शापित खिलौना | Shapit Khilona | Horror Kahani | Darawani Kahani | Scary Story | Horror Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” शापित खिलौना ” यह एक Horror Story है। अगर आपको Hindi Horror Stories, Horrible Stories या Darawani Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


काली साड़ी पहने एक महिला के सामने ढेर सारा तंत्र मंत्र का सामान रखा हुआ था।

अपने हाथ में खोपड़ी को लिए वो कुछ मंत्र को बुदबुदा रही थी। कुछ देर के बाद वो अपने बालों को खोलकर अपने सर को गोल गोल घुमाने लगी।

घर में लगे हुए बल्ब कभी जल रहे थे, तो कभी बूझ रहे थे। तभी अंधेरे में आँख मिचोली करती हुई शेख परछाई दीवार टकराई।

महिला, “तो तुम यहाँ आ ही गए। मैंने तुम्हें यहाँ आने पर मजबूर कर दिया।”

परछाई, “तू चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, यदि मेरी मर्ज़ी नहीं होती तो मैं यहाँ पर नहीं आता।

मगर मैं तुझे चेतावनी दे रहा हूँ, आइंदा अगर मुझे परेशान करने की गलती की, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”

महिला, “तुझे कौन परेशान करना चाहता है? तुझे तो कैद मिलेगी ताकि तू किसी और को परेशान न कर सके।”

कहते हुए वो महिला और तेजी से मंत्रोच्चारण शुरू करने लगती है। मगर वो परछाई ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी है और बोली, “हा हा हा… तू मुझे कैद नहीं कर सकती।”

कहते हुए वो वहाँ से गायब हो जाती है। महिला के सामने रखा हुआ नर मुंड और हवन की अग्नि बुझ चुकी थी। गुरु माँ की आँखें गुस्से में लाल हो गईं।

गुरु माँ, “असंभव… इतने वर्षों की साधना में पहली बार ऐसा हुआ कि मैं विफल हो गई, असंभव।”

गुरु माँ जितनी परेशान थी, उससे ज्यादा दुखी उस घर के लोग थे, जो बड़ी शिद्दत से चाहते थे कि वो अपनी साधना में सफल हो जाए और उन्हें इस बला से छुटकारा मिले।

उज्जैन शहर बाबा महाकाल की नगरी, वहाँ पर मौजूद शमशान को भी जागृत शमशान माना जाता है।

कहा जाता है कि जिसे काशी में मोक्ष प्राप्त होता है, उसे महाकाल की नगरी में भी मोक्ष मिलता है।

वहीं महाकाल मंदिर पर दर्शन करने के बाद एक परिवार मंदिर से बाहर निकल रहा था, तब घर की छोटी बच्ची को एक तांत्रिक ने अपने पास इशारे से बुलाया

और वो बच्ची सम्मोहित होकर अपनी माँ का हाथ छुड़ाकर उसके पास जाकर खड़ी हो गई।

तांत्रिक, “बेटा, तुझे खिलौना चाहिए?”

बच्ची, “हां, मुझे चाहिए।”

तांत्रिक, “ये ले, मगर अपने घरवालों को इसके बारे में मत बताना।”

कहते हुए तांत्रिक ने उसके हाथ में एक गुड़िया पकड़ा दी। उस बच्ची ने उसे चुपचाप अपने बैग में रखा

और अपनी माँ के पास आकर खड़ी हो गई। मगर जैसे ही उसने उस तांत्रिक की ओर मुड़कर देखा, वहाँ पर कोई नहीं था।

घर आकर उस बच्ची ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और उस गुड़िया के साथ खेलने लगी।

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देखते ही देखते उस गुड़िया में से एक परछाई निकली और उसने लड़के का रूप ले लिया।

बच्ची, “कौन हो तुम और मेरे कमरे में कैसे आए?”

लड़का, “मैं बरसों से इस गुड़िया के अंदर था। बहुत दिन से अपने दोस्त से मिलने के लिए छटपटा रहा था।

तुम भी यहाँ अकेली ही रहती हो, है ना? कोई तुम्हारे साथ नहीं खेलता क्या? मगर मैं अब तुम्हारे साथ खेलूँगा। बोलो, मुझसे दोस्ती करोगी?”

वो छोटी बच्ची उस लड़के की बात सुनकर बहुत खुश हो जाती है और उसके साथ खेलने लगती है। वो घंटों अकेले कमरे में खेलती रहती और उसकी माँ भी खुश थी,

क्योंकि वो अब अकेलापन की वजह से उन्हें बार बार परेशान नहीं करती थी।

माँ, “बेटा, खाना खाने का समय हो गया है। कब तक अकेले खेलती रहोगी? यहाँ पर आओ।”

बच्ची, “नहीं माँ, मुझे और खेलने दो। मुझे परेशान मत करो।”

बच्ची की बात सुनकर माँ थोड़ी सी परेशान हो जाती है और उसके कमरे की ओर जाने लगती है। वहाँ पर उसे दो लोगों की आवाज़ आ रही थी।

मां, “घर पे तो कोई भी नहीं आया और गुड़िया तो अकेली खेल रही थी, उसके कमरे में किसकी आवाज़ आ रही है?”

वो दबे पांव उस कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ कुछ भी नहीं था और टीवी चल रहा था। मगर अपने दोस्त के अचानक से चले जाने से वो बच्ची नाराज़ हो गई।

बच्ची, “मम्मी, मैंने आपको मना किया था ना कि मेरे कमरे में मत आना? फिर आप क्यों आईं? जाइए, मुझे आपसे बात नहीं करनी है और नहीं खाना खाना है।”

कहते हुए उस बच्ची का चेहरा पूरा सफेद हो गया और आँखें लाल। उसने इतनी आसानी से अपनी मम्मी को कमरे से बाहर कर दिया

मानो उसके अंदर उनसे भी ज्यादा ताकत हो। उसकी माँ हैरान हो गई। उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे?

वो अपने पति के आने का इंतजार करने लगी, मगर ऐसा लग रहा था कि आज उसका इंतजार कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया। रात के 1 बज रहे थे, मगर वो अभी तक नहीं आए।

शिल्पी, “मोहन, कहाँ हो तुम? आज मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत है और तुम अभी तक नहीं आए।”

वो बार बार मोहन को फ़ोन लगा रही थी, मगर फ़ोन नॉट रीचेबल था। उसने ऑफिस से फ़ोन किया तो वहाँ से पता चला कि मोहन ऑफिस से बहुत देर पहले ही निकल चुका है।

शिल्पी, “एक तरफ गुड़िया, दूसरी तरफ मोहन, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। एक बार और उसके कमरे में जाकर देखती हूँ।”

जैसे ही शिल्पी गुड़िया के कमरे की तरफ बढ़ने लगी, घर की दीवारें हिल रहीं थीं। दीवारों में दरारें आ गईं और उसमें से खून बहने लगा।

ये देखकर वो डर के कारण एक ही जगह खड़ी रह गई, मगर फिर उसे अपनी बेटी की चिंता हो रही थी। इसलिए वो धीरे धीरे उसके कमरे की ओर बढ़ने लगी।

शिल्पी, “गुड़िया, कहाँ हो तुम बेटा? मेरे सामने आओ, गुड़िया।”

बच्ची, “मम्मी… मम्मी, मैं यहाँ हूँ, देखो मुझे।”

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शिल्पी उस आवाज की तरफ देखती है तो डर के मारे उसकी साँसे अटक जाती हैं। उसकी बेटी छत की रेलिंग से उल्टी लटकी हुई थी। उसका चेहरा पूरे बालों से ढका हुआ था।

तभी दरवाजे की घंटी बजी तो वो भागकर दरवाजे की तरफ पहुँची। सामने मोहन खड़े थे।

शिल्पी, “मोहन, कहां थे तुम? आज तुम्हें आने में बहुत देर हो गई। और तो और तुम्हारा फ़ोन भी नहीं लग रहा था।”

मोहन, “मुझे घर में तो आने दो, सब बताता हूँ। तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?”

मोहन को अपने सामने खड़ा देख शिल्पी का सब्र जबाब दे गया। उसकी आँखों में आँसू थे।

उसने एक ही बार में शुरू से लेकर अंत तक की सारी कहानी सुना दी।

मोहन, “ये क्या बकवास कर रही हो? हमारी गुड़िया के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता।”

कहते हुए वो भागकर गुड़िया के कमरे में पहुँचा, तो गुड़िया दीवार की तरफ मुँह घुमाए बैठी थी।

धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ते हुए जैसे ही मोहन ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसने अपनी गर्दन पूरी घुमा दी। उसका चेहरा खून से सना हुआ था।

उसके हाथ में उनका पालतू तोता था, जिसे वो कच्चा चबा रही थी।

बच्ची, “पापा… पापा, आ गए।”

कहते हुए वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। मोहन डरकर शिल्पी के साथ उस कमरे से बाहर भाग गया। उन्होंने उस कमरे को बाहर से लॉक कर दिया और हॉल में आकर बैठ गए।

मोहन, “शिल्पी, अभी जो कुछ भी हमने देखा, वो सच था या सपना? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा।”

शिल्पी, “मुझे भी यकीन नहीं हो रहा है कि हमारी बेटी के साथ ये सब क्या हो रहा है? हमें जल्दी किसी को ढूंढना होगा, जो हमें इस समस्या से छुटकारा दिला सके।”

मोहन, “अब तो गुरु माँ ही हमें इस समस्या से बाहर निकाल सकती हैं, हाँ। कल सुबह ही मैं गुरु माँ को फ़ोन लगा दूँगा। बस आज की रात अच्छी तरह से बीत जाए।”

जैसे तैसे रात गुजरकर सुबह होती है। मोहन सबसे पहले गुरु माँ को फ़ोन लगाता है। गुरु माँ आकर सारी हालत देखकर पूजा की तैयारी करती हैं, मगर वो पूजा विफल हो जाती है।

मोहन, “गुरु माँ, अब हम लोग क्या करेंगे?”

गुरु मां के चेहरे पर भी चिंता की लकीर आ गई। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करना है?

उसी समय वो गुड़िया भी उड़ते हुए वहाँ पर आ गई। गुड़िया कभी हँसती, तो कभी गहरी सोच में बैठी रहती। तभी उस गुड़िया में से एक परछाई बाहर आई और बोली।

परछाई, “मैंने कहा था ना कि तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। मगर तूने मेरी बात नहीं मानी। अब सुन—यहाँ से चली जा।

इन दोनों को भी ले जा। मैं अपने दोस्त के साथ यहाँ पर बहुत खुश हूँ। चले जाओ यहाँ से, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”

कहते हुए उसने अपना हाथ ऊपर किया, तो मोहन और शिल्पी दोनों हवा में लटके हुए थे। उनकी बेटी के मुँह से अजीब-सी आवाज़ें निकल रही थीं।

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गुरु मां, “मुझे समझ में आ गया कि तू इतनी आसानी से यहाँ से नहीं जाएगी।”

परछाई, “मैं पिछले 100 सालों से भटक रहा हूँ। जहाँ भी जाता हूँ, लोगों को जिंदा खा जाता हूँ। मगर इस बच्ची ने मेरे साथ खेलना मंजूर किया।

इसीलिए अभी तक ये जिंदा है। और यदि तुम चाहते हो कि ये जिंदा रहे, तो चले जाओ यहाँ से।”

उसकी बातें सुनकर मोहन और शिल्पी दोनों की आँखों से आँसू निकल आए।

मोहन, “गुरु माँ, कुछ कीजिये।”

गुरु माँ ने तुरंत उस बच्ची के कुछ बालों को काटा और जो खिलौना उसके हाथ में था, उसके शरीर पर बाँध दिया।

फिर कुछ मंत्रों का जाप करते हुए उस गुड़िया के ऊपर नींबू का रस और सिंदूर डाला। फिर उसे जलाने लगी।

परछाई, “उसे जलाओ मत, वो मेरा ठिकाना है।”

कहते हुए उसने गुस्से में अपना हाथ नीचे किया, तो हवा में लटके हुए मोहन और शिल्पी दोनों नीचे गिर गए।

परछाई पूरे घर के सामान को पटक रही थी। जैसे-जैसे वो जल रही थी, उस बच्ची के शरीर में भी कष्ट हो रहा था। वो भी ज़ोर-ज़ोर से चीख रही थी।

तभी वो परछाई काले धुंए में बदल गई। गुरु माँ ने उस धुएँ को एक मटके के अंदर भरा और फिर उसे एक लाल कपड़े से बाँध दिया।

गुरु माँ, “बरसों से भटकती इस आत्मा की मुक्ति के लिए ईश्वर ने हम लोगों को जरिया बनाया।

मुश्किलों से मैंने उसे मटकी के अंदर कैद कर पाई हूँ। हमें तुरंत बनारस जाकर इसकी मुक्ति के लिए विशेष पूजा करनी होगी।”

गुरु माँ के कहने पर मोहन, शिल्पी और उनकी बिटिया तीनों उस मटकी को लेकर बनारस पहुँच गए।

वहाँ पर उन्होंने बकायदा उस मटकी का अंतिम संस्कार किया और फिर श्राद्ध कर्म करने के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर उसकी मुक्ति की प्रार्थना की।

गुरु माँ, “किसी अपने का पिंडदान और मुक्ति की प्रार्थना करने से जो पुण्य मिलता है, उससे कहीं ज्यादा किसी अनजान की मुक्ति की प्रार्थना और पिंडदान करने का पुण्य मिलता है।

ईश्वर तुम लोगों को हमेशा सुरक्षित रखे। तुम सबका कल्याण हो, कल्याण हो, कल्याण हो।”


दोस्तो ये Horror Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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