हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सोने का अंडा ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Hindi Funny Stories, Comedy Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
पुट्ठा का पेट हमेशा खराब रहता था, वो हर समय गन्दी बदबू वाली गैस छोड़ता था इसलिए उसे कोई काम नहीं देता था।
दो दिनों से उसे कोई काम नहीं मिला।
पुट्ठा घर पर…
पुट्ठा, “अरे शर्मिली! ज़रा बाजरे की रोटी के साथ कच्चे प्याज की चटनी दो। कसम से, लस्सी के साथ आनंद आ जायेगा खाने में।”
शर्मिली, “बस यही कमी रह गयी है ना? मोहल्ले वालों ने वैसे ही मेरा जीना हराम कर रखा है कि वो देखो पत्थर पुट्ठा की बीवी आ गयी बोल बोलकर।”
पुट्ठा, “ऐ तुम उनकी बातों में ध्यान मत दो। वो चटनी बना दो।”
शर्मिली, “सच में जी, आपकी थोड़ी बदबू से सारे मोहल्ले वाले परेशान है। आप किसी वैद्य से मिलो ना।”
तभी पुट्ठा थोड़ी सी जगह बनाते हुए एक लम्बी गैस छोड़ता है।
शर्मिली, “उहूं… लो कर दिया काम। किसी दिन पादते हुए कपड़े खराब कर लोगे। छी… बदबू तो देखो।
देखो जी, मैं अपने माँ के घर जा रही हूँ और तब तक नहीं आउंगी जब तक आप अपनी इस बीमारी का इलाज नहीं करवा लेते।
और हाँ, अपने साथ क्रिस्टल को भी ले जा रही हूँ। “
पुट्ठा, “ऐ… ऐसा मत करो शर्मिली।”
पुट्ठा, “क्रिस्टल, तुम तो रुक जाओ।”
क्रिस्टल, “पापा नहीं, मैं आपकी बदबू में नहीं रह सकता।”
क्रिस्टल, “चलो मम्मी, जल्दी नानी के घर ही चलते हैं।”
ये बोलकर दोनों घर से निकल जाते हैं।
पुट्ठा, “हे भगवान! ये मैंने कौन से पाप किए हैं जो तूने मुझे ये बीमारी दे दी। अब तो शर्मिली और मोनू भी छोड़ गए रे।
भूख भी जोरों की लगी है। क्या करूं? या तो तू मुझे उठा ले या मेरी बिमारी को दूर कर।”
उसके बाद पुट्ठा उदास घर से निकल पड़ता है और कुछ दूर जाकर एक आम के पेड़ के पास एक आम तोड़कर खाने लगता है।
बुढ़िया, “बेटा, बहुत भूखी हूं। ये आम मुझे दे दे।”
पुट्ठा, “ले दादी, तू ही खाले। भला एक आम से मेरा क्या होगा?”
पुट्टा ने आम उसे दे दिया।
बुढ़िया, “धन्यवाद बेटा, तेरी दयालुता तो अद्भुत है।”
सोने का अंडा | SONE KA ANDA | Funny Kahani | Comedy Kahani | Majedar Kahaniyan | Hindi Funny Stories
वो मंदिर में रहने वाली परी थी जिसे दयालु लोग बहुत पसंद थे।
वो पुट्टा की परीक्षा लेने आई थी। उसकी दया भावना को देख उसने पुट्ठा की मदद करने का फैसला किया।
परी, “पुट्ठा, तुम बहुत दयालु हो। तुम्हे भूख लगी है? आओ मेरे पास, मैं तुम्हारी समस्या का हल कर देती हूँ।”
पुट्ठा पीछे मुड़कर देखता है तो वहाँ उसे बहुत सुन्दर सी सफेद कपड़े पहने हुई, सुनहरे बालों वाली, हाथ में एक चमचमाती छोटी सी छड़ी लिए हुए परी दिखाई देती है।
घबराहट में उसकी गैस छूट जाती है। शर्म से पुट्ठा का मुँह खुला का खुला रहता है।
परी, “हा हा हा… मैं परी हूँ, पुट्ठा। शरमाओ मत, मैं तुम्हारी मदद करूँगी।”
पुट्ठा, “आप मेरे साथ मजाक कर रही हैं? भला कोई परी मुझ जैसे बदबू फैलाने वाली की मदद क्यों करेगी?
सब मुझसे नफरत करते हैं, मेरा मजाक उड़ाते हैं। बच्चे तो मुझे पदौड़ा भी कहते हैं।”
परी, “पुट्ठा, मुझे तुम्हारी बदबू से कोई फरक नहीं पड़ता। मैं तुम्हारी बदबू को ही तुम्हारे लिए जीने का मकसद बना दूंगी, बच्चे।”
पुट्ठा, “क्या..? ऐसा हो सकता है? ये बिमारी मेरे लिए कोई भला काम भी कर सकती है क्या?”
परी, “हा हा हा… नादान, तुम बहुत मासूम हो। तुमने मुझे भूखे होने पर भी ये आम दे दिया। लो, पहले तुम आम खाकर अपनी भूख मिटा लो।”
पुट्ठा, “परी माँ, ये आम तो बड़ा ही स्वादिष्ट है। इतना मीठा आम मैंने कभी नहीं खाया। आ हा हा।”
परी, “बेटा, यही आम तेरा आशीर्वाद बनेगा। सुनो पुट्ठा, तुमने जो आम खाया है ना वो कोई मामूली आम नहीं है, वो एक जादुई आम है।
कल सुबह जब तुम शौच करोगे तो शौच की जगह तुम्हे इसके बदले एक सोने का आम मिलेगा।”
पुट्ठा, “सोने का आम और पीछे से..? नहीं नहीं पारी जी, मैं इतना दर्द कैसे..? नहीं नहीं।”
परी, “अब हर रोज़ सुबह बदबूदार गैस छोड़ने के बाद तुम शौच के लिए जाना और तुम्हें एक चमचमाता हुआ असली सोने का आम मिलेगा,
जिसे बेचकर हर इच्छा पूरी कर सकते हो और एक बहुत बढ़िया आदमी बन सकते हो। घबराना नहीं, आम तुम्हें कोई दर्द नहीं देगा।”
पुट्ठा, “क्या आप सच कह रही हैं? ऐसा ही होगा ना?”
पुट्ठा की गैस फिर छूट जाती है। इस बार परी भी नाक बंद कर लेती है।
पुट्ठा, “हे राम हे राम! ये गैस देखिए, आपने भी नाक बंद कर ही ली।”
परी, “नहीं पगले, मैं तो इसकी आवाज से घबरा गई।”
पुट्ठा, “परी माँ… परी माँ, कुछ करिए मेरी इस बीमारी से सब परेशान होकर मुझे ना पदौड़ा पदौड़ा बुलाते हैं। मेरी शर्मीली…।”
परी,”शर्मीली… तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारी शान और शौकत देखकर वापस आ जाएगी। चिंता मत करो।
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इस आम को बेचकर जो भी पैसे मिलेंगे ना, उन पैसों के तुम दो हिस्से करना, एक हिस्सा खुद पर खर्च करना
और दूसरा हिस्सा तुम दूसरों की मदद करने के लिए खर्च करना वरना जादू खत्म हो जाएगा।”
पुट्ठा ज़ोर से हंसता है और गैस फिर निकल जाती है। पुट्ठा घबराकर अपनी ही नाक बंद कर लेता है और शर्म से पानी पानी हो जाता है।
हंसती हुई परी गायब हो जाती है। पुट्ठा बहुत खुश था लेकिन उसे परी की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
फिर वो सोचने लगा…
पुट्ठा, “सोने का आम जो है कैसा दिखता होगा? वो छोटा होगा या बड़ा? शौच से निकले आम को कौन खरीदेगा भला?”
इन बातों को सोचते सोचते उसकी आंख लग गई और वो सो गया। सुबह जब उसकी आंख खुली तो खुद से बोला।
पुट्ठा, “चल भाई पुट्ठा, अब समय आ गया है यह देखने का कि परी ने जो कहा था वह सपना था या सच?
लगता है सोने का आम बाहर आ गया है। देखूं ज़रा।”
पुट्ठा हैरान हो जाता है। वहाँ पर एक सोने का बड़ा सा आम पड़ा था। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। वो नाचने लगा।
पुट्ठा, “कमाल है कमाल है, भगवान परी ने भी मेरी मदद करने के लिए क्या रास्ता ढूंढा है? अगर मुझे सोने का आम देना ही था तो कोई और रास्ता ढूंढ लेती।
पर पर ठीक है, ठीक है। मुझे तो अपनी गैस से प्यार हो गया है। अब जब ये आएगी सोना लाएगी, सोना ही सोना होगा।
पुट्ठा उस आम को शहर में बेचने निकल गया। रास्ते में उसका दोस्त कनुआ नाई मिला।
कनुआ, “अरे पादो भाई! कहाँ जा रहे हो इतना मटक मटक कर?”
पुट्ठा, “शहर जा रहा हूँ। ये देखो, सोने का आम बेचने।”
कनुआ, “अरे! अब तो भाभी जी और मोनू घर पर है नहीं, तो मोनू के खिलौने बेचना शुरू कर दिए हो का?”
पुट्ठा, “अबे जाकर लोगों की हजामत बना दिमाग खा रहा है।”
कनुआ, “अबे पदौड़े कर दिया अपना काम, नाक सड़ गई भैया, जा भाई जा जहां जा रहा था। छी छी छी छी।”
पुट्ठा, “आया मज़ा? थोड़ा सा और सूंघता जा। ले ले सूंघ ले। कभी कभी ऐसे लोगों के लिए तो ये बढ़िया हथियार है मेरे पास।”
सुनार की दुकान पर पहुँचकर…
पुट्ठा, “सेठ जी, मेरे पास कुछ सामान है जो मैं बेचना चाहता हूँ।”
सुनार, “ठीक है दिखाओ, क्या बेचना है?”
पुट्ठा, “ये सोने का आम।”
सुनार, “सोने का आम..? अरे भाई! ये तो काले सोने का है। कहां से लेके आया, चोरी ओरी की है क्या?”
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पुट्ठा, “ये क्या कह रहा है? मैं क्या चोर लगता हूँ? ये आम मेरा है, अपना खुद का बनाया हुआ। वो गैस छोड़ता है।”
सुनार, “छी छी छी… इतनी गन्दी बदबू।”
पुट्ठा, “कुछ भी कहो पर मेरी गैस के बारे में कुछ ना कहना। ये मेरी माइ बाप है।”
सुनार, “गैस माइ बाप है? अरे भले आदमी! दिमाग तो ठीक है? तुम्हे देखकर तो नहीं लगता कि ये सोने काम तुम्हारा होगा? पर मुझे क्या?”
सेठ ने सोने के आम की जांच की। वह असली सोने का निकला। उसने पुट्ठा को उस आम की अच्छी कीमत दी।
पुट्ठा, “धन्यवाद सेठ जी, रोज़ एक आम निकलता है, सब आपको ही दूंगा।”
सुनार, “निकलता है..? क्या कोई खान है क्या?”
पुट्ठा, “हां हां, खान ही समझो। अपनी खान साथ ही चलती है।”
सुनार, “अपनी है तो मजदूर लगवा के एक बार में ही सारा सोना क्यों नहीं निकाल लेते?”
पुट्ठा, “अरे बाप रे! क्या कह दिया? दर्द ही उठ गया अंदर तक, चलता हूँ कल आऊंगा।”
दुकानदार उसे हैरानी से देखने लगा। पुट्ठा ने सोचा,
पुट्ठा, “पहले खुद के लिए कुछ नए कपड़े ले लेता हूँ। नहीं तो लोग मुझे ऐसे ही भिकारी समझेंगे।
मुझे तो आगे भी आम को बेचने शहर आना ही होगा। वो कपड़ों की बड़ी सी दुकान।”
दुकानदार, “ऐ भिकारी ऐ, चल बाहर निकल। कहां दुकान के अंदर चला रहा है? चल।”
पुट्ठा, “ढंग से बात करो, मैं कोई भिकारी नहीं हूँ। मैं यहाँ कपड़े खरीदने आया हूँ।”
दुकानदार, “ऐ तुम्हारे पास कपड़े खरीदने के लिए पैसे भी हैं। अपनी औकात के हिसाब से दुकान में आओ, चलो।”
दुकानदार, “अरे ओ रामू श्यामू एऐ! इस भिकारी को उठाकर बाहर फेंक दो। न जाने कहां कहां से चले आते हैं? भिखारी कहीं के, चल।”
पुट्ठा कुछ कहता, उसके पहले ही वो दुकान के बाहर फेंका जा चुका था। तभी वहाँ एक कुत्ता आया और उसने टांग उठाकर पुट्ठा के ऊपर सूसू कर दिया।”
पुट्ठा, “चल कुत्ते आज तेरा दिन है, कल मेरा भी आएगा।”
वो एक दूसरी छोटी दुकान में गया और वहाँ से अपने लिए कुछ कपड़े, जूते, बहुत सारा खाने पीने का सामान लिया और गांव वापस चला गया।
दूसरे दिन पुट्ठा को फिर से एक सोने का आम मिला और परी के कहे अनुसार गांव में वो गरीबों की मदद करने निकल पड़ा।
पुट्ठा, “काका, कैसे हो काका?”
काका, “अरे पुट्ठा! आगे जा भैया जा वरना भैया तेरी बदबू से काम करना मुश्किल हो जाएगा।”
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पुट्ठा, “अरे! सुनो काका, गैस वेस छोड़ो अब तुम्हारे ये बैलों का जोड़ा पुराना हो गया है। तुम्हें अपने लिए जो है नए बैलों के जोड़े की जरूरत है हाँ।”
काका, “अरे बेटा! हमारा तो दो वक्त का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से होता है। हम बैलों का नया जोड़ा कहाँ से लाएंगे भला बेटा?”
पुट्ठा, “मैं आपको जो है बैलों का नया जोड़ा दूंगा और आपके घर की छत भी ठीक करवाऊंगा।”
काका, “हा हा हा… जो खुद दूसरों से मांगकर खाता है वो मेरे लिए बैलों का नया जोड़ा लेगा भैया?”
पुट्ठा ने तुरंत गरीब किसान के लिए नए बैलों का जोड़ा खरीदा और उसने घर को ठीक करवाया।
किसान ने पुट्ठा को बहुत सारा आशीर्वाद दिया।
काका, “तुम तो हमारे राजा से भी अच्छे हो। उसे आज तक हम गरीबों पर दया नहीं आई, बताओ?”
पुट्ठा, “अरे काका! ये क्या कह रहे हो? कहा राजा कहाँ मैं।”
काका, “सच कहता हूँ तुम्हें राजा बना देना चाहिए राजा।”
तभी पुट्ठा गंदी गैस छोड़ता है।
काका, “मैं तुमसे एक बात कहता हूँ, बेटा। तुम किसी डॉक्टर से जो है अपनी दवा करो और तुम्हारे पेट में जो है कुछ गड़बड़ लगती है।”
पुट्ठा को खुद के लिए राजा शब्द सुनकर बड़ा ही अच्छा महसूस हो रहा था। सोने के आम बेचकर उसने काफी पैसा इकट्ठा कर लिया और खुद को राजा ही समझने लगा।
पुट्ठा, “किसान ने सही तो कहा, मुझे राजा होना चाहिए क्योंकि मैं सबकी मदद करता हूँ। और मेरे पास राजा से भी ज्यादा पैसे है। मुझे महल में रहना चाहिए।”
वो राज़ मिस्त्री के पास गया जो शाही महल बनाता था।
पुट्ठा, “मुझे जो है अपना घर तोड़कर महल बनवाना है।”
राज़ मिस्त्री, “महल..? अरे! दिमाग ठिकाने पर है? तुम्हारे पास पैसे भी हैं?”
पुट्ठा, “हाँ, मेरे पास बहुत पैसे हैं। मैं अपने घर को बिलकुल राज़ महल की तरह बनवाना चाहता हूँ।”
राज़ मिस्त्री, “पहले ये बताओ, तुम्हारे पास इतने पैसे कहाँ से आए?”
पुट्ठा, “सोने की खदान है मेरी, ऐ तुम अपना काम करो। तुम्हें तुम्हारे काम के पैसे मिल जाएंगे बाकी कुछ जानने की जरूरत नहीं है।”
राज़ मिस्त्री, “अच्छा, ऐसा है तो ठीक है, मैं कल से काम शुरू कर देता हूँ।”
पुट्ठा, “मुझे जो है मेरा गुसलखाना ना सबसे ज्यादा आलीशान चाहिए। उसकी हर चीज़ सोने की हो, बाल्टी, लोटा, दीवार, खिड़की और बैठने की कुर्सी भी हाँ।”
राज़ मिस्त्री, “इतना आलीशान गुसलखाना..? अरे भैया! तुम क्या उसमें रहोगे?”
पुट्ठा, “आज मेरे पास जो है वो सब शौच की वजह से है। इसीलिए मुझे शौच की जगह सबसे शानदार बनवानी है।”
तभी पुट्ठा ने बहुत जोरदार बदबूदार गैस छोड़ी। मिस्त्री का सर चकरा गया।
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राज़ मिस्त्री, “शौच की वजह से..? ठीक है ठीक है, मैं समझ गया हूँ। तुम जाओ यहाँ से, मैं कल आ जाऊंगा भैया जाओ जाओ।”
तभी वहाँ एक भिखारिन आती है।
भिखारिन, “बेटा, कुछ मिल जाता तो पेट भरता।”
पुट्ठा, “ऐ अभी मेरा सब कुछ गुसलखाने के लिए है जा भाग जा यहाँ से।”
आदमी, “पुट्टा भैया, बीज और खाद लाने थे, कुछ मदद हो जाती तो अच्छा था।”
पुट्ठा, “हद हो गयी है। दिखता नहीं है, मेरा घर बन रहा है। मेरे पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं।”
इस तरह कुछ दिनों में पुट्ठा का महल बनकर तो तैयार हो गया पर पुट्ठा राजा बनने के मोह में परी की चेतावनी भूल गया।
राज़ मिस्त्री, “पुट्टा, जैसा तुमने कहा था वैसा तुम्हारा घर तैयार है।”
पुट्ठा, “मुझे मेरा आलीशान गुसलखाना दिखाओ। तुम बड़े अजीब आदमी हो, गुसलखाने के ही पीछे पड़ गए।”
राज़ मिस्त्री, “ऐ तुम नहीं समझोगे, मेरे जीवन में गुसलखाना कितना महत्वपूर्ण है?”
मिस्त्री अजीब निगाहों से पुट्ठा को देखता हुआ, “ठीक है, चलो।”
पुट्ठा, “ये क्या..? ये तो बहुत ही साधारण है। एक काम करो, इसे फिर से बनाओ।”
राज़ मिस्त्री, “मुझे लगता है तुम पागल हो गए हो। हम जीस काम के लिए यहाँ आते हैं, वो काम करके जल्दी बाहर भागते हैं।
तुम्हे तो गैस की बिमारी भी है, तुम्हे यहाँ क्या चाहिए?”
कुछ दिनों बाद मिस्री फिर आया।
राज़ मिस्त्री, “बन गया तुम्हारा गुसलखाना पुट्ठा। आओ देख लो।”
पुट्ठा, “हाँ, अब ठीक है। पर तुम एक काम करो, यहाँ जो है ना यहाँ यहाँ एक आराम कुर्सी लगवा दो।”
राज़ मिस्त्री, “आराम कुर्सी..?”
पुट्ठा ने फिर से एक बदबूदार गैस छोड़ी।
राज़ मिस्त्री, “मैं समझ गया। मैं कुर्सी लगवा दूंगा।”
और वहाँ से भाग गया। गांव के लोग बड़े हैरान थे।
इस भिखारी ने इतना शानदार महल कैसे बनवा लिया? और लोगों को पुट्टा के आलीशान गुसलखाने के बारे में भी पता चलने लगा।
आदमी, “अरे भाई पुट्ठा अरे! सुना है तुम्हारा गुसलखाना राजा के गुसलखाने से भी ज्यादा आलीशान है।”
पुट्ठा, “हाँ, बिलकुल सही सुना है।”
आदमी, “क्या मैं देख सकता हूँ?”
पुट्ठा, “हां ज़रूर।”
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आदमी, “ओह भाई ओह भाई! तुमने अपने पूरे घर के बराबर तो इस गुसलखाने को बनवा रखा है।
और इसमें इतनी आलीशान झूमर कौन लगवाता है भैया? भैया तुमने तो इसे राज़ महल बना दिया भैया।”
पुट्ठा, “हाँ, क्योंकि ये मेरे जीवन का एक बहुत ही जो है अहम हिस्सा है।”
आदमी, “अहम हिस्सा..? आखिर तो यहाँ गंदगी ही निकालनी है भैया।”
पुट्ठा, “वो तो तुम निकालते होंगे। यहाँ से मेरी रोज़ी रोटी चलती है भैया।”
आदमी, “तुम क्या सोने के अंडे देते हो क्या भैया?”
पुट्ठा, “हाँ देता हूँ, यही समझ लो।”
आदमी हंसता हुआ वहाँ से चला गया। धीरे धीरे ये बात फैलती गई और पूरे राज्य में पुट्ठा की चर्चा होने लगी।
ये खबर राजा तक गई। राजा ने अपने मंत्री को पुट्टा का गुसलखाना देखने भेजा।
मंत्री, “मैं राजा का खास मंत्री हूँ।”
पुट्ठा, “पधारिए मंत्री जी।”
तभी उसकी गंदी गैस निकल गई। मंत्री ने नाक बंद कर ली।
मंत्री, “मुझे तुम्हारे गुसलखाने में जाना है।”
पुट्ठा, “क्या आपको शौच लगी है?”
मंत्री, “नहीं, बस मुहायना करना है।”
पुट्ठा, “जरूर देखिए।”
मंत्री नाक बंद करके गुसलखाने के अंदर जाता है।
मंत्री, “अबे ये गुसलखाना है?”
पुट्ठा, “जी मंत्री जी, ये गुसलखाना है।”
मंत्री वापस आकर राजा को बताता है।
राजा, “क्या वो कोई राजकुमार है?”
मंत्री, “वो एक अनाथ गरीब लड़का है। न जाने कहाँ से उसके पास रातों रात इतने पैसे आ गए हैं
कि उसने इतना आलीशान महल जैसा घर बनवा लिया? और घर से भी ज्यादा आलीशान गुसलखाना।
महाराज, मुझे वो कोई जादूगर लगता है। देश को खतरा हो सकता है।”
राजा आदेश देते हैं कि पुट्टा को लाया जाए।
पुट्ठा, “महाराज की जय हो! आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया? क्या आप मेरा गुसलखाना देखना चाहते हैं
तो उसे देखने के लिए तो आपको घर आना होगा, मुझे यहाँ बुलाकर क्या फायदा?”
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राजा, “चुप रहो बत्तमीज। मुझे ये बताओ, तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए?”
राजा को गुस्से में देखकर पुट्ठा थोड़ा डर गया और उसने सारी सच्चाई राजा को बता दी।
पुट्ठा की बात सुनकर राजा और गुस्से में, “क्या कहा तुमने? जब तुम शौच करने जाते हो तो सोने का आम निकलता है?”
पुट्ठा, “जी महाराज, मैं सच कह रहा हूँ।”
राजा, “ठीक है।”
राजा, “सैनिको, सुबह जब ये शौच को जाए तो हम सब देखेंगे ताकि इसकी बात में कितनी सच्चाई है, पता चल जाए?
लेकिन याद रहे अगर तुमने झूठ कहा होगा तो हम तुम्हें आजीवन जेल में डाल देंगे।”
पुट्ठा, “जैसा आपका हुकुम महाराज!”
पुट्ठा को रात भर कैद खाने में रखा गया। दूसरे दिन सुबह उसे एक बड़े से मैदान के बीच में शौच करने को कहा गया।
पुट्ठा, “महाराज, मैं यहाँ कैसे शौच कर सकता हूँ?”
राजा, “अगर जिंदा रहना है तो करना तो तुम्हें यहीं पड़ेगा।”
पुट्ठा ने अपनी आँखें बंद की और मैदान के बीच में बैठ गया, जहाँ चारों तरफ बहुत सारे लोग बैठे हुए थे। उसके शौच करते ही सब ने बदबू से नाक पकड़ ली।
राजा, “सैनिको, देखो क्या वहाँ कोई सोने का आम है?”
सैनिक, “महाराज… महाराज यहाँ तो बस बदबू ही बदबू है और इस नामुराद ने तो ये रायता फैला रखा है। ऐ छी छी छी… कोई सोने काम नहीं है।”
राजा, “क्या..? क्यों झूठे, मक्कार, तू हमें क्या कहानी सुना रहा था? अब सही सही बता कि तुझे इतने पैसे कहाँ से मिले?”
पुट्ठा, “महाराज… महाराज, मैंने आपको सब सच बताया है, कुछ भी झूठ नहीं कहा। मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा है कि वहां सोने का आम क्यों नहीं निकला?”
राजा, “सोने का आम इसलिए नहीं निकला क्योंकि तुने झूट बोला।”
परी, “एक हिस्सा खुद पर खर्च करना और दूसरा हिस्सा तुम दूसरों की मदद करने के लिए खर्च करना, वरना जादू खत्म हो जाएगा।”
पुट्ठा, “मुझे लालच नहीं करना चाहिए था। अगर गरीबों की मदद करता रहता तो मेरी शर्मिली और क्रिस्टल भी मेरे साथ होते।
दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!