हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – “ चतुर पत्नी ” यह एक Pati Patni Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahani, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Chatur Patni | Hindi Kahani | Moral Stories in Hindi | Kahaniya |Bed Time Story | Hindi Stories
उदयपुर गांव में एक अलसी ज्ञानचंद रहा करता था। वह रोज़ सुबह उठता, पूजा करता, खाना खाता और सो जाया करता जिसकी वजह से उसकी पत्नी बहुत परेशान रहा करती थी।
एक दिन ज्ञानचंद भरी दोपहरी में अपनी झोपड़ी में सो रहा होता है।
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे रे ! अब तो उठ जाइए जी। अरे दैया ! आखिर कब तक यूं ही सोते रहोगे ? सुबह से दोपहर हो गई है जी, उठ जाइए।
जाकर अपने खेत देख आइए ना। इस बार की भी अपनी फसल अच्छी नहीं हुई है, हाँ। “
ज्ञानचंद,”अरे रे ! क्यों तंग करती हो भाग्यवान ? ये मेरा सोने का समय है। मेरा राहु बता रहा है कि अभी बाहर जाना मेरे लिए शुभ नहीं होगा।
अभी खेत में जाऊंगा तो जरूर कोई अपशगुन होगा, हाँ। तुम एक काम करो भाग्यवान, मेरे लिए भोजन ले आओ। मुझे बहुत भूख लगी है। जाओ, लेकर आओ भोजन। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” हे भगवान ! कैसा आलसी पति दिया है मुझे जिसे बस सोना और खाना ही आता है। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” सुनिए जी… थोड़ी देर पहले ही तो भोजन किया था आपने और अभी फिर से…।
हे भगवान ! दिनभर में कोई तो काम करते नहीं आप। हाय हाय ! ये किस आदमी के साथ बंध गई मैं ? दैया रे दैया…। “
ज्ञानचंद की पत्नी रसोई में जाती है और ज्ञानचंद के लिए भोजन परोसकर लेकर आती है।
ज्ञानचंद की पत्नी,” ये देखिये जी, मैं आपके लिए भोजन ले आयी हूँ। अब तो उठ जाइए ना। “
ज्ञानचंद,” अरे वाह वाह ! कितनी अच्छी खुशबू है भोजन की ? लाओ लाओ भाग्यवान, भोजन दो मुझे। वाह वाह वाह…। आज तो तुमने गुड़ का चूरमा भी बनाया है।
अरे वाह भाग्यवान ! मज़ा आ गया। बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाती हो तुम तो, हाँ। अरे वाह वाह… तुम्हारा तो कोई जवाब ही नहीं है भाग्यवान। बहुत ही मजेदार, हाँ। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” वो सब तो ठीक है जी, लेकिन अभी आप बाजार से थोड़ा अनाज ले आइये। घर में अनाज खत्म होने को है। ऐसे में मैं क्या भोजन बनाउंगी ? “
ज्ञानचंद,” क्या कहा भाग्यवान, अनाज खत्म होने को है ? अच्छा अच्छा ले आऊंगा कल सुबह जाकर, अभी बाहर जाना अपशकुन होगा।
अभी तो तुम्हारे हाथ का स्वादिष्ट भोजन खाकर मुझे बहुत थकान हो गयी है। अभी मैं भाग्यवान ऐसा करता हूँ कि सो जाता हूँ। अच्छा… मैं सोता हूँ। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” हे भगवान ! आपको तो दिन भर सोने के अलावा कुछ नहीं सूझता। जब देखो तब आलस… मैं बहुत तंग आ गयी हूँ आपसे।
अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं अपने मायके चली जाउंगी, हाँ। बताए देती हूँ आपको। “
ज्ञानचंद,” अच्छा अच्छा ठीक है भाग्यवान, बाद में सोचूंगा इस विषय के बारे में। अभी मुझे नींद आ रही है, हाँ। तुम मुझे सोने दो, हाँ। “
इसके बाद ज्ञानचंद खर्राटे लेता हुआ सो जाता है। अगली सुबह एक साधू महाराज ज्ञानचंद के घर भिक्षा मांगने आते हैं।
साधू,” अरे ! कोई है ? साधू को भिक्षा दे दो। भिक्षां देहि। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे साधु महाराज ! क्या चाहिए आपको ? बताइए मुझे, मैं अभी लाकर देती हूँ, हाँ। “
साधू,” बेटी, मैं काशी यात्रा से लौटा हूँ। मुझे बहुत भूख लगी है। अगर खाने को थोड़ा भोजन मिल जाता तो थोड़ी शांति मिलती, बेटी। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे ! हाँ… क्यों नहीं साधु महाराज ? आइये आइये, हमारी झोपड़ी में आइए। मै अभी आपके लिए भोजन लेकर आती हूँ, हाँ। “
ज्ञानचंद (सोता हुआ),” अरे ! क्या हुआ भाग्यवान ? क्यों चिल्ला रही हो ? अरे ! मुझे मेरी नींद से जगा दिया तुमने। आखिर किससे बात कर रही हो ? “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे दैया रे दैया ! उठ गए आप..? ये तो चमत्कार ही हो गया। देखिए जी, काशी से साधू महाराज आये हैं हमारे द्वार पर। “
ज्ञानचंद साधू महाराज को देखकर थोड़ा खुश हो जाता है।
ज्ञानचंद,” अरे ! माफ़ कीजियेगा महाराज जी। आइये आइये, आप अंदर आइये। वाह वाह ! सुबह सुबह आपके दर्शन पाकर तो मैं धन्य ही हो गया। “
जिसके बाद साधू ज्ञानचंद की झोपड़ी में आकर बैठ जाते हैं।
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! जल्दी से महाराज के लिए भोजन लेकर आओ। जाओ जाओ, जल्दी जाओ… जल्दी से लेकर आओ। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” मैं अभी भोजन लेकर आती हूँ साधू महाराज जी के लिए। बस मैं अभी गयी अभी आयी। “
ज्ञानचंद की पत्नी साधू के लिए भोजन से भरी थाली लेकर आती है।
ज्ञानचंद की पत्नी,” ये लीजिये महाराज, भोजन कीजिये। कीजिए कीजिए, खाकर बताइए मेरे हाथों का भोजन कैसा लगा आपको ? “
भोजन खाकर…
साधू,” अरे वाह वाह ! बहुत ही स्वादिष्ट भोजन था। मेरी तो आत्मा ही त्रप्त हो गयी। बेटा, सच में तुम्हारी पत्नी के हाथों में तो माँ अन्नपूर्णा का स्वाद है।
बेटी, बहुत खूब… मैं बहुत खुश हुआ। इसलिए तुम कोई भी मुझसे एक इच्छा मांग सकती हो। “
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तभी ज्ञानचंद ये सुनकर खुश हो जाता है।
ज्ञानचंद,” क्या सच में महाराज, आप मेरी एक इच्छा पूरी कर सकते हैं ? अगर ये सत्य है महाराज तो मुझे वरदान दे दीजिये कि मुझे जीवन में कभी कोई कार्य ना करना पड़े। महाराज, मैं पूरा जीवन आराम करके ही बिताना चाहता हूँ, हाँ। “
ये बात सुनकर साधू महाराज थोड़ा हैरान हो जाते हैं।
साधू,” ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा ? यह मनुष्य जीवन है। मनुष्य को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए अपने दैनिक कार्य तो करने ही पड़ते हैं। तुम्हारी इच्छा श्रृष्टि के नियम के विरुद्ध है, बेटा। “
ज्ञानचंद,” महाराज, आपने कहा ना कि आप मेरी एक इच्छा पूरी कर सकते हैं। तो मैंने आपको अपनी एक इच्छा बता दी।
महाराज, अगर अब आपने मेरी इच्छा पूरी नहीं की तो यह आपके बोले गए शब्दों का अपमान होगा। “
तभी ज्ञानचंद की ये बात सुनकर साधू थोड़ा सोच में पड़ जाता है।
साधू,” अच्छा तो ठीक है। अगर यही बात है तो हम तुम्हारी इच्छा अवश्य ही पूरी करेंगे। अब हम अपने शब्दों को वापस नहीं ले सकते है। हम तुम्हारी इच्छा अवश्य ही पूरी करेंगे। “
तभी साधु अपनी चमत्कारी शक्तियों से एक हरे रंग का भयानक रक्षा प्रकट करता है।
साधू,” डरो मत, यह जादुई राक्षस है। यह तुम्हारी हर इच्छा पूरी करेगा। तुम्हारी इच्छा है कि तुम जीवन में कभी कोई कार्य ना करो तो ये जादुई राक्षस तुम्हें कोई कार्य नहीं करने देगा।
तुम्हें जो भी कार्य करवाना होगा, ये जादुई राक्षस कर देगा। लेकिन याद रखना… इस जादुई राक्षस को तुम्हें हमेशा किसी ना किसी कार्य में ही व्यस्त रखना होगा क्योंकि जिस दिन इस राक्षस के पास करने को कोई कार्य नहीं होगा, ये तुम्हें ही खा जाएगा। “
इतना कहकर साधू वहां से चले जाता है। तभी ये बात सुनकर ज्ञानचंद की पत्नी थोड़ा डर जाती है। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” नहीं नहीं, ये आपने क्या कर दिया जी ? आपने आलस में आकर साधू महाराज जी से कैसी मूर्ख इच्छा मांग ली ?
मुझे तो आपके लिए बहुत चिंता हो रही है जी। अगर किसी दिन इस भयानक दिखने वाले राक्षस ने आपको ही खा लिया तो मैं क्या करूँगी जी ? “
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! तुम व्यर्थ में ही चिंता कर रही हो। ऐसा कुछ नहीं होगा। अब तुम देखना… मैं इस राक्षस से कैसे सारे कार्य करवाता हूँ, हाँ ?
अब तो मुझे कोई कार्य ही नहीं करना पड़ेगा। और भाग्यवान तुम्हें भी मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी, हाँ। “
राक्षस,” मनुष्य, बोलो मैं तुम्हारा क्या कार्य कर सकता हूँ ? क्या आदेश है तुम्हारा..? जल्दी बताओ वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा। “
ज्ञानचंद,” जाओ जादुई राक्षस, बाजार जाकर अनाज की बोरियां ले आओ जाओ। घर में अनाज की बोरियां नहीं है। “
राक्षस,” ओह ! ठीक है, अभी जाता हूँ और लेकर आता हूँ अनाज की बोरियां। “
वह राक्षस अचानक से गायब हो गया और तुरंत ही अनाज की बोरी ले आता है जिसे देखकर ज्ञानचंद और उसकी पत्नी हैरान हो जाते हैं। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे जादुई राक्षस ! तुम इतनी जल्दी अनाज की बोरी ले आयी ? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। “
राक्षस,” मैं कोई साधारण राक्षस नहीं हूँ बल्कि एक मायावी राक्षस हूँ। इसलिए जो भी तुम मुझे कार्य करने को दोगे, उसे मैं अपनी मायावी शक्ति से पलभर में ही कर दूंगा। अब बताओ और क्या कार्य करना है ? वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा। “
ज्ञानचन्द थोड़ा सोच में पड़ जाता है।
ज्ञानचंद,” अच्छा अच्छा ठीक है, तुम यहाँ से मेरे खेत में जाओ और जाकर सिंचाई कर दो। “
राक्षस,” ठीक है, मैं तुम्हारे खेत की सिंचाई करके अभी आया। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” सुनिए जी, मुझे तो बहुत डर लग रहा है। ये जादुई राक्षस तो सच में बहुत भयानक है जी। अगर सच में इसने आपको कुछ कर दिया तो ? “
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! तुम देख रही हो ये कितनी जल्दी मेरा बताया हुआ कार्य कर देता है। देख, अगर यह मेरे साथ रहा तो मैं सदैव आराम से जीवन व्यतीत करूँगा, हाँ।
तुम चिंता मत करो। ये मुझे कुछ भी नहीं करेगा। मैं हमेशा ही इसे कोई ना कोई कार्य देता ही रहूँगा, हाँ। “
तभी वो राक्षस फिर से आ जाता है।
रक्षास,” है मनुष्य ! मैं तुम्हारे खेत की सिंचाई कर आया हूँ। तुम्हारे खेत की सिंचाई करके मुझे बड़ा ही आनंद आया।
लेकिन अभी मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है। जल्दी से मेरे लिए भोजन का प्रबंध करो वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अरे ! नहीं नहीं जादुई राक्षस, तुम क्या बोल रहे हो ? इन्हें कुछ मत करना, मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आती हूँ। “
तभी ज्ञानचंद की पत्नी राक्षस के लिए खूब सारा अलग अलग तरह का खाना लेकर आती है। सारा भोजन चटकर जाने के बाद भी राक्षस की भूख शांत नहीं होती।
राक्षस,”और भोजन लेकर आओ जाओ, मुझे और भूख लगी है। जाओ, मेरी भूख शांत करो। “
ज्ञानचंद और उसकी पत्नी दोनों ये सुनकर दुखी हो जाते हैं।
ज्ञानचंद,” अरे ! पूरे घर का राशन तो खा गया ये जादुई राक्षस। आखिर अब कैसे शांत होगी इसकी भूख ? “
तभी उसकी पत्नी घर के बाहर लगे एक तुलसी के पेड़ के पास जाती है और बहुत बड़े पतीले में जिसमे खूब सारा दूध रखा होता है, उसमें उन तुलसी के पत्तों को डाल देती है और उस दूध के पतीले को राक्षस के पास लेकर जाती हैं।
ज्ञानचंद की पत्नी,” ये लो जादुई राक्षस, इस दूध को पी लो। इस दूध से तुम्हारी भूख शांत हो जाएगी। “
जिसके बाद राक्षस सारा दूध पी जाता है और एक लंबी डकार लेता है।
राक्षस (डकार मारते हुए),” अब आया मज़ा। अब मेरी भूख शांत हो गयी है। वाकई, ये दूध बहुत ही स्वादिष्ट था।
आनंद आ गया। अच्छा बताओ, अब क्या कार्य करना है तुम्हारा ? जल्दी बताओ वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा। “
अब ज्ञानचंद उसे कोई ना कोई काम बता देता और राक्षस झट से कर देता। लेकिन एक दिन ऐसा आया जब ज्ञान चंद के पास उस जादुई राक्षस को बताने के लिए कोई काम नहीं था। ऐसे में ज्ञानचंद बहुत दुखी हो गया।
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! ये मैंने क्या आफ़त अपने गले में डाल ली है ? उस राक्षस को मैं जो भी काम देता हूँ, राक्षस उसे बहुत शीघ्र ही कर लेता है।
आज तो मेरे पास उसे देने के लिए कोई काम भी नहीं बचा। अब ऐसे में तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ? लगता है आज तो मुझे वो राक्षस खा ही जाएगा।
भाग्यवान, अब मैं क्या करूँगा ? अब तो मैं तुम्हें छोड़कर उस राक्षस के पेट में जाने वाला हूँ। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” दैया रे दैया ! आप चुप हो जाइए जी। मैंने आपसे कहा था वो जादुई राक्षस बहुत भयानक है।
लेकिन आप चिंता मत कीजिये, मैं उस जादुई राक्षस को आपको कुछ नहीं करने दूंगी, हाँ। लेकिन आपको भी मुझसे वादा करना होगा। आज के बाद आप अपने सारे काम खुद ही करेंगे, हाँ। “
ज्ञानचंद,” अरे ! हाँ भाग्यवान, मैं वादा करता हूँ आज से अपने सारे कार्य स्वयं ही करूँगा। लेकिन तुम मुझे उस राक्षस का भोजन बनने से बचा लो। बचा लो, भाग्यवान। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” अच्छा अच्छा ठीक है, अब आप देखना मैं उस राक्षस को आज कितना महत्वपूर्ण कार्य देती हूँ जिसे वो जादुई राक्षस कभी पूरा नहीं कर पायेगा ? “
तभी वहाँ पर राक्षस आ जाता है और ज्ञानचंद से कहता है।
राक्षस,” हे मनुष्य ! बताओ मुझे, आज क्या कार्य करना है ? जल्दी बताओ वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा। “
ज्ञानचंद की पत्नी,” ओ जादुई राक्षस ! आज मैं तुझे काम देती हूँ। मेरी झोंपड़ी के पीछे एक मोती नाम का मेरा प्यारा कुत्ता रहता है, तुम जाओ इस मोती की दुम को सीधा कर दो। जब तक उस मोती की दुम सीधी नहीं हो जाती, तुम यहाँ वापस मत आना, हाँ। “
राक्षस,” अच्छा अच्छा ठीक है, मैं अभी जाता हूँ। उस मोती कुत्ते की दुम को सीधी करके अभी आता हूँ। “
राक्षस के जाने के बाद…
ज्ञानचंद,” अरे भाग्यवान ! ये क्या काम दिया तुमने उस जादुई राक्षस को ? तुम देखना, वो अभी मोती की दुम सीधी करके आता ही होगा, हाँ। अब तो वो मुझे खा ही जाएगा। “
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ज्ञानचंद की पत्नी,” दैया रे दैया ! आप भी ना बिल्कुल मूर्ख हैं। अरे ! भला कुत्ते की भी दुम कभी सीधी होती है ?
वो जादुई राक्षस मोती की दुम को कभी सीधा नहीं कर पाएगा और ना वापस यहाँ लौटकर आएगा। “
ज्ञानचंद,” अरे वाह भाग्यवान ! अरे… ये तो मैंने सोचा ही नहीं। अरे भई वाह ! मान गया तुम्हें, क्या दिमाग लगाया तुमने भाग्यवान ? अब वो राक्षस वर्षों तक कभी मोती की दुम को सीधा नहीं कर पायेगा।
अगले ही दिन से ज्ञानचंद अपने सारे काम खुद करने लगा किसी आलस के बिना। और उधर जादुई राक्षस मोती के पीछे उसकी दुम को सीधा करने के लिए कई वर्षों तक यूं ही भागता रहा।
ना तो वह कभी मोदी की दुम को सीधा कर पाया और ना लौटकर ज्ञानचंद के पास आ पाया।
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