धोखेबाज ब्राह्मण | Dhokebaaz Brahman | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” धोखेबाज ब्राह्मण ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Hindi Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
धोखेबाज ब्राह्मण | Dhokebaaz Brahman | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Dhokebaaz Brahman | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

 धोखेबाज ब्राह्मण 

कासगंज में जगन और मगन दो भाई रहते थे। जगन कुछ समय से टांगों से चल नहीं पाता, बस बैठा रहता है। 
गर्मियों में जगन घर के आंगन में बिस्तर पर बैठा हुआ है। मगन खाने के लिए आम की टोकरी लाया। 
मगन,” भैया, ये लीजिये मैं आपके लिए आम लेकर आया हूँ। “
जगन,” अरे वाह ! तुम्हें पता है, मैं अभी यही सोच रहा था कि कहीं से आम खाने को मिल जाते इस मौसम में तो बड़ा मज़ा आता ? आओ, बैठो मेरे पास। “
गबरू,” अरे मग्गू ! आम खा रहा है तू… है ? मुझ को भी देना रे ! “
मगन,” आजा बैठ, आज ही लाया हूँ बाजार से। “
गबरू,” तू जानता है, मुझे तुझसे तेरी एक चीज़ चाहिए जिसकी मुझे बहुत जरूरत है ? “
मगन,” हाँ, मैं जानता हूँ तुझे किस चीज़ की जरूरत है। मेरे दिमाग की..? “
गबरू,” ऐं…पागल है तू ? इतने सारे भूसे का मैं क्या करूँगा ? खाली भूसे में आग लग गयी तो… मेरी तो जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, भैया। मुझे तो तेरी हाइट चाहिए हाइट… कितना लंबा है रे तू ? “
मगन,” गबरू, तू पिटेगा अब हाँ। “
गबरू,” अच्छा चल माफ़ कर दे। “
मगन,” मग्गू मत बोल मुझे। “
गबरू,” तो क्या बोलू मैं ? “
मगन,” भैया बोल मुझे। “
गबरू,” अच्छा भैया, मुझे दो आम दो ना। पक्का… तुझे मग्गू नहीं बोलूँगा। “
मगन,” सच बोल रहा है ना ? “
गबरू,” अब देख… तू खुद ही भरोसा नहीं कर रहा। “
मगन,” अच्छा ठीक है, ये ले। “
गबरू ने आम पकड़े और गेट के सामने गया और ज़ोर ज़ोर से कहने लगा। 
गबरू,” मग्गू… मग्गू मग्गू। “
मगन,” तेरी तो…। “
जगन,” जाने देना छोटा है वो, तू भी ना बच्चों जैसी हरकतें करता है। अच्छा चल छोड़ इसे। कल गुरूजी आने वाले हैं, सारी तैयारियां कर देना। ठीक है..? “
मगन,” जी भैया। “
अगले दिन शाम को गुरूजी चलते हुए दिखाई दिए और मगन के घर पहुँच गए। मगन आंगन में झाड़ू मार रहा था।
मगन,” गुरूजी, आप आइये। यात्रा कैसी रही आपकी ? “
गुरूजी,” सब ठीक था, मगन। क्या बात है, जगन नहीं दिख रहा ? “
मगन,” गुरूजी, अंदर है भैया। आप आइये। “
गुरूजी,” अरे जगन ! कैसे हो बेटा ? “
जगन,” मैं ठीक हूँ, गुरूजी। “
गुरूजी,” तू तो बड़ा मोटा हो गया है, हाँ। “
जगन,” गुरूजी, इधर उधर जा नहीं पाता। अब क्या करूँ ? “
गुरूजी,” बेटा, हर बिमारी की जड़ है मोटापा। ये ना खुद के लिए अच्छा है ना दूसरों के लिए। “
जगन,” दूसरों के लिए..? “
गुरूजी,” बेटा, जिस दिन भगवान का बुलावा आएगा, उस दिन तो खुद की टांगों पर जा नहीं पाओगे। अब भला क्यों दूसरों की टांगों को तुड़वाना ? “
बाहर से आवाज आयी… मगन, ओ मगन… घर पे हो ? ये ले खीर, प्रसाद है सब लोग खा लेना। 
मगन,” वाह दीदी ! सही समय पर आई हो। आज हमारे घर में गुरूजी आये हैं। “
कांता,” गुरूजी… कौन गुरुजी ? “
मगन,” वो हमारे माँ बाप की तरह है दीदी, उन्होंने हमें पाला है। वो बहुत ही ज्ञानी पुरुष हैं। 
वो हर किसी की मदद करते हैं। उनके पास हर मुसीबत का हल होता है। “
कांता,” उन्हें भी खिलाना खीर, ठीक है। और सुन… मुझे भी मिलना है उनसे, मिलवा देगा ? “
मगन,” क्यों नहीं दीदी..? आप कल आना, आज वो थक गए हैं। बहुत दूर से आये ना इसलिए। “
कांता,” चल ठीक है, मैं कल आती हूँ शाम को। “
मगन,” ठीक है। “
कांता जा रही है, तभी उसे उसकी पड़ोसी लीला दिखी।
लीला,” कहाँ से आ रही है, कांता ? “
कांता,” मगन के घर प्रसाद देने गयी थी। थोड़ा तेरे घर भिजवा दिया है, खालियो। “
लीला,” मेरी सास ने छोड़ा होगा तब खाऊंगी ना ? “
कांता,” तुझे पता है, जगन भैया के घर उनके कोई गुरुजी आये हैं ? मगन तो उनकी बहुत तारीफ कर रहा था। उन्होंने ही इन दोनों को पाला है। कल चलेगी उनसे मिलने ? “

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लीला,” ठीक है। सुन… जब जाएगी ना, मुझे आवाज़ दे देना। मैं भी आ जाउंगी। “
कांता,” ठीक है, मैं चलती हूँ। “
दोनों अपने घर चली गयी। 
रात का वक्त… 
गुरूजी और जगन खाने के लिए बैठे है। मगन ने खाना परोसा। 
गुरूजी,” वाह वाह मग्गू ! तू तो बहुत ही बढ़िया खाना बनाना सीख गया है। “
मगन,” धन्यवाद गुरूजी ! “
गुरूजी,” आ तू भी बैठ। “
तीनों खाना खाते हैं। 
खाना खाने के बाद…
मगन,” गुरूजी, आप यहाँ सो जाइए। “
सब सो गए। 
अगले दिन…
कांता,” लीला, ओ लीला ! चल। “
लीला,” हाँ दीदी, आई बस। “
कांता,” कितनी देर करती है तू ? “
लीला,” आपको तो पता है ना, कितना काम होता है ? “
कांता,” हाँ, वो तो है। चल अब जल्दी चल। “
दोनों मगन के घर पहुँच गए।
कांता,” मगन, अरे ओ मगन ! “
मगन,” आया दीदी। “
कांता,” देख, मैं लीला को भी लायी हूँ। “
मगन,” आइये ना, अंदर आइए। “
मगन,” गुरुजी, ये आपसे मिलने आए हैं। ये हमारे पड़ोस में ही रहती है। “
गुरुजी,” आओ बेटी, क्या बात है ? “
कांता,” प्रणाम गुरुजी ! मेरा नाम कांता है। मगन ने मुझे बताया कि आप लोगों की परेशानियों को सुलझाते हैं। 
मेरे पति हर शाम शराब पीकर आते हैं। इस वजह से हमारी लड़ाई भी होती है। वो कहते है… मैं छोड़ना तो चाहता हूँ, पर छूट नहीं पा रही है। 
आप ही बताइए ना कि ऐसा क्या करूँ जिससे वो ये आदत छोड़ दें ? “
गुरुजी,” तुम्हारा पति खाना कितने बजे खाता है दोपहर में ? “
कांता,” 2:00 बजे। “
गुरुजी,” आज उसे दो डब्बे खाने को देना। एक वो 2:00 बजे खायेगा और दूसरा तब जब उसका काम खत्म हो जाएगा, उससे थोड़ी देर पहले। 
उस डिब्बे में तुम मिठाइयां, फल डाल देना और ऊपर से ये छिड़क देना, ठीक है ? “
कांता,” जी गुरूजी। “
लीला,” गुरूजी, मेरा नाम लीला है। मेरी सास ने मेरा जीना हराम करके रखा हुआ है। कभी सीधे मुँह बात ही नहीं करती। मैं तो दुखी हो गई हूं इस रोज़ रोज़ के तमाशे से। “
गुरुजी,” ये लो… इसे अपनी सास के खाने में डाल देना। तुम्हें कल सुबह से ही असर दिखना शुरू हो जाएगा। “
लीला,” धन्यवाद गुरुजी ! मैं चलती हूँ। “
कांता,” गुरूजी, मैं भी चलती हूँ। “
मगन,” क्या गुरूजी सच में वो ठीक हो जाएंगे ? “
गुरुजी,” क्यों नहीं..? तुम खुद ही देख लेना। क्यों जगन ? “
दोनों मुस्कुराने लगे। 
कांता के घर…
कांता,” ये लीजिये। “
कांता का पति,” आज दो डिब्बे क्यों ? “
कांता,” मैं गुरूजी से मिली थी कल। उन्होंने कहा, इससे आप ठीक हो जाएंगे। आप ये बड़ा वाला दोपहर में खा लेना और छोटा वाला काम खत्म होने से थोड़ी देर पहले। “
कांता का पति,” अरे ! तुम भी ना कांता… चलो अब तुम कहती हो तो खा लूँगा। “
काम पर जाने के बाद रमेश ने वैसा ही किया। पहले दोपहर में बड़ा वाला डिब्बा खत्म किया और शाम को दूसरा वाला डिब्बा। काम खत्म होने के बाद वह घर चला आया। 
कांता,” आज आप इतनी जल्दी..? “
कांता (मन में),” आज तो इन्होंने शराब भी नहीं पी है। लगता है… गुरूजी का टोटका काम कर गया। “
कांता का पति,” अच्छा सुनो, खाना लगा दो। “
कांता,” रुकिए, मैं कुछ बना देती हूँ। “
कांता का पति,” ठीक है। “
कांता खाना बनाने में लग गई। जैसे ही वो रमेश के पास गई, उसने देखा रमेश सोया हुआ है। 
कांता,” लगता है… काफी थक गए हैं ? इन्हें सोने देती हूँ। “
लीला की सास,” सुन बहू… इधर आइयो। वो देना मुझे। “
तीन दिन बाद…
कांता,” लीला। “
लीला,” हाँ दीदी। “
कांता,” तुझे पता है… कमाल ही हो गया ? इन्होंने कुछ दिनों से न शराब पी है ना मुझसे लड़ाई की। “
लीला,” हाँ दीदी। आपको पता है… मेरी सास मुझसे प्यार से बात कर रही है ? पहले तो सीधे मुँह बात तक नहीं करती थी पर अब तो पूरी बदल गई है। “
धीरे धीरे ये बातें पूरे गांव में फैल गई। एक दिन उस गांव की ठकुराइन गुरूजी से मिलने उनके पास गयी। 
जगन,” ठकुराइन जी, आप यहाँ कैसे ? सब ठीक तो है ? “
ठकुराइन,” मुझे गुरुजी के बारे में पता चला और ये भी कि कैसे उन्होंने लोगों की दिक्कतों को ठीक किया ? 
इसलिए मेरे मन में भी उनसे मिलने की इच्छा जाग गई। कहां हैं गुरूजी, उन्हें बुलाईये ? “
जगन,” रुकिए, बुलाता हूँ उन्हें। “
गुरूजी,” क्या हुआ बेटी ? “
ठकुराइन,” बाबा जी, क्या आप मेरी समस्या सुलझा देंगे ? “
गुरूजी,” क्यों नहीं बेटी, क्या बात है ? “
ठकुराइन,” बाबा, मेरे पति जब देखो काम करते रहते हैं, घर में रुकते तक नहीं है। बस आते है, खाते है और सो जाते है। 
अब आप ही बताइए ना, मैं क्या करूँ ? मुझे तो याद भी नहीं कि उन्होंने आखिरी बार मुझसे बैठकर आराम से बात कब की थी ? 
वो इतना काम करते है ना कि उनके पास हमारे लिए फुर्सत भी नहीं है। “
गुरुजी,” ये लो… इसे रात को खाने में मिला देना, कल से ही तुम्हें असर दिखना शुरू हो जाएगा। “
ठकुराइन,” अगर आपकी बात सच निकली तो आप जितना धन मांगेंगे, आपको मिलेगा। “
गुरूजी,” बेटी, जब हम किसी को धन देते है ना किसी चीज़ के बदले, तो हम सामने वाले की वो चीज़ खरीद लेते हैं। मुझे धन नहीं चाहिए। 
मैं ये सब दूसरों की मदद करने के लिए करता हूँ और रही बात धन की तो जब समय आएगा तो सब नसीब मैं खुद ही आ जायेगा। “
ठकुराइन,” ठीक है गुरूजी, अब मैं चलती हूँ। “
ठकुराइन के घर पर…
ठाकुर,” सुनो, ज़रा खाना लगवा दो। “
ठकुराइन,” जी, अभी लगवाती हूँ। “
ठकुराइन (मन में),” इनके खाने में ये डाल देती हूँ। क्या पता… जैसा गुरूजी ने कहा वो सच हो जाए ? “
ठकुराइन,” ये लीजिये, मैंने खाना रख दिया। अब आप हाथ मुँह धोकर आ जाईये। “
ठाकुर ने खाना खाया और चुपचाप चला गया और सो गया। 
ठकुराइन,” काश ! गुरुजी ने जो कहा है, वो सच हो जाए। ना जाने कब तक ऐसा ही चलता रहेगा ? हाय ! मेरी किस्मत। “
अगली सुबह ठकुराइन नहाकर आई। फिर कमरे में उसने देखा, वहाँ मुंशी जी खड़े हैं। 
ठाकुर,” मुंशीजी, आज से कुछ दिनों तक आप ही ये सब संभालेंगे। मैं कुछ दिन आराम करना चाहता हूँ। “
मुंशी,” जी, ठाकुर साहब। “
ठकुराइन,” आप आज गए नहीं ? “
ठाकुर,” मैं सोच रहा हूँ… कुछ दिन घर पर आराम करूं। “
ठकुराइन,” आप सही सोच रहे है। आप घर पर आराम करिए। जब देखो आप काम करते रहते हो। 
आपको जो चाहिए, आप मुझसे मंगवाना, मैं आपको दूंगी। आपका जो खाने का मन करे आप बता देना, ठीक है। “

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ठाकुर,” तुम मेरा कितना ध्यान रखती हो ? मैं यह देखकर बहुत खुश हूँ। “
ठकुराइन,” हे प्रभु ! गुरु जी की जय हो। आज कितने दिनों बाद मन को सुकून मिल रहा है। “
ठकुराइन,” सुनिए… मैं चाहती हूँ कि गांव में ना गुरूजी आये हुए है, वो बहुत ही अच्छे इंसान है। एकदम एक नेक इंसान हैं और ज्ञानी भी। 
मैं चाहती हूँ कि हम उन्हें हमारे घर बुलाये और साथ में गांव के सारे लोगों को भी बुलाएं ताकि गुरूजी से मिलने का मौका सभी को मिल सके। “
ठाकुर,” जैसे तुम्हारी मर्ज़ी। तुम्हारा मन है तो बिलकुल बुलाओ। “
ठकुराइन,” मैं आज ही जाकर गुरु जी को यहाँ आने का आमंत्रण देती हूँ। “
ठाकुर,” ठीक है। “
इसके बाद ठकुराइन कुछ लोगों को लेकर अपने साथ जगन के घर पहुंची। 
आदमी,” मगन, घर पर हो ? “
मगन,” आया। “
ठकुराइन,” गुरुजी घर पर है ? “
मगन,” हाँ, अंदर बैठे हुए है भैया के साथ। आप आइये। “
ठकुराइन,” प्रणाम गुरूजी ! “
गुरूजी,” क्या हुआ बेटी, सब ठीक है ना ? “
ठकुराइन,” हाँ गुरुजी। जैसा आपने कहा था वैसा ही हुआ। मैं तो बहुत खुश हूँ, मानो मन को सुकून सा मिल गया हो। मैंने घर पर एक आयोजन रखा है। आप कृपा करके वहाँ जरूर आइयेगा। “
गुरुजी,” ठीक है बेटी, हम जरूर आयेंगे। “
समारोह के दिन सभी ठकुराइन के घर पहुंचे। 
ठकुराइन,” आइए जेगुरु जी, आप यहाँ बैठ जाइए। आपको कुछ भी चाहिए हो, उन्हें बता दीजियेगा। ये हर वक्त आपकी सेवा में रहेंगे। “
गुरुजी,” ये क्या बेटी, प्रसाद खुला क्यों छोड़ा है ? ये लो… इस कपड़े से ढक दो। ऐसे नहीं छोड़ते… ठीक है खाने को ? “
ठकुराइन,” जी गुरुजी। “
इसके बाद गुरु जी ने काफी लोगों की मुसीबतों को सुना और उन्हें उपाय भी बताए। इसके बाद गुरु जी ने सब जगह गंगा जल छिड़का और सबको प्रसाद बांट दिया। सब ने प्रसाद खाया और अपने अपने घर चले गए। 
शाम को एक बांसुरी की आवाज पूरे गांव में फैल गई। एक आवाज आई और गबरू की छोटी बकरी (चीकू) उस आवाज की तरफ चलने लगी। 
गबरू ने जब देखा तो वो उसके पास गया। बकरी नहीं रुकी। गबरू ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन बकरी के ऊपर उसका कोई असर नहीं हुआ। 
गबरू,” पता लगाना पड़ेगा कि यह सब क्या चल रहा है ? “
गबरू ने बकरी के गले से सभी घंटिया उतार दी और आवाज का पीछा करने लगा। गबरू ने देखा की एक मैदान में सारे लोग बेसुध होकर अपने घर का कीमती सामान लिए चले जा रहे हैं।
गबरू,” छोड़ दो इन सबको, तुम हमारे साथ ये सब क्यों कर रहे हो ? “
चेहरा ढके हुए आदमी,” अच्छा… ये रह गया था। पकड़ो इसे भी, पकड़ो इसे। “
जैसे ही वो लोग गबरू की तरफ आए, गबरू ने घंटियां बजाई और अचानक सभी लोग होश में आ गए। 
बूढ़ा,” यह सब क्या हो रहा है ? हम सब यहाँ..? “
गबरू,” ये सब चोर है, पिताजी। इन्हें आप सब पकड़ लो। “
सब ने उन सब को पकड़ लिया। गबरू के पिता जी ने एक चोर के मुँह से कपड़ा हटाया। 
गबरू के पिता,” जगन..? तुम खड़े हो सकते हो ? “
जगन,” अरे वाह ! चमत्कार हो गया। देखो, गुरुजी की कृपा से अब मैं चल सकता हूँ। “
गबरू के पिता,” अपना ये नाटक बंद करो। “
मगन,” भैया आप यहां..? “
ठाकुर,” ये सब क्या चल रहा है ? “
गबरू,” मैं बताता हूँ, ठाकुर साहब। इन्होंने हमें अपने वश में कर लिया था। उसी का नतीजा है कि आप सब यहाँ खड़े हैं। 
ये सब हमे लूटने आए थे। इन्होंने हमारा धन उस बैलगाड़ी में रखा है। “
ठाकुर,” आपने ये सब क्यों किया ? लोग तो आप दोनों की कितनी इज्जत करते थे ? अब चलो बताओ दोनों ने ये सब क्यों किया ? “
दोनों चुप थे। ठाकुर के एक आदमी ने जगन के पैर पर लाठी मारी तो जगन बोल पड़ा। 
जगन,” मैंने और गुरूजी ने मिलकर ये योजना बनाई थी। हमने प्रसाद के ऊपर जब गंगाजल छिड़का, उस समय गुरूजी ने अपनी बनाई दवाई प्रसाद में मिला दी जिसे खाने के बाद जैसे ही हमने बांसुरी बजाई, आप हमारे वश में हो गए। “
गुरूजी,” मैं कोई साधु नहीं हूँ। मैं एक वैद्य हूं। मैं अपनी दवाइयों से लोगों की समस्या सुलझाता हूँ। “
मगन,” भैया, मैं सोचता था कि मैं हमेशा आपका ख्याल रखूँगा। और कभी आप को अकेला नहीं छोडूंगा। 
लेकिन आज जो मैंने देखा, मुझे नहीं लगता कि इसके बाद मैं आप पर विश्वास कर पाऊंगा। “
जगन,” मैं तुझे एक अच्छी जिंदगी देना चाहता था इसलिए मैंने ये सब किया। “
मगन,” भैया, आपको सच में लगता है कि इन पैसों से मेरा भला होगा ? “
जगन,” मुझे माफ़ कर दे, मगन। “
मगन,” मुझसे बात मत करिये, भैया। “
कांता,” लेकिन आपने मेरे पति की वो आदत कैसे छुड़वाई ? “
गुरूजी,” मैं समझ गया था कि तुम्हारा पति शराब छोड़ना तो चाहता है लेकिन छोड़ नहीं पा रहा। 
इसलिए मैंने उसे थकान वाली दवाई दी जिसे खाने से उसे काम के बाद थकान लगने लग जाती और वो सीधा घर आता और सो जाता जिससे उसके पीने की आदत छूट गई। “
लीला,” और आपने मेरी सास को कैसे सुधारा ? “
गुरुजी,” बेटी, दवाइयों के उपचार और थोड़ी सी बुद्धि का इस्तेमाल करके मैंने सब की समस्याओं का समाधान किया है। “
ठकुराइन,” आपने हम सबकी मदद की थी फिर भी ऐसा क्यों किया ? “
गुरूजी,” मजबूरी थी ठाकुराइन, हम एक अनाथ आश्रम चलाते हैं। वहाँ कई ऐसे बच्चे है जो अनाथ है, दिवयांग है। 
उनके जीवन को बदलने के लिए हम ये सब करते हैं ताकि उन्हें बेहतर ज़िंदगी दे सकें। कुछ दिनों से आश्रम में दान दक्षिणा ना के बराबर थी इसलिए हमें ये कदम उठाना पड़ा। “
गबरू का पिता,” इतना नीच काम करते हो और इस तरह के काम में शामिल होते हो, तुम्हारी सजा ये है कि तुम वो आश्रम जिंदगीभर ईमानदारी से चलाओगे और हमेशा उन बच्चों का ख्याल रखोगे। और उनकी देखभाल के खर्च में होने वाला धन हमारी तरफ से आएगा। “
गुरुजी,” आप हमारी मदद क्यों कर रहे हैं ? “
गबरू का पिता,” क्योंकि तुम एक इंसान हो। तुम्हारा केवल रास्ता गलत है लेकिन इरादा गलत नहीं था। इतना तो हम कर ही सकते है। “
गुरुजी,” आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! “
ठाकुर,” आप जगन को भी छोड़ दीजिये, वो एक अच्छा इंसान है। “
गुरुजी,” ठीक है, छोड़ दिया जगन को। “
गुरुजी,” मगन, तेरे भाई ने हमेशा तेरा भला ही चाहा है। उसके साथ ऐसा मत कर तू, माफ़ कर दे अपने भाई को। 
उसने जिंदगी भर जो भी किया सिर्फ तेरे लिए किया जबकि वो तेरा सगा भाई भी नहीं है। “
गुरूजी,” लेकिन मुझे जानना है गबरू, ये सब होश में कैसे आये और तुम कैसे होश में आए ? “
गबरू,” क्योंकि मैंने लड्डू खाया नहीं था। मेरा लड्डू मेरी बकरी चीकू ने खा लिया था और जब मैंने चीकू को उसके घंटे की आवाज़ से ठीक होते हुए देखा तो मैंने सारी बकरियों के गले से घंटियाँ निकाल दी और अपने साथ यहाँ ले आया और उनकी आवाजों से अब सभी ठीक हो गए। “
गुरूजी,” क्या बात है गबरू, तुम तो काफी बुद्धिमान हो ? “
गबरू,” वो तो मैं हूं। “
सब हंसने लगे। 
गुरुजी,” मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब, मैंने आपको वो दवाई खिलाई। “

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ठाकुर,” कोई बात नहीं, इस वजह से मुझे कुछ दिनों का आराम तो मिला। आप ही तो कहते हैं… जो होता है अच्छे के लिए होता है। इस बहादुरी के लिए मैं गबरू को एक पुरस्कार जरूर दूंगा। “
गबरू,” मग्गू देख, मुझे तो इनाम मिलेगा। “
इसके बाद से गुरूजी और जगन उस अनाथ आश्रम को सही ढंग से चलाने लगे और एक अच्छी ज़िंदगी बिताने लगे।
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