हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई यात्रा ” यह एक Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Fairy Tales, Fairy Tales in Hindi या Pariyon Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Jadui Yatra | Hindi Kahaniya | Pari Ki Kahani | Fairy Tale Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales
प्राचीन समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक बालिका रहती थी जिसका नाम सुषमा था।
सुषमा एक सामान्य किसान परिवार से थी, लेकिन उसके दिल में असामान्य साहस और उत्साह भरा हुआ था। गाँव के पास ही एक घना जंगल था।
इस जंगल के बारे में गांव के लोग तरह तरह की बातें करते थे कि वहां एक जादुई पेड़ है जो हर इच्छा पूरी कर सकता है।
सुषमा ने भी इन बातों को सुना था और उसके मन में उस पेड़ को देखने की इच्छा जाग उठी। एक दिन, उसने अपने माता-पिता से इजाजत लेकर जादुई जंगल की ओर जाने का निर्णय लिया।
माता-पिता ने उसे समझाया कि यह सफर खतरों से भरा हो सकता है, पर सुषमा का मनोबल द्रढ था।
सुषमा अपने साथ थोड़ी सी रोटी और पानी लेकर जंगल की ओर बढ़ी। जंगल में प्रवेश करते ही उसे एक अजीब सी शांति और एक अद्भुत आकर्षण महसूस हुआ।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ती गई, जंगल और भी घना और रहस्यमय होता गया। चलते-चलते सुषमा एक नदी के किनारे पहुंची।
नदी का पानी चमक रहा था और उसमें इंद्रधनुष के रंग झिलमिला रहे थे। अचानक एक परी प्रकट हुई।
परी ने मुस्कराते हुए सुषमा से कहा,” मैं इस नदी की रक्षक हूँ। अगर तुम इस नदी को पार करना चाहती हो तो तुम्हें तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा। “
सुषमा ने सिर हिलाते हुए सहमति जताई।
परी ने पहला प्रश्न पूछा,” वह क्या है जो जितना अधिक बढ़ता है, उतना ही छोटा हो जाता है ?”
सुषमा ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा,” अंधेरा। “
परी ने प्रसन्न होकर दूसरा प्रश्न पूछा,” वह कौन सा जीव है जो सुबह चार पैरों पर, दोपहर में दो पैरों पर और शाम को तीन पैरों पर चलता है ?”
सुषमा ने तुरंत उत्तर दिया,” मनुष्य। “
परी ने हंसते हुए अंतिम प्रश्न पूछा,” वह क्या है जो हर किसी का होता है, लेकिन फिर भी सभी इसे दूसरों के लिए अधिक चाहते हैं ?”
सुषमा ने उत्तर दिया,” सुख। “
तीनों उत्तर सही थे। परी ने सुषमा को नदी पार करने की अनुमति दे दी। सुषमा नदी पार कर आगे बढ़ी। थोड़ी दूर चलने के बाद उसने देखा कि एक विशाल राक्षस रास्ते में खड़ा है।
राक्षस ने सुषमा को देखकर गरजते हुए कहा,” अगर तुम इस रास्ते से आगे बढ़ना चाहती हो तो तुम्हें मुझसे शतरंज खेलकर जीतना होगा।”
सुषमा ने साहस बटोरा और शतरंज खेलने के लिए तैयार हो गई। खेल शुरू हुआ और सुषमा ने अपनी बुद्धिमानी से राक्षस को मात दे दी। राक्षस ने हार मानते हुए रास्ता छोड़ दिया और सुषमा को शुभकामनाएं दीं।
सुषमा आगे बढ़ती गई और अंत में उसे जादुई पेड़ दिखाई दिया। पेड़ के चारों ओर सुनहरे फूल खिले हुए थे और उसकी शाखाओं पर चमचमाते फल लगे हुए थे।
सुषमा ने पेड़ के पास जाकर विनम्रता से कहा,” हे जादुई पेड़ ! मुझे मेरे गाँव के लिए सुख और समृद्धि चाहिए।”
पेड़ की शाखाएं हिलने लगीं और एक मधुर आवाज में पेड़ ने कहा,” तुम्हारी इच्छा पूरी होगी, सुषमा। लेकिन याद रखना, असली सुख दूसरों की मदद करने में है। “
सुषमा ने पेड़ को धन्यवाद दिया और अपने गाँव की ओर लौट पड़ी। जब वह गाँव पहुँची, तो उसने देखा कि उसके गाँव में सभी लोग खुश और समृद्ध हो चुके थे।
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सुषमा ने गाँव के लोगों को अपनी जादुई यात्रा के बारे में बताया और सबने मिलकर खुशी मनाई।
सुषमा की साहसिक और जादुई यात्रा ने न केवल उसके गाँव को खुशहाल बनाया, बल्कि उसे भी सिखाया कि सच्चा सुख दूसरों की भलाई में है।
इसके बाद सुषमा ने अपने जीवन को लोगों की मदद में लगाने का निर्णय लिया। सुषमा ने गाँव में एक विद्यालय खोला जहाँ बच्चों को न केवल पढ़ाई करवाई जाती, बल्कि नैतिक शिक्षा भी दी जाती।
सुषमा का मानना था कि शिक्षा ही असली जादू है जो जीवन को बदल सकता है। विद्यालय में बच्चों को प्राचीन कथाएँ, नैतिक कहानियाँ और जीवन के मूल्य सिखाए जाते थे।
गाँव में एक दिन एक घुमंतु आया, जिसका नाम राघव था। राघव ने सुषमा की कहानी सुनी और उसकी मदद का प्रस्ताव रखा।
राघव एक कुशल शिल्पकार था और उसने गाँव में एक कला केंद्र स्थापित किया। यहाँ गाँव के लोग अपनी कला और शिल्प को निखारने लगे।
धीरे-धीरे गाँव की कला की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और लोग दूर-दूर से इसे देखने और सीखने आने लगे।
गाँव के लोग अब अपने उत्पादों को बेचकर समृद्ध हो रहे थे। सुषमा ने अपने गाँव के विकास के लिए एक और कदम उठाया।
उसने गाँव में एक चिकित्सा केंद्र भी स्थापित किया जहाँ लोगों का मुफ्त इलाज होता था। अब गाँव के लोग स्वस्थ और खुशहाल थे।
एक दिन सुषमा को फिर से जादुई पेड़ की याद आई। उसने सोचा कि वह पेड़ से जाकर धन्यवाद कहे और उसके जीवन को बदलने के लिए आभार व्यक्त करे।
सुषमा ने फिर से जंगल की ओर प्रस्थान किया। इस बार, वह न केवल अकेली थी, बल्कि उसके साथ गाँव के कुछ बच्चे भी थे जो जादुई पेड़ को देखना चाहते थे।
जंगल में प्रवेश करते ही सुषमा को फिर से वही शांति और अद्भुत आकर्षण महसूस हुआ। लेकिन इस बार, उसने महसूस किया कि जंगल में कुछ बदल गया है।
जैसे ही वह नदी के पास पहुंची, उसने देखा कि परी वहां पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी।
परी ने सुषमा को देखकर मुस्कराते हुए कहा,” सुषमा, तुम्हारा स्वागत है। तुमने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत से अपने गाँव को स्वर्ग बना दिया है। तुम्हारी यह यात्रा तुम्हारे जीवन का नया अध्याय है।”
सुषमा ने परी से विनम्रता से कहा,” धन्यवाद परी, आपने मेरी मदद की। मैं जादुई पेड़ का धन्यवाद करना चाहती हूँ। ”
परी ने कहा,” पेड़ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। जाओ और उसे अपना आभार व्यक्त करो। “
सुषमा और बच्चे नदी पार करके पेड़ के पास पहुंचे।
पेड़ की शाखाएं हिलने लगीं और उसकी मधुर आवाज फिर से गूंजी,” सुषमा, तुमने अपनी इच्छाशक्ति से अपनी और अपने गाँव की जिंदगी बदल दी। अब तुम्हें एक और वरदान मिलता है। यह वरदान तुम्हें जीवन भर प्रेरित करेगा। “
पेड़ ने एक सुनहरा फल सुषमा को दिया। सुषमा ने फल को हाथ में लेकर धन्यवाद कहा।
पेड़ की आवाज फिर गूंजी,” यह फल तुम्हें और तुम्हारे गाँव को हमेशा खुशहाल और समृद्ध बनाए रखेगा। “
सुषमा और बच्चों ने खुशी-खुशी गाँव की ओर वापसी की। गाँव के लोग सुषमा की वापसी का इंतजार कर रहे थे।
जब सुषमा ने उन्हें सुनहरा फल दिखाया और जादुई पेड़ का संदेश सुनाया, तो सभी लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा।
सुषमा ने उस फल को गाँव के मंदिर में रखा और सभी लोगों ने मिलकर उसका आभार व्यक्त किया। इस घटना के बाद, गाँव में कोई भी दुखी या परेशान नहीं रहता था।
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सुषमा ने अपने जीवन को गाँव की सेवा और लोगों की भलाई में लगा दिया। वह हमेशा अपने बच्चों को यही सिखाती कि असली जादू दूसरों की मदद और सेवा में है।
सुषमा की जादुई यात्रा ने उसे और उसके गाँव को बदल दिया। यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करके, हमें अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
असली सुख और समृद्धि दूसरों की भलाई में है, और यही जीवन का सच्चा जादू है।
इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।