मूर्ख पति | MURKH PATI | Funny Story | Majedar Kahaniyan | Comedy Stories | New Funny Story | Hindi Funny Story

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” मूर्ख पति ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Funny Stories, Comedy Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


पुट्ठा गहरी नींद में सो रहा था। पुट्टा की पत्नी शर्मीली कल ये एक बहुत बड़े वैद्य से पुट्टा का इलाज कराकर वापस लौटी थी। 

सुबह पुट्टा आराम की नींद सो रहा था कि तभी उसकी पत्नी शर्मीली ने उसे झिंझोड़ते हुए उठा दिया। 

शर्मीली, “अजी ऐसे पड़े पड़े कब तक सोते रहोगे, उठना है की नहीं?”

पुट्ठा, “क्या हुआ..? तुमने मुझे सोते हुए से क्यों उठा दिया? मुझे कितनी अच्छी नींद आ रही थी?”

शर्मीली, “अगर तुम्हें इतनी अच्छी नींद आती रही तो फिर मुझे ये घर भी बिकता हुआ नजर आ रहा है।”

पुट्ठा, “मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझा, तुम कहना क्या चाहती हो?”

शर्मीली, “एक तो तुम्हारी भुलक्कड़पन की आदत ने सारे गांव के लोगों की नाक में दम कर रखा था।”

पुट्ठा, “हाँ हाँ, वो सब तो मुझे पता है। लेकिन अब मैं बिल्कुल सही हो गया हूँ, समझी?

देखो, अब मैं तुम्हें पहचान भी पा रहा हूँ, है ना? तुम जो हो मेरी पत्नी शर्मीली हो, है ना?”

शर्मीली, “जी, बड़ा अहसान है आपका। क्या आपने मुझे पहचान लिया? अब आपको ये भी पता है कि आप काम क्या करते थे?”

पुट्ठा, “हाँ हाँ, मुझे सब पता है। ठीक है, भाई जा रहा हूँ काम पर।”

शर्मीली, “चलो इतना तो मुझे पता लग गया कि तुम्हारे भूलने की आदत अब ठीक हो चुकी है। कम से कम कमीज़ तो पहन लो।”

पुट्ठा, “तुम कहना क्या चाहती हो?”

शर्मीली, “जी, आप बनियान पहन के सो रहे थे, अब बाहर क्या ऐसे बनियान पहन के जाओगे? कमीज़ नहीं पहनोगे?”

पुट्ठा, “अरे! ये तो मैं भूल ही गया।”

पुट्टा इधर उधर नजर दौड़ाने लगा। तभी उसकी नजर शर्मीली की टंगी हुई साड़ी पर पड़ी। पुट्ठा साड़ी उतारकर पहनने लगा। 

शर्मीली, “ये क्या कर रहे हैं आप?”

पुट्ठा, “दिमाग खराब मत करो, शर्मिली हाँ। पहले कह रही थी कि कमीज़ पहन लो, अब कमीज़ पहन रहा हूँ तो बोल रही हो कि ये क्या कर रहे हो आप, बताओ?”

शर्मीली, “अरे मेरी किस्मत… अरे मूर्ख आदमी! कमीज़ नहीं, मेरी साड़ी है। क्या साड़ी पहन कर जाओगे बाहर?”

शर्मीली की बात सुनकर पुट्ठा साड़ी को गौर से देखने लगा। शर्मीली क्रोधित हुई और पुट्ठा की कमीज अलमारी से निकाल कर ले आई। 

शर्मीली, “ये लो कमीज, मुझे लगता है उस वैद्य ने बेवकूफ मुझे बना दिया। बोल रहा था तुम बिल्कुल ठीक हो गए हो, 

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लेकिन मुझे तो डर है कि कहीं तुम आज भी कोई नया बवाल न खड़ा कर दो।”

पुट्ठा, “अरे शर्मीली! भूलने की बिमारी मुझे नहीं बल्कि तुम्हें है, हाँ। 

तुम स्वयं भूल गई कि तुमने मुझे विधायक जी को दिखाया था हाँ, ना कि वैद्य जी को, हाँ।”

शर्मीली, “मूर्ख व्यक्ति, विधायक कब से मरीजों का इलाज करने लगे? अरे! वो विधायक नहीं, बल्कि वैद्य थे।”

पुट्ठा शर्मीली की बात का जवाब दिए बिना बाहर चला गया। बाहर जाकर पुट्ठा बाजार में सभी लोगों को बहुत गौर से देखने लगा। 

पुट्ठा, “मैंने अपनी पत्नी के सामने तो ये ज़ाहिर नहीं किया लेकिन सच तो ये है कि मैं भी भूल गया हूँ कि मैं काम कौन सा करता था? 

पता है… पता है मेरी पत्नी सही कह रही थी। उस वैद्य ने मुझे और मेरी पत्नी को मूर्ख ही बनाया है। 

नहीं नहीं, अगर ऐसा होता तो फिर मुझे याद कैसे रहता कि मेरा इलाज उस वैद्य ने किया है? मैं तो सब कुछ भूल जाता था। मुझे तो सब कुछ याद है।”

मगर सच तो ये था कि पुट्ठा का भुलक्कड़पन पूरी तरह से सही नहीं हुआ था। 

पुट्ठा सुबह से लेकर शाम तक बाजार में ही बैठा रहा। 

पुट्ठा, “चलो भाई, घर चलते हैं। आज इतने दिनों बाद काम करके शरीर में जो है थकान सी होने लगी हैं। घर पर जाकर आराम से खर्राटे लेकर सोते हैं।”

इतना कहकर पुट्ठा सीधा मुखिया के घर के अंदर घुस गया। पुट्ठा को अपने घर के अंदर इस तरह घुसता देख 

मुखिया की पत्नी हैरान होती हुई बोली, “अरे पुट्ठा! तुम मेरे घर में कैसे घुस आए? वो भी बगैर दरवाजा खटखटाए।”

पुट्ठा, “अरे! ये क्या शर्मिली..? जब मैं सुबह काम पर गया था तब तो तुम अच्छी खासी जवान थी, 

अचानक से तुम्हारा चेहरा मुझे किसी बूढ़ी औरत के जैसा क्यों लग रहा है भई? 

तुम्हारा चेहरा तो बिल्कुल मुरझाई हुई नाशपाती के जैसा हो गया है।”

मुखिया की पत्नी, “अरे नाशमीटे! कुछ लाज शर्म है कि नहीं? मैं तेरी पत्नी नहीं हूँ।”

पुट्ठा, “देखो नाशपाती, मजाक बहुत हो गया। तुम ही मेरी पत्नी हो समझी?”

मुखिया की पत्नी, “नाशपाती… कौन नाशपाती?”

पुट्ठा, “अरे! मेरी पत्नी नाशपाती। अरे! यही नाम था न उसका?”

मुखिया की पत्नी, “अरे करमजले! कुछ देर पहले तो तुझे अपनी पत्नी का नाम याद था। क्या तू वो भी भूल गया?”

पुट्ठा, “अगर तुम मेरी पत्नी नहीं हो तो फिर कौन हो तुम?”

मुखिया की पत्नी, “अरे मुसटंडे! मैं तेरी पत्नी नहीं बल्कि मुखिया की पत्नी हूँ। 

अगर मेरे पति को भनक लग गई तो तेरा मार मार के बुरा हाल कर देंगे।”

मुखिया की पत्नी ने इतना कहा ही था, तभी पुट्ठा ने एक जोरदार थप्पड़ मुखिया की पत्नी के गाल पर जड़ दिया। 

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पुट्ठा, “मूर्ख औरत, बार बार मुझसे कहती है कि मैं भुलक्कड़ हूँ, मुझे सब याद आ गया। 

मैं जो है इस गांव का मुखिया हूँ और तुम मेरी पत्नी अमिया हो।”

मुखिया की पत्नी, “ये क्या बकवास कर रहे हो तुम? अरे! तुम कब से गांव के मुखिया हो गए 

और मेरा नाम अमिया कब से हो गया? अरे करमजले! कितने नाम बदलेगा अपनी पत्नी के?”

पुट्ठा, “चलो झगड़ा बंद करो और जल्दी से मेरे लिए खाना लगाओ। मुझे बहुत तेजी से भूख लग रही है। 

और तुम जानती हो जब मुझे भूख लगती है तब मुझे गुस्सा बहुत ज्यादा आता है बता रहा हूँ।”

तभी वहाँ मुखी आ गया और बुड्ढा को देखकर बुरी तरह चौंक गया। 

मुखिया, “अरे! तू यहाँ क्या कर रहा है रे?”

पुट्ठा, “मेरे ही घर पर आकर पूछ रहा है कि मैं क्या कर रहा हूँ अपने घर पर? कौन है तू?”

मुखिया, “अरे! लगता है इस भुलक्कड़ को फिर से भूलने का दौरा पड़ गया है। कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। नहीं तो ये दिमाग का दही कर देगा।”

इतना बोलकर मुखिया पुट्ठा से बोला,

मुखिया, “आप कौन हैं?”

पुट्ठा, “मैं… मैं मैं इस गांव का मुखिया हूँ और ये मेरी पत्नी जो है रसभरी।”

मुखिया की पत्नी, “अरे करमजले! कुछ देर पहले तू नाशपाती बोल रहा था मुझे फिर अमिया बोलने लगा 

और अब मुझे रसभरी बोल रहा है। इससे पहले कि मैं कुछ कर बैठूं, अपनी मनहूस शक्ल लेकर चला जा यहां से।”

मुखिया की पत्नी मुखिया की ओर देख कर बोली,

मुखिया की पत्नी, “और आप तो इससे ऐसे पूछ रहे हैं, कौन है आप? 

जैसे कि आप इसे जानते ही नहीं। अरे! इसे धक्के देकर बाहर क्यों नहीं निकालते?”

मुखिया, “थोड़ा शांत रहो भाग्यवान, ये भुलक्कड़ जो है फिर से भूल गया है कि ये कौन है? देखो, गजनी बन गया है ये।”

मुखिया की पत्नी, “उस गजनी को बाहर निकालो, नहीं तो कपड़े टूटने वाली पटकुनी से इस गजनी को कूट दूंगी मैं।”

मुखिया, “ऐसा मत करना भाग्यवान, नहीं तो ये मर जाएगा और तुम जो है जेल चली जाओगी। मैं कुछ करता हूँ।”

मुखिया दौड़ते हुए पुट्ठा की पत्नी शर्मिली को अपने घर पर बुला लाया। शर्मिली पुट्ठा की ओर देखकर क्रोधित होते हुए बोली। 

शर्मीली, “आप तो कह रहे थे कि आप बिल्कुल सही हो गए हो। फिर यहाँ क्या कर रहे हो आप?”

पुट्ठा, “तुम कौन हो?”

शर्मीली, “अरे! अपने दीदे फाड़कर देखो, तुम्हारी पत्नी हूँ मैं।”

मुखिया की पत्नी, “अरे शर्मीली! तुम इसे कैसे झेलती हूँ, मुझे नहीं पता? 

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लेकिन मैं भगवान की सौगंध खाकर कहती हूँ अगर मेरा पति ऐसा होता ना, तो मैं उसे जान से मार देती।”

शर्मीली, “अब मैं आपको क्या बताऊँ, कैसे बर्दाश्त करती हूँ इन्हें?”

इतना कहते कहते शर्मीली ने एक जोरदार मुक्का पुट्ठा के सिर पर मार दिया। 

मुक्का सर पर पड़ते ही पुट्ठा की आँखें किसी हिप्नोटाइज़्ड व्यक्ति की तरह हो गई। 

पुट्ठा, “अरे शर्मिली! तुम यहाँ क्या कर रही हो और मैं यहाँ पर कैसे आया?”

शर्मीली, “अब मेरे पास इतना दिमाग नहीं है कि मैं तुम्हें बताऊँ कि तुम यहाँ पर कैसे आए? चलो घर चलो, तुम तो काम पर गए थे ना?”

मुखिया, “अरे! ये कोई काम पर नहीं गया था, शर्मीली। बाजार में लोगों ने मुझे बताया कि सारा दिन बाजार के कोने में बैठकर कुछ बडबडाता रहा 

और शाम के समय जो है अचानक लापता हो गया। मगर मुझे क्या पता था कि ये मेरे ही घर पर आकर मेरी ही पत्नी को अपनी पत्नी बताने लगेगा।”

अचानक पुट्ठा बेहोश होकर गिर गया। 

मुखिया, “अरे भाग्यवान! कहीं तुमने सच में इसके सर पर गुस्से में पटकुन्नी तो नहीं मार दी?”

मुखिया की पत्नी, “अरे! नहीं जी, मैं तो गुस्से से कह रही थी वो। मुझे क्या पता कि कैसे बेहोश हो गया?”

शर्मीली, “ये जरूर उस वैद्य की दवाई का असर होगा। एक बार ये फिर से सही हो जाएं, उसके बाद मैं उससे सही से बात करूँगी।”

शर्मीली, “मुखिया जी, कृपया मेरी मदद कीजिये। इन्हें उठाकर घर तक तो ले चलिए।”

शर्मीली, मुखिया और मुखिया की पत्नी पुट्ठा को उठाकर उसके घर तक ले गए। घर जाकर पुट्ठा को अचानक होश आ गया। 

पुट्ठा, “मैं कहाँ हूँ, शर्मीली? अरे! अपने घर पर।”

अचानक पुट्ठा घर से बाहर निकल गया। 

शर्मीली, “अजी, कहाँ जा रहे हो आप? हे भगवान! कहीं ये फिर से बाहर जाकर कोई नया बखेड़ा ना खड़ा कर दें?”

शर्मीली, “मुखिया जी, आप जाकर देखें ना, कहाँ गए हैं?”

मुखिया, “शर्मीली, मुझे क्षमा करना। पिछली बार जब ये गजनी बना था, तब मुझे बहुत मार पड़ी थी। अब मुझे बक्श दो। मैं कहीं नहीं जाने वाला।”

मुखिया की पत्नी, “अजी, कैसे मुखिया है आप? अपने ही गांव के लोगों की मदद नहीं कर सकते। जाकर देखिए कहाँ गया है वो?”

मुखिया, “वाह भाग्यवान वाह! जब वो तुम्हारे दिमाग का दही कर रहा था तब तुम उसे पटकुनी से कूटने की धमकी दे रही थी।”

तभी अचानक पुट्ठा घर पर आ गया। मगर उसके हाथ में एक राखी थी। 

शर्मीली, “ये राखी किसके लिए लेकर आए हैं आप? रक्षा बंधन तो 2 दिन बाद है ना?”

पुट्ठा, “मैं जानता हूँ चंपा कि तुम मुझसे नाराज हो, लेकिन मुझसे इतना नाराज होने के बाद भी देखो तुम मुझसे मिलने चली आई। 

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भला तुम्हें देख कर भी मैं राखी नहीं लाऊंगा?”

इतना कहकर पुटू बड़ी तेजी से शर्मिली की कलाई में राखी बांधने लगा। 

शर्मीली, “ये क्या कर रहे हैं आप? कही पागल तो नहीं हो गए? 

मैं आपकी बहन चंपा नहीं बल्कि आपकी पत्नी शर्मीली हूँ। अपनी पत्नी को राखी बांधेंगे आप?”

पुट्ठा, “ये क्या बकवास कर रही हो, चंपा? मेरी पत्नी को तो मरे हुए पूरे 10 वर्ष हो गए हैं।”

शर्मीली ने।श पुट्टा को गुस्से में धक्का देते हुए कहा,

शर्मीली, “दिमाग तो सही है आपका? अरे! आपकी बहन को मरे हुए पूरे 10 वर्ष हो गए हैं, मैं अभी जिंदा हूँ।

आपके पिताजी ने अपने जीवन में दो ही गलतियाँ की थी आपको और आपकी बहन को पैदा करके। 

आपकी बहन ने मरकर आपके पिताजी की गलती सुधार दी, लेकिन आप पता नहीं कौन सी मिट्टी के बने हो? 

जब तुम्हारी बहन जीवित थी तब उसका काम सिर्फ एक ही था और वो था मुझसे लड़ना।”

तभी अचानक वहाँ थानेदार गांव के व्यक्ति जग्गी के साथ आ धमका। 

मुखिया, “अरे जंगी! तू यहाँ पर क्या कर रहा है? तेरी नाक से ये खून कैसे बह रहा है रे?”

मुखिया, “और थानेदार साहब आप, सब कुछ ठीक तो है?”

जग्गी, “अरे! क्या खाक ठीक होगा, मुखिया जी? आपका ये गजनी भुलक्कड़ जो है अभी कुछ देर पहले मेरी दुकान पर आ धमका 

और सबसे महंगी राखी उठाकर भागने लगा। जब मैंने इससे पैसे मांगे, तो इसने मेरे मुँह पर एक जोरदार मुक्का मार दिया। देखिए मेरी नाक से अभी भी खून बह रहा है।”

थानेदार, “अरे क्यों रे! अरे इस तरह सरेआम गुंडागर्दी करेगा तू?”

मुखिया, “अरे थानेदार साहब! इसको छोड़ दीजिए। जो है आप इसके बारे में कुछ नहीं जानते, ये भुलक्कड़ है। 

कभी कभी इसे भूलने के अचानक दौरे पड़ने लगते हैं, थानेदार साहब।”

थानेदार, “थाने में ले जाकर जब दो डंडे मारूंगा ना, तब इसकी भूलने की सारी आदत खत्म हो जाएगी। तुम सब भी मेरे साथ थाने चलो।”

इतना कहकर थानेदार पुट्ठा को पकड़कर सीधा थाने ले गया और बोला। 

थानेदार, “जग्गी ने बताया कि तेरा नाम पुट्ठा है और तू इस गांव का आमिरखान वाला गजनी है।”

पुट्ठा, “कौन… कौन पुट्ठा, कौन?”

थानेदार, “अरे! तेरा नाम पुट्ठा।”

पुट्ठा, “लेकिन मैं तो जो है पुट्ठा नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानता, थानेदार।”

थानेदार, “अरे! मुझे क्या मुर्ख समझा है क्या? तेरे नाम की रिपोर्ट दर्ज है।”

पुट्ठा, “हाँ तो जाकर बुड्ढा को अरेस्ट करो ना, मुझे यहाँ पर क्यूँ उठाकर लेकर आये हो?”

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थानेदार, “तो क्या तू पुट्ठा नहीं है?”

पुट्ठा, “नहीं, मैं पुट्ठा थोड़े ही हूँ। अगर आपको जो है विश्वास नहीं है, तो आप बगल में खड़े हुए 

और लोगों से पूछ लीजिए। चाहे तो आप मेरी पत्नी लीची से पूछ लीजिए।”

थानेदार, “तुम्हारी पत्नी लीची? लेकिन मुझे बताया गया है कि तुम्हारी पत्नी का नाम शर्मीली है।”

पुट्ठा मुखिया की पत्नी की ओर इशारा करते हुए बोला,

पुट्ठा, “ये… ये ये मेरी पत्नी है। इसका नाम लीची है।”

मुखिया की पत्नी, “अरे नाशमीटे! कितनी बार बता चुकी हूँ कि मैं मुखिया की पत्नी हूँ। तेरी पत्नी ये है, शर्मिली।”

थानेदार मुखिया की ओर देखकर बोला,

थानेदार, “अजीब बात है, मैंने तो सुना था कि लीची फल का नाम है। तुम्हारी पत्नी का नाम वास्तव में लीची है क्या?”

मुखिया, “थानेदार साहब, अगर कुछ देर आप इससे और बातचीत करेंगे, तो आपका दिमाग का दही हो जाएगा। इसे छोड़ दीजिए।”

थानेदार, “छोड़ तो जरूर दूंगा, लेकिन पूरी रात इसे हवालात में बंद करके।”

तभी पुट्ठा अचानक से थानेदार की ओर गौर से देखने लगा। 

थानेदार, “अरे! ऐसेक्या देख रहा है बे? ऐसे देखकर मुझे डराना चाहता है?”

पुट्ठा ने पिस्तौल बड़ी फुर्ती से निकाल ली और थानेदार पर तानते हुए बोला। 

पुट्ठा, “सीधी तरह से अपने आप को कानून के हवाले कर दे, नहीं तो मैं पिस्तौल की सारी की सारी गोलियां तेरे ऊपर चला दूंगा।”

थानेदार, “अबे… अबे अबे पागल हो गया क्या? मैं यहाँ का थानेदार हूँ। एक पुलिसवाले पर गोली चलाएगा तू?”

पुट्ठा, “चोर कब से थानेदार बनने लगे हैं? अबे थानेदार मैं हूँ, थानेदार पुट्ठा और तू नामी गिरामी चोर बिरजू है।”

थानेदार, “ठीक है, तो फिर तू जो है मुझ पर गोलियां चला दे।”

पुट्ठा ने पिस्तौल का ट्रिगर दबा दिया मगर उसमें से एक भी गोली नहीं चली।”

थानेदार, “इसमें गोली है ही नहीं, मूर्ख आदमी।”

पुट्ठा, “अब समझा मैं। बिरजू, तुने मुझे पिस्तौल की जगह चाकू थमा दिया। इसी वजह से इसमें गोलियां नहीं निकली।”

इतना कहकर पुट्ठा ने वो पिस्तौल सीधा थानेदार के मुँह पर दे मारी। 

थानेदार, “अरे! इसे ले जाओ यहाँ से रे मुखिया और इसे किसी पागलखाने में भर्ती करो। 

इसे भूलने की बिमारी नहीं है बल्कि ये जो है पूरी तरह से पागल है पागल। 

अरे कुछ देर अगर ये और यहाँ पर रहा, तो मैं वास्तव में सारी की सारी गोलियां पिस्तौल में भरकर इसके ऊपर चला दूंगा।”

जग्गी, “लेकिन थानेदार साहब मेरी राखी के पैसे?”

थानेदार, “अरे! भाड़ में गए तेरे राखी के पैसे? यहाँ पर और रुका तो सारी रात तुझे हवालात में बंद करके तेरी वो हालत करूँगा कि तू राखी बेचना ही भूल जाएगा।”

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पुट्ठा, “तुम कौन हो? तुम मुझे थाने से निकालने वाले कौन हो भई? जबकि जाना तो तुम्हें चाहिए, थानेदार तो मैं हूँ।”

इतना कहकर थानेदार का गला पकड़ लिया। 

थानेदार, “अबे… अबे छोड़ मुझे। अरे पागल हो गया क्या?”

पुट्ठा, “सीधी तरह से अपने जुर्म का इकबाल कर ले और अपने आप जाकर लॉकर में बंद हो जा।”

पुट्ठा के हाथों में अजीब ताकत थी। थानेदार डर की वजह से दौड़ता हुआ अपने आप लॉकअप में चला गया। 

थानेदार, “ठीक है भई ठीक है, थानेदार साहब। आप यहाँ से चले जाइए। मैं मानता हूँ कि मैं बिरजू चोर हूँ।”

थानेदार के इतना कहते ही पुट्ठा अचानक बेहोश हो गया। 

थानेदार, “अरे मुखिया! अरे इसको ले जा यहाँ से भई। आप सही कहते हो, मुझे इसे गिरफ्तार ही नहीं करना चाहिए था।”

शर्मीली पुट्ठा को लेकर घर आ गई। तभी शर्मीली के मोबाइल पर वैद्य जी का फ़ोन आ गया। 

शर्मीली, “हैलो वैद्य जी! आपने ये क्या किया? पुट्ठा की तो बिल्कुल भी भूलने की बिमारी नहीं गई 

बल्कि मुझे तो लगता है कि उसकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई है।”

वैद्य, “घबराओ मत, शर्मीली। इस दवाई का साइड इफेक्ट ये है कि इससे कभी कभी मरीज पहचान में फर्क भूल जाता है। 

पुट्ठा के साथ भी यही हुआ है। रात हो चुकी है, उसे गहरी नींद सोने दो और जब तक वो ना उठे तब तक ना उठाना। सुबह तक सही हो जाएगा।”

इतना कहकर फ़ोन डिस्कनेक्ट हो गया। पुट्ठा अगली दोपहर 12 बजे सोकर उठा और वो बिल्कुल सामान्य था, लेकिन कब तक..? कोई नहीं कह सकता।


दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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