नौकर की दावत | NAUKAR KI DAWAT | Funny Kahani | Comedy Funny Story | Funny Kahaniyan in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” नौकर की दावत ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Funny Stories, Comedy Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


रोंदू आज सुबह से ही काम पर आया तो उसने देखा कि उसकी मालकिन, मतलब गेंदा सेठ की पत्नी रो रही थी।

रोंदू, “क्या हुआ मालकिन? आप रो क्यों रही हैं? सब कुछ ठीक तो है?”

गेंदा सेठ की पत्नी, “अरे! क्या खाक ठीक होगा, रोंदू? जब से मेरा तुम्हारे मालिक से विवाह हुआ है, तब से मेरा जीना हराम हो गया है।”

रोंदू, “मैं कुछ समझा नहीं, मालकिन।”

गेंदा सेठ की पत्नी, “अरे बुद्धू! विवाह के बाद से तो मैं सजना-संवरना ही भूल गई।

पूरा दिन तुम्हारे उस पेटू मालिक के लिए रोटियां बनाने में ही निकल जाता है। लेकिन उसकी भूख है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही।”

रोंदू, “मालकिन, मालिक की भूख से तो सारा गांव परेशान है। और तो और, अब तो गांव वालों ने शादी-ब्याह में भी मुझे पूछना बंद कर दिया है।”

गेंदा सेठ की पत्नी, “तुझे क्यों पूछना बंद कर दिया? तू तो अपने मालिक की तरह पेटुआ नहीं है ना?”

रोंदू, “मालिक का डर उनके दिल में इस कदर बैठ चुका है, मालकिन कि वे इस घर के सदस्य तो क्या, इस घर के नौकर तक को शादी-ब्याह में डर की वजह से नहीं पूछ रहे हैं।”

तभी रोंदू के कानों में गेंदा सेठ की आवाज़ टकराई।

गेंदा सेठ, “अरे रोंदू! क्या ये तू ही है क्या…? ये तेरी ही आवाज़ है?”

रोंदू गेंदा सेठ के कमरे में चला गया।

रोंदू, “हाँ मालिक, ये मेरी ही आवाज़ है। कल रात मैं ही तो यहाँ से गया था, इतनी जल्दी भूल गए?”

गेंदा सेठ, “तू तो जानता है रोंदू कि जब मुझे भूख लगती है, तो मैं अपनी पत्नी की भी आवाज़ नहीं पहचानता।

जा, अपनी मालकिन को बोल दे कि जल्दी से मेरे लिए खाना ले आए।”

तभी गेंदा सेठ की पत्नी वहाँ आ गई।

गेंदा सेठ की पत्नी, “अजी, ये क्या बोल रहे हैं आप? अभी कुछ देर पहले ही तो आपने पेट भर के भोजन किया था।”

गेंदा सेठ, “ये क्या बोल रही हो तुम? मेरा पेट कभी भरा है क्या? और वैसे भी, वो तो मैंने हल्का-फुल्का नाश्ता किया था बस।

उसे किए हुए भी काफी देर हो गई। दोपहर का समय होने वाला है, अब मुझे भूख लग रही है।”

रोंदू, “ये क्या बोल रहे हैं आप मालिक? अभी तो सिर्फ सुबह के 9:00 बजे हैं।”

गेंदा सेठ, “हाँ, सुबह के 9 मेरे लिए दोपहर ही होती है, रोंदू। और नाश्ता भी तो मैंने सुबह 6:00 बजे किया था ना? मुझे सुबह उठते ही भूख लगने लगती है।”

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गेंदा सेठ की पत्नी, “हद कर रहे हैं आप। अभी 20 मिनट पहले मैंने आपको पूरे 30 मोटे-मोटे पराठे खिलाए थे।

और वैसे भी, घर में आटा खत्म हो गया है। जाइए, रोंदू के साथ जाकर पहले राशन लेकर आइए।”

तभी कुछ सोचते हुए गेंदा सेठ की पत्नी बोली।

गेंदा सेठ की पत्नी, “रहने दीजिए, राशन मैं ले आउंगी। पता चला कि आप राशन वाले की आधी दुकान वहीं पर समाप्त कर देंगे।”

इतना कहकर गेंदा सेठ की पत्नी रोंदू के साथ बाहर आ गई और रोंदू से बोली।

गेंदा सेठ की पत्नी, “अब तू ही बता, मैं क्या करूँ? कोई उपाय बता, कोई ऐसी जड़ी-बूटी ला जिससे तेरे मालिक की भूख कम हो जाए।”

रोंदू, “चिंता मत कीजिए, मालकिन। मैं आपकी आँखों में आँसू नहीं देख पा रहा हूँ। मैं जरूर कुछ न कुछ उपाय करता हूँ।”

इतना बोलकर रोंदू वहाँ से चला गया और बैठकर कुछ सोचने लगा।

रोंदू, “कुछ तो करना होगा। मुझसे मालकिन का रोना नहीं देखा जा रहा, लेकिन क्या करूँ?”

तभी रोंदू के दिमाग में एक विचार आया।

रोंदू, “समझ गया। मुझे उस साधु के पास जाना चाहिए, जो गांव के जंगल में रहते हैं।

मैंने सुना है कि वो भूत-प्रेत भगाने के अलावा जड़ी-बूटियां भी बेचते हैं। उनके पास जरूर कुछ न कुछ उपाय होगा।”

रोंदू सीधा उस साधु के पास पहुंचा। रोंदू को देखकर वो साधू तेज आवाज में बोला,

साधु, “बस… आगे कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है। मैं समझ गया कि तू यहाँ क्यों आया है?”

रोंदू, “लेकिन साधु महाराज, मैंने तो अभी कुछ बोला भी नहीं।”

साधु, “मुझसे ज्यादा मुँह चलाने की जरूरत नहीं है, बच्चे। तू मुझे जानता नहीं कि मैं कितना ज्ञानी साधु हूँ?”

रोंदू, “ठीक है साधु महाराज, तो फिर मुझे उपाय बता दीजिए।”

साधु ने एक जड़ी-बूटी का टुकड़ा रोंदू के हाथ में पकड़ा दिया।

साधु, “जा, इस जड़ी-बूटी को श्मशान घाट में जाकर गाड़ दे। तेरी पत्नी घर आ जाएगी और वो तुझे बहुत ज्यादा प्रेम करने लगेगी।”

रोंदू, “दिमाग खराब हो गया है क्या आपका? अरे! अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई।”

साधु, “क्या..? लगता है मुझसे गलती हो गई? मैं किसी और को समझ बैठा। चल, अब तू अपनी जुबान से अपनी समस्या बता दे।”

रोंदू ने एक ही सांस में साधु को सारी समस्या बता दी।

साधु एक दूसरी जड़ी-बूटी रोंदू के हाथ में देते हुए बोले,

साधु, “जा, जाकर ये जड़ी-बूटी अपने मालिक को खिला देना। और याद रखना, इस जड़ी-बूटी को खिलाने के बाद तुझे अपने मालिक की दावत स्वयं अपने घर पर करनी होगी।”

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रोंदू, “तो क्या इस जड़ी-बूटी को खाने के बाद उनकी भूख समाप्त हो जाएगी?”

साधु, “मूर्ख व्यक्ति, तू मुझे जानता नहीं कि मेरे ज्ञान के भंडार में कौन-कौन सी शक्तियां छुपी हुई हैं? रुक…।”

इतना बोलकर साधु ने बहुत सारी जड़ी-बूटियां रोंदू के हाथ में रख दीं।

साधु, “भोजन कराने से पहले ये सारी जड़ी-बूटियां पहले अपने मालिक को खिला देना। उसके बाद देखना, उसे कई महीनों तक भूख नहीं लगेगी।”

रोंदू जड़ी-बूटियों को अपने घर ले गया और अगले ही दिन अपने मालिक गेंदा सेठ से बोला।

रोंदू, “मालिक, जब से मैं आपके यहाँ पर नौकरी कर रहा हूँ, तब से मैंने आपकी एक बार भी दावत नहीं की।”

गेंदा सेठ, “तू कहना क्या चाहता है, रोंदू?”

रोंदू, “मालिक, आज दोपहर का भोजन आप मेरे घर पर खाइएगा, अच्छा?”

रोंदू की बात सुनकर सेठ खुशी से झूम उठा।

गेंदा सेठ, “वाह रोंदू वाह! आज तूने एक नौकर होने का कर्ज अदा कर दिया, वाह!”

इतना बोलकर गेंदा सेठ अपनी पत्नी की ओर देखकर बोला,

गेंदा सेठ, “देखा तुमने? मैं न कहता था कि इससे अच्छा नौकर हमें सारे संसार में मोमबत्ती जलाकर भी नहीं मिलेगा।”

मालकिन, “अरे रोंदू! कहीं तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? क्या तू कंगाल होना चाहता है?”

रोंदू, (अपनी मालकिन को आँख मारते हुए) “चिंता मत कीजिए, मालकिन, मैं सब संभाल लूँगा।”

दोपहर के समय गेंदा सेठ धीरे-धीरे कदमों से चलता हुआ रोंदू के घर पहुँचा। रोंदू ने सारी जड़ी-बूटियां गेंदा सेठ के सामने रख दीं।

गेंदा सेठ, “तूने तो कहा था कि तूने मेरी दावत की है, लेकिन तूने मेरे लिए ये क्या घास-फूस बनाई है?”

रोंदू, “अरे मालिक! ये एक नई डिश है, इसे खाकर आपको आनंद आ जाएगा, हाँ।

भोजन ग्रहण करने से पहले आप ये खा लीजिए, उसके बाद बस भोजन खाइएगा।”

गेंदा सेठ कुछ ही सेकंड में सारी जड़ी-बूटियां खा गया।

गेंदा सेठ, “ये जो कुछ भी था, मुझे नहीं पता, लेकिन था बड़ा स्वादिष्ट।

इसे खाकर तो मुझे और ज्यादा भूख लगने लगी। अब जल्दी से मेरे लिए खाना ले आ जा।”

गेंदा सेठ की बात सुनकर रोंदू को चक्कर आते हुए महसूस हुए।

रोंदू, “क्या..? लेकिन साधु ने तो कुछ और ही कहा था।”

रोंदू दौड़ता हुआ वो सारा भोजन ले आया, जो उसने गेंदा सेठ के लिए बनाया था।

रोंदू, “ये लीजिए मालिक, आपका भोजन।”

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गेंदा सेठ, “अरे वाह! तूने तो मेरी पसंदीदा आलू और पनीर की सब्जी भी बनाई है, देसी घी की पूरियां भी हैं।

अरे अरे! कटहल की सब्जी भी रखी हुई है। आज तो तूने मेरा दिन बना दिया, रे!”

गेंदा सेठ कुछ ही मिनटों में सारी प्लेटें साफ कर गया।

गेंदा सेठ, “रोंदू, इतना सा भोजन तो मेरी दाढ़ में ही हिलक गया, रे! क्या तूने बस इतना सा ही भोजन बनाया था?

क्या तुझे पता नहीं कि अतिथियों का स्वागत कैसे किया जाता है?”

रोंदू, “चिंता मत कीजिए मालिक, मैं आपको भूखा वापस नहीं लौटाऊँगा। मैं अभी आपके लिए कुछ और खाने को लाता हूँ।”

इतना कहकर रोंदू सीधे बाजार गया और वहाँ से बहुत सारा खाना ले आया।

गेंदा सेठ, “अरे वाह रोंदू! ये तो बाजार की सब्जी मालूम पड़ रही है। सालों से मैंने बाजार का खाना नहीं खाया।

आखिरी बार जब बाजार में एक ढाबे पर खाना खाने गया था, तो उसके ढाबे पर खाना ही खत्म हो गया था।”

रोंदू, “खाना खत्म नहीं हुआ था मालिक, आप ढाबे का सारा खाना खा गए थे।

यहाँ तक कि खाना खाने के बाद, खाना बनाने के लिए जो ढाबे के मालिक ने कोयले रखे हुए थे, वो भी चट कर गए थे।”

गेंदा सेठ, “हाँ-हाँ, मुझे याद है… याद है। वो सब छोड़, आज तो मज़ा आ जायेगा।”

गेंदा सेठ होटल से लाया हुआ सारा खाना कुछ ही देर में खा गया।

गेंदा सेठ, “मैं जितना खाना खा रहा हूँ, उससे कुछ भला ही नहीं हो रहा, बल्कि मेरी भूख दोगुनी, तिगुनी, चौगुनी होती जा रही है।”

रोंदू, “अरे मालिक! जहाँ गिनती का अंत हो जाता है, आपकी भूख तो उससे भी बड़ी है।”

तभी गेंदा सेठ क्रोधित होते हुए बोला, “मुझे गुस्सा भी आ रहा है, रोंदू। जल्दी से मेरे लिए कुछ और खाने को लेकर आ, नहीं तो…”

रोंदू, “नहीं तो क्या, मालिक?”

गेंदा सेठ, “नहीं तो मुझे ऐसा लग रहा है, रोंदू कि मैं तुझे ही खा जाऊँ।”

रोंदू, “कहीं उस साधु ने… कहीं उस साधु ने मुझे मूर्ख तो नहीं बना दिया? उसने तो कहा था कि जड़ी-बूटियां खाने के बाद इस पेटूए को महीनों-महीनों भूख नहीं लगेगी।

लेकिन इसका चेहरा देखकर तो ऐसा लग रहा है कि जैसे ये पेटू इंसानों को ही खाने लगेगा।”

रोंदू, “क्या करूँ, क्या करूँ, क्या करूँ? घर में चाय की पत्ती, चीनी और कुछ मसाले रखे हुए हैं, वहीं रख देता हूँ।”

रोंदू दौड़ता हुआ रसोई घर में गया और रसोई से चीनी, आटा, चायपत्ती और सारे मिर्च-मसाले ले आया। गेंदा सेठ उन सबको खा गया।

रोंदू, “अरे बाप रे बाप! ये… ये इंसान है या राक्षस? ये तो चीनी, पत्ती, आटा, मिर्च, मसाले सब ऐसे खा गया जैसे गाजर-मूली। अब क्या करूँ?”

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गेंदा सेठ, “रोंदूं, अरे! कुछ भी भला नहीं हुआ। अपने अतिथियों का स्वागत ऐसे ही करोगे क्या? जाओ, मेरे लिए और भोजन लेकर आओ।”

रोंदू, “मालिक, गलती हो गई मालिक, बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे आपकी दावत करनी ही नहीं चाहिए थी।

मालिक, मैं मालकिन के आँसू देखकर भावनाओं में कुछ ज़्यादा ही बह गया था, मालिक।”

गेंदा सेठ, “अब जब दावत दी ही है, तो फिर मुझे भूखा मत लौटाओ।”

रोंदू, “मालिक, मेरे पास जितने पैसे थे, मैं उनसे बाजार से खाना ले आया। घर में जितना भी सामान था, सब आपके सामने रख दिया। वास्तव में अब घर में कुछ भी नहीं बचा है।”

गेंदा सेठ, “तो जाओ, जाकर घर गिरवी रखकर आओ और उन पैसों से सारा भोजन खरीद लो। मुझे बहुत भूख लगी है।”

रोंदू, “मालिक, आपके भोजन का इंतजाम मैंने किसी और जगह भी कर रखा है। मुझे पता था कि आपका पेट नहीं भरेगा। चलिए, चलिए आप मेरे साथ चलिए।”

रोंदू गेंदा सेठ को सीधे साधु के पास ले आया।

साधु, “बस मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। मैं जानता हूँ कि तेरे सेठ की भूख मर चुकी है

और तू यहाँ पर इसे इसलिए लेकर आया है ताकि मैं इसे वो जड़ी-बूटी दे दूँ, जिससे इसे फिर से भूख लगने लगे।”

रोंदू, “बकवास बंद करो, महाराज। तुम्हारी जड़ी-बूटी से इनकी भूख मिट्टी नहीं, बल्कि और ज्यादा बढ़ गई है। ये इंसानों को भी खाने की बात करने लगे हैं, हां।”

साधू, “क्या..? लगता है, मैंने गलती से और ज्यादा भूख बढ़ाने वाली जड़ी-बूटी तो नहीं दे दी?”

रोंदू, “अरे! तुमने कुछ भी दिया हो, लेकिन मेरे तो बाजे बज गए, भैया। छह महीने का घर का राशन खत्म हो गया है। अब मैं क्या करूँगा, बताओ?”

साधु, “चिंता मत कर, बालक। अब जब तू इस पेटू को मेरे पास ले ही आया है, तो फिर मेरे हाथों का कमाल देख।”

इतना कहकर उस साधु ने एक बोरी से बहुत सारी जड़ी-बूटियाँ निकालकर गेंदा सेठ के सामने रख दीं।

गेंदा सेठ, “ये क्या रोंदू? तुमने तो कहा था कि तुमने यहाँ पर भोजन का इंतजाम कर रखा है, मगर यहाँ तो मुझे घास-फूस के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा।”

रोंदू, “, ये वही घास-फूस है जो आपको बहुत पसंद आई थी। हां, वही है… वही है ये, जो कुछ देर पहले आपने मेरे घर पर खाई थी ना… वहीं वही।”

गेंदा सेठ, “अरे वाह! इसका स्वाद तो बहुत ही अच्छा है।”

इतना कहकर गेंदा सेठ ने सारी जड़ी-बूटियाँ खा लीं।

गेंदा सेठ, “इससे तो मेरा कुछ भी भला नहीं हुआ। मुझे और चाहिए।”

साधु ने दूसरी बोरी खोलकर सारी जड़ी-बूटियाँ गेंदा सेठ के सामने रख दीं। गेंदा सेठ सारी जड़ी बूटियां खाकर बोला।

गेंदा सेठ, “ये एक-एक बोरी करके क्यों खोल रहा है? तेरे बगल में जो सारी बोरियाँ रखी हुई हैं, वो सब खोल। मुझे वो सब खानी हैं।”

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साधु, “अरे! तेरा दिमाग तो ठीक है? वो सारी बोरियाँ मैं पैसों से खरीद कर लाया हूँ, कोई मुफ्त की बोरियां नहीं हैं।”

तभी गेंदा सेठ ने साधु का गला पकड़ लिया।

गेंदा सेठ, “मुझे बहुत तेजी से भूख लग रही है, समझा? जो बोल रहा हूँ, वो कर। नहीं तो मैं तुझे ही खा जाऊँगा।”

साधु, “अरे! मेरा गला छोड़ भाई। मैं सारी बोरियाँ खोलता हूँ। मैं सब तुझे देता हूँ… रुक जा, रुक जा।”

साधु ने सारी जड़ी-बूटियों की बोरियाँ खोलकर गेंदा सेठ के सामने रख दीं। गेंदा सेठ सारी जड़ी-बूटियाँ खा गया।

गेंदा सेठ, “मेरा कुछ भी भला नहीं हुआ, साधु। कुछ और लाओ। ये स्वादिष्ट घास-फूस तो मेरी दूसरी दाढ़ में अटक गई।”

साधु, “अरे! तू इंसान है या कोई राक्षस? नहीं, तू राक्षस भी नहीं हो सकता। राक्षस भी इतना भोजन नहीं करते। तेरी भूख तो मिटने का नाम ही नहीं ले रही।”

गेंदा सेठ, “अरे ओ साधु! बकवास मत कर। सीधी तरह से मुझे भोजन दे। मुझे बहुत तेजी से भूख लग रही है।”

साधु, “अरे! कहाँ से दूँ? सारी जड़ी-बूटियाँ तो तू खा गया। इतनी जड़ी-बूटियाँ मैं सालभर तक बेचकर अपना पेट भरता हूँ।

मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूँ? मैं तो सड़क पर आ गया। मैं कंगाल हो गया।”

रोंदू, “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप, साधु महाराज? आप तो साधु हैं। मैंने सुना था कि आप ये जड़ी-बूटियाँ जंगल से तोड़कर लाते हैं।”

साधु, “अरे! मैं कोई साधु-वाधु नहीं हूँ, भैया। बल्कि मैं एक साधारण मनुष्य हूँ।

मैंने तो साधु का चोला इसलिए धारण कर रखा था ताकि लोग मुझ पर विश्वास करके मेरी बाजार से खरीदकर लाई हुई जड़ी-बूटियाँ खरीद सकें।

तू मुझे इस सेठ से छुटकारा दिलवाने का कोई उपाय बता, भैया।”

साधु, “पागल हो गए हो क्या? अरे! उपाय के लिए तो मैं खुद तुम्हारे पास आया था।”

गेंदा सेठ, “ये तुम दोनों क्या बकवास कर रहे हो? जल्दी से मेरे लिए भोजन लेकर आओ। मुझे भूख लगी है।”

साधु, “रुक भक्कड़, देखता हूँ तू कितना खाता है, रुक।”

इतना कहकर वो साधु कमरे के अंदर से बहुत सारे फल ले आया, जो उसने स्वयं खाने के लिए दस दिन के लिए इकट्ठा करके रखे थे। गेंदा सेठ कुछ ही देर में वो सारे फल चट कर गया।

गेंदा सेठ, “मुझे और भूख लगी है।”

साधु वहीं पर चक्कर खाकर बेहोश होकर गिर पड़ा।

गेंदा सेठ, “ये तो बेहोश हो गया, रोंदू। अब तुम ही मेरे लिए भोजन लेकर आओ।”

मगर रोंदू बेचारा भोजन कहाँ से लाता? वह सीधा वहाँ से बाहर की तरफ भागा और गेंदा सेठ उसके पीछे।

गेंदा सेठ, “रुक जा रोंदू, तूने मुझे दावत दी है। अपने अतिथि को भूखा जाने देगा क्या?”

रोंदू, “नहीं मालिक, आज के बाद कसम खाता हूँ, किसी को भी दावत नहीं दूँगा।”

गेंदा सेठ, “मैं कहता हूँ, रुक जा रोंदू। मुझे भूख लग रही है।”

मगर रोंदू नहीं रुका और गेंदा सेठ थक-हारकर घर वापस चला गया।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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