अनपढ़ बहू और वकील सास | Anpadh Bahu Aur Vakeel Saas | Saas Bahu | Saas Bahu Ki Kahani | Saas Bahu Story

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” अनपढ़ बहू और वकील सास ” यह Saas Bahu Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Family Stories या Saas Bahu Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


प्रेमसुख,”देखो माधुरी, वकील तुम कोर्ट के अंदर हो, यहाँ घर पर नहीं।”

माधुरी, “और आप भी जज कोर्ट के अंदर हैं, यहाँ घर पर नहीं। इस घर में मैं ही वकील हूँ और मैं ही जज।”

प्रेमसुख, “तुमसे बात करना ही बेकार है।”

इतने में उन दोनों का बेटा, वरुण वहाँ पर आ जाता है और उन दोनों को लड़ाई करता देख चुपचाप सोफे पर बैठ जाता है।

अचानक सारे लोग शांत हो जाते हैं और एक-दूसरे का मुँह देखने लगते हैं।

वरुण, “अरे! आप लोग इस तरह मेरी तरफ क्यों घूर रहे हैं? ऐसा लग रहा है कि एक तरफ वकील है, एक तरफ जज और मैं कटघरे में खड़ा अपराधी।”

वरुण के इतना बोलते ही उसके माँ-बाप ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगते हैं।

माधुरी, “अरे बेटा! माँ तेरी वकील और पिता तुम्हारे जज हैं। हम दोनों नॉर्मल बातें भी करेंगे तो तुझे लगेगा कि यहाँ पर सुप्रीम कोर्ट का पूरा माहौल बन चुका है।”

वरुण, “अरे! मैं आप दोनों की ज़ोर-ज़ोर से आवाजें सुनकर ही यहाँ आया था। मैंने सोचा आप दोनों की कोई बहस चल रही है।”

प्रेमसुख, “हाँ बेटा, बहस चल रही थी और वो भी तेरी शादी को लेकर।”

माधुरी,”वरुण, वो एक सीनियर वकील हैं ना। उनकी बेटी बहुत ज्यादा समझदार, बहुत ही ज्यादा मॉडर्न और पढ़ी-लिखी है। अगर तू कहे तो मैं शादी की बात आगे बढ़ाऊँ?”

इससे पहले कि वरुण इस बारे में कुछ बोल पाता, घर की डोर बेल बज जाती है।

वरुण दरवाजा खोलता है तो देखता है कि खाना बनाने वाली सुलेखा आई हुई होती है।

सुलेखा, “नमस्ते मालिक, नमस्ते मालकिन।”

माधुरी, “आओ सुलेखा, आओ जल्दी कुछ बना दो, हम लोगों को बहुत जोरों की भूख लगी है।”

सुलेखा, “जी मालकिन।”

इतना कहकर सुलेखा किचन की तरफ चली जाती है।

वरुण, “माँ-पिताजी, आप लोग बातें करो। मुझे ज़रा ऑफिस का काम करना है, मैं अपने कमरे में जाता हूँ।”

इतना कहकर वरुण अपने कमरे में चला जाता है।

माधुरी, “इस लड़के से जब भी शादी की बात करो, कोई न कोई बहाना बनाकर चला जाता है।”

सुलेखा खाना बना रही होती है कि तभी किचन में चुपके से वरुण आ जाता है।

वरुण, “क्या बना रही हो मेरी रानी?”

सुलेखा, “धीरे बोलो, वरना आपके माता-पिता सुन लेंगे तो क्या सोचेंगे?”

वरुण, “अरे! सोचने दो जो सोचना है। अब मैंने फैसला कर लिया है, मैं घर वालों को सारी सच्चाई बताने वाला हूँ क्योंकि घर वाले मुझ पर शादी का प्रेशर दे रहे हैं।”

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सुलेखा, “मुझे लगता है आपके माँ-बाप आपकी शादी मेरे साथ नहीं होने देंगे। आप लोग कितने पढ़े-लिखे हो?

कितनी बड़ी फैमिली है आप लोगों की? और मैं ठहरी एक विधवा माँ की गरीब और कम पढ़ी-लिखी लड़की।”

वरुण, “अरे! तुम ऐसा क्यों सोचती हो? हर किसी को एक समझदार और संस्कारी लड़की चाहिए होती है और तुम बहुत अच्छी हो। मैं तो तुमसे ही शादी करूँगा।”

उन दोनों की ये बातें वरुण के माँ-बाप चुपके से सुन रहे होते हैं लेकिन वहाँ पर कुछ नहीं बोलते। वो दोनों अपने कमरे में जाकर उस बारे में बात करते हैं।

माधुरी, “देख रहे हैं आप? आप शहर के बहुत बड़े जज बनते हैं, कोई सुनेगा कि आपने अपने घर की नौकरानी को ही अपनी बहू बना लिया, तो क्या सोचेंगे लोग?”

प्रेमसुख, “क्या सोचेंगे मतलब..? अच्छा ही सोचेंगे। लोग सोचेंगे कि इतने बड़े जज होने के बावजूद एक साधारण सी लड़की को अपनी बहू बना ली।”

माधुरी, “देखिए, मैं मानती हूँ कि सुलेखा एक अच्छी और सुलझी हुई लड़की है, लेकिन एक गवार लड़की को हम लोग अपने घर की बहू कैसे बना सकते हैं?”

प्रेमसुख, “तुम्हें याद है माधुरी, हम जितनी बाहर भी वरुण से शादी की बात करने की कोशिश करते हैं, उतनी बार ही वो टाल देता है?

अब पता चला कि वो सुलेखा से प्यार करता है। इसी वजह से शादी से दूर भागता था। अपने बेटे की खुशी में ही हमें खुशी देखनी चाहिए, माधुरी।”

माँ, “आपको जैसा सही लगे, कीजिए। दोनों बाप-बेटे मेरी सुनते ही कहाँ हैं?”

इस तरह से अगले दिन वरुण के माता-पिता सुलेखा की विधवा माँ कमला को अपने घर बुला लेते हैं और शादी की बात तय कर देते हैं।

माधुरी, “देखिए, वरुण की पसंद के सामने हम कुछ नहीं कह सकते। आज तक हमने वरुण को हर वो चीज़ दी है जो उसे पसंद थी, तो शादी भी उसकी पसंद की होनी चाहिए।

लेकिन सुलेखा, आज के बाद तुम इस घर में खाना नहीं बनाओगी, क्योंकि तुम अब इस घर की मालकिन बनने वाली हो।अब यहाँ काम करने के लिए कोई दूसरी आएगी।”

इस तरह से वरुण की शादी उसके घर की ही नौकरानी सुलेखा के साथ हो जाती है।

सुलेखा वरुण से शादी करके बहुत खुश है और वरुण भी सुलेखा से शादी करके बहुत खुश है।

वरुण, “देखा सुलेखा, मैंने कहा था ना कि मेरे माता-पिता बहुत अच्छे हैं। वे शादी के लिए मान जाएंगे।”

सुलेखा, “मैं भी कितनी खुशनसीब हूँ जो मुझे आप जैसा पति मिला और इतना बड़ा परिवार भी?”

सुलेखा की सास चुपके चुपके उन लोगों की बातें सुन रही होती है।

माधुरी, “हाँ हाँ, तू तो खुशनसीब होगी ही बहू। एक अनपढ़ बहू होने के बावजूद इतना अमीर और बड़ा परिवार मिल गया।

लेकिन अब मुझे सोसाइटी वालों की नजरों से खुद को बचाते हुए निकलना पड़ेगा, वरना लोग मुझे नौकरानी की सास कहकर चिढ़ाएंगे।”

माधुरी अपने पति के साथ कार में बैठकर कोर्ट चली जाती है।इधर सुलेखा अपने कमरे में साड़ी पहन रही होती है, तभी पीछे से वरुण आ जाता है।

वरुण, “सुलेखा, तुम ना सलवार-सूट पहना करो। सलवार-सूट में तुम बहुत प्यारी लगती हो।”

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सुलेखा (गाना गाते हुए), “जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे, जो तुमको हो पसंद, वही कपड़े पहनेंगे।”

सुलेखा सलवार-सूट पहन लेती है। शाम को जब उसके माँ-बाप वापस आते हैं, तब माधुरी गुस्सा करने लगती है।

माधुरी, “सुलेखा, ये क्या पहन रखा है तुमने? तुम इतनी भी गवार नहीं हो कि तुम्हें ये ना पता हो कि शादी के बाद कुछ दिन सिर्फ साड़ी पहनी जाती है, ना कि सलवार-सूट। शादी के 2 दिन भी नहीं हुए और तुम सलवार-सूट पहन आईं?”

सुलेखा, “मुझे माफ़ कर दीजिए, माँ जी। मैं अभी जाकर बदल लेती हूँ।”

माधुरी, “अगर गलती करने पर मैं हर किसी को माफ़ करने लगूँ, तो ना जाने कितने मुजरिम, ना जाने कितने कातिल आजाद घूमने लगेंगे।”

प्रेमसुख, “छोटी सी बात को इतना बड़ा क्यों बना रही हो?”

माधुरी,”कोई बात छोटी या बड़ी नहीं होती। हर बात छोटी होती है और हर बात बड़ी भी होती है।

हम जिस सोसाइटी में रहते हैं, उस सोसाइटी में शादी के तुरंत बाद साड़ी नहीं पहनी जाती है।”

सुलेखा साड़ी पहन लेती है। वरुण सुलेखा से माफी मांगता है क्योंकि उसकी वजह से उसे ये सब सुनना पड़ा।

वरुण, “माफ़ करना सुलेखा, मेरी वजह से तुम्हें ये सब सुनना पड़ा। तुमने माँ को बताया क्यों नहीं कि मेरे कहने पर तुमने ड्रेस बदली थी?”

सुलेखा, “अरे! छोड़िए ना, उन बातों को तो मैं कब की भूल चुकी हूँ?”

अगले दिन जब माधुरी कोर्ट जा रही होती है, तभी सुलेखा अपने साथ ससुर के लिए टिफिन पैक करके लाती है और उन्हें दे देती है।

सुलेखा, “तुम गंवार लोग कोई भी काम टाइम पर नहीं कर सकते क्या? पूरे 10 मिनट लेट हो गए हम लोग।”

सुलेखा, “सॉरी माँ जी, गलती हो गई।”

माधुरी टिफ़िन लेकर कोर्ट चली जाती है। इधर सुलेखा बालकनी में खड़ी होकर बाहर का नजारा देख रही होती है।

तभी उसकी नजर एक बच्चे पर जाती है, जो सड़क पर खेल रहा होता है। और तभी सामने से एक ट्रक बहुत ही तेज गति के साथ आ रहा होता है।

सुलेखा चिल्लाती रहती है, लेकिन कोई नहीं सुनता।

सुलेखा, “अरे! बच्चे को बचाओ, कोई बच्चे को बचाओ।”

सुलेखा भागकर घर के बाहर जाती है और उस बच्चे को बचा लेती है। उसे बचाते वक्त सुलेखा को चोट लग जाती है।

पूरा मोहल्ला घर के बाहर आ जाता है और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर उस ट्रक वाले को रोकने की कोशिश करता है, पर वो नहीं रुकता और भाग जाता है।

पड़ोसी, “क्या बात है बिटिया रानी, तुम तो अपने सास-ससुर से ज्यादा हिम्मत वाली निकली।”

बच्चों की मां, “तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद! आज तुमने मेरे बेटे की जान बचा ली।”

सुलेखा बच्चे को उसकी माँ को पकड़कर सुलेखा घर वापस आ जाती है। शाम को जब वरुण वापस आता है, तब सुलेखा उसे सारी बात बताती है।

वरुण, “आई एम सो प्राउड ऑफ़ यू, सुलेखा। लेकिन तुम्हें तो खरोच लग गई है, चलो डॉक्टर के पास।”

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वरुण उसे हॉस्पिटल लेकर जाता है। रात में जब माधुरी और उसका पति सिन्हा अपनी कार से अपने घर की तरफ आ रहे होते हैं, तभी माधुरी अपना चेहरा फाइल से छुपा लेती है।

प्रेमसुख, “माधुरी, तुम अपना चेहरा क्यों छुपा रही हो?”

माधुरी, “जब से वरुण की शादी हुई है, सोसाइटी वाले मुझे अजीब नजरों से देखने लगे हैं।

सभी की बहू पढ़ी-लिखी है, किसी ना किसी कंपनी में जॉब करती है, पर मेरी बहू अनपढ़ है। मेरी नाक कट गई।”

इतने में माधुरी देखती है कि उसकी कार के पास पूरे सोसाइटी वाले इकट्ठा हो रहे हैं।

प्रेमसुख, “इतने सारे लोग हमारी गाड़ी के सामने क्यों इकट्ठा हुए हैं?”

माधुरी, “इस गवाह ने फिर कोई ना कोई हरकत कर दी होगी। कंप्लेंट लेकर आए होंगे ये लोग हमारे पास। मैं कार में ही बैठी हूँ, आप ही बात करो मोहल्ले वालों से।”

प्रेमसुख कार से बाहर आते हैं और सोसाइटी वालों का सामना करते हैं। माधुरी चुपके से उन लोगों की बातें सुन रही होती है।

प्रेमसुख, “क्या हुआ भाई साहब, हम लोगों से कोई गलती हो गई?”

दीक्षित जी, “आज आपकी बहू ने वो कर दिखाया जो शायद कोई ना करता। इस सोसाइटी में बहुत सारे पुलिस ऑफिसर्स के बेटे, बहुत सारे बॉडी बिल्डर रहते हैं। उन लोगों ने भी ऐसा कुछ नहीं किया जो आपकी बहू ने कर दिखाया।”

प्रेमसुख, “अरे! ऐसा क्या कर दिया मेरी बहू ने?”

पूरी सोसायटी मिलकर सारी कहानी जज साहब को बताती है। वो लोग उनकी बहू की खूब तारीफ करती हैं।

औरत, “हमारी पूरी जिंदगी बीत गई सिन्हा साहब, लेकिन आज के जमाने में आपकी बहू जितनी संस्कारी लड़की हमने आज तक नहीं देखी।

आप लोग बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको ऐसी बहू मिली। उसने हमारे बच्चे की जान बचाई। इस वजह से हम उसकी तारीफ नहीं कर रहे हैं, उसके आचरण सर्वश्रेष्ठ हैं इस सोसाइटी में।”

माधुरी को अपने कानों पर यकीन नहीं होता। खैर, थोड़ी देर बाद सारे सोसाइटी वाले सिन्हा साहब के घर पहुँच जाते हैं उसकी बहू से मिलने के लिए। सभी लोग उसका धन्यवाद अदा करते हैं।

सुलेखा, “आप लोग उस छोटी सी बात को बहुत बड़ा बना रहे हैं। मेरी जगह कोई भी होता, वही करता जो मैंने किया।”

माधुरी, “बहू, मुझे माफ़ कर देना। आज मुझे समझ आ गया कि सिर्फ बड़ी सोसाइटी में रहने से या बहुत बड़ा पद होने से कोई अच्छा इंसान नहीं बनता। दिल से अच्छा होना चाहिए।”

उस दिन से माधुरी, वरुण और उसके ससुर प्रेमसुख सिन्हा को अपनी बहू पर बहुत गर्व होने लगता है।

उस दिन के बाद से सुलेखा को घर में और सोसाइटी में बहुत इज्जत मिलने लगती है। सभी लोग खुशी-खुशी रहने लगते हैं।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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