हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सबसे बड़ा ठग ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
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सबसे बड़ा ठग
राजपुर गांव में धनपत नाम का एक सेठ अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ रहता था। वह बहुत अमीर था।
गांव में उसका बहुत बड़ा कारखाना चलता था। वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था।
उसने एक आलीशान कोठी बनवाई और पूरे गांव को भोज पर बुलाया।
सेठ,” बाबूलाल, मेरे गांव की कोठी के लिए पूरे गांव को भोज पर बुला लो। “
बाबूलाल,” सेठ जी, पूरे गांव को… एक बार फिर सोच लीजिए। “
सेठ,” कहा ना पूरे गांव को बुलाओ। उन्हें भी तो पता चले कि इस गांव में मुझसे ज्यादा अमीर और कोई नहीं है। “
बाबूलाल,” जी सेठ जी। ”
सेठ,” और सुनो… उस खडूस मुखिया कालूचन्द को भी जरूर बुलाना। उसे लगता है कि इस गांव में वह सबसे होशियार और समझदार है। “
बाबूलाल,” जी सेठ जी, जैसी आपकी इच्छा। “
दो दिन बाद…
बाबूलाल,” आइए आइए… भोज के लिए उधर पधारिए। “
आदमी,” अरे वाह ! सेठ जी ने तो इंतजाम बढ़िया किया है भाई। “
दूसरा आदमी,” भैया मान गए, इस पूरे गांव में इतना अमीर और कोई नहीं जो पूरे गांव को पंगत में बैठाकर शानदार न्योता दे। “
बाबूलाल,” अरे ! मुखिया जी… आप इधर आइए। यहां बैठिए। मैं अभी सेठ जी को बुलाकर लाता हूं। “
मुखिया कोटी को देखने लगा।
सेठ,” और कैसे हो मुखिया जी..?? “
कालूचन्द,” मैं ठीक हूं। आज तो तुमने बहुत रौनक लगा रखी है। “
सेठ,” बहुत दिनों से सोच रखा था, रहने वाले तीन जन है तो क्या..? अपने लिए एक कोठी बनवा लूं। आखिर यह सब किस काम आएगा ? “
कालूचन्द,” बहुत अच्छा… लेकिन अब तुम पुरानी कोठी का क्या करोगे ? “
सेठ,” उसका क्या करूंगा ? वह बहुत पुरानी हो चुकी है। उसे बेच दूंगा या फिर गोदाम बना दूंगा। “
कालूचन्द,” तुम तो कोठी पंचायत को बेच दो। हमें अनाथालय बनाने के लिए जगह की जरूरत है। “
मुखिया,” बोलो, क्या कीमत लोगे इसकी ? “
सेठ,” यह मुखिया बहुत चालू है। कीमत पूछ रहा है। यह अच्छी तरह जानता है कि पंचायत की मेरी कोठी खरीदने की हैसियत नहीं है। “
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कालूचन्द,” क्या हुआ लाजपत ? “
सेठ,” कुछ नहीं मुखिया जी। मैं सोच रहा था, अपनी यह पुरानी वाली कोठी बच्चों के लिए दान दे दूं।
अब पुण्य काम के लिए क्या रकम लेना ? प्रभु की कृपा से मेरा खजाना भरा हुआ है। “
कालूचन्द,” तुम सच कह रहे हो ना ? “
सेठ,” हां, सच कह रहा हूं। तुम मेरी दरियादिली के बारे में तो जानते ही हो। मेरा हृदय अंदर से मोम है। “
कालूचन्द,” हां, तुम्हारा मोम तो मैंने आज इस भोजन में बहता हुआ देख लिया है। “
कारखाने में…
सेठ,” लालू, क्या बात है आज कल तुम मजदूरों से ठीक से काम नहीं ले रहा है ? मैं तुम्हें मजदूरों से ठीक से काम करवाने के लिए पैसे देता हूं बैठने के नहीं। “
लालू,” सेठ जी, काम तो ठीक से चल रहा है। “
सेठ,” देख लालू… इन मजदूरों से तू ठीक से काम ले सकता है तब तो ठीक वरना तू जा यहां से। “
लालू,” ऐसा ना कहिए सेठ जी। मैं यह काम छोड़कर कहां जाऊंगा ? “
तभी एक मजदूर चिट्ठी लेकर सेठ से कहता है।
मजदूर,” सेठ जी, डाकिया आपके लिए यह चिट्ठी देकर गया है। “
सेठ,” बाबूलाल, जरा इस चिट्ठी को खोलकर देखना तो। “
बाबूलाल,” इसमें तो चिट्ठी है। आपका कोई प्रेम पत्र लग रहा है। “
सेठ,” अरे बता क्यों रहा है ? जल्दी से पढ़कर बता। “
बाबूलाल,” नहीं पढ़ सकता। यह तो अंग्रेजी में है। “
सेठ,” तुम तो मेरे पूरे कारखाने का हिसाब किताब रखते हो और अंग्रेजी नहीं पढ़ सकते ? क्या फायदा ऐसे मुंशी का ? “
बाबूलाल,” ऐसी बात नहीं है। मुझे थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ने आती है। टी एच आई एस… यह बन गया दिस। आई एस… यह बन गया इज। “
सेठ,” मतलब..?? “
बाबूलाल,” आपने पढ़ने के लिए कहा था। मतलब मुझे नहीं पता । “
सेठ,” अबे अक्ल के अंधे आदमी, तू रहेगा मुंशी ही। जब अक्ल बंट रही थी तब कहां था तू ? ”
बाबूलाल,” आप गुस्सा मत करिए। इस चिट्ठी को पूरे गांव में एक ही आदमी पड़ सकता है। ”
सेठ,” कौन ? “
बाबूलाल,” कलुआ। पूरे गांव में वही अकेला फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है। “
सेठ,” बुलाओ उसे। “
बाबूलाल उसके पास जाता है।
कनुआं,” का बाबूलाल..?? आज मुझसे का काम पड़ गया ? “
बाबूलाल,” जरा यह चिट्ठी पढ़वानी थी तुमसे। अंग्रेजी में है ना इसलिए। “
कनुआं,” 50 रूपये लगेंगे चिट्ठी पढ़ने के। “
सेठ,” तुम चिट्ठी पढ़ने के रुपए लोगे ? “
कनुआं,” हां, अगर पढ़वानी है तो बोलो वरना मेरा समय बर्बाद मत करो हां। “
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सेठ,” अच्छा, यह लो रुपए। अब पढ़ो। “
कनुआं,” दिस इस टू इनफॉर्म यू मिस्टर धनपत। “
सेठ,” इसका मतलब तो बताओ। “
कनुआं,” 100 रूपये और दो तो चिट्ठी का पूरा मतलब समझाता हूं। “
बाबूलाल,” फिर से रुपए, यह क्या बात है ? “
सेठ,” अच्छा-अच्छा यह लो। अब बताओ। “
कनुआं,” सेठ जी, यह चिट्ठी शहर से एचआर कंपनी से आई है। इसमें लिखा है… वह आपको माल का बड़ा ऑर्डर देना चाहते हैं इसलिए आप अपने माल का सैंपल वहां भेज दो।
यह देखो यहां सब लिखा हुआ है। अगर आप चाहो तो मैं बाबूलाल को सब कुछ समझा दूंगा। लेकिन जरा मेरा भी ध्यान रखना। “
सेठ,” हां हां, क्यों नहीं ? तुम इसे सब समझा दो। “
कनुआं,” ठीक है तो मैं कल सुबह आकर सब समझा दूंगा इसे। “
सेठ,” बाबूलाल, अभी तुम जाओ और कल इस कनुआ से सब कुछ समझकर सैंपल भेजने की तैयारी करो। “
बाबूलाल,” जी सेठ जी। ”
मशीनों को देखने के बाद…
सेठ,” ठीक से सभी मशीनों को देखकर ताला लगाना। अरे ! तुम अभी तक यही हो। तुम्हारा काम हुआ कि नहीं ? ”
आदमी,” सेठ जी, सब तैयार है। बस फिट नहीं हो रहा। “
सेठ,” छोड़ो तुम्हारे बस का कुछ नहीं है। मेरे एडवांस रुपए वापस कर देना। “
सेठ के जाने के बाद…
आदमी,” भाई, कारखाना बंद मत करना। मैं अभी 10 मिनट में सामान लेकर आता हूं। “
कुछ दिन बाद…
सेठ,” बाबूलाल, उस शहर वाली कंपनी का कोई जवाब आया या नहीं ? “
बाबूलाल,” नहीं, सेठ जी। “
सेठ,” सैंपल ठीक से भेजा था कि नहीं ? ” बड़ा ऑर्डर आना था वहां से। “
बाबूलाल,” सेठ जी, मैंने सब कुछ सही से भेजा था। “
सेठ,” बाबूलाल, तू मुझे डुबो देगा। तूने जहां-जहां सैंपल भेजा वहां से कोई जवाब नहीं आया। “
तभी दो पुलिस वाले आए।
पुलिस वाला,” अरे ! सेठ धनपत कौन है ? “
सेठ,” क्या हुआ ? मैं हूं धनपत। “
पुलिसवाला,” अरे ! तुम्हें हमारे साथ थाने चलना होगा शिकायत आई है तुम्हारी। तुम्हारा माल जो है नकली है। “
बाबूलाल,” नहीं-नहीं साहब, हमारा माल सौ टका असली है। कोई मिलावट नहीं है उसमें। “
पुलिसवाला,” अरे ! एचआर कंपनी ने शिकायत की है। तुमने उन्हें जो सैंपल भेजे थे ना, वह सब मिलावटी हैं। अगर ऐसा माल बाजार में गया ना तो तहलका मच जाएगा। “
सेठ,” लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है। हमारे यहां ऐसा काम नहीं होता साहब। “
पुलिस वाले सेठ को पकड़कर ले जाते हैं।
बाबूलाल,” सेठ जी, आप घबराइए नहीं। मैं कुछ करता हूं। “
दो आदमी आकर कारखाने को सील कर देते हैं।
कर्मचारी,” यह आप क्या कर रहे हैं ? “
सरकारी अफसर,” अब इस कारखाने का केस तो अदालत तक जाएगा। उसके बाद ही कोई सही फैसला आएगा। अगला आर्डर आने तक यह कारखाना बंद रहेगा। “
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पुलिसवाला,” अरे सेठ ! अब सच सच बता। “
सेठ,” कहा ना… मेरे कारखाने में कोई मिलावट वाला माल नहीं बनता। किसी ने झूठी शिकायत की है। “
पुलिस वाला,” अरे ! हमारे पास सभी सबूत है। सारे मिलावटी सामानों पर तुम्हारे कारखाने का नाम है। तुम सच्चे हो तो सबूत लाओ ना फिर।
फिलहाल तुम्हारी जमानत हो रही है। जाओ… अदालत का नोटिस पहुंच जाएगा तुम्हारे पास चलो। “
घर पर सेठ बहुत चिंतित था।
सेठानी,” सुनिए जी, आपके जाने के बाद चार-पांच लोग आए थे। वो बोलकर गए हैं कि हमारा रुपया दो दिनों में वापस कर दो वरना अच्छा नहीं होगा। “
सेठ,” मैं इतने सालों से व्यापार कर रहा हूं और यह लोग… “
सेठानी,” मुझसे उनकी बात नहीं सुनी जाती। आप उनके रुपए दे दीजिए ना। “
सेठ,” हा, कारखाना भी बंद हो गया। घर चलाने और कारखाना चलाने के लिए भी रुपयों की जरूरत है। “
कालूचंद,” धनपत… अरे ! ओ धनपत। “
सेठानी,” आइए आइए मुखिया जी… बैठिए में पानी लेकर आती हूं। “
मुखिया,” यह क्या हो गया धनपत ? “
सेठ,” मैंने कुछ नहीं किया। “
मुखिया,” मैं जानता हूं। तुम सच कह रहे हो। किसी ने तुम्हारे खिलाफ साजिश रची है। “
सेठ,” मुझे यह सब बाबूलाल का किया धरा लगता है। यह सब काम उसी ने किया था। “
मुखिया,” लेकिन फंसे तो तुम हो। अब खुद को बेगुनाह कैसे साबित करोगे ? “
सेठ,” मुखिया, एक उपकार कर दो। मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है। कैसे भी हो, यह कोठी बिकवा दो ? “
मुखिया,” अरे ! कैसी बातें करते हो ? फिर तुम रहोगे कहां पर ? “
सेठ,” मैं झोंपड़ी में रह लूंगा। मगर इन लेनदारों से पीछा छूटे। “
मुखिया,” ऐसा नहीं कहते धनपत। तुमने अनाथालय के लिए बच्चों को घर दिया था वहीं पर रह लेना। नहीं तो मेरे घर चलना। “
आदमी,” अच्छा हुआ साहब आप यहां मिल गए। आप मुझे मेरा पैसा दे दो। “
सेठ,” अब तुम्हारे किस बात के पैसे ? अगर तुम उस दिन कारखाने में हर जगह जासूसी कैमरा लगा देते तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। “
आदमी,” ऐसा मत कहिए सेठ जी। मैंने तो सारे कैमरे फिट कर दिए थे। “
सेठ,” कब..?? तुम तो उस दिन के बाद आए ही नहीं। “
आदमी,” कारखाना बंद हो जाने के थोड़ी देर बाद मैं सामान लेकर आया था और सारे जासूसी कैमरे उसी दिन सेट कर दिए थे।
वह तो मेरी मां की तबीयत अचानक से खराब हो गई तो मुझे रातों-रात गांव जाना पड़ा इसीलिए आपको बता नहीं पाया। “
मुखिया,” यह तो बहुत अच्छी बात है धनपत। कारखाने से तुम्हारी बेगुनाही का कोई ना कोई सबूत जरूर हाथ लगेगा। “
सेठ,” हां, चलो चलते हैं। “
तीनों खिड़की से कारखाने में घुसते हैं। आदमी ने तीन जगहों से छिपे हुए जासूसी कैमरे निकाले और चलाए।
एक कैमरे में कर्मचारी मशीनों के साथ काम कर रहे थे। दूसरे कैमरे में बाबूलाल और सेठ बातें कर रहे थे।
सेठ,”अरे ! इसमें तो कुछ भी नहीं है। “
मुखिया,” तीसरा वाला जरा चलाओ तो। “
तीसरे कैमरे में लालू और एक आदमी था। लालू ने माल के पैकेट उठाकर एक बड़े से थैले में रखे और दूसरे आदमी ने उनकी जगह दूसरे पैकेट रखे।
लालू ने सेठ वाले माल का थैला आदमी को दिया और उससे पैसों की गड्डी ले ली।
आदमी,” अरे ! किसी को कुछ पता तो नहीं चलेगा ? “
लालू,” अरे ना ना… वो बाबूलाल और सेठवा दोनों मूरख हैं। इस सेट को जेल भेजकर धीरे-धीरे सारा कारखाना हथिया लूंगा मैं हां। “
सेठ,” यह सब लालू ने किया है। “
मुखिया,” चलो, अब पुलिस स्टेशन चलते हैं भाई। “
दो पुलिस वाले लालू को घर से पकड़ते हैं।
लालू,” अरे ! मैंने क्या किया है ? “
पुलिस वाला,” अरे ! मिलावटी माल तूने रखा और फंसा सेठ को रहा है। “
लालू,” मैंने कुछ नहीं किया है। वह सेठ झूठ बोल रहा है। “
पुलिस वाला,” अबे चल, पक्का सबूत है हमारे पास तेरे खिलाफ। “
इसके बाद दो आदमी कारखाने की सील खोल देते हैं।
मुखिया,” मुबारक हो धनपत ! तुम अपनी समझदारी से एक बहुत बड़ी मुसीबत से बच गए। “
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सेठ,” मुखिया जी, सच बताऊं तो यह समझदारी मेरी नहीं इस कैमरे वाले भाई की थी। इसी ने मुझे मनाया था। कह रहा था कि आप कैमरे लगवा लो सेठ जी।
इतना बड़ा कारखाना है, देर सवेर हो जाती है। यह उस वक्त काम आएंगे। भाई, तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद ! बड़ा उपकार आपका।
आज तुम्हारी वजह से मेरा काम और नाम दोनों की लाज बच गई वरना मैं सड़क पर आ जाता। “
आदमी,” ऐसा मत कहिए सेठ जी। करने वाला तो भगवान है। “
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