हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” चोर मुखिया ” यह एक Hindi Fairy Tales है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bed Time Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
Chor Mukhiya | Hindi Kahaniya | Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales
एक बार की बात है… बहुत समय पहले सेठपुरी नाम का एक गांव हुआ करता था। उस गांव में माँ काली का एक बहुत पुराना मंदिर था।
वो मंदिर वहाँ के लोगों के लिए बहुत ही खास था क्योंकि उस मंदिर को वहाँ के राजा के पूर्वजों ने बनवाया था। हर साल वहाँ एक विशेष दिन पर पूजा का आयोजन होता था।
राजा हर साल उस पूजा का आयोजन करते थे। इस बार भी पूरा गांव पूजा की तैयारियों में लगा हुआ था।
सरपंच,” जल्दी करो ये सब, परसों पूजा है। ये सारी मालाएं तैयार करके ले जाना भी है भाई। “
सरपंच की पत्नी,” चिंता मत करिये, सब काम समय पर हो जायेगा। आप ये लीजिये, शरबत पीजिये। “
सरपंच,” इसी की जरूरत थी मुझे। मज़ा आ गया। तुम ऐसा करो सारी जरूरतों का सामान एक बार ध्यान से सूची में देख लो ताकि समय पर पता चल जाए कि किसी चीज़ की कोई कमी तो नहीं है। ” “
सरपंच की पत्नी,” ठीक है। “
तभी राजा का एक दरबारी सरपंच के घर पर आता है।
दरबारी,” सरपंच जी…। “
सरपंच,” हाँ, आज कौन सी खबर लाये हो चाचाजी ? “
दरबारी,” ये लीजिये, राजमहल से संदेश आया है। “
इतने में नंदू (सरपंच का साला) घर पर आ जाता है।
नंदू,” जीजा जी, क्या हुआ ? “
सरपंच,” महल से पत्र आया है कि वो सभी पूजा के दिन सुबह पहुँच जाएंगे। “
नंदू,” तब तक तो हमें सारी तैयारियां पूरी कर लेनी चाहिए।
लगता है इस बार भी पिछले वर्ष की तरह बहुत सारा धन चढ़ाया जाएगा। काश ! महाराज वो सारा धन हमें दे देते तो कितना सुकून मिलता ? “
सरपंच,” इस दिल को सुकून तो तब मिलेगा जब सारी तैयारियां समय पर पूरी हो जाएगी। वरना महाराज हमें छोड़ेंगे नहीं।
और सुनो… जो भी चढ़ावा आता है सब देवी माँ का है, उसके बारे में सोचना भी पाप है। समझे..? तुम ऐसा करो, जाकर हलवाई के यहाँ देखकर आओ कि प्रसाद के लिए लड्डू पूरे बने या नहीं। “
नंदू,” ठीक है। “
नंदू हलवाई से मिलने के लिए घर से बाहर सड़क पर निकला ही था कि तभी उसे एक आदमी दिखा।
नंदू,”अरे ! किसका चेहरा देख लिया ? “
आदमी,” मुझे ऐसा मत बोलो भाई, मैं तो अच्छा हूँ। “
नंदू,” अरे पागल ! हट जा रास्ते से। “
आदमी,” मुझे पगला क्यों बोला ? मैं पागल नहीं हूँ। माँ बोलती थी मैं प्यारा हूँ। “
नंदू,”:तू जो भी है, अभी हट सामने से। “
आदमी,” भूख लगी है, कुछ खाने को दे दो। “
नंदू,” ये ले, खालिओ। लेकिन अब हट सामने से। “
थोड़ी देर में नंदू नाथूलाल हलवाई की दुकान पर पहुंचता है।
नंदू,” अरे भाई नाथूलाल ! काम पूरा हुआ या नहीं ? “
नाथूलाल,” हो गया बस एक टोकरी बाकी है। “
नंदू,” चलिए ठीक है, शाम को हमारे आदमी सामान लेने आ जाएंगे। “
नाथूलाल,” ठीक है, तब तक तो पूरा भी हो जाएगा। “
इसके बाद नंदू पुजारी के पास जाता है।
नंदू,” पंडित जी, सारी तैयारियां हो गयी पूजा की ? “
पंडित,” हाँ हाँ, हो गयी। महाराज कब तक आ जाएंगे, कोई समाचार आया ? “
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नंदू,” हाँ, जीजा जी ने बताया था वो पूजा की सुबह पहुँच जाएंगे। अब मैं चलता हूँ। “
पंडित अपने घर चला जाता है।
पंडित,” सुनो भाग्यवान… महाराज परसों सुबह पहुँच जाएंगे। तुम सारी सामग्री सही से रख देना। “
पंडिताइन,” ठीक है। पर सुनिए… बच्चों को भी ले जाईयेगा। उन्हें आगे खड़ा करना। क्या पता महाराज खुश होकर उन्हें भी कुछ दे दे ? “
पंडित,” तुम भी ना… ठीक है, ले जाऊंगा। “
और आखिरकार वो दिन आ ही गया जब सब मंदिर की तरफ जाने लगे।
सरपंच,” जल्दी चलो भाग्यवान, महाराज पहुंचते होंगे। दंड दिलवाना है क्या अपने पति को ? “
कुछ देर बाद सरपंच और उसकी पत्नी दोनों मंदिर पर पहुंच जाते हैं।
सरपंच,” महाराज पहुँच गए क्या ? “
दरबारी,” नसीब अच्छा है आपका, अभी नहीं पहुंचे। “
सरपंच,” बच गया। “
दरबारी,” इतनी देर कैसे हो गयी ? इसलिए कहता हूँ थोड़ा शरीर का ध्यान रखिए। कब तक ऐसे हांफ्ते रहेंगे ? जल्दी चलिए। वो देखिये आ गये महाराज। “
सरपंच,” प्रणाम महाराज ! प्रणाम महारानी ! “
राजा,” कैसे हो जगमोहन (सरपंच) ? “
सरपंच,” आपकी दया है महाराज। “
राजा,” गांव में सब ठीक तो है ना ? कोई समस्या तो नहीं है ना ? “
सरपंच,” नहीं महाराज, होती तो हम आपको जरूर बताते। “
राजा,” ठीक है। “
पंडित,” चलिए महाराज, पूजा का समय हो रहा है। “
राजा,” प्रणाम पंडित जी प्रणाम ! आइये..। “
महाराज पंडित को धन की पोटली देते हुए कहते हैं।
राजा,” ये लीजिये पंडित जी, माता रानी को ये नये गहने पहना दीजिये। “
पंडित,” जी महाराज। महाराज, आप बहुत गुणी राजा हैं ।माता रानी आप पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें। “
राजा,” ये लीजिये पंडित जी, आपके लिए और ये आपकी पत्नी और पुत्र के लिए। “
पंडित,” धन्यवाद महाराज ! आपका कल्याण हो राजन। “
मंत्री,” चलिए महाराज, अब हमें महल की ओर प्रस्थान करना चाहिए। अभी निकलेंगे तभी समय से पहुँच पाएंगे। “
राजा,” ठीक है, आप जाने की व्यवस्था करिए। “
राजा,” चलिए अब हम चलते हैं। “
राजा,” कोतवाल, अपना काम सही से कर रहे हो ना ? “
कोतवाल,” जी महाराज। “
राजा,” ठीक है, अब हम चलते हैं। “
राजा के जाने के बाद पंडिताइन आती है।
पंडिताइन,” ये देखिये, कितने सारे गहने ? घर चलिए, मुझे सारे गहने पहनने हैं। “
पंडित,” तुम भी ना… सब्र नाम की कोई चीज़ है कि नहीं ? ठीक है, चलो। “
नंदू,” कौन कहेगा कि इस मंदिर में इतना सारा धन है ? काश ! वो सब मेरा हो जाता है। “
इतने में पंडित दोबारा मंदिर की ओर आता है और नंदू से कहता है।
पंडित,” अरे नंदू तुम..? “
नंदू,” गुजर ही रहा था सामने से बस माता को नमन करने रुक गया। “
पंडित,” अच्छा किया। “
नंदू,” चलिए अब मैं चलता हूँ। “
इतनी में वहां लड्डू (पागल आदमी) आ जाता है।
पंडित,” अरे लड्डू ! तू..? “
लड्डू,” प्रणाम पंडित जी ! “
पंडित,” प्रणाम प्रणाम ! “
लड्डू,” मुझे प्रसाद नहीं मिला, आप मुझे दे दो। “
पंडित,” ठीक है। रुको… ये लो। “
चोर चोरी की योजना बनाते हुए…
चोर,” काम हो जाएगा सरदार। आज से ठीक दस दिन बाद जब सारा गांव सो रहा होगा। “
चोर सरदार,” सही कहा तुमने। अभी तुम लोग जाओ यहाँ से। याद रहे… बक्सा सही सलामत ले आना तुम लोग।
समझ गए ना..? वो बक्सा किसी के हाथ न लगने पाये। “
चोर,” बेफिक्र रहिए सरदार। “
जहाँ एक ओर चोर चोरी की तैयारियां कर रहे थे वहीं दूसरी ओर गांव वाले अपनी फसल पकने का इंतजार कर रहे थे।
गोपाल,” भाग्यवान… ओ भाग्यवान ! जल्दी चलो। याद है ना… आज फसल की कटाई शुरू करनी है ? “
गोपाल की पत्नी,” आप चलिए, मैं घर का सारा काम निपटा कर खेत पहुँचती हूँ। “
इसके बाद गोपाल फसल की कटाई के लिए खेत चला जाता है और खेत पहुँचकर मन से कटाई करने लग जाता है।
इसी तरह गांव वाले अपने कामों में व्यस्त थे कि एक रात चोरों की टोली मंदिर में चोरी करने आ पहुँची।
चोर,” सरदार, सारी तैयारी हो चुकी है। अगर आप आदेश दें तो अंदर जाएं ? “
चोर सरदार,” ठीक है। लेकिन सब लोग होशियार है रहना। समझ गए ना..? “
चोर,” जी सरदार। “
चोर बिना शोर किए मंदिर के सारे गहने एक बक्से में भरकर ले जाते हैं।
अगली सुबह…
आदमी,” सरपंच जी, उठिये। “
सरपंच,” क्या हुआ..? “
आदमी ,” चोरी। “
सरपंच,” चोरी… कैसे चोरी ? “
आदमी,” मंदिर में चोरी हो गयी है। “
सरपंच,” महाराज को पता तो नहीं चला ना ? उन्हें पता चला तो बहुत क्रोधित होंगे। “
थोड़ी देर बाद पंडित, कोतवाल और गांव के कुछ आदमी सरपंच के घर पहुंच थे हैं।
सरपंच,” किसने की चोरी..? “
कोतवाल,” हमें नहीं पता सरपंच जी। सुबह पंडित जी पूजा करने आये तो गहने गायब थे। “
सरपंच,” ये बात किसी को मत बताना वरना पूरे गांव को पता चल जाएगा कि मंदिर में चोरी हुई है। और अगर महाराज को पता चला तो हम गए। इसलिए सभी इस बात का ध्यान रखेंगे। “
कोतवाल,” आपको क्या लगता है सरपंच जी, ये चोरी किसने की होगी ? “
सरपंच,” मुझे लगता है ये उन्हीं चोरों का काम है। आप तो जानते ही हैं कि कई महीनों से हमारे इलाके में चोरी हो रही है।
तुम जाओ और चोर को पकड़ो। “
कोतवाल,” जी, सरपंच जी। “
सरपंच,” तुम्हें क्या हुआ नंदू ? “
नंदू,” कुछ नहीं बस गर्मी की वजह से बेचैनी हो रही है। “
सरपंच,” ठीक है। सब घर जाइए और ध्यान रखना किसी को पता ना चले कि मंदिर में चोरी हो गयी। “
ये बात लड्डू सुन लेता है।
लड्डू (पूरे गांव में घूमते हुए),” मंदिर में चोरी हो गयी, मंदिर में चोरी हो गयी। चोर हमारा भाग गया, चोरी करके भाग गया। “
औरत,” क्या..? चोरी हो गयी मंदिर में ? तुम्हें कैसे पता ? “
लड्डू,” मैंने सरपंच जी को कहते सुना। वो बोले मत बताना किसी को, मत बताना। किसी को भी नहीं वरना राजा मरेगा। “
औरत,” तू सच बोल रहा है ? “
लड्डू,” सच बोल रहा हूँ, सच बोल रहा हूँ। “
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वो औरत तुरंत अपनी पड़ोसन को जाकर ये बात बताती है।
औरत,” तुझे पता है मंदिर में चोरी हुई है ? पूरे गहने चोरी हो गए। “
दूसरी औरत,” क्या बोल रही है तू ? हे भगवान ! कितने कीमती थे वो ? “
औरत,” हाँ बहन, चलो मैं चलती हूँ। “
वह औरत तुरंत अपने पति को ये बात बताती है।
औरत,” सुनिए जी… आपको पता है मंदिर में चोरी हुई है ? “
आदमी,” तुम्हें किसने बताया ? “
औरत,” शारदा ने। “
आदमी,” ये तो बहुत बुरी खबर है। खैर अब क्या कर सकते हैं ? चलो मैं काम पर निकलता हूँ। “
वह आदमी अपने खेतों में काम करने निकल जाता है। खेत पर उसे दूसरा आदमी मिलता है।
आदमी,” तुम्हें पता है मंदिर में चोरी हुई है ? “
दूसरा आदमी,” हे भगवान ! ये तो हद ही हो गयी। उस चोर को रत्तीभर शर्म नहीं आई मंदिर में चोरी करते हुए ? पहले भी चोरी होती थी, अब तो मंदिर को नहीं छोड़ा इन चोरों ने। “
आदमी,” सही कह रहा है भाई। चलो काम करते हैं वरना मालिक गुस्सा करेंगे। “
कोतवाल के घर पर…
कोतवाल की पत्नी,” सुनिए… आपको पता है मंदिर में चोरी हुई है ? पूरा गांव सिर्फ इसी बारे में बात कर रहा है। “
कोतवाल,” तुम्हें कैसे पता चला ? “
कोतवाल की पत्नी,” वो… नदी किनारे कुछ औरतें बात कर रही थी तो मैंने सुन लिया। “
कोतवाल,” ठीक है। लेकिन तुम किसी को मत बताना। “
तभी कोतवाल के घर पर नंदू आता है।
नंदू,” पूरे गांव को पता चल गया है कि मंदिर में चोरी हो गयी है। “
कोतवाल,” तुमने ये सब सरपंच जी को बताया ? “
नंदू,” नहीं, सोचा पहले आपसे बात कर लूं। “
कोतवाल,” चलो सरपंची के पास चलते हैं। वही कोई रास्ता दिखाएंगे। “
दोनों सरपंच के घर जाते हैं।
नंदू,” जीजा जी…। “
सरपंच,” हाँ, क्या हुआ ? “
नंदू,” पूरे गांव को पता चल चुका है चोरी के बारे में। अब क्या होगा ? “
कोतवाल,” हां सरपंच जी, मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि पूरा गांव इस बारे में बात कर रहा है।
हमने तो अभी तक चोर को पकड़ा भी नहीं है। महाराज को पता चला तो हमें अपने अपने पदों से हाथ धोना पड़ेगा। “
सरपंच,” आप सब फिलहाल अपने अपने घर जाइए। मैं देखता हूँ कि क्या कर सकता हूँ ? “
नंदू और कोतवाल के जाने के बाद एक आदमी दौड़ता दौड़ता सरपंच के घर पर आता है।
आदमी,” सरपंच जी, महाराजा आये है। “
सरपंच,” क्या… महाराज ? ये कैसे हो सकता है ? महाराज तो चले गए थे ना ? लगता है उन्हें किसी ने इन सारी बातों के बारे में बता दिया है। “
आदमी,” आपको तुरंत बुलाया है। “
महल में पहुंचकर…
सरपंच,” प्रणाम महाराज ! “
राजा,” ये मैं क्या सुन रहा हूँ, मंदिर में चोरी हो गयी ? कौन है वो जिसने ये किया हैं ? “
मंत्री,” रुकिए महाराज, हम अभी पता करते हैं किसने चोरी की है ? “
मंत्री ने एक कुत्ते को बक्से से कोई चीज़ सुंघाई और उसके बाद कुत्ता आगे बढ़ने लगा। वह कुत्ता एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गया और भौंकने लगा।
मंत्री,” खुदाई करो यहाँ पर। “
सैनिक,” यहां कुछ भी नहीं है। “
सरपंच,” आप ये सब क्या कर रहे हैं मंत्री जी ? आप हम पर शक कर रहे हैं ? हम ऐसा काम क्यों करेंगे ? “
राजा,” चलिए यहाँ से मंत्री जी। “
मंत्री,” महाराज, एक बार और जांच कर लेते हैं। ये कुत्ता कोई साधारण कुत्ता नहीं है। इसे बरसों का प्रशिक्षण प्राप्त हैं। जरूर कोई बात है। “
कुत्ता एक बार फिर आगे बढ़ने लगता है और एक कुएं के पास रुककर भौंकने लगता है।
सरपंच,” यहाँ कुछ नहीं है महाराज। मैं भला…। “
सैनिक,” ये देखिये, हमें क्या मिला ? “
लड्डू,” पकड़ा गया, पकड़ा गया। “
मंत्री,” आपका काम खत्म हुआ मुख्य सलाहकार जी। “
नंदू,” मुख्य सलाहकार..? “
मंत्री,” हाँ, मैंने और इन्होंने शर्त लगाई थी कि कौन इस गांव के चोर को पहले पकड़ेगा ? बस इसलिए हमारे मुख्य सलाहकार जी ने ये सब योजना बनाई थी। “
राजा,” ये सब क्या हो रहा है ? “
सलाहकार,” मैं बताता हूँ महाराज। चोर इस गांव में सोने के गहने चुराकर उसकी जगह नकली गहने रख रहा था।
इस बात का शक हमें तब हुआ जब मैं पिछली बार देवी माँ के दर्शन के लिए गया था। आप तो जानते है, गहने बनवाने की जिम्मेदारी मेरी रहती है।
तो भला मैं कैसे असली और नकली का भेद भूल सकता हूँ ? तब मैंने और मंत्री जी ने एक योजना बनाई कि कौन इस चोर को पहले पकड़ेगा ?
बस हम दोनों लग गए काम पे। उन्होंने गहनों पर एक प्रकार का रसायन लगा दिया जिससे सरपंच जी उर्फ ये हमारे चोर जी पकड़े गए।
लेकिन महाराज कहानी यहाँ खत्म नहीं होती। इस कहानी में एक और चोर भी शामिल है… हमारे कोतवाल साहब। “
सलाहकार,” क्यों कोतवाल जी..? “
कोतवाल,” मैंने कुछ नहीं किया महाराज, मैंने कुछ नहीं किया। “
सलाहकार,” अरे ! ऐसे कैसे ? “
सलाहकार,” हम बताते है महाराज। इन्होंने भी इस बार चोरी की योजना बनायी। असली गहनों की चोरी हो जाने के बाद इन्होंने मंदिर में पहुँचकर नकली गहनों की चोरी कर ली।
हमें शुरुआत से तो केवल सरपंच और नंदू पर शक था। मैंने पंडित जी के साथ मिलकर पहले के हर वर्ष के गहनों की जांच करवाई तब पता चला कि वो सारे भी नकली हैं।
लेकिन बाद में जब नकली गहनों की चोरी हो गयी तब मैं समझ गया कि चोर दो अलग अलग इंसान हैं।
और हमारे कोतवाल साहब को पकड़ना थोड़ा आसान हो गया क्योंकि कोतवाल साहब अपनी कमर में एक घंटी बाधा करती थे। चोरी करते वक्त भी बांधकर ही आ गए।
लेकिन असली चोर यानि कि हमारे सरपंच जी को तो मंत्री जी की सूझबूझ से ही पकड़ पाए। अगर रसायन लगाने का सुझाव ना देते तो इन्हें पकड़ना बहुत मुश्किल होता। “
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राजा,” बहुत खूब… हमें बहुत खुशी है कि हम आप जैसे बुद्धिमान लोगों के साथ काम करते हैं। महल लौटकर हम आप दोनों को पुरस्कृत करेंगे।
राजा,” और सैनिकों सरपंच नंदू और कोतवाल को कैद कर लो और इन्हें करवा में डाल दो। अब इनकी सजा वहीं पूरी होगी। “
उस दिन के बाद से उस गांव में गहनों की चोरियां बंद हो गयी और सभी लोग खुशी से अपना जीवन बिताने लगे।
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