कमरा न० 307 | Room no. 307 | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – कमरा न० 307। यह एक Horror Story है। तो अगर आपको भी Daravani Kahaniya, Bhutiya Kahani या Scary Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

कमरा न० 307 | Room no. 307 | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi

Room no. 307 | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi



 कमरा न० 307 

ये कहानी आज से 3 साल पहले की है। जब मैं अपनी पत्नी सविता के साथ एक ट्रिप पर गया था। एक ऐसा ट्रिप जहाँ सिर्फ मैं, वो और हमारा रोमांस था। 
लेकिन वहाँ कमरा नंबर 307 में बिताई एक रात की वजह से मानो मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। जिसे याद करके आज भी मेरा रोम रोम कांप उठता है। 
3 साल पहले वो आज ही का दिन था जब हिमाचल की शादियों में हम एक दूसरे में खोए हुए थे। 
ट्रिप का वो आखिरी दिन था इसलिए हमने डिसाइड किया कि वापस जाने से पहले हम एक बार फिर से आस पास की सभी जगह का राइड मारेंगे।
शाम के करीब 5 बजे थे जब हम होटेल से कार लेकर राइड के लिए निकले। हिमाचल की वादियों में जहाँ हर कोई भी मदहोश हो जाए, वहाँ की प्रकृति की सुंदरता को देखकर। 
और फिर मेरे साथ तो मेरी हमसफर भी थी जिससे यह सफर और भी सुहाना हो गया। हम जगह जगह पर रुकते, सेल्फी लेते और जहाँ कहीं जगह मिलती तो हम रोमैंस करने से भी पीछे नहीं हटते। 
ऊंची पहाड़ी पर सविता को अपनी बांहों में भर के सनसेट देखने का भी अलग ही मज़ा था पर ये सब करते करते हम काफी दूर निकल गए थे। इतना कि हमें समय का भी पता नहीं चला कि रात के 10 बज गए थे। 
वैसे तो हम होटल से चेकआउट करके निकले थे और प्लैन ये था कि रात को कहीं रास्ते में ही स्टे करते हुए सुबह घर को निकल लेंगे। 
पर अब हमारा प्लैन यह बना कि हम नाइट ड्राइव करते हुए घर निकलेंगे। एक छोटे से ढाबे पर हम डिनर के लिए रुक गए। 
थोड़ा रेस्ट लेने के बाद हम वापस वहाँ से निकलने लगे। मैं बोल ही रहा था कि हम इस शॉर्टकट से निकल लेते हैं, इतने में ढाबे वाले आदमी ने कहा।
आदमी,” ना ना साहब, यूं आधी रात को यू रास्ता ना लीजिये। बहुत किस्से सुने हैं मैंने। जब भी कोई नया जोड़ा उस रास्ते से गुजरता है तो वो उसकी जान ले लेती है। 
कहते तो ये भी हैं कि उन्हें किसी खास जोड़े की तलाश है जिससे उन्हें नया शरीर मिले सके। जब तक उन्हें वो खास जोड़ा ना मिल जाए, वो उनकी कब्र खोदती रहेगी। “
मैंने उस ढाबे वाले की कहानी सुनी तो ज़ोर से हँस पड़ा और जाके गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी में बैठ के मैं हंसे ही जा रहा था तभी सविता ने मुझसे कहा।
सविता,” विनोद, तुम्हें इस तरह से उसकी बातों पर हंसना नहीं चाहिए। क्या पता वो सच बोल रहा हो ? “
मैंने गाड़ी स्टार्ट करते हुए के हाथ को चूमा और कहा।
विनोद (मैं),” जानेमन, ऐसा कुछ नहीं है। गांव के लोग कहानी बनाने में एक्स्पर्ट होते हैं। तुम ध्यान मत दो। 
अब तुम्हारा हमसफ़र तो तुम्हारे ही सामने बैठा है जिससे तुम्हे कोई नहीं बचा सकता है। “
सविता ने मुस्कुराते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिया और कहने लगी।
सविता,” इस हमसफ़र से तो मैं बचना भी नहीं चाहती। “
मैंने गियर बदला और गाड़ी को शॉर्टकट की तरफ मोड़ दिया जिसके बाद रोमैन्टिक म्यूजिक के साथ हमारा सफर अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगा। 
रात के करीब 1 बज रहे थे और पहाड़ी के उस आड़ी तिरछी सड़क पर भी मेरी नज़र कभी सामने सड़क पर होती तो कभी सविता की आँखों में। 
एक हाथ स्टीयरिंग के ऊपर तो दूसरा सविता के हाथ में। दोनों इस रोमैन्टिक सफर का मज़ा ले रहे थे और आगे बढ़े जा रहे थे।
थोड़ी देर बाद गाड़ी कटीले रास्ते से हाईवे की तरफ बढ़ गई थी। रास्ता बिल्कुल सीधा था इसीलिए मैं सड़क से ध्यान हटाकर सविता के हाथ को चूमने लगा। सविता ने मुझसे कहा।
सविता,” फिलहाल तुम गाड़ी चलाने पे कॉन्सन्ट्रेट करो। “
मैंने रोमैन्टिक अंदाज में जवाब दिया।
मैं,” अब तुम अपने हमसफ़र को रोक रही हो। “
मैं उसकी आँखों में देखकर कह ही रहा था कि उससे पहले वो मेरी तरफ देखते हुए चिल्लायी। 
सविता,” विनोद, संभाल के… बच्ची है। “
मैं गाड़ी को संभाल पाता उससे पहले हमारी टक्कर एक बच्ची है और इसके पीछे आती औरत से हो गई। गाड़ी के नीचे एक बड़ा सा पत्थर आ गया जिससे गाड़ी अचानक से रुक गई । 
अभी हमारी किस्मत अच्छी थी जो हम बच गए नहीं तो हमारी गाड़ी पलट भी सकती थी। 
गाड़ी के रुकते ही सविता ने खुद को सम्भाला और बाहर उन्हें देखने चली गयी जो हमारी गाड़ी से टकराए थे। उसके पीछे मैं भी भागा भागा बाहर गया।
बाहर दूर दूर तक हमें कुछ दिखाई नहीं दिया। सड़क बिल्कुल साफ जैसे कुछ हुआ ही ना हो। मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि हमारी गाड़ी से टक्कर हुई तो हुई किसकी ? 
मुझे तो यही लगा कि ये मेरा वहम था। किसी की टक्कर मेरी गाड़ी से हुई है या फिर ऐसा हुआ है कि कोई परिंदा टकरा गया है ?
पर मेरी पत्नी सविता ये मानने को तैयार नहीं थी। वो पता नहीं किस बच्ची और औरत की बात कर रही थी। 
मैंने कैसे भी उसे समझाया और वापस गाड़ी में बिठाया। पर जैसे ही मैंने गाड़ी स्टार्ट की, बोनट में से धुआं निकलने लग गया और गाड़ी बंद हो गयी।
मैंने सोचा चेक करूं कि आसपास कोई गैराज है या नहीं ?
पर ये क्या… मोबाइल में तो नेटवर्क ही नहीं था। तभी मेरी नजर सामने एक बोर्ड पर गई जिसपर लिखा था… होटेल 200 मीटर।
मैं सविता के साथ साइनबोर्ड के डायरेक्शन में ही चला गया जहाँ मुझे होटेल तो नहीं पर एक कब्रिस्तान मिला जिसके मेन गेट के ऊपर आधे चाँद जैसे बोर्ड पर ‘स्वर्ग से शमशान’ लिखा था। सविता को ये बोर्ड बहुत अजीब लगा और उसने कहा।
सविता,” भला कब्रिस्तान का नाम ऐसा कौन रखता है ? “
तभी मेरा ध्यान दूसरी तरफ सड़क के नीचे एक तीन मंजिला प्रॉपर्टी पर गया और मैंने कहा।
मैं,” इसे छोड़ो और सामने देखो, लगता है कोई होटेल ही है। चलो, चलकर देखते हैं। “

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सड़क पार करके जैसे ही हम होटेल के करीब पहुंचे तो हमने पाया होटेल का नाम ‘स्वर्ग’ है। 
सविता के मन में होटेल का नाम खटक गया क्योंकि सामने कब्रिस्तान के नाम ‘स्वर्ग से शमशान’ था। वो कुछ बोलती, इससे पहले मैंने उत्तर दिया। 
मैं,” कुछ मत सोचो। तुम थक चुकी हो। चलो, अंदर चलते हैं। “
अंदर जाते ही ऐसा लगा जैसे हम किसी पुरानी हवेली में आ गए। ऐसा लग रहा था जैसे पूरे होटेल को एशियन थीम में बनाया गया हो। 
हर तरफ डिम लाइट और बारीकी से तलाशी गईं मूर्तियां। इधर उधर देखते हुए हम रिसेप्शन पर पहुँच गए‌। 
आवाज लगाने पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बगल वाले कमरे से निकल के आया। वो एकदम बुझा बुझा सा कहता है।
आदमी,” आइये, स्वागत है आपका। “
मैं,” एक कमरा चाहिए हमें आज रात के लिए। “
मेरी इस बात पर वो हंसते हुए कहने लगा।
आदमी ,” सर, वैसे भी एक रात ही है। “
सविता ने उसकी आवाज़ को सुन लिया और उसने आपत्ति जताते हुए कहा।
सविता,” मतलब क्या है आपका ? “
अजीब मुस्कुराहट के साथ वो जवाब देता है।
आदमी,” मैं एक दिन भी आप की सेवा कर पाऊँ, वो काफी है मेरे लिए। चाबी लीजिए… कमरा नंबर 307। चाबी देते हुए वो वापस अपने कमरे में जाने लगा।
सविता उससे पूछती है कि यहाँ सिर्फ हम हैं या कोई और भी है ?
आदमी,” कमरा नंबर 307 ही आखरी है। अब यहाँ कोई नहीं आएगा। “
वो आदमी अपने कमरे में चला गया। इधर मैं भी सविता के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ गया लेकिन उस पर No Service का बोर्ड लगा था। 
इसीलिए हमें सीढ़ी से ऊपर जाना पड़ा। ग्राउंड फ्लोर से हम थर्ड फ्लोर पर पहुँच गए। लेकिन इस पूरे होटल में हमें कोई दिखा नहीं। 
हर तरफ बस सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा था जैसे कि इस वीरान होटेल में हमारे सिवाय और कोई है ही नहीं। 
मैं रूम खोल के अंदर चला गया लेकिन सविता अब भी देहरी में खड़ी अगल बगल की तरफ के कमरों को देख रही थी ताकि उसे कोई और दिख जाये। पता नहीं उसके दिमाग में क्या चल रहा था ?
हो ना हो उस ढाबे वाले की बात उसके दिमाग में खनक गयी थी इसीलिए मैंने उसे आवाज लगाकर अंदर बुला लिया। 
फिर हम दोनों फ्रेश होकर बेड पर आ गए। सविता मुझे अभी परेशान लग रही थी। उसके बालों को मैंने पीछे करते हुए पूछा।
मैं,” क्या हुआ ? इतनी परेशान क्यों हो ? “
उसने मेरे सीने पर सिर रखते हुए कहा।
सविता,” पता नहीं क्यों ? पर मुझे सब अजीब अजीब सा लग रहा है। “
मैंने उसे अपने आगोश में ले लिया और बड़े ही प्यार से कहा।
मैं,” कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है। तुम्हें थोड़ा आराम कर लेना चाहिए। चलो, आँखें बंद करो अपनी। “
सविता ने अपनी आँखें बंद करली। फिर मैंने भी अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपना हाथ उसके सिर पर सहलाने लगा। 
ऐसा करते करते मैं खुद कब सो गया, ये मुझे भी पता ही नहीं चला ? उस वक्त घड़ी में करीब 2:30 बज रहे थे।
सविता के सपने में…
सविता की आँखों में अभी भी नींद गायब थी। वो एक नजर घूमते हुए पंखे को देखे जा रही थी और उसके मन में बेचैनी थी। 
इसीलिए उठकर बाल्कनी में चली गयी जहाँ ठंडी हवाओं का झोंका चल रहा था। 
अचानक से उसकी नज़र गेट से भाग के आ रही एक बच्ची पर पड़ी जिसके पीछे वो औरत भी थी। सविता को ये विश्वास हो गया कि ये दोनों वही हैं जिसकी टक्कर गाड़ी से हुई थी। 
सविता तुरंत भागकर मेरे पास आई लेकिन मैं काफी गहरी नींद में था। इसलिए वो खुद उन्हें नीचे देखने चली गयी। नीचे पहुंचते ही।
उस बच्ची के हंसने की आवाज सुनाई देने लगी जो इस वक्त उस कमरे से आ रही थी जिसमें होटेल का वही अधेड़ उम्र का आदमी रहता है। 
सविता उस कमरे के पास पहुंची। लेकिन जैसे ही वह दरवाजे के पास रुककर उनकी आवाज सुनने की कोशिश करती है, बच्ची के हंसने की आवाज अचानक से रुक जाती है और ऐसी आवाज आती है जैसे कि कोई चल के दरवाजे की तरफ आ रहा हो।
सविता उस दरवाजे से कान लगाकर सुनने लगती है। तभी झटके के साथ दरवाजा खुल जाता है और उसे एहसास होता है जैसे कोई भागकर उसके सामने से निकल गया हो। पर उसे कोई दिखा क्यों नहीं ?
अब वो पहले कमरे में झांककर देखती है। लेकिन वहाँ कोई नहीं होता है। अचानक से No Service लिखे हुए लिफ्ट का दरवाजा खुल जाता है।
जिसे देखते ही सविता अपने मन में भरे डर के साथ उस लिफ्ट के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगती है। 
लेकिन लिफ्ट का दरवाजा वापस बंद होने लगता है जिसे देखकर सविता दौड़कर उसकी तरफ बढ़ती है ताकि वो लिफ्ट को रोक सके। लिफ्ट का दरवाजा वापस से खुल जाता है। 
लेकिन सविता सच में पड़ जाती है कि वो लिफ्ट में चढ़े या न चढ़ें ? ऐसे में उसे लगा कि उसे किसी ने पीछे से ज़ोर से धक्का दिया और वो लिफ्ट में जा गिरी और दरवाजा बंद। 
लिफ्ट कभी ऊपर जाती तो कभी नीचे। सविता खुद को संभाल नहीं पा रही थी। कैसे भी करके वो बटन्स के पास पहुंची लेकिन कंपकपाती लाइट और बार बार लिफ्ट ऊपर नीचे जाने के कारण वो सही से बटन भी नहीं दबा पा रही थी। 
इसके साथ ही लिफ्ट में बच्ची के हंसने की डरावनी आवाज भी गूंजने लगी। सविता के डर के मारे पसीने छूटने लगे। 
वो बार बार खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी कि इतने में किसी ने उसके बाल को जोर से पकड़ा और लिफ्ट के दरवाजे पर जोर से दे मारा।
सविता चीखते हुए नींद से उठी। तब तक का यह खतरनाक मंजर उसके सहन में चल रहा था। 
सविता की चीख से मेरी भी नींद टूट गयी। फिर… क्या हुआ ? यह पूछने पर उसने सपने की पूरी बात बताई जिसे सुनकर मैंने उससे कहा।
मैं,” ऐसे वक्त में तुम्हें ज्यादा स्ट्रेस नहीं लेना चाहिए। क्योंकि तुम्हारे अंदर भी कोई है। उसका भी ख्याल तुम्हें ही रखना है। अभी सो जाओ तुम, ठीक है ? “

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एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सविता मेरे सीने पर सिर रखकर सो गयी। अगली सुबह हम दोनों नीचे पहुंचे तो हमने पाया कि गाड़ी हमारे होटल के दरवाजे पर लगी है और वह अधेड़ उम्र का आदमी गाड़ी के बगल में खड़ा है।
मैं,” यह गाड़ी यहां ? “
आदमी,” विनोद बाबू, आपकी गाड़ी ठीक हो गयी। “
मैं यह देखकर काफी खुश हो गया। पर साथ ही मेरे मन में ये सवाल भी घूमने लगा कि इन्हें कैसे पता कि मेरी गाडी खराब हो गयी थी ?
मैं कुछ पूछता, इससे पहले सविता ने मुझसे कहा।
सविता ,” चलो, मुझे बस अब जल्दी से घर जाना है। “
मैंने गाड़ी स्टार्ट की और स्लोली स्लोली आगे बढ़ने लगा। आदमी हाथ हिलाते हुए हमें अलविदा कहने लगा। पर हमने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं फिर भी वो आदमी हमें अलविदा किये जा रहा था।
वो हमें नहीं बल्कि गाड़ी के पिछले की सीट पर बैठी उस माँ बेटी को अलविदा कर रहा था। 
यह दोनों हमारे साथ क्यों जा रहे थे ? कहीं वो खास जोड़ा हम ही तो नहीं जिसकी उन्हें तलाश थी‌ ? जानने के लिए कमरा नंबर 307 के अगले भाग को जरूर पढ़ें।

 कमरा न० 307 – (भाग 2) 

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