गरीब लस्सी वाली | GARIB LASSI WALI | Moral Kahani | Moral Story | Hindi Moral Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” गरीब लस्सी वाली ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Moral Stories, Hindi Stories या Hindi Moral Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


लखनऊ शहर में सीमा और सुरेश रहते थे। सुरेश मजदूरी करने का काम करता था, लेकिन उसकी खास कमाई नहीं होती थी,

जिसकी वजह से वे दोनों ही बेहद परेशान रहते थे। जब सीमा का पति घर आता तो वह सीमा के हाथ की बनी लस्सी ज़रूर पीता था।

ऐसे ही एक दिन सुरेश कहता है, “एक बात तो माननी पड़ेगी, तुम्हारे हाथ की बनी लस्सी पीकर सारे दिन की थकान मिट जाती है।”

सीमा, “वो तो ठीक है जी, पर आज घर में राशन खत्म है। हम दोनों कब तक ऐसे ही ज़िंदगी जीते रहेंगे?

मैं तो कहती हूँ, आप कोई दूसरा काम देख लो, जिसमें ज्यादा पैसे मिलते हों।”

सुरेश, “तुम्हें क्या लगता है, मैंने कोशिश नहीं की होगी? इतनी जगह गया, पर कहीं भी ठीक पैसे नहीं मिलते और इतनी गर्मी में बुरा हाल है।”

सीमा, “अजी परेशान मत हो, भगवान सब ठीक करेंगे।”

थोड़ा-बहुत खाकर दोनों सो जाते हैं। अगली सुबह सुरेश जल्दी उठकर मजदूरी करने निकल जाता है और सीमा अपना घर का काम करने लगती है।

उधर सुरेश इतनी भारी गर्मी में सारा दिन मजदूरी करता है, फिर भी उसे अधिक मजदूरी नहीं मिल पाती है, जिससे वह दुखी हो जाता है।

सुरेश, “आज भी ज्यादा मजदूरी नहीं मिली।”

और सोचता है, “जब मैं घर जाऊँगा, तो सीमा से क्या कहूँगा? घर पर राशन भी नहीं बचा।”

ये सब सोचकर सुरेश परेशान हो रहा था और फिर वह घर चला जाता है।

उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर सीमा समझ जाती है कि आज भी उसे ज्यादा मजदूरी नहीं मिली।

सीमा, “अरे! क्या हुआ जी? आज भी कमाई नहीं हुई ना?”

सुरेश, “हाँ, आज भी ज्यादा मजदूरी नहीं मिली। ऊपर से इतनी गर्मी में काम करते हुए जान निकल जाती है।

अब तुम जल्दी से मुझे एक गिलास ठंडी-ठंडी लस्सी पीला दो। कम से कम तुम्हारे हाथ की लस्सी पीकर थोड़ी थकान तो कम होगी।”

फिर सीमा जल्दी से सुरेश के लिए लस्सी बनाकर लाती है और उसे पीने के लिए दे देती है।

सीमा, “ये रही तुम्हारी लस्सी। मानो ना मानो, तुम कोई और काम देख लो। शायद तुम्हें कहीं दूसरा काम मिल जाए।”

सुरेश, “सीमा, दूसरा काम ढूँढना इतना आसान नहीं है। अब तुम ये सब छोड़ो और जल्दी से खाना लगा दो, बड़ी भूख लगी है।”

फिर सीमा रसोई में जाती है और सुरेश के लिए खाना लाकर देती है। खाना खाते ही सुरेश को नींद आ जाती है और फिर सीमा भी सो जाती है।

अगली सुबह सुरेश जल्दी उठकर मजदूरी के लिए निकल जाता है और सारा दिन गर्मी में मजदूरी करता रहता है। लेकिन फिर भी उसे मजदूरी के ज्यादा पैसे नहीं मिल पाते।

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शाम को जब वह थक-हारकर घर आता तो हमेशा की तरह आज भी अपनी पत्नी से पीने के लिए लस्सी मांगता है।

सुरेश, “सीमा, बड़ी गर्मी है। अपने हाथ की बनी ठंडी-ठंडी लस्सी तो बनाकर पीला दो।”

सीमा जल्दी से सुरेश के लिए लस्सी बनाकर लाती है और उसे पीने के लिए दे देती है।

सुरेश, “सीमा, कुछ बात तो है तुम्हारे हाथ की बनी लस्सी में।”

सीमा, “आप भी ना! कुछ भी बोलते हो।”

रात काफी हो चुकी थी। फिर वे दोनों खाना खाकर सो जाते हैं।

अगली सुबह सुरेश अपने मालिक के यहाँ मजदूरी कर रहा होता है, तभी अचानक से उसके पैर पर भारी सामान गिर जाता है, जिससे उसके पैर में बहुत बुरी तरह चोट लगती है।

सुरेश दर्द से चिल्लाता है, “आह!श मेरा पैर! हाय, मर गया रे! मेरा पैर बहुत दर्द हो रहा है!”

एक मजदूर, “लगता है, इसके पैर में तो बहुत चोट आई है।”

और फिर सभी मजदूर डॉक्टर से उसकी मरहम-पट्टी करवाते हैं और उसे घर छोड़ देते हैं।

सीमा, “हे भगवान! ये आपको क्या हो गया? और ये चोट कैसे लगी?”

सुरेश उसे सारी बात बताता है और रोने लगता है।

सीमा, “अजी, आप रोते क्यों हो? आप जल्दी ठीक हो जाओगे।”

सुरेश, “मैं तो ये सोच रहा हूँ कि अब मैं काम करने कैसे जा पाऊँगा? और फिर पैसे कहाँ से आएँगे और घर का खर्च कैसे चलेगा?”

सीमा, “अजी, आप चिंता क्यों करते हो? अब भगवान कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकाल ही देगा।

अच्छा आप आराम करिए, तब तक मैं आपके लिए लस्सी लेकर आती हूँ।”

फिर सीमा सुरेश के लिए लस्सी बनाकर लाती है और उसे पीने के लिए दे देती है।

अभी सुरेश ने अपनी लस्सी खत्म भी नहीं की थी कि तभी सीमा के मन में ख्याल आता है।

सीमा मन ही मन सोचने लगती है, “इतनी अधिक गर्मी में सभी लोग ज़्यादातर लस्सी ही पीते हैं और पीना पसंद करते हैं।

अगर मैं भी लस्सी का ठेला लगा लूँ? इसे बनाना भी आसान है।

जब इन्हें मेरे हाथ की लस्सी इतनी पसंद आती है, तो शायद लोगों को भी पसंद आ जाए और शायद इससे कुछ कमाई भी हो जाए।”

सीमा, “सुनो जी, मैं एक बात सोच रही हूँ। मैं लस्सी का ठेला लगा लेती हूँ। इतनी गर्मी में सभी लोग लस्सी पीना पसंद करते हैं।

शायद इससे कुछ कमाई हो जाए। फिर घर भी तो चलाना है, तब तक आप भी ठीक हो जाओगे। देखो, मना मत करना।”

सुरेश अपनी पत्नी को मना नहीं कर पाता और फिर अगले ही दिन से सीमा लस्सी का ठेला लगा लेती है और लस्सी बेचना शुरू कर देती है।

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सीमा, “ठंडी-ठंडी, ताज़ी-ताज़ी लस्सी! मीठी लस्सी! जल्दी आओ और पीने का मज़ा लो।”

सीमा खड़ी होकर काफी देर तक आवाज़ लगाती रहती है, लेकिन उसके ठेले पर कोई भी लस्सी पीने नहीं आता।

सीमा, “इतनी देर हो गई, अभी तक एक भी ग्राहक लस्सी पीने नहीं आया। शायद हो सकता है, थोड़ी देर में कोई आ जाए।”

ये सोचकर सीमा फिर से आवाज लगने लगती है और कहती है,” मीठी मीठी ठंडी मलाईदार लस्सी, जो भी एक बार पी ले, सारी थकान दूर हो जाए। जल्दी आओ और ताजी-ताजी लस्सी पियो।”

सीमा को आवाज़ लगाते हुए बड़ी देर हो जाती है। तभी उसके ठेले पर एक लड़का लस्सी पीने आता है और कहता है, “आंटी, ये गिलास लस्सी का कितना?”

सीमा, “₹10 का।”

लड़का, “मुझे एक गिलास लस्सी बनाकर दो। हाँ, उसमें बर्फ़ ज़रूर डाल देना।”

यह सुनकर सीमा बड़ी खुश होती है।

सीमा, “चलो, कोई तो लस्सी पीने आया। कम से कम काम की शुरुआत तो हुई।”

फिर सीमा उस लड़के को ठंडी ठंडी लस्सी बनाकर देती है। जैसे ही वह लड़का लस्सी का गिलास मुँह से लगाता है,

वह कहता है, “वाह! क्या लस्सी बनाई है! पीकर तो मज़ा ही आ गया। आंटी, एक गिलास और लस्सी देना।”

सीमा, “हां हां, अभी देती हूँ।”

फिर वह उसे एक और गिलास लस्सी बनाकर देती है। लड़का लस्सी पीकर पैसे देता है और चला जाता है।

उसके बाद उसकी दुकान पर सिर्फ दो ही लोग लस्सी पीते हैं।

सीमा, “इतनी गर्मी है, फिर भी पता नहीं लोग लस्सी पीने क्यों नहीं आ रहे?”

फिर वह दोबारा आवाज़ लगाने लगती है, “लस्सी ताज़ी ताज़ी लस्सी… ठंडी ठंडी लस्सी, जो एक बार पी ले, उसकी सारी दिन की थकान दूर जाए।”

सीमा बेचारी लस्सी बेचने के लिए बार-बार आवाज़ लगा रही थी, लेकिन कोई भी उसकी दुकान पर लस्सी पीने नहीं आ रहा था।

इसी तरह, सारा दिन निकल जाता है और उसकी कुछ कमाई भी नहीं होती।

सीमा, “सारा दिन हो गया और सिर्फ़ चार गिलास लस्सी ही बिकी है। इसमें तो लस्सी के सामान के पैसे भी नहीं निकलेंगे।

हे भगवान! अब तो मेरे पास सिर्फ थोड़े से ही पैसे बचे हैं। इन पैसों से तो मैं कुछ भी नहीं कर सकती।”

सीमा को लस्सी बेचते हुए सुबह से शाम हो जाती है, लेकिन कोई और ग्राहक नहीं आता।

तब वह अपनी लस्सी का ठेला लेकर घर चली जाती है।

जब वह घर पहुँचती है, तो उसका मुरझाया हुआ चेहरा देखकर उसका पति कहता है, “क्या हुआ? तुम इतनी उदास क्यों हो?”

सीमा, “लस्सी पीने मेरे ठेले पर कोई नहीं आया।”

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सुरेश, “कोई बात नहीं, आज कोई नहीं आया तो क्या हुआ? ऐसा थोड़ी है कि कल भी कोई न आए।

तुम इतनी मेहनत कर रही हो। देखना, कल तुम्हारी लस्सी पीने सब लोग ज़रूर आएँगे।”

सीमा, “आप कह रहे हैं, तो ज़रूर आएँगे।”

रात हो चुकी थी। फिर सुरेश और सीमा खाना खाकर सो जाते हैं।

अगली सुबह सीमा जल्दी से घर का सारा काम निपटाकर ठेला लेकर लस्सी बेचने के लिए निकल जाती है

और आवाज़ लगाने लगती है, “ठंडी ठंडी ताज़ी ताज़ी स्वादिष्ट लस्सी… जल्दी आओ, जल्दी पीकर अपनी थकान मिटाओ।”

वह बड़ी देर तक आवाज़ लगाती रहती है, पर कोई भी उसकी दुकान पर लस्सी पीने नहीं आता।

वह मायूस हो जाती है। तभी एक बड़ी सी गाड़ी आकर सीमा के ठेले के पास रुकती है, जिसमें से वही लड़का उतरता है, जिसने कल उसकी लस्सी पी थी।

वह अपने सभी दोस्तों से कहता है, “तुम्हें पता है, ये आंटी बहुत ही अच्छी लस्सी बनाती हैं।

तुम एक बार इनकी लस्सी पियोगे न, तो तुम्हारा यहाँ बार-बार लस्सी पीने का मन करेगा।”

एक दोस्त, “क्या यार? तू हमें यहाँ लाया है, वो भी लस्सी पिलाने के लिए? हमें तो लगा था कि तू हमें किसी अच्छी जगह लेकर जाएगा, कुछ बढ़िया खिलाएगा।”

लड़का, “अरे! तुम एक बार आंटी की लस्सी पीकर तो देखो, फिर खुद कहोगे कि लस्सी बहुत ही बढ़िया थी।”

सीमा, “साहब आप एक बार मेरी लस्सी पीकर तो देखिए। अगर आपको अच्छी नहीं लगी, तो मुझे पैसे भी मत देना।”

फिर सीमा सभी लड़कों को एक-एक गिलास लस्सी बनाकर देती है। सभी लड़के लस्सी पीते हैं और उन्हें बहुत अच्छी लगती है।

लड़के, “वाह! क्या लस्सी बनाई है! पीकर तो मज़ा ही आ गया। आंटी, एक गिलास और लस्सी देना।”

दूसरा लड़का, “और मुझे भी एक और गिलास चाहिए।”

तीसरा लड़का, “और मैं तो दो गिलास और पियूँगा।”

ये देखकर सीमा मन ही मन बड़ी खुश हो रही थी।

वह सोचती है, “चलो, कम से कम आज कुछ ग्राहक तो आये और सबसे अच्छी बात यह कि उन्हें मेरी बनाई हुई लस्सी पसंद आ रही है।”

सीमा सभी लड़कों को लस्सी बनाकर दे देती है। जब वे लस्सी पी लेते हैं, तो लड़का सीमा को पैसे देता है। फिर सभी लड़के पैसे देकर चले जाते हैं।

तभी वहाँ कुछ लोग उन लड़कों को लस्सी पीते हुए देखते हैं और वे भी लस्सी पीने के लिए सीमा के ठेले पर आ जाते हैं।

वे लस्सी पीने के बाद सीमा को पैसे देकर वहाँ से चले जाते हैं।

धीरे-धीरे सीमा के ठेले पर भीड़ जमा हो जाती है और कुछ ही देर में उसकी सारी लस्सी खत्म हो जाती है। उसकी अच्छी कमाई भी हो जाती है।

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सीमा मन ही मन खुश होकर सोचती है, “लगता है भगवान ने हमारी सुन ली। घर जाकर जब मैं इन्हें बताऊँगी, तो ये कितने खुश होंगे?”

फिर सीमा जल्दी से घर जाती है और अपने पति सुरेश को पैसे देते हुए कहती है, “ये देखो जी, आज की हमारी कमाई।”

सुरेश, “ये तो बहुत ही अच्छी बात है। तुमने इतनी मेहनत की है, तो फिर लस्सी तो बिकनी ही थी। अब तुम मुझे कब लस्सी बनाकर पिलाओगी?”

ये सुनकर सीमा ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है और साथ में उसका पति सुरेश भी हँसने लगता है।

फिर कुछ ही दिनों में सीमा और सुरेश के घर की हालत सुधरने लगती है और सुरेश भी पूरी तरह ठीक हो जाता है। फिर वे दोनों आराम की ज़िंदगी जीने लगते हैं।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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