हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सौतेली बहन ” यह एक Bhai Bahan Story है। अगर आपको Family Stories, Bhai Bahan Ki Kahani या Rishto Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
शीला और उसका पति महेश और उसके दो बच्चे रहते थे। शीला की दूसरी शादी हुई थी
और उसका पहला पति राजू जिसका कोई अता पता नहीं था, वो एक बार जंगल में गया और वहाँ से कभी वापस नहीं आया।
कहा जाता है कि उस जंगल में जो भी इंसान जाता है, वो कभी लौटकर नहीं आता।
रितेश और आशा दोनों शीला के बच्चे थे, लेकिन आशा रितेश की सौतेली बहन थी।
आशा शीला के पहले पति की बेटी थी। लेकिन महेश जितना रितेश को प्यार करता था, उतना ही आशा से भी करता था।
ये बात रितेश को पसंद नहीं थी क्योंकि वो सोचता था कि आशा उसकी सौतेली बहन है और उसके पापा आशा को ज्यादा प्यार करते हैं।
लेकिन आशा रितेश को अपने भाई से भी बढ़कर मानती थी। वो उसको बहुत प्यार करती थी।
आशा गांव की एक कपड़े की फैक्टरी में अकाउंटेंट थी। वो पूरे गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी थी।
आशा को देखकर उनके माँ बाप रितेश को भी पढ़ाई करने के लिए बोलते थे, लेकिन रितेश को पढ़ाई करना। बिलकुल पसंद नहीं था।
आशा जब भी फैक्टरी से आती थी, तो रितेश के लिए कभी मिठाई, तो कभी नए नए खिलौने लेकर आती थी।
एक दिन आशा रितेश के लिए नई शर्ट लेकर आई।
आशा, “रितेश… रितेश, कहाँ है भाई? देख मैं तेरे लिए एक तोफा लाई हूँ।”
आशा वो तोफा रितेश को दे देती है।
रितेश, “मुझे नहीं चाहिए तोफा, तुम इसे अपने पास ही रखो। और हाँ, मैं तुम्हारा भाई नहीं हूँ। तुम मुझे भाई मत बोला करो।”
आशा रोते हुए कमरे में चली जाती है और शीला गुस्से से रितेश को थप्पड़ मारती है।
शीला, “रितेश, ये कोई तमीज है अपनी बड़ी बहन से बात करने की? जा अपने कमरे में।”
रितेश गुस्से में रोते हुए अपने कमरे में चला जाता है। रात को महेश काम पर से घर आता है और घर में सन्नाटा देखकर वो शीला से पूछता है।
महेश, “शीला, आज घर में इतनी शांति कैसे है? दोनों बच्चे कहाँ गए?”
शीला , “दोनों अपने कमरे में ही है।”
शीला महेश को सारी बात बताती है। अगली सुबह महेश रितेश को बुलाता है और प्यार से समझाता है।
रितेश और गुस्सा हो जाता है और सोचता है कि आशा की वजह से पापा ने मुझ पर आज फिर गुस्सा किया।
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एक दिन रमेश को किसी काम से बाहर जाना होता है और 2- 3 दिन बाद खबर आती है कि जो बस शहर से गांव आ रही थी,
वो खाई में गिर गई और उसमें जितने भी लोग थे, उन सब का देहांत हो गया।
ये सुनकर शीला बहुत ज्यादा उदास हो जाती है क्योंकि उसके पहले पति का भी जंगल में जाने के बाद कोई अता पता नहीं हैं।
शीला, “हे भगवान! ये तुने क्या कर दिया? मेरे पहले पति को भी तुने मुझसे दूर कर दिया और अब इनको भी तुने मार दिया।”
पूरे घर की जिम्मेदारी आशा पर आ गई थी। धीरे धीरे दिन बीतते गए।
लेकिन इन सब हादसों के बाद भी रितेश आशा को अपनी बहन नहीं मानता था।
एक दिन रितेश की आशा से लड़ाई हो जाती है और वो भागता हुआ जंगल की तरफ चला जाता है।
उसे रोकने के लिए आशा भी उसके पीछे भागती हुई जाती है।
आशा, “रितेश… रितेश भाई, वापस आ जा। मैं कभी तुझसे लड़ाई नहीं करूँगी, वापस आ जा भाई।”
लेकिन रितेश जंगल से बाहर नहीं आता है। रितेश को तो बाहर लाना था इसीलिए आशा खुद भी डरते हुए जंगल की ओर चली जाती है।
वो रितेश को आवाज लगाती हुई जैसे ही आगे बढ़ती है, उसे जंगल में आग जलती हुई दिखाई देती है।
वो उस आग के पीछे पीछे जाती है और देखती है कि वहाँ पर कुछ लोग बैठे हैं और वो सिगरेट पी रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे।
ये सब देखकर आशा एक पेड़ के पीछे छुप जाती है।
आशा, “ये लोग कौन है और यहाँ पर क्या कर रहे हैं? मुझे छुपकर सब कुछ देखना होगा।”
वो देखती है कि तीन चार लोग बहुत बड़े बड़े डिब्बों को एक ट्रक में रख रहे हैं।
वो चुपके से एक डिब्बे को खोलकर देखती है तो उसमें ड्रग्स होता है और वो डर जाती है।
फिर वह पेड़ के पीछे छुपकर सब देखती है। तभी उनमें से एक आदमी उठकर अंदर की ओर जाता है।
आशा भी चुपके चुपके उस आदमी का पीछा करते हुए अंदर की ओर चली जाती है। वहाँ जाकर आशा हैरान हो जाती है।
आशा, “ये… ये इन लोगों ने इतने सारे लोगों को बंधी बनाकर रखा। अच्छा… अब मैं समझ गई कि जंगल में जाने के बाद लोग गायब क्यों हो जाते थे?
इन सब लोगों को इन बेकार लोगों ने पकड़ रखा है। ये लोग अपने गंदे कामों को छुपाने के लिए जंगल में आए हुए लोगों को पकड़ लेते हैं।”
तभी आशा देखती है कि वहाँ पर बहुत सारे लोग हैं। और उन सब लोगों में रितेश और उसके पहले पापा राजू भी होते हैं।
वो उन सबको बचाने के लिए हिम्मत से काम लेती है और वहाँ पर फंसे सभी लोगों को बचाने के लिए भागती हुई पुलिस स्टेशन जाती है
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और वहाँ की इंस्पेक्टर को सब कुछ बता देती है। फिर इंस्पेक्टर पूरी पुलिस फोर्स को लेकर जंगल में जाता है। फिर पुलिस उन सबको पकड़ लेती है।
इंस्पेक्टर, “अच्छा… तो ये तुम लोगों के काम थे। तुम ही लोग बिचारे, मासूम लोगों को अपना शिकार बनाते हो और उन लोगों से अपने ये काम करवातें हो।”
इंस्पेक्टर, “धन्यवाद आशा! आज तुम्हारी बहादुरी की वजह से हम इन ड्रग्स सप्लायर्स को पकड़ पाए।
पुलिस को इन लोगों की बहुत दिनों से तलाश थी। ये हर बार हमारे पहुंचने से पहले ही अपना ठिकाना बदल लेते थे और आज तुमने इन लोगों को पकड़वा ही दिया।”
ऐसा कहकर पुलिस उन लोगों को पकड़कर ले जाती है और फिर सभी बंधी बने हुए लोग आजाद हो जाते हैं और आशा का धन्यवाद करते हैं।
रितेश, “दीदी… दीदी मुझे माफ़ कर दो, मैंने आपके साथ बहुत गलत किया है, आपको बहुत उल्टा भी बोला है।
फिर भी आज आप मुझे बचाने के लिए अपनी जान को खतरे में डालकर मुझे बचाने आ गई।
दीदी, आज आपने साबित कर दिया कि अपना सौतेला कुछ नहीं होता है, बस हमें सच्चे मन से अपने रिश्ते निभाने चाहिए।”
फिर आशा, रितेश और राजू घर चले जाते हैं।
और राजू को देखकर शीला हैरान हो जाती है। फिर राजू शीला को सारी बात बताता है फिर वो खुशी खुशी रहने लगते हैं।
दोस्तो ये Family Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!