अत्याचारी जमींदार | Atyachari Jamindar | Hindi Kahani | Moral Story | Bedtime Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” अत्याचारी जमींदार ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में बसंत नाम का बेहद गरीब व्यक्ति रहा करता था। उसकी पत्नी बहुत बीमार रहती थी।

उसकी दो वर्षीय बेटी जन्मजात गूंगी थी। एक दिन जब बसंत घर आया, तो उसकी पत्नी झुमरी बुरी तरह से खांस रही थी।

बसंत, “झुमरी… झुमरी, क्या हुआ तुम्हें? क्या तुमने आज दवाई नहीं खाई?”

झुमरी, “शायद आपने देखा नहीं कि दवाई को तो खत्म हुए पूरे 2 दिन हो गए।”

बसंत, “मैंने दुनिया का सबसे ज्यादा लाचार पति और पिता हूँ झूमरी, जो अपनी पत्नी का सही से इलाज भी नहीं करा सकता।”

झुमरी, “उदास मत होइए, इसमें आपकी कोई गलती नहीं। धन स्त्री के नसीब का होता है।

मेरा ही नसीब फूटा था, वरना आपने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। मुझसे एक वादा कीजिए।”

बसंत, “कैसा वादा, झूमरी?”

झुमरी, “मेरा अंतिम समय आ गया है, मुझे पता है। जब आप मुझे डॉक्टर के यहाँ लेकर गए थे, तो उसने कहा था कि मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं, मेरे फेफड़े खराब हो चुके हैं।”

बसंत, “ऐसा नहीं कहते, झुमरी। मैं तुम्हें अभी इसी वक्त डॉक्टर के पास ले चलूँगा।”

झुमरी, “नहीं, कोई फायदा नहीं। मुझसे एक वादा कीजिए, मेरे जाने के बाद आप मेरी बेटी को कभी भी उसकी माँ की कमी महसूस नहीं होने देंगे, उसे कभी नहीं डांटेंगे।”

बसंत, “मैं वादा करती हूँ।”

झुमरी अपने बगल में लेटी हुई अपनी दो वर्षीय पुत्री को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी। झुमरी ने उसे देखते ही देखते दम तोड़ दिया।

बसंत फूट-फूटकर रोने लगा। इस घटना को 12 वर्ष बीत चुके थे। बसंत की पुत्री चमकी अब 14 वर्ष की हो चुकी थी।

बसंत गांव के जमींदार कल्लन की हवेली में साफ-सफाई का काम करने लगा था।

बसंत, “मुझे आपसे कुछ बात करनी थी, सेठ जी।”

सेठ, “अच्छा, अब मेरे इतने बुरे दिन आ गए कि गांव का एक भिखारी मुझसे बात करना चाहता है, जो मेरे ही टुकड़ों पर पलता है? चल, जल्दी बोल क्या बात करनी है?”

बसंत, “जी, मुझे ₹200 की बहुत जरूरत है।”

सेठ, “₹200 में कितने जीरो होते हैं, तुझे पता है? तेरे बाप-दादा ने भी ₹200 कभी देखे हैं क्या? वैसे, तुझे क्या जरूरत आ पड़ी भई पैसों की?”

बसंत, “मेरी बिटिया 2 दिन से बुखार से तड़प रही है, उसकी दवाई लानी थी।”

सेठ, “तुम गरीबों को बुखार में दवाई नहीं खानी चाहिए। अपनी बेटी के शरीर पर गीली पट्टियाँ रख दे, बुखार उतर जाएगा।”

बसंत, “ऐसा मत कहिए, सेठ जी। मैं आपका हर कहना मानता हूँ।

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अगर आप बोलते हैं कि तपती दोपहर में सारा दिन मुझे खेतों की रखवाली करनी है, तो मैं सारा दिन धूप में ही रहता हूँ और आपसे कभी पैसे नहीं मांगता।

बिटिया को 2 दिन से बुखार है, सिर्फ उसकी दवाई के लिए ही पैसे मांग रहा हूँ।”

यह सुनते ही जमींदार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

सेठ, “क्यों रे, तुझे जो खाने को मिलता है, वो क्या कम है? जो अब तू पैसे भी मांगने लगा?

अगर तेरी औकात उसकी दवाई खरीदने की भी नहीं थी, तो बच्ची पैदा क्यों की रे तूने? अरे! पैदा होते ही उस समय उसे किसी कूड़े के ढेर में डाल देता।”

जमींदार की बात सुनकर बसंत की आँखों में आंसू आ गए।

बसंत, “ये आप कैसी बातें कर रहे हैं, सेठ जी? मैंने बरसों आपकी गुलामी की है।

आज पहली बार मैंने आपसे कुछ पैसे मांगे हैं, वो भी बिटिया की दवाई के लिए।”

सेठ, “नमक हराम, जुबान लड़ाता है। ये क्यों नहीं कहता कि तू टीबी का मरीज है? तेरे अंदर कोई काम करने की ताकत ही नहीं है।

एक तो तुझे खाने को भोजन दिया, पहनने को कपड़े दिए, ऊपर से तू मुझसे जुबान लड़ा रहा है। इससे पहले कि मैं अपना आपा खो बैठूँ, निकल जा यहाँ से।”

बसंत, “ये बिलकुल गलत बात है, सेठ जी। ईश्वर ने आपको इतना ढेर सारा धन दिया है।

आपको एक गरीब को अपमानित करते हुए शरण नहीं आती? अरे! मैंने अपनी गुलामी के बदले आपसे क्या मांगा… सिर्फ ₹200?

₹200 के लिए आप मुझसे बोल रहे हो कि मैं अपनी बेटी को पैदा होते ही किसी कूड़ेदान के ढेर में फेंक देता?

गरीब की हाय में बहुत ताकत होती है, सेठ जी। गरीब के दिल से निकली हुई हाय बड़े-बड़े महलों को चुटकियों में धराशायी कर देती है। बड़े-बड़े रईसों को चुटकी में भिखारी बना देती है।”

बसंत की बात सुनकर जमींदार ने लातों और घूंसे से बसंत को बुरी तरह से पीटना शुरू कर दिया और उसे धक्के मारकर अपनी कोठी से बाहर निकाल दिया।

बसंत दर्द से कराहता हुआ अपने घर चला जाता है। अपने पिता को दर्द से कराहता हुआ देख चमकी तुरंत दौड़ी-दौड़ी आई और वह इशारों-इशारों में बसंत से पूछने लगी।

चमकी, “क्या हुआ, पिताजी?”

बसंत, “मैंने तेरी दवाई के लिए सेठ जी से कुछ पैसे मांगे थे, बिटिया। लेकिन सेठ जी ने मुझे एक भी पैसा नहीं दिया।

इसके बदले मुझे उसने अपमानित करके मार-पीटकर अपनी हवेली से बाहर भगा दिया।”

बसंत की बात सुनकर चमकी की आँखों में आंसू आ गए और उसने इशारों-इशारों से अपने पिता से कहा।

चमकी, “मेरा बुखार सही हो गया है, पिताजी। आपको चिंता करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। मैं बिल्कुल सही हूँ।”

चमकी की बात सुनकर बसंत फूट-फूटकर रोने लगा।

बसंत, “सेठ जी ने मुझे काम से भी निकाल दिया। मैं जानता हूँ, तू झूठ बोल रही है। तुझे अभी भी बुखार है और तुझे भूख भी लगी है।”

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रोते-रोते बसंत सो गया और चमकी भी। सुबह चमकी ने अपने पिता को बहुत उठाया, मगर बसंत नहीं उठा।

चमकी घबराकर बाहर भागी, तो बाहर गांव के मुखिया के साथ कुछ व्यक्ति खड़े थे। चमकी को घबराया देख सब झोपड़ी में आ गए।

मुखिया, “अरे! ये तो बसंत हैं। इसको क्या हुआ?”

मुखिया के बगल में खड़ा हुआ बल्ली तुरंत बसंत के शरीर को हिला-डुलाकर देखने लगा।

बल्ली, “मुखिया जी, ये तो मर चुका है। और मुझे तो लगता है कि इसे मरे हुए तो काफी घंटे हो चुके हैं।”

मुखिया, “ये तो बहुत बुरा हुआ, बल्ली। इस बेचारी गूंगी लड़की का सिर्फ यही तो एक सहारा था।”

बल्ली, “इसके शरीर पर तो चोटों के काफी निशान भी हैं, मुखिया जी। ऐसा लगता है जैसे बसंत को किसी ने बुरी तरह से पीटा हो।”

बल्ली, “बसंत तो जमींदार कल्लन के यहाँ पर काम करता था और कल्लन की क्रूरता के बारे में तो गांव का हर व्यक्ति जानता है। जरूर उस निर्दयी ने इस बेचारे को पीटा होगा।”

बल्ली, “मैंने इतना क्रूर और अत्याचारी व्यक्ति अपने जीवन में नहीं देखा, मुखिया जी।

उस निर्दयी जमींदार को इस बेचारी बच्ची पर भी तरस नहीं आया। उसने ये भी नहीं सोचा कि अगर बसंत को कुछ हो गया, तो इसका क्या होगा?”

मुखिया, “तुम तो जानते ही हो कि जमींदार की उठक-बैठक पुलिस महकमे के बड़े अधिकारियों में है और उसके पास धन की कोई कमी नहीं है।

इसी बात का वो आज तक फायदा उठाता आया है। अरे! हम क्या कर सकते हैं? ईश्वर ही उसे सजा देगा, भैया।”

बल्ली , “जो भी हो मुखिया जी, इस बेचारी गूंगी बिटिया की माँ तो 12 वर्ष पहले ही स्वर्ग सिधार गई। ऊपर से बेचारा इसका पिता भी मर गया। अब ये अनाथ कहाँ जाएगी?”

बल्ली की बात सुनकर मुखिया गहरी सोच में डूबता हुआ बोला,

मुखिया, “इस बच्चे की परवरिश कोई और नहीं बल्कि जमींदार ही करेगा। चलो, मेरे साथ।”

मुखिया चमकी को लेकर सीधा जमींदार की हवेली पर पहुँच गया।

जमींदार, “क्या बात है, मुखिया जी? आज सुबह-सुबह गांव के व्यक्तियों के साथ यहाँ कैसे? सब कुछ ठीक तो है?”

मुखिया, “आपके यहाँ पर बसंत बरसों से काम करता था। कल रात उसकी मौत हो गई।”

जमींदार, “ये तो बहुत बुरा हुआ। मैंने बसंत को कभी भी नौकर नहीं समझा।”

मुखिया, “इस बात को तो हम सभी जानते हैं कि आप दिल के कितने अच्छे हैं? लेकिन बिल्ली ने देखा है कि बसंत के शरीर पर चोटों के काफी निशान हैं।

अभी हमने उसका अंतिम संस्कार नहीं किया है। सोच रहे हैं कि हम बसंत की लाश को पुलिस के सुपुर्द कर दें।

पोस्टमार्टम से खुलासा हो जाएगा कि आखिर उसकी मौत किस वजह से हुई?”

यह सुनकर जमींदार घबरा गया, क्योंकि वह जानता था कि उसने बसंत को कितनी बुरी तरह से पीटा था।

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जमींदार, “अरे! नहीं नहीं, मुखिया जी। पुलिस के पास जाकर क्या करेंगे आप? बसंत का अंतिम संस्कार मैं करूँगा।

और जहाँ तक सवाल उसकी बिटिया चमकी का है, तो आज से उसकी परवरिश मैं करूँगा। उसे कभी भी उसके पिता की कमी महसूस नहीं होने दूंगा।”

जमींदार की बात सुनकर मुखिया व्यंग्यात्मक हँसी हँसते हुए बोला,

मुखिया, “मुझे आपसे यही उम्मीद थी। हम हर महीने चमकी बिटिया का हाल-चाल लेने आते रहेंगे।”

इतना कहकर मुखिया चमकी को छोड़कर वहाँ से चला गया। चमकी अच्छी तरह से जानती थी कि जमींदार झूठ बोल रहा था।

अनीता (जमींदार की पत्नी), “क्या जरूरत थी उस मुखिया के सामने अपनी बड़ाई पेश करने की?

बसंत हमारे लिए क्या कम मुसीबत था कि एक और मुसीबत, इस गूंगी को हमारे सर पर छोड़ गया।”

जमींदार, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, अनीता? अगर मुखिया को जरा सा भी शक हो जाता कि बसंत को मैंने बुरी तरह से पीटा था, तो वो बसंत की लाश को पुलिस के हवाले कर देता।

अगर बसंत का पोस्टमार्टम हो जाता, तो हम सब की इज्जत मिट्टी में मिल जाती और सब जेल की चक्की पीस रहे होते। ज़रा दिमाग से भी काम लिया करो।”

अनीता, ” वो तो ठीक है, लेकिन अब इस गूंगी का क्या करना है?”

जमींदार, “अरे! हमारी हवेली में सौ काम होते हैं। ये भी बसंत की तरह हमारी हवेली में गुलामी ही करेगी।”

अनीता, “एक तीर से दो निशाने करने का शौक आपका नहीं गया।”

जमींदार, “मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझा।”

अनीता, “सीधे सीधी बात है, गांव वालों की नजर में आप इस बच्ची की परवरिश कर रहे हैं, मगर हमें तो बैठे-बिठाए बसंत के मरने के बाद एक नई गुलाम मिल गई। वो भी ऐसी गुलाम जो बोल भी नहीं सकती।”

कुछ दिन बाद अनीता की बहन सुनीता वहाँ रहने के लिए आई।

सुनीता, ‘अनीता, ज़रा दिमाग से काम लो। इस लड़की का कुछ करो। कुछ सालों बाद ये गूंगी जवान हो जाएगी।

गांव वाले वैसे भी तुम्हारे मत्थे मढ़ गए हैं। कहीं तुम्हें इसके हाथ भी पीले ना करने पड़ जाए?’

अनीता, ‘मैं भी काफी समय से यही बात सोच रही थी। लेकिन चिंता मत करो, मैंने इसका भी उपाय निकाल लिया है। ऐसा उपाय कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।”

एक दिन सुनीता और अनीता ने एक कमरे में चमकी को बंद कर दिया।

चमकी वहाँ 2 दिन तक भूखी और प्यासी बैठी रही। अचानक रात के समय चमकी की आँख खुल गई।

उस कमरे के अंदर रोशनी की किरणें फूट रही थीं। उन किरणों से एक रहस्यमयी स्त्री बाहर आ गई।

स्त्री, “घबरा मत मेरी बच्ची। मैं सब जानती हूँ, इन अत्याचारियों ने तुझ पर और तेरे पिता पर कैसे-कैसे अत्याचार किए हैं? तेरे पिता को ज़मीनदार ने कितनी बुरी तरह से पिट-पीटकर मार डाला?”

अचानक चमकी को अपने अंदर अजीब सा बदलाव महसूस हुआ।

स्त्री,”चमकी, अब तुम गूंगी नहीं रही, अब तुम बोल सकती हो।”

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चमकी, “ये कैसे हो सकता है? मैं तो जन्मजात गूंगी हूँ। और आप कौन हैं?”

स्त्री, “कुछ समय बाद तुम्हें सब पता चल जाएगा। मुझे ये भी पता है कि इन निर्दयी लोगों ने तुम्हें 2 दिन से भूखा रखा है।”

चमकी, “हाँ, इन लोगों ने 2 दिन से कुछ भी खाने को नहीं दिया।”

उस स्त्री ने जादू से चमकी के सारे मनपसंद व्यंजन चमकी के सामने रख दिए। चमकी ने पेट भरकर खाना खाया। कुछ देर बाद सुबह हो गई।

अनीता, “चलो, ज़रा चलकर देखते हैं।”

सुनीता, “हाँ, मुझे पूरा विश्वास है कि अब तक तो वो नासमिटी गूंगी मर गई होगी।”

जब अनीता और सुनीता ने कमरे का दरवाजा खोला, तो उन्होंने देखा कि चमकी नये कपड़े पहने हुए कुर्सी पर आराम से बैठी हुई केला खा रही थी।

सुनीता, “अरे अनीता! हम लोग तो समझ रहे थे कि ये मर गई होगी, मगर ये तो आराम से बैठ के केला खा रही है।”

अनीता, “वो सब तो सही है सुनीता, लेकिन इसके पास ये केला कहाँ से आया? ये कमरा तो बरसों से बंद पड़ा है।”

सुनीता, “ऐ लड़की सीधी तरह से बता दे कि तुझे केला किसने दिया? हमने तो इस कमरे के बाहर ताला लगा दिया था। कौन आया था हमारे पीछे?”

अनीता, “ये क्या बोल रही हो सुनीता? ये तो गूंगी और बहरी है। ये क्या बताएगी?”

सुनीता, “अरे! इशारों से तो बता सकती है ना?”

चमकी, “इसे एक जादुई स्त्री ने मुझे दिया है।”

सुनीता और अनीता को चक्कर आ गए।

सुनीता, “हे भगवान! ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने तो सुना था कि ये जन्मजात गूंगी है, लेकिन ये तो बोल रही है।”

अनीता, “अरे! काहे को घबराती है तू? ज़रा ज़रा सी बात पे डर जाती है।

जरूर ये लड़की नाटक कर रही होगी। कोई गूंगी वूंगी नहीं है ये। क्या भला कोई जन्मजात गूंगा बोल सकता है?”

सुनीता, “ऐ लड़की! अब इस केले को खाना बंद कर और सीधी तरह से बाहर आ।”

चमकी उस रहस्यमयी जादुई स्त्री की ओर देख रही थी। वो रहस्यमयी स्त्री सिर्फ चमकी को दिखाई दे रही थी। स्त्री ने चमकी को उन दोनों के साथ जाने का इशारा कर दिया।

चमकी अनीता और सुनीता के साथ चली गई।

सुनीता, “चल जा मेरे लिए गिलास पानी लेकर आ। बहुत ज़ोरों से प्यास लगी है।”

सुनीता ने ये कहा ही था कि जग अपने आप उठ कर सुनीता के पास आ गया। ये देखकर सुनीता की चीख निकल गई।

सुनीता की चीख सुनकर अनीता दौड़ी-दौड़ी सुनीता के पास आई।

अनीता, “क्या हुआ बहन? चिल्लाई क्यों?”

सुनीता, “भूत… भूत, ये लड़की भूत बन गई है।”

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अनीता, “क्या बकवास कर रही हो, सुनीता? कुछ देर पहले तो तुम बड़ी बहादुर बन रही थी।

झांसी की रानी जैसी बातें कर रही थी और अब सूखे पेड़ की तरह थर-थर कांप रही हो। मैं अभी इस लड़की को सबक सिखाती हूँ।’

जैसे ही अनीता चमकी की ओर दौड़ी, उसे अचानक ऐसा लगा जैसे उसका पैर किसी ने पकड़ लिया हो।

अनीता, “अरे! मेरा पैर किसने पकड़ा?”

पैर वही रहस्यमयी स्त्री ने पकड़ा था, लेकिन वह उन दोनों को दिखाई नहीं दे रही थी।

उस स्त्री ने अनीता को उठाकर फर्श पर पटक दिया। अनीता दर्द से चीख उठी।

यह सब देखकर सुनीता उठकर बाहर की ओर भागी और ज़मीनदार से जा टकराई।

ज़मीनदार, “क्या बात है सुनीता बहन, बहुत घबराई हुई हो?”

सुनीता, “अरे! वो जो गूंगी और बहरी लड़की को तुमने रखी है ना, वो लड़की बोल रही है। वो भूत बन चुकी है। पानी अपने आप चल कर आ रहा है। ये सब क्या हो रहा है?”

ज़मींदार, “क्या अनाप शनाप बके जा रही हो तुम? ज़रूर उस लड़की ने तुम्हें बेवकूफ बनाया होगा। मैं जाकर देखता हूँ।”

ज़मीनदार कमरे में गया तो देखा कि उसकी पत्नी फर्श पर लेटी हुई दर्द से कराह रही थी।

अचानक कमरे में रखा हुआ डंडा खुद-ब-खुद ज़मीनदार को बुरी तरीके से पीटने लगा।

ज़मींदार, “ये कैसे हो सकता है? डंडा अपने आप मुझे कैसे मार सकता है? ये तो वही डंडा है, जिससे मैंने बसंत को बड़ी बेदर्दी से मारा था।”

कुछ देर में ज़मीनदार का शरीर रक्त से लथपथ हो गया।

ज़मीनदार, “मुझे माफ़ कर दो, चमकी। मैं जानता हूँ, मैंने तुम्हारे पिता बसंत के साथ बहुत गलत किया।

मैंने उस बेचारे को इसी डंडे से बुरी तरह पीटा था। लेकिन मेरी बात का यकीन मानो, मुझे नहीं पता था कि वो मर जाएगा।

इस डंडे को किसी भी तरह से रोक दो। मेरा शरीर बुरी तरह से दर्द कर रहा है।”

तभी एक और डंडा उड़ता हुआ वहाँ पर आ गया। वे दोनों डंडे सुनीता, ज़मीनदार और अनीता को भी बुरी तरीके से पीटने लगे।

सुनीता, “हाय रे! मर गई रे! बहुत दर्द हो रहा है।”

अनीता, “हमें छोड़ दो, हमें क्षमा कर दो। अरे सुनीता बहन! मैं तुमसे बोल रही थी कि कुछ तो गडबड है, कहीं चमकी भूत तो नहीं बन गई?”

तभी अचानक वे दोनों डंडे रुक गए और देखते ही देखते वह झुमरी के रूप में परिवर्तित हो गई।

फिर एक तेज़ रोशनी फूटी और उस रोशनी में बसंत निकलकर झुमरी के बगल आकर खड़ा हो गया।

चमकी, “पिताजी, आप?”

बसंत, “हाँ बिटिया, ये मैं हूँ और ये रहस्यमयी स्त्री कोई और नहीं बल्कि तेरी माँ है।”

चमकी रोते हुए झुमरी से जाकर लिपट गई।

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जमींदार, “झुमरी और बसंत… तुम दोनों तो मर चुके हो, फिर तुम जीवित कैसे हो सकते हो?”

बसंत, “हाँ, तुमने सही कहा। मैं मर चुका था, लेकिन तुमने और तेरी पत्नी ने मिलकर मेरी बेटी पर इतने अत्याचार किए कि मुझे और मेरी पत्नी को इस दुनिया में दोबारा आना ही पड़ा। हम दोनों की आत्माएँ तड़प उठीं।”

अनीता,”हमें क्षमा कर दो।”

सुनीता, “मुझे भी माफ़ कर दो। हम चमकी को अब कभी तंग नहीं करेंगे।”

झुमरी, “नहीं, मैं तुम तीनों को जीवित नहीं छोड़ूंगी। तुम तीनों ने मेरी बेटी के साथ बहुत अत्याचार किए हैं।”

तभी वहाँ मुखिया बहुत से गांव के लोगों को लेकर आ गया।

मुखिया, “इन्हें छोड़ दो। आज से चमकी मेरी बिटिया है। इन्हें इनके किए की सजा कानून देगा।”

बसंत, “नहीं मुखिया जी, ये तीनों पापी अपने पैसे के दम पर फिर से बाहर आ जाएंगे।

और फिर से मुझ जैसे गरीबों को मारेंगे और उनके बच्चों पर अत्याचार करेंगे। ये तीनों इंसान के नाम पर कलंक हैं।”

झुमरी, “इन तीनों ने गरीबों पर अत्याचार करने की हद पार कर दी है। इन तीनों की मौत निश्चित है।”

झुमरी और बसंत ने अपना हाथ आगे की ओर कर दिया। उनके हाथ से आग की बड़ी-बड़ी लपटें निकलने लगीं और देखते ही देखते ज़मीनदार, सुनीता और अनीता जलकर भस्म हो गये।

और चमकी की परवरिश गांव का मुखिया अपनी बेटी की तरह करने लगा।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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