हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई कचोरी वाला ” यह एक Jadui Story है। अगर आपको Jadui Stories, Magical Kahani या Jadui Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
आज स्वतंत्रता दिवस था। मल्लू मिठाई वाला अपनी दुकान पर जलेबियां छान रहा था। दुकान पर कस्टमर्स की भीड़ लगी हुई थी।
सरपंच, “मल्लू भई, जलेबियां कैसे दे रहे हो?”
मल्लू, “₹450 किलो।”
सरपंच, “अरे! अभी-अभी तो ₹200 किलो जलेबी दे रहे थे। एक घंटा में दो गुना से ज्यादा कैसे दाम बढ़ गया?”
मल्लू, “आप ठीक कह रहे हैं, सरपंच जी। लेकिन एक घंटा पहले एक भी कस्टमर मेरे दुकान पर नहीं थे।
अभी भीड़ को देख रहे हैं ना? अभी ₹500 किलो भी बेचूंगा तो हाथों-हाथ बिक जाएगा।”
सरपंच, “इतना लालच ठीक नहीं मल्लू, भगवान से डर। इतना लालच ठीक नहीं।”
मल्लू, “इसमें लालच की क्या बात है? इसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। मांग बढ़ेगा तो दाम भी बढ़ेगा।
₹200 किलो जलेबी लेना है तो कल आकर ले लेना। आज तो यही भाव लगेंगे भैया। लेना है तो बोलो, नहीं तो आगे बढ़ो।”
सरपंच, “लूँगा क्यूँ नहीं? मंत्रीजी अभी आने वाले हैं झंडा फहराने के लिए। ये लो ₹4500, 10 किलो जलेबी तौल दो।”
उधर मल्लू का बेटा मग्गू के स्कूल में मास्टर साहब मग्गू से बोलते हैं।
मास्टर, “बच्चो, आज हम सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। आज ही के दिन हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था।
आज हम लोग शपथ लेते हैं कि हर गलत करने वालों का विरोध करेंगे, चाहे वह अपना ही क्यों ना हो।”
बच्चे, “जी सर, हम शपथ लेते हैं कि हम भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे, चाहे वो कितना भी अपना क्यों ना हो।”
मास्टर, “शाबाश बच्चो! अब कुछ ही देर में प्रिंसिपल सर झंडा फहराएंगे। मग्गू, तुम एक-दो लड़कों के साथ जाकर अपने दुकान से 10 किलो जलेबी ले आओ।”
मग्गू दो लड़कों के साथ जलेबी लाने के लिए अपनी दुकान पर जाता है। मग्गू बहुत ही जिद्दी लड़का था।
अगर वो कोई चीज़ एक बार करने की ठान लेता तो वो करके ही दम लेता।
मग्गू, “पिताजी ये लो ₹2000, स्कूल के लिए 10 किलो जलेबी दे दो।”
मल्लू, “बेटा ₹2000 नहीं, ₹4500 लगेंगे 10 किलो जलेबी का।”
मग्गू, “अरे पिताजी! ₹200 प्रति किलो के हिसाब से 10 किलो जलेबी के 2000 हुए ना?”
मल्लू, “लेकिन बेटा, जलेबी के दाम ₹200 नहीं, ₹450 प्रति किलो हो गया है।”
मग्गू, “लेकिन पिताजी, ये तो गलत है। ये भ्रष्टाचार है और हम भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं। हम ऐसी लूट नहीं होने देंगे, वो भी आज के दिन।”
मल्लू, “ज्यादा नेता बनने की कोशिश मत करो। लेना है तो लो, नहीं तो फूटो यहाँ से। ₹450 प्रति किलो से कम में नहीं जलेबी बेचूंगा।”
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मग्गू, “अगर आप सही कीमत पर जलेबी नहीं दे पाए तो हम आंदोलन करेंगे। बोलो दोस्तों, इन्कलाब ज़िंदाबाद!”
दोस्त, “जिंदाबाद जिंदाबाद।”
मग्गू, “तानाशाही नहीं चलेगी।”
दोस्त, “नहीं चलेगी नहीं चलेगी।”
मग्गू वहीं धरने पर बैठ जाता है। इधर लालची मल्लू कीमत कम करने को तैयार नहीं था और उधर उसका बेटा मग्गू काफी जिद्दी था,
इसलिए कोई समझौता नहीं हो पाता और मग्गू अपनी ही दुकान के सामने अपने ही पिताजी के खिलाफ़ धरने पर बैठ जाता है।
जैसे ही मास्टर प्रकाश को ये सारी बातें पता चलती हैं, वो घटनास्थल पर पहुंचते हैं।
मास्टर, “क्या हुआ मग्गू? तुम यहाँ जलेबी लेने आए थे, फिर धरने पर क्यों बैठ गए?”
मग्गु, “सर, पिताजी ने आज जलेबी का दाम ₹200 से बढ़ाकर ₹450 प्रति किलो कर दिया है, इसलिए हम इस भ्रष्टाचार के खिलाफ़ धरने पर बैठे हैं।”
मास्टर, “क्यों मल्लू जी, जलेबी के दाम अचानक क्यों बढ़ा दिए?”
मल्लू, “सर, आप तो बच्चों को अर्थशास्त्र पढ़ाते ही होंगे। अर्थशास्त्र हमें बताता है कि किसी भी वस्तु का कीमत उसके मांग पर निर्भर करता है। आज जलेबी का मांग ज्यादा है, तो कीमत भी ज्यादा होगी।”
मास्टर, “ऐसा थोड़े है कि मनमाने तरीके से कीमत बढ़ा देंगे।”
मल्लू, “मैं तो अपनी जलेबी की कीमत यही रखूँगा। हाँ, अगर आपको दूसरे जगह से लेना है तो यहाँ से 17 किलोमीटर दूर जाकर सस्ती जलेबी ला सकते हो।”
मास्टर, “ओहो! यानी इस गांव में एकमात्र हलवाई होने का फायदा आप उठा रहे हो।”
मास्टर, “मग्गू, क्या करोगे? हमें स्वतंत्रता दिवस आज ही मनाना है। इसीलिए ₹450 के हिसाब से ही 10 किलो जलेबी ले लेते हैं।”
मग्गू, “नहीं सर, आप आज के दिन भ्रष्टाचार को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं? मैं भी हलवाई का बेटा हूँ, मैं यहीं पर जलेबी छानूंगा और ₹150 प्रति किलो जलेबी सभी को दूंगा।”
1 घंटे के अंदर मग्गू अपने दोस्तों के साथ मिलकर वहाँ पर तंबू डालकर मल्लू की दुकान के ठीक सामने ₹150 किलो जलेबी छानकर बेचने लगता है।
देखते ही देखते मग्गू की दुकान पर भीड़ लग जाती है। मल्लू के सारे कस्टमर्स मग्गू की दुकान पर आ जाते हैं।
मल्लू का लगभग एक क्विंटल छानी हुई जलेबी वैसी ही पड़ी की पड़ी रह जाती है।
मल्लू, “बबली… बबली, कहाँ हो? बाहर आओ। देखो अपने लाडले को, क्या कर रहा है?”
बबली, “अरे! क्या हुआ जी? क्यों आसमान सर पर उठाए हो? अपना मग्गू दुकान खोले हुए है और उसकी दुकान पर भीड़ लगी हुई है,
तो आपको क्यूं जलन हो रही है? सारी दुनिया चाहती है कि उसका बेटा आगे बढ़े, और एक आप हो।”
मल्लू, “सारी दुनिया अपने बेटे को आगे बढ़ते देखना चाहती है, लेकिन यह नहीं कि बाप को पीछे छोड़कर और घाटे में व्यापार चलाकर कोई आगे बढ़े।
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वह देखो, दाम के दाम जलेबियां बेच रहा है। मेरी डेढ़ क्विंटल जलेबियां यूं ही बर्बाद चली जाएंगी। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता।”
बबली, “अब तुम तो उसे जानते ही हो कि वो कितना जिद्दी है? अगर उसने जिद पकड़ ली, तो वो उसे पूरा करके ही रहेगा।
और तुम्हें क्या पड़ी थी दोगुने से ज्यादा दाम पर जलेबियों को बेचने की? मैं कहती हूँ जी, यही लालच आपको एक दिन कहीं का नहीं छोड़ेगा।”
मग्गू, “आओ आओ, चाचा आओ, चाची आओ भैया और भाभी आओ, दाम के दाम जलेबियां खाओ। स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाओ।”
तभी वहाँ से सरपंच जी के साथ मंत्री जी गुजरते हैं और मग्गू की दुकान पर भीड़ देखकर,
मंत्री जी, “हुकुमचंद जी, ये आपके गांव में इतनी भीड़ क्यों लगी है? शायद ये जलेबी की दुकान है।
लेकिन ठीक सामने इतनी बड़ी जलेबी की दुकान में एक भी आदमी नहीं… ऐसा क्यों?”
सरपंच, “मास्टर जी, मल्लू के दुकान के सामने किसने जलेबी की दुकान खोली है? और उनके दुकान पर भीड़ है, इसके दुकान की भीड़ कहाँ गई?
मास्टर, “सरपंच जी, मल्लू ने अपने जलेबी का दाम दुगना से भी ज्यादा बढ़ा दिया था।
उसी के खिलाफ़ उसका बेटा मग्गू दाम के दाम जलेबियां बेच रहा है, इसलिए वहाँ पर सारी भीड़ लगी हुई है।”
मंत्री जी, “वाह! इस युग में इतना अच्छा विचार वाला लड़का। सरपंच जी, मैं उस लड़के से मिलना चाहूंगा।”
सरपंच, “बेटा मग्गु, ज़रा इधर आना। मंत्री जी तुमसे मिलना चाहते हैं।”
मग्गू, “नमस्ते मंत्री जी!”
सभी बच्चे, “मंत्री जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद… मंत्री जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद!”
सरपंच, “देखो मल्लू, अपने बेटे से कुछ सीखो। किस तरह लोगों की सेवा के लिए तत्पर है? तुम्हें अपने बेटे पर गर्व होना चाहिए।”
मल्लू, “क्या खाक सीखें? इस नालायक ने अपने धंधे में कुछ भी नहीं कमाया और मेरा धंधा भी चौपट कर दिया।
डेढ़ क्विंटल जलेबियां मेरी बर्बाद हो गईं। जितना मैं सुबह से कमाया था, सब घाटा में चला गया इस नलायक के चलते।”
मग्गू, “अरे पिताजी! साधारण कमाई से भी काम चल सकता है। अगर आप सही कीमत पर जलेबियां बेचते तो भी बहुत कमाते, क्योंकि गांव में सिर्फ आप ही एक जलेबी बनाने वाले हैं।”
मल्लू, “अच्छा, मंत्री जी ने ज़रा पीठ क्या थपथपा दी, तुम तो नेता जैसी बातें करने लगे।
अरे बेटा! नमक, तेल, ईंधन, इन सब का जब इंतजाम करना पड़ेगा तो सब अच्छी बातें धरी की धरी रह जाएंगी। बच्चू, कोई दाम नहीं देगा। बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया, समझे?”
मग्गू, “मैं ज्यादा तो नहीं जानता, पर मैंने आज शपथ ली है कि हर बुराई को हम रोकेंगे।
अगर आप कल से भी उचित मूल्य पर सामान नहीं बेचते तो मैं खुद उचित मूल्य पर लोगों को खाना उपलब्ध करवाऊंगा।”
मल्लू, “मैं अपने सामान के मूल्य को कम नहीं करने वाला।”
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मग्गू, “तो ठीक है पिताजी, मैं भी आपका जिद्दी बेटा हूँ। मैं गांव के लोगों को जितनी भी कम हो सके उतने कम रेट पर कचौड़ी बनाकर खिलाऊंगा।”
दूसरे दिन से मग्गू अपनी कचौड़ी की दुकान मल्लू की दुकान के ठीक सामने लगाने लगता है।
कम कीमत पर भर पेट कचौड़ी खिलाने के चलते उसकी दुकान पर लोगों का दिन भर तांता लगा रहता है, जबकि मग्गू के पिताजी मल्लू अपनी दुकान पर बैठे मक्खी मार रहे होते हैं।
इस तरह मल्लू धीरे-धीरे अपने घर में बैठे-बैठे खाते खाते कंगाली के कगार पर पहुँच जाता है।
मल्लू, “जगिया, इधर सुन। तुम्हें एक काम करना है।”
जगिया, “तुम तो जानते हो मल्लू काका, एक बोतल दारू के बदले जगिया कुछ भी कर सकता है।
मल्लू, “अरे जगिया! मैं तुम्हें 10 दिन फ्री में दारु का बोतल दिलवा दूंगा। लेकिन यह काम सीक्रेट है, किसी को भी मालूम नहीं चलना चाहिए।”
झगिया, “अरे मल्लू काका! आप काम बोल कर तो देखो। मेरे इस कान से दूसरे कान को खबर भी नहीं होगी। ये जगिया बेवड़ा का वादा है।”
मल्लू, “तो ठीक है, ये लो जमाल घोटा का पुड़िया और मग्गू के कचौड़ी में इसे कैसे डालना है, ये तुम जानो?”
जगिया, “आप फिकर ना करो मल्लू काका, बस मेरे हाथ की सफाई देखते जाओ।”
दूसरे दिन जगिया सुबह-सुबह मग्गू की दुकान पर जाता है।
जगिया, “मग्गू, मुझे बहुत भूख लगी है। दो दिन से कुछ खाया नहीं है, मुझे कुछ खाने को दो।”
मग्गू, “जगिया, अभी-अभी तो दुकान खोलने जा रहा हूँ। इतनी सुबह खाना कहाँ से बनाऊंगा?
अभी तो सारा इंतजाम ही कर रहा हूँ। थोड़ी देर बाद आना, फिर मैं तुम्हें कचौड़ी खिलाऊंगा।”
जगिया, “जगिया बेवडा है पर मुफ्तखोर नहीं। मैं मुफ्त में खाकर भिखारी नहीं बनना चाहता। मैं काम करके खाना चाहता हूँ। लाओ, मैं कचौड़ी का आटा गूंथ दूं।”
मग्गू, “ये तो अच्छी बात है, जगिया। हर आदमी को स्वाभिमानी तो होना ही चाहिए। ये लो, आटा गूंथ दो।”
जगिया चुपके से आटा गूंथते हुए उसमें जमाल घोटा वाला पुड़िया मिला देता है। उस दिन जितने भी लोग मग्गू की दुकान पर खाना खाने आते हैं,
सभी या तो बीमार पड़ जाते हैं या दस्त से उनकी हालत खराब हो जाती है। गांव में हाहाकार मच जाता है।
मल्लू, “सरपंच जी, मैं ना कहता था कि घटिया सामान इस्तेमाल करने से बड़ी घटना घट सकती है? सस्ते सामान का यही नतीजा है।
मैं भले ही कुछ ज्यादा कीमत पर खाना खिलाता हूँ, लेकिन मेरे खाने से आज तक गांव में कोई बीमार नहीं पड़ा।”
सरपंच, “वैसी बात नहीं है, मल्लू। मग्गू का दुकान खुले हुए आज छह महीने हो गए। इन छह महीनों में ये पहली घटना है।
ये तो जांच का विषय है। मैंने पुलिस इंस्पेक्टर धाकड़ सिंह को इसकी जांच के लिए बोल दिया है।”
तभी इंस्पेक्टर धाकड़ सिंह, जगिया को पकड़े हुए वहाँ पहुँचता है।
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इंस्पेक्टर, “ये रहा सरपंच जी, जिसने मग्गू के कचौड़ी में जमाल घोटा और बीमार होने वाला जहरीला पाउडर मिलाया था।”
सरपंच, “पर इंस्पेक्टर साहब, आपको ये पता कैसे चला कि इसी ने मग्गू के कचौड़ी में जहरीला पदार्थ मिलाया है?”
इंस्पेक्टर, “दारू का ज्यादा सेवन कर लेने के कारण ये थाने के पास गिरा हुआ बड़बड़ा रहा था।
इसके पास दारू की 10 बोतलें थीं। पूछ्ताछ में इसने बताया कि मल्लू ने उसे ये दारू उपलब्ध करवाए हैं। उसके बदले में इसने मग्गू के कचौड़ी में कुछ पाउडर मिलाया था।”
सरपंच, “देखा मल्लू, लालच ने तुम्हें कहाँ पर लाकर छोड़ा? अपने ही बेटे के खिलाफ तुम अपराधी बन गए
और सारे गांव के लोगों को संकट में डाल दिया। ले जाइए इंस्पेक्टर साहब इस लालची आदमी को।”
इंस्पेक्टर मल्लू को पकड़कर ले जाता है। अदालत उसे छह महीने के कारावास की सजा सुनाती है।
इधर मग्गू धीरे-धीरे अपने दोस्तों की मदद से कई शहरों में सस्ती कचौड़ी की दुकान खोल लेता है।
उसकी ज़िद थी कि हर आदमी को उचित कीमत पर खाना उपलब्ध करवाए।
दोस्तो ये Jadui Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!