लालची बूढ़ा | Lalchi Budha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची बूढ़ा ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
लालची बूढ़ा | Lalchi Budha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Lalchi Budha | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

चन्दनपुर नामक गाँव में एक बूढ़ा और उसकी पत्नी गांव में अपनी छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहा करते थे। दोनों बहुत ही बूढ़े हो चूके थे लेकिन बूढ़ा बाबा बहुत ही घमंडी था, वहीं बूढ़ी अम्मा बहुत ही दयालु थी। 
एक दिन जंगल में…
बूढ़ा,” अरे वाह वाह ! कितने सुंदर फल हैं ? वाह मेरा मन तो ललचा ही गया इन सुंदर सुंदर फलों को देखकर। 
भूख भी बहुत तेज़ लगी है। हाँ, चलो इन्हीं फलों को खाया जाए। “
फल खाते हुए…
बूढ़ा,” अरे वाह ! क्या स्वादिष्ट फल हैं ? वाह वाह ! बहुत मजेदार… इतने मीठे फल तो मैंने कभी नहीं खाये। “
रास्ते से गुजरता हुए…
भिक्षुक (बूढ़े को देखकर),” अरे वाह ! कितने सुंदर और चमकदार फल हैं। अगर मुझे थोड़े भी खाने को मिल जाते तो…।
वैसे भी बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। थोड़े फल मुझे भी दे दीजिये ना, मुझे भी थोड़े फल दे दीजिये। “
बूढ़ा,” अरे ! चल भाग यहाँ से, मैं तुझे एक भी फल नहीं दूंगा। बहुत भूक लगी हैं मुझे। 
ये सारे फल मेरे हैं, मैं ही इन्हें खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा हाँ। बहुत ही स्वादिष्ट फल है, वाह ! “
भिक्षुक ,” मैं एक भिक्षुक हूँ, कई दिनों से भिक्षा ना मिलने के कारण बहुत ही भूखा हूँ। 
अगर तुम इन फलों में से कुछ फल मुझे दे दोगे तो मेरी भूख शांत हो जाएगी। मुझ पर दया करो, पुण्य मिलेगा बाबा। “
बूढा,” अरे ! नहीं, मुझे कोई पुण्य नहीं चाहिए तुमसे। इतने स्वादिष्ट और मजेदार फलों में से मैं एक भी फल किसी को नहीं दूंगा हाँ। 
चलो जाओ यहाँ से। मुझे इन मजेदार फलों का आनंद लेने दो। “
बूढ़ा बहुत ही निर्दय और भूखड़ है। अपनी भूख के आगे उसे भूखे भिक्षुक की भी भूख नहीं दिखी। 
भिक्षुक,” जाओ मेरा श्राप है… अब से तुम जितना भी भोजन करोगे, तुम्हारी ये भूख शांत नहीं होगी। तुम जो भी भोजन खाओगे, वो तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा। ये भिक्षुक का श्राप है श्राप। “
लेकिन बूढ़े के ऊपर भिक्षुक की इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वो मज़े से फल खाता रहता है।
घर आकर…
बूढ़ा,” भाग्यवान, आज जंगल में एक पेड़ पर बहुत ही सुन्दर और स्वादिष्ट फल थे। खाकर मज़ा ही आ गया। 
वाह ! कितने स्वादिष्ट थे। मैं तो खूब पेट भरकर खाके आया हूँ। “
बुढ़िया,” सच में… इतने स्वादिष्ट थे क्या ? “
बूढ़ा,” अरे ! हाँ भाग्यवान खूब सारे। लेकिन ये क्या… मुझे बहुत जोरों की भूख लगने लगी है ? जाओ, जाओ मेरे लिए ज़रा भोजन बनाकर लेकर आओ। हाँ, जल्दी जाओ। “
बुढ़िया,” अच्छा ठीक है, अभी बनाकर लेकर आती हूँ। “
जिसके बाद बूढ़ी अम्मा एक बड़ी सी प्लेट में खिचड़ी लेकर आती है।
खिचड़ी खाकर…
बूढ़ा,” अरे रे ! छि छि कितना खराब है ? मेरा तो सारा मुँह ही कड़वा हो गया। 
अरे ! इतने वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक अच्छा भोजन नहीं बनाना सीख पाई तुम। हे भगवान ! ना जाने कब मुझे अच्छा भोजन खाने को मिलेगा ? “
बुढ़िया ,” अरे ! ये आप क्या कह रहे हैं ? फिर क्या हुआ जी, फिर आज हुआ क्या ? जी, क्यों ऐसी बात कर रहे हैं ? “
बूढ़ा,” अरे भाग्यवान ! तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ? ये तुम्हारी बनाई खिचड़ी वाकई बेस्वाद है। मुझे तो बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। 
अगर अभी भोजन नहीं मिला तो लगता है मेरे प्राण ही निकल जाएंगे। हाँ कुछ तो सोचना पड़ेगा। “
दूसरे घर में झांकते हुए…
बूढ़ा,” वाह ! क्या खुशबू है ? वाह ! अब इन्हें खाकर ही अपनी भूख शांत करूँगा। “
समोसे खाने के बाद…
बूढ़ा,” लेकिन ये क्या… ये समोसे खाकर भी मेरी भूख शांत नहीं हो रही। अब तो और जोर की भूख लगने लगी है भाई। यहाँ से कहीं और चलता हूँ, हाँ। “
घर की मालकिन,” अरे ! अभी यहीं तो रख कर गई थी सारे समोसे, अचानक कहां गायब हो गए ? हे भगवान ! कौन ले गया यहाँ से ? 
अब यही देखना बचा था। ज़रा देखो तो दिन दहाड़े चोरी हो रही है, दुबारा से बनाना पड़ेगा अब। “
तभी बूढ़ा चुपके से गांव के एक दूसरे घर में जाता है जहाँ पर एक मोटी औरत चूल्हे पर बैठी खीर बना रही होती है। 
औरत,” अरे वाह ! आज तो खीर बहुत स्वादिष्ट बनी है। वाह वाह ! आज तो खूब मज़े से खाऊंगी। “
बूढ़ा,” अरे वाह ! खीर आहाहा… क्या खुशबू है ? लेकिन इस मोटी के रहते कैसे खा पाऊंगा मैं ये खीर ? कुछ सोचना पड़ेगा। 
अपनी आवाज से बिल्ली की आवाज निकालता है, जिसे सुनकर मोटी औरत थोड़ी डर जाती है। “
औरत,” अरे रे ! ये बिल्ली आज फिर से आ गई। अभी भगा कर आती हूँ इसे, हाँ। “
बूढ़ा आता है और खीर खाने लगता है। 
बूढ़ा,” अरे वाह ! कितनी अच्छी खीर है ? अरे ! ये सारी खीर खाने के बाद भी मेरी भूख शांत क्यों नहीं होती ? 
मैं यहाँ से चलता हूँ, कहीं इस मोटी औरत ने देख लिया तो अच्छा नहीं होगा। “

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कुछ समय बाद…
औरत,” अरे ! मेरी खीर कहाँ गई ? अभी तो यहीं रख कर गई थी। कौन मूर्ख बना गया मुझे। मेरी सारी खीर खा गया। 
जिसके बाद बूढ़ा एक के बाद एक गांव वालों के घर में जाता है। उसके बाद बूढ़ा औरों के घर से चोरी से सबका भोजन खा जाता है। लेकिन फिर भी उसकी भूख शांत नहीं होती। 
अगली सुबह बूढ़ी अम्मा अपने हाथ में मिट्टी का मटका लिए जंगल में पानी लेने जा रही थी। 
बुढ़िया (रास्ते से जाते हुए),” अरे ! क्या हुआ, तुम रो क्यों रहे हो ? “
भिक्षुक,” मैं एक भिखारी हूँ अम्मा। कई दिनों से भूखा हूँ, एक भी अन्न का दाना नहीं खाया है। 
अब तो शरीर में इतनी भी शक्ति नहीं बची कि मैं यहाँ से कहीं जाकर किसी से भोजन मांग सकूँ। लगता है भूख के मारे मेरे प्राण ही निकल जाएंगे। “
बुढ़िया,” अरे ! मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आती हूँ, तुम इंतजार करना बस अभी आई। “
घर पहुंचकर…
बुढ़िया,” अरे ! ये आप क्या कर रहे हैं जी ? “
बूढ़ा,” अरे ! क्या करूँ ? कितना कुछ खा चुका हूँ लेकिन मेरी तो भूख शांत होने का नाम ही नहीं ले रही। यह सब भोजन बहुत बेस्वाद लग रहा है। 
मैं बाहर जंगल में जाता हूँ। क्या पता कुछ अच्छा खाने को मिल जाए ? “
बुढ़िया,” ना जाने क्या हो गया है इन्हें ? मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। “
बुढ़िया वही खिचड़ी लेकर भिक्षुक के पास जाती है जो बूढ़े ने बेस्वाद बताई थी। 
बुढ़िया,” ये लो, ये खिचड़ी खाओ। तुम्हें इसे ही खाकर अपनी भूख शांत करनी होगी। लो कर लो अपनी भूख शांत। “
भिक्षुक,” तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद अम्मा ! तुम्हारी ये खिचड़ी बहुत ही स्वादिष्ट थी, जिससे मेरी भूख शांत हो गई। 
तुम मुझे कुछ दुखी लग रही हो। आखिर बात क्या है, बताओ मुझे ? “
बुढ़िया,” क्या बताऊँ..? मेरे पति की कई दिनों से भूख ही शांत नहीं हो रही है। 
वो जो भी भोजन खाते हैं, उन्हें वो बेस्वाद ही लगता है। उनकी भूख शांति नहीं होती। अब तुम ही बताओ भला मैं क्या करूँ ? “
भिक्षुक ,” मैं सब जानता हूँ और तुम्हारे पति को मेरा ही श्राप लगा है। उस दिन जंगल में जब एक भिक्षुक का रूप धारण करके मैं तुम्हारे पति की परीक्षा ले रहा था। 
उसने अपने घमंडी स्वभाव और अहंकार के कारण मुझे एक भी फल खाने को नहीं दिया, जिसकी वजह से ही मैंने उसे श्राप दिया। “
बुढ़िया,” मेरे पति को माफ़ कर दीजिए बाबा। मैं बहुत दुखी हूँ। बाबा। तुम्हारे दिए श्राप के कारण मेरे पति की भूख ही शांत नहीं हो पा रही है। 
जितना भी भोजन देती हूँ, उन्हें स्वादिष्ट नहीं लगता, उनकी भूख शांति नहीं होती। मेरी सहायता कीजिए बाबा। उन्हें अपने दिए श्राप से मुक्त कर दीजिए। “
साधू (भिक्षुक),” मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूँ। तुम बहुत ही दयालु और नेक दलित स्त्री हो। लेकिन अब मैं अपना दिया श्राप वापस नहीं ले सकता। 
लेकिन हाँ… तुम्हें एक मार्ग जरूर दिखा सकता हूँ जिस पर चलकर तुम्हारे पति को मेरे श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन वो मार्ग कठिन होगा। “
बुढ़िया,” मेरी सहायता कीजिये बाबा, मुझे वो मार्ग दिखा दीजिये। मैं अवश्य उस मार्ग पर चलकर अपने पति को आपके दिए श्राप से मुक्त कराऊंगी, चाहे वो मार्क कितना ही कठिन क्यों ना हो ? “
साधू,” ठीक है, फिर तुम अभी रुको। “
जिसके बाद बाबा के हाथ में अचानक से एक लाल रुमाल आ जाता है। बाबा अपने हाथ में लाल रुमाल को जैसे ही दूर फेंकते हैं, वहाँ पर बहुत ही सुंदर गाय आ जाती है। “
साधू ,” ये जादुई गाय है तुम्हारे पति की भूख शांत इसी गाय के द्वारा होगी। इस गाय का दूध बहुत ही चमत्कारी है। 
अगर इस गाय से प्राप्त दूध तुमने अपने पति को पीला दिया तो उसे मेरे दिए श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन ये कार्य बहुत ही कठिन होगा।
ये गाय तुम्हें तभी अपना दूध देगी जब ये तुमसे प्रसन्न होगी अन्यथा तुम्हारे पति को श्राप से मुक्ति मिलना संभव नहीं। “
बुढ़िया,” बाबा, बिलकुल भी चिंता मत कीजिए। “
साधू,” अच्छा तो ठीक है, जाओ तुम ले जाओ मेरी इस माया को। लेकिन याद रखना… अगर तुम इसे प्रसन्न नहीं कर पाई तो तुम्हारे पति का श्राप खत्म नहीं होगा। वो ऐसे ही भूखे इंसान की तरह फिरता रहेगा। “
गाय को घर लाने के बाद…
बुढ़िया,” अरे गाय माता ! आखिर तुम कैसे प्रसन्न होगी ? सोचने दो सोचने दो। रुको, मैं अभी आई। 
हाँ हाँ, यही सही रहेगा। गाय माता के लिए इस रोटी और इस गुड़ के टुकड़ों से चूरमा बना देती हूँ। हाँ यही ठीक रहेगा। “
बुढ़िया,” ये लो गाय माता, देखो मैंने तुम्हारे लिए ये गुड़ का चूरमा बनाया है। रुको, अभी खिलाती हूँ तुम्हे अभी खिलाती हूँ। “
बूढ़ा,” अरे वाह ! खुशबू आ रही है। अरे वाह ! गुड़ का चूरमा लाओ, लाओ बहुत ही जोरों की भूख लगी है। “
बुढ़िया,” अरे ! नहीं नहीं, ये गुड़ का चूरमा तो मैंने गाय माता के लिए बनाया है, ये मैं आपको नहीं दूंगी। “
बूढ़ा,” पागल हो गई हो क्या ? देखते नहीं मुझे कितनी भूक लगी है ? लाओ ये गुड का चूरमा मुझे दो। “
बूढ़ा बुढ़िया से जबरदस्ती चूरमा छीन लेती है। तभी गाय ने बूढ़े को जोर से लात मारी।

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बूढ़ा,” अरे रे ! मार दिया। क्या पागल गाय है ? हाय भगवान ! ये कहाँ से ले आई इसे ? अरे ! टूट गई मेरी कमार। ये गाय यहाँ नहीं रह सकती, सुना तुमने ? “
बुढ़िया,” नहीं नहीं, ये आप क्या बोल रहे हैं जी ? मैं गाय माता को ऐसे नहीं जाने दे सकती हूँ, हाँ नहीं जाने दे सकती। यही तो आपकी भूख शांत करने का एक मात्र उपाय है, जी। “
बूढ़ा,” अरे ! तुम पागल हो गई हो ? ये मामूली सी गाय भला मेरी क्या भूख शांत करेगी ? देखो भाग्यवान, ये पागल गाय है। 
ये यहाँ नहीं रह सकती। मैं बाहर जंगल जा रहा हूँ भोजन की तलाश में, मुझसे मेरी ये भूख शांत नहीं होती हाँ। “
बुढ़िया,” अरे ! न जाने का भूख शांत होगी इनकी ? गाय माता के लिए जो चूरमा बनाया था वो भी सारा खराब कर दिया। अब क्या करूँ ? ना जाने अब गाय माता को क्या खिलाऊंगी ? “
रात में…
बूढ़ा,” इधर ये भाग्यवान सो रही है उधर आज जंगल में कुछ भी खाने को नहीं दिखाई दिया। इस भूख के कारण तो मुझे चैन ही नहीं पड़ता है।
चलो थोड़ी देर आराम करने की कोशिश करता हूँ। बूढ़ा सोने की कोशिश करता है तभी बूढ़े को गाय की चिल्लाने की आवाज आती है।
बूढ़ा,” अरे ! ये भाग्यवान भी ना… मैं जाने कहाँ से इस गाय को उठा लाई है। इसकी ये आवाज तो मेरे कानों को बिलकुल भी पसंद नहीं है। 
अभी बताता हूँ इस गाय को, हाँ। मेरी नींद में विलम्ब कर रही है बताता हूँ इसे। “
बूढ़ा ,” क्यों चिल्ला रही है ? लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी हाँ, अभी बताता हूँ तुझे। रुक तू बचकर नहीं जा पाएगी मेरे हाथों से। “
तभी बूढ़ा उसे लाठी से मारने की कोशिश करता है। लेकिन लाठी उसे उल्टा पीटने लगती है। 
बूढ़ा,” अरे रे ! ये क्या होता है ? ये मुझे लाठी क्यों मार रही हैं ? बचाओ बचाओ, अरे ! मार दिया। हाय हाय… अरे पूरी कमर ही तोड़ दी मेरी। हाय मार दिया मुझे बचाओ। “
बुढ़िया,” अरे रे क्यों चिल्ला रहे हैं जी ? आखिर क्या हो गया है आपको ? आप ठीक तो हैं ना ? “
बूढ़ा,” अरे भाग्यवान ! देखती नहीं हो मुझे इस लाठी ने कितना मारा है ? हाय ! देखो मेरी हालत। “
बुढ़िया,” अरे ! ये क्या बोल रहे हैं आप ? लगता है आपकी भूख ना शांत होने का असर आपके दिमाग पर भी चढ़ गया है। 
यहाँ कोई नहीं है जी और भला ये लाठी आपको अपने आप ही थोड़े ही मारने लगेगी। आप भी ना… अंदर चलकर आराम कर लीजिए, रात बहुत हो गई है चलिए। “
बूढ़ा,” अरे भाग्यवान ! तुम भला कहां मेरी कोई बात सुनती हो ? इस लाठी ने ही मुझे मारा है। अच्छा आप चलो अंदर चलो कमर में बहुत दर्द हो रहा है भाग्यवान। “
बूढ़ा,” अरे ओ भाग्यवान ! कहां हो ? बहुत ज़ोरों की भूक लगी है, लाओ लाओ जल्दी कुछ खाने को भोजन दो। “
बुढ़िया,” भोजन… कहाँ से लाऊं भोजन ? हमारे पास जितना भी अनाज था, वो सब तो आपको दे ही चुकी हूँ। 
अब तो घर में अनाज का एक भी दाना नहीं है। कहाँ से लाऊं आपके लिए भोजन ? “
बूढ़ा,” अच्छा तो ये बात है। ठीक है, मैं तो बाहर जा रहा हूँ वहाँ कुछ ना कुछ अवश्य ही मुझे खाने को मिल जाएगा हाँ। “
बुढ़िया,” अरे ! ना जाने कब इनकी भूख शांत होगी ? मुझसे अब इनकी और ऐसी हालत नहीं देखी जाती। 
अरे आज तो घर में एक भी अनाज का दाना नहीं है। ऐसे में गाय माता को तो भूख लगी ही होगी ना ? 
अब क्या करूँ मैं ? गाय माता को ऐसे भूखा रखना तो पाप होगा। “
बुढ़िया,” रुको गाय माता, मैं अभी कुछ लाती हूँ। ये लीजिये गाय माता, अब तो मेरे पास तुम्हें खिलाने के लिए यही एकमात्र भोजन है। तुम यही खा लो गाय माता हाँ, यही खा लो। “
बूढ़ा,” मेरी भूख भी शांत नहीं हुई। लगता है ये मेरी ही गलती का फल है। 
उस दिन जंगल में अपने लालच के कारण मुझे उस भिक्षुक की भूख नजर नहीं आई और एक फल भी उसे खाने को नहीं दिया। 
मेरी इसी गलती की सजा मुझे मिली है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था नहीं करना चाहिए था। “
बुढ़िया,” मैं जानती हूँ जी, ये बाबा के श्राप के कारण ही हुआ है। लेकिन अब तो आपको भी अपनी गलती का अहसास हो गया है। न जाने कब आपको मुक्ति मिलेगी ? “
तभी अम्मा की नजर गाय पर पड़ती है जो अचानक से चमकने लगती है और जिसके थनो में से दूध टपकने लगता है। ये देखकर अम्मा हैरान रह जाती है। 
बुढ़िया,” अरे वाह ! चमत्कार… लगता है गाय माता प्रसन्न हो गई है। “
बूढ़ा,” बहुत बहुत धन्यवाद गाय माता ! “
बुढ़िया,” ये सब छोड़िये जी, ये पाप है। किसी भी जानवर का भोजन नहीं छीनना चाहिए जी। 
ये लीजिये, ये दूध की मटकी पी लीजिये, इससे जरूर आपकी भूख शांत हो जाएगी। “
बूढ़ा,” अच्छा ठीक है, तुम कहती हो तो मैं ये दूध की मटकी पी लेता हूँ। लाओ मुझे दो। “
दूध पीने के बाद…
बूढ़ा,” अरे ! ये क्या भाग्यवान..? सच में ये दूध तो चमत्कारी है। इसे पीते ही मेरी भूख शांत हो गयी। लेकिन ये कैसे हुआ भाग्यवान ? “
बुढ़िया,” ये सब गाय माता की वजह से हुआ है जी। बाबा ने बिलकुल सच कहा था। ये गाय चमत्कारी है चमत्कारी। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद गाय माता ! “
बूढ़ा,” अरे ये क्या भाग्यवान ? ये गाय अचानक से गायब कैसे हो गई ?
 मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है। “
बुढ़िया,” वो गाय वापस बाबा के पास चली गई है जी हाँ, वापस चली गई। आप श्राप से मुक्त हो गए जी।”
बूढ़ा ,” ये तुम क्या बोल रही हो भाग्यवान ? मेरी भूख शांत हो गई है। लेकिन भाग्यवान, ये गाय तुम्हें कहाँ मिली बताओ मुझे ? 
अच्छा तो मेरी ये दशा बाबा के श्राप के कारण हुई थी ? सत्य है कि उस दिन जंगल में उस भूखे भिक्षु को मैंने एक भी फल नहीं दिया था। 
जब कि मेरे पास खूब सारे फल थे। अपने लालच और भूख से मैं उस भिक्षु की भूख और उसकी पीड़ा को भूल गया, जोकि वही बाबा था, जो मेरी परीक्षा ले रहा था। 
ये तो मुझे ज्ञात ही नहीं था भाग्यवान। मेरे साथ जो भी हुआ वो मेरी ही करनी का फल था। 

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लेकिन तुम्हारी जैसी पत्नी पाकर मैं धन्य हो गया भाग्यवान। अगर तुम ना होती तो मुझे कभी बाबा के दिए श्राप से मुक्ति नहीं मिल पाती। बहुत बहुत धन्यवाद तुम्हारा भाग्यवान ! “
 बुढ़िया,” नहीं जी, आप मेरे पति है और आपके हर सुख दुख में मुझे आपके साथ रहना है। 
आपको श्राप से मुक्ति मिल गई, बस अब तो और मुझे कुछ नहीं चाहिए जी हाँ। मैं बहुत खुश हूँ जी बहुत खुश हूँ। “
जिसके बाद बूढ़ा और बूढ़ी अम्मा फिर से खुशी खुशी रहने लगते हैं।
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