हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सास चली मायके ” यह एक Saas Bahu Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Kahaniyan या Bedtime Stories in Hindi पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Saas Chali Mayke | Saas Bahu | Moral Stories | Saas Bahu Ki Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories
सुखदेव,” अरे सुमित्रा ! क्या कर रही हो ? आज तो रविवार है। तुम सुबह सुबह क्यों उड़ गई भाई ?
अरे ! आज तो उमा और धीरज की छुट्टी है और बंटी भी आज स्कूल नहीं जा रहा। “
सुमित्रा,” अरे ! वो रात को धीरज उमा से कह रहा था कि उसने बहुत दिनों से मूंग की दाल के चीले नहीं खाए, तो उमा के पास एक ही संडे होता है जब वो अपने दूसरे काम निपटाती है।
तो उसने मुझे कह दिया था कि मैं उठकर बना दूं। मैंने रात को दाल भिगो दी थी, तो सोचा उनके उठने से पहले पीस लूंगी फिर नाश्ते में चीला बना दूंगी।
बंटी ने हलवा खाने की फरमाइश की थी तो उसके लिए नाश्ते में हलवा बना रही थी। “
सुखदेव,” वो तो सही है सुमित्रा, पर तुम अपनी सेहत का भी तो ध्यान रखा करो। सुबह सुबह उठकर काम में लग जाती हो। “
सुमित्रा,” कोई बात नहीं जी, बच्चों की खुशियों में ही मैं अपनी खुशियाँ ढूंढ लेती हूँ। और फिर तुम तो जानते ही हो, मुझे घर का काम करने की आदत है।
अच्छा तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए अदरक वाली चाय बना कर लाती हूँ। “
एक सम्पूर्ण गृहणी, एक अच्छी पत्नी, अच्छी माँ, अच्छी दादी और एक बहुत अच्छी सास, सभी रूप सुमित्रा में दिखाई देते थे।
सबकी इच्छाओं का ख्याल रखना, सारा दिन अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचना, यही सुमित्रा की आदत थी।
उमा की शादी को 9 साल बीत चुके थे। बंटी अब 8 साल का था। शुरू से ही बंटी अपनी मम्मी से ज्यादा अपनी दादी के साथ रहा।
क्योंकि उमा शुरू से ही एक वर्किंग वुमन थी, इसलिए सुमित्रा ने ही घर को संभाला हुआ था। सुमित्रा की वजह से उमा अपनी सारी जिम्मेदारियों से बची हुई थी।
धीरज,” उमा, मैं कल से वेट मशीन ढूंढ रहा हूँ, मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही। “
उमा,” धीरज, मैं इस वक्त अपनी एक्सरसाइज कर रही हूँ। तुम जानते हो, मुझे संडे मिलता है जब मैं अपने लिए थोड़ा बहुत सोच पाती हूँ।
बाकी दिन मेरे ऊपर ऑफिस का स्ट्रेस होता है। इसलिए अपनी चीजें प्लीज तुम खुद ढूंढ लिया करो। “
सुमित्रा,” धीरज बेटा, तुम्हारी वेट मशीन वहाँ पलंग के नीचे रखी हुई है। शांति जब झाडू लगाने आई थी, तभी मैंने कहा था कि आगे रख दे, ताकि तुम्हे दिखाई दे जाए। “
धीरज,” ओह ! हां उमा, तुमने ही तो बैड के नीचे रखी थी। तुम्हें कुछ भी याद नहीं रहता। अच्छा छोड़ो, मेरे लिए एक बनाना शेक बना दो। “
उमा,” प्लीज धीरज प्लीज, तुम खुद बना लो न… मेरी एक्सरसाइज बीच में छूट जाएगी। और हाँ, हो सके तो मेरे लिए प्लीज एक कप ग्रीन टी भी बना लेना। “
धीरज,” जब तुम मेरी बात नहीं सुनती तो मैं क्यों सुनूं ? अपने आप बना लो। “
सुमित्रा,” अरे रे ! तुम दोनों आपस में क्यों झगड़ रहे हो ? “
सुमित्रा,” धीरज बेटा, मैंने तुम्हारा बनाना शेक पहले ही बना दिया था। और बहू, तुम्हारी ग्रीन टी के लिए मैंने पानी उबालने रख दिया है, मैं लेकर आती हूँ। “
उमा,” थैंक यू माँजी। अच्छा माँ जी, मुझे एक हेल्प चाहिए थी। आज मेरी सहेलियां काफी समय बाद मुझसे मिलने आ रही है, तो आप उनके लिए कुछ चाय पकौडे का इंतजाम कर सकती हैं ? “
सुमित्रा,” अरे ! चिंता मत करो, मैं बना दूंगी। इसमें परेशानी की क्या बात है ? “
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सुमित्रा,” धीरज बेटा, तुम नहाकर आओगे तो तुम्हारे लिए गरम गरम चीले बना दूंगी। “
सुमित्रा ऐसे ही चुपचाप सबकी फरमाइश पूरी करती रहती थी। शाम को उमा की सहेलियां मिलने के लिए आती हैं। उन सब के बीच सुमित्रा अकेली ही खातेदारी में लगी रहती है।
सुखदेव,” सुमित्रा, तुम कब तक अकेली करती रहोगी ? बहू को आवाज लगा लो, चाय वगैरह वो भी बना सकती है। तुम जब तक पकोड़े तल रही हो तब तक बहू चाय डालकर ले आएगी। “
सुमित्रा,” अरे ! नहीं नहीं, अच्छा नहीं लगता। बहू सबके बीच उठकर आएगी तो परेशान होगी, मैं ले जाऊंगी। अच्छा यह पकौड़ा चखकर तो बताओ कि नमक कैसा डला है ? “
सुखदेव,” सुमित्रा ये गलत बात है। तुम थोड़ी बहुत काम की जिम्मेदारी अब बहू को भी देना शुरू करो। वो तुम्हारे भरोसे कुछ भी नहीं करती है। “
सुमित्रा,” कोई बात नहीं, बहुएं भी तो बेटी की तरह होती हैं। उमा भी मेरी बहू नहीं, बेटी की तरह है। अच्छा मैं चाय लेकर जाती हूँ। “
सुमित्रा सबके लिए चाय लेकर जाती है। पर वो उमा और उसकी सहेलियों के बीच हो रही बात को सुन लेती है और उसके कदम दरवाजे पर ही रुक जाते हैं और आंखों से आंसू छलक आते हैं।
सहेली,” हाँ यार, यह तो तो बिल्कुल सही कह रही है। मेरे घर कल बुआ जी और फूफा जी आ गए। मेरी रोटी बनाने वाली ने तो छुट्टी कर ली। सारा खाना मुझे बाहर से मंगवाना पड़ा। “
उमा,” तभी तो मैं अपने आप को बहुत खुश किस्मत समझती हूँ। मेरी सास तो सारे का सारा घर का काम कर लेती है।
बस करना ही क्या है… मीठी मीठी बातें करके माजी माँ जी कह दो। मिनटों में सारा काम कर देती हैं। मेरी सास को न मीठी मीठी बातों से बेवकूफ बनाना बहुत ही आसान है। “
अपनी बहू के मुँह से इस तरह की बातें सुनकर सुमित्रा के हाथ पांव लड़खड़ा जाते हैं और वो बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को छुपाकर ड्राइंग रूम में जाती है।
उमा,” अरे माँ जी ! चाय ले आईं। “
उमा,” पता है तुम सबको..? माँजी के हाथ की अदरक वाली चाय बहुत ही स्वादिष्ट बनती है और खासकर पनीर के पकौड़े। “
सुमित्रा,” बहू, और पकौड़े चाहिए तो आवाज लगा देना। “
सुमित्रा रसोई में चली जाती है। अगले दिन सुमित्रा के हाथ में एक अटैची थी जिसे देखकर उमा और धीरज हैरान रह जाते हैं।
धीरज,” माँ, आप कहीं जा रही हो ? “
सुखदेव,” बेटा, तुम्हारी माँ अपने मायके जा रही है।बोल रही है भैया भाभी से मिलने का बहुत मन है।
तो मुझे लगा कुछ दिन तुम्हारी माँ को आराम भी मिल जाएगा और अपने भैया भाभी के पास रह भी लेगी। क्यूँ ठीक है न ? “
सुमित्रा,” हाँ, दीपिका की शादी के बाद वहाँ रहना ही नहीं हुआ और जल्दी जल्दी में शादी खत्म करके हम सब लौट आये थे। इसलिए रहने को नहीं गई। एक महीने के लिए जा रही हूँ। एक महीने बाद लौट आऊंगी “
उमा,” 1 महीना..? “
उमा तपाक से बोली। सबकी नजरें उसी की तरफ थी। मानो एक महीना सुनकर भूचाल आ गया हो।
सुमित्रा,” क्यूँ..? एक महीना कम है तो कोई बात नहीं, दो महीने रुक आऊंगी। भैया भाभी तो कहते हैं कि वहां जाऊं तो 3-4 महीने रहकर आऊँ।
और वैसे भी धीरज की शादी के बाद यहाँ पर मेरा कोई इतना काम नहीं। चलो अब मैं चलती हूँ, बस का टाइम हो रहा है। “
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सुमित्रा,” बहू, सबका ख्याल रखना। ये रोजाना के कामों की लिस्ट मैंने बना दी है, इससे तुम्हें आसानी हो जाएगी। “
सुखदेव,” चलो सुमित्रा, मैं तुम्हे बस में बैठा आता हूँ। “
अपनी सास के अचानक मायके चले जाने से उमा परेशान हो जाती है। उसके ऑफिस का टाइम हो रहा था और उसके हाथ में काम की लिस्ट थी। रसोई में खाने के लिए कुछ भी नहीं बना था।
उमा,” माँ जी, अचानक मायके चली गई। मैं सब काम कैसे करूंगी ? राशन लाना है, प्रेस वाली से कपड़े लेने है, रोजाना का दूध सुबह 6 बजे उठ कर लाना है और इतने सारे काम। सब कैसे होगा ? “
बंटी,” मम्मी, मेरा लंच..? मुझे आज लंच में यलो कलर का पुलाव लेकर जाना था। मम्मी, दादी कहां है ?
दादी… दादी, वो तो मेरे रेडी होने से पहले ही मेरे स्कूल का लंच तैयार कर देती हैं। “
उमा,” माँ के बिना मैं क्या करुँगी ? उनके बिना तो यह घर घर ही नहीं है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैं मां जी के बिना सब कुछ कैसे संभालूंगी ? “
अचानक उमा बहुत तेज रोने लगती है। धीरज उसे चुप कराता है। पर उमा और जोर से रोने लगी। तभी दरवाजे की घंटी बजती है।
धीरज,” उमा चुप हो जाओ। लगता है पापा माँ को बस में बैठाकर आ गए। रुको, मैं दरवाजा खोलता हूँ। “
धीरज जैसे ही दरवाजा खोलता है, वो चौंक जाता है।
धीरज,” माँ, आप तो मामा जी के घर गईं थीं। “
सुखदेव,” बस मैं बैठ भी गई थी तुम्हारी माँ। फिर मेरे से बोली कि ऐसे अचानक से चली गई तो बहू सबकुछ संभाल नहीं पाएगी।
बहू को ऑफिस जाना होता है, वो अकेले अचानक से इतना सबकुछ कैसे करेगी ? इसी चिंता में वापस लौट आई कि फिर कभी चली जाएगी। “
उमा अपने आँसुओं को पोंछकर झट से अपनी सास के गले लग जाती है।
उमा,” माँ जी, आपके बिना मैं बिल्कुल अधूरी हूं। आप घर की नींव हो। मां जी आपके बिना हम कमजोर हैं। मुझे आपकी बहुत जरूरत है माँ जी। “
सुमित्रा,” अच्छा अच्छा, ठीक है ठीक है। मैं अभी आई हूँ। मुझे पता है मेरे बिना तू कुछ नहीं कर पाएगी। चलो अब आगे से हटो, जल्दी से बंटी बेटा के लिए पीले चावल बना देती हूँ। “
बंटी,” दादी, मुझे आज स्कूल नहीं जाना। मुझे आपके साथ खेलना है। “
धीरज,” ठीक है, थेटर में एक नई मूवी लगी है। आज हम सब मिलकर वो देखने चलेंगे। क्यों पापा..? “
सुखदेव,” इस घर की हैड तुम्हारी माँ है। जैसा वो कहेगी वैसे ही मैं करूँगा भैया हाँ। “
उमा,” माँ जी, आज मैं भी ऑफिस नहीं जा रही। मैं भी छुट्टी ले रही हूँ और धीरज आज तुम भी छुट्टी ले लो। “
सुमित्रा,” अरे ! तुम सब अपने अपने काम पर जाओ। कामवाली आने वाली है। अगर हम सब मूवी देखने चले गए तो घर के काम रह जायेंगे।
पिक्चर देखने हम इतवार को चलेंगे। चलो मैं बंटी और तुम सबके लिए नाश्ता तैयार कर देती हूँ। “
उमा,” माँ जी, चलिए मैं भी आपकी रसोई में मदद करती हूँ। “
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उमा अपनी सास की अहमियत समझ चुकी थी। उसे अहसास हो चुका था कि परिवार में बड़े बुढ़ों का साथ होना बहुत जरूरी है। पर साथ ही उनका मान सम्मान बनाए रखना छोटों की जिम्मेदारी होती है।
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