भूतिया गुफा | Bhutiya Gufa | Darawani Kahani | Bhutiya Story In Hindi | Bhoot Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भूतिया गुफा ” यह एक Bhutiya Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bhutiya Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


मोहन नगर राज्य में राजा विक्रम सिंह का राज था। राजा विक्रम सिंह मोहन नगर की जनता की सेवा दिलो-जान से करते थे।

कुछ समय पहले पड़ोसी राज्य ने मोहन नगर पर हमला कर दिया था। राजा विक्रम सिंह का पुष्तैनी चमत्कारी मुकुट भी चुरा लिया था,

लेकिन उस चमत्कारी मुकुट को पड़ोसी राज्य का राजा भी हासिल नहीं कर पाया। मुकुट का रहस्य आज भी बना हुआ है।

एक दिन दरबार में…

राजा,” मंत्री जी, मोहन नगर में सबसे कुशल चल रहा है?”

मंत्री, “जी महाराज, आपकी कृपा है। मोहन नगर में सब कुशल चल रहा है।

लेकिन आपकी खोज करता टुकड़ी अभी तक पुश्तैनी मुकुट का कुछ पता नहीं कर पाई है, महाराज। और राज्य में कुछ दिनों से…।”

राजा, “क्या हुआ, तुम चुपके हो गए? हमारे राज्य में कोई समस्या है क्या?”

मंत्री, “हाँ महाराज।”

राज, “हमारे रहते हुए हमारे राज्य की तरफ कोई देख भी नहीं सकता है। बताओ, क्या बात है?”

मंत्री, “महाराज, हम अपने सिपाहियों के साथ खोजबीन कर रहे हैं। बस कुछ दिनों से दो संदिग्ध राज्य में घूम रहे हैं, लेकिन पकड़ में नहीं आ रहे, महाराज।”

राजा, “ऐसे लोगों की जल्द से जल्द शिनाख्त करो ताकि हमारा राज्य सुरक्षित रह सके।”

मंत्री, “जी महाराज, मैंने सिपाहियों को भेज दिया है।”

राजा, “हाँ, तुम वहां अपनी नजरें बनाकर रखो। कोई भी ऐसी परिस्थिति नहीं बननी चाहिए कि हमारी प्रजा को कष्ट पहुंचे।”

मंत्री वहाँ से चला गया। राजा ने बाकी लोगों की फरियाद सुन ली, लेकिन वह बहुत चिंतित हो गया और अपने कक्ष में चला गया।

दो भाई गुड्डू और बबलू दोनों जंगल में झाड़ियों में छुपकर बैठे थे। राजा के सिपाही उन्हें खोज रहे थे।

गुड्डू, “अरे! हमने बिलकुल भी ये नहीं सोचा था कि हमें इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।”

बबलू, “हाँ, गुरुजी ने नाम को फंसा दिया। ये सैनिक हमें ढूंढ रहे हैं। अगर हम इनके हाथ आ गए तो पता नहीं ये हमारा क्या करेंगे?”

गुड्डू, “यहाँ से वापस चलें?”

बबलू, “नहीं, वापस जाकर गुरुजी को क्या मुँह दिखाएंगे?”

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गुड्डू, “ठीक है भाई, जैसी तुम्हारी इच्छा।”

सैनिक भी इधर से उधर घूम रहे थे, लेकिन गुड्डू और बबलू के ना मिलने पर वह भी एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए।

पहला सैनिक, “कहाँ मिलेंगे वो दोनों मुझे? मुझे समझ नहीं आता कि हम उन दोनों को कैसे ढूंढेंगे, क्योंकि हमने तो उनकी शक्ल भी नहीं देखी।”

दूसरा सैनिक, “हाँ, ये तो मैंने सोचा ही नहीं।”

सैनिक थोड़ा आराम करते हैं और फिर से उन्हें ढूंढना शुरू करते हैं।”

गुड्डू, “अरे! आजा भाई थोड़ी मस्ती करते हैं।”

बबलू, “क्या… मरवाएगा क्या? ऐसे टाइम में तुझे मस्ती सूझ रही है?”

गुड्डू सिपाही के पास आकर बैठ जाता है।

गुड्डू, “कैसे हो भाई?”

सिपाही, “क्या बताएं भैया? इस राज्य ने दो ठगों को पकड़ने का आदेश दे रखा है। भाग-भाग कर सांस चढ़ आई है।”

गुड्डू, “करे भी क्या भाई, काम तो काम है? ज़रा तनिक थोड़ा सा जल मिल जाता तो आराम मिल जाता। बहुत थक गए हैं हम लोग भी भाग-भाग कर।”

सैनिक, “हाँ हाँ भाई, क्यों नहीं..? लो जल पिओ?”

गुड्डू और बबलू दोनों जल पीकर…

गुड्डू, “अब हम चलते हैं। धन्यवाद!”

बबलू, “हाँ भाई, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।”

सैनिक, “कोई बात नहीं, आखिर एक इंसान ही दूसरे की मदद करता है। वैसे आप क्यों भाग रहे थे और किससे?”

गुड्डू, “हम आप लोगों से ही तो भाग रहे थे, श्रीमान!”

गुड्डू, “ऐ भाग बबलू भाग।”

गुड्डू और बबलू दोनों बचकर वहाँ से निकलने लगते हैं, तभी सैनिक पीछे से उन्हें देख लेते हैं।

सैनिक उनके पीछे दौड़ते हैं, लेकिन तभी बबलू और गुड्डू को एक गुफा दिखती है। वे उसमें प्रवेश कर जाते हैं।

सैनिक भी उनके पीछे उस गुफा में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, लेकिन गुफा के दरवाजे पर एक जिन्न आकर खड़ा हो जाता है, जिसे देखकर सभी लोग पीछे की तरफ हट जाते हैं।

जिन्न, “कौन हो तुम और इस गुफा में क्यों जाना चाहते हो?”

सैनिक, “आपने इन दोनों युवकों को अंदर प्रवेश क्यों करने दिया? हमें भी उनके पीछे जाना है।”

जिन्न, “जिस द्वार से तुम अंदर आने का प्रयास कर रहे हो, यह मौत का द्वार है। किसी का घर नहीं है। अगर तुम्हें भी मौत चाहिए, तो स्वागत है।”

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सैनिक, “क्या इसका अर्थ यह हुआ कि ये दोनों भी मर जाएंगे?”

जिन्न, “हाँ, ये दोनों भी मर जाएंगे।”

पहला सैनिक, “चलो, इन्होंने स्वयं ही हमारा काम आसान कर दिया।”

दूसरा सैनिक, “हाँ, चलो अब चलते हैं और महाराज को जाकर बता देंगे कि वो दोनों मर चुके हैं।”

सिपाही वापस महल लौट गए और उन्होंने मंत्री को जाकर सूचना दे दी कि अब दोनों मारे जा चुके हैं। सभी लोग बहुत खुश हुए।

बबलू और गुड्डू दोनों गुफा के अंदर गए। गुफा बहुत डरावनी थी। दोनों बुरी तरह डर रहे थे।

तभी उनके सामने एक बहुत बूढ़ी औरत आई, जिसे देख कर बबलू और गुड्डू दोनों डर गए।

बबलू, “अरे बूढ़ी काकी! आपने तो डरा ही दिया। आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रही हैं?”

बूढ़ी औरत, “बच्चो, तुम इस गुफा में क्यों आए हो?”

गुड्डू, “हमारे पीछे सैनिक भाग रहे थे, लेकिन आप कौन हैं?”

बूढ़ी औरत, “जिस उद्देश्य से तुम लोग भटक रहे हो, मैं सब जानती हूँ। मैं तुम्हें सही दिशा दिखाऊंगी, जिससे तुम इस गुफा से आसानी से बाहर निकल सकते हो।”

बबलू, “हाँ हाँ, बताइए ना। वैसे भी इस गंदी सी गुफा में बहुत बदबू आ रही है और हमारी सांसे रुक रही हैं। आप यहाँ कैसे रह लेती हैं?”

बूढ़ी औरत, “यहाँ कौन रहना चाहता है? लेकिन मुझे यहाँ राज़मुकुट की रखवाली करनी होती है।”

गुड्डू, “आपके पास राज़ मुकुट है?”

बूढ़ी औरत, “नहीं। मुझे सिर्फ उसकी रखवाली के लिए रखा गया है।”

बबलू, “राजा विक्रम सिंह का राज़मुकुट आपके पास है? मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।”

बूढ़ी औरत, “हाँ, वही मेरे पास है।”

बबलू, “यह कैसे हो सकता है? उसे तो पड़ोसी राजा चुरा ले गया था।”

बूढ़ी औरत, “सही कहा बच्चों, लेकिन राज़ मुकुट अभी भी रहस्य है। मैं तुम्हें सारा सच नहीं बता सकती हूँ।”

तभी बबलू को कुछ याद आता है, जो चलते समय उनके गुरुजी ने कही थी।

बबलू और गुड्डू दोनों अपने लक्ष्य पर जाने के लिए तैयार हो गए। दोनों ने गुरु जी के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया।

गुरुजी, “मैं आज तुम दोनों से अपनी गुरु दक्षिणा के तौर पर राज़ मुकुट मांगता हूँ और मैंने तुम दोनों को इतना सक्षम बना दिया है कि तुम दोनों इस लक्ष्य को पाकर ही लौटोगे। आयुष्मान भव !”

गुड्डू, “जी गुरुजी।”

गुरुजी, “तुम्हें रास्ते में भ्रम पैदा करने के लिए मानव रूपी कुछ जादुई शक्तियाँ मिलेंगी। तुम्हें उनके चंगुल में नहीं फंसना है।”

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बबलू, “ठीक है, गुरुजी।”

गुरुजी, “अपने रहस्य और लक्ष्य को किसी से नहीं बताना है और सबसे जरूरी बात… अपने लक्ष्य की राह में तुम दोनों को अकेले चलते जाना है, कभी किसी को भी दोस्त नहीं बनाना है।”

गुड्डू, “ठीक है गुरूजी, हम इन बातों का विशेष ध्यान रखेंगे।”

गुड्डू और बबलू दोनों गुरुजी का आशीर्वाद लेकर अपने लक्ष्य पर निकल गए हैं।

गुड्डू, “अब हमें यहाँ से निकलना चाहिए।”

बबलू, “बूढी़ महिला से बातें करते हैं और फिर राज़ मुकुट भी तो यहीं है, उसे लेकर चलते हैं। हमें सबसे पहले बूढ़ी औरत को बातों में फंसाना है और फिर वो राज़ मुकुट लेकर यहाँ से चलना है।”

गुड्डू, “गुरुजी की बातों को याद करो। तुम वो सब भूल गए क्या, जो गुरुजी ने बोला था?”

बबलू, “ओह! हाँ। यह अवश्य ही एक छल है।”

गुड्डू, “आप हमें यहाँ से बाहर जाने का रास्ता बता दीजिए, हम बाहर चले जाएंगे।”

बूढ़ी औरत, “अभी इतनी भी क्या जल्दी है? आओ, मैं तुम्हें राज़ मुकुट देती हूँ।”

गुड्डू, “नहीं नहीं, हमें बाहर जाना है। माफ़ कीजिए।”

बूढ़ी औरत, “मैंने कहा, मेरे साथ आओ नहीं तो मारे जाओगे।”

गुड्डू, “नहीं अम्मा, तुम्हारी बातें हम पर काम नहीं करेंगी।”

तभी बबलू अम्मा को हाथ से छूता है और वो हवा में विलीन हो जाती है।

बबलू, “बूढ़ी अम्मा कहाँ गई?”

गुड्डू, “हम यहाँ फंस गए हैं। अब हमें बाहर निकलने का रास्ता खोजना होगा।”

बबलू और गुड्डू दोनों इधर-उधर ढूंढ़ते हैं। तभी उन्हें प्रकाश दिखता है। दोनों खुशी से उछल पड़ते हैं।

गुड्डू, “वाह! हमें रास्ता मिल गया।”

बबलू , “हाँ, चलो चलते हैं।”

दोनों तेजी से दौड़ते हुए उस तरफ गए, जिसके बाद वहाँ जाकर देखा तो उनके होश उड़ गए क्योंकि वहाँ कोई रास्ता नहीं था, बल्कि एक सुंदर परी खड़ी थी। वह प्रकाश उसकी छड़ी में से आ रहा था।

गुड्डू, “अब आप कौन हैं?”

बबलू , “हाँ, हम तेजी से रास्ता देख कर दौड़े लेकिन यहाँ आकर बुरी तरह फंस गए हैं।”

परी, “नहीं, तुम यहाँ बिलकुल भी नहीं फंसे हो। मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ।”

गुड्डू, “अरे! इतनी सुंदर परी मित्र बनना चाहती हैं तो हम कैसे मना कर सकते हैं?”

बबलू, “गुरुजी की बात याद करो गुड्डू। तुम उनकी सारी बातें भूलते जा रहे हो।”

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गुड्डू, “हां हां,मैं भी बड़ा बुद्धू हूँ। बार-बार सारी बातें भूल जाता हूँ।”

बबलू, “ठीक है फिर, अब कोई उपाय सोचो?”

गुड्डू, “अभी मेरे दिमाग में कुछ नहीं आ रहा है। इसलिए परी जी से ही पूछते हैं।”

बबलू, “हम गलती से इस गुफा में आ गए हैं। इस गुफा से बाहर जाने का रास्ता बता दीजिए हमें।”

परी, “तुमको मेरे राक्षस को हराना होगा। अगर तुम इसको हरा दोगे तो मैं तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य तक पहुंचा दूंगी।”

गुड्डू, “आप हमारे लक्ष्य के बारे में कैसे जानती हैं?”

परी, “जो भी राजमुकुट की तलाश में निकलता है, उसे इस गुफा में आना ही होता है। इसलिए मैं सबका लक्ष्य पहचानती हूँ। आज तक कोई भी मेरे राक्षस को हरा नहीं पाया है।”

बबलू, “हमारे लिए बहुत आसान है।”

तभी वहाँ बहुत बड़ा राक्षस आ गया जिसको देखकर बबलू और गुड्डू दोनों डर गए, लेकिन उन्होंने भगवान को याद किया और मन में अपने गुरुजी का स्मरण किया।

फिर दोनों राक्षस पर टूट पड़े। लेकिन राक्षस ने उन्हें पहली बार में ही उठाकर फेंक दिया।

दोनों बहुत दूर जाकर गिरे। परी हंस रही थी। बबलू और गुड्डू फिर से उठे और राक्षस पर टूट पड़े।

यही प्रक्रिया बहुत देर तक चलती रही और कुछ समय में राक्षस थककर नीचे गिर गया। जिसके बाद परी का चेहरा उतर गया।

बबलू, “अब दुखी होने का समय नहीं है। हमें आगे का रास्ता बताइए।”

परी, “तुमने खुद को सिद्ध कर दिया है कि तुम इसके लायक हो। राजमुकुट मेरे पास है।”

गुड्डू, “नहीं, राजमुकुट आपके पास नहीं हो सकता।”

परी, “ये राजमुकुट पड़ोसी राजा चुराकर अपनी राज्य ले जाना चाहता था और उसके इरादे इसके लिए नेक नहीं थे।

रही बात राजा विक्रम की, वह राजा होकर इसकी रक्षा नहीं कर पाया, तो मैं उसे दोबारा राजमुकुट नहीं दे सकती थी।

अब तुम दोनों की सूझबूझ और साहस से मोहन नगर में खुशियाँ लौटेंगी।”

बबलू, “इस राजमुकुट में ऐसा क्या है?”

परी, “ये राजमुकुट एक जादुई राजमुकुट है। इसमें पूरी दुनिया है। मैं तुम्हें राजमुकुट दे रही हूँ। आगे तुम स्वयं इसके बारे में जान लोगे।”

परी ने एक राजमुकुट बबलू के हाथ में दे दिया। जिसके बाद वहाँ बहुत तेज प्रकाश आया। बबलू और गुड्डू की आँखें बंद हो गईं।

जब प्रकाश चला गया, तब दोनों ने आँखें खोलीं और बहुत हैरान हो गए क्योंकि वहाँ से गुफा गायब हो चुकी थी और गुरुजी राजा के साथ सामने खड़े थे।

बबलू और गुड्डू ने गुरुजी को प्रणाम किया। चारों तरफ एक नया राज्य था और वहाँ दूर-दूर तक सोने-जवाहरात फैले हुए थे। दोनों को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

गुरुजी, “तुमने यह कर दिखाया है। मुझे तुम दोनों पर बहुत गर्व है।”

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बबलू, “परन्तु गुरुजी, यह राजमुकुट का रहस्य ठीक से समझ नहीं आया।”

गुरुजी, “वर्षों पहले यहाँ के राजा पर बहुत हमले हुए, जिसके बाद उस समय के राजा ने अपने आसपास और अपना सारा खजाना जादुई राजमुकुट की मदद से छुपा दिया था।

फिर उसके बाद जादुई परी ने राजमुकुट राजा विक्रम को सौंपा, लेकिन पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर उसे लूट लिया।

राजा विक्रम को नहीं पता था कि राजमुकुट कहाँ है? सिवाय मेरे, यह कोई नहीं जानता था।

इस लक्ष्य के लिए मुझे तुम दोनों से उचित कोई और नहीं लगा। आज इस राजमुकुट की वजह से मोहन नगर खुशहाल और समृद्ध होगा।”

बबलू, “गुरुजी, अब आगे क्या करना है?”

गुरुजी, “मैं तुम्हें राजमहल में उच्च पद पर बैठाऊंगा और आधा राज्य भी तुम दोनों को देता हूँ।”

गुरुजी,” वो दिन याद करो जब तुम मेरे पास आए थे। गुरुजी अपने कुटिया में बैठे थे कि तभी दौड़ते हुए बबलू और गुड्डू आ गए।

गुरुजी, “क्या हुआ, तुम ऐसे क्यों हांफ रहे हो?”

बबलू, “गुरुजी, हमें अपने यहाँ शरण दे दीजिए। हमारी रक्षा कीजिए।”

गुड्डू, “हाँ गुरुजी, हमें गाँव वालों ने भगा दिया।”

गुरुजी, “लेकिन उन लोगों ने ऐसा क्यों किया?”

बबलू, “माँ-बाप के गुजर जाने के बाद हम दोनों गाँव वालों के यहाँ कुछ ना कुछ काम कर देते थे।

सब हमें मनहूस कहकर बुलाते थे और आज हम पर चोरी करने का इल्जाम लगाकर बहुत मारा और गाँव से बाहर कर दिया।”

गुरुजी, “अगर तुम्हारे अंदर सामर्थ्य होगा तो तुम सभी को जवाब दे सकते हो।”

बबलू, “हाँ गुरुजी, आज आपके कारण हम सफल हो गए।”

गुड्डू, “हाँ गुरुजी, आज गरीब को भी सफलता मिल गई। किसी ने सच ही कहा है, अगर अच्छा गुरु मिल गया तो मानो भगवान मिल गया। धन्यवाद गुरुजी!”


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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