भूतिया खेत | Bhutiya Khet | Bhutiya Kahani | Hindi Kahani | Bedtime Stories | Bhutiya Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया खेत ” यह एक Bhutiya Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bhutiya Stories या Bhoot Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


कुछ दिनों से कालगढ़ में कुछ अजीबोगरीब घटनाएं हो रही थी। गांव में कोई भी घटना होती थी,

तो सबसे पहली सूचना हिम्मत सिंह को दी जाती थी। गांव की बुढ़िया भागती हुई जमींदार के पास पहुंची।

बुढ़िया, “जमींदार साहब जमींदार साहब, गजब हो गया। मेरा बेटा मटरू कल शाम से गायब है, अभी तक घर नहीं आया।”

जमींदार, “अरे! आ जाएगा, किसी दोस्त के यहाँ गया होगा। आजकल के लड़के बिना बताए पार्टी वगैरह मनाते रहते हैं।”

बुढ़िया, “लेकिन जमींदार साहब, मैंने उसके सारे दोस्तों से पूछ लिया। किसी ने भी उसे कल दोपहर के बाद नहीं देखा। सबसे अंत में मटरू के दोस्त सुरजा ने उसे देखा था।”

जमींदार, “ठीक है।”

जमींदार, “दीवान जी, सुरजा को बुलवाइए।”

दीवान नेकचंद कालगढ़ गांव का सबसे पढ़ा-लिखा और समझदार व्यक्ति था। सुरजा जमींदार के पास आता है।

जमींदार, “बताओ सुरजा, तुमने मटरू को सबसे अंतिम में कहाँ देखा था?”

सुरजा, “जमींदार साहब, कल मटरू मुझे शाम 5:00 बजे शमशान के बगल में गन्ने की खेत की ओर जाते हुए मिला था।”

जमींदार, “उस तरफ तो कोई जाता नहीं। वहाँ जाने के लिए तो मैंने पूरे गांव को मना कर रखा है।”

सुरजा, “जी जमींदार साहब, मैंने उसे याद भी दिलाया कि उधर जाना मना है, लेकिन वह बोल रहा था कि उसका कुत्ता मोती इधर ही भागता आया है और फिर वह गन्ने के खेत में चला गया।”

जमींदार, “ठीक है, दोपहर में हम लोग गन्ने के खेत में जाकर मटरू की खोज करेंगे।”

दोपहर में गांव के सारे लोग मिलकर शमशान के बगल वाले गन्ने के खेत में मटरू को खोजते हैं लेकिन ना तो मटरू और ना ही उसका कुत्ता मोती कहीं दिखाई देता है।

शाम ढलने से पहले वहाँ से जमींदार सभी लोगों को निकल जाने के लिए बोलता है क्योंकि कालगढ़ के लोगों का मानना था कि शाम ढलने के बाद उस गन्ने के खेत में भूत प्रेत का वास होता है।

अभी तक कालगढ़ के करीब 28 लोग उस गन्ने के खेत में लापता हो चुके थे। कई बार इस गन्ने के खेत को काटा भी गया,

लेकिन अगली सुबह फिर उसमें गन्ने का खेत पाया जाता। भय से गांव का कोई आदमी शाम के वक्त उधर से नहीं गुजरता।”

बुढ़िया, “अब क्या होगा मालिक? मेरा मटरू के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं है।”

जमींदार, “मैं तुम्हारे दुःख को समझ रहा हूँ। लेकिन जितना हमें करना था, हम लोगों ने कोशिश कर लिया। अब तुम जाओ और थाने में अपना रपट लिखवा दो।”

तभी धन्नो धोबी दौड़ता हुआ आता है।

धन्नो, “अरे जमीदार साहब! गजब हो गया। मैं नदी के किनारे कपड़ा धो रहा था तभी शमशान के बगल वाले गन्ने की खेत से लाल धुएं का बवंडर उठते हुए देखा

और उस बवंडर में गांव से लापता कई पुराने लोग और मटरू अपने कुत्ते मोती के साथ दिखाई दिए।”

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जमींदार, “क्या बकते हो धन्नो? हम सब अभी गन्ने के ही खेत से आ ही रहे हैं। हमें तो वहाँ कुछ ऐसा नहीं दिखा।”

धन्नो, “मालिक, मैं सच बोल रहा हूँ। मैंने अपनी आँखों से अभी देखा है।

वो वंडर तेजी से चक्कर काटते हुए शमशान की तरफ चला गया और लाल धुएं से फिर वो नीले धुएं में बदल गया।”

तभी वहाँ इंस्पेक्टर टोने भी आ जाता है।

जमींदार, “आइए इंस्पेक्टर साहब, हम आप ही को बुलवाने वाले थे। आपके गांव में घट रही घटना के बारे में तो मालूम ही होगा?”

जमींदार, “जी हाँ जमीदार साहब, गांव में घट रही घटनाओं पर हमारी पैनी नजर है।

हमने दो कॉन्स्टेबल सिंटू और पिंटू को गन्ने के खेत के पास चेक पोस्ट बनाकर तैनात रहने को कहा है।”

जमींदार, “अभी अभी धन्नो धोबी ने गन्ने के खेत में लाल धुएं का बवंडर उठते हुए देखा है, जो शमशान में जाकर नीले कलर में बदल गया और विलीन हो गया।”

इंस्पेक्टर, “हमें ये भी पता है। कॉन्स्टेबल पिंटू और सिंटू ने इसकी पुष्टि की है कि उन्होंने भी ऐसे बवंडर को उठते हुए देखा है जिसमें कुछ लोग फंसे हुए दिखाई दिए थे।

मैं इसीलिए आपके पास आया हूँ कि आप गांव में सभी को हिदायत दे दें कि शाम के वक्त गन्ने के खेत की तरफ कोई नहीं जाएगा।”

गांव का सबसे बड़ा सेठ चितर पांडे की कार भी वहाँ आ जा‌ती है।

जमींदार, “अरे! आइए चितर पांडे जी, आप ही के गन्ने की खेत की चर्चा हो रही है।”

चितर पांडे, “अरे! मैं भी इस भूतिया गन्ने की खेत से परेशान हो गया हूँ। अब मैं सोच रहा हूँ कि उसके चारों तरफ चारदीवारी घिरवा दूं ताकि कोई आगे कांड ना हो।”

इंस्पेक्टर, “सही सोचा सेठ जी आपने।”

जमींदार, “ये लीजिए मुखिया जी, ₹2,00,000 मेरी तरफ से बुढ़िया को दे दीजिए।”

जमींदार, “अरे पांडे जी! आप खुद दीजिए।”

चितर पांडे, “अरे! आप ही दे दीजिए। मैं गुप्त दान देने में विश्वास रखता हूँ, दिखावे में नहीं। अच्छा मैं चलता हूँ, मंत्रीजी के साथ एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है।”

इंस्पेक्टर, “ऐसे ही आदमी को हमारे समाज की जरूरत है। बहुत ही नेक आदमी है सेठ जी।”

उधर कॉन्स्टेबल सिंटू और पिंटू चेक पोस्ट पर…

सिंटू, “भैया, कहाँ से हो?”

पिंटू, “हम तो बिहार से हैं। और आप?”

सिंटू, “हम तो यूपी से हैं। ज़रा सुरती है तो दो यार, डर के मारे पिछवाड़ा फटा जा रहा है।

बताओ, हम लोग क्या भूत मसाज भगाने के लिए भर्ती हुए थे पुलिस में?”

पिंटू, “हाँ भैया, बात तो तुम ठीक कह रहे हो। भैया, लो चुनौती पहले खैनी रगड़ो फिर खाके सोचेंगे कि हमें क्या करना है? डर तो ससुरा हमें भी लग रहा है।”

सिंटू, “भैया, तुमने कभी भूत देखी है?”

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पिंटू, “हाँ भाई, हमने तो भूत देखा है। हमारे चाचा को मेरे सामने भूत ने उठाकर तीन बार पटका था, जब हम आम के पेड़ के रखवाली के लिए मचान बनाकर उस पर सो रहे थे।”

सिंटू, “मैं नहीं मानता, मैं भूत प्रेत को नहीं मानता। ये भाई एक कोरी कल्पना और अफवाह है।”

पिंटू, “ठीक है भैया, अपनी अपनी सोच है। अच्छी बात है कि तुम्हें भूत प्रेत पर विश्वास नहीं है।

हमें तो है भैया। ऐसा करते हैं, आंधी रात तक तुम पहरा देते रहो, आंधी रात के बाद मुझे उठा देना और तुम सो जाना।”

सिंटू, “हाँ, यही ठीक रहेगा भैया।”

पिंटू, “ठीक है भाई, मैं तो अब सोने जा रहा हूँ। रात 2:00 बजे हमें उठा देना।”

अभी 5 मिनट ही हुए थे कि चेक पोस्ट के पास बने झोपड़ी में सिंटू सोने जा रहे पिंटू के पास आता है।

पिंटू, “अरे सिंटू! क्या हुआ? तुम अंदर क्यों आ गए?”

सिंटू, “भाई, मुझे पेशाब लगी है।”

पिंटू, “अबे! तो पेशाब अंदर करेगा क्या? थोड़ी दूर जाकर पेशाब कर लो। पूरा खेत खाली पड़ा है।”

सिंटू, “वैसी बात नहीं है। दरअसल, मुझे उधर जाने में डर लग रहा है। प्लीज़, थोड़ा सा मेरे साथ चलो ना। मैं पेशाब कर लूँगा तो फिर आ जाना।”

पिंटू, “यार, अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम्हें भूत पिशाच से डर नहीं लगता है। तुम्हारे इस बात से मुझे भी कुछ हिम्मत बढ़ा था, लेकिन तुम तो मुझसे भी ज्यादा डरपोक हो। चलो, टॉर्च लेकर चलते हैं।”

सिंटू चेक पोस्ट से कुछ दूर जाकर पेशाब करने लगता है। उसे दो चार कदम दूर पिंटू खड़ा हो जाता है।

अचानक वहाँ से काली बिल्ली सिंटू के पैरों से टकराती हुई दूसरी ओर खेत में भाग जाती है।

सिंटू, “भैया, बचाओ बचाओ। मेरे पैरों से भूत टकराया अभी।”

पिंटू, “अरे! वो तो काली बिल्ली थी। मैंने भी उसे टॉर्च की रोशनी में खेत में जाते हुए देखा है। चल, उतर जा।”

सिंटू, “नहीं भैया, भूत है… अभी अभी मेरे पैरों में टकराया है। मुझे भूत से बचा लो। मैं अपने पत्नी का इकलौता पति हूँ, उसका क्या होगा। वो विधवा हो जाएगी, बचा लो।”

तभी आकाश में अचानक बिजली चमकती है और बादल गरजने की आवाज के साथ सिंटू और डर जाता है।

सिंटू, “बबब…भूत भूत।”

पिंटू, “अरे! उतर, मुझ पर क्यों दिया मूत? सारा वर्दी खराब कर दी तुने। चल झोपड़ी के अंदर चल।”

सिंटू, “सॉरी भैया, वो बादल की आवाज और डर से मेरी सु-सु निकल गई। भैया, हनुमान चालीसा पास रखते हो क्या? भूत-पिशाच निकट नहीं आवै महाबीर जब नाम सुनावै।”

दोनों कॉन्स्टेबल चेक पोस्ट के पास बने झोपड़ी के अंदर चले जाते हैं और एक ही खटिया पर सोने की कोशिश करने लगते हैं।

लेकिन डर के मारे दोनों को नींद भी नहीं आ रही थी। तभी एक बार फिर बादल गरजता है और हवा से झोपड़ी के ऊपर रखा टीन नीचे गिर जाता है।

सिंटू ‘भूत भूत’ करते हुए खटिया से उठकर बाहर भाग जाता है।

पिंटू, “अरे सिंटू! किधर जा रहा है? रुक, रुक जा मेरे भाई।”

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सिंटू, “तुम भी जल्दी भागो वहाँ से, भूत है वहां। बबब…भूत, मैं जा रहा हूँ थाने में। तुम भी भागो वहाँ से।”

पिंटू, “पर मेरे भाई, गांव तो इधर है। उधर तो गन्ने का खेत है। उधर नहीं जाना, प्लीज़ लौट आओ। मेरी बात मानो, मेरी आवाज़ सुन रहे हो ना?”

लेकिन सिंटू डर के मारे पिंटू की एक बात नहीं सुनता और गन्ने के खेत की ओर भाग जाता है।

पिंटू थक हारकर थाने लौट आता है और इंस्पेक्टर टोंडे को सारी घटना बताता है।

सुबह में सभी लोग कॉन्स्टेबल सिंटू को खोजने गन्ने के खेत में जाते हैं, लेकिन सिंटू का कहीं अतापता नहीं मिलता।

जमींदार, “इंस्पेक्टर साहब, आपने बोला था कि हमने दो कॉन्स्टेबल सुरक्षा के लिए गन्ने के खेत के पास लगा दिए हैं,

लेकिन अब तो कॉन्स्टेबल भी गायब हो गया। अब क्या किया जाए?”

इंस्पेक्टर, “जमींदार साहब, मेरी बात मानो। अब हमें अघोरियों की मदद लेनी होगी। तब पता चलेगा कि इस गन्ने के खेत का राज़ क्या है?

पिछले 12 साल में मिलाकर 30 आदमी और पता नहीं कितने जानवर इस गन्ने के खेत में गायब हो चुके हैं?”

श्मशान से एक अघोरी को बुलाया जाता है। वो हड्डी को खोपड़ी में मारकर कुछ सुनने की कोशिश करता है और बताता है।

औघड़, “जय महाकाल! मेरी तिलिया मसान की खोपड़ी बता रहा है कि आज से करीब 12 साल पहले इस गन्ने के खेत में किसी पुजारी की हत्या करके गाढ़ दिया गया था।

उसी पुजारी की अतिरिक्त आत्मा अपनी ओर ध्यान खींचने के लिए ये सब कर रहा है।”

जमींदार, “हमारे गांव में आज तक किसी पुजारी की हत्या तो नहीं हुई है।

हाँ, 12 साल पहले हमारे गांव के मुख्य पुजारी मंदिर से भगवान का सोने का सारा गहना मुकुट लेकर भाग जरूर गया था।”

औघड़, “मूर्ख, वो भागा नहीं था। उसकी हत्या की गई थी। आज भी हत्यारा यहीं कहीं है।

जब तक उसे सजा नहीं मिल जाती, तब तक इसी तरह इस गांव के आदमी लापता होते जाएंगे।”

जमींदार, “तो अब हमें क्या करना चाहिए?”

औघड़, “गांव के सभी लोगों को यहाँ इकट्ठा करो। बीमार गर्भवती महिला और छोटे बच्चे छोड़कर कोई भी अपने घर के अंदर नहीं होना चाहिए।”

जमींदार के आदेश पर गांव के सभी लोग वहाँ पर इकट्ठा हो जाते हैं।

जमींदार, “महाराज, सभी लोग आ गए हैं।”

औघड़, “नहीं, अभी भी एक आदमी नहीं आया है। वह बीमार भी नहीं है।”

पिंटू, “सर, सेठ चितर पांडे सिर्फ नहीं आए हैं। उन्हें अभी किसी जरूरी मीटिंग में शहर निकलना है।”

जमींदार, “हमारे गांव के सुरक्षा से बड़ा और कोई मीटिंग नहीं हो सकता। दीवान जी और इंस्पेक्टर साहब, आप दोनों जाकर सेठ चितर पांडे को बुलाकर लाइए।”

सेठ चितर पांडे आने में बहुत आनाकानी करता है, लेकिन इंस्पेक्टर साहब और दीवान जी के दबाव के कारण उसे औघड़ के पास आना ही पड़ता है।

जमींदार, “आइए पांडे जी, आप मेरे पास बैठिए।”

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जमींदार, “हाँ महाराज, अब आप अपना काम शुरू कीजिए।”

औघड़, “अभी ये तेलिया मसान की खोपड़ी हवा में उड़ते हुए उस आदमी के पास जाएगी और वहां ठहर जाएगी।

5 मिनट उस आदमी को अपना गुनाह कबूल करने का अवसर मिलेगा और उसके बाद तो ये खोपड़ी मेरी भी नहीं सुनेगी। इससे निकलने वाली आग से अपराधी का चेहरा भस्म हो जाएगा।”

चितर पांडे, “जमींदार साहब, ये क्या ड्रामा कर रहा है? मुझे इस सब में विश्वास नहीं, मैं चलता हूँ। मंत्री जी के साथ मेरी बहुत इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है शहर में।”

जमींदार, “अरे! मैं फ़ोन कर दूंगा मंत्री जी को। वो मेरे जान पहचान के हैं। आप टेंशन मत लो। आधे घंटे की बात है।”

तभी अचानक औघड़ की खोपड़ी उड़ते हुए सीधा चितर पांडे के पास आकर रुक जाती है।

चितर पांडे, “औघड़, ये क्या मजाक है? हटाओ इसे यहाँ से।”

औघड़, “शायद आपने मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। आपके पास 3 मिनट बचे हैं गुनाह कबूल करने के लिए, क्योंकि 2 मिनट तो हमारी बात में ही बर्बाद हो गई।”

चितर पांडे, “हाँ, मैं ही पुजारी की हत्या का अपराधी हूँ। रोको इसे, मैं मरना नहीं चाहता। 12 साल पहले जब मैं मंदिर से सोने और गहनों और मुकुट की चोरी करके भाग रहा था,

तो पुजारी ने मुझे देख लिया था और मेरे पीछे पीछे इस गन्ने के खेत में पहुँच गया। जहाँ मैं गहनों को मिट्टी में छुपा रहा था।

मैंने उससे विनती की, लेकिन वह नहीं माना। तो मैंने उसे गला दबाकर मार दिया और वहीं उसकी कब्र खोद दी।

कुछ दिन बाद उन सोने के आभूषणों को बेचकर सेठ चितर पांडे बन गया।”

जमींदार, “इंस्पेक्टर साहब, देख क्या रहे हैं? इस दुष्ट को हिरासत में लीजिए।”

कॉन्स्टेबल पिंटू टोंडे का इशारा मिलते ही तुरंत सेठ चितर पांडे को पकड़कर हथकड़ी लगा देता है।

तभी गन्ने के खेत में एक बवंडर उठता है और गांव वालों के सामने अघोर की अग्नि में पंडित की शापित आत्मा आ जाती है।

पंडित, “मेरी आत्मा की तृप्ति इसी पापी की मौत से संभव है, लेकिन किसी कारणवश मैं उस गन्ने के खेत से बाहर नहीं आ पाता था।”

चितर पांडे, “मुझे माफ़ कर दो, पंडित जी। मुझे अपने किए का पछतावा है।”

पंडित, “तेरी वजह से मैंने इन बेकसूर गांव वालों को अपनी कैद में रखा हुआ है। तेरी मौत से इनकी मुक्ति संभव है।”

जमींदार, “पुजारी जी, कोई और विकल्प दीजिए। किसी की मौत से आप संतुष्ट कैसे हो सकते हैं?”

पंडित, “चुप करो तुम सब। मेरी मौत को रहस्य बताकर शानो शौकत की जिंदगी जी रहा है, लेकिन अब नहीं।”

उसके बाद पुजारी की आत्मा चितर पांडे को अपने तेज़ तर्रार दाँतों से पकड़कर हवा में लटका देती है और थोड़ी देर में ही उसको मार डालती है। इसके बाद आत्मा वहाँ से गायब हो जाती है।

पंडित, “मुक्ति… मुक्ति।”

एक के बाद एक करके 30 आदमी और कई मवेशी उड़ते हुए आकर औघड़ के पास गिरते हैं और सभी सुरक्षित अपने अपने परिजनों से मिल जाते हैं।

औघड़ के कहने पर उस गन्ने के खेत को जलाकर पुजारी जी की याद में एक बड़ा सा मंदिर बनवा दिया जाता है।


दोस्तो ये Bhutiya Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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