी के अभी खत्म कर दूंगी।”
ध्रुव ने चीखते हुए सारा से कहा था। अपने भाई का ये रूप देख सारा रोने लगी थी और उसने भी सिसकते हुए कहा।
सारा, “ध्रुव, ये तुमको क्या हो गया है? होश में आओ, ध्रुव।”
सारा डरते हुए ध्रुव को छूने जा रही थी, तभी ध्रुव ने अपने हाथ से एक मांस का लोथड़ा नोंच सारा की तरफ फेंकते हुए कहा,
ध्रुव, “बुलाती है या नहीं? वरना मैं इसी तरह तेरे भाई के टुकड़े करती जाऊंगी।”
ध्रुव का ये हाल देख सारा ने कहा,
सारा, “कौन हो तुम और किसको बुलाना चाहती हो?”
ध्रुव, “बुला अपनी माँ को जिसने मेरा ये हाल किया है। मुझे उससे बात करनी है
ध्रुव के अंदर छिपे उस काले साये ने सारा से अभी ये कहा ही था कि इतने में सारा और ध्रुव के माँ पापा आ गए।
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मां, “अब तू क्या लेने आई है? सब कुछ तो तुझे दे दिया था।”
ध्रुव की माँ ने आते ही उस काले साये से कहा।
माँ के इतना कहते ही ध्रुव और पलंग पर बैठी सारा सभी झटके में नीचे आ गए। सारा तो रोती हुई अपने माँ के गले लग गई।
लेकिन ध्रुव जमीन पर गिरा कांप रहा था।
सारा, “माँ, ये सब क्या हो रहा है? ये ध्रुव को क्या हो गया था? कुछ तो बोलो माँ, क्या वो ठीक हो जाएगा?”
माँ के गले लग सारा ने सवालों की लड़ी लगा दी। पर सारा की माँ अभी भी खामोश ही थी। तब सारा के पिता ने ध्रुव को संभालते हुए कहा,
पापा, “शायद सही वक्त आ चुका है, अब सबको सच बता दो।”
सारा, “कैसा सच माँ?”
अपने पापा को कहते सुन सारा का मन उथल पुथल हो गया था। पर उसकी माँ की खामोशी अभी भी टूटी नहीं थी।
सारा के बहुत कहने पर भी उसकी माँ ने कुछ नहीं कहा और खुद को कमरे में बंद कर दिया।
अगले दिन डॉक्टर ने घर पर आकर ध्रुव का इलाज किया। तब पता चला कि डॉक्टर ने ही ध्रुव के माँ पापा को ध्रुव के बारे में बताया।
ध्रुव की हालत अब पहले से ठीक हो गई थी। सब उसी की देख रेख में लगे थे और इसी चक्कर में कब रात हो गई, किसी को पता नहीं चला?
रात होते ही सबको डर सताने लगा था। पर इस बार सारा अकेली नहीं थी।
उसके माँ पापा उसके साथ थे। रात के करीब 1 बज रहे थे और धीरे धीरे फिर से ध्रुव को बुखार आने लगा था।
ठंड के मारे उसके शरीर ने कांपना शुरू कर दिया था, तभी सारा ने ध्रुव की पलकों को हटाया
और उसे फिर से उस बूढ़ी औरत का साया दिखा, जो ध्रुव की आँखों से बाहर आना चाहती थी।
पर इस बार सारा ने ध्रुव की आँखों से आँखें नहीं हटाईं, बल्कि उन्हें बड़े गौर से देखने लगी।
फिर अगले ही पल सारा के चारों ओर एक काला सा साया मंडराने लगा।
और देखते ही देखते सारा को भी ठंड लगने लगी। पर कुमुद समझ गई कि उसकी बेटी को क्या हुआ है?
कुमुद, “छोड़ दे डायन, मेरी बेटी को छोड़ दे वरना…।”
कुमुद की बात सुनकर उसके दोनों बच्चे एक साथ हवा में उड़ने लगे थे। फिर कुमुद को दोनों हाथों से पकड़ उसका सिर दीवार में मारने लगे।
कुमुद ने बचने की बहुत कोशिश करी लेकिन वो अपने बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती थी।
दीवार पर सिर लगने की वजह से उसके सिर से लगातार खून बह रहा था।
वो अब बेहोश होने लगी थी। तभी कुमुद के पति ने कुमुद को कसकर पकड़ लिया
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और उसे बच्चों से छुड़ा अपनी गोद में छिपाते हुए कहा, “बस करो माँ, कुमुद की कोई गलती नहीं है।
तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ, वो मैंने किया कुमुद ने नहीं। फिर उसको क्यों तकलीफ दे रही हो?”
औरत, “क्या..? मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था, वो तूने किया… तूने? पर तू तो मेरा खून था है ना?
इसकी तरह पराये घर से नहीं आया था। तुझे मैंने अपनी कोख से जन्मा था।”
ध्रुव और सारा के शरीर को अपने वश में कर रखी उस ममी औरत के साये ने प्रताप से कहा था।
ध्रुव और सारा के मुँह एक साथ चल रहे थे, मानो जैसे वो दोनों उस बूढ़ी डायन की जुबान बोल रहे हों।
प्रताप, “नहीं करता तो तुम मेरा परिवार ही नहीं बसने देती। तुमने तो कसम खा ली थी मेरी कुमुद को मुझसे छीनने की, मेरे बच्चों को कोख में ही मारने की।
इसीलिए माँ मैंने वो किया, जो सही लगा। प्रताप की बात सुन उस बूढ़ी औरत के साये ने ध्रुव और सारा के शरीर को काटना शुरू कर दिया था।
इस बार उन दोनों का शरीर एक साथ अकड़ने लगा और दोनों की नाक और आँख से खून गिर रहा था।
मानो जैसे कोई दुख में खून के आंसू रो रहा हो। ध्रुव और सारा दर्द में चीख रहे थे जिसे सुन कुमुद और प्रताप की आँखें भी नम हो गईं।
तभी प्रताप ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी माँ के साये से भीख मांगी।
चित्रा सारा के ऊपर ही मंडरा रही थी।
प्रताप, “माँ, अब तुम दूसरी दुनिया में जा चुकी हो। क्यों मेरी हस्ती खेलती दुनिया बर्बाद करने वापस आयी हो?”
औरत, “क्योंकि तुने ही मुझे उस दुनिया में भेजा जहाँ मैं अकेली हूँ…एक दम अकेली।
इसलिए मैं तेरे बच्चों को अपने साथ लिए जा रही हूँ। अगर रोक सकता है, तो रोक ले।”
इतना कहकर उस बूढी औरत के साये ने ध्रुव और सारा को गर्दन से पकड़ उसकी हड्डी तोड़ने लगी।
दोनों बच्चों को इतना दर्द हो रहा था कि उनकी आँख और नाक से खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
कि तभी कुमुद एक तस्वीर लिए उस साये के सामने आ गई जिसे देख ध्रुव और सारा एक दम से नीचे आ गिरे और दर्द के मारे वो साया तड़पने और चीखने लगा था।
साया, “हटाओ इस तस्वीर को मेरे सामने से, मैं कहती हूँ हटाओ।”
वो जिस दिशा में जाता, कुमुद तस्वीर का मुँह उस दिशा में करके साये को तड़पाती रहती।
उस साये का दर्द इस हद तक बढ़ चुका था कि हवा में ही वो कुमुद और प्रताप के जिस्म से ही मांस का लोथड़ा नोचने लगी थी।
पर प्रताप भी कुमुद के साथ डटकर खड़ा था। बहुत जद्दोजहद के बाद वो साया अपने आप ही शांत हो गया
और बूढ़ी औरत का रूप ले के सबके सामने खड़ा हो गया था।
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साया, “मैंने तो हमेशा शिद्दत से प्यार किया था पर तू मेरा खून होकर मेरे साथ ऐसा करेगा, ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।
आखिर क्यों किया था तूने मेरे साथ ऐसा? क्यों अपनी माँ को इतनी बड़ी सजा दी… आखिर क्यों?”
अपनी माँ की दर्द भरी बात सुनकर प्रताप बोला,
प्रताप, “माँ, मैं जानता हूँ तुमने जो किया है वो भगवान भी नहीं कर सकता।
लेकिन पापा के अत्याचार से बचने के लिए तुमने काले जादू का सहारा लिया। जिसमें तुम अंधी होती जा रही थी।
माँ, मुझे याद है, तुम रात को 12 बजे शमशान घाट कच्चा मांस लेकर क्यों जाती थी?
ताकि तुम एक डायन बन सको और काले जादू की मदद से पिताजी को हमेशा के लिए अपने वश में कर सको जिससे रोज़ रोज़ की लड़ाई के झगड़े बंद हो जाए
और हम खुशहाल परिवार की तरह रह सके और ऐसा हो भी गया।
लेकिन माँ तुम काले जादू के पीछे इतनी पागल हो गयी थी कि तुम्हे लोगों के ऊपर काला जादू कर उन्हें वश में करना अच्छा लगने लगा।
इस कारण ही तुमने पहले गांव के जानवरों पर काला जादू कर उनकी बलि चढ़ाई और उनका कच्चा मांस भी खाया।
फिर धीरे धीरे गांव के बच्चे गायब होने लगे। तुमने बड़ी चालाकी से गांव में अफ़वाह फैला दी कि ये काम डाकुओं का या किसी बाहर के आदमी का है।
लेकिन मैं सब जानता था, माँ। मैं जानता था की उन बच्चों की बलि आपने दी है, आपने माँ।
इसीलिए मैंने गांव वालों को सब कुछ सच सच बता दिया और उन्होंने आपके साथ वही किया, जो आपके साथ होना चाहिए था।
हाँ माँ, मैंने ही कुमुद को सब सच बता के गांव के लोगों तक पहुंचाने को बोला था जिन्होंने गुस्से में आकर आपको हमारे पुराने घर के साथ जिंदा जला दिया।”
एक बार फिर अपनी माँ को देख प्रताप की आँखें नम थी पर कुमुद अपने बच्चों की जान दोबारा खतरे में नहीं डालना चाहती थी।
इसीलिए उसने उस तस्वीर को उस साये के ऊपर ही फेंक दिया। जेसल में प्रताप के पिता की तस्वीर थी, जिसका डर आज भी उसकी माँ के दिल में बसता था।
भले ही वो एक साया ही क्यों ना बन गई, साये पर तस्वीर गिरते ही वो साया हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गया और प्रताप का परिवार हमेशा हमेशा के लिए आज़ाद।
शायद सच कहा है किसी ने… घरेलू हिंसा के दाग शरीर से तो मिट सकते हैं, लेकिन आत्मा से कभी नहीं।
दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!