इच्छाधारी नागिन | Icchadhari Nagin | Hindi Kahani | Moral Story | Bedtime Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” इच्छाधारी नागिन ” यह एक Bedtime Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


इच्छाधारी नागिन वैशाली गर्भवती थी। देश का जादूगर वैशाली को पकड़ने के पीछे पड़ा हुआ था।

वैशाली को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसके प्रसव का समय नजदीक आ रहा था।

वैशाली, “मेरे लिए अपने बच्चों को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। इस राज्य की महारानी भी गर्भवती हैं। वह मेरी हालत को जरूर समझेंगी।

अगर मैं उनके कक्ष में अंडे देती हूँ, तो शायद ममता के कारण वह मेरी और मेरे बच्चों की सहायता करें।”

गर्भवती महारानी अपनी कक्ष में भोजन कर रही थीं कि अचानक उन्होंने देखा कि एक नागिन उनके पलंग के पास अंडे दे रही है।

महारानी, “सैनिकों, यहाँ आओ और इस नागिन को मेरे कक्ष से दूर करो!”

सैनिकों ने नागिन के अंडों को उठाने का प्रयास किया। नागिन ज़ोर-ज़ोर से सिर पटकने लगी और मनुष्य की आवाज में महारानी से बोलने लगी,

नागिन, “महारानी, मैं घायल हूँ, कुछ पलों की मेहमान हूँ। मेरे अंडों की सुरक्षा कीजिए, आप भी तो गर्भवती हैं।”

महारानी, “सैनिकों, इससे पहले कि यह मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को नुकसान पहुंचाए, इसे और इसके अंडों को पूरी तरह से नष्ट कर दो।”

नागिन, “तुम्हें श्राप देती हूँ। मैं गर्भवती होकर भी ममता को नहीं समझी, तुम और कोई भी तुम्हारे बच्चे को नहीं बचाएगा। मेरा सारा ज़हर तुम्हारी संतान में होगा, जिसका कोई इलाज नहीं।”

जैसे ही सैनिकों ने अंडों को नुकसान पहुंचाया, अचानक महारानी को तेज़ प्रसव पीड़ा होने लगी। वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगीं,

महारानी, “अरे! दाई को बुलाओ! मर जाऊंगी, असहनीय पीड़ा हो रही है। मर जाऊंगी मैं, मुझे बचा लो।”

दाई, “महारानी, धैर्य से काम लें। आप बेकार ही परेशान हो रही हैं।”

महारानी, “दाईमा, विश्वास करो… इस बार की पीड़ा अलग है। मेरे पेट में भयानक दर्द हो रहा है।”

अभी महारानी चिल्ला ही रही थीं कि पूरे देश में तेज हवाएं चलने लगीं, बिजली कड़कने लगी, और अचानक एक बड़ा सा अंडा महारानी के शरीर से बाहर निकल आया और महारानी बेहोश हो गईं।

अंडे को देखते ही बूढ़ी दाई चिल्लाई,

दाई, “हे मेरे देवता! ये नागिन को मारने और उसके अंडे को नुकसान पहुंचाने का ही फल है। महारानी ने अंडा दिया, राम-राम-राम! घोर कलयुग, महारानी ने अंडा जन्मा!”

दासी, “हाय अम्मा! दाईमा, ये क्या कह रही हो? महारानी कोई मुर्गी है?”

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दाई, “ऐसा प्रसव मैंने कभी नहीं देखा। महाराज को सूचना दो।”

दासी, “हमारा भाग्य… हम सब महाराज के बच्चे के बदले अब इस अंडे की देखभाल करेंगे?”

दाई, “भला महाराज को कैसे बताएं कि मैंने अंडा जन्मा है?”

महारानी, “अरे दाईमा! मेरा बच्चा नजर नहीं आ रहा है?”

दासियों ने एक सोने के पालने में रखा हुआ बड़ा सा अंडा महारानी को दिखाया।

महारानी, “अरे ! ये क्या… अंडा? तुम सब पागल तो नहीं हो गईं? मैं कोई चिड़िया हूँ जो अंडा दूंगी?”

दासियां अंडा लेकर रानी के पास आने लगीं, तभी अचानक भूकंप आया और अंडा दासियों के हाथ से नीचे गिर गया। आसमान में तेज बिजली कड़कने लगी। अंडे में बहुत प्यारी सी बच्ची थी।

दासियां, “महारानी, देखिए! बच्ची को छूते ही हमारे हाथों में तेज जलन होने लगी है। हमारे हाथ बुरी तरह जल रहे हैं। राजकुमारी के शरीर में ज़हर है। भगवान बचाए!”

महारानी, “मुझे मेरी बच्ची दे दो, मैं अपनी बेटी को गले लगाना चाहती हूँ। 14 वर्ष बाद भी क्या मैं अपनी औलाद को छू नहीं सकती?”

लेकिन जो भी बच्ची को उठाने जाता, ज़हर के कारण उसके हाथ जलन से भर जाते। महारानी जलन की परवाह किए बिना अपनी बेटी को अपनी गोद में ले लेती हैं।

महारानी, “दासियों, तुम्हें समझ में नहीं आ रहा? महाराज को इस घटना की सूचना दो।”

दाई, “हां ज़रूर, मैं अभी जाकर महाराज को सूचना देती हूँ।”

दाई, “महाराज, महारानी ने बेटी को जन्म दिया है।”

महाराज, “बहुत अच्छा! कैसी है मेरी राजकुमारी? तुम इतनी डरी हुई क्यों हो?”

दासी, “महाराज, राजकुमारी का शरीर ज़हर से भरा है। उसे छूते ही ज़हर का गंभीर असर होता है।”

दाई की बात सुनते ही ज्योतिषी पत्रिका देखने लगे। फिर ज़ोर से चिल्लाए,

ज्योतिषी, “सत्यानाश हो गया महाराज, अब प्रलय होगी। इस लड़की का जन्म संसार के लिए अशुभ है। ये तेज बिजली की कड़क और भूकंप इसके सूचक हैं।”

महाराज, “ये आप क्या कह रहे हैं?”

महाराज चिंता में डूब गए। नवजात राजकुमारी को सैनिक दस्ताने पहनकर पकड़ते हैं और उसे कमरे में बंद कर दिया जाता है। सारे राज्य में प्राकृतिक आपदा के कारण धन और जन की बहुत हानि होती है।

महाराज, “ज्योतिषी, आपकी बात सच हुई। आप ही समस्या का समाधान बताएं।”

ज्योतिषी, “महाराज, उसके लिए एक शीशे का महल बनवा दीजिए, जहाँ उसकी जरूरत की सारी चीजें हों।

उस पर हम सबकी नजर रहे और राजकुमारी को कष्ट भी न हो। 3 साल के बाद राजकुमारी को वहीं रहना होगा।”

महाराज ने उसके लिए एक शीश महल बनवा दिया और उसका नाम वसुधा रखा। वह धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और 3 साल की होते ही शीशमहल में उसे बंद कर दिया गया।

राजकुमारी अब 15 वर्ष की हो गई। कोई साथी न होने के कारण वह बहुत उद्दंड हो चुकी थी।

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वसुधा, “पिताजी, मैं भी दुनिया देखना चाहती हूँ, सबसे मिलना चाहती हूँ। आप मुझे इस कैद से आज़ाद कर दें। अब मुझसे यहाँ और नहीं रहा जाता।”

महाराज, “माना कि तुम राजकुमारी हो, पर तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम प्रजाजनों को नुकसान पहुंचाओ। तुम बाहर आकर किसी को भी दर्द पहुंचा सकती हो।”

वसुधा, “पिताजी, अब मुझे खुद को बस में रखना आ गया है। मैं किसी को नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी।”

महाराज, “अगर ऐसी बात है तो तुम बाहर आ सकती हो।”

वसुधा बाहर आ गई और महल में घूमने लगी। अचानक वसुधा ने देखा कि एक बकरी महल के सरोवर में डूब रही है।

वह उसे बचाने के लिए सरोवर में कूद पड़ी, किंतु उसके स्पर्श से ही सरोवर का पानी नीला हो गया और ज़हर के प्रकोप से बकरी मर गई।

महाराज, “तुम्हें शीश महल में ही रहना होगा जब तक तुम्हारी बीमारी का इलाज नहीं मिलता। हम तुम्हारे लिए किसी को खतरे में नहीं डाल सकते। अगर तुम बिना आज्ञा बाहर निकलीं तो तुम्हें इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी।”

राजकुमारी को पिता की बात बहुत बुरी लगी। उसे उदास देखकर महाराज बोले,

महाराज, “तुम जानती हो वसुधा, हम तुम्हें बहुत प्रेम करते हैं। लेकिन हमें तुम्हारी और अपनी प्रजा की भी चिंता है। अगर कुछ भी हुआ तो यह किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा।”

वसुधा, “लेकिन पिताजी, इसमें मेरा क्या कसूर? मुझे ही सब क्यों सहना पड़ रहा है? मैं जानती हूँ, आप मुझे प्रेम नहीं करते क्योंकि आपको अभी मेरी कोई जरूरत नहीं है।

लेकिन जिस दिन आपको मेरी जरूरत पड़ेगी, उस दिन तो आपको मुझे यहाँ से निकालना ही पड़ेगा।”

महाराज के दोनों बड़े भाई राजकुमारी को देखने महल आए।

वसुधा, ” चाचा, आप दोनों को देखकर बहुत खुशी हुई। मेरा दिल आपके गले लगने को कर रहा है। क्या आप मुझे अपने गले नहीं लगाएंगे?”

राजकुमारी ने भोजन खाया और अपने कंगन देने के लिए उस आदमी के पास गई। जैसे ही उसने उस आदमी को छुआ, वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा।

आदमी”मेरा पूरा शरीर जल रहा है, ये क्या हो रहा है? मेरी सांसें रुक रही हैं!

राजकुमारी सीमा तोड़कर भाग गई।

एक दिन एक जादूगर उस नागिन के पास से गुजरा।

जादूगर,” मुझे ऐसा आवाज क्यों हो रहा है कि वह जहरीली नागिन यही आसपास कहीं है? यह क्या इस आदमी के शरीर में तो मुझे उसी जहरीली नागिन का जहर दिखाई पड़ रहा है।”

कुछ देर तलाशने के बात जादूगर को वह नागिन मिल जाती है। जादूगर अपने मंत्र शक्ति से भरा हुआ पानी राजकुमारी के ऊपर फेंकता है और देखते ही देखते राजकुमारी जादूगर की कैद में आ गई। जादूगर उसे लेकर अपने महल पहुँचा।

जादूगर, “मेरे सामने आ जाओ, मैंने तुम्हें पहचान लिया है, वैशाली। मुझसे छुपने की कोई जरूरत नहीं।”

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वैशाली, “जादूगर, तू मेरे बीच में क्यों आ रहा है? महारानी ने मेरी ममता का अपमान किया है। मेरी प्रार्थना करने के बावजूद भी मेरी आँखों के सामने मेरे अंडों को तोड़ दिया।

वह अपनी बेटी को भी कभी हृदय से नहीं लगा पाएगी। मैं राजकुमारी का शरीर कभी नहीं छोड़ूंगी। सबको मेरे अपमान का बदला भुगतना होगा।”

जादूगर, “वैशाली, तू सारे मानव समाज से इस बात का बदला नहीं ले सकती। तू महारानी को क्षमा कर दे। या फिर मुझे बता, तेरा क्रोध कैसे शांत होगा?”

वैशाली, “मेरा क्रोध शांत करना चाहता है तो सुन… महारानी को मुझसे मुकाबला करना होगा।”

जादूगर, “कैसा मुकाबला?”

वैशाली, “उसे एक परीक्षा देनी होगी। अगर वह जीती, तभी उसकी बेटी को श्राप से मुक्ति मिलेगी।”

जादूगर राज्य पहुँचता है। महाराज दोनों राजकुमारों के शवों के पास उदास बैठे होते हैं।

जादूगर, “महाराज, आपके दुख का उपाय मेरे पास है। मैं राजकुमारी को ठीक करवा सकता हूँ।

लेकिन उसके लिए महारानी को नागिन वैशाली की दी हुई चुनौतियों का सामना करना होगा।

महाराज, यदि आपको ये शर्त मंजूर है, तो मैं राजकुमारी को हमेशा के लिए इस मुसीबत से निकलवा सकता हूँ।”

महाराज, “मुझे मंजूर है।”

जादूगर महल में महारानी के साथ जाता है, तभी वहाँ वैशाली भी आ जाती है।

वैशाली, “महारानी, कल पूर्णिमा है। आपको पूरी रात भर नागरानी की तपस्या करनी होगी। अगर आपकी तपस्या से नागरानी खुश हुई, तो आप उनसे वरदान के रूप में इस श्राप से मुक्ति पा सकती हैं।

लेकिन याद रखना, ये परीक्षा आपके लिए बहुत कठिन होने वाली है। नागरानी कभी भी किसी को यूँ ही दर्शन नहीं देतीं। उनके दर्शन के लिए कई वर्षों तक तपस्या करनी पड़ती है।

ये 3 दिन की तपस्या आपके जीवन के सबसे कठिन दिन होने वाले हैं। या तो आप इस तपस्या के बाद अपनी बेटी को बचा पाओगी, वरना खुद भी मारी जाओगी। क्या आप इस परीक्षा के लिए तैयार हैं?”

महाराज, “असंभव! ऐसा करने से तो महारानी की मृत्यु निश्चित है।”

महारानी, “महाराज, मैं अपने प्राण देने को भी तैयार हूँ। मैं जितना भी कर लूँ, उतना कम है। दासियों, तुम मेरे वहाँ जाने की तैयारियाँ करो।”

महारानी पूरी रात नागरानी की पूजा करती है और अगले दिन कुएं में प्रवेश करने को तैयार हो जाती है।

महाराज, “हमें कुछ ठीक नहीं लग रहा।”

महारानी, “महाराज, मैं जानती हूँ कि आपको मेरी चिंता है, लेकिन मैं अपने पापों की सजा कब तक अपनी बेटी को भुगतने दूंगी?

मुझे मेरे पापों की सजा मिलनी चाहिए। अगर मैं ना लौटी, तो राजकुमारी का ध्यान रखिएगा और वसुधा से कहिएगा कि मुझे माफ़ कर दे।”

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इसके बाद अगले दिन महारानी सुबह-सुबह कुएं के पास पहुँच जाती है।

महाराज, “हम आपका इंतजार करेंगे, अपना ध्यान रखिएगा महारानी।”

महारानी, “आप भी अपना ध्यान रखिएगा।”

इसके बाद महारानी कुएं के अंदर जाने लगती है।

महारानी, “वैशाली ने बताया था कि यहीं से नागलोक का रास्ता जाता है। थोड़ा और नीचे जाकर देखती हूँ, लगता है पानी के अंदर वहाँ पहुँचने का जरूर कोई रास्ता है।”

इसके बाद महारानी कुएं के अंदर जाकर वहाँ पर एक सर्प की मूर्ति को देखती है और उसके पास तैरते हुए जाने लगती है।

महारानी, “यहाँ तो बस ये मूर्तियाँ हैं, समझ नहीं आ रहा आगे जाने का रास्ता कहाँ से ढूंढूँ? ये क्या? ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कि यह कोई रास्ता है?”

इसके बाद जैसे ही महारानी उस मूर्ति को छूती है, वह गायब हो जाती है और महारानी नागलोक में पहुँच जाती है।

महारानी, “यहाँ इतना अंधेरा क्यों है?”

तभी वहाँ एक रौशनी आती है और महारानी उस रौशनी का पीछा करने लगती है।

महारानी, “इस रौशनी के पीछे जाकर देखती हूँ। क्या पता ये रास्ता नागलोक की तरफ जाता हो?”

इसके बाद महारानी उस रौशनी के पीछे जाने लगती है। तभी वह रौशनी के अंदर जाती है और नागलोक के अंदर पहुँच जाती है।

महारानी, “लगता है यही है नागलोक। हे प्रभु! कृपा कीजिए कि जिस काम के लिए आई हूँ, उसमें मुझे सफलता मिले।

कैसी अद्भुत जगह है?’ये रास्ता कैसे अपने आप बन रहा है? प्रभु, मेरी मदद कीजिएगा। पता नहीं यहाँ और क्या-क्या होने वाला है?”

इसके बाद महारानी उस छोटे से द्वीप पर जाने लगती है और वहाँ जाकर तपस्या करने लगती है। धीरे-धीरे सारे साँप महारानी की तरफ आने लगते हैं और महारानी के शरीर में लिपट जाते हैं।

वे महारानी को डसने भी लगते हैं और अपनी ज़हरीली सांसें महारानी की तरफ फैलाने लगते हैं। लेकिन फिर भी महारानी हार नहीं मानती।

ज़हरीले विष के प्रभाव से महारानी बहुत बीमार होने लगती है। धीरे-धीरे महारानी को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और वहीं उनकी मृत्यु हो जाती है।

तभी उनकी आत्मा उनका शरीर छोड़ देती है। तभी वहाँ नागरानी आ जाती है।

नागरानी, “आखिर तुम भी ये परीक्षा पार नहीं कर पाई? यही तुम्हारे कर्मों की सजा है। जैसा करोगी, वैसा पाओगी। अब तो तुम समझ गई होंगी कि गलत करने का अंजाम क्या होता है?”

महारानी, “नागरानी, मुझे मेरे कर्मों का दंड तो मिलना ही था। क्या फर्क पड़ता है कि आज मिले या कल?

नागरानी, “सही कहा है किसी ने… मृत्यु सबकी आँखें खोल देती है। अब कुछ ही देर में यमदूत आते ही होंगे तुम्हें लेने।”

इसके बाद नागरानी वहाँ से चली जाती है।

महारानी, “मुझे माफ़ कर देना, वसुधा। तेरी जिंदगी में दुखों के अलावा मैं तुझे कुछ ना दे पाई।

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हो सके तो मुझे माफ़ कर देना, बेटा। काश भगवान मेरी जिंदगी के बदले तुम्हें जीवन दे दे।”

तभी वहाँ नागरानी आ जाती है।

नागरानी, “उठो, पुत्री।”

महारानी, ” नागरानी आप?”

नागरानी, “आखिरकार तुम ममता का सही मतलब समझ गई हो। मुझे खुशी हुई यह जानकर कि हर चीज़ की कीमत होती है, पुत्री। अब चुनाव तुम्हारा है। किसकी जिंदगी बचाना चाहती हो, अपनी या अपनी बेटी की?”

महारानी, “नागरानी, आज तक मैंने वसुधा को सिर्फ दुखों के अलावा कुछ नहीं दिया। आज अगर अपनी जिंदगी का मोह रखूंगी, तो जी ना पाऊंगी कभी।

मेरी बेटी को खुशियों भरी जिंदगी का वरदान दे दो, माँ ताकि उसने जितना सहा है, उसकी भरपाई हो सके। मैं जहाँ भी रहूँगी, खुश रहूँगी।”

नागरानी, “ठीक है। तुम्हारी बेटी को सदैव खुशियों से भरी जिंदगी का मैं वरदान देती हूँ। तुम आखिरी बार अपनी बेटी से मिल सकती हो, लेकिन वह तुम्हें देख नहीं पाएगी।”

तभी वहां वैशाली आ जाती है।

वैशाली, “नागरानी, एक विनती है आपसे।”

नागरानी, “बोलो वैशाली।”

वैशाली, “आपने ही कहा था ना, जिंदगी के बदले जिंदगी? वसुधा की जिंदगी के बदले मेरी जिंदगी ले लीजिए।

अपनी संतानों को खोकर वैसे भी जिंदगी जीने का कोई उद्देश्य समझ नहीं आता। खुद तो अपनी संतान का सुख ना पा सकी, कम से कम किसी को वह सुख देकर दिल का एक बोझ तो कम कर ही सकती हूँ।”

नागरानी, “तुम सच में महान हो, वैशाली। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। जाओ और अपनी नई जिंदगी शुरू करो। तुम जल्द ही माँ बनोगी और वह बनेगी हमारे साम्राज्य की नई नागरानी।

यह मेरा वरदान है तुम्हारी बेटी के लिए। और महारानी, तुम भी जाओ और अपने परिवार वालों के साथ एक नई जिंदगी शुरू करो।”

इसके बाद नागरानी वहाँ से चली जाती है।

महारानी, “मुझे माफ़ कर देना, वैशाली। तुम्हारे सामने जितनी माफी मांग लूँ, उतनी कम है। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।

आज से लेकर तुम्हारे प्रसव तक तुम हमारी जिम्मेदारी हो। तुम हमारे ही राजमहल में रहोगी।

तुम्हारी देखभाल करके अपने पापों को कुछ कम करना चाहूंगी। मना मत करना।”

वैशाली, “ठीक है। मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी गलती का पछतावा है।”

इसके बाद महारानी अपने राजमहल पहुँच जाती है और वहाँ वसुधा भी ठीक हो चुकी थी। इसके बाद सब वहाँ खुशी-खुशी रहने लगते हैं।


दोस्तो ये Bedtime Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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