हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब अंडेवाली ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Achhi Achhi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में रतन नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी आरती के साथ रहा करता था। रतन गांव में बने हुए, सम्पत के ढाबे में काम करता था।
सम्पत, “अरे रतन! ओह रतन! अरे, कहाँ मर गया रे तू? क्या कान में तेल डाल कर बैठा है, जो तुझे मेरी आवाज़ ही नहीं सुनाई दे रही?”
सम्पत की आवाज़ सुनकर रतन दौड़ता हुआ आया और बोला, “जी मालिक, क्या हुआ?”
सम्पत, “अरे! क्या हुआ? अरे! ग्राहक कितनी देर से तुझे आवाज़ लगा रहे हैं? क्या तुझे उनकी आवाज़ नहीं सुनाई दे रही?”
रतन, “मैं ग्राहकों के ऑर्डर पर ही खाना लेने रसोई में गया था, मालिक।”
सम्पत, “वो तो मुझे भी दिख रहा है। अरे! ना जाने कितनी देर से तू रसोई घर में कान बंद किये हुए खड़ा है? अगर ऐसा ही हाल रहा तो मेरा ढाबा बहुत जल्दी बंद हो जाएगा, बता रहा हूँ।”
रतन, “ऐसा नहीं होगा, मालिक।”
सम्पत, “हाँ हाँ, अब ज्यादा बातें बनाने की जरूरत नहीं है। जा, जल्दी काम पर लग जा। चल, जा।”
सम्पत की बात सुनकर रतन अपने काम में मेहनत से जुट गया। शाम को रतन जल्दी से अपने घर चला गया।
रतन, “जल्दी से खाना लगा दो, आरती! मुझे बहुत तेजी से भूख लगी है।”
आरती, “अजी, इतनी जल्दी क्या है? पहले हाथ-मुँह तो धो लीजिए।”
रतन, “हाथ-मुँह मैं ढाबे पर धोकर आया हूँ। तुम खाना लगा दो।”
रतन के कहने पर आरती ने उसे खाना लगा कर दिया, रतन खाना खाने लगा।
आरती, “आप तो ढाबे पर काम करते हैं और कभी-कभी ढाबे का मालिक आपसे देर रात तक काम करवाता है, क्या भूख लगने पर वो आपको दो रोटी नहीं खिला सकता?”
रतन, “तुम नहीं जानती, आरती। ढाबे का मालिक, सम्पत, बहुत ही कंजूस स्वभाव का है। अच्छा सुनो, कल मुझे ढाबे पर जल्दी जाना है।”
आरती, “क्यों, कल ऐसा क्या है?”
रतन, “सम्पत जी कल मुझे शहर में किसी काम से भेजने वाले हैं।”
आरती, “आखिर वो आपको ही काम से शहर क्यों भेजते हैं? वो खुद क्यों नहीं चले जाते?”
रतन, “मैं उनके ढाबे पर काम करता हूँ, आरती, इसलिए मुझे उनका कहना मानना ही पड़ेगा।”
आरती, “वैसे, किस काम से भेज रहे हैं वो आपको?”
रतन, “यह तो उन्होंने अभी तक मुझे नहीं बताया।”
आरती, “ठीक है, लेकिन आप उस कबाड़ ट्रक में मत जाइएगा। पिछली बार जब आप उस ट्रक से गए थे तो दिन भर मेरा दिल बेचैन रहा था।”
आरती की बात सुन कर रतन मुस्कुरा दिया। अगले दिन रतन ढाबे पर चला गया।
सम्पत, “रतन, तुम ट्रक चलाना तो जानते हो ना?”
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रतन, “हाँ हाँ, मालिक, मैं ड्राइविंग करना जानता हूँ, लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं?”
सम्पत, “तुम्हें जो है इस ट्रक को शहर पहुँचाना है।”
रतन, “लेकिन मालिक, ट्रक ड्राइवर कहाँ है? क्या आप मुझे इसलिए शहर भेज रहे हैं?”
सम्पत, “हाँ, तुम्हें ट्रक को शहर में पहुँचाना है। इसकी रिपेरिंग होनी है। तुम्हें ड्राइवर शहर में मिल जाएगा।”
रतन, “लेकिन मालिक, ये ट्रक बहुत ही ख़राब हो चुका है। मेरी पत्नी ने मुझे मना भी किया है इस ट्रक से शहर जाने के लिए और आप इसी ट्रक में मुझे ड्राइविंग करने को बोल रहे हैं।”
सम्पत, “देखो रतन, अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो तुम्हें मेरे और भी काम करने होंगे। अगर तुम ये ट्रक शहर में नहीं पहुँचा सकते, तो फिर तुम अभी इसी वक़्त नौकरी छोड़ कर जा सकते हो।”
सम्पत की बात सुनकर रतन मजबूरी में ट्रक लेकर वहाँ से चला गया। ट्रक कुछ दूर ही चला था कि अचानक उसका बहुत ही खतरनाक एक्सीडेंट हो गया।
रतन की उसी समय मौत हो गई। शाम तक रतन का अंतिम संस्कार कर दिया गया। आरती रोते हुए रतन की तस्वीर देखकर बोली।
आरती, “मैंने आपको मना किया था उस ट्रक से जाने के लिए। काश! आप मेरी बात मान जाते तो आज आप जीवित होते।
अब मैं किसके सहारे जीऊँगी? आपके अलावा मेरा इस दुनिया में आखिर कौन है?”
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए। कुछ दिन बाद गांव का मुखिया आरती के घर पर आकर बोला।
मुखिया, “आखिर ऐसे कब तक घर में खुद को बंद रखोगी?”
आरती, “अब मेरे पास इसके अलावा और चारा भी क्या है, मुखिया जी? मेरी तो दुनिया लूट गई।”
मुखिया, “अब होनी को कौन टाल सकता है, आरती? जो होना था, वो हो गया। अब आगे क्या करने का इरादा है?”
आरती, “यही सोच-सोचकर मैं बुरी तरह से परेशान हूँ कि अब क्या होगा? घर का राशन भी खत्म होने को है।”
मुखिया, “रतन तो बेचारा सम्पत के ढाबे पर काम किया करता था। अगर तुम कहो तो मैं सम्पत से तुम्हारे काम की बात कर लेता हूँ, तुम उसके ढाबे पर काम कर सकती हो।”
आरती, “मुझे उसका नाम भी नहीं सुनना, मुखिया जी! उसकी वजह से ही मेरे पति की जान गई है।”
मुखिया, “तो फिर तुम क्या करोगी? अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे दूसरे विवाह की बात गाँव में किसी से चलाकर देखूँ क्या?”
आरती, “मुखिया जी, मैं अब दूसरी शादी नहीं करूँगी। मैं अपना पूरा जीवन रतन की याद में बिता सकती हूँ।”
मुखिया, “तुम्हारे परिवार में भी अब कोई नहीं है, आरती। तो फिर तुम क्या करोगी? अब ये जीवन कैसे काटोगी?”
आरती, “रतन अक्सर मुझसे अपना खुद का ढाबा खोलने की बात किया करते थे। मैं उनके सपने को पूरा करूँगी।”
मुखिया, “आरती, ढाबा खोलने के लिए धन की आवश्यकता होती है।”
आरती, “आप तो गांव के मुखिया हैं, क्या आप मेरी मदद नहीं कर सकते?”
मुखिया आरती की बात सुनकर गहरी सोच में डूबते हुए बोला।
मुखिया, “आरती, मेरे पास तो इतना धन नहीं है जो मैं तुम्हें उधार दे सकूँ। लेकिन एक व्यक्ति को मैं जानता हूँ जो तुम्हारी मदद कर सकता है। चलो मेरे साथ।”
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मुखिया आरती को ज़मींदार की हवेली के अंदर ले आया।
आरती, “मुखिया जी, ये तो ज़मींदार की हवेली है! क्या ज़मींदार मुझे पैसे उधार दे सकता है?”
मुखिया, “ज़मींदार मेरी बात कभी नहीं टालता, आरती।”
तभी वहाँ ज़मींदार आ गया।
ज़मींदार, “तुम्हारे पति की मौत का मुझे बहुत अफ़सोस है, आरती। कहो, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ?”
मुखिया, “आरती अपने पति का सपना साकार करना चाहती है। इसका पति एक ढाबा खोलना चाहता था।”
ज़मींदार, “समझ गया। और ढाबा खोलने के लिए इसके पास धन नहीं है। देखो, मैं आरती को धन देने के लिए तैयार हूँ और मैं उससे कोई ब्याज़ भी नहीं लूँगा
लेकिन क्या गैरन्टी है कि आरती जो ढाबा खोलेगी वो ढाबा चलेगा? अगर कुछ नुक्सान हो गया तो?”
आरती, “आप चिंता मत कीजिए, ज़मींदार साहब। मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरा ढाबा एक दिन जरूर चलेगा।”
ज़मींदार ने आरती को ढाबा खोलने के लिए कुछ रुपये पकड़ाते हुए कहा, “गांव में मेरी एक ज़मीन पड़ी हुई है जो कि खाली है। तुम अपना ढाबा चाहो तो वहाँ खोल सकती हो।”
आरती, “मैं आपका ये उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगी।”
आरती मुखिया के साथ वहाँ से चली गई और ढाबा बनाने में जी-जान से जुट गई। कुछ ही दिनों में आरती का ढाबा बनकर तैयार हो गया।
मुखिया, “अरे वाह आरती! ढाबा तो तुमने वाकई बहुत सुन्दर बनाया है और भोजन में भी बहुत अच्छी ख़ुशबू आ रही है।”
कुछ देर में वहाँ ग्राहकों की भीड़ लगने लगी।
मुखिया, “अब जल्दी से ग्राहकों को भोजन परोसो। मुझे लगता है कि तुम्हारा ढाबा कुछ ही दिनों में सम्पत से भी आगे निकल जाएगा।”
आरती ने खुशी-खुशी ग्राहकों को खाना परोसा। मगर जैसे ही ग्राहकों ने खाना खाया, वो सब उल्टियाँ करने लगे। एक ग्राहक क्रोधित होते हुए आरती से बोला।
ग्राहक, “अरे! आखिर तुमने खाने में क्या मिलाया है?”
आरती, “मैंने तो कुछ भी नहीं मिलाया।”
ग्राहक, “झूठ बोलती हो। हमें इतना बेकार खाना खिलाकर बीमार करना चाहती हो? हम तुम्हारे ढाबे की बुराई सारे गांव में करेंगे, हाँ।”
सारे ग्राहक वहाँ से क्रोधित होकर चले गए और पूरे गांव में उन्होंने आरती को बदनाम कर दिया। आरती का ढाबा चलने से पहले ही बंद हो गया।
आरती अपने घर में बैठी हुई आँसू बहा रही थी कि तभी ज़मींदार वहाँ आ गया।
ज़मींदार, “आरती, मुझे मेरे पैसे वापस चाहिए।”
आरती, “लेकिन ज़मींदार साहब, आप तो जानते हैं, ढाबा चलने से पहले ही बंद हो गया। आप मुझे कुछ समय दे दीजिए, मैं आपकी पाई-पाई चुका दूँगी।”
ज़मींदार, “नहीं आरती, मैं अब तुम्हें और समय नहीं दे सकता।”
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आरती, “लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं।”
ज़मींदार, “तो क्या हुआ? तुम्हारा ये हाईवे पर बना हुआ घर तो है। अगर पैसे नहीं हैं तो ये घर मुझे दे दो।”
आरती, “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? अगर आप इस घर को ले लेंगे तो मैं कहाँ रहूँगी?”
ज़मींदार, “आरती, मैं तुमसे पूछ नहीं रहा हूँ, बल्कि मैं तुम्हें बता रहा हूँ। यहाँ से सीधी तरह से निकल जाओ या फिर सोच लो,
अगर तुम्हें अपमानित होकर ही निकलना है तो फिर तुम्हारी मर्ज़ी।”
आरती रोती और गिड़गिड़ाती रही, मगर ज़मींदार का दिल नहीं पसीजा। आरती भूखी-प्यासी अपने गांव से थोड़ी दूर हाईवे के पास पेड़ के नीचे बैठ गई,
जहाँ उसका पति अक्सर उसके साथ बैठा करता था। आरती पेड़ की ओर देखकर बोली।
आरती, “तुम ये सोच रहे होगे कि आज मैं अकेली कैसे? तुम्हें पता नहीं, मेरे पति आज इस दुनिया में नहीं हैं और मेरी मदद करने वाला भी कोई नहीं।”
तभी आरती ने देखा कि उस पेड़ के ऊपर एक चिड़िया का घोंसला बना हुआ था, जिसमें एक अंडा रखा हुआ था और एक चील उस पर बार-बार मंडरा रही थी।
आरती, “मेरा घर तो ज़मींदार ने मुझसे छीन लिया, मगर मैं इस बेचारी चिड़िया का घोंसला नहीं तोड़ने दूँगी और ना ही इसके अंडे को।”
आरती ने वहाँ से एक डंडा उठाया और चील को भगा दिया। अचानक एक चिड़िया आरती के सामने आकर बैठ कर एक सुन्दर लड़की में परिवर्तित हो गई।
आरती, “कौन हो तुम?”
लड़की, “मैं पक्षियों की रानी हूँ। तुमने इस अंडे को बचाकर इंसानियत का सबूत दिया है। इसके बदले तुम मुझसे जो चाहो मांग सकती हो।”
आरती, “क्या तुम मेरे पति को दोबारा जीवित कर सकती हो?”
लड़की, “नहीं, इस संसार से जो एक बार चला जाता है, फिर वो वापस नहीं आता।
लेकिन मैं तुम्हारा वो सपना पूरा कर सकती हूँ जिसे पूरा करने में तुम्हारा घर तुमसे छिन गया।”
आरती, “तुम्हें इस बारे में कैसे पता?”
लड़की, “मैं तो वो भी जानती हूँ, आरती, जो तुम नहीं जानती। समय आने पर तुम्हें पता लग जाएगा।”
इतना कहकर उस सुन्दर लड़की ने जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ाया, घोंसले से अंडा अपने आप उड़ता हुआ उस लड़की के हाथ में आ गया।
लड़की, “बदले में मुझसे उपहार में यह अंडा ले लो और यहाँ से कुछ दूर ले जाकर इस अंडे को तोड़ देना। तुम्हें वो मिलेगा जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती।”
आरती, “आखिर तुम मेरी मदद क्यों कर रही हो?”
लड़की, “जब तुम अपने पति के साथ इस पेड़ के नीचे बैठा करती थी, मैं चिड़िया बनकर तुम दोनों को देखती रहती थी।
तुम्हारा पति कभी-कभी अकेले भी यहाँ आता था और वो पक्षियों से बहुत प्रेम करता था और उनकी मदद भी करता था।
आज वो इस दुनिया में नहीं है, इसलिए तुम्हारी मदद करना मेरा कर्तव्य है क्योंकि तुम्हारा दिल भी तुम्हारे पति की तरह अच्छा और साफ़ है।”
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इतना कहकर वो सुन्दर लड़की वहाँ से गायब हो गई। आरती ने थोड़ा आगे जाकर वो अंडा तोड़ दिया, मगर जैसे ही उसने अंडे को तोड़ा,
अचानक एक तेज़ धमाके के साथ वहाँ पर एक अंडे के आकार का बहुत ही सुन्दर ढाबा बन गया।
आरती, “ये तो सच में चमत्कार है! ये तो बहुत ही सुन्दर और अंडे के आकार का ढाबा है।”
आरती उस ढाबे के अंदर चली गई। ढाबे के अंदर बहुत सारा राशन भरा था और भोजन पका हुआ रखा था। वो ढाबा अंदर से आधुनिक सामानों से लैस था।
उस ढाबे के ऊपर एक बहुत सुन्दर कमरा भी बना हुआ था। आरती फटी-फटी आँखों से उस ढाबे को देख रही थी कि तभी एक कार वहाँ आकर रुकी और एक व्यक्ति बाहर निकल कर आरती से बोला।
व्यक्ति, “अरे भाई! इस तरह के ढाबे तो मैंने अमेरिका और जापान में देखे हैं। ये किसका ढाबा है?”
आरती, “ये मेरा ढाबा है।”
व्यक्ति, “लेकिन ऊपर बोर्ड में तो रतन का ढाबा लिखा हुआ है।”
आरती ने जैसे ही नज़र दौड़ाई तो ढाबे के ऊपर रतन का ढाबा लिखा हुआ था। आरती की आँखों में आँसू आ गए।
आरती, “रतन… मेरे पति थे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।”
व्यक्ति, “जो भी हो, मुझे बहुत तेजी से भूख लगी है।”
इतना बोलकर वो व्यक्ति ढाबे के अंदर चला गया और आरती ने उसे खाना परोसा। खाना खाकर वो व्यक्ति उंगलियाँ चाटते हुए बोला।
व्यक्ति, “खाने तो मैंने बहुत सारे खाए, लेकिन इतना लजीज खाना मैंने आज तक नहीं खाया, भाई। तुम शायद मुझे जानती नहीं हो कि मैं कौन हूँ?
मैं यहाँ का एस.पी. हूँ। मैं तुम्हारे ढाबे का इश्तिहार, अखबारों और टीवी में जरूर दूँगा।
आखिर लोगों को पता लगे कि हमारे इंडिया में भी जापान जैसे ढाबे बने हुए हैं। अगर तुम्हें कोई भी दिक्कत हो तो मुझे फ़ोन करना।”
इतना कहकर वो व्यक्ति अपना कार्ड देकर वहाँ से चला गया। अगले दिन से आरती के ढाबे पर ग्राहकों की लाइन लगने लगी और आरती के पास पैसा बरसने लगा।
अब सम्पत के ढाबे पर सन्नाटा छाया रहता था। सम्पत क्रोधित होकर मुखिया के पास जाकर बोला।
सम्पत, “मुखिया जी, आज नौबत यहाँ तक आ गई कि मेरे ढाबे पर कुत्ते लोट रहे हैं।”
मुखिया, “तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ, सम्पत?”
सम्पत, “ज्यादा बातें मत बनाइए, मुखिया जी। जल्दी से कुछ कीजिए नहीं तो मैं तुम्हारी और ज़मींदार की पोल सारे गांव के सामने खोल दूँगा।”
मुखिया, “मेरे सामने ज्यादा ज़ुबान चलाने की जरूरत नहीं है, सम्पत, बता रहा हूँ। मत भूल कि तू भी फंस जाएगा।
तूने जानबूझकर रतन को उस बेकार ट्रक को शहर ले जाने के लिए कहा और उस बेचारे की मौत हो गई। तू पहले से जानता था कि उस ट्रक में ब्रेक नहीं है, हां?”
सम्पत, “पर ऐसा करने के लिए मुझे किसने कहा था? तुमने, मुखिया जी, तुमने!
और तो और तुमने मुझसे वादा किया था कि आरती का मकान बेचने के बाद तुम मुझे कुछ हिस्सा दोगे? वो हिस्सा भी अभी तक मेरे पास नहीं आया।”
मुखिया, “ज्यादा बातें मत बना, सम्पत! तू कोई दूध का धुला हुआ नहीं है, समझा? जब से तुझे पता लगा था कि रतन गांव में खुद का ढाबा खोलने की सोच रहा था, तू तभी से उसे अपने रास्ते से हटाने की सोच रहा था।
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और वैसे भी तू क्या जाने राजनीति क्या होती है रे? अरे, सारा का सारा झगड़ा आरती के मकान का ही था जो हाईवे के पास बना हुआ था।
मुझसे भी मेरे दोस्त ज़मींदार ने ऐसा सब कुछ करने के लिए कहा था। मेरे पास भी अभी मेरा हिस्सा नहीं आया, समझे?”
तभी वहाँ पर ज़मींदार आ गया और उन दोनों से बोला।
ज़मींदार, “अरे! तुम दोनों एक नंबर के मूर्ख हो। सम्पत, तुम्हारा ढाबा क्या चलना बंद हुआ? तुम अपनी औकात पर उतर आए।”
मुखिया, “ज़मींदार, आरती के दिन अब बदल चुके हैं, समझे? उसका ढाबा पूरे देश भर में प्रसिद्ध हो चुका है।
अगर कहीं आरती अपनी औकात पर उतर आई तो कभी सोचा है कि तुम्हारा, मेरा और सम्पत का क्या होगा?”
जमींदार, “आज रात हम तीनों मिलकर आरती का गेम समाप्त कर देंगे और उसके अंडा ढाबे पर कब्जा भी कर लेंगे, समझे?”
रात के वक़्त वो तीनों हथियारों से लैस होकर आरती के ढाबे के अंदर घुस गए। उन तीनों को देखकर आरती बुरी तरह से चौंक गई।
आरती, “तुम तीनों मेरे ढाबे में क्या कर रहे हो?”
सम्पत, “तेरी वजह से मेरा ढाबा चलना बंद हो गया है।”
आरती, “मेरी वजह से? ईश्वर सबको अपने-अपने नसीब का देता है।”
सम्पत, “अरे! जब मुझे पता लगा था कि तेरा पति ढाबा खोलने की फ़िराक में है, तब मैंने ही उसे जानबूझकर उस ख़राब ट्रक में शहर भेजा था और उसके ब्रेक फेल कर दिए थे।”
जमींदार, “सिर्फ इतनी सी बात नहीं है आरती, तुम्हारे हाईवे पर बने हुए मकान पर मेरी बहुत टाइम से नज़र थी, तो हम तीनों ने मिलकर एक तीर से दो निशाने लगाए हैं।
तुम्हारे पति की मौत हो जाने के बाद मैंने ही मुखिया को तुम्हारे घर पर भेजा था। यहाँ तक कि तुम्हारे ढाबे पर जो ग्राहक तुम्हें गालियाँ बककर गए थे ना,
वो कोई ग्राहक नहीं थे, बल्कि मेरे ही आदमी थे। मैं तुम्हारे मकान पर कब्जा करना चाहता था।”
आरती मुखिया की ओर देख कर बोली।
आरती, “मुखिया जी, आप से तो मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। आपकी नजर किस चीज पर थी?”
दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!