ठग साधु | THUG SADHU | Hindi Kahani | Moral Stories | Achhi Achhi Kahani | Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” ठग साधु ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक शहर में चोरों का आतंक ज्यादा बढ़ गया था। पुलिस स्टेशन में कभी कोई रिपोर्ट लिखवाने आता, तो कभी कोई।

उन चोरों की चोरियों से पुलिस बहुत परेशान हो गयी थी। फिर 1 दिन पुलिस स्टेशन में एक मीटिंग रखी गयी,

जिसमें चोरों को पकड़ने के लिए योजना बनाई गई और इस योजना से पुलिस ने पूरे शहर के चोरों के नाक में दम कर दिया था।

पुलिस एक के बाद एक चोरों को पकड़ रही थी। उन चोरों में से एक चोर बहुत चालक था

और वो ही पुलिस के हाथ नहीं आता है। और जैसे तैसे बचकर एक जगह जाकर छिप जाता है।

और अपने आप से बोलता है, “मुझे कुछ दिन के लिए ये काम छोड़ना होगा और इस शहर को भी छोड़ना होगा।

क्यों ना मैं अपनी वेशभूषा बदल लेता हूँ? नहीं तो ये पुलिस वाले मुझे भी जेल में बंद कर देंगे।”

वो ये सोच ही रहा था कि तभी उसके आगे से एक साधू जा रहे होते हैं।

चोर, “अरे वाह! मैं भी साधू बन जाता हूँ क्योंकि इस दुनिया में लोग चोरों को जूता मारते हैं, लेकिन अगर वही चोर साधू बन जाए तो उसके पैरों में पड़े रहते हैं।”

वो पुलिस से छिपता हुआ एक दुकान से साधू के कपड़े खरीद लेता है और साधू बनकर घूमता है।

वो अब चंपक चोर से चंपक साधू बन जाता है।

कुछ दिनों बाद ऐसे ही घूमते हुए वो एक गांव की ओर निकल जाता है और गांव के एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है।

थोड़ी देर बाद एक आदमी उससे पूछता है, “साधु बाबा, आप कौन हैं और कहाँ से आए?”

चंपक, “मैं एक साधु हूँ। मैं यहाँ से गुजर रहा था। थक गया था, तो ये पेड़ देखकर बस आराम करने लगा।”

आदमी, “साधु बाबा, आप कुछ खाएंगे? मैं आपके लिए अपने घर से भोजन ला देता हूँ, जब तक आप यहाँ पर आराम कीजिए।”

थोड़ी देर बाद वो आदमी चम्पक साधु के लिए भोजन ले आता है और साधु से बात करते करते वो साधु की बातों में आ जाता है।

और उसे अपने और गांव के बारे में सब कुछ बता देता है। चम्पक साधु के पास एक कला थी, वो बोलने में बहुत माहिर था।

वो इतने अच्छे अच्छे प्रवचन देता था जिससे लोग उस चम्पक साधु की बातों में आ जाया करते थे।

धीरे धीरे करके गांव के सभी लोग उससे मिलने आने लगे और वो इसी गांव में रहने लगता है।

और थोड़े ही दिन बाद गांव वाले मिलकर चंपक साधु के लिए एक आश्रम बनवा देते हैं

और कुछ दिनों बाद चंपक साधु के बहुत से शिष्य बन जाते हैं और उसे मुफ्त में सभी चीजें मिलने लगती है।

उसे हर चीज़ का सुख था, बस उसे सांसारिक जीवन से छूटने का दुख रहता था।

चम्पक साधु अपने आश्रम में घूम रहा था कि तभी उसके आश्रम में एक सेठ आया।

उस सेठ को भी पाखंडी साधु ने अपने बोलने की कला से प्रभावित कर लिया था।

साधु बाबा मेरे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है। लेकिन फिर भी मुझे एक परेशानी है।

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चंपक, “हाँ बेटा बोलो, क्या परेशानी है? बाबा से कुछ मत छुपाओ, मुझसे कभी कुछ नहीं छुपता है।

बताओ, क्या परेशानी है? मैं तुम्हारी सारी परेशानी दूर कर दूंगा।”

सेठ ने सोचा, “क्यों न मैं अपना सारा सोना साधु के आश्रम में रख दूं?

और वैसे भी साधु लोगों को तो धन संपत्ति का कोई भी मोह नहीं होता, वो तो भगवान का रूप होते हैं

और किसी को कोई ऐसे देवता पर शक नहीं होगा कि उनके आश्रम में इतना सोना गढ़ा हुआ है।”

चंपक, “क्या हुआ बेटा, तुम किस चिंता में खो गए?”

सेठ, “नहीं नहीं बाबा, वो ना मेरे पास बहुत सोना है। लेकिन मुझे चोरों का बहुत डर है।

गांव में सबको पता है कि मैं सेठ हूँ, तो मेरे पास बहुत पैसा और सोना होगा।

मुझे यही डर है, इसी कारण मैं रात को भी सो नहीं पाता हूँ। मैं चाहता हूँ कृपया करके आप मेरा सारा सोना अपने आश्रम में रख लीजिए।”

सेठ की ये सारी बातें सुनकर चम्पक साधु के मन में लड्डू फूटने लगते हैं।

चंपक, “हाँ हाँ क्यों नहीं? बस इतनी सी बात। तुम एक काम करो, आज ही आश्रम के बगीचे में गड्ढा खोदकर उसमें सारा सोना रख दो।”

सेठ, “जी साधु बाबा, मैं भी यही सोच रहा था कि मैं अपना सारा सोना आपके आश्रम में रख दूं। मैं शाम में सारा सोना ले आऊंगा।”

फिर शाम में सेठ दो से तीन बड़ी बड़ी पोटलियों में अपना सारा सोना ले आता है। फिर क्या था..?

पोटलियों को देखते ही चंपक साधु की तो आँखें फटी की फटी रह गई। उसकी आंखें तो सोने की पोटलियों से हट ही नहीं रही थी।

फिर उस सेठ ने वो सोने की पोटली आश्रम के बगीचे में गड्ढा करके उसमें दबा दी और अपने घर लौट आया।

सेठ को लगा कि अब तो मेरा सारा सोना साधु बाबा के पास है, वहाँ मेरा सोना सुरक्षित है। और वो रात को आराम से सोया।

सेठ तो सो गया, लेकिन अब चंपक साधु को नींद कहाँ आनी थी? वो रात भर उस सोने के बारे में सोचता रहा।

फिर तभी वो चंपक साधु अपने आप से बोलता है, “अगर ये सोना मुझे मिल जाए तो मैं अपना पूरा जीवन आराम से गुजार सकता हूँ।”

कुछ समय बीतने पर साधु ने एक योजना बनाई। उसने सोचा कि वो इस सोने को लेकर चला जाएगा और सेठ को शक ना हो

और अब इस गांव को छोड़कर जाने की बात कहेगा ताकि सेठ को ये ना लगे कि साधु उसका सोना लेकर भाग गया है।

इसीलिए वो चंपक साधु सेठ के घर जाता है। सेठ चंपक साधु को अपने घर आता देख खुशी से झूम जाता है।

और अपनी बीवी से बोलकर उसके लिए कई पकवान बनाने के लिए बोलता है और वो चम्पक साधु की बहुत खातिरदारी करता है।

फिर चम्पक साधु सेठ से बोलता है, “सुनो सेठ धनीराम, मुझे अब यहाँ से जाना है।

क्योंकि मैं एक सन्यासी हूँ और मैं किसी एक जगह नहीं रह सकता हूँ। मुझे और भी कई लोगों को मार्गदर्शन देना है, इसलिए मैं अब यहाँ से जा रहा हूँ।

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मैं बस तुमको बताने आया था कि तुम्हारा सारा सोना वहीं आश्रम के बगीचे में दबा हुआ है।

क्योंकि मैं तो जा रहा हूँ और अगर तुम्हारे सोने के साथ कुछ भी होता है। तो मेरा नाम न आए, क्योंकि मैं तो एक साधु हूँ।

मुझे तो धन संपत्ति से कोई मोह नहीं है। ये सब सुनकर सेठ दुखी हो जाता है और फिर ऐसा बोलकर चंपक साधु वहाँ से चला जाता है।

तभी सेठ के साथ में एक व्यापारी बैठा होता है और वो ये सब सुन रहा होता है और तभी सेठ से पूछता है, “सेठ धनीराम, ये साधु कौन है?”

तब सेठ व्यापारी को पूरी बात बताता है, जिसे सुनकर व्यापारी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता है।

सेठ व्यापारी को हंसता देखकर बोलता है, “अरे भाई! क्या हो गया? तुम ऐसे क्यूँ हंस रहे हो?”

व्यापारी, “अरे! तुम तो मूर्ख हो। वो धोखेबाज साधू तुमको लूट कर ले गया।”

सेठ, “अरे भाई! कैसी बात कर रहे हो? वो एक संत है और बहुत ज्ञानी है।”

व्यापारी, “अगर तुमको मुझ पर विश्वास नहीं है तो तुम्हे अपना सारा सोना बचाना है, तो उस जंगल चलो जहाँ सोना दबाया था।”

सेठ व्यापारी को आश्रम के बगीचे में लेकर जाता है और खुदाई करता है, लेकिन उसे वहाँ कुछ नहीं मिलता है। सोना ना मिलने पर सेठ ज़ोर ज़ोर से रोने लगता है।

व्यापारी, “अरे भाई सेठ धनीराम! ये वक्त रोने का नहीं है। जल्दी चलो, वो धोखेबाज साधु अभी दूर तक नहीं गया होगा।”

फिर जल्दी से भागते हुए वो दोनों पुलिस स्टेशन जाते हैं और पुलिस को सब कुछ बता देते हैं।

फिर पुलिस उस धोखेबाज साधु को ढूंढ लेती है।

पुलिस इंस्पेक्टर गांव में सभी को बताते हैं, “ये वास्तव में कोई साधू बाबा नहीं, ये एक चोर था

जिसने अपनी बोलने की कला का इस्तेमाल करके कई लोगों को लूटा है और पुलिस से बचने के लिए इसने साधु की वेशभूषा धारण कर ली है।”

फिर पुलिस चंपक बाबा उर्फ चंपक चोर को पकड़ कर जेल में बंद कर देती है और इधर सोना मिलने के बाद सेठ की जान में जान आती है।

सेठ (व्यापारी से), “तुम्हें कैसे पता चला कि ये साधु धोखेबाज है?”

व्यापारी, “वो साधु बार बार अपने आप की तारीफ कर रहा था और संत कितने महान होते हैं, वो बार बार यही बोल रहा था।

जबकि जो सच मायने में संत होते हैं, उन्हें इस बात को बोलने की जरूरत नहीं पड़ती है।

इसलिए भाई आज के समय में जो साधू बनकर प्रवचन देते हैं वो सभी संत नहीं होते हैं।”

सेठ को ये बात समझ आ जाती है कि किसी पर भी अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि किसके मन में क्या चल रहा है, हम इसे कभी नहीं समझ पाते हैं?


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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