हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बांस का ढाबा ” यह एक Hindi Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Baans Ka Dhaba | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales
बांस का ढाबा
एक गांव में झुमरी नाम की स्त्री अपनी अपाहिज पति वसंत और 10 वर्षीय पुत्री कल्लो के साथ रहा करती थी। झुमरी बेहद गरीब थी।
वो और उसका पति निर्मला के ढाबे पर खाना बनाने का काम करते थे। निर्मला एक बेहद क्रूर स्वभाव की महिला थी।
एक दिन गाँव का मुखिया निर्मला के ढाबे पर भोजन करने के लिए आया।
मुखिया,” ओह निर्मला ! कहाँ हो तुम ? “
निर्मला,” अरे मुखिया जी ! तुम्हारे सामने तो खड़ी हूँ। ये क्या आँखे फाड़ फाड़कर इधर उधर देखे जा रहे हो ? “
मुखिया,” अरे ! तुम तो यहाँ खड़ी हो, मैं तुम्हे देख ही नहीं पाया। “
निर्मला,” ये क्यों नहीं कहते मुखिया जी कि तुम्हारी नजरें झुमरी को तलाश रही थीं ? “
मुखिया,” अरे ! नहीं निर्मला, ऐसी कोई बात नहीं। झुमरी से तो बस हम हल्का फुल्का मज़ाक कर लेते हैं। “
निर्मला ,” काहे को मजाक करते हो उस नासमिटी झूमरी से ? वो तो तुम्हे घास तक नहीं डालती। “
मुखिया,” ऐसी कोई बात नहीं हैं निर्मला। बात असल में ये है कि कभी झुमरी ने मुझे गौर से देखा नहीं है।
जिस दिन मुझे गौर से देख लेगी, उस दिन मेरे अलावा किसी और की तरफ वो देखेगी भी नहीं। “
निर्मला,” मुखिय जी, थोड़ी तो शर्म कीजिए। अब क्यों नहीं मान लेते कि आप बूढ़े हो गए हैं ? “
मुखिया,” कौन कहता है मैं बूढ़ा हो गया हूँ ? गांव के हट्टे कट्टे 8-10 नौजवान एक साथ मिलकर मेरा मुकाबला नहीं कर सकते। “
निर्मला ,” अच्छा बताइए, इस गरीब के ढाबे पर कैसे आना हुआ ? “
मुखिया,” अरे पूरे गांव में सिर्फ एक ही तो ढाबा है ये और मुझे तुम्हारे ढाबे की बनी हुई आलू की सब्जी और देसी घी के बने हुए आलू के पराठे रोज़ खीच लाते हैं, हाँ। “
निर्मला,” अरे ! ये क्यों नहीं कहती कि आप रोज़ रोज़ आलू के पराठे खाने के बहाने सिर्फ झुमरी को देखने के लिए आते हैं ? “
बसंत,” निर्मला जी, ये मुखिया ढाबे पर भोजन करने नहीं, सिर्फ मेरी पत्नी को गन्दी नजरों से देखने के लिए आता है। आप मुखिया को ढाबे पर आने के लिए मना क्यों नहीं कर देती हैं ? “
निर्मला,” तेरा दिमाग तो ठीक है बसंत ? मैं अपने ग्राहकों को भला आने से क्यों मना करूँगी ?
मुखिया मेरा ग्राहक है। मुखिया से मुझे महीने की अच्छी आमदनी होती है। “
बसंत,” लेकिन आप उसे इतना तो बोल ही सकती है ना कि वो मेरी पत्नी को उल्टी सीधी नजरों से देखना बंद करे। “
निर्मला,” अरे तुझे अपनी पत्नी की अगर इतनी ही चिंता रहती है तो फिर उसको घर पर रख और घर के अंदर बंद करके रख। क्यों काम करवाता है उससे ? “
बसंत,” मजबूरी है निर्मला जी। आप तो जानती ही है, मैं अपाहिज हूं और मेरी एक 10 वर्षीय बेटी भी है। “
निर्मला,” ये बात तुझे समझ में क्यों नहीं आती लंगड़े कि तू लंगड़ा है, अपाहिज है ? अरे तू दो वक्त की रोटी भी अपनी पत्नी और बेटी को नहीं खिला सकता। लेकिन अकड़ तुझमें अंबानी से भी ज्यादा है। “
बसंत,” लेकिन निर्मला जी…। “
निर्मला,” इससे ज्यादा मैं तेरी बक बक बर्दाश्त नहीं कर सकती बसंत। अगर तू यहाँ दो सेकंड और रुका तो तुझे और तेरी पत्नी झूमरी को धक्के देकर ढाबे से बाहर निकाल दूंगी। “
बसंत,” संपत और कपटा तुम्हारी गंदी हरकतें दिन व दिन बढ़ती जा रही है। “
संपत,” अबे तो तू क्या कर लेगा ? वैसे भी तुझसे कुछ होता तो है नहीं। हम तो तेरी मदद करना चाह रहे है। “
कपटा,” संपत भैया सही बोल रहे है बसंत। मुखिया जी इस गांव में सबसे अमीर व्यक्ति हैं। धन की कोई कमी नहीं है उनके पास।
मैं कहता हूँ मुखिया जी की बात मान ले। वो तेरी पत्नी झुमरी को रानी बनाकर रखेंगे रानी। “
बसंत,” तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई मेरे सामने इतनी घटिया बात करने की ? “
संपत,” लो भाई कर लो बात, बोल तो ऐसे रहा है जैसे कि गाँव का नया थानेदार यही है। अबे लंगड़े ! तू सिर्फ एक लंगड़ा है, समझा..? इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेता बे ? “
कपटा ,” संपत भैया सही बोल रहे हैं बसंत। लोग धरती पर बोझ होते हैं बोझ पर तू तो अपनी पत्नी के ऊपर बोझ है। “
संपत,” मैं तो तुझे एक सलाह देता हूँ बसंत और इससे सबका भला हो जाएगा, तेरी पत्नी का भी और तेरी बेटी कर लो का भी। अभी जाकर किसी ट्रैन की पटरी के नीचे आजा तू। “
कपटा,” संपत भैया सही बोल रहे हैं बसंत। जब तू नहीं रहेगा तो झुमरी को मुखिया की बात माननी पड़ेगी।
झुमरी जब मुखिया की बात मान लेगी तो मुखिया हमें मालामाल कर देगा। देख तेरे मरने से कितने लोगों को फायदा होगा ? लेकिन तू है कि मरता ही नहीं। “
संपत,” अब देख झुमरी किसी को पता भी नहीं लगेगा और आजकल तो मॉडर्न ज़माना है। ज्यादातर शादीशुदा औरतों के ही दूसरे मर्दों के साथ चक्कर चलते हैं। “
झुमरी,” तुम दोनों को शर्म नहीं आती इतनी घटिया बातें करते हुए और वो भी मेरी पति के सामने ? मुखिया से जाकर साफ साफ कह दो… झुमरी गरीब जरूर है लेकिन बिकाऊ नहीं है। “
इसके बाद संपत और कपटा अपनी बाइक लेकर मुखिया के घर जाते हैं।
मुखिया,” क्या हुआ संपत और कपटा..? झुमरी मानी कि नहीं मानी ? “
संपत ,” हमने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया मुखिया जी लेकिन वो नहीं मानी। “
कपटा ,” संपत भैया सही बोल रहे हैं मुखिया जी। हमने झुमरी को बहुत समझाने का प्रयास किया।
मेरे ख्याल से जब तक उसका पति बसंत जिंदा है, मुझे नहीं लगता कि आपका काम हो पाएगा। “
मुखिया,” इस लंगड़े को भी पता नहीं मुझसे क्या दुश्मनी है ? अरे ! मैं उसकी पत्नी से सिर्फ दो चार प्यार की बातें ही तो करना चाहता हूँ और उसके बदले उसे ढेर सारे रुपए भी देने को तैयार हूँ। लेकिन उसका लंगड़ा पति मेरी बात मानता ही नहीं। “
संपत,” अरे ! आप तो बहुत धनवान हो मुखिया जी। अगर आप कहो तो मैं बसंत को रास्ते से हटवा देता हूँ। “
कपटा,” संपत भैया सही बोल रहे हैं। वैसे भी लंगड़ा किसी काम का तो है नहीं।
चलती हुई बस के सामने फेक देंगे। बोल देंगे लंगड़ा रोड पार कर रहा था और बस की टक्कर से उसकी मौत हो गई। “
मुखिया,” तुम दोनों का दिमाग तो ठीक है। तुम दोनों इस उम्र में मुझे हथकड़ियां पहनाना चाहते हो। “
संपत ,” अरे ! तो फिर आप ही बताओ हम क्या करें ? “
मुखिया,” अब तो सिर्फ एक ही उपाय है। मुझे पूरी उम्मीद है कि वो उपाय जरूर काम करेगा। चलो मेरे साथ। “
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निर्मला,” क्या बात है मुखिया जी..? सुबह तो पराठे खा कर गए थे, क्या बात है, फिर से भूख लगने लगी ? “
मुखिया,” निर्मला, पानी सर से ऊपर चढ़ गया है। “
निर्मला,” तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ? “
मुखिया,” कल तुम झुमरी और उसके पति को काम से निकाल दो और मैं गांव में सबको बोल दूंगा कि झुमरी और उसके पति बसंत को काम ना दिया जाए। “
संपत,” अरे मुखिया जी ! सिर्फ आप झुमरी की बात करिए, वो बसंत तो लंगड़ा है। उसे कौन काम देगा ? “
कपटा,” संपत भैया सही बोल रहे हैं मुखिया जी। “
निर्मला,” मेरा तो नुकसान हो जाएगा, क्योंकि झुमरी मेरे ढाबे पर खाना बनाती है। उसके हाथों का बनाया हुआ भोजन ग्राहकों को बहुत पसंद है। “
मुखिया,” तुम उसकी चिंता मत करो, मैं तुम्हारे लिए शहर से किसी फाइव स्टार होटल में भोजन बनाने वाले व्यक्ति को लगवा दूंगा और उसके पैसे भी मैं दूंगा। तुम्हारा ढाबा और ज्यादा चलने लगेगा। “
निर्मला,” तो फिर समझिए आपका काम हो गया। “
कुछ समय बाद…
निर्मला,” तुम दोनों निकाल जाओ यहाँ से, मैंने शहर के फाइव स्टार होटल से खाना बनाने वाले को बुलाया है। अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। “
झुमरी,” ये क्या कह रही हैं आप ? आप अच्छी तरह से जानती हैं हम दोनों आपके ढाबे पर काम करते है और इससे हमारी रोज़ी रोटी चलती है। “
निर्मला,” अरे ! तो क्या मैंने तुम्हारी रोज़ी रोटी का ठेका ले रखा है ? मेरी मर्जी… निकलो यहाँ से। “
झुमरी,” ठीक है तो फिर हम दोनों की एक महीने की पगार दे दीजिये, हम चले जाते हैं। “
निर्मला,” तेरा दिमाग तो ठीक है झूमरी..? कौन-सी पगार मांग रही हो ?
दिन भर तो तू कोई काम धंधा करती नहीं थी, मुँह उठाए बस नैन मटक्का करती रहती थी और तेरा लंगड़ा पति वो तो सिवाए कुर्सी तोड़ने के अलावा दूसरा काम नहीं करता। “
झुमरी,” एक ऐसी बातें कर रही हैं आप ? आपको मेरे चरित्र पर लांछन लगाते हुए शर्म नहीं आती ? “
निर्मला,” बड़ी सती सावित्री बनती फिरती है। मेरा मुँह मत खुलवा। अगर बोलना शुरू करूँगी तो तेरे कानों से धुआं निकलने लगेगा। “
निर्मला ने बसंत और झुमरी को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। वो दोनों बेचारे रोते हुए घर पर गए तो उन दोनों को अपने घर के बाहर उनकी बेटी कल्लो रोते हुई मिली।
झुमरी,” क्या हुआ बेटी कल्लो, तुम रो क्यों रही हो और बाहर क्या कर रही हो ? “
कल्लो,” मकान मालिक ने मुझे मार मारकर घर से निकाल दिया और सामान भी फेंक दिया। “
झुमरी,” लेकिन क्यों ? “
मकान मालिक,” क्योंकि तुम दोनों ने एक महीने से किराया नहीं दिया। “
झुमरी,” अगर आप हमें घर से निकाल देंगे तो हम कहाँ जाएंगे ? हमें कुछ दिन की मोहलत और दे दीजिए, हम किराया दे देंगे। “
मकान मालिक,” तुम दोनों कहीं भी जाकर मरो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और मुझे तुमसे अब कोई किराया नहीं चाहिए। क्योंकि ये मकान मैंने मुखिया को बेच दिया है। “
मुखिया,” अभी भी वक्त है झुमरी, मेरी बात को मान ले। “
झुमरी,” नहीं, किसी भी कीमत पर नहीं। मैं भूखी मर जाउंगी, लेकिन तुम्हारी बात नहीं मानूंगी। “
संपत,” अरे ! अपना नहीं तो कम से कम अपनी इस बेटी का तो ख्याल कर। “
कपटा,” संपत भैया बिलकुल सही बोल रहे हैं। बेटी का नहीं तो कम से कम अपने लंगड़े पति का ही ख्याल कर ले। “
मुखिया,” तुझे और तेरे पति को गांव में कहीं भी अब काम नहीं मिलेगा। तेरी भलाई इसी में है कि तू मेरी बात मान ले। “
इतना बोलकर मुखिया संपत और कपटा के साथ मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया। बेचारी झुमरी अपने परिवार को लेकर गांव गांव भटकती रही।
मगर किसी ने भी झूमरी की मदद नहीं की। अंत में झुमरी थक हारकर जंगलों की ओर चली गई। भूख की वजह से अचानक उसकी बेटी कल्लो को चक्कर आ गया।
झुमरी,” क्या हुआ मेरी बेटी ? लगता है ये भूख की वजह से बेहोश हो गई है। “
झुमरी परेशान हो जाती है। वह मदद के लिए आसपास लोगों की तलाश करने लगती है।
तभी वहां उसे एक झोपड़ी दिखाई देती है। वह उस झोपड़ी में आवाज लगाती है।
अम्मा,” क्या बात है..? इस जंगल में तुम अकेली क्या कर रही हो ? “
झुमरी,” मेरी बेटी वहाँ पे होश हो गई है, मेरी मदद कीजिए। “
वह बूढ़ी औरत बेहद दयालु थी। वह उन सबको अपने घर के अंदर ले आई।
अम्मा,” भूख की वजह से बिटिया को चक्कर आ गए होंगे। चिंता मत करो, कुछ देर बाद इसको होश आ जाएगा। तुम तीनों रात में इस जंगल में क्या कर रहे थे ? “
झुमरी ने रोते हुए सारी घटना उस बूढ़ी औरत को बताई।
अम्मा,” किसी जवान स्त्री का पति अगर अपाहिज हो तो ये दुनिया उसे चैन से नहीं रहने देती। तुम चिंता मत करो। तुम तीनों आज से मेरे ही साथ रहो। मेरी कोई संतान नहीं है। “
झुमरी,” लेकिन आप जंगल में अकेली क्यों रहती हैं ? गांव में क्यों नहीं रहतीं ? क्या आपका परिवार नहीं है ? “
अम्मा,” ऐसी बात नहीं है। मेरा पूरा परिवार है लेकिन वो सब अमेरिका में जाकर शिफ्ट हो गए है और मुझे अकेला छोड़ गए।
उनके जाने के बाद मुझे ये दुनिया वीरान लगने लगी। फिर मैंने जंगलों में ही अपना घर बना लिया। अब तुम सब सो जाओ, सुबह बात करेंगे। “
अगली सुबह…
अम्मा ,” तुम ढाबे पर भोजन बनाने का काम करती थी ना ? “
झुमरी,” जी। “
अम्मा ,” तो तुम अपना ढाबा खुद क्यों नहीं खोल लेती ? “
झुमरी,” कैसे खोल सकती हूँ ? मेरे पति अपाहिज है और मेरे पास इतने पैसे नहीं। “
अम्मा ,” मैं तुम्हारी मदद करूँगी। गांव में मेरी कुछ जमीन पड़ी हुई है। तुम वहाँ पर अपना ढाबा खोल लेना। तुम अपने ढाबे में बांस पकौड़े बनाना। “
झुमरी,” बांस पकोड़े..? लेकिन ये कैसे संभव है ? भला बांस को कैसे खा सकती हैं ? “
अम्मा ,” हां, काफी सालों पहले मैं विदेश में रहा करती थी और उन दिनों मेरे पति को शिकार खेलने का बहुत शौक था। एक दिन हम दोनों पति पत्नी जंगल में भटक गए।
तब वहाँ के कुछ आदिवासियों ने हमारी मदद की। उन्होंने ही हमें बांस पकोड़ा बनाने की रेसिपी सिखाई।
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यकीन मानो अगर तुम उस रेसिपी से बांस पकोड़ा बनाकर अपने ढाबे में बेचोगी तो तुम देखना… देखते ही देखते तुम्हारा ढाबा हर जगह मशहूर हो जायेगा। “
उस बूढ़ी औरत ने झुमरी को गांव में जमीन दे दी। झुमरी बसंत और उसकी बेटी कल्लो ने मेहनत से एक ढाबा बनाकर तैयार कर दिया।
अम्मा ,” झुमरी, अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें बांस पकोड़े कैसे बनाने हैं ? गांव की छोटी पहाड़ी के पास जो जंगल है जहाँ पर हमेशा कोहरा छाया रहता है, तुम वहाँ से बांस उठाकर ले आओ। वो बांस खाने के होते हैं। “
झुमरी ने ऐसा ही किया। अपनी बेटी कल्लो और बसंत के साथ ढेर सारे बांस वहाँ से उठा लाई।
उस बूढ़ी औरत ने झुमरी को रेसिपी बताना शुरू किया। कुछ ही देर में बांस पकोड़े बनकर तैयार हो गए।
झुमरी के ढाबे के पास एक कार आकर रुक गई। उस कार में से एक शहरी व्यक्ति निकलकर झूमरी से बोला।
आदमी,” अरे ! तुम्हारे पास पानी की बोतल है क्या ? “
झुमरी,” जी भैया, मिल जाएगी। “
आदमी,” ये कौन सी डिश है ? इसमें तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही है। “
झुमरी,” बांस पकौड़े बनाए हैं
। “
आदमी,” ये कौन सी डिश है ? “
झुमरी,” भैया, बहुत अच्छी है। एक बार खाओगे तो खाते रह जाओगे। “
आदमी,” एक प्लेट लगाओ। “
झुमरी ने एक प्लेट उस व्यक्ति को लगा दी। उस व्यक्ति को बांस पकौड़े इतने पसंद आए कि उसने ढेर सारे पैक भी करवा दिए।
यहाँ तक कि उसने सोशल मीडिया पर भी झूमरी का फोटो बांस पकौड़ी की प्लेट के साथ अपलोड कर दिया। कुछ ही दिनों में झुमरी के ढाबे पर शहर के लोगों की भीड़ लगने लगी।
झुमरी का फोटो रोज़ रोज़ न्यूसपेपर में छपने लगा। मुखिया क्रोधित होकर निर्मला के ढाबे पर संपत और कपटा के साथ बैठा हुआ था।
मुखिया,” मैंने झुमरी को ये सोचकर निकलवाया था कि वो मजबूर होकर मेरे पास आ जायेगी। मगर उसके तो यहाँ से जाते वो तो कहाँ से कहाँ पहुँच गई ? “
निर्मला ,” तुम्हारी बातों में आकर मैंने अपना नुकसान भी कर दिया मुखिया। सारे लोग पागल हो गए है। जिसे देखो वो झुमरी के बांस पकौड़े की तारीफ करता रहता है। “
संपत,” अब झुमरी की तरफ देखना भी मत मुखिया जी। झुमरी अब झुमरी नहीं रही, जो एक असहाय औरत हुआ करती थी।
आज की तारीख में उसके पास छह लक्ज़री कारें हैं। जंगल में एक वीआईपी बंगला बनाकर वो उसमें बेहद टाइट सिक्योरिटी के साथ रहती है। “
कपटा,” संपत भैया बिलकुल सही बोल रहे हैं मुखिया जी। कहीं गलती से अगर तुमने कुछ उल्टी सीधी हरकत कर दी, तो लेने के देने पड़ जाएंगे। “
मुखिया ,” तुम दोनों अपनी बकवास बंद करो। लगता है,
झुमरी के अमीर बनते ही तुम दोनों ने तो अपना पाला ही बदल लिया।
झुमरी अगर मेरी नहीं हो सकती तो किसी की नहीं हो सकती। मैं आज रात ही झुमरी और उसके परिवार को मार दूंगा। “
संपत,” ऐसी गलती मत करना मुखिया जी। अब उसके ढाबे पर कमिश्नर वगैरह भी आते रहते हैं। “
कपटा,” संपत भैया बिलकुल सही कह रहे हैं।
मुखिया जी, पुलिस डंडो से मार मारकर तुम्हारी हालत खराब कर देगी। अब तुम्हारी औकात झुमरी के सामने दो कौड़ी की भी नहीं रही।
अगर तुमने कुछ भी उल्टा सीधा किया तो तुम्हें कुत्ता बना देगी कुत्ता और हमेशा तुम्हारे गले में कुत्ते का पट्टा डालकर अपने ढाबे के पास बाँध देगी। “
मुखिया,” इसकी नौबत नहीं आएगी संपत और कपटा। “
तभी मुखिया जेब से एक पुड़िया निकलता है।
निर्मला,” ये क्या है ? “
मुखिया ,” जहर। आज रात में किसी भी तरह से उसे उसके परिवार सहित जहर देकर मार दूंगा। “
मुखिया ने इतना कहा ही था कि तभी ढाबे से तीन चार लोग उठकर खड़े हो गए। उनके हाथ में पिस्तौल थी।
ये देखकर मुखिया संपत और कपटा बेहद घबरा गए। उनमें से एक व्यक्ति मुखिया की ओर देखकर बोला।
व्यक्ति,” मैं जिले का एस एस पी अभिमन्यु हूं। कुछ दिन पहले झुमरी ने मुख्यमंत्री को तुम्हारे खिलाफ़ शिकायत भेजी थी।
हम तब से तुम्हारी निगरानी कर रहे थे और आज हमने तुम्हारी सारी बातें सुन ली। तुम तीनों की जगह बाहर नहीं बल्कि जेल में है। “
निर्मला ,” सर, आप नहीं जानते, ये मुखिया झुमरी पर बुरी नजर रखता था। “
अभिमन्यु,” तुम तो औरत के नाम पर कलंक हो, निर्मला। तुम्हारी सजा भी जेल है। तुम भी इन तीनों के साथ जेल में चक्की पीसोगी।
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अगर मैं इस टाइम यहाँ पर मौजूद नहीं होता तो आज ये मुखिया अपने मकसद में कामयाब हो जाता। “
मुखिया ,” तुम मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते, एस एस पी। अभी तक मैंने कोई जुर्म नहीं किया है। “
अभिमन्यु,” मैं तुम्हारी पल पल की खबर रख रहा था मुखिया। तुम्हारे मुँह से निकले हुए शब्द समेत कैमरे में रिकॉर्ड हो गए, जो सबूत के तौर पर अदालत में पेश करने के लिए काफी हैं। “
एस एस पी ने मुखिया, संपत, कपटा और निर्मला को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।
झुमरी आज भी बांस के पकौड़े का ढाबा चलाती है और उसके बनाए हुए बांस के पकौड़े सबको बहुत पसंद आते हैं।
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