शापित कुआं | SHAPIT KUAN | Hindi Kahani | Moral Stories | Gaon Ki Kahani | Bedtime Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” शापित कुआं ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahaniyan या Gaon Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


पंकज घर की बालकनी में पेपर पढ रहा होता है, तभी फ़ोन कॉल की आवाज सुनकर।

पंकज, “हेमा, देखना ज़रा इतनी सुबह सुबह किसका फ़ोन आ रहा है?”

हेमा, “क्या…?”

पंकज, “अरे! क्या हुआ? किसका फ़ोन था?”

हेमा , “अरे! वो… वो माँ जी।”

पंकज, “क्या हुआ माँ को?”

हेमा, “रेखा जीजी का फ़ोन था, वो कह रही थी कि माँ जी की तबियत बहुत ही ज्यादा खराब है। हमें आज ही गांव के लिए निकलना होगा।”

पंकज , “हाँ तुम सामान पैक करो, हम अभी गांव के लिए निकलेंगे।”

फिर पंकज का पूरा परिवार गांव के लिए निकल जाते हैं।

बेटा, “हम कहाँ जा रहे हैं, मम्मी?”

हेमा, “बेटा हम रामटेक के लिए निकल रहे हैं। तुम्हारी दादी की तबियत बहुत ही ज्यादा खराब हो गई है।”

बेटा, “और कितनी दूर है गांव, पापा?”

पंकज, “बस थोड़ी देर में पहुँच जाएंगे, बेटा।”

गांव की सीमा पर पहुंचते ही तेज हवाएं चलने लगती हैं और बादल काले हो जाते हैं।

हेमा, “अरे! अचानक इस मौसम को क्या हुआ?”

बेटा, “मम्मी, वो देखो… वो लड़की ऐसे मौसम में भी बाहर घूम रही है।”

हेमा, “कहाँ है? कोई भी तो नहीं है वहाँ। यहाँ आए तो नहीं, और तुम्हारी बदमाशियां शुरू हो गई।”

बेटा, “अरे! नहीं नहीं, मैं सच कह रहा हूँ। देखो देखो उस कुंए के पास, वहीं तो खड़ी है वो।”

हेमा, “कहाँ है?”

बेटा, “वो देखो वहाँ, अरे! वो लड़की कहाँ गई?”

तभी उनकी गाडी बंद हो जाती है। वो सब गाडी से नीचे उतर जाते हैं।

बेटा, “मम्मी, वो यहाँ खड़ी थी, बिल्कुल यहीं खड़ी थी।”

हेमा, “अरे! हाँ बाबा, मान लिया तुम बिल्कुल बदमाशी नहीं करते। तुम तो बहुत समझदार बच्चे हो, बस।”

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और उसका हाथ पकड़कर ले जाती है, तभी उसे एक अजीब सा अहसास होता है।

पंकज, “हेमा… पिंकू, चलो जल्दी गाड़ी चालू हो गई है।”

कुछ ही देर में वो घर पहुँच जाते हैं।

पंकज की मां, “अरे! ठीक से लगाओ फूल, मेरा बेटा आ रहा है।”

पंकज, “अरे माँ! तुम तो बिल्कुल ठीक हो, हमें तो फ़ोन आया था कि तुम बीमार हो।”

मां, “अरे! बीमार हो मेरे दुश्मन, मैं तो बिल्कुल हट्टी कट्टी हूँ। हाय! कितने दिन हो गए तुझे देखे? कितना दुबला हो गया है मेरा बेटा?”

पंकज, “माँ, ये पिंकू है तुम्हारा पोता।”

मां, “अरे वाह! बिल्कुल तुझ पर ही गया है। तू भी बचपन में ऐसा ही था। अरे! पर तुम्हे आने में देर हो गई।”

पंकज, “अरे! हाँ, वो गांव के बाहर हमारी गाड़ी बंद हो गई थी तो बस उसी में थोड़ा वक्त लग गया।”

तभी पंकज की बहन रेखा आ जाती है।

रेखा, “अरे भैया! आप आ गए?”

हेमा, “अरे जीजी! वो हमें फ़ोन आया था कि माँ की तबियत खराब है।”

रेखा, “भाभी, आप ये चाहती हैं कि माँ की तबियत खराब हो जाए?”

हेमा, “अरे! नहीं नहीं जीजी, मेरा वो मतलब नहीं था।”

रेखा, “अरे! ये डब्बू है ना? काफी बड़ा हो गया है। अरे! चलो चलो, खाना तैयार है।”

मां, “हाँ बेटा आज मैंने तेरे लिए खास देसी घी के लड्डू बनाए हैं। कितना दुबला हो गया है?

मां, “अरे बहू! कुछ खाने को नहीं देती क्या तुम मेरे बेटे को? ऐसे ही घास फूस खिलाती होगी। इसीलिए माचिस की गाड़ी जैसा हो गया है।”

पंकज, “अरे माँ! वो सब तो ठीक है, पर तुम मुझे ये बताओ कि हमें ऐसे फ़ोन क्यों किया कि तुम्हारी तबियत खराब हो गई है?”

मां, “अरे बेटा! तुझे देखे हुए बहुत दिन हो गए थे और तू ऐसे तो आता नहीं। इसलिए मैंने तबियत खराब होने के बहाने से तुझे बुला लिया।”

डब्बू, “अरे मामा! चलो चलो अब खाना खा लेते हैं। मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है।”

अगली सुबह पिंकू और डब्बू दोनों गांव घूमने जाते हैं। वहाँ पिंकू ने फिर उसी लड़की को देखा, जिसे उसने गांव आते वक्त देखा था। पिंकू को देख वो लड़की भागने लगती है।

पिंकू, “अरे! रुको रुको, तुम मुझे देखकर ऐसे क्यों भाग रही हो?”

डब्बू, “अरे पिंकू! कहाँ भाग रहे हो? मैं यहाँ से आगे नहीं जाऊंगा और तुम भी मत जाओ। वहाँ जाने से सब मना करते हैं। उधर मत जाओ।”

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पिंकू डब्बू की आवाज को अनसुना करते हुए उस लड़की के। पीछे भागने लगता है। थोड़ी ही दूर जाकर वो लड़की रुक जाती है।

पिंकू, “अरे! तुम मुझे देखकर भाग क्यों रही हो? मैं कोई भूत हूँ, जो तुम्हें खा जाऊंगा।”

फिर से काले बादल छा जाते हैं और तेज हवाएं चलने लगती हैं। पिंकू ऊपर देखता है और जब फिर से वो नीचे देखता है,

पिंकू, “अरे! वो लड़की फिर कहाँ गई? अभी तो यहीं थी।”

वो थोड़ा डर जाता है। पिंकू फिर वहाँ से लौट जाता है।

पिंकू, “मम्मी… मम्मी, आज फिर मुझे वो लड़की मिली थी।”

हेमा, “कौन लड़की और क्या क्या बोलता रहता है तू आजकल?”

पिंकू , “अरे मम्मी! वही लड़की जो मुझे गांव में आते वक्त कुंए के पास दिखी थी।”

रेखा, “पिंकू… पिंकू, अरे ओ पिंकू! मैं क्या सुन रही हूँ? तू ऐसे अकेले उस कुंए की तरफ क्यों भाग रहा था?”

पिंकू, “अरे! मैं अकेले नहीं भाग रहा था। मैं उस लड़की के पीछे भाग रहा था, जो मुझे देखकर भाग रही थी।”

डब्बू, “नहीं नहीं माँ, ये अकेले भाग रहा था। वहाँ कोई लड़की नहीं थी।”

पिंकू, “डब्बू, तुम क्यों झूठ बोल रहे हो?”

पिंकू, “माँ, मैं सच कह रहा हूँ, मैं उस लड़की के पीछे ही भाग रहा था।”

रेखा, “ए पिंकू! मैं तुझे बोल दे रही हूँ, तू आगे से अकेले गांव में नहीं भटकेगा और खासकर उस कुएं की तरफ बिल्कुल भी नहीं जाएगा। अब चल जा अपने कमरे में।”

पंकज, “अरे रेखा! तुम उसे इतनी सी बात के लिए इतना क्यों डांट रही हो?”

रेखा, “अरे भैया! कुछ नहीं। वो ऐसा है ना अकेले इधर उधर जाएगा और रास्ता भूल गया तो इसीलिए बोल रही हूँ।”

पंकज, “यही बात है ना कि और भी कुछ बात है?”

रेखा, “अरे! नहीं नहीं भैया, बस यही बात है।”

पंकज, “माँ, वैसे गांव में एक अलग तरह का सन्नाटा छाया हुआ है। कोई बात है क्या?”

मां, “अरे! नहीं नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है।”

पिंकू अपने कमरे में बॉल से खेल रहा होता है। उसे फिर वही लड़की खिड़की के बाहर दिखाई देती है। उसे देखकर पिंकू उसके पास जाता है।

पिंकू, “रुको, भागना मत। कौन हो तुम और मुझे देखकर ऐसे भाग क्यों रही हो?”

लड़की, “क्योंकि माँ कहती है इस गांव के लोग बहुत बुरे हैं।”

पिंकू, “बुरे हैं मतलब? अच्छा चलो छोड़ो, तुम मुझे ये बताओ तुम्हारा नाम क्या है?”

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लड़की , “मेरा नाम स्वीटी है।”

पिंकू, “मैं यहाँ नया नया आया हूँ। क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?”

लड़की, “तुम्हारी दोस्त… मुझे माँ से पूछना होगा।”

पिंकू, “अरे! दोस्ती भी कोई माँ से पूछकर करता है।”

लड़की, “ठीक है।”

पिंकू , “तुम ऐसे चुप चुप क्यों रहती हो?”

लड़की, “क्योंकि माँ ने किसी से भी बात करने को मना किया है।”

तभी डब्बू आ जाता है।

डब्बू, “पिंकू…अरे ओ पिंकू! तुम अकेले किससे बात कर रहे हो? अब ये मत कहना कि उस लड़की से बात कर रहा हूँ।”

पिंकू, “डब्बू, तुम मेरा मजाक मत उड़ाओ और मैं उस लड़की से ही तो बात कर रहा हूँ। ये देखो।”

डब्बू, “कहाँ… कहाँ है?”

पिंकू , “अरे! यहीं तो थी।”

डब्बू , “अरे! बस बस और चल नानी बुला रही है।”

रात को जब सब सो रहे होते हैं तब पिंकू को स्वीटी की आवाज सुनाई देती है।

स्वीटी, “पिंकू, यहाँ आओ मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।”

पिंकू आवाज सुनकर घर के बाहर जाता है तो स्वीटी उसे दिखाई देती है।

स्वीटी, “पिंकू, चलो मेरे साथ।”

फिर स्वीटी बिना पलक झपकाए धीरे धीरे कुंए की तरफ आगे बढ़ने लगती है और पिंकू भी उसके पीछे पीछे जाने लगता है।

दूसरी तरफ हेमा की नींद खुलती है और पिंकू को पास में ना पाकर…

हेमा, “पंकज… पंकज, पिंकू पता नहीं कहाँ चला गया?”

पंकज , “पानी पीने गया होगा। नहीं तो वाशरूम गया होगा। इतनी रात को और कहाँ जा सकता है?”

हेमा, “नहीं नहीं, वो मुझे उठाये बिना कहीं नहीं जाता।”

फिर दोनों उसे ढूंढने लगते हैं। ढूंढ़ते ढूंढ़ते दोनों उस दिशा में पहुँच जाते हैं जिस तरफ स्वीटी और पिंकू गए थे।

वहां पिंकू को देखकर…
पंकज, “पिंकू… पिंकू, कहाँ जा रहे हो इतनी रात को?”

फिर दोनों उसे घर ले आते हैं।

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अगली सुबह…

हेमा, “दूध पी ले, बेटा।”

पिंकू, “नहीं पीना मुझे, मैं दूध नहीं पियूंगा।”

हेमा, “अच्छा तो क्या पिएगा फिर?”

पिंकू, “मुझे खून पीना है।”

सभी हैरानी से पिंकू की तरफ देखने लगते हैं।

पंकज, “पिंकू, तुम्हारी बदमाशी फिर से शुरू हो गई।”

पिंकू, “मैंने कहा ना, मुझे खून चाहिए।”

और दूध का ग्लास फेंक देता है और वहाँ से चला जाता है।

हेमा,”पता नहीं यहाँ जब से आया है, तब से कुछ अजीब ही बर्ताव कर रहा है।

कभी किसी लड़की के बारे में कहता है, तो कभी कुछ और ही बदमाशी। कल तो हद ही कर दी, रात को अकेले बाहर घूम रहा था।”

मां, “क्या… अकेले गांव में घूम रहा था?”

हेमा, “तू ठीक तो है ना? तुझे कुछ हुआ तो नहीं?”

हेमा, “पंकज, हम आज ही शहर वापस चलेंगे।”

मां, “अरे! नहीं बहू, अभी कितने दिन हुए है तुम्हें यहाँ आए? तुम फिर से जाने की बात कर रही हो।

मैं एक बहुत बड़े तंत्रिक को जानती हूँ, मैं उन्हें बुलवाकर पूजा करवाऊंगी। पर भगवान के लिए तुम मत जाओ, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ।”

हेमा, “ठीक है, माँ।”

फिर सुलोचना एक बहुत बड़े तांत्रिक को बुलाती है और पूजा करवाती है।

तांत्रिक, “ग्रीम ग्रीम चामुंडाय… इस बच्चे को कोई बुरी शक्ति नुकसान पहुंचाना चाहती है।

ये लो बेटा, ये अपने बेटे की कलाई पर बांध दो और ये दूसरा घर के प्रवेश द्वार पर बांध दो।”

रात को जब सब सो रहे होते है तब पिंकू को फिर से एक आवाज सुनाई देती है और पिंकू घर के बाहर चला जाता है।

अचानक उसके हाथ से मौली छूट जाती है और इसी के साथ घर के दरवाजे पर से भी धागा टूटकर नीचे गिर जाता है और दरवाजा अचानक खुल जाता है।

पिंकू उस कुएं की तरफ जाने लगता है।

हेमा, “पिंकू… पिंकू, रुक जाओ बेटा। रुक जाओ, उस तरफ मत जाओ।”

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स्वीटी, “नहीं पिंकू चलो, ये सब तुम्हारे दुश्मन है। कूद जाओ अभी कुएं में, ये सब तुम्हारे दुश्मन है कूद जाओ।”

और पिंकू कुएं में कूद जाता है।

हेमा, “पिंकू…।”

पंकज, “हेमा… हेमा उठो। हेमा, क्या हुआ?”

हेमा, “पिंकू… पिंकू कहाँ हैं? वो उस कुंए की तरफ गया हैं। मैंने अभी अभी उसे देखा और वो कुंए में कूद गया।”

पंकज, “अरे! फिकर मत करो, यहीं कहीं होगा। हो सकता हैं माँ के पास जाकर सो गया हो।”

हेमा, “पिंकू… पिंकू कहाँ है? आपके पास नहीं है?”

सुलोचना, “नहीं, वो तो तुम्हारे पास ही था ना?”

हेमा, “नहीं मां जी, वो मेरे पास नहीं है।”

फिर हेमा और सभी घबराकर उसे पूरे घर में ढूंढने लगते हैं।

रेखा, “माँ, पिंकू तो पूरे घर में नहीं मिला। जाने कहाँ चला गया?”

हेमा, “मैंने अभी सपने में देखा वो कुंए की तरफ गया है, वो कुंए की तरफ ही गया है।

उस कुंए में जाकर कूद गया। माँ जी, मुझे बहुत डर लग रहा है। चलो हम सभी उस कुंए की तरफ चल कर देखते हैं।”

सुलोचना, “अरे! इस प्रवेश द्वार का धागा किसने तोड़ा?”

हेमा, “ये ज़रूर उस बुरी शक्ति का काम होगा।”

फिर पंकज और सभी घरवाले पिंकू को मशाल लेकर उस कुंए की तरफ ढूंढने जाते हैं।

रेखा, “कहीं ये फिर से उस कुंए की तरफ तो नहीं जा रहा था?”

पंकज जी, “कुंए की तरफ..? आप सब मुझसे कुछ छुपा रहे हैं? हम जब से यहाँ आए हैं कुछ अजीब ही अहसास हो रहा है।”

रेखा, “अरे भैया! अब तुझसे क्या छुपाना? उस कुंए पर किसी का साया है और मुझे डर है कि हमारा पिंकू उसी वजह से ऐसी हरकतें तो नहीं कर रहा?”

पंकज, “साया है? क्या तुम भी? अभी भी इन अंधविश्वास में विश्वास रखती हो?

मैं इन सब में नहीं मानता, ये बस उसकी शरारत है। ज्यादा लाड़ प्यार की वजह से बिगड़ गया है।”

रेखा, “मां, जल्दी देखिए… ये आपका पोता क्या कर रहा है?”

सुलोचना और बाकी सभी दौड़ते हुए आते हैं।

हेमा, “ये तो एक चींटी को मारने से भी डरता था, अब देखो उस मुर्गी के गर्दन को कैसे तोड़कर खा रहा है?”

पिंकू, “अरे स्वीटी! तुम ही खाओ ना, बहुत टेस्टी है।”

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सुलोचना, “हो ना हो, ये उसी साये का काम है। पंकज, हमें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। मैं पंडित जी से बात करती हूँ इस बारे में।”

स्वीटी, “चलो तुम्हें मेरा घर देखना था ना? मैं तुम्हें मेरे घर लेकर चलती हूँ।”

पिंकू स्वीटी के पीछे पीछे जाने लगता है।

स्वीटी, “देखो, ये तुम्हारे घरवाले भी हमारे पीछे पीछे आ रहे हैं। ये तुम्हें मारना चाहते हैं, ये तुम्हारे दुश्मन हैं।”

पिंकू , “अगर तुम सब यहाँ नहीं रुके, तो मैं खुद की जान ले लूँगा।”

फिर वो दोनों कुएं के पास पहुँच जाते हैं।

स्वीटी, “देखो, ये है मेरा घर।”

पिंकू, “ये कुआं…इस कुएं में रहती हो तुम?”

स्वीटी, “हाँ। मेरी माँ अंदर है, तुम मिलोगे मेरी माँ से। वो बहुत अच्छी हैं।”

तभी गांव वाले और पंडित कुएं के पास पहुँच जाते हैं।

स्वीटी, “देखो, वो सब फिर से आ रहे हैं। चलो जल्दी कूद जाओ पिंकू कुएं में। ये सब तुम्हारे दुश्मन है, ये तुम्हें मारना चाहते हैं। चलो मेरे साथ।”

तभी पंडित मंत्रों का जाप करके पिंकू की तरफ भगवान का सिंदूर उड़ा देता है और पिंकू बेहोश हो जाता है।

कुएं में भी सिंदूर डाल देता है। फिर साधना तड़पती हुई कुएं से बाहर आती है।

पंकज, “साधना तुम?”

सुलोचना, “तू… तू तो वही थी ना जिसने मेरे पोते को वश में करके रखा था? क्या दुश्मनी है तेरी उससे? वो तो यहाँ पहली बार आया है।”

साधना, “दुश्मनी… तुम पूछ रही हो कि मेरी दुश्मनी क्या है उससे? अरे! याद नहीं तुमने क्या किया था मेरे साथ? कितना गलत किया था तुमने मेरे साथ?”

हेमा, “गलत किया था मतलब? क्या हुआ था तुम्हारे साथ, बताओ मुझे।”

साधना, “पंकज और मैंने घरवालों के खिलाफ़ जाकर शादी की थी, तो इसने हम दोनों को घर से बाहर निकाल दिया था।

फिर हम दोनों यहीं पास में एक घर में रहा करते थे। फिर नौकरी की वजह से पंकज भी शहर चला गया।

मैं यहाँ अकेली रहा करती थी। तब ये मुझे यहाँ आकर मुझे परेशान करती और पंकज को छोड़ने के लिए कहती, पर हम नहीं माने।

फिर कुछ समय बाद हमारी एक बेटी हुई, तब तक पंकज मुझे छोड़कर जा चुका था और इस सुलोचना देवी ने मुझे खुदकुशी करने पर मजबूर कर दिया।

इसी कुएं में मैंने अपनी जान दे दी। मेरी बेटी मेरे लिए रोती बिलखती, पर मैं कुछ नहीं कर पाती। तभी से मेरी आत्मा इस कुएं में भटक रही है।”

साधना, “हाँ पंकज, हमारी बेटी स्वीटी पर तुम तब तक मुझे छोड़कर जा चूके थे।”

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पंकज , “क्या… मैं छोड़कर चला गया था? नहीं, तुम ही मेरे साथ नहीं रहना चाहती थी। तुम ही तो मुझसे परेशान हो गई थी।”

साधना, “पर मुझे तुम्हारी माँ ने कहा था कि अब तुमने किसी और से शादी कर ली है। तुम मेरे साथ नहीं रहना चाहते।”

पंकज, “पर माँ ने तो मुझसे कहा था कि तुम गांव छोड़कर जा चुकी हो और तुमने उनसे कहा कि अब तुम मेरे साथ नहीं रहना चाहती।”

पंकज , “माँ, मतलब ये सब तुम्हारा किया धारा था? तुम हमें अलग करने के लिए इस हद तक गिर जाओगी, मैंने कभी सोचा नहीं था, माँ।”

सुलोचना, “मुझे माफ़ कर दे, बेटा।”

पंकज, “माफ़ कर दूं तुम्हें? तुमने एक बेगुनाह की जान ली है, तुम्हारी वजह से आज साधना मेरे साथ नहीं है।

और तुम कहती हो कि मैं तुम्हें माफ़ कर दूँ। मुझे तो तुम्हें माँ कहने में भी शर्म आ रही है अब।”

सुलोचना, “पर तुम्हारी दुश्मनी तो मुझसे थी, फिर तुम पिंकू को क्यों परेशान कर रही थी? इसे क्यों मारना चाहती थी?”

साधना, “क्योंकि मैं पंकज से बदला लेना चाहती थी। मैं देखना चाहती थी कि औलाद से दूर होने का दुख क्या होता है?

पर अब मुझे पता चल चुका है कि वो तुम्हीं थी जिसने हम दोनों को दूर किया था।”

साधना, “मुझे माफ़ कर दो पंकज, मैंने ऐसे ही तुम्हारी माँ पर विश्वास कर लिया।”

हेमा, “मैं हेमा, पंकज की पत्नी। मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि पंकज अभी भी तुम्हें बहुत याद करते हैं। वो मुझे तुम्हारे बारे में बताते रहते हैं।”

साधना , “हेमा, तुम मुझसे वादा करोगे कि तुम मेरी बेटी का ख्याल रखोगी।”

हेमा, “हाँ हाँ बिल्कुल, मैं उसे अपनी बेटी जैसा ही प्यार दूंगी।”

फिर साधना की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है।

पंकज, “चलो हेमा, हमें अब शहर के लिए निकलना है।”

सुलोचना, “तू फिर से जा रहा है बेटा? रुक जा बेटा, रुक जा मुझे माफ़ कर दे।”

पंकज, “माफ़ करने लायक तो कुछ बचा ही नहीं अब।”

और फिर पंकज उसके पूरे परिवार को लेकर वापस शहर चला जाता है।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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