हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” बेवकूफ लकड़हारा ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Latest Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में करोड़ीमल का अनाज का व्यापार था। वह गांव के किसानों से अनाज लेकर महंगे दामों में शहर में बेचता था।
करोड़ीमल, “मेरे सिवा किसी को अनाज बेचने की सोचना भी मत, मैं ही तुम सबका भला करूँगा।”
किसान, “आप तो अन्नदाता हैं सेठ जी, हम गरीब कहाँ जायेंगे।”
धीरे-धीरे सेठ ने सबकी जमीन भी हथिया ली। इस काम में करोड़ीमल की सहायता उनका मुँह लगा नौकर भोंदू करता था, जो कम अक्ल तो था लेकिन गांव के लोगों को अपने मालिक के बल पर बड़ा परेशान किया करता था।
करोड़ीमल, “अरे, भोंदू तो बचपन में पेड़ से गिर गया था ना, ऐसी चोट लगी की तेरे बाबा का हार्ट फेल हो गया।”
भोंदू, “मुझे क्या पता मालिक, आपने ही मुझे पाला है? मेरे माँ-बाप भगवान सब आप ही हैं।”
करोड़ीमल, “इसीलिए तेरी मूर्खताओं के बाद भी तुझे नहीं निकालता, पर अब सावधान हो जा।”
भोंदू, “अरे मालिक ! आपके लिए जान भी दे दूंगा।”
एक दिन करोड़ीमल भोंदू के साथ सामान लेने शहर गया।
करोड़ीमल, “क्यों रे भोंदू, शाम हो गई है हम लोग कहीं रास्ता भटक तो नहीं गए? ये सड़क कहाँ जाती है?”
भोंदू, “सड़क कहीं नहीं जाती सेठ जी, आपको क्या हो गया है? सड़क पर चढ़कर लोग इधर-उधर जाते हैं।”
करोड़ीमल, “तू बैल का बैल ही रहेगा। किसी ऊंचे पेड़ पर चढ़कर देख ये रास्ता कहाँ जाता है?”
सेठ की बात सुनकर भोंदू पेड़ पर चढ़ गया। उसे कुछ भी नजर नहीं आया, बस ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
करोड़ीमल, “अब क्या हुआ? चुपचाप नीचे उतर जा, हम जल्दी ही शहर पहुँच जाएंगे।”
भोंदू, “अरे मालिक ! मुझे पेड़ से उतरना नहीं आता। मुझे बचा लो वरना मैं मर जाऊंगा, मालिक।”
करोड़ीमल, “हे भगवान ! अंधेरा गहराता जा रहा है, तू जल्दी से नीचे आ वरना डाकू आ जायेंगे और हमारा सारा सामान लूट लेंगे।”
भोंदू, “अरे सेठ जी ! डाकुओं को आ जाने दीजिये, तो वही मुझे उतार पाएंगे। आप अपने सामान के लिए क्या मेरी जान की बाजी लगा देंगे?”
भोंदू की बातें सुनकर करोड़ीमल सर पकड़ कर बैठ गए। कुछ देर बाद सचमुच वहाँ से डाकू गुजरे। उन्होंने संजीदाराम को पूरी तरह से लूट लिया और भोंदू को पेड़ से नीचे उतारकर फेंक दिया।
भोंदू, “हाय ! मेरी कमर, मेरी कमर टूट गई। जब उतारना ही था तो धीरे से उतारते। चलिए सेठ जी, जल्दी से चलते हैं। अब डरने की कोई बात नहीं।”
सेठ अपनी किस्मत को कोसता हुआ वापस अपने घर आ गया।
करोड़ीमल, “आज के बाद जब मैं सामान खरीदने जाऊंगा तो तू मेरे साथ नहीं जाएगा।”
रात को सेठ के बेटे को बाथरूम जाना था।
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करोड़ीमल, “अरे ओ भोंदू ! ज़रा सुरेश को संडास तो ले जा।”
भोंदू, “अरे ! क्या करना हैं उसे?”
करोड़ीमल, “उसे लघु शंका करनी हैं।”
भोंदू, “ना ना मुझे विश्वास नहीं। अगर उसने कुछ और भी कर दिया तो मेरी जिम्मेदारी नहीं। आज्ञा से ज्यादा या कम कुछ नहीं करने दूंगा।”
करोड़ीमल, “हे भगवान ! तू रहने ही दे, मैं ही ले जाऊंगा।”
कुछ दिनों बाद सेठ वापस शहर सामान खरीदने के लिए गए तो सेठ की दुकान पर एक साधु आया।
साधु, “मुझे भूख लगी है, मुझे भोजन कराओ। भगवान तुम्हारा भला करेगा।”
भोंदू, “वाह वाह वाह ! बड़ा आया भोजन करने वाला। मांग तो ऐसे रहा है जैसे तेरी अम्मा यहाँ खाना बनाकर रखती है। चल भाग यहाँ से।”
साधु, “भगवान के भक्तों के साथ ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं है। तुझे इसका फल मिलेगा।”
भोंदू, “अरे ! जा जा, फल मिलेगा। फल मिलेगा, फल मिलेगा तो खा लूँगा। तू अपना काम कर।”
भोंदू इसी तरह का व्यवहार सबके साथ करता था और सेठ का मुँह लगा नौकर होने के कारण वो पूरा फायदा उठाता था।
एक दिन करोड़ीमल अपनी जमीनों की लिखा-पढ़ी कर रहे थे कि उनका चश्मा गंदा हो गया। उन्होंने भोंदू को बुलाया।
करोड़ीमल, “अरे भोंदू ! ज़रा ये मेरा चश्मा तो साफ कर दे, कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है।”
भोंदू, “अभी लो मालिक, ऐसा चमका दूंगा कि मुझ पर नाज़ करोगे।”
मालिक को खुश करने के लिए भोंदू सोचने लगा कि क्या किया जाए? तभी उसे पास में रहने वाली घुमड़ी की आवाज सुनाई देती है।
घुमड़ी, “देख सुगनिया, मेरा बर्तन कितना चमक रहा है। कुछ भी चमकाना हो तो चूल्हे की राख से सूखा ही रगड़ देना चाहिए।”
भोंदू, “अरे ! बस इतनी सी बात है। आज मालिक से इनाम लेके रहूँगा।”
वह चूल्हे की राख से रगड़-रगड़ कर चश्मा साफ कर देता है जिसके कारण चश्मे की शीशों पर खरोंच पड़ जाती है।
करोड़ीमल, “अरे कमबख्त ! ये क्या कर दिया मेरे चश्मे का तुने? इसी समय तू यहाँ से निकल जा। हे भगवान !अब मैं हिसाब-किताब कैसे करूँ?”
सेठ जी गुस्से में आकर भोंदू को नौकरी से निकाल देते हैं। भोंदू बहुत जगह नौकरी ढूंढ़ता है लेकिन उसकी नौकरी कहीं भी नहीं लगती। उसके व्यवहार के कारण और कम बुद्धि के कारण कोई भी उसे रखना नहीं चाहता।
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भोंदू, “नौकरी तो मिलने से रही। मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं अपना काम करूँ। आज से मैं जंगल में जाकर लकड़ियां काटूंगा। ना कोई मालिक है, ना कोई डांट, ना फटकार आराम से जीवन बिता लूँगा।”
जिंदगी में कभी भी मेहनत से काम ना करने के कारण वह किसी तरह पेड़ पर तो चढ़ गया लेकिन कुल्हाड़ी से लकड़ियां काटने में उसकी जान निकलने लगी।
लेकिन वह थोड़ी-बहुत लकड़ियां काटकर ले आया और उन्हें बेचकर एक दिन का खाना बना लिया। अगले दिन वह फिर लकड़ियां काटने चला।
भोंदू, “मुझसे ज्यादा लकड़ियां तो काट ही नहीं जाती हैं। ऐसा करता हूँ पेड़ की सबसे मोटी डाल पर बैठ जाता हूँ, उसी को काट दूंगा। भले ही एक टहनी काटूं, कम से कम ज्यादा लकड़ी तो मिलेंगी ही।”
वह जिस डाल पर बैठा है, उसी डाल को काटने लगता है। तभी वहाँ से एक साधु गुजरता है और उसे इस तरह से डाल काटते हुए देखकर ज़ोर से चिल्लाता है।
साधु, “अरे मूर्ख ! पागल तो नहीं हो गया है? जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है। मरना चाहता है क्या? अभी नीचे गिरेगा।”
साधु की बात पूरी होने से पहले डाल टूट जाती है और भोंदू पत्तों के ढेर पर गिर जाता है और मन ही मन सोचने लगता है।
भोंदू, “लगता है ये साधु बड़ा ही चमत्कारी है। इसे सब कुछ पहले से पता है। मुझे इसके ही पैर पकड़ लेने चाहिए, यही मेरी नैया पार करेगा।”
भोंदू, “अरे भाई ! क्या तुम कोई ज्योतिषी हो? तुम्हें मेरे गिरने का पता पहले ही कैसे चल गया? तुम महाज्ञानी हो। ज़रा दया करके मुझको बताओ कि मेरा भविष्य क्या है?”
भोंदू की इतना कहते ही साधु समझ गया कि भोंदू पूरी तरह से मूर्ख है। उसे याद आ गया कि इसी भोंदू ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया था।
साधु, “वाह प्रभु ! आपने इसको सबक सिखाने के लिए मुझे अवसर दे दिया। बिल्कुल सही समझे, मुझे वर्तमान, भविष्य सभी का ज्ञान है बच्चा। मेरी दिव्य दृष्टि बताती है कि तुम्हारी मौत तुम्हारा पीछा कर रही है।”
भोंदू, “महाराज ! ये आप क्या कह रहे हैं? मुझे कोई तो उपाय बताइए?”
साधु, “बिना दान के ज्ञान नहीं दे सकता हूँ। मुझे पैसे दो, मैं तुम्हें भविष्य का ज्ञान दूंगा।”
भोंदू, “साधु महाराज, मेरे पास सिर्फ यही एक आना है। कृपया इसे स्वीकार करें और मुझे बताएं कि मैं कैसे मौत से अपनी रक्षा कर सकता हूँ?”
साधु ने मन ही मन हँसते हुए उसके एक आने को अपने जेब में रखा और बोला, “ये काला धागा अपने पैर में बांध लो।
याद रखना जब तक ये धागा तुम्हारे पैर में बंधा रहेगा, तुम जीवित रहोगे और जैसे ही ये धागा टूट गया, तुम मर जाओगे। धर्मराज हाथ पकड़कर ले जायेंगे।”
भोंदू की पत्नी, “अजी, कुछ पैसे कमाकर लाओ। सुबह से घर में चूल्हा भी नहीं जला है। क्या हम लोगों को भूखा मारोगे?”
भोंदू, “अरे भाग्यवान ! मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। मैं बिस्तर से उठा और मेरे पैर का धागा टूटा तो तू विधवा हो जाएगी।”
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पत्नी, “क्या बकवास कर रहे हो? धागा टूटने से भला कोई मरता भी है?”
भोंदू, “अरे ! आज मैं एक ऐसे महाराज से मिला था जिसे भूत, भविष्य सबका पता था। उन्होंने कह दिया तो ये होना निश्चित है।”
भोंदू की पत्नी जानती थी कि भोंदू के दिमाग में जो आ गया उसको हटाना नामुमकिन है। मजबूरी में वह खुद ही काम करने सेठ करोड़ीमल के घर गई।
करोड़ीमल, “अरे ! क्या हाल है लाजो? भोंदू ठीक तो है? इतने दिन हो गए, काम मांगने भी नहीं आया।”
लाजो, “अजी क्या बताऊँ? वो तो रोज़ ही कुछ नए-नए नाटक करते है। आजकल उन्होंने पैर में एक धागा बांधा हुआ है। कहते हैं अगर धागा टूट गया तो वो मर जाएंगे।”
करोड़ीमल, “चल, तू परेशान मत हो। मैं खुद तेरे घर चलता हूँ और उसे खींचकर ले आता हूँ। उस मूर्ख को मेरे सिवा कोई नहीं उठा सकता।”
करोड़ीमल भोंदू के घर पहुंचते हैं। घर में रोना-धोना लगा होता है।
लाजो, “आइए आइए सेठ साहब, देखिए ना भोंदू कह रहा है कि वो मर गया है। मैं बर्बाद हो गई, भरी जवानी में मर गया रे। हाय दैया ! आप मर गए? अब क्रियाक्रम के पैसे कहाँ से आएंगे?”
करोड़ीमल, “ये क्या बकवास है? चुप रहो तुम। ये सब कैसे हो सकता है? वो तो मेरे सामने ही बैठा हुआ है।”
करोड़ीमल,”अरे भोंदू ! तू क्या कर रहा हैं?”
भोंदू, “सेठ साहब, जंगल में मैं एक बहुत बड़े साधु से मिला था। उसने मुझे पहले ही बता दिया था कि अगर ये काला धागा टूट गया तो मैं मर जाऊंगा। देखो ना, काला धागा टूट गया है। अब धर्मराज हाथ पकड़कर ले जायेंगे।”
करोड़ीमल, “अरे पागल ! जब तू सबके सामने जिंदा बैठा है, तो मर कैसे गया? किसी ने तुझे बेवकूफ बनाया है।
अब चल और काम कर। मैंने दूसरा चश्मा खरीद लिया है, चल अब उसको चमका दे।”
भोंदू, “ये क्या कह रहे हैं मालिक? हम तो बाबा पर बहुत विश्वास करते हैं। मर गए तो मर गए।
अब तो बस मेरे क्रियाक्रम का इंतजाम करिए। बाबा ने कहा था, मरने पर धर्मराज हाथ पकड़ कर ले जाएंगे।”
करोड़ीमल, “अरे ! मरने के बाद तो धर्मराज के कोड़े खाने होंगे। दूसरा ये सब तुझे जला भी देंगे। जिंदा रहेगा तो मेरे साथ हवेली पर ऐश करेगा।”
भोंदू, “पर धागा तो टूट गया है।”
करोड़ीमल, “अरे ! रहेगा तू मूर्ख का मूर्ख। अरे जब तक यमराज लेने आए, कुछ और बाँध ले। उन्हें कैसे पता चलेगा?
अरे ! ये देख, अपनी कजरी के गले में पड़ी काली रस्सी धागे से ज्यादा मोटी है।”
भोंदू, “पर वो हमारी कजरी को ले गए तो?”
करोड़ीमल, “अरे ! यमराज हाथ पकड़ के ले जाते हैं। कजरी के हाथ ही नहीं है, बस दोनों बच गए।”
भोंदू, “वाह वाह मालिक ! आप हमें बचा लिए। अरे लाजो ! आज से ये रस्सी हमारे गले में बांध दे। हम जी जाएंगे और कजरी भी जिंदा रहेगी।”
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लाजो कजरी की रस्सी भोंदू के गले में डाल देती है और करोड़ीमल उसकी मूर्खता पर हंसते हुए रस्सी पकड़कर उसे अपने घर ले जाते हैं।
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