भूतिया दरवाजा | Bhutiya Darwaja | Bhutiya Kahani | Darawani Kahani | Moral Story | Bedtime Story

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया दरवाजा” यह एक Bhutiya Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Darawani Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


राजा भूदेव अंग देश के राजा थे। राजकुमारी सुरभि की माँ बचपन में ही गुजर गई थी। राजकुमारी का सोलहवां जन्मदिन मनाने की तैयारियां की जा रही थीं।

राजकुमारी खिड़की पर खड़ी सारी तैयारियां देख रही थी। अचानक उसने देखा कि सिपाही खतरनाक जानवरों को अंदर लेकर आ रहे हैं।

राजकुमारी, “महाराज, इन सभी जानवरों को महल के अंदर क्यों लाया जा रहा है?”

महाराज, “राजकुमारी, मनोरंजन के लिए। तुम्हारा जन्मदिन जो आ रहा है।”

कुछ सिपाही एक-दूसरे से बातें करते हैं।

पहला सिपाही, “अगर यही हाल रहा, तो राज्य के सारे जानवर समाप्त हो जाएंगे। हर हफ्ते 50 जानवर हवेली में भेजे जाते हैं।”

दूसरा सिपाही, “चुप रहो, दीवारों के भी कान होते हैं, समझे? कहीं तुम्हारी बात राजकुमारी के कान तक न पहुँच जाए?”

राजकुमारी सिपाहियों की बात सुनकर हैरान हो जाती है। वह जानवरों के पीछे-पीछे उनका रास्ता लगाने लगती है। तभी एक सिपाही राजकुमारी को देख लेता है।

सिपाही, “राजकुमारी जी, आप यहाँ? महाराज के सख्त निर्देश हैं कि आपको यहाँ न आने दिया जाए।”

अचानक तेज हवा का झोंका आता है और राजकुमारी की चुन्नी उड़ते हुए एक दरवाजे के पास गिरती है।

राजकुमारी, “अरे! यहाँ तो पिताजी स्वयं दरवाजे के पास खड़े हैं और जानवरों को अंदर भेज रहे हैं।”

पिता को देख वह अपना दुपट्टा उठाकर वहाँ से चली जाती है। पर राजकुमारी को सारी रात नींद नहीं आती।

राजकुमारी, “आखिर पिताजी मुझे वहाँ जाने के लिए क्यों मना कर रहे हैं? वो मुझे इस राज़ से दूर क्यों रखना चाहते हैं? आखिर इस दरवाजे का रहस्य है क्या?”

राजकुमारी ने अपनी खिड़की का दरवाजा बंद कर दिया और चुपचाप लेट गई। तभी महल की सबसे पुरानी और सबसे बूढ़ी दासी त्रिजटा उसके कमरे में आ गई।

त्रिजटा, “ओह मेरी प्यारी राजकुमारी! आज इतनी उदास क्यों लग रही हो? तुम्हें पता है, मैंने तुम्हारी माँ को भी पाल पोस कर बड़ा किया था? इसलिए मुझे अच्छी तरह से पता है कि तुम बड़ी परेशान हो।”

राजकुमारी, “दादी माँ, क्या आप मेरे प्रश्नों का उत्तर दे सकती हैं?”

त्रिजटा, “राजकुमारी, अगर तुम चाहो तो वो प्रश्न मुझसे पूछ सकती हो।”

राजकुमारी, “लेकिन अगर उन्होंने पिताजी को बता दिया तो मेरे लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। नहीं दादी माँ, मेरे मन में किसी प्रकार का कोई प्रश्न नहीं।”

अगले दिन सुबह राजकुमारी महाराज के पास जाती है। उसे उदास देखकर महाराज उससे पूछते हैं।

महाराज, “बेटी, बड़ी उदास लग रही हो। आज तो पूरे राज्य में तुम्हारा जन्मदिन मनाया जा रहा है और तुम खुश नहीं हो। लगता है, रात भर सो नहीं पाई।”

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राजकुमारी, “पिताजी, आखिर उस दरवाजे का क्या रहस्य है?”

महाराज, “बेटी, आज तुम्हारा सोलहवां जन्मदिन है। आज मैं खुद ही तुम्हें बताने वाला था। सुनो बेटी, ये लंबी कहानी है।

जब तुम्हारी माँ गर्भवती थी, तो हम दोनों जंगल घूमने गए। तभी हमें वहाँ अचानक एक बहुत खूबसूरत स्त्री दिखाई दी। वो बोली,

स्त्री, “महाराज, मैं चित्रांगदा हूँ। मुझे प्रथम दृष्टि में आपसे प्रेम हो गया है। मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ।'”

महाराज, “मैं विवाहित हूँ और अपनी पत्नी से प्रेम करता हूँ।”

चित्रांगदा, “महाराज, अगर आप अपना भला चाहते हैं, तो आपको मुझसे विवाह करना ही होगा। इस साधारण स्त्री के लिए आप मुझे नहीं ठुकरा सकते।”

महाराज, “तो तुम नहीं मानोगी? मुझे नहीं लगता कि तुमको स्त्री हो, क्योंकि स्त्री के खूबसूरत शरीर में काला मन नहीं हो सकता। अभी मैं तुम्हें तुम्हारे असली रूप में लाता हूँ।”

महाराज अपने पवित्र रूद्राक्ष की माला का एक रूद्राक्ष उस स्त्री के ऊपर फेंक देते हैं और ऐसा करते ही वह अपनी असली, बदसूरत और भयंकर रूप में आ जाती है।

चित्रांगदा, “सही पहचाना, मैं जादूगरनी असुर बाला हूँ। तू अपनी पत्नी के रूप पर बड़ा घमंड करता है ना? आज के बाद तुझे अपनी पत्नी के चेहरे से घृणा हो जाएगी।”

महाराज, “जादूगरनी ने तुम्हारी माँ को श्राप देते समय यह भी कहा कि जल्दी ही तुम्हें एक बेटी पैदा होगी। जब तुम्हारी बेटी तुम्हारी शक्ल देखेगी, तो वो भी तुम्हारे जैसी ही हो जाएगी।”

ऐसा कहने के बाद वो न जाने कहाँ गायब हो गई। तुम्हारे जन्म के कुछ समय के बाद, एक दिन अचानक ही महारानी का चेहरा बहुत भयंकर हो गया।

उसके चेहरे पर हर तरफ सांप लटकने लगे। आँखें अंगारों की तरह जलने लगीं।

शरीर एक सूखे पेड़ की तरह और आवाज सांप की फुफकार की तरह हो गई। यहाँ तक कि वो किसी भी जीवित पशु, पक्षी, इंसान को खाती है और प्यास लगने पर रक्त पीती है।”

राजकुमारी, “इसलिए आपने मुझे बचाने के लिए माँ को हवेली में रख दिया।”

महाराज, “बेटी, मैं तुम्हारी माता से बहुत प्यार करता हूँ। मैं उनसे दूर नहीं रह सकता था, इसलिए उनके लिए एक महल बनवा दिया, जिसका ये दरवाजा है।

इसमें तुम्हारी माँ के लिए ये जानवर भेजे जाते हैं, जिन्हें खाकर वो अपनी भूख मिटाती है।”

राजकुमारी अपनी माँ की यह कहानी सुनकर बड़ी उदास हो गई और बोली,

राजकुमारी, “पिताजी, माँ के श्राप का कोई तोड़ नहीं है?”

महाराज, “हां बेटी, तोड़ है। कुछ वर्ष पहले जब मैं जंगल में शिकार की तलाश में था, तो मुझे वो जादूगरनी फिर से मिली।

वो मरने वाली थी और शर्मिंदा थी। उसने मुझे तुम्हारी माँ को इस श्राप से हमेशा के लिए मुक्त होने का इलाज बताया।”

राजकुमारी, “तो आपने इतने दिन तक किसी को बताया क्यों नहीं?”

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महाराज, “बेटी, उसने कहा था कि ये इलाज मैं सिर्फ तब कर सकता हूँ, जब तुम 16 वर्ष की हो जाओ।

तब पहली अमावस पर इस श्राप को तोड़ा जा सकता है। अगर मैं तुम्हें पहले बताता, तो मैं भी श्रापित हो जाता।”

राजकुमारी, “आज तो मैं 16 वर्ष की हो गई हूं। कृपया मुझे बताओ कि मैं अपनी माँ को वापस कैसे और श्राप से आजाद करवा सकती हूँ।”

महाराज, “हां मेरी बच्ची, आज तुम्हारा सोलहवां जन्मदिन है और कल अमावस है। कल ही के दिन तुम्हें उस मायावी दरवाजे से अंदर जाना होगा।

वहाँ पर तुम्हारे साथ भयानक घटनाएँ होंगी, पर तुम किसी से भी मत डरना।”

राजकुमारी, “पिताजी महाराज, मैं माँ के साथ ही वापस आऊंगी, आप विश्वास रखें।”

महाराज, “राजकुमारी, सोच लो। तुम्हें केवल दो चीजों का ध्यान रखना है—अपनी नेकी और बुद्धि।

इनका साथ कभी नहीं छोड़ना। अगर इन दोनों का इस्तेमाल किया, तो तुम माँ तक जरूर पहुँच जाओगी।”

राजकुमारी, “क्या माँ मुझे पहचान लेंगी?”

महाराज, “राजकुमारी, जादूगरनी ने तुम्हारे लिए हर कदम पर चुनौतियाँ रखी हैं। और ये चुनौतियाँ तुम्हें ही पार करनी होंगी, तभी तुम्हें आगे का रास्ता मिलेगा।

आखिर में अपनी माँ के अंदर ममता जगाने में अगर तुम सफल रहीं, तभी महारानी वापस असली रूप में आएंगी।

बेटी, तुम्हें सबसे पहले सोन गिरी की पहाड़ियों में जाकर एक जादुई गुफा में रहने वाले एक तपस्वी बाबा से एक जादुई किताब लेनी होगी।

उस किताब में ही तुम्हें माँ को ठीक करने का रास्ता मिलेगा। मुझे सिर्फ इतना ही पता है। आगे क्या होगा, वो तुम्हें खुद पता करना होगा?

और ये काम तुम्हें अकेले ही करना होगा। अपना ध्यान रखना और खुद पर भरोसा रखना।

ये लो, ये रुद्राक्ष की माला तुम्हारी रक्षा करेगी। खुद पर भरोसा रखना, बेटी। इस दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो हम नहीं कर सकते।”

राजकुमारी, “आप चिंता मत करिए, पिताजी महाराज। मैं आपकी बातों का ध्यान रखूंगी। अपना आशीर्वाद दीजिए।”

इसके बाद, राजकुमारी सोनगिरी की पहाड़ियों में गुफा की तलाश में निकल जाती है। थोड़ी देर चलने के बाद उसे वह तालाब दिखाई देता है।

राजकुमारी, “काफी थक गई हूँ, थोड़ा बैठ जाती हूँ। वहाँ एक तालाब है, वहीं जाकर थोड़ा आराम कर लेती हूँ।”

इसके बाद, राजकुमारी तालाब के पास जाकर बैठ जाती है। तभी एक हिरण थोड़ी दूर पर घायल पड़ा होता है, जिसके पास तालाब से मगरमच्छ धीरे-धीरे उसे खाने के लिए आगे बढ़ रहा था।

राजकुमारी तुरंत उस हिरण के पास भागकर जाती है और उस मगरमच्छ के सामने जाकर खड़ी हो जाती है।

राजकुमारी, “तुम चिंता मत करो, मेरे होते हुए ये मगरमच्छ तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।”

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इसके बाद राजकुमारी उस मगरमच्छ को मार देती है। तभी मगरमच्छ एक सुंदर कन्या में बदल जाता है।

राजकुमारी, “आप कौन हैं?”

कन्या, “मैं जल की देवी हूँ। एक बार एक तांत्रिक ने मुझे इस मगरमच्छ के रूप में कैद कर दिया ताकि वह इस तालाब के जादुई जल के साथ जो चाहे कर सके।

यह कोई साधारण वन नहीं है। इस वन को देवराज इंद्र ने यहाँ के राजा को तोहफे में दिया था। इस वन की हर चीज़ जादुई है।

अब वह तांत्रिक अपनी मनमानी नहीं कर पाएगा। तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद राजकुमारी। बताओ, मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकती हूँ?”

राजकुमारी, “इस वन में एक गुफा है, जहाँ तपस्वी बैठते हैं। उनसे मुझे उनकी जादुई किताब लेनी है।”

देवी, “वह किताब तो लोगों को उनकी मंजिल दिखाती है। इस उम्र में भला तुम्हें तुम्हारी कौन-सी मंजिल जाननी है?”

राजकुमारी, “जलदेवी, मुझे अपनी माँ को बचाना है। एक जादू के श्राप से वह एक राक्षस में बदल गई हैं। उनकी मुक्ति के लिए मुझे उस जादुई किताब तक पहुंचना ही होगा।”

देवी, “तुम्हारी वजह से इस कैद से मैं आज़ाद हो पाई हूँ, इसलिए मैं तुम्हें गुफा तक पहुंचाऊंगी। उस गुफा का रास्ता इसी तालाब से होकर जाता है।

वहाँ तक सही-सलामत पहुंचने में यह जलरथ तुम्हारी सहायता करेगा। मैं तुम्हारी कामयाबी के लिए प्रार्थना करूँगी। जाओ, तुम्हारी यात्रा सफल हो।”

इसके बाद राजकुमारी उस जलरथ में बैठकर तालाब के अंदर चली जाती है। थोड़ी देर बाद वह गुफा तक पहुँच जाती है।

जलरथ से उतरकर राजकुमारी गुफा के अंदर चली जाती है। वहाँ उसे एक छोटी सी मछली के पंखों में एक काँटा फँसा हुआ दिखता है। राजकुमारी जैसे ही उसके पंखों से वह काँटा निकालती है…

मछली, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजकुमारी! इस काँटे की वजह से मैं अपने अपनों से पीछे छूट गई थी, लेकिन अब मैं उनके पास वापस जा सकूंगी।

धन्यवाद राजकुमारी! वैसे आप यहाँ क्या कर रही हैं? इस जगह तो इंसानों को आए सालों बीत गए।”

राजकुमारी, “मुझे यहाँ जो तपस्वी रहते हैं ना, उनसे मिलना है। उनके पास जो जादुई किताबें हैं, वो मुझे चाहिए।”

मछली, “जादुई किताब? वह भला क्यों चाहिए तुम्हें? ओह! तो तुम्हें अपनी माँ को बचाने के लिए यह किताब चाहिए?”

तभी वह छोटी मछली एक तपस्वी में बदल जाती है।

तपस्वी, “मैं तुमसे खुश हूआ, बेटी। तुम इस किताब से कोई भी एक सवाल पूछ सकती हो। उसके बाद यह किताब अपने आप गायब हो जाएगी।”

राजकुमारी, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बाबा! आखिरकार मैंने अपनी पहली मंजिल पार कर ही ली है।

जादुई किताब, मुझे बता, मैं अपनी माँ को उस जादू के श्राप से कैसे आज़ाद कर सकती हूँ?”

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किताब, “इस श्राप से मुक्ति तभी मिलेगी जब कोई जंगल की आत्मा की मणि को महारानी के माथे के बीचोबीच लगा दे। इससे महारानी अपने असली रूप में आ जाएगी।”

इसके बाद राजकुमारी उसी जलरथ में बैठकर वापस आ जाती है और सोचने लगती है,

राजकुमारी, “अब मैं वह मणि तक कैसे पहुँचूँ?”

राजकुमारी को वही हिरण दिखता है जिनके प्राणों की रक्षा उसने उस मगरमच्छ से की थी।

हिरण, “आप इतनी उदास क्यों हैं?”

राजकुमारी, ” तुम भी बोल सकती हो?”

हिरण, “आप भूल गईं, यह वन जादुई है? यहाँ सब बोल सकते हैं। इसके कण-कण में जादू है। हर जगह जादू है। आप इतनी परेशान क्यों हैं, राजकुमारी?”

राजकुमारी, “मुझे अपनी माँ को बचाना है, इसलिए मुझे वन देवी की आत्मा से निकली मणि की ज़रूरत है।

पर समझ नहीं आ रहा कि वहाँ तक कैसे पहुँचूँ? मैंने तो कभी माँ को देखा तक नहीं है। न जाने कैसी होंगी वे उस हालत में? काश! मैं अपनी माँ को बचा पाऊँ।”

हिरण, “राजकुमारी, भाग जाइए, भाग जाइए यहाँ से वरना यह दानव मेरे साथ-साथ आपको भी मार के खा जाएगा। जाइए, राजकुमारी, आप चली जाइए यहाँ से।”

राजकुमारी, “मैं तुम्हें छोड़ के नहीं जा सकती। तुम यहाँ से जाओ, मैं इसका ध्यान भटकाती हूँ। उतने में तुम भाग जाना, ठीक है?”

हिरण, “नहीं राजकुमारी, यह हमारी नियति है। हमारे जन्म लेते ही मौत हमारा पीछा करने लगती है।

लेकिन आपको अपनी माँ को बचाना है, आप जाओ यहाँ से। मैं इसका ध्यान भटकाता हूँ।”

राजकुमारी, “मैं एक क्षत्रिय हूँ। इस तरह पीठ दिखा के भागना हमारे खून में नहीं है। इस दानव का मैं वह हाल करूँगी कि आज के बाद किसी को नहीं खा पाएगा।”

इसके बाद राजकुमारी उस दानव से लड़ने लगती है। काफी देर तक लड़ने के बाद जैसे ही राजकुमारी अपनी तलवार से उसे मारने वाली होती है, वह दोनों के आँखों में आँसू देख लेती है।

और थोड़ी देर में एक छोटा सा दानव देख लेती है, जो उसी दानव का पुत्र होता है। यह देख राजकुमारी रुक जाती है और उन्हें जाने देती है।

राजकुमारी, “आज के बाद इस तरह का नुकसान किसी को नहीं पहुँचाना। जाओ, वहाँ तुम्हारा बच्चा तुम्हारी राह देख रहा है।”

हिरण, “आपने उसे क्यों जाने दिया, राजकुमारी?”

राजकुमारी, “मैं एक बच्चे को उसकी माँ से अलग नहीं कर सकती। आज जब मैं खुद तरस रही हूँ, तो भला यही दर्द मैं किसी और को कैसे सहने दे सकती हूँ?”

हिरण, “आप सच में बहुत दयालु हैं। आपसे मिलना मेरी खुशकिस्मती है, राजकुमारी।”

राजकुमारी, “तुम भी कैसी बातें कर रही हो? चलो, अपना ध्यान रखना और हाँ, ध्यान से देख कर बाहर निकलना। समझी? मैं चलती हूँ। अभी लंबा सफर तय करना है।”

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हिरण, “वह तो ठीक है, लेकिन अगर तुम चली गईं तो यह मणि कौन ले जाएगा?”

राजकुमारी, “मतलब?”

तभी हिरण वन देवी में बदल जाता है।

देवी, “मैं तुम्हारे आने का उद्देश्य पहले से ही जानती थी, लेकिन मैं देखना चाहती थी कि तुम मेरी आत्ममणि लेने के काबिल हो भी या नहीं?

यह सब एक छलावा था, तो मैं परखने के लिए। मुझे पहली बार अपनी आत्ममणि देने में खुशी हो रही है।

तुम अपने उद्देश्य में सफल हो। मेरी यही दुआ है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ तुमसे। लो, ले जाओ इसे।”

वन देवी अपनी शक्तियों से अपनी आत्ममणि को राजकुमारी को दे देती है।

राजकुमारी, “आपका यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगी, वन देवी।”

देवी, “जाओ पुत्री, काम खत्म होने के बाद पुनः मेरे पास लौट आना। अब जाओ, देर मत करो।”

इसके बाद राजकुमारी अपने महल वापस आ जाती है।

राजा, “तुम आ गईं, बेटी?”

राजकुमारी, “आपके आशीर्वाद से मैं माँ को ठीक करने का उपाय भी ले आई हूँ। अब बस महल के उस कमरे में जाकर माँ को बचाना है।”

राजा, “हाँ बेटी, भगवान तुम्हारी मदद करेंगे।”

इसके बाद राजकुमारी उस कमरे में चली जाती है। जैसे ही राजकुमारी हवेली के अंदर पहुँचती है, चारों तरफ भयंकर जानवर और मांस की बदबू फैली हुई थी।

राजकुमारी जैसे ही आखिरी कमरे में पहुंची, तभी उन्हें एक बड़ी भयानक औरत नजर आई, जिसे देखते ही राजकुमारी डर से चीख पड़ी।

राजकुमारी, “यह औरत तो मेरी माँ नहीं हो सकती। मैंने इतना भयानक चेहरा कभी नहीं देखा।”

डरी हुई राजकुमारी ने खुद को संभाला। वह औरत राजकुमारी को खाने के लिए आगे बढ़ी और मुँह से सांप की फुफकार निकालने लगी।

राजकुमारी, “माँ, आप मुझे खाना चाहती हैं? मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी अगर मैं आपका भोजन बन पाऊं। आपका अंश आप में ही समाहित हो जाए।”

महारानी, “मेरा अंश? तुझ जैसी खूबसूरत राजकुमारी मेरा अंश नहीं हो सकती।”

राजकुमारी, “नहीं माँ पहचानिए, मैं आपकी ही बेटी हूँ।”

महारानी, “बेटी… मेरी बेटी? हाथ में तलवार लेकर मुझे मारने आई है।”

राजकुमारी, “माँ, एक बार मुझे गले से लगा लीजिए। आपको सब याद आ जाएगा।”

महारानी, “नहीं, मुझसे दूर रह, तुझे डर नहीं लगता?”

औरत ने राजकुमारी के बाल पकड़कर उसे दूर फेंक दिया। राजकुमारी के शरीर से खून बहने लगा।

महारानी, “चली जा, हट जा यहाँ से वरना तुझे चबा कर खा जाऊँगी। तुझे डर नहीं लगता? ये देख, मेरे दांत..।”

राजकुमारी, “माँ, कभी माँ के पास आने में भी किसी को डर लगा है? बचपन से माँ के प्यार को तरस रही हूँ, मुझे एक बार गले से लगा लीजिए, माँ।”

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राजकुमारी दौड़कर उस भयानक औरत को गले लगा लेती है। औरत ने अपने दांत राजकुमारी के शरीर में गड़ा दिए और राजकुमारी दर्द से चिल्ला उठी,

राजकुमारी, “माँ!”

लेकिन तभी राजकुमारी ने उस मणि को महारानी के माथे के बीचोंबीच लगा दिया। मणि के माथे में समाते ही महारानी अपने असली रूप में लौट आईं।

ऐसा करते ही महारानी के दिल में ममता भर गई और आँखों से आँसू निकलने लगे।

महारानी, “मेरी बच्ची, मुझे सब याद आ गया। तूने मुझे इंसान बना दिया, मैं श्राप से मुक्त हो गई।”

ऐसा कहते ही वह औरत महारानी के रूप में परिवर्तित हो गई। जादूगरनी का श्राप सदा के लिए खत्म हो गया। राजकुमारी अपनी माँ के गले लग गई।

राजकुमारी, “चलो माँ, घर चलें। पिताजी महाराज आपकी राह देख रहे हैं।”

दोनों के हवेली से बाहर आते ही चारों तरफ खुशियाँ मनाई जाने लगीं। पूरे राज्य में उपहार बाँटे गए।

महाराज, “आज मेरा परिवार फिर पूरा हो गया। मेरी महारानी तुम्हारे साहस और निष्ठा के कारण वापस आ सकी है।

मुझे तुम पर गर्व है, बेटी। आज से तुम इस राज्य की नई उत्तराधिकारी बनोगी।

हम हमेशा सोचते थे कि हमारे बाद यह राज्य कौन संभालेगा? लेकिन जिसकी तुम जैसी निडर बेटी हो, उसे किसी बेटे की क्या जरूरत?”

राजकुमारी, “पिताजी, आपने मुझे इस योग्य समझा, इसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ। मैं आपकी सारी उम्मीदों पर खरी उतरूँगी, देख लीजिएगा।”

राजकुमारी के साहस के कारण हवेली के खूबसूरत दरवाजे को हमेशा के लिए खोल दिया गया, और वह अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी महल में रहने लगी।


ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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