हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” मूर्ख मछुआरा ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
नगर खजुरा गांव में धीमा मछुआरा और उसकी पत्नी रमा अपने बेटे बट्टू को लेकर परेशान रहते थे।
बट्टू बहुत ही भोला और बुद्धू लड़का था। गांव में सभी उसका मजाक उड़ाते थे।
रमा, “बट्टू, ये ले मछली और चावल अपने पिताजी को दे आओ। और हाँ, गांव वालों से ज्यादा बात नहीं करना।”
बट्टू, “ठीक है माँ। मैं किसी से बात नहीं करूँगा, सीधे पिताजी को खाना देकर आऊंगा।”
गांव के रास्ते में पड़ोसी ने बट्टू को रोक लिया।
पड़ोसी, “क्यों बट्टू, कहाँ जा रहे हो?”
बट्टू, “पिताजी को खाना देने जा रहा हूँ। माँ ने मछली और चावल दिए हैं।”
पड़ोसी, “भाई देखो, तुम मेरे पड़ोसी हो। तुमसे क्या छुपाना? कल रात मेरे सपने में एक जलपरी आई थी।
वह बोली कि जो कोई भी कल मछली खाएगा, वह 1 मिनट के अंदर मर जाएगा।”
बट्टू, “हे भगवान! माँ को आज ही मछली बनानी थी क्या? अब क्या होगा?”
पड़ोसी, “अरे! पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। ये ले मेरा खाना, ये पिताजी को दे देना। वैसे भी मेरा आज खाने का मन नहीं कर रहा।”
बट्टू, “लेकिन ये खाना… इसका क्या करूँ?”
पड़ोसी, “वो मुझे दे दो। मैं घर जा रहा हूँ। खेत में गड्ढा खोदकर इसे वहीं डाल दूंगा, ताकि कोई जानवर या पक्षी इसे न खा ले।”
बट्टू डग्गु की सूखी रोटी और सब्जी लेकर अपने पिताजी को दे आता है।
घर आने पर माँ को खाना खाते देख ज़ोर से चिल्लाता है।
बट्टू, “माँ, मछली मत खाओ, मर जाओगी।”
रमा, “ये किसने कह दिया कि मछली खाने से मैं मर जाऊंगी?”
बट्टू, “डग्गु बता रहा था कि एक जलपरी उसके सपने में आई थी और बोली थी कि कल जो मछली खाएगा, वो 1 मिनट में मर जाएगा।”
रमा, “हे भगवान! न जाने कब अकाल आएगी इसे? मैं तो पिछले आधे घंटे से खाना खा रही हूँ, मुझे तो कुछ नहीं हुआ।”
दूसरे दिन बट्टू अपने पिताजी भीमा के साथ मछली पकड़ने नदी पर गया हुआ था।
भीमा, “बट्टू, मैंने जाल फेंक दी है। तुम इसे अच्छे से पकड़े रहना। मैं थोड़ा हल्का होकर आता हूँ। अगर मछली फंसे, तो उसे निकालकर बर्तन में ढककर रखना।”
बट्टू, “ठीक है पिताजी, आप निश्चिंत होकर जाइए।”
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उधर डग्गु भी दूसरी नाव पर मछली मार रहा था। बट्टू को अकेला देख बोलता है।
डग्गु, “अरे बट्टू! आज अकेले मछली मार रहे हो, क्या बात है?”
बट्टू, “वो पिताजी थोड़ा खेत में गए हैं। बोलकर गए हैं कि जाल को अच्छे से पकड़कर रखना।”
डग्गु, “सही बोलकर गए हैं। लेकिन उन्होंने पकड़ रखने को बोला था, न? फिर जाल को नाव में क्यों बाँध रखी है?”
बट्टू, “वह तो पहले से बाँधा हुआ है।”
डग्गु, “कोई बात नहीं। लगता है, भूल गए होंगे।”
बट्टू जाल को नाव से खोलकर उसे जोर से पकड़े रहता है। तभी एक बड़ी मछली जाल में फंस जाती है।
डग्गु, “बट्टू, लगता है तुम्हारे जाल में बड़ी मछली फंसी है।”
बट्टू, “हाँ, पिताजी बहुत खुश होंगे।”
डग्गु, “हाँ, खुशी की बात है। तभी तो मैंने ताली बजाई तुम्हारे लिए। अरे! लगता है मेरी जाल में भी बड़ी मछली फंसी है।”
बट्टू, “अरे वाह! आज तो बड़े अच्छे दिन हैं।”
डग्गु, “लेकिन मुझे मछली मिलने पर तुम्हें खुशी नहीं हुई लगता है। तुमने ताली नहीं बजाई, जबकि तुम्हें मछली मिलने पर मैंने ताली बजाई थी।”
बट्टू, “अरे! ऐसी बात नहीं है। ये लो, मैंने भी ताली बजा दी।”
जैसे ही बट्टू ताली बजाता है, जाल उसके हाथों से छूटकर मछली के साथ नदी में बह जाता है। डग्गु जोर-जोर से हंसने लगता है।
उधर बट्टू के पिताजी भीमा वहाँ पहुँचकर देखते हैं कि जाल नदी में मछली सहित बहा जा रहा है और बट्टू ताली बजा रहा है।
भीमा, “मूर्ख कहीं का! मछली भी गई और जाल भी। जाओ, अब घर जाओ।”
कुछ दिनों बाद गांव में महायज्ञ हो रहा था। गांव के सभी लोगों को कुछ न कुछ जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
सरपंच, “राजा के आगमन पर फूल की वर्षा बट्टू करेगा। तुम्हारा काम बहुत ही महत्वपूर्ण है।
चाहे कुछ भी हो जाए बट्टू, तुम पेड़ पर बने मचान से इधर-उधर नहीं जाओगे और ना ही फूल किसी और को दोगे।”
बट्टू, “सरपंच चाचा, चाहे जो कुछ भी हो जाए, मैं अपने काम पर ही ध्यान दूंगा।”
तय समय पर राजा का आगमन होता है। लेकिन रात में खूब बारिश होने से गांव का मुख्य रास्ता दलदली हो जाता है।
जिस वजह से राजा का कारवां दूसरे रास्ते से गुज़रने का निर्णय लेता है।
डग्गु, “बट्टू, मचान से उतर जाओ। राजा दूसरे रास्ते से आएंगे क्योंकि ये मुख्य रास्ता आगे दलदली है।”
बट्टू, “डग्गु, इस बार मैं मूर्ख नहीं बनने वाला। चाहे जो कुछ भी हो जाए, मैं ये मचान छोड़कर नहीं जाने वाला।”
डग्गु, “देखो भाई, माना कि हम तुम्हें बार-बार बुद्धू बनाते रहे हैं। लेकिन इस बार सच बोल रहे हैं।
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राजा के मामले में झूठ बोलकर मृत्युदंड लेना है, क्या? अगर मचान से नहीं उतरोगे तो वो फूलों की टोकरी हमें दे दो।”
बट्टू, “हा हा हा… हमें मूर्ख समझा है क्या? कल ही सरपंच जी सभी के सामने बोल चुके हैं कि फूलों की टोकरी किसी को मत देना और ना ही तुम मचान से उतरना।”
सुंदर, “अरे डग्गु! तुम लोग यहाँ पर क्या कर रहे हो? राजा का कारवां लगभग पहुँच चुका है। जल्दी से जाकर पुष्प वर्षा करो।”
डग्गु, “पिताजी, ये बट्टू ना ही मचान से उतर रहा है और ना ही हमें फूलों की टोकरी दे रहा है ताकि राजा पर पुष्प वर्षा की जा सके।”
सुंदर एवं गांव वालों के लाख समझाने के बावजूद, बट्टू मचान से नहीं उतरता और राजा बिना स्वागत के गांव में प्रवेश कर जाते हैं।
दूसरे दिन पंचायत में…
सरपंच, “कल जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था। एक लड़के के कारण गांव की सारी इज्जत मिट्टी में मिल गई।”
डग्गु, “जी सरपंच चाचा, बार-बार यही रट लगाए जा रहा था कि सरपंच चाचा ने मुझे यहाँ से हिलने के लिए मना किया है।”
सरपंच, “गांव के सारे लोगों की सुनने के बाद पंचों ने यह निर्णय लिया है कि बट्टू को इस गांव से निकाल दिया जाए, ताकि उसकी मूर्खता के कारण आगे और भी जगहंसाई न हो।”
बट्टू, “सरपंच चाचा, मैं आज तक इस गांव से बाहर नहीं गया हूँ। मैं बाहर जाकर क्या करूंगा? मुझे माफ कर दीजिए, मुझे गांव में रहने दीजिए।”
बट्टू, उसके पिताजी भीमा और माँ रमा तीनों बहुत गुहार लगाते हैं। लेकिन सरपंच अपना फैसला नहीं बदलता।
बट्टू को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है। बट्टू रोते-रोते कई गाँव पार करता हुआ शाम को एक नदी किनारे पहुँचता है।
पेड़ की छाया में सो जाता है। जब उसकी नींद टूटती है, तो देखता है कि एक बड़ी सी मछली नदी के तट के किनारे आई हुई है और “बट्टू, बट्टू” कहकर उसे पुकार रही है।
बट्टू, “अरे! मछली, तुम बोल सकती हो? आश्चर्य! किन्तु सत्य! लेकिन तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम हुआ?”
मछली, “तुम्हें याद है? एक दिन तुमने जाल में मुझे पकड़ लिया था, लेकिन फिर तुमने जाल सहित मुझे नदी में छोड़ दिया।
मैं वही मछली हूँ। मेरी माँ जलपरी है, और वह मछलियों की रानी है। लेकिन तुम यहाँ कैसे आए?”
बट्टू, “यह एक लंबी कहानी है। मुझे सरपंच ने गाँव से निकाल दिया, क्योंकि मैं बुद्धू हूँ। मेरी मूर्खता के कारण गाँव की जग हँसाई होती है।”
मछली, “कोई बात नहीं। चलो, तुम्हें मैं अपनी माँ से मिलवाती हूँ। शायद उनसे कोई मदद मिल जाए।”
मछली बट्टू को लेकर नदी के अंदर जलमहल में जाती है, जहाँ पर उसकी माँ, जलपरियों की रानी, उसे वर माँगने को कहती है।
बट्टू, “जलपरियों की रानी, अगर आप मुझे सचमुच वर देना चाहती हैं, तो मुझे बुद्धिमान बना दीजिए, ताकि मैं अपनी बुद्धि से अपना परिवार और गाँव का नाम रोशन कर सकूँ।”
जलपरी रानी, “तुम चाहते तो सोना, चाँदी, हीरे-जवाहरात हमसे माँग सकते थे। लेकिन तुम्हारे भोलेपन को देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुई।
आज के बाद कोई तुम्हें बुद्धू नहीं कहेगा। तुम एक ज्ञानी लड़के के रूप में जाने जाओगे। और ये कुछ स्वर्ण आभूषण मेरी तरफ से तुम्हें भेंट दिया जाता है।”
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इधर गाँव में राजा खड़क सिंह का स्वागत ठीक से न कर पाने के लिए गाँव के सरपंच और पुष्प वर्षा के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को राजदरबार में बुलाया जाता है।
सरपंच, “अब मुझे कारावास होना तय है। मेरी मति मारी गई थी, जो पुष्प वर्षा का कार्यभार मूर्ख बट्टू को दिया था। कहाँ हो, भीमा?”
भीमा, “अब क्या हुआ? मेरे बेटे को तो तुम लोगों ने गाँव से बाहर निकाल ही दिया। अब क्या हमें भी निकालोगे?”
सरपंच, “भाई, मैंने तो बट्टू को गाँव से ही निकाला। अगर वह अभी यहाँ रहता, तो उसका कारावास तय था। चलो, राजदरबार में बुलाया गया है।”
राजा, “क्यों सरपंच? तुम्हें बताया गया था या नहीं कि मैं वहाँ आ रहा हूँ?”
सरपंच, “महाराज की जय हो! मुझे बताया गया था, महाराज। लेकिन इस बीमा मछुआरे के बुद्धू बेटे बट्टू ने सारा काम खराब कर दिया।”
राजा, “तो फिर बट्टू कहाँ है?”
भीमा, “मेरे भोले-भाले बेटे को इन्होंने गाँव से बाहर कर दिया, महाराज। वो भी एक छोटी सी मामूली भूल के लिए।”
राजा, “छोटी सी मामूली भूल? राजा के स्वागत में पुष्प वर्षा न करने को मामूली भूल बता रहा है?”
राजा, “मंत्री जी, इसे तुरंत कारावास में डाल दो। और सरपंच, तुम एक सप्ताह के भीतर उस उद्दंड लड़के को मेरे सामने लाओ, नहीं तो तुम्हारा भी कारावास तय है।”
भीमा को कारावास हो जाता है। इधर खूब सारी संपत्ति लेकर दूसरे दिन सुबह सुबह बट्टू अपने गांव पहुंचता है।
बट्टू को अपने घर पर देख उसकी माँ रमा बहुत खुश होती है। तभी वहाँ पर सुंदर अपने बेटे डुग्गु और सरपंच के साथ आ जाता है।
सुंदर, “देख लीजिए सरपंच साहब, कल जिसे गांव का निकाला मिला था, आज वह फिर अपने घर में आ गया है।”
बट्टू, “देखिए चाचा, आप मेरे पड़ोसी हैं, मेरा समर्थन करना चाहिए।”
सुंदर, “मैं मूर्खों का समर्थन नहीं करता।”
सरपंच, “देखो बट्टू, हमारी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है। लेकिन समाज कानून और नियम से चलते हैं।
राजा का अच्छे से स्वागत न कर सकने के कारण आज मुझे राजमहल में बुलाया गया था।”
बट्टू , “क्या?”
सुंदर, “तुम्हारे पिताजी को कारावास हो गया। सरपंच जी को भी एक सप्ताह का समय दिया गया है तुम्हें पेश करने के लिए, नहीं तो सरपंच जी भी कारागार में डाल दिए जाएंगे।”
बट्टू , “मैं राजमहल जाऊंगा। अगर मेरे चलते स्वागत में कमी रह गई थी तो इसकी सजा मैं ही भुगतूंगा।”
बट्टू सरपंच के साथ राजमहल पहुंचता है।
राजा, “बताओ बालक, मेरे स्वागत में पुष्प वर्षा क्यों नहीं की?”
बट्टू, “महाराज की जय हो! महाराज पर पुष्प वर्षा की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी, लेकिन रात में भयंकर बारिश होने के कारण सारे पुष्प गीले हो चुके थे।
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और हम नहीं चाहते थे कि गीले पुष्प से आपका शाही पोशाक खराब हो। अतः मैं पुष्प वर्षा करना उचित नहीं समझा।”
राजा, “हम्म… हम तुम्हारे विचार से बहुत प्रसन्न हुए।”
तभी दरबार में एक ऐसा बहुरूपिया आदमी आता है, जो कई भाषाओं का ज्ञाता होता है।
वो भरी दरबार में बोलता है, “आपके राज्य में कोई ऐसा ज्ञानी नहीं है, जो मुझे बता दे कि हम कहां से आए हैं?”
लगभग सभी भाषाओं पर उसका एकाधिकार था, जिस कारण यह पता करना मुश्किल था कि वो किस स्थान से आया है?
राजा, “अगर तुम इस बहुरुपिये परदेसी का सही जवाब दे दोगे, तो तुम्हारे साथ तुम्हारे पिताजी को भी माफ कर दिया जाएगा।”
बट्टू, “महाराज की जय हो! अगर आप मुझे 1 दिन दे, तो मैं कल दरबार में ही बता दूंगा कि ये महाशय कहां से आए हैं और इनकी मातृभाषा क्या है?”
राजा, “ठीक है, लेकिन ध्यान रहे यह मेरी भी इज्जत का सवाल है।”
राजा, “मंत्री जी, इस परदेसी का रहने का प्रबंध महल में ही किया जाए।”
सरपंच, “कहां मरवा दिया बट्टू तुमने? सही कहा गया है कि मूर्ख के संग रहने से हानि ही होती है। कल तो हम दोनों को फांसी लगना तय है।”
बट्टू, “सरपंच चाचा, अब बस शाही आनंद लीजिए।”
रात में बट्टू उस बहुरूपिये को सोने नहीं देता। रात भर बातों में जगाए रखता है।
करीब 3-4 बजे सुबह, जब वह बहुरूपिया गहरी नींद में सोया था, तब बट्टू खिड़की से एक बाल्टी पानी उस पर फेंक देता है।
गुस्से से वह बड़बड़ाते हुए उठता है और फिर चादर तानकर सो जाता है।
दूसरे दिन दरबार में…
बहुरूपिया, “हाँ महाराज, है कोई आपके राज्य में ऐसा ज्ञानी, जो बता सके कि मैं कहाँ से आया हूँ?”
राजा, “बताओ बालक, कुछ पता चला कि यह कहाँ से आया है?”
बट्टू, “महाराज, ये महाशय सुदूर दक्षिण से आए हैं। इनकी मातृभाषा वहीं की है।”
बहुरूपिया, “एकदम सही महाराज। आश्चर्य… 12 राज्यों में मुझे किसी ने नहीं पहचाना, परन्तु यह बालक मुझे एक दिन में ही पहचान गया।”
राजा, “यह जानने की प्रबल इच्छा तो मुझे भी है कि तुमने यह कैसे पता लगाया?”
बट्टू, “महाराज, कोई भी व्यक्ति अचानक आए संकट में अपनी मातृभाषा का ही इस्तेमाल करता है।
सुबह जब महाशय गहरी नींद में थे, तभी हमने एक बाल्टी पानी उन पर उड़ेल दी और यह अपनी मातृभाषा में गाली देकर सो गए।”
राजा, “वाह! दिल जीत लिया तुमने। आज से तुम मेरे मुख्य सलाहकार नियुक्त किए जाते हो।”
राजा, “मंत्री जी, इनके पिताजी को कारागार से मुक्त किया जाए।”
इस तरह गाँव का मूर्ख बट्टू अपने ज्ञान से गाँव का सबसे बड़ा अधिकारी बन अपने गाँव का नाम रोशन कर देता है। सारे गाँव वाले बट्टू की जयजयकार करने लगते हैं।
दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!