हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” धोखेबाज मुखिया ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Latest Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में धनीराम नाम का बदमाश व्यक्ति रहा करता था जो गांव की भोले-भाले गरीब, अशिक्षित, असहाय लोगों की जमीनों और घरों पर गांव के मुखिया की मदद से अवैध कब्जा कर लेता था।
एक दिन की बात है। धनीराम गांव के व्यक्ति सुखिया के पास जाकर बोला:
धनीराम, “हाँ भाई, कैसा है रे सुखिया?”
सुखिया, “ईश्वर की कृपा है धनीराम भैया, आप यहाँ कैसे पधारे?”
धनीराम, “मुझे तुम्हारे जैसे भिखारियों के घर में आने का कोई शौक नहीं है, समझा? मैं तो बस तुझे ये याद दिलाने आया हूँ कि आज महीने की 20 तारीख है। 25 तारीख तक इस मकान को खाली कर देना।”
सुखिया, “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? मैं भला अपने मकान को खाली क्यों करूँगा?”
धनीराम, “अबे ! ये घर तेरा कब से हो गया रे? ये घर तो सरकारी है और सरकार हमारी है, तो ज़ाहिर सी बात है ये घर हमारा हुआ।”
सुखिया, “ये गलत बात है धनीराम जमींदार, ये घर हमें सरकार ने बनवा कर दिए थे। आपको इसे छीनने का कोई अधिकार नहीं है।
अरे ! और तो और लोग तो दूसरे लोगों को कर्ज देकर उनसे भारी ब्याज वसूल उनका मकान छीन लिया करते हैं, लेकिन तुमने तो हद पार कर दी।
ना ही मैं तुमसे कोई कर्जा लिया और न ही मेरे पर कोई ब्याज चढ़ा है, फिर भी मकान क्यों खाली करूँ? “
धनीराम, “अच्छा… तो फिर अपने इस मकान के कागजात दिखा।”
सुखिया दौड़ता हुआ अपने मकान के कागज़ धनीराम के पास ले आया।
सुखिया: “देख लीजिए धनीराम जी, ये मकान मेरे ही नाम है। आप इसे मुझसे छीन नहीं सकते।”
सुखिया की बात सुनकर धनीराम ने अपनी जेब से दूसरे कागज निकालकर सुखिया को दिखाते हुए बोला।
धनीराम, “तो फिर ये कागज़ किसके नाम में है? ये तो मेरे नाम में है, सुखिया। तेरे इस घर को मैंने कुछ दिन पहले ही सरकार से खरीदा है।”
सुखिया, “लेकिन सरकार मुझे बगैर बताए आपको ये घर कैसे बेच सकती है?”
धनीराम, “अब ये जाकर सरकार से पूछ, मुझसे क्यों पूछ रहा है? मेरे पास इस मकान के खरीदने के कागज हैं और इस घर को कोर्ट से खाली करने के नोटिस भी हैं।
मैं तो बस इसीलिए तेरे पास आया था कि तू गांव का है, मेरी बात समझ जाएगा। लेकिन अगर तू सीधी तरह से नहीं माना तो मैं तुझे धक्के देकर 25 तारीख को इस घर से बाहर निकाल दूंगा।”
शारदा, “ये तो सरकार ने हमारे ऊपर बहुत अत्याचार किया। पहले हमें मकान मुफ्त में दिया और फिर इस मकान को धनीराम जैसे बदमाश को बेच दिया।”
सुखिया, ” नहीं शारदा, मुझे धनीराम की बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। मैं अपनी समस्या का समाधान लेकर झुमरी के पास जाऊँगी। सिर्फ वही है जो इस गांव में शिक्षित है।”
इतना बोलकर सुखिया झुमरी के घर की ओर चल दिया। सुखिया झुमरी के घर के बाहर झुमरी को आवाजें लगाने लगा।
सुखिया, “झुमरी बिटिया, दरवाजा खोल। मैं बहुत मुसीबत में हूँ।”
दरवाजा झुमरी के पति बसंत ने खोला।
बसंत, “क्या बात है सुखिया चाचा? आप रो क्यों रहे हैं? सब कुछ ठीक तो है?”
सुखिया, “क्या बताऊँ बसंत बेटा? धनीराम जमींदार मेरे घर आया था और बोल रहा था कि उसने मेरा मकान भारत सरकार से खरीद लिया है।”
बसंत, “तो इस मामले में झुमरी क्या कर सकती है?”
सुखिया, “एक बार मुझे झुमरी से बात करने दो, बेटा। मुझे धनीराम जमींदार पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।”
बसंत, “सुखिया चाचा, आप तो जानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से झुमरी का संपत और कपटा ने वैसे भी जीना हराम कर रखा है। संपत और कपटा मुखिया के साथ ही हैं और मुखिया धनीराम जमींदार का दोस्त है।
मुझे हमेशा अपनी पत्नी को लेकर डर सताता रहता है। आप यहाँ से जा सकते हैं, मैं इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकता।”
सुखिया वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी झुमरी वहाँ पर आ गई।
झुमरी, “ये क्या कह रहे हैं आप? गांव के लोग अगर मुझसे मदद मांगने आते हैं तो आपको तो खुश होने की जरूरत है।
आप उनका दर्द बांटने की बजाय अपने घर से बाहर भाग रहे हैं तो फिर आप में और उन दुष्टों में क्या फर्क रह गया?”
बसंत, “मुझे तुम्हारी चिंता सताई रहती है, झुमरी की कहीं मुखिया तुम्हारे साथ कोई अनहोनी ना कर दे।”
झुमरी, “चिंता मत कीजिए, मैं एक पढ़ी-लिखी शिक्षित लड़की हूँ। शिक्षा सबसे बड़ा हथियार होती है। मुखिया, धनीराम, संपत और कपटा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आप मेरे साथ चलिए, सुखिया चाचा।”
सुखिया, “लेकिन कहाँ, झुमरी?”
झुमरी: “धनीराम जमींदार के घर।”
बसंत: “पर मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगा, मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।”
झुमरी अपने पति बसंत के साथ सुखिया को लेकर धनीराम जमींदार के घर पर पहुँच गई, जहाँ मुखिया, संपत और कपटा के साथ पहले से ही बैठा हुआ चाय पी रहा था।
धनीराम, “मैं मुखिया, संपत और कपटा से तेरे बारे में ही बात कर रहा था, झुमरी की तू कब आएगी? और देख तू यहाँ पर आ भी गई।
मुझे पता था ये भिखारी जरूर तुझसे मदद मांगने गया होगा। मगर इस बेवकूफ को नहीं मालूम कि तू इसकी कोई मदद नहीं कर पाएगी।”
झुमरी, “मैं यहां तुम्हारी बकवास सुनने नहीं आई हूँ धनीराम जमींदार। तुम मुझे वो कागज़ दिखाओ।”
धनीराम, “कौन से कागज?”
झुमरी, “वही कागज़ जो तुमने कुछ देर पहले सुखिया चाचा को दिखाए थे। मैं भी उन कागजों को देखना चाहती हूँ कि सरकार ने तुम्हें कब और कितने रुपए में सुखिया चाचा का घर बेचा है?”
धनीराम, “अच्छा, अच्छा।”
धनीराम ने अपनी जेब में से एक कागज़ निकाल कर झुमरी को पकड़ा दिया। झुमरी एक शिक्षित लड़की थी जिसने कुछ सालों पहले एल.एल.बी. की परीक्षा पास की थी।
झुमरी, “ये फर्जी कागज़ है, धनीराम जमींदार। तुम्हें शर्म नहीं आती इन भोले-भाले अशिक्षित गरीबों पर अत्याचार करते हुए?”
सुखिया, ” क्या… ये फर्जी कागज हैं?”
झुमरी, “हाँ, ये फर्जी कागज़ हैं। सुखिया चाचा, धनीराम ने आपसे झूठ बोला। क्या आपको नहीं पता कि जब भारत सरकार किसी गरीब को मुफ्त में घर बनवा कर देती है तो फिर वो कभी वापस नहीं मांगती और ना ही वो किसी को बेचती है।
ये तो इस धनीराम जमींदार का मक्कारीपन है जो आप सबके अशिक्षित होने का फायदा उठाता है।”
धनीराम, “तुम अपनी हद से ज्यादा आगे बढ़ रही हो, झुमरी।”
संपत: “धनीराम भैया सही कह रहे हैं, झुमरी। तुम काफी वक़्त से हमारा नुकसान कर रही हो। अगर तुमने हमारे मामलो में दखल देना बंद नहीं किया तो तुम्हारा अंजाम बहुत बुरा होगा।”
झुमरी, “मैं तुम्हारी गीदड़-धमकी से डरने वाली नहीं हूँ। अगर तुमने मेरे खिलाफ़ या सुखिया चाचा के खिलाफ़ कुछ भी उल्टा-सीधा करने की कोशिश की तो मैं डायरेक्ट इस राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तुम दोनों की गतिविधियों के बारे में बता दूंगी। उसके बाद मैं नहीं पुलिस तुमसे सवाल करेगी।”
मुखिया, “मैं तुम्हारे इरादों के बारे में सब जानता हूँ, झुमरी। ये सब कुछ गांव का मुखिया बनने के लिए ही तो कर रही हो ना ताकि लोग तुम्हारा गुणगान कर सके और मुझे हटाकर तुम्हे इस गांव का मुखिया बना सके।”
झुमरी: “मुझे मुखिया बनने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन अगर गांव वाले अपनी खुशी से मुझे मुखिया के पद के लिए चुनेंगे तो मैं उसे अस्वीकार नहीं करूँगी। आजकल महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।”
झुमरी वहाँ से चली गई।
धनीराम,” ये झुमरी का कुछ करना पड़ेगा। मुखिया अगर ऐसा हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम सबके हाथ में कटोरा आ जायेगा।”
मुखिया,” तुम बिलकुल सही कहते हो, धनीराम जमींदार। जब से ये झुमरी थोड़ा पढ़-लिख क्या गयी हैं, इसने तो हमारी नाक में दम कर रखा है।”
संपत,” मैं तो पहले से ही आपसे बोल लिया था, मुखिया जी कि गाँव के लोगों को मत पढ़ाया लिखाया कीजिये। लेकिन आपको ही पता नहीं क्या खुजली थी यहाँ पर प्राइमरी स्कूल खुलवाने की?
इस झुमरी ने इसी प्राइमरी स्कूल में परीक्षा पास की और आगे पढ़ने की उसकी इच्छा जाग उठी।”
मुखिया,” अबे मैं गांव का मुखिया हूँ, अब सरकार मुझे कोई आदेश देगी तो मैं सरकार से मना थोड़े ही ना करूँगा।”
धनीराम,” इन बातों का कोई मतलब नहीं है मुखिया जी। अगर ऐसा ही होता रहता है तो वो दिन दूर नहीं कि झुमरी तुम्हारा मुखिया का पद छीन लेगी। मुखिया बनकर सबसे पहले हम सब लोगों को जेल पहुंचायेगी।”
मुखिया, “चिंता मत करो, मैं ऐसा बिलकुल नहीं होने दूंगा। इस पूरे गांव में सिर्फ झुमरी ही पढ़ी-लिखी है। मगर वो एक बात नहीं जानती ये पूरा गांव अशिक्षित, अनपढ़ और जाहिल है।
और जाहिल लोगों को भड़काना दुनिया का सबसे आसान काम होता है। मेरे पास एक ऐसा उपाय है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। समय आने दो और तुम तीनों मेरी बात ध्यान से सुनो।”
इतना कहकर मुखिया उन तीनों के कान में कुछ बताने लगा। मुखिया की बात सुनकर उन तीनों के चेहरे पर मक्कारी की मुस्कुराहट छा गयी।
कुछ महीने ऐसे ही बीत गए और एक दिन गांव में जोरदार बारिश होने लगी। बारिश ज्यादा होने की वजह से नदी का बांध टूट गया और गांव में बाढ़ आ गई। गांव की फसलें तबाह हो गई और भुखमरी फैल गई।
झुमरी मुखिया के पास जाकर बोली,” मुखिया जी, आप तो जानते ही हैं की कुछ दिन पहले हमारे गांव में बाढ़ आई थी।
बाढ़ की वजह से सारी फसलें तबाह हो गईं। गांव में भुखमरी फैल गई है। आप हमारे गांव के मुखिया हैं। आपका गांव के लोगों की मदद करना आपका कर्तव्य है।”
मुखिया,” मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था। मैं अब सुधर गया हूँ। गांव के लोगों की भूख मुझसे देखी नहीं जाती। इसलिए मैंने सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी कि हमारे गांव वालों की मदद की जाए।
सरकार ने गांव के पीड़ित व्यक्तियों की मदद के लिए बहुत सारा धन भेजा है। तुम्हारे अलावा और कोई नहीं जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूँ।”
झुमरी,” आप कहना क्या चाहते हैं मुखिया जी?”
मुखिया,” झुमरी ये पैसे तुम ले जाओ और गांव के विकास में लगा दो। उनके लिए खाने का अच्छा भोजन तुम स्वयं शहर जाकर खरीदकर लेकर जाओ और उन्हें दो।
गांव वाले तुम पर भरोसा करते हैं। मेरी तो छवि गांव वालों की नजर में बिगड़ चुकी है।”
झुमरी,” आपको गांव की प्रति इतना चिंतित देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है, मुखिया जी। मैं आपका काम ईमानदारी से करूँगी। गांव के लोगों की मदद करने में मुझे बहुत खुशी मिलेगी।”
मुखिया ने ढेर सारे पैसे झुमरी को दे दिए। झुमरी उन पैसों से गांव के लिए बहुत सारा भोजन खरीद लाई। सभी गांव वालों ने झुमरी का भोजन खाकर अपना पेट भरा।
मगर भोजन करने के कुछ घंटे बाद सभी गांव वाले बीमार पड़ गए। झुमरी सब देखकर घबरा गई। गांव की विमला, झुमरी से आकर बोली।
विमला,” तुमने क्या खिला दिया झुमरी? जब से मेरे बेटे ने तुम्हारी शहर से लाई हुई दाल खाई है, तब से वो लगातार उल्टियां कर रहा है और बुरी तरह से बीमार पड़ गया है?”
झुमरी,” ये क्या कह रही हैं आप?”
विमला,” सिर्फ मेरा बेटा ही नहीं, बल्कि तुम्हारा लाया हुआ खाना जिन-जिन लोगों ने खाया, वो सब बीमार पड़ गए हैं। झुमरी, ये तुमने अच्छा नहीं किया।”
तभी वहाँ पर गांव का मुखिया, संपत, कपटा और धनीराम जमींदार के साथ पहुँच गया और सभी गांव वालों को इकट्ठा करके बोला।
मुखिया, ” गांव वालों, तुमने ये देख ही लिया होगा कि झुमरी तुम्हारे लिए शहर से बासी खराब भोजन लेकर आई है।
उसे खाकर ही तुम सब बीमार पड़े हो। अब तो तुम्हें विश्वास हो गया ना कि ये झुमरी तुम्हारा भला नहीं चाहती? ये एक धोखेबाज स्त्री है।”
झुमरी,” मुखिया जी, क्या कह रहे हो तुम?”
धनीराम, “मुखिया जी सही कह रहे हैं। झुमरी तुमने इन गांव वालों को जान-बूझकर बीमार किया है?”
झुमरी,” लेकिन मैं ऐसा क्यों करूँगी?”
धनीराम,” क्योंकि मुखिया ने तुम्हें जो पैसे दिए थे, तुम वो सारे पैसे खुद हड़प कर गई और कुछ पैसों का खराब भोजन खरीद कर ले आई।
संपत, “मुखिया जी बिलकुल सही कह रहे हैं। मुखिया जी ने मेरे सामने झुमरी को ढेर सारे पैसे दिए थे और वो पैसे इतने सारे थे की तुम गांव वाले बगैर काम किये दो महीने लगातार भोजन कर सकते थे।”
बसंत,” ये मेरी पत्नी के ऊपर छोटा आरोप है। ये तुम सब क्या कर रहे हो? ये मेरी पत्नी के ऊपर झूठा आरोप है।
मेरी पत्नी ने तुम लोगों के लिए क्या नहीं किया और तुम सब मेरी ही पत्नी पर शक कर रहे हो?”
मुखिया,” अभी भी समय है गांव वालों, अपनी आंखें खोल लो। नहीं तो ये झुमरी तुम सबको अपने झांसे में लेकर इस गांव की मुखिया बन जाएगी और फिर उसके बाद तुम्हारा क्या हाल होगा, उसके बारे में तुम सोच भी नहीं सकते।”
मुखिया,” देखते क्या हो, मारो इसको।”
सभी गांव वाले झुमरी को बुरा-भला बोलने लगे। कुछ गांव वाले झुमरी को मारने के लिए दौड़ पड़े।
तभी मुखिया बोला,” ठहरो! हम स्त्री का बहुत सम्मान करते हैं। हमारे गांव में नया इंस्पेक्टर आया है। मैंने झुमरी के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी है। कानून अपना काम करेगा।”
कुछ ही देर में दो महिला कॉन्स्टेबल झुमरी को गिरफ्तार करके लेकर चली गईं और उसे हवालात में बंद कर दिया।
तभी झुमरी महिला कॉन्स्टेबल से रोते हुए बोली,” मेरी बात का विश्वास कीजिए, मेरे साथ धोखा हुआ है। मुखिया ने मेरे साथ छल किया है। मुझे इस थाने के इंस्पेक्टर से बात करनी है।”
महिला कॉन्स्टेबल,” झूठ मत बोलो! शहर से भोजन तुम ही लेकर आई थी। तुम्हें ज़रा सी भी शर्म नहीं आई।
कुछ पैसे बचाने के चक्कर में तुमने सारे गांव वालों की जिंदगी दाव पर लगा दी। साहब, मोबाइल थाने में चार्जिंग पर लगाकर कुछ देर के लिए बाहर गए हैं। “
इतना बोलकर वे दोनों महिला कॉन्स्टेबल थाने से बाहर चली गईं। थाने में इस समय झुमरी अकेली थी। तभी वहाँ पर मुखिया धनीराम जमींदार, संपत और कपटा के साथ थाने में पहुँच गया।
मुखिया,” बहुत मज़ा आता था ना तुझे गांव वालों की मदद करने में? तो देख गांव वालों की मदद करने का अंजाम ये मिलता है।”
धनीराम, ” अरे, इससे अच्छा तो तू अगर हमारे साथ हो जाती तो आज पैसों में खेलती। अब सारी जिंदगी तेरी जेल में कटेगी।”
कपटा, ” लेकिन मुखिया जी, ये झुमरी तो शहर से अच्छा भोजन खरीद कर ले कर आई थी। मेरी समझ में ये नहीं आता कि उस भोजन को खाने से गांव वाले बीमार कैसे पड़ गए?”
मुखिया,” बेवकूफ ! अगर ये बात तुझे समझ में आ जाती तो तू आज गांव का मुखिया होता। राजनीति क्या होती है, तुझे नहीं पता?
दरअसल खाने में थोड़ा सा ज़हर मिलाया गया था, लेकिन सिर्फ इतना कि गांव वाले बीमार पड़ सकें। वो मरे नहीं और मैं जानता हूँ कि वो जहर किसने मिलाया था?”
तभी वहाँ पर झुमरी का पति बसंत मुखिया के साथ खड़ा होकर मुस्कुराते हुए बोला,” मैंने मिलाया था जहर।”
झुमरी,” मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा, बसंत। तुम तो मेरे पति थे। मेरे पति होने के बावजूद तुमने मेरे साथ धोखा क्यों किया?”
बसंत,” क्योंकि गांव में हर कोई तेरा सम्मान करता था, मेरा नहीं। कुछ समय बाद तू गांव की मुखिया बन जाती और मेरी इज्जत घर में कुत्ते जैसी हो जाती।
वो तो भला हो धनीराम जमींदार और मुखिया जी का, जिन्होंने समय रहते मेरी आंखें खोल दीं।”
मुखिया, “अब यहाँ पर ज्यादा बातें करना सही नहीं है। कानून को अपना काम करने दो और तुम्हें इसका इनाम मिलेगा, बसंत।”
सब झुमरी का मजाक उड़ाते हुए वहाँ से चले गए। कुछ देर के बाद थाने का इंचार्ज इंस्पेक्टर, अजय वहाँ पर आ गया।
इंस्पेक्टर अजय झुमरी को हैरत से देखने लगा,” झुमरी, तुम?”
झुमरी,” अजय, तुम इंस्पेक्टर बन गए?”
अजय,” हां, मैं इंस्पेक्टर बन गया। तुम्हारे ऊपर तो काफी गंभीर आरोप हैं।”
झुमरी,” मेरी बात का विश्वास करो, अजय। तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा खिनौना काम करूँगी? तुम तो मेरे साथ शहर में काफी साल पढ़े हो।”
अजय,” मुझे तुम पर विश्वास है झुमरी। तुम ऐसा काम नहीं कर सकती।”
झुमरी सारी घटना इंस्पेक्टर अजय को बताने लगी। तभी इंस्पेक्टर अजय के होठों पर मुस्कुराहट आ गई।
अजय,” अगर तुम्हारी बात सही है झुमरी, तो अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
इतना कहकर इंस्पेक्टर अजय ने चार्जिंग से अपना मोबाइल निकाल दिया और उसमें रिकॉर्डिंग को सुनने लगा।
उस मोबाइल में कुछ देर पहले मुखिया, धनीराम, संपत, कपटा और बसंत की सारी बातें रिकॉर्ड हो चुकी थीं।
इंस्पेक्टर अजय ने झुमरी को तुरंत रिहा कर दिया।
अजय, ” मेरी आदत है झुमरी कि मैं थाने में जब भी अपना मोबाइल चार्जिंग पर लगाकर जाता हूँ, तो हमेशा हिडन वॉइस रिकॉर्डर ऑन कर देता हूँ।
ताकि मैं अपने पीछे थाने में पुलिस कर्मचारियों की कुछ बातचीत सुन सकूँ कि कहीं वो किसी से रिश्वत तो नहीं ले रहे हैं? आज मेरी ये आदत कितनी काम आ गई? तुम निर्दोष साबित हो गई।”
इंस्पेक्टर अजय ने मुखिया, संपत, कपटा, धनीराम और बसंत को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। बसंत झुमरी के सामने गिड़गिड़ाता रहा,” मुझे माफ कर दो झुमरी, मैं तुम्हारा पति हूँ।”
झुमरी,” अब मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं रहा। तलाक का नोटिस तुम्हें जेल में मिल जाएगा।”
अदालत ने सबको उम्रकैद की सजा दे दी और गांव वालों ने मुखिया की जगह झुमरी को गांव का मुखिया बना दिया। झुमरी आज भी गांव की मुखिया है और वह हर समय लोगों की मदद करती रहती है।