प्याज पराठा वाली | Pyaz Paratha Wali | Husband Wife Story | Moral Kahani | Pati Patni Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ प्याज पराठा वाली ” यह एक Pati Patni Ki Kahani है। अगर आपको Parivar Ki Kahani, Moral Story in Hindi या Husband Wife Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


बीना और चंदर आजादपुर मंडी में साफ-सफाई और मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पालते थे। शादी के तकरीबन दो साल बाद बीना गर्भवती हुई। दोनों ही पति-पत्नी इस बात से बहुत खुश थे और बेसब्री से नए मेहमान के आने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन होनी को शायद कुछ और मंजूर था।

एक शाम जब दोनों काम से घर लौट रहे थे, तो रास्ते में रेल पटरी क्रॉस करते वक्त चंदर का पैर पटरी में फंस गया।

चंदर, “अरे…अरे मेरा पैर!”

बीना, “अरे! ये क्या हो गया जी? जल्दी जल्दी पैर निकालने की कोशिश कीजिए।”

चंदर, “कोशिश तो कर रहा हूँ बीना, लेकिन ये निकल ही नहीं रहा।”

बीना भी उसकी मदद करने की कोशिश करती है, लेकिन उसका पैर बाहर नहीं निकल पाता। तभी उन्हें ट्रेन की आवाज आती है।

बीना, “जल्दी कीजिए जी, ट्रेन आ रही है।”

चंदर, “मुझे लगता है कि मेरा जाने का वक्त आ गया है। तुम जाओ यहाँ से और मेरे बच्चे का ध्यान रखना। मुझ अभागे को अपने बच्चे का मुंह देखे बिना ही इस दुनिया से जाना होगा।”

बीना, “नहीं ऐसा मत कहिए जी, मैं आपके बिना कैसे रह पाऊंगी? मैं भी आपके साथ इसी पटरी पर अपनी जान दे दूंगी।”

चंदर, “नहीं, हमारे बच्चे के लिए तुम्हें जीना होगा बीना। अब जाओ यहाँ से। तुम्हें हमारे होने वाले बच्चे की कसम।”

बीना पटरी से दूर जाती है। तभी ट्रेन चंदर को छूती हुई निकल जाती है और चंदर की मौत हो जाती है। बीना की आँखों के सामने उसके पति की मौत हो जाती है। एक ही पल में उसकी हँसती-खेलती दुनिया उजड़ जाती है और वह विधवा बन जाती है।

चंदर के जाने के बाद बीना बिल्कुल अकेली हो गई। अब वह अकेली ही मंडी जाती और मेहनत-मजदूरी करती और उससे जो कमाई होती है, उससे अपना पेट भरने लगती है।

एक दिन बीना ने घनश्याम को कुछ प्याज फेंकते हुए देखा।

बीना, “अरे घनश्याम भैया! ये आप क्या कर रहे हैं?”

घनश्याम, “कुछ नहीं बहन। जो प्याज खराब हो गए हैं, उन्हें अलग करके फेंक रहा हूँ।”

बीना, “भैया, अगर आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो ये प्याज मुझे दे दीजिए। ये मुझ गरीब के काम आ जाएंगे।”

घनश्याम, “लेकिन बहन, इन आधे सड़े हुए प्याजों का आखिर तुम क्या करोगी?”

बीना, “वो मैं तुम्हें बाद में बताऊँगी, फिलहाल आप ये खराब प्याज मुझे दे दीजिए।”

घनश्याम, “ठीक है बहन, ले जाओ। वैसे भी ये मेरे किसी काम के नहीं हैं।”

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इसके बाद बीना उन खराब प्याजों को एक थैले में भर लेती है और शाम को अपने साथ घर ले आती है। वह कुछ प्याजों को अलग करके रख लेती है और जिनकी हालत ज्यादा ही खराब थी, उन्हें अपने घर के बाहर बनी क्यारी में बो देती है।

अगले दिन सुबह काम पर जाने से पहले बीना साफ प्याजों को काटकर आटे में मिलाती है और नमक, हरी मिर्च और अजवाइन डालकर आटे को गूंध लेती है। खुद नाश्ता करके वह कुछ पराठे घनश्याम के लिए भी पैक करके ले जाती है।

बीना, “ये लो घनश्याम भैया, आपसे जो कल प्याज लेकर गई थी, उससे मैंने प्याज के पराठे बनाये हैं। जरा आप भी चखिए।”

घनश्याम, “बीना बहन, तुम इतने प्यार से प्याज के पराठे बनाकर लाई हो, तो खाकर देखता हूँ।”

बीना के हाथ के प्याज के पराठे घनश्याम को बहुत पसंद आते हैं। कुछ समय ऐसे ही बीत जाता है।

बीना को अब सातवां महीना लग गया था, जिस वजह से वह मजदूरी नहीं कर पा रही थी। इसके कारण उसके घर में खाने-पीने की तंगी हो गई थी। एक दिन जब वह खाना बनाने जाती है तो देखती है कि राशन के सभी डिब्बे खाली हैं।

बीना, “हे भगवान! एक बार तो मैं भूखी रह लूँगी, लेकिन मेरे अंदर पल रही नन्ही जान कैसे भूखी रहेगी? इस हालत में तो कोई मुझे काम भी नहीं दे रहा।”

बीना, “हाँ, याद आया। अपनी जमीन में थोड़े प्याज उगाए थे न। क्यों न उन्हें निकाल लूँ? वो पूरी तरह पक गए होंगे।”

बीना उन प्याजों को निकालती है और पड़ोस से थोड़ा आटा उधार मांगकर ले आती है। फिर वह स्वादिष्ट प्याज के पराठे बनाती है। उसके पराठों की खुशबू को सूंघते हुए उसकी पड़ोसन आरती वहाँ पहुँच जाती है।

आरती, “अरे वाह बीना! तेरे घर से तो बड़ी ही अच्छी खुशबू आ रही है। आखिर क्या बनाया है तूने?”

बीना, “कुछ नहीं बहन, प्याज के पराठे बनाये हैं। लो, तुम भी खा कर बताओ कैसे बने हैं?”

आरती, “वाह! क्या स्वाद है तेरे हाथों में? ऐसे तो ढाबे वाला भी नहीं बना पाता। मैं तो कहती हूँ तू प्याज के पराठे का ठेला लगाकर बेच और पैसे कमा। जब ऊपर वाले ने तुझे इस हुनर से नवाजा है, तो इसका फायदा उठा।”

बीना को यह सुझाव सही लगा और वह मदद के लिए घनश्याम के पास जाती है। घनश्याम के पास एक पुराना ठेला था, जिस पर वह गलियों में जाकर प्याज बेचता था। लेकिन जब से उसने मंडी में खुद की दुकान ले ली, तब से वह ठेला बेकार खड़ा था।

घनश्याम, “मैं तुम्हें यह ठेला देने के लिए तैयार हूँ।”

घनश्याम अपने पुराना ठेला लेकर बीना के घर पहुँचता है।

घनश्याम, “ये लो बीना बहन, इसकी मरम्मत मैंने करवा दी है। अब तुम इसका इस्तेमाल कर सकती हो।”

बीना, “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया घनश्याम भैया! आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी।”

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर बीना सारी तैयारी कर लेती है और मंडी में जाकर अपने प्याज के पराठों का ठेला लगाती है। लेकिन काफी देर तक जब कोई ग्राहक नहीं आता, तो वह सोचती है।

बीना, “हे भगवान! दिन ढलने को आ गया लेकिन अभी तक एक भी ग्राहक नहीं आया। अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं अपने होने वाले बच्चे को क्या खिलाऊँगी? लगता है अब बिजनेस चलाने के लिए कोई तरकीब लगानी होगी।”

वह तय करती है कि कम दाम में पराठे बेचेगी।

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बीना, “एक बार मेरे पराठों का स्वाद सबकी जुबान पर चढ़ गया तो वे कहीं और जा ही नहीं पाएंगे।”

इतना सोचकर बीना आधे दाम में प्याज के पराठे बेचने लगती है। कम दाम में बहुत सारे लोग बीना के पराठे खाने लगते हैं। कुछ दिन बीना ने सबको कम दाम पर ही पराठे बेचे। लेकिन जब उसके ग्राहक बढ़ गए, तो उसने रेट बढ़ा दिए।

इसके बाद बीना पूरी मंडी में प्याज के पराठों वाली के नाम से मशहूर हो गई। कुछ ही दिनों में उसकी अच्छी खासी कमाई होने लगी।

बीना, “हे भगवान! तेरी कृपा से और कुछ अच्छे लोगों की मदद से मेरा काम बहुत अच्छा चल पड़ा है और मैं अच्छी खासी कमाई कर लेती हूँ। बस मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखना ताकि मैं अपने बच्चे को एक अच्छी जिंदगी दे सकूँ।”

कुछ ही दिनों में बीना खुद का ढाबा खोल लेती है। अब उसकी खूब अच्छी कमाई होने लगी थी। उसके काम और बढ़ गए थे इसलिए उसने अपनी मदद के लिए दो लाचार औरतों को रख लिया था।

बीना की डिलीवरी का समय भी आ गया और उसने एक बेटे को जन्म दिया। महीने भर का रेस्ट लेने के बाद वह वापस काम पर जाने लगी और अपने साथ अपने बच्चे को भी ले जाती। अब वह काम संभालने के साथ-साथ अपने बच्चे की भी अच्छी परवरिश करती और खुशी-खुशी उसके साथ रहने लगी।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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