हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया बस ” यह एक Bhutiya Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bhutiya Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
जुगनू बहुत दुबला, पतला, एक नंबर का कंजूस और लालची व्यक्ति था। वो अपने परिवार के साथ रहता था।
परिवार में एक बूढ़ी माँ, पत्नी और बेटा था। उसकी पत्नी मोटी थी। उसे खाने का बहुत शौक था।
उसे हर समय भूख लगी रहती थी। वो एक बार में 10 आदमियों का खाना खा लेती थी। जुगनू का बेटा चीनू बहुत शरारती था।
जुगनू, “अरे भग्यवान! नाश्ता कहाँ है? जल्दी लाओ, मुंशी मेरा इंतज़ार कर रहा होगा।”
पत्नी, “हाय! वो कलुआ मुंशी आपका इंतज़ार क्यों करने लगा? उसे बोलो दुकान खोलकर काम करें।”
जुगनू, “अरे! तुमको कितनी बार कहा है, वो दुकान नहीं है?”
पत्नी, “दुकान नहीं तो क्या है? लोगों को रुपये ब्याज पर उधार देने की दुकान ही तो है, उधार की दुकान।”
जुगनू, “तुमको कौन समझाए? मैं गधे को समझा सकता हूँ पर तुमको नहीं।”
पत्नी, “हाँ, ये सही कहा आपने। मुंशी को बोलो, आपकी उधार की दुकान खोल के काम करे।”
जुगनू, “ना ना, वो नहीं खोलेगा। दुकान खोलते ही सफाई करनी पड़ती है। मुंशी झाड़ू नहीं लगाता, मैं लगाता हूँ।”
पत्नी, “हैं…आप, आप झाड़ू लगाते हो दुकान में?”
जुगनू, “तुमको पता हैं, रुपये भी बच जाते हैं? वो जो लड़का पहले झाड़ू लगाने आता था ना, वो बोला कि सेठ जी, ₹5 बढ़ा दो।
अरे भाई! काहे के ₹5 बढ़ा दूं? काम तो उतना ही है, तो रुपये काहे बढ़ेंगे? मैंने कहा, तुम जाओ भाई। और वो मुंशी तो सबका बाप हैं।
बोला, सेठ जी रोज़ झाड़ू लगाने के महीने का 30 रूपया लूँगा। अब तुम ही बताओ भाग्यवान, इन लोगों ने लूट मचा रखी है।”
पत्नी, “अरे! तो दे देते ना। आपको रोज़ रोज़ झाड़ू लगाते शर्म नहीं लगती?”
जुगनू, “अरे! अपना काम करने में कैसी शर्म? और रूपया भी बच जाता है।”
पत्नी, “आप भी ना, अब आज थोड़ी देर होगी।”
जुगनू, “क्यों? नाश्ता बना नहीं अभी तक?”
पत्नी, “बना था पर…।”
जुगनू, “पर क्या?”
पत्नी, “वो मैंने खा लिया।”
जुगनू, “मेरा नाश्ता खा लिया तो कोई नहीं, चीनू या माँ के हिस्से का मुझे दे दो। उनके लिए फिर से बना लेना।”
पत्नी, “उनका भी मैंने खा लिया। सुबह जितना नाश्ता बना था, मैंने खा लिया। अब क्या करूँ, पूडियाँ देखकर रहा नहीं गया?”
जुगनू, “तुम्हारी इस खाने की आदत ने मुझे बर्बाद कर दिया है। कितना रुपया राशन में जाता है, कुछ पता भी है? ऊपर से जब देखो खा-खाकर कितनी मोटी हो रही है?”
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पत्नी, “सुनो जी, कितनी बार कहा है, कुछ भी कहो पर मुझे मोटी मत कहा करो? मेरा वजन है ही कितना? बस डेढ़ 150 किलो ही तो है। ये कोई मोटापा है क्या?”
जुगनू, “हे प्रभु! तू ही समझा इसे। सुनो, मैं जा रहा हूँ। अगर खाने को कुछ बचे तो भिजवा देना।”
तभी अंदर से आवाज़ आई,
जुगनू की मां, “जुगनू… अरे ओ जुगनू! सुन तो।”
पत्नी, “लो, अम्मा बुला रही हैं।”
जुगनू, “अरे! क्या है, अम्मा? अरे! कितनी बार कहा है, जाते वक्त टोका मत करो?”
अम्मा, “बेटा, मैंने कब टोका? टोकती तो ये मुटल्ली है।”
बबली ने माँ को घूरकर देखा।
अम्मा, “ऐसे क्या घूर रही है?”
जुगनू, “माँ, इसे छोड़ो। बोलो, क्या काम है?”
अम्मा, “बेटा, मैंने रात को सपने में तेरी दादी को देखा, वो बोली कि उसे गंगा घाट जाना है। अब बेटा, उसे गए तो 20 बरस हो गए।
ऐसा कर, तू गंगा जी के दर्शन कर आ। और हाँ, इस मुटल्ली और चीनू को भी ले जइयो।”
जुगनू, “अरे माँ! गंगा जी यहाँ थोड़े ही है। अरे! उसके लिए काशी जाना पड़ेगा काशी।”
अम्मा, “हाँ तो जा ना। और सुन, मैंने तो कह दिया कि तेरी कंजूसी यहाँ नहीं चलेगी। अगर नहीं गया तो सबको इस घर से निकाल दूंगी, समझा?”
जुगनू, “कहाँ फसा रही हो मेरी माँ? मैं और बेटा तो सही है। लेकिन इसका तो किराया भी चार के बराबर लगेगा।”
बबली, “अब आपकी खैर नहीं।””
जुगनू, “अच्छा माँ, अभी मैं जाता हूँ। दुकान का काम निपटाकर आता हूँ।”
दुकान में…
जुगनू, “अरे मुंशी! माँ ने काशी जाने के लिए कहा है। तू मेरी चीनू और उसकी माँ, तीनों की रेलगाड़ी की टिकेट का हिसाब लगाकर कुल कितना खर्चा होगा, ये बता?”
मुंशी हिसाब करने लगा। कुछ देर बाद उसने एक परचा जुगनू को दिया। उसे पढ़कर वो उछल पड़ा।
जुगनू, “ई का… 1000 रुपया का एक आदमी का टिकेट..? रहने-खाने का अलग खर्चा?”
मुंशी, “हाँ सेठ जी। काशी यहाँ थोड़े ही है, बहुत दूर है। आप बोलो तो एक सलाह दूं, सेठ जी? ये रेलगाड़ी, बैलगाड़ी का चक्कर छोड़ो, बहुत महंगा हो जायेगा।
आप बस से चले जाओ। बस का टिकेट सस्ता भी है और शाम वाली बस का और भी सस्ता है।”
जुगनू, “मुंशी, तुम सच कह रहे हो?”
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मुंशी, “हाँ सेठ जी, मैंने सब पता कर लिया है। सब बढ़िया से हो जायेगा और खर्चा भी कम।”
शाम को जुगनू, बबली और चीनू को लेकर बस के लिए निकल पड़ा।
बबली, “अरे! सुनो, इतना भारी पेटी मैं नहीं उठा सकती। किसी कुली को बुला लो ना।”
जुगनू, “तुमसे तो कम ही भारी है।”
बबली ने ज़ोर से पेटी नीचे रख दी।
जुगनू, “अरे! ये क्या..? चलो, जल्दी से उठाओ उसे, देर हो रही है।”
बबली, “कहा ना, मुझसे नहीं उठता इतना वजन। इसे उठा कर तो और भूख लगने लगी।”
जुगनू, “तुम भी ना… अरे! कहीं इतना भारी है, कोई 25-30 किलो होगा बस।”
बबली, “तो आप खुद ही उठा लो ना।”
जब जुगनू ने पेटी उठाने की कोशिश की तो वो खुद ही गिर गया।
चीनू, “क्या पापा, आप भी ना… कुछ लेते क्यों नहीं?”
बबली, “चुप बदमाश कहीं का… तुम्हारे इस झूलेलाल बाप की तो हद हो गई है कंजूसी की।”
बबली ने पेटी उठा ली। तीनों स्टैंड पर पहुंचे तो वहाँ बहुत भीड़ थी।
जुगनू, “ओ भैया! ये शाम को काशी जाने वाली बस कौन सी है?”
आदमी, “देखो भैया ऐसा है, शाम को कोई बस नहीं है। ठीक है? वो सामने वाली बस अभी आधा घंटे में चलने वाली है, ठीक है?”
बस के पास बहुत भीड़ थी। उसमें बैठने के लिए एक-दूजे को लोग धक्का दे रहे थे।
चीनू, “पापा, क्या हम इस बस में जाएंगे?”
जुगनू, “अरे! ना ना, ई में तो खड़े होने के भी जगह नाईं है। हम ना जाएंगे इसमें। कोई ढंग की बस होता है बताओ?”
जुगनू, “तुम यही रुको, मैं पता करके आता हूँ।”
जुगनू ने थोड़ा आगे जाकर देखा। सड़क पर एक पुरानी सी टूटी-फूटी बस खड़ी थी। उसके पास एक आदमी खड़ा था।
जुगनू, “ओ भैया! ये बस काशी जाएगी?”
आदमी ने हाँ में सिर हिलाया।
जुगनू, “कब जाएगी?”
आदमी ने कोई जवाब नहीं दिया।
जुगनू, “ओ भाई! ये बस शाम को चलेगी ना?”
आदमी ने हाँ में सिर हिलाया और भाग गया। इतने में पहली वाली बस स्टार्ट हो गई। वो घसीट-घसीटकर भरी हुई थी।
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उसकी छत पर भी लोग बैठे थे, और वो हॉर्न बजाती हुई चली गई। पूरा बस स्टैंड वीरान हो गया।
जुगनू, “अरे! चलो चलो, हमारी बस वो रही सामने!”
तीनों उस बस के पास गए।
चीनू, “पापा, ये बस चलती भी है? ये तो टूटी-फूटी है।”
जुगनू, “ये तुम्हें उससे क्या है? बस काशी पहुंचा दे। चलो चलो, अंदर चलो।”
जुगनू और चीनू अंदर चले गए, पर बबली बस के दरवाजे में फंस गई।
बबली, “हाय अम्मा! मर गई।”
जुगनू और चीनू दोनों बबली का हाथ पकड़कर अंदर खींचने लगे।
चीनू (खींचते हुए), “जोर लगा के हइशा, जोर लगा के हइशा!”
तीनों बस के अंदर बैठने के लिए ढंग की सीट देखने लगे।
बबली, “सुनो जी, ये वाली सीट बढ़िया है, यहाँ बैठेंगे।”
ये कहकर वो सीट पर बैठ गई और चीनू उसकी गोद में बैठ गया। जैसे-तैसे जुगनू भी वहीं फंस कर बैठ गया।
बस कंडक्टर, “हाँ भाई, सब लोग ढंग से बैठो।”
जुगनू, “ये बस कब चलेगी?”
बस कंडक्टर, “बस अभी चलने वाली है।”
जुगनू, “भैया, ये बस तो एकदम खाली पड़ी है, कोई और सवारी नहीं आएगी क्या?”
चालक, “नहीं नहीं, कोई और नहीं आएगा। तुम लोग आराम से बैठो।”
कहकर वो जोर-जोर से हंसने लगा। तभी बस स्टार्ट हो गई। पूरी बस ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगी और जुगनू सीट से नीचे गिर गया।
चीनू, “पापा गिर गए, पापा गिर गए।”
जुगनू, “चुप बदमाश।”
जुगनू, “भग्यवान, पूरी सीट तो तुमने घेर ली है। मैं पीछे वाली सीट पर बैठता हूँ।”
बस हिचकोले खाती हुई चलने लगी।
बबली, “सुनो, ज़रा संभल कर। कहीं वहाँ भी ना गिर जाना।”
चीनू, “अम्मा, मैं भी अकेले सीट पर बैठूंगा। यहाँ कैसे खेलूँगी?”
बबली, “अच्छा ऐसा कर, सामने जाकर बैठ जा। मैं भी थोड़े अपने पैर फैला लूँ।”
रात होने पर बस में अंधेरा हो गया।
चीनू, “अरे! बत्ती जलाओ।”
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बस कंडक्टर, “बत्ती नहीं है।”
फिर उसकी ज़ोर-ज़ोर से हंसने की आवाज़ आई।
बबली, “सुनो जी, किसी होटल में बस रुकवाओ। मुझे तो बहुत भूख लग रही है।”
बस कंडक्टर, “ये बस सुबह से पहले कहीं नहीं रुकेगी।”
फिर उसकी ज़ोर-ज़ोर से हंसने की आवाज़ आई।
जुगनू, “अरे! सुबह खा लेना, अभी खिड़की खोलकर आराम से सो जाओ।”
बबली, “भूखे पेट नींद… ये बढ़िया मज़ाक है।”
तभी उसे खाने से भरी हुई हवा में नाचती थाली दिखाई दी। उसने बोलने की कोशिश की, पर मुँह से आवाज़ नहीं निकली।
बबली ने थाली पकड़ ली और सब खा गई। उसके बाद मिठाई की थाली हवा में नाचने लगी।
उसे देखकर बबली की आँखें बड़ी हो गईं। उसने उस थाली को पकड़ा और सब कुछ खा गई।
बबली, “बस सब्जी पूरी और मिल जाए।”
उसके सामने सब्जी पूरी से भरी थाली प्रकट हो गई। उसने फटाफट सब खाया और एक लंबी डकार लेकर सो गई।
जुगनू उंगलियों पर गिनकर हिसाब करने लगा।
जुगनू, “एक आदमी का 1000, 2 का दो नहीं भग्यवान के तो बस खाने खाने का 1000 हो जाएगा। हे प्रभु! इतना खर्चा करवाओगे तो कोई लॉटरी भी लगवा दो।”
कहकर वो खिड़की पर सिर रखकर कुछ सोचने लगा, तभी उसके कान में कुछ लगा।
जुगनू, “अरे बाबा! मच्छर भी खून चूसेगा।”
तभी उसके बालों पर कुछ लगा। उसने ऊपर की ओर देखा तो नोटों की गड्डियाँ हवा में उड़ती हुई दिखाई दीं। उसने आँखें मल-मलकर देखा।
जुगनू”ये.. ये असली रुपए हैं?”
उसने दूसरी गड्डी पकड़ी तो और 10 गड्डियाँ हवा में नाचने लगीं। जुगनू खुशी से गिरते-पड़ते पेटी के पास गया। पत्नी ज़ोर-ज़ोर से खराटे लेकर सोई हुई थी।
धीमे से पेटी उठाते हुए वो कांपने लगा। उसने पेटी का सारा सामान निकालकर फेंक दिया और उसमें नोटों की गड्डियाँ भरने लगा।
जुगनू, “बाप रे! लॉटरी लग गई लॉटरी। प्रभु! सच्ची में लॉटरी लगा दी है।
एक साथ इतना पैसा तो मेरे पुरखों ने कभी भी नहीं देखा होगा। मैं सोऊंगा नहीं, कहीं वो कंडक्टर का बच्चा चुरा ले गया तो?”
तो वो खुद उससे चिपककर बैठ गया, पर थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई।
जुगनू, “ओ मेरा कंचा! मिल जा रे बाबा मिल जा, पर नहीं मिला।”
चीनू उदास होकर सीट पर लेट गया तो उसे हवा में उड़ती हुई गेंद दिखाई दी।
चीनू, “ये कैसी गेंद है जो हवा में उड़ रही है?”
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चीनू ने गेंद पकड़ने की कोशिश की तो हाथ लगाते ही वो दो हो गई। उसने गेंद पकड़ने की कोशिश की, पर वो और ऊपर हो गई।
चीनू, “बच्चू, अभी बताता हूँ।”
उसने फटी हुई सीट पर चढ़कर गेंद पकड़ ली।
चीनू, “गेंद अच्छी है, पर मेरा कंचा ज्यादा अच्छा है। मिल जाना कहां खो गया?”
तभी चीनू के सामने उड़ते हुए कंचे आ गए। चीन ने उन्हें पकड़ने लगा। उसने कंचों को अपने रूमाल में बांध दिया।
चीनू,”वाह! कितने सुंदर और बढ़िया कंचे हैं? मज़ा आ गया।”
वो पटली को सिर के नीचे रखकर सो गया। थोड़ी देर बाद बबली की आँख खुली।
बबली, “हाय रे! बड़ी भूख लगी है। काशी तो अभी बहुत दूर है, कहीं से कुछ चटपटा मिल जाए तो मज़ा आ जाए।”
तभी उसे हवा में पकवानों से भरी थाली दिखाई दी। वो पकड़ने की कोशिश करने लगी तो वो और दूर होती जाती।
बबली उसे पकड़ते पकड़ते बस की अंतिम सीट तक पहुँच गई।
बबली, “आजा ना, क्यों भागे जा रही है?”
कहकर उसने छलांग लगा दी, पर वो खुद ही हवा में गोल-गोल घूमने लगी।
बबली, “अरे बचाओ, बचाओ”
वो धड़ाम से नीचे गिरी और पूरी बस उछल गई। बस रुक गई। तब चीनू और जुगनू ने बबली को उठाया।
बबली, “इस ड्राइवर और कंडक्टर को छोड़ूंगी नहीं!”
उसने ड्राइवर की सीट पर देखा तो वहाँ कोई नहीं था।
बबली, “सुनो जी, ये दोनों कहाँ गायब हो गए?”
जुगनू, “पता नहीं, इस बस से अब तक कोई नीचे नहीं उतरा।”
उन्होंने यहाँ-वहाँ देखा, पर कोई नहीं था।
जुगनू, “सवेरा हो गया, लगता है काशी आ गया। चलो चलो, नीचे उतरो।”
नीचे उतरने के बाद…
चीनू, “पापा, ये तो हमारे गांव जैसा लग रहा है।”
जुगनू, “नहीं बेटा, ये काशी है। बस स्टैंड सब जगह एक सा होता है।”
बबली, “ऐं…ऊ देखो, ऊ तो वही गांव का खीरे वाला है। ऐ भैया! तुम हमरे पीछे-पीछे काशी तक आ गए?”
आदमी, “काशी… कहाँ है काशी?”
बबली, “ई कासी तीर्थ है। हमको गंगा घाट जाना है। तुम्हारा यहाँ कैसे आना हुआ?”
आदमी, “भौजी, पगला वगला गई हो का? ई काशी नहीं, अपना गांव है।”
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बबली, “ई कैसे हो सकता है? हमने पूरी रात बस में सफर किया। काशी जान खातिर, गांव कहाँ से आ गया?”
आदमी, “कौन सी बस में गए, भैया?”
चीनू,” वो सामने वाली।”
खीरे वाला सामने देखता है। वहाँ कोई बस नहीं थी और जुगनू और बबली बस को वहाँ ना देखकर वहीं खड़े-खड़े शून्य हो गए।
जुगनू, “भाई, हम लोग पूरी रात एक बस में सफर करके आए हैं, लेकिन अब देख रहे हैं तो अपने ही गांव में हैं।
बबली, “आप हमें किस बस में ले गए थे, जी? मैंने तो खूब चटखारे मारकर पता नहीं क्या-क्या खाया है रात में?”
जुगनू, “हाँ, और मैंने तो तुम्हारे संदूक से सामान बाहर फेंककर पैसों से भर लिया है।”
दोनों जल्दी से संदूक खोलकर देखते हैं। उसमें कपड़ों के सिवाय कुछ नहीं था।
आदमी, “अरे जुगनू भैया, लगता है आपको बस स्टैंड के बाहर वाली भूतिया बस के बारे में पता नहीं था। तुम लोग उसी बस की सवारी करके आ रहे हो भैया।”
बबली, “भूतिया बस?”
आदमी, “हां भाभी, पुराने बस अड्डे के बाहर रात को कई लोग इस भूतिया बस में चढ़ जाते हैं और उसका शिकार हो जाते हैं। लेकिन तुम लोग किस्मत वाले हो, जो सही सलामत लौट आए हो।”
दोस्तो ये Bhutiya Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!