अपाहिज दोस्त | Apahij Dost | Hindi Kahani | Achhi Achhi Kahaniyan | Moral Stories in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” अपाहिज दोस्त ” यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में 10 वर्षीय बसंत नाम का अपाहिज बालक रहता था। बसंत के पिता गांव के मुखिया थे।

बसंत का बड़ा भाई, बसंत को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था। इसी वजह से बसंत ज्यादातर घर के बाहर उदास रहता था।

1 दिन की बात है, बसंत गांव में उदास बैठा हुआ था कि तभी उसकी ही उम्र का आकाश वहाँ पर अचानक गिर गया।

बसंत, “अरे! क्या हुआ तुम्हें? सामने इतना बड़ा पत्थर है, तुम्हें दिखाई नहीं दिया?”

आकाश, “वो क्या है ना, मुझे आँखों से नहीं दिखता है। मैं अंधा हूँ।”

बसंत, “ये तो बैसाखी है, क्या तुम चल नहीं सकते?”

आकाश, “मुझे चलने के लिए बैसाखी की जरूरत पड़ती है।”

बसंत, “तब तो हम दोनों एक से हुए! तुम रहते कहाँ हो?”

आकाश, “मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं अनाथ हूँ।”

बसंत, “मैं अनाथ तो नहीं हूँ पर अनाथ जैसा जीवन व्यतीत कर रहा हूँ।”

आकाश, “क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?”

बसंत, “क्यों नहीं? गांव में मेरे साथ कोई नहीं खेलता, कोई मुझसे बात तक नहीं करता।”

आकाश, “आज के बाद मैं तुमसे बात करूँगा। आज से हम दोनों पक्के दोस्त हुए।”

उस दिन के बाद आकाश और बसंत में गहरी दोस्ती हो गई। मगर कुछ दिन बाद अचानक आकाश गायब हो गया।

बसंत ने उसे बहुत ढूंढ़ा, मगर वो नहीं मिला। आकाश का इंतज़ार करते हुए बसंत जवान हो गया।

1 दिन बसंत अपने कमरे में गहरी नींद सो रहा था कि तभी उसकी बड़ी भाभी गुस्से से कमरे में आ गई।

भाभी, “अरे! दोपहर के ग्यारह बज रहे हैं, लॉर्ड साहब। सब्जी नहीं लानी?”

बसंत, “क्या…? दोपहर के ग्यारह बज गए? क्षमा करना भाभी, क्या है कि कल मुझे पूरी रात नींद नहीं आई।”

भाभी, “ऐसा क्या कर रहे थे रात में कि पूरी नींद ही नहीं आई? कहीं किसी लड़की से कोई चक्कर तो नहीं हो गया?”

बसंत, “ये कैसी बात कर रही हो आप भाभी? मेरे इस तरह के संस्कार बिल्कुल नहीं हैं।”

भाभी, “तुम कोई कामकाज तो करते हो नहीं। तुम्हारा काम तो बस बैसाखी पकड़ कर इधर उधर डोलना रह गया है।”

बसंत बेचारा बैसाखी पकड़े हुए बाजार चला गया। बाजार में बसंत सौदा खरीद ही रहा था कि तभी उसका मिलने वाला एक व्यक्ति मिल गया।

व्यक्ति, “क्या हाल है बसंत भाई? आज तुम्हारा चेहरा कैसे उतरा हुआ है?”

बसंत, “अब तुम्हें क्या बताऊँ? मेरी माँ मुझे बचपन में छोड़ कर चली गई। सोचा था जब भैया की शादी हो जाएगी,

तो भाभी मुझे माँ की तरह प्रेम करेगी। मगर भाभी मुझे अपमान करने का कोई मौका नहीं छोड़ती है।”

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व्यक्ति, “तो तुम इस बात की शिकायत अपने पिता से क्यों नहीं करते? वो तो गांव के मुखिया हैं।

दूसरों की समस्या सुलझाते हैं, क्या अपने घर की समस्या नहीं सुलझा सकते?”

बसंत, “डरता हूँ, पिताजी मुझसे बहुत प्यार करते हैं। अगर उन्हें मेरे प्रति भाभी के बुरे रवैये का पता लगा, तो वो बहुत ज्यादा नाराज हो जाएंगे।

आखिर मुझे रहना तो उनके साथ ही है ना। अच्छा, मैं चलता हूँ, नहीं तो भाभी नाराज हो जाएगी”

बसंत घर चला गया। बसंत को देखकर बिंदिया आग बबूला हो गई।

बिंदिया, “ग्यारह बजे बाजार गए थे पर अब बारह बज रहे हैं। इतनी देर में तो पूरी सब्जी मार्केट खरीद कर ले आती हूँ मैं।”

बसंत, “ये कैसी बात कर रही हो आप भाभी? भाभी, आप तो जानती हैं कि मैं अपाहिज हूँ।

मैं आम लोगों की तरह जल्दी-जल्दी नहीं चल सकता। मुझे तो कदम-कदम पर इस बैसाखी की जरूरत पड़ती है।”

बिंदिया, “जुबान लड़ाता है बदतमीज़!”

इतना कहकर बिंदिया ने एक तेज झापड़ बसंत के गाल पर मार दिया।

तभी बसंत का भाई कल्लन आ गया।

कल्लन, “क्या हुआ? इतना नाराज क्यों हो रही हो? तुमने इसे थप्पड़ क्यों मारा?”

बिंदिया, “देखिए जी, ग्यारह बजे बाजार गया था, बारह बजे लौटा है। एक घंटे से इसका इंतजार कर रही हूँ मैं।”

कल्लन, “सही किया तुमने, इसके गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। वैसे भी पिताजी ने इसे बहुत ज्यादा सर पर चढ़ा रखा है।”

बसंत आँखों में आंसू लिए अपने कमरे में बैठ गया। दोपहर में उसे किसी ने खाना भी नहीं दिया। शाम को उसके पिता मुखिया उसके कमरे में आ गए।

मुखिया, “क्या बात है बसंत? इतने गुमसुम क्यों बैठे हुए हो?”

बसंत, “पिताजी, बस ऐसे ही। कुछ सोच रहा था।”

मुखिया, “बसंत, मैं तुम्हारी आँख पढ़ सकता हूँ। तुम्हारी आँखों को देखकर मैं समझ गया कि किसी ने तुमसे कुछ कहा है और तुम भूखे भी लगते हो।”

बसंत, “मैं क्या करूं पिताजी? भाभी हमेशा मुझसे बगैर किसी बात के झगड़ा करती रहती है।”

मुखिया, “तो तुम इसलिए उदास बैठे हुए हो, बसंत? अपनी भाभी की बात पर ज्यादा ध्यान मत दिया करो।”

बसंत, “पिताजी, मैं उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। मगर आज भाभी ने मुझे बगैर किसी गलती के थप्पड़ मार दिया।

मुझे उनके थप्पड़ का बुरा भी नहीं लगा। पिताजी, बुरा मुझे इस बात का लगा कि थप्पड़ खाते हुए भैया ने भी देखा,

मगर भाभी को डांटने की बजाय उल्टा ही मुझे अपमानित करने लगे। कभी-कभी मुझे माँ की बहुत याद आती है, पिताजी।”

मुखिया, “मुझे तुम्हारी बहुत चिंता होती है, बसंत कि मेरे बाद पता नहीं तुम्हारा क्या होगा?

मेरे जाने के बाद तुम्हारा बड़ा भाई तुम्हें दो वक्त की रोटी भी खिला पाएगा या नहीं?”

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अगले दिन मुखिया ने अपने दोनों खेत बसंत के नाम कर दिए। इस बारे में बसंत के बड़े भाई को कुछ नहीं पता था।

मगर अचानक मुखिया की मौत हो गई। मौत के कुछ दिन बाद मुखिया का दोस्त जगमोहन घर आया।

जगमोहन, “मुझे यह कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा, लेकिन मुखिया जी ने मरने से पहले मुझसे कहा था कि ये बात उनके मरने के बाद ही उनके बड़े बेटे को बताई जाए।”

इतना कहकर जगमोहन ने अपनी जेब से कुछ कागजात निकाल लिए।

कल्लन, “ये क्या हैं?”

जगमोहन, “मुखिया जी ने अपने दोनों खेत अपने सबसे छोटे बेटे बसंत के नाम कर दिए हैं।”

कल्लन, “ये क्या कह रहे हो आप? पिताजी ने तो इस बारे में मुझे कभी कुछ बताया ही नहीं।”

जगमोहन, “शायद उन्हें लगता था कि उनके मरने के बाद तुम बसंत को और ज्यादा परेशान करोगे, इसलिए उन्होंने अपने दोनों खेत छोटे बेटे के नाम कर दिए।”

बिंदिया, “हाय हाय! मुझे तो पहले से ही शक था कि पिताजी कुछ ऐसा ही करेंगे। अब तुम सब क्या करोगे?

रह गए ना ठन ठन गोपाल सब के सब। अब ये तुम्हारा लंगड़ा भाई तुम पर जिंदगी भर शासन करेगा।”

जगमोहन, “ये तुम्हारा पारिवारिक मामला है। लड़ने और झगड़ने की बजाय आपस में बैठकर बातचीत से इस समस्या का समाधान कर लो।”

इतना कहकर जगमोहन वहाँ से चला गया। कल्लन ने बसंत को धक्के देकर घर से निकाल दिया। बसंत बेचारा भूखा प्यासा दूसरे गांव में भटकने लगा।

एक रात बसंत भूखा-प्यासा जुगियापुर गांव में टहल रहा था कि तभी उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी, जो घास पर बैठा हुआ भोजन कर रहा था।

भोजन को देखकर बसंत के मुँह में पानी आ गया। वह सीधा उस व्यक्ति की ओर चला गया।

बसंत, “भैया, क्या मुझे भी कुछ खाने को दोगे?”

उस व्यक्ति ने उंगलियों से टटोलते हुए एक रोटी का टुकड़ा बसंत को दे दिया।

व्यक्ति, “मेरा नाम आकाश है।”

बसंत, “आकाश..? कहीं तुम वही आकाश तो नहीं जो मेरे बचपन के मित्र थे और अचानक गायब हो गए थे?”

आकाश, “हाँ, मैं वही आकाश हूँ। कहीं तुम बसंत तो नहीं?”

बसंत, “हाँ, मैं बसंत हूँ। मेरे दोस्त, मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा। तुम कहाँ चले गए थे?”

आकाश, “अब तुम्हें क्या बताऊँ, बसंत? गांव के एक व्यक्ति ने मुझे सड़क पार करने का वादा किया और अपनी मोटरसाइकिल के पीछे बिठा लिया।

फिर वह मुझे इस गांव से बहुत दूर शहर में छोड़ आया। तब से मैं ऐसे ही भटक रहा हूँ।

और इतने वर्ष बाद आज यहाँ तक लौट आया हूँ। तुम बताओ, तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो?”

बसंत, “घबरा मत मेरे दोस्त, अब मैं आ गया हूँ ना? अब तू बिलकुल भी चिंता मत कर। अब हम दोनों साथ साथ ही रहेंगे।

उस दिन के बाद आकाश और बसंत साथ-साथ रहने लगे। एक दिन बसंत कहीं जा रहा था, तभी जगमोहन उसे मिला।

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जगमोहन, “मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा बसंत? तुम जुगियापुर गांव में क्या कर रहे हो? तुम्हारे भाई ने बताया कि तुम घर छोड़ कर भाग गए।”

बसंत, “अब मैं अपने भैया से क्या उम्मीद कर सकता हूँ? बोलिए जगमोहन साहब, क्या जरूरी बात करनी है?”

जगमोहन, “बात ये है, बसंत कि वसीहत करने से पहले तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारा शारीरिक परीक्षण करवाया था।”

बसंत, “हाँ मुझे याद है, पिताजी मुझे एक डॉक्टर के यहाँ ले गए थे। उसने मेरी खून की जांच की थी।”

जगमोहन, “कुछ दिनों पहले ही रिपोर्ट मुझे प्राप्त हुई। तुम्हें एक भयानक बीमारी है, बसंत। तुम इस दुनिया में कुछ दिनों के ही मेहमान हो।”

जगमोहन की बात सुनकर बसंत अंदर से हिलकर रह गया। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे।

कुछ देर बाद बसंत हल्की मुस्कुराहट के साथ बोला, “वैसे भी जिंदगी में मुझे कभी सुख तो मिला नहीं।

जगमोहन साहब, तो क्या आप मुझे सिर्फ ये बताने के लिए यहाँ आए हैं?”

जगमोहन साहब, “मैं जानता हूँ, बसंत कि मेरे भाई और भाभी का मेरे प्रति व्यवहार कितना बुरा था?

और उन्होंने तुम्हें धोखा देकर घर से बाहर भी निकाल दिया था। लेकिन उन्हें उनके किए की सजा भी मिल चुकी है, बसंत।

तुम्हारा बड़ा भाई अब सड़क पर आ चुका है और तुम्हारी भाभी सड़कों पर भीख मांगकर गुज़ारा करती है।”

बसंत, “मैं इस बात को नहीं मानता, वकील साहब।”

जगमोहन, “अगर तुम्हें मेरी बात का विश्वास नहीं, तो स्वयं अपनी आँखों से देख लो।”

इतना कहकर जगमोहन ने दूर से एक औरत की ओर इशारा कर दिया। उस औरत को देखकर बसंत पूरी तरह से चौंक गया।

बसंत, “अरे! ये तो भाभी है। तो क्या भैया को कहीं पर काम नहीं मिला?”

जगमोहन, “नहीं, क्योंकि तुम्हारा भाई अब अपाहिज हो चुका है। बसंत, तुम तो कुछ दिनों के ही मेहमान हो।

तो क्यों ना तुम अपने दोनों खेत अपने भाई के नाम कर दो? यह बात मैं तुमसे सिर्फ इंसानियत के नाते कह रहा हूँ, बाकी तुम्हारी मर्जी।”

जगमोहन की बात सुनकर बसंत कुछ सोचता हुआ बोला, “मैंने सोच लिया है जगमोहन चाचा, मुझे क्या करना चाहिए?

आप घबराओ मत, मैं अपने भैया और भाभी को सड़क पर भीख मांगने नहीं दूंगा। लेकिन उसके बदले में मैं आपसे कुछ चाहता हूँ।”

जगमोहन, “तुम मुझसे क्या चाहते हो?”

बसंत जगमोहन के कान में कुछ बताने लगा।

अगले दिन आकाश ने देखा कि बसंत नहीं था। आकाश ने बसंत को बहुत ढूंढा, मगर बसंत उसे कहीं नहीं मिला।

ऐसे ही कई महीने बीत गए। एक दिन अचानक आकाश किसी कार से टकरा गया। कार से एक व्यक्ति बाहर निकल कर आ गया।

व्यक्ति, “अरे! तुम्हें चोट तो नहीं आई?”

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आकाश, “नहीं, मुझे कोई चोट नहीं आई। मेरे शरीर को तो हर 5 मिनट बाद किसी ना किसी चीज़ से टकराने की आदत है।”

व्यक्ति, “मेरा नाम डॉक्टर जोशी है। क्या तुम अंधे हो?”

आकाश, “जी हाँ डॉक्टर साहब, मैं अंधा हूँ।”

डॉक्टर जोशी आकाश की आँखों को हाथ लगाकर चेक करने लगा।

डॉक्टर जोशी, “तुम्हारा इलाज संभव हो सकता है। अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारी आँखों की रौशनी वापस लौटा सकता हूँ।”

ये सुनकर आकाश खुशी से झूम उठा।

आकाश, “क्या वाकई… मैं देख सकता हूँ, डॉक्टर साहब?”

डॉक्टर जोशी, “हाँ, तुम देख सकते हो। आओ मेरे साथ।”

डॉक्टर जोशी आकाश को एक अस्पताल में लेकर आया। कुछ ही महीनों में आकाश को दिखाई देने लगा।

डॉक्टर जोशी, “ये लो आकाश, 10 लाख रुपए। अब तुम्हें सड़कों पर भीख मांगने की जरूरत नहीं है।”

आकाश ने उन 10 लाख रुपए से खाद का काम शुरू किया। कुछ ही समय में आकाश पैसों में खेलने लगा। अब वह एक बहुत अमीर व्यक्ति बन चुका था।

कुछ सालों बाद आकाश डॉक्टर के घर पर आया।

डॉक्टर जोशी, “मैं भी तुमसे ही मिलना चाहता था, आकाश। दरअसल मैं तुम्हें कुछ देना चाहता था।”

आकाश, “मैं आपको कुछ लौटाने आया हूँ।”

इतना कहकर आकाश ने 10 लाख रुपए डॉक्टर को दे दिए।

आकाश, “मैं आपका अहसान ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगा, डॉक्टर साहब। दुनिया में जहाँ एक तरफ आप जैसे अच्छे इंसान मौजूद हैं, जो मुझ जैसे व्यक्ति की मदद करते हैं।

तो वहीं दूसरी तरफ मेरे मक्कार दोस्त की तरह, जो बीच रास्ते में मुझे छोड़कर भाग जाता है।”

डॉक्टर जोशी, “ये 10 लाख रुपए तुम्हारे हैं, आकाश। मरने से पहले बसंत ने मुझे ये 10 लाख रुपए तुम्हें देने के लिए कहा था।”

डॉक्टर की बात सुनकर आकाश के पैरों तले जमीन खिसक गई।

आकाश, “ये आप क्या कह रहे हैं?”

डॉक्टर जोशी, “मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ। दरअसल, बसंत को एक लाइलाज बीमारी थी और बसंत इस बारे में जानता था। मरने से पहले 10 लाख रुपए उसने मुझे तुम्हें देने के लिए कहा था।

उसने मुझसे यह कहा था कि मेरे दोस्त से कहना कि मैं उससे आखिरी बार इसलिए नहीं मिल सका कि वह मेरे जाने की बात सुनकर दुखी ना हो जाए।”

आकाश, “आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया? मैं उसके बारे में पता नहीं क्या-क्या सोचता रहता था?

और वो जाते-जाते मेरे ऊपर इतना बड़ा उपकार कर गया। मैं उसका उपकार का बदला कैसे चुकाऊंगा? मैं तो अब उससे मिल भी नहीं सकता।”

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डॉक्टर जोशी, “अपने आपको संभालो आकाश। बसंत तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा और ये मेरे शब्द नहीं बल्कि बसंत के शब्द हैं कि वह तुम्हारा साथ हमेशा रहेगा।”

आकाश, “झूठ बोलता था। अगर ऐसी बात है तो फिर मुझे छोड़ कर क्यों गया?”

डॉक्टर जोशी, “आकाश, तुम जिन आँखों से आज इस संसार को देख रहे हो, वो और किसी की नहीं बल्कि तुम्हारे दोस्त बसंत की आँखें हैं।

मरने से पहले उसने तुम्हें अपनी आँखें दान कर दी थीं। अब तुम उसकी ही आँखों से इस दुनिया को देखोगे।”

आकाश नम आँखों से वहाँ से चला गया। आकाश आज भी अपने दोस्त बसंत को याद करता है।


दोस्तो ये Hindi Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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