बदमाश बहन | Badmash Bahan | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बदमाश बहन ” यह एक Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

बदमाश बहन | Badmash Bahan | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Badmash Bahan| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales



 बदमाश बहन 

सुंदर नगरी नाम के एक छोटे से गांव में धनीराम अपनी तीन बेटियों के साथ रहा करता था। उसकी सबसे छोटी बेटी बहुत ही सुंदर और गुणवान थी। 
धनीराम अपनी दोनों बेटी ऊषा और पीकू से भी ज्यादा प्यार अपनी छोटी बेटी, सोना से करता था।
धनीराम,” अरे ! कहां हो मेरी प्यारी बेटियों ? देखो मैं तुम्हारे लिए कितने सुंदर सुंदर उपहार लेकर आया हूं ? “
धनीराम की आवाज सुनकर ऊषा और पीकू बाहर आंगन में आती हैं। 
ऊषा,” अरे वाह ! पिताजी आप आ गए ? दिखाइए तो जरा… आप मेरे लिए मेले में से क्या लेकर आए हैं ? “
धनीराम,” यह देखो ऊषा बेटी… तुम्हारे लिए मैं यह झुमके लेकर आया हूं। तुम्हें झुमके बहुत पसंद है ना ? देखो…। “
ऊषा,” अरे ! यह झुमके तो बहुत सुंदर है पिताजी। मुझे यह झुमके बहुत पसंद आए। धन्यवाद पिताजी ! “
पीकू,” अरे पिताजी ! आप मेरे लिए क्या लेकर आए हैं ? जल्दी से दिखाइए ना… मुझसे तो अब बिल्कुल भी सब्र नहीं हो रहा है। दिखाइए ना पिताजी। “
धनीराम,” अरे ! हां हां पिंकू बेटा, यह देखो… तुम्हारे लिए यह पायल लेकर आया हूं। मेले में यही सबसे सुंदर पायल थी जो मैंने तुम्हारे लिए खरीद ली। तुम्हें पायल पहनना बहुत पसंद है ना ?”
पीकू,” आप मेरे लिए पायल लेकर आए हैं ? पायल बहुत सुंदर है पिताजी। लेकिन मुझे तो यह हार पसंद है। क्या मैं इसे ले लूं पिताजी ? “
धनीराम,” यह हार तो मैं सोना बिटिया के लिए लेकर आया हूं। उस पर यह खूब जंचेगा। “
यह सब सुनकर पीकू गुस्से से लाल हो जाती है। तभी सोना अपने कमरे से बाहर आती है। 
सोना,” अरे पिता जी ! आप आ गए ? मेरे प्यारे प्यारे पिताजी… कितनी देर लगा दी आपने आने में ? “
धनीराम,” अरे मेरी सोना बिटिया ! देखो मैं तुम्हारे लिए मेले में से क्या लेकर आया हूं ?
यह देखो… यह हार मैं तुम्हारे लिए लेकर आया हूं। तुम पर यह हार बहुत सुंदर लगेगा। “
सोना हार देखकर बहुत खुश हो जाती है। 
सोना,” अरे ! यह सच में बहुत ही सुंदर है। यह मैं अपनी सहेली पिंकी के जन्मदिन में पहन कर जाऊंगी। आप भी चलेंगे ना पिताजी पिंकी के जन्मदिन पर ? ” 
धनीराम,” नहीं नहीं सोना बिटिया, मैं तुम्हें नहीं ले जा सकता। मुझे जरूरी काम से गांव से बाहर जाना है। इसलिए तुम अपनी दोनों बहनों के साथ ही वहां चले जाना। “
इसके बाद सोना वो हार लेकर अपने कमरे में चली जाती है और धनीराम भी वहां से चला जाता है। वहां खड़ी ऊषा और पीकू यह बातें सुन रही होती हैं।
पीकू (ऊषा से),” देखा ऊषा दीदी… उस चालाक सोना ने कैसे पिताजी से सबसे सुंदर हार अपने लिए ले लिया। वह सोना और सुंदर हार पहनकर हमें रोज जलाएगी। “
ऊषा,” हां, सही कह रही हो तुम। इस सोना ने तो पता नहीं पिता जी पर कौन सा जादू किया है ? पिताजी हम दोनों से ज्यादा इस सोना से ही प्यार करते हैं। “
पिंकू अपना सिर हिलाते हुए ‘ हां ‘ कहती है। उसके बाद दोनों अपने अपने कमरे में चली जाती हैं। अगली सुबह सोना बहुत ही सुंदर ड्रेस पहनती है।

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और वह हार भी जो सोना के गले की शोभा बढ़ा रहा था और जिसे देखकर उसकी दोनों बहने उससे चिड़ रही थी। इसके बाद तीनों बहनें रिंकी के घर जाने लगती हैं। 
कुछ दूरी पर चलने के बाद…
ऊषा,” मुझे लगता है इस जंगल के रास्ते से चलने पर हम पिंकी के घर जल्दी पहुंच जाएंगे। “
पीकू,” ठीक है तो फिर हम जंगल के रास्ते से ही चलते हैं। “
सोना,” लेकिन यह जंगल तो काफी डरावना है। वहां से जाना क्या सही होगा ? गांव के लोग इस जंगल के बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं। “
ऊषा,” देखो… जंगल कोई डरावना नहीं है। गांव के लोग तो बस ऐसे ही बोलते रहते हैं। तुम्हें अपने दोस्त के जन्मदिन पर जल्दी जाना है कि नहीं ? चुपचाप चलो। “
ऊषा की फटकार भरी बातें सुनकर सोना चुप रह जाती है और ऊषा पीकू के साथ जंगल में चलने लगती है।
ऊषा,” अरे ! मुझे तो बहुत प्यास लग रही है। मैं पास ही नदी में से पानी पीकर आती हूं। तब तक तुम दोनों यही खड़े रहना। “
ऊषा पानी पीने के लिए चली जाती है। काफी देर होने पर भी ऊषा वापस नहीं लौटती। 
पीकू,” अरे ! यह ऊषा दीदी कहां रह गई ? तुम यहीं रुकना मैं उन्हें देखकर आती हूं। कहीं जाना मत। एक ही जगह रुककर रहना। ठीक है…। क्या समझी ? “
सोना,” लेकिन दीदी मुझे इस जंगल में तो पहले से ही काफी डर लग रहा है। आप मुझे अकेला छोड़ कर मत जाइए। “
पीकू,” मैं ऊषा दीदी को देखने जा रही हूं। पता नहीं वह कहां रह गई है ? अगर पिताजी को पता चल गया तो बहुत गुस्सा करेंगे। तुम चुपचाप यही खड़े रहना। मैं उषा दीदी को लेकर अभी आती हूं। “
यह बोलकर पीकू वहां से चली जाती है। बेचारी सोना जंगल में खड़ी बहुत डर रही होती है। सोना को जंगल में शाम हो जाती है। लेकिन दोनों बहने वापस नहीं लौटती। 
जब रात तक उसकी बहने नहीं आती तो सोना रोने लगती है। तभी सोना को जंगल में किसी के आने की आवाज सुनाई देती है। 
थोड़ी देर बाद सोना देखती है कि एक बहुत डरावनी बुढ़िया जिसकी आंखें लाल होती हैं जिसने काले रंग की साड़ी पहनी हुई है, वह सोना की तरफ काफी तेजी से आ रही होती है।
बुढ़िया,” मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी। आज कितने दिन बाद में इंसानों का मांस खाऊंगी। हा हा हा…। “
यह सुनकर सोना डर जाती है और वहां से भागने लगती है। वो वह डरावनी बुढ़िया उसके पीछे पीछे भागने लगती है। 
सोना भाग ही रही होती है कि तभी उसे जंगल में एक बहुत बड़े पेड़ के तने पर एक चमकता हुआ दरवाजा नजर आता है जिसके चारों तरफ बहुत रोशनी होती है। 
सोना उस चमकते हुए दरवाजे के अंदर चली जाती है। उस दरवाजे के अंदर एक अलग ही दुनिया होती है। वहां चारों तरफ सुंदर सुंदर फूल होते हैं और अलग-अलग तरह के जानवर भी। 
बहुत सारे छोटे छोटे सुंदर पेड़ होते हैं और उन सब के बीच एक बहुत बड़ा और विशाल चमचमाता पेड़ होता है जिसके ऊपर बहुत सुंदर तितलियां बैठी रहती हैं।
उस पर रंग-बिरंगे फल भी लगे रहते हैं जो देखने में बहुत सुंदर लग रहे होते हैं। उस विशाल पेड़ के सामने बहुत सुंदर नदी भी होती है। सोना यह सब देखकर हैरान रह जाती है। 
सोना,” अरे ! यह कहां आ गई ? इतनी सुंदर जगह तो मैंने पहले कभी नहीं देखी। “
सोना नदी के किनारे बैठ जाती है। थोड़ी देर बाद सोना को प्यास लगती है। जैसे ही वह उस नदी से पानी पीती है तभी उसे एक आवाज आती है। 

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आवाज,” जादुई पेड़ की नगरी में तुम्हारा स्वागत है। “
सोना यह आवाज सुनकर चौंक जाती है। एक बार फिर आवाज आती है। 
आवाज,” जादुई पेड़ की नगरी में तुम्हारा स्वागत है सोना। “
सोना,” कौन है ? कौन मुझे पुकार रहा है ? सामने आओ जरा। “
जादुई पेड़,” मैं तुम्हारे सामने ही हूं सोना। मेरा नाम जादुई पेड़ है। कोई यहां नहीं आ सकता सिर्फ वही इंसान यहां आ सकता है जिसका ह्रदय साफ और कोमल होता है। “
सोना (विशाल पेड़ की तरफ देखते हुए),” ओ ! तो यह तुम हो। क्या तुम जादुई पेड़ हो ? तुम बहुत ही सुंदर और विशाल हो। 
क्या तुम मेरी सहायता कर सकते हो विशाल पेड़ ? मैं यहां से घर जाना चाहती हूं। “
जादुई पेड़,” मुझे सब पता है। तुम्हारी बहने तुम्हें इस जंगल में छोड़कर चली गई थी। “
सोना,” नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जरूर कोई बात हुई होगी ? मेरी बहने मुझसे बहुत प्यार करती हैं। वे ऐसा नहीं कर सकतीं। “
और सोना रोने लगती है। 
जादुई पेड़,” चुप हो जाओ सोना। तुम यहां सुरक्षित हो। “
सोना,” हे सुंदर पेड़ ! क्या मैं अब कभी घर नहीं जा पाऊंगी ? “
जादुई पेड़,” नहीं सोना, तुम अपने घर जरूर जाओगे। लेकिन मैं तुम्हें इस जंगल से बाहर नहीं ले जा सकता हूं। 
जब कोई भला इंसान मेरी इस नदी का पानी पिएगा तो वही तुम्हें इस जंगल से बाहर ले जा पाएगा। 
तुम्हें उसका इंतजार करना होगा और जब तक वह नहीं आ जाता तुम्हें इसी जंगल में ही रहना होगा। “
कुछ देर बाद… 
जादुई पेड़,” मुझे बहुत भूख लगी है जादुई पेड़। “
सोना,” तुम मेरी टहनियों में से एक पत्ता तोड़ो और आंख बंद करके जो तुम मांगोगी, वही सब तुम्हारे सामने होगा। “
सोना उस पेड़ से एक पत्ता तोड़ती है और आंख बंद करके अपनी इच्छा रखती है। तभी उसके सामने अनेकों तरह-तरह के मजेदार पकवान आ जाते हैं। 
जब भी सोना को भूख लगती सोना ऐसा ही करती। ऐसे ही जंगल में सोना को बहुत दिन बीत जाते हैं। 
सोना रोज किसी के आने का इंतजार करने लगी कि कब कोई आएगा और उसे उसके घर लेकर जाएगा ? 
एक दिन सोना उस विशाल पेड़ की छाया में बैठी थी कि तभी अचानक एक फूल आकर सोना के सिर पर गिरा। जब सोना उस फूल को अपने हाथ में लेती है तो उसमें से दो तितलियां निकलती हैं। 
सोना उन तितलियों को देखकर बहुत खुश हो जाती है। वह तितलियां उड़ने लगती है। सोना भी उनके पीछे भागने लगती है। 
सोना तितलियों के पीछे भाग रही होती है कि तभी उसे एक बूढ़े आदमी की रोने की आवाज सुनाई देती है।
बूढ़ा आदमी,” अरे ! मुझे बहुत प्यास लगी है। कोई तो मुझे पानी पिलाओ। “
सोना पास जाकर देखती है कि एक बूढ़ा आदमी एक छोटे से पेड़ के नीचे बैठा रो रहा था। वह दिखने में काफी डरावना था जो सफेद कपड़े पहने हुए था। सोना उसके पास जाती है।
सोना,”कौन हो आप ? और आप रो क्यों रहे हो ? “
बूढ़ा आदमी,” मुझे बहुत जोर की प्यास लगी है। मुझे पानी पिलाओ सुंदर लड़की। “
सोना,” लेकिन आप हैं कौन और इस जंगल में कैसे आए ? “
बूढ़ा आदमी,” मैं विशालगढ़ का राजा अमर सिंह हूं। मैं यहां एक बार शिकार करने के लिए आया था। मैंने यहां इस जंगल में एक भालू देखा था और उसे अपने तीर से घायल कर दिया। 
लेकिन वह कोई साधारण भालू नहीं था बल्कि एक तपस्वी था जो भेश बदलकर तपस्या कर रहा था। 

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उसने मुझे श्राप दिया और मैं एक सुंदर राजकुमार से एक बुरी शक्ल का बुड्ढा इंसान बन गया। तभी से मैं इस जंगल में कैद हूं। मैं कई सालों से बहुत प्यासा हूं। 
मुझे पानी चाहिए। लेकिन मैं इस पेड़ के नीचे से उठ नहीं सकता। ना जाने मुझे कब इस हालत से मुक्ति मिलेगी ? क्या तुम मुझे पानी पिला सकती हो ? “
सोना,” हां, मैं अभी पानी लेकर आती हूं। “
सोना वापस उस जादुई पेड़ के पास जाती है और उससे पेड़ की टहनियों से पत्ता तोड़ लेती है। विशाल पेड़ के चौड़े पत्ते में पानी भरती है और उस बूढ़े आदमी के पास जाती है। 
सोना,” यह लो तुम पानी पी लो। “
बूढ़ा आदमी जैसे ही उस पानी को पीता है, अचानक से एक सुंदर राजकुमार में बदल जाता है। 
राजकुमार,” अरे ! मैं तो पहले जैसा जवान और आकर्षक हो गया हूं। तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया सुंदर लड़की। “
तभी उन दोनों को एक आवाज सुनाई देती है। 
जादुई पेड़,” राजकुमार अमर सिंह, तुम श्राप से मुक्त हो गए हो। सोना एक साफ दिल की लड़की है जिसके हाथ से पानी पीकर तुम दोबारा से अपने असली रूप में आ गए हो। 
अब तुम इस सोना को इस जंगल से बाहर लेकर जा सकते हो; क्योंकि तुम्हारी एक गलती की सजा तुम्हें अब मिल चुकी है और तुम्हारा दिल भी सोना की तरह एकदम साफ है। “
राजकुमार,” जादुई पेड़, क्या अब हम इस जंगल से बाहर जा सकते हैं ? लेकिन कैसे..?? “
जादुई पेड़,” मेरे सामने वाली नदी के जरिए तुम इस जंगल से बाहर चले जाओ। उस पार जाते ही तुम अपनी दुनिया में चले जाओगे। तभी पेड़ की शक्तियों से अचानक से उस नदी में एक सुंदर नाव आती है। “
जादुई पेड़,” यह नाव तुम्हें उस पार पहुंचा देगी मेरे बच्चो। “
सोना,” तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद जादुई पेड़ ! तुम बहुत अच्छे हो। मैं तुम्हें बहुत याद करूंगी। “
जादुई पेड़,” मेरी टहनियों में से एक पत्ता तोड़ो सोना और अपने साथ ले जाओ। तुम्हें जब भी मेरी याद आएगी, मैं तुम्हारे सामने आ जाऊंगा सोना। 
लेकिन कभी भी किसी को मेरे बारे में कुछ मत बताना। मैं एक रहस्यमय पेड़ हूं। मेरी इस जादुई नगरी के बारे में बाहरी दुनिया को नहीं पता लगना चाहिए। “
 सोना,” ठीक है रहस्यमय पेड़। मैं किसी को तुम्हारे बारे में नहीं बताऊंगी और ना ही तुम्हारी इस नगरी के बारे में। “
जादुई पेड़ अपनी उदास भरी नजरों से दोनों को विदा करता है। उसके बाद वे दोनों नाव में बैठते हैं और वापस अपने गांव में आ जाते हैं। वो राजकुमार सोना को उसके घर छोड़ने जाता है। 
धनीराम अपने घर में उदास बैठा रहता है।
धनीराम (सोना को देखकर),” अरे मेरी प्यारी बेटी ! तुम आ गई ? कहां चली गई थी जंगल में अपनी बहनों को छोड़कर ? मैंने तुम्हें कितना ढूंढा ? “
सोना को देखकर उसकी बहन हैरान रह जाती हैं। 
पीकू,” अरे ऊषा दीदी ! यह वापस कैसे आ गई ? अब यह पिताजी को सब सच-सच बता देगी और पिताजी तो हमें घर से ही निकाल देंगे। “
सोना,” मुझे माफ कर दीजिए पिताजी। मैं डर के मारे जंगल से आगे निकल गई थी। इसमें ऊषा और पीकू दीदी की कोई गलती नहीं है। 
मैं जंगल से बाहर ही नहीं निकल पा रही थी। लेकिन जंगल में से मुझे इस राजकुमार ने ही बाहर निकाला और मुझे लेकर यहां आ गए। “
यह सब बातें पीकू और ऊषा अपने कानों से सुन रही थी और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हो चुका था। ऊषा और पीकू सोना के पास आती है। 
ऊषा,” हमें माफ कर दो प्यारी बहन। हमने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया। तुम सच में दिल की बहुत साफ और अच्छी हो। हमें माफ कर दो। “
सोना,” कोई बात नहीं मेरी प्यारी बहनों। मुझे पता है आप दोनों मुझसे बहुत प्यार करती हो। मेरे लिए इतना ही काफी है कि आप लोगों को अपनी गलती का अहसास हो गया। मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है। “
इसके बाद तीनों बहनें गले मिलती हैं।
धनीराम,” हे राजकुमार ! तुम मेरी सबसे प्यारी बेटी को जंगल से निकाल कर लाए हो। तुम्हारी वजह से ही सोना हमें दोबारा मिल पाई है। 
तुम बहुत बहादुर हो। क्या तुम हमेशा के लिए सोना की रक्षा करोगे ? तुम मेरी बेटी सोना से विवाह करोगे ? “

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राजकुमार,” हां, क्यों नहीं ? मैं सोना से ही विवाह करूंगा। सोना बहुत ही साफ दिल की और अच्छी लड़की है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी अगर सोना मेरी पत्नी बनेगी। “
इसके बाद बड़े धूमधाम से सोना और उस राजकुमार की शादी की जाती है और सोना हंसी खुशी राजकुमार के साथ उसके महल में रहने लगती है।
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