जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

व्हाट्सएप ग्रुप ज्वॉइन करें!

Join Now

टेलीग्राम ग्रुप ज्वॉइन करें!

Join Now

हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई कढ़ी चावल ” यह एक Magical Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Jadui Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


बलियापुर के सोमू के माँ-बाप की एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। उसके पिता का एक होटल था जो बहुत अच्छा चलता था।

पिता की मृत्यु के बाद धीरे-धीरे वहाँ ग्राहकों का आना लगभग बंद हो गया और सोमू की माली हालत बहुत खराब हो चुकी है। सोमू के घर के बाहर बहुत सारे लोग जमा हैं।

सोमू, “मैं आप सबके हाथ जोड़ता हूँ और विनती करता हूँ, मुझे कुछ और समय दे दीजिए। मैं जल्दी आप सभी का कर्जा चुका दूंगा।”

भीड़ में से एक आदमी, “हमें नहीं पता, अगर तुमने एक महीने के अंदर हमारे पैसे नहीं लौटाए तो हम तुम्हारा होटल बेच देंगे और उससे अपने पैसे वसूल कर लेंगे।”

सोमू, “नहीं नहीं, अब ऐसा कुछ मत कीजिएगा। मुझे बस थोड़ा समय दे दीजिए।”

सोमू अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा है।

सोमू, “मैं क्या करूँ, समझ नहीं आता? इस होटल को चलाने की कितनी कोशिश की, पर ये होटल नहीं चला? अब तो मुझे ऐसा लगता है कि हमें ये होटल बेच देना चाहिए।”

उर्मिला, “आप सही कहते हैं, अब हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है। आप होटल बेच दीजिए और उन पैसों से कर्जदारों का कर्ज चुका दीजिए।”

सोमू, “फिर हम क्या करेंगे?”

उर्मिला, “हमारे पास जो पैसे बचेंगे, उनसे हम कोई दूसरा धंधा कर लेंगे।”

सोमू ने होटल बेच दिया और कर्जदारों के पैसे वापस कर दिए। लेकिन इस सब में उसकी तबियत बहुत खराब हो गई और बचा हुआ सारा पैसा उसकी बीमारी में खर्च हो गया। उनकी माली हालत और खराब हो गई।

उर्मिला, “अब तो हमारे पास पैसे भी नहीं हैं।”

सोमू, “मुझे पता है, मेरी बीमारी से बचे हुए सारे पैसे खर्च हो गए। पता नहीं, अब क्या होगा?”

उस दिन कुलदेवी की पूजा थी और इस पूजा में भोग लगाने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे।

उर्मिला, “आज पूजा में भोग कैसे लगाऊं, कुछ समझ नहीं आ रहा?”

सोमू, “ऊपर वाले ने जो हमारे पास छोड़ा है, उसी का भोग लगा दो।”

उर्मिला ने रसोईघर के डब्बे देखे। उसे सिर्फ थोड़ी सी चावल और ज़रा सा बेसन मिला।

उस बेसन से बिना पकौड़ों की कढ़ी बना दी और चावल उबाल दिए। उस भोग को लेकर वो जंगल में अपनी कुलदेवी के मंदिर में गई और भोग रखकर प्रार्थना की।

उर्मिला, “हे देवी माँ! हमारे पास और कुछ नहीं है जो मैं बनाकर यहाँ लेकर आ सकी। आपको यही भोग लगाना होगा।”

उर्मिला आँखें बंद कर वहीं बैठ गई। उस पेड़ पर एक जादूगरनी रहती थी जो बहुत बूढ़ी हो चुकी थी। उसने कढ़ी चावल देखे और तुरंत सारे खा लिए।

जादूगरनी, “तुम्हारे कढ़ी चावल तो बहुत स्वादिष्ट बने हैं, बस थोड़ी पकौड़ों की कमी है।”

उर्मिला ने आवाज़ सुनकर घबराते हुए अपनी आँखे खोली।

जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

उर्मिला, “आप कौन हैं और आपने ये क्या किया?”

जादूगरनी, “तुमने ये मेरे लिए ही तो यहां रखे थे, मैंने खा लिये।”

उर्मिला, “हे राम! आपने ये क्या किया? यह तो कुलदेवी के लिए भोग रखा था, आपने वो भी खा लिया?”

जादूगरनी, “मैं भी तो देवी हूँ।”

उर्मिला को जादूगरनी से बहस करना सही नहीं लगा और वो चुपचाप वहाँ से उठकर जाने लगी।

जादूगरनी, “तुम जा रही हो? तुमने बताया नहीं, तुमने इस कढ़ी में पकोड़े क्यों नहीं डाले?”

उर्मिला, “कहाँ से डालती पकोड़े? ना घर में तेल था और ना इसके अलावा और बेसन।

मैं तो भोग लगाकर बचा हुआ खाना घर वापस ले जाकर अपने परिवार के साथ खाने वाली थी। लेकिन आपने तो पूरा सफा चट कर दिया।”

जादूगरनी, “ओह… तो ये बात है।”

जादूगरनी ने जादू से दो छोटे बर्तन उर्मिला को दिए।

जादूगरनी, “तुम ये बर्तन अपने घर ले जाओ और इसमें कढ़ी चावल बनाना, लेकिन पकोड़े डालकर और वापस मुझे देकर जाना।”

उर्मिला, “कढ़ी चावल बर्तन से नहीं… बेसन, तेल और चावल से बनता है।”

जादूगरनी, “अपने घर जाओ, तुम्हें सब सामान मिलेगा। और मेरे लिए फिर से कढ़ी चावल बना कर लाओ, वो भी पकोड़े वाली।

अगर इस बार भी तुम्हारी कढ़ी चावल इतने ही स्वादिष्ट हुए तो मैं तुम्हें एक जादुई मंत्र दूंगी, जिससे तुम्हें और तुम्हारे परिवार को कभी भूखा नहीं रहना पड़ेगा।”

उर्मिला अपने घर गई और वहाँ उसने देखा कि घर में सच में थोड़ा सा बेसन, चावल और थोड़ा तेल रखा हुआ है।

उसने फिर से कढ़ी चावल बनाए, वो भी पकोड़े डालकर और जादूगरनी के पास पहुँच गई। जादूगरनी ने कढ़ी चावल खाना शुरू कर दिया। जादूगरनी कढ़ी चावल खाती जाती और उर्मिला उसे और देती जाती।

थोड़ी देर के बाद उर्मिला को लगा कि वो सारा खाना खा लेगी लेकिन फिर उर्मिला ने देखा कि जादूगरनी ने इतने कढ़ी चावल खा लिए, फिर भी बर्तन के कढ़ी चावल खत्म ही नहीं हो रहे थे।

जादूगरनी, “तुमने इस बार पहले से भी ज्यादा स्वादिष्ट कढ़ी चावल बनाए थे।”

उर्मिला, “मुझे एक बात समझ नहीं आ रही, तुमने इतना सारा खाना खाया फिर भी इन बर्तनों में कढ़ी चावल खत्म नहीं हुआ।”

जादूगरनी, “यही तो जादू है। ये कोई मामूली बर्तन नहीं है। ये जादुई बर्तन है। इन बर्तनों में तुम कढ़ी चावल बनाना और बेचना।

तुम्हारे ये बर्तन कभी खाली नहीं होंगे। बस मेरी एक बात याद रखना, तुम्हें इन कढ़ी चावलों का ग्राहकों से हमेशा उचित मूल्य ही लेना होगा, नहीं तो ये जादू खत्म हो जाएगा।”

उर्मिला, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”

उर्मिला खुशी-खुशी वो जादुई बर्तन लेकर अपने घर की तरफ गई और सोमू को सारी बात बताई। दूसरे दिन से वो दोनों बाजार में कढ़ी चावल बेचने लगे।

जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

जो ग्राहक एक बार उर्मिला का बनाया कढ़ी चावल खाता, हर रोज़ वहीं कढ़ी चावल खाने आता। धीरे-धीरे उनके कढ़ी चावल लोगों को बहुत पसंद आने लगे और उनके कढ़ी चावल के मेज के आगे लोगों की लाइन लगने लगी।

ग्राहक, “अरे वाह भई वाह! क्या कढ़ी चावल बनाती हो बहन, मज़ा ही आ गया।”

दूसरा ग्राहक, “भाई, मैं तो चाहे घर से जो मर्जी खा लूँ। जब तक यहाँ के कढ़ी चावल ना खा लूँ, पेट नहीं भरता। अरे वाह! थोड़ा सा कढ़ी चावल और डाल दो इसमें।”

उर्मिला, “अरे! हाँ, लो ना और लो।”

सोमू, “उर्मिला, ग्राहकों की संख्या बढ़ते देख मुझे ऐसा लगता है कि हम अपना होटल वापस खरीद पाएंगे।”

उर्मिला, “मुझे नहीं लगता कि वो समय इतना जल्दी आएगा। हमारे पास ग्राहक हमारे कढ़ी चावल के स्वाद के लिए नहीं बल्कि उसके दाम की वजह से आते हैं।”

सोमू, “तुम्हारा मतलब क्या है?”

उर्मिला, “पूरे बाजार में एक प्लेट कढ़ी चावल ₹40 का बिकता है, हम सिर्फ ₹5 में बेचते हैं।”

सोमू, “हाँ, हमें थोड़ा मुनाफा कमाना चाहिए।”

उर्मिला, “इसलिए बोल रही हूँ कि सारा दिन धूप में, बरसात में खड़ी रहने के बावजूद हम कम मुनाफा कमाते हैं। हमारी स्थिति को पहले जैसा करने के लिए हमें अपने कढ़ी चावल के दाम बढ़ाने होंगे।”

सोमू, “तुम उस जादूगरनी की बात भूल रही हो?”

उर्मिला, “मुझे सब याद है, लेकिन आप भूल रहे हैं अगर ऐसे चलता रहा और किसी दिन जादूगरनी का जादू गायब हो गया तो हमारे पास फिर से कुछ खाने को नहीं होगा।”

सोमू, “तुम्हारी बात तो सही है, लेकिन जादूगरनी की कही बात का क्या होगा? अगर उसका जादू गायब हो गया तो?”

उर्मिला, “अगर हमारे पास फिर से पैसे आ जाएंगे और ये जादू गायब भी हो जाएगा, तो भी हम उन पैसों से कुछ तो कर ही लेंगे ना?

लेकिन इस तरह ₹5 में एक प्लेट कढ़ी चावल बेचकर जिंदगी का गुज़ारा कैसे कर सकते हैं?”

उर्मिला की बात मानकर सोमू ने कड़ी चावल के दाम ₹5 से बढ़ाकर ₹10 कर दिए, फिर भी बर्तनों में कड़ी चावल खत्म नहीं होते थे।

उर्मिला, “देखा, जादूगरनी को भी पता है कि हमने अपने कढ़ी चावल के दाम दूसरों से कितने कम रखे हैं?”

सोमू, “हाँ, हम ज्यादा हीकम मुनाफा कमा रहे थे।”

सब ठीक चलता रहा। कुछ समय बाद एक दिन उर्मिला ने फिर कहा।

उर्मिला, “हमें लगता है, हमारे कड़ी चावल के दाम अभी भी कम हैं। हमें इन्हें ₹10 की जगह ₹30 में बेचने चाहिए।”

सोमू, “हां, महंगाई भी तो कितनी बढ़ गई है? कल से हम कड़ी चावल के दाम ₹10 की जगह ₹30 कर देते हैं।”

दूसरे दिन से उन्होंने कड़ी चावल के दाम ₹10 की जगह ₹30 प्रति प्लेट कर दिए। फिर भी दुकान पर ग्राहकों की लाइन लगी रहती थी।

ग्राहक, “अरे! उर्मिला ने तो कड़ी चावल के दाम बढ़ा दिए हैं, लेकिन स्वाद के लिए इतना दाम तो चुकाना ही पड़ेगा। सही कहा ना भाई?”

जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

दूसरा ग्राहक, “बिल्कुल सौ टका सही बात कही है, भाई।”

उस दिन शाम को उर्मिला और सोमू के लिए बर्तनों में कड़ी चावल नहीं बचे। दोनों इतने थक गए थे कि बिना कुछ खाए ही सो गए।

दूसरे दिन सुबह…
सोमू, “उर्मिला, आज ध्यान से काम करना। कल हमारे लिए कुछ नहीं बचा था।”

उर्मिला, “हाँ, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि ऐसा क्यों हुआ?”

सोमू, “प्लेट तो तुम लगाकर देती हो ग्राहकों को।”

इसके बाद रोज़ ही ऐसा होने लगा कि सोमू और उर्मिला के लिए खाने को कुछ नहीं बचता। वे इतने थके होते कि वापस आकर कुछ पकाने की भी हिम्मत नहीं बचती, तो वे रोज़ बाहर से खाने के लिए कुछ लाने लगे।

सोमू, “इस हफ्ते हमारे पास ज्यादा पैसे नहीं बचे हैं।”

उर्मिला, “हाँ, हमने रोज़-रोज़ बाहर से खाना जो लिया है।”

सोमू, “तो क्या करें?”

उर्मिला, “कुछ नहीं, कड़ी चावल के दाम थोड़े और बढ़ा दो ताकि हमारा खर्चा भी निकल आए।”

सोमू, “तुम ठीक कहती हो। आज से कड़ी चावल के दाम ₹30 की जगह ₹35 प्लेट कर देते हैं।”

उन्होंने कड़ी चावल के दाम ₹30 की जगह ₹35 प्लेट कर दिए, लेकिन उस दिन दोपहर होते-होते ही बर्तनों में कड़ी चावल खत्म हो गए, और उन्हें घर वापस आना पड़ा।

दो-चार दिन ऐसे ही चलता रहा।

उर्मिला, “अगर आधे दिन में ही हमें दुकान बंद करनी पड़ी तो ऐसे कैसे चलेगा?”

सोमू, “उर्मिला, तुम सही कह रही हो, इस तरह तो हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। अब हम कड़ी चावल के दाम ₹35 की जगह ₹40 प्लेट कर देते हैं।”

उर्मिला,” हां, यही सही रहेगा। आधे दिन में ही हम उतना मुनाफा कमा लेंगे जितना पहले कमाते थे।”

दूसरे दिन से उन्होंने कड़ी चावल के दाम ₹35 की जगह ₹40 प्लेट कर दिए। उर्मिला घर से जितने कड़ी चावल बनाकर ले गई थी, वो सिर्फ 10 प्लेट हुए।

उसके बाद बर्तनों में कड़ी चावल खत्म हो गए। दोनों को 1 घंटे बाद ही घर वापस आना पड़ा।

सोमू, “मुझे लगता है, जादूगरनी ने अपना जादू वापस ले लिया है।”

उर्मिला, “तुम सही कह रहे हो। हमारे पास कितने पैसे बचे होंगे?”

सोमू, “ज्यादा नहीं, सिर्फ ₹400 बचे हैं।”

उर्मिला, “इतने में तो कुछ भी नहीं होगा।”

सोमू, “ये सब हमारे लालच की वजह से हुआ है। अगर हम कड़ी चावल के दाम ₹5 से ₹10 ही रखते तो आज हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता।”

जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

उर्मिला, “मैं अभी आती हूं। “

उर्मिला वापस उसे पेड़ के पास गई और जादूगरनी को आवाज देने लगी।

उर्मिला, “जादूगरनी जी… जादूगरनी जी, आप कहाँ हैं?”

जादूगरनी ने कोई जवाब नहीं दिया।

उर्मिला, “जादूगरनी जी, एक बार मेरे सामने आ जाइए। मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है।”

जादूगरनी प्रकट हुई और बोली, “हाँ बोलो, तुम्हें क्या बात करनी है?”

उर्मिला, “मुझे माफ कर दीजिए, मैंने लालच किया।”

जादूगरनी, “हाँ, तुमने सही कहा। तुमने लालच किया। मैंने तुमसे कहा था कि तुम अपने कड़ी चावल के दाम ज्यादा नहीं रखोगी, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया और सब गवां दिया।”

उर्मिला, “मुझे माफ कर दीजिए, मैं जानती हूं मैंने बहुत बड़ी गलती की।”

जादूगरनी, “ठीक है, मैं तुम्हें माफ करती हूँ।”

उर्मिला, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! जो आपने मुझे मेरी इतनी बड़ी गलती के लिए माफ कर दिया।”

जादूगरनी, “अब मुझसे क्या चाहिए तुम्हें?”

उर्मिला, “कुछ भी नहीं, आपने मुझे अनमोल चीज़ दी थी और मैंने अपने लालच की वजह से उसे खो दिया। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए।”

इतना कहकर उर्मिला वापस अपने घर चली गई। दोनों ने काम की तलाश के लिए बहुत मेहनत की।

लोगों के पास गए, दुकानों पर गए, लेकिन किसी ने उन्हें कोई काम नहीं दिया।

2 दिन बाद दोनों रात को घर में बैठे हुए अपने किए पर पछता रहे थे।

तभी जादूगरनी आई और बोली, “उर्मिला, मैं तुम्हारे घर कड़ी चावल खाने आई हूँ, वो भी तुम्हारे हाथ के बने हुए।”

उर्मिला, “बैठिए, मैं जरूर आपके लिए कड़ी चावल बनाऊंगी, लेकिन बिना पकौड़ों के।”

जादूगरनी, “तुम्हें पता है, मुझे बिना पकौड़ों के कड़ी चावल पसंद नहीं हैं? बिना पकौड़ों के मत बनाना।”

उर्मिला, “हमारे घर में तेल नहीं है।”

जादूगरनी, “अपने रसोईघर में जाकर तो देखो।”

उर्मिला रसोई में गई और वहाँ उसे तेल की बोतल दिखी। उसने जादूगरनी के लिए पकौड़े डालकर कड़ी चावल बनाए और बड़े प्रेम से उसे खिलाने बैठ गई। जादूगरनी ने पेट भर कर कड़ी चावल खाए।

जादूगरनी, “चलो, अब मैं अपने घर जाती हूँ। लेकिन जब भी मेरा दिल कड़ी चावल खाने का करेगा, तो मैं तुम्हारे घर आ जाया करूँगी।”

उर्मिला, “जरूर आइएगा।”

जादुई कढ़ी चावल | Jadui Kadhi Chawal | Jadui Kahani | Moral Story | Magical Story | Jadui Kahaniyan in Hindi

जादूगरनी के जाने के बाद जब उर्मिला और सोमू घर के अंदर वापस आए, तो उन्होंने देखा कि बर्तनों में कड़ी चावल भरे हुए हैं।

वे दोनों समझ गए कि जादूगरनी ने उन्हें माफ कर दिया है और अपना जादू का बर्तन उन्हें वापस दे दिया है।

दूसरे दिन से पहले की तरह, दोनों ने ₹5 प्रति प्लेट के कड़ी चावल बेचना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उनकी स्थिति पहले जैसी हो गई।

सोमू को अपने पिताजी का होटल वापस मिल गया। अब वे दोनों आराम से वहाँ बैठकर कड़ी चावल बेचते हैं।


दोस्तो ये Magical Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


Leave a Comment