हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेवकूफ बहू ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Latest Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Bewkoof Bahu | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales
बेवकूफ बहू
रूपा एक गरीब परिवार की बेटी थी। संयोग से उसकी शादी अमीर खानदान में हो जाती है।
रूपा,” आपका घर तो बहुत बड़ा है। लेकिन कोई भी घर में पंखा नहीं है। बोले होते तो पापा से बोल कर एक पंखा मंगवाई देते। बताओ अब क्या करे ? आप भी ना…। “
शंकर,” पगली पंखा इसलिए नहीं लगाया क्योंकि हमारे यहाँ एयर कंडिशनर लगा हुआ है और इसके होने से पंखे की जरूरत नहीं होती। “
रूपा,” एयर का कमीशन तो हमारे गांव में भी लेता है। बिजली वाला चार पंखा का ₹400 कमीशन लेता है।
पर हमारे पापा ₹200 देकर काम चला लेते हैं। कहो तो पापा से बात करके यहाँ भी सेट करवा दूँ। बताओ..? बहुत जान पहचान है पापा की। “
शंकर,” अरे पगली ! उसे कमीशन कहते हैं और इसे कंडीशन। तुझे कैसे बताऊँ अब ? “
रूपा,” हाँ हाँ कंडीशन, हमारे गांव में सब कमिशन नहीं जानत है। कंडीशन कोई नहीं जानता। हम सोच रहे की ससुर जी के दू पैसा पापा से कह कर बचत कर दें।
घर में चारगो पंखा लग जाएं। लेकिन यहाँ तो हमारे मजाक बनावल जाद। अब से हम कुछ ना बोलब।
कौन फायदा..? दरवाजा खिड़कियां काहे बंद कर रहे हैं ?
एक तो रूम में एक को पंखा नहीं है ऊपर से खिड़कियों को भी बंद कर दीजियेगा तब तो गर्मी से दम ही घुट जाएगा। खोला, चलदी खोला खिड़की। “
शंकर,” एक मिनट रुको ज़रा, देखते जाओ अब। “
रूपा,” अरे ! नहीं खोलिए खिड़की दरवाजा। हमारे गांव में घर में खिड़की में पल्ला भी नहीं लगा है। रात में पुरवैया ऐसी लागत है कि हम शिमला में सोए हैं।
लेकिन सवेरे जब धूप की रौशनी आवत है तो लागत है कि रात भर में शिमला से बीकानेर पहुँच गए। “
शंकर,” अब कुछ महसूस हो रहा है ? बताओ, कैसा लग रहा है ? “
रूपा,” ठंडा हवा कहाँ से आ रहा है? बर्फ़ की सिल्ली बाबूजी से मंगाए है का छत पर ?
हम लोग भी बाल्टी से पानी डालते थे लेकिन ये तो कनकने लगता है जी। ऐसा कैसे बतावा जी ? ये कैसे भवा ? “
शंकर,” ये गर्म हवा के ठंडा करने वाला मशीन है और ठंड में गर्म हवा देता है। अब गर्मी में भी शिमला का मज़ा ले सकती हो ? “
रूपा,” अजी बहुत ही ठंडा हवा निकल रहा है। मशीन बंद कर दीजिए नहीं तो हमारी कुल्फी ही जाम जाई। “
रूपा की सास सुनीता बहुत ही कंजूस औरत थी। वो बहू के कमरे में आती है और कहती है।
सुनीता,” बहू, अरे बहू ! चल देख तुमसे मिलने कौन आई है ? हाय हाय हाय ! कल ही ₹25,000 का बिजली का बिल भरा गया है।
तुम लोग ए.सी. चलाकर बैठे हो। तुम मुझे कंगाल कर के ही मानोगे ना ? “
शंकर,” अरे ! नहीं मां, वो तो मैं ही रूपा को ऐ.सी. दिखा रहा हूँ इसलिए ऑन किया था बस। और कौन सा इतनी देर में कुछ ज्यादा बिल आ जायेगा ? “
सुनीता,” वाह री दुनिया एक दिन में जोरू का गुलाम बन गया। चल बहू ड्रॉइंगरूम में जल। तुझसे मिलने आए हैं खास लोग। चल जल्दी आजा। “
ड्रॉइंगरूम में रूपा की ननद नैना आई हुई थी जो शादी में बेटा रवि की परीक्षा के कारण नहीं आ पाई थी।
नैना,” अरे भैया ! कहां छुपा के रखे हो अपनी रूपवती को ? मम्मी के कहने पर भी अभी तक झलक नहीं दिखलाई है। “
शंकर,” अरे ! अभी तक नहीं आई ? माँ के आने के तुरंत बाद उसे ड्रॉइंगरूम में भेजा था। एक मिनट मैं अंदर देखकर आता हूँ। “
रूपा,” एजी, इधर आओ ना। एको बात पूछनी है आपसे। “
शंकर,” अरे ! तू यहाँ खड़ी है और नैना ड्रॉइंगरूम में वेट कर रही है। “
रूपा,” वही ड्राइंग रूम तो खोज रही हूँ पिछले आधे घंटे से। एक यहीं पर तो ड्रॉइंग लगी हुई है।
लेकिन इसमें रूम कहां है। यहाँ आप ही बताओ मैं क्या करूँ ? “
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शंकर,” अरे पगली ! ड्रॉइंगरूम बाहर के कमरे को कहते हैं जहाँ मेहमान लोग आकर बैठते हैं।
अब चल जल्दी, नैना कब से वहाँ बैठी हुई है ? “
रूपा,” वो तो हमारे गांव में द्वार कहलाता है। चलिए चलते हैं। “
नैना,” आइए भाभी आइए, मेरा नाम नैना है। मैं आपकी ननद हूँ।
मेरा बेटा रवि का एग्जाम था इसीलिए शादी में ना आ सकी। ये लो तुम्हारा गिफ्ट… फॉरन से लायी हूँ एक दम स्पेशल बिलकुल आपके जैसा। “
रूपा,” फौरन लाने की जरूरत थी। थोड़ा लेट ही ले आती। हम कौन भागे जा रही थी बताओ ? “
शंकर,” अरे पगली ! फौरन नहीं फ़ौरन। “
रूपा,” मुझे इतनी बुद्धि है कि फौरन और फोरन में अंतर कर सकूं। फौरन सब्जी, दाल तड़का आदि में पड़ता है और फोरन मतलब जल्दी होता है। “
शंकर,” अरे पगली ! फौरन मतलब विदेश से गिफ्ट लाये हैं। “
रूपा की बातों पर सब हंस पड़ते हैं। रूपा को लगता है कि सभी उसका मजाक उड़ा रहे हैं। वो मायूस हो जाती है। “
रवि,” मामी भूख लगी है। पास्ता बनाओ ना… और जल्दी बनाना मामी। “
रूपा,” ठीक है बेटा, मैं अभी किचन से बनाकर लाती हूँ। “
रूपा (स्वयं से),” पिस्ता को अमीर लोग आजकल पास्ता कहते हैं शायद। पिस्ता लेकर ही जाती हूँ। “
रूपा,” लो बेटा, अपना पास्ता खा लो। “
रवि,” पर मामी ये तो पिस्ता है। हम लोग तो पिस्ता ही कहते हैं। आप जैसे आज कल के बच्चे पास्ता कहते हैं। इतना तो पता है मुझे। “
शंकर,” पगली पास्ता मैगी जैसा होता है और पकाया जाता है। “
रुपा पैर पटकती हुई अपने रूम में चली जाती है और देखते ही देखते रात हो जाती है। तभी रूपा देर रात बाथरूम जाने के लिए उठती है।
उसी समय नैना कान में ब्लूटूथ हेडफोन लगाए हुए गाना सुन रही थी और लॉंज में टहल रही थी। बीच बीच में वो गाने की रिदम पर थिरक भी रही थी।
रूपा की नजर जब लॉंज में थिरकते हुए नैना पर गई तो उसे लगा कि नैना को मिर्गी आई है।
वह दौड़ के जाकर ससुर जी वाला जूता ले आई और नैना को सुंघाने लगती है। जूता की बदबू से नैना बेहोश हो जाती है। कुछ देर बाद होश आने पर नैना कहती है।
नैना,” भाभी, ये सब क्या किया आपने ? आपने मुझे जूते क्यों सुंघाए ? “
रूपा,” आप लोंज में उछल कूद कर रही थी तो मैं सोंची कि आप पर भूत आई है। हम डर गए। लेकिन अगले ही पल याद आया कि मिर्गी का दौरा भी ऐसे ही पड़ता है। इसीलिए पापा वाला जूता मैंने लाकर आपको सुंघा दिया। “
नैना,” वो मैं अपना वायरलेस इयरफोन पर माइकल जैक्सन का गाना सुन रही थी, लेकिन आपके पास तो मोबाइल थी ही नहीं और तार भी कान में नहीं लगा था। “
तभी शोर सुनकर वहाँ पर शंकर आ जाता है और रूपा को कहता है।
शंकर,” अरे पगली ! ब्लूटूथ से कनेक्टेड होता है मोबाइल और 100 मीटर तक कहीं से भी बिना तार के मोबाइल की आवाज़ सुन सकते हैं।”
नैना,” चल बेटा रवि, यहाँ दो तीन दिन और रह गए तो हॉस्पिटलाइस्ड होना पड़ेगा। पता नहीं क्या क्या खाने को मिलेगा ? “
शंकर,” नाराज क्यों होती हो ? वो गांव से आई है।
ये सब ना देखा है और ना सुना है। कुछ टाइम दो, सब सीख जाएगी। “
सुनीता,” अरे ! ऐसा कौन से गांव से आई है ? हम सभी गांव से ही है।
लेकिन कभी भी छोटी ननद को चप्पल या जूते से नहीं मारा कभी। “
रूपा,” मुझे माफ़ कर दीजिये। अनजाने में ये सब हो गया। हमें नहीं पता था कि वो नाच रही हैं।
आज के बाद ऐसा नहीं होगा। “
सुनीता,” अनजाने में इतनी बड़ी घोड़ी जैसी हो गई है और अकल नाम की चीज़ ही नहीं है। छोटे घर से लाई थी कि घर में सभी को इज्जत देगी, सभी को मिलाकर चलेगी, लेकिन ये तो ननद को ही पीट रही है।
आज ननद को मारा है, कल सास को मारेगी। ना जाने और क्या क्या देखना बाकी है ? “
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रूपा रोती हुई अपने कमरे में चली जाती है। तभी शंकर सभी से कहता है।
शंकर,” चलो अब गुस्सा छोड़ो। आज रात मेरी तरफ से रेस्टोरेंट में डिनर पार्टी होगी। “
शाम को सभी रेडी होकर रेस्टोरेंट जाते हैं। शंकर रूपा को पहले ही बता देता है कि वहाँ पर किसी भी तरीके की डिस्टरबैंस नहीं होनी चाहिए।
सभी लज़ीज़ डिनर का आनंद उठाते हैं। तभी रवि कहता है।
रवि,” देखा मम्मा, अब मामी भी मॉडर्न हो गयी ? “
शंकर,” हाँ, आज कोई गलती नहीं हुई। बस ऐसे ही वो सब सीख जाएगी। “
नैना,” आखिर गंवार तो गंवार ही रहेगी। देखता जा… कुछ ना कुछ तो हरकत करेगी गंवार। “
सुनीता,” सही कहा तुने बेटी। “
तभी वेटर हैंड वॉश करने के लिए बाउल में गर्म पानी और नींबू लाकर सभी को देता है। सभी लोग हाथ धोते हुए बात कर रहे थे कि तभी सुपुर्द सुपुर्द की आवाज सुनकर सभी रूपा की ओर देखते हैं।
वह बाउल में नींबू निचोड़कर आराम से बाउल को उठाकर पी रही थी। सभी एक दूसरे को देखकर हंस पड़ते हैं।
शंकर,” अरे पगली ! ये पीने के लिए नहीं, हाथ धोने के लिए था जैसे हम सब हाथ धो रहे हैं। “
रूपा,” लेकिन ज्यादा खाने के बाद हमारे गांव में पेट साफ करने के लिए नींबू पानी पीते थे। इसलिए मैं पी गई। “
सुनीता,” देख लिया..? आखिर कर दी ना इसने गंवार वाली हरकत ? लो और बना लो मॉडर्न इसे। “
शंकर,” अब बस भी करो माँ। कई बार अनजाने में ऐसी गलतियाँ हो जाती है। आओ सब लोग चलते हैं। “
सभी लोग डिनर करके घर के लिए जाने लगते हैं कि तभी रेस्टोरेंट की सीढ़ी से अचानक सुनीता का पैर फिसल जाता है।
सुनीता,” आई माँ, मर गयी। मेरा पैर… मुझसे उठा नहीं जा रहा। “
शंकर,” अरे मां आप रुको। आप टेंशन मत लो, मैं आपको अभी हॉस्पिटल लेकर चलता हूं। “
शंकर,” मैं माँ को लेकर हॉस्पिटल जा रहा हूँ। आप सब लोग घर पहुंचो। “
रूपा,” अजी, आप माँ को अच्छे से पहलवान से दिखाइएगा। “
शंकर,” अरे रूपा ! हॉस्पिटल में पहलवान नहीं होते, डॉक्टर होते हैं। हमारे गांव में तो जब मोच या हड्डी चढ़वानी हो तो पहलवान के पास जावत हैं। “
शंकर,” अरे ! अभी तुम लोग घर जाओ। मैं माँ को चेक करवा के घर आता हूँ। “
हॉस्पिटल में डॉक्टर ने सुनीता को चेक किया। पैर में प्लास्टर चढ़ गया।
45 दिनों का बेड रेस्ट करने को डॉक्टर कहता है। उस टाइम रूपा ने सुनीता की जी जान से सेवा की।
रूपा,” अरे मां जी ! कौनो चिंता नहीं। ये रूपा के होते हुए आप बस आराम कीजिये। हमें इस सेवा का मौका मिला है।
आपको कौनो भी जरूरत लगे उसी समय आवाज़ देना, रूपा तुरंत हाजिर हो जावे यहां। “
यह सब देखकर सुनीता को अहसास होता है कि उसने रूपा के साथ कभी भी अच्छा व्यवहार नहीं किया। हमेशा उसके गंवार होने का मजाक उड़ाया।
सुनीता,” बहू, थोड़ा इधर आना। मैंने तुम्हारे साथ कभी अच्छा बर्ताव नहीं किया लेकिन तुमने कभी पलटकर जवाब नहीं दिया बल्कि मेरी सेवा जी जान से की।
ये ले घर की चाबी पकड़ और संभाल अपने घर को। “
रूपा,” ये घर मेरा नहीं सभी का है और आप घर की एक मालकिन। मेरी माँ नहीं थी लेकिन आपने मुझे माँ बनकर समझाया। “
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सुनीता,” जिसके इतने अच्छे संस्कार हो वो गरीब कैसे हो सकता है ? तू इस घर की बहू नहीं, बेटी है। “
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