जादुई पकोड़ेवाला | Jadui Pakodewala | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Magical Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जादुई पकोड़ेवाला ” यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Magical Stories, Jadui Stories या Jadui Wali Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक बार की बात है। एक गांव में सत्या नाम का एक हलवाई रहा करता था। 

उसका एक बेटा भी था, जो बहुत ही बड़ा, आलसी और निकम्मा था। जिसको लेकर सत्या हमेशा गुस्से में रहा करता था। 

1 दिन (सुबह)…
सत्या,” अरे ओ निकम्मे ! क्या दिनभर इस खाट पर पड़ा रहता है ? कलमूहां ये फ़ोन, इसको तो मैं चूल्हे में डाल दूंगा। 

दिन भर बस उसी में ताका झांकी करता रहता है। बस दिन भर घर में पड़ा ही रहता है। “

सत्या की पत्नी,” ये लीजिए, चाय पी लीजिए। “

बेटा,” अरे माँ ! इन्हें चाय नहीं, थोड़ा ठंडा शरबत दीजिए तो शायद दिमाग ठंडा होगा। “

माँ हँसी दबाती है। 

सत्या,” अपने इस लाड साहब को कहो कि चलकर दुकान पर मेरा हाथ बटाए। “

बेटा,” बापू, दुकान कितनी दूर है, मैं चल कर कैसे जाऊंगा ? “

सत्या,” अरे ! नहीं नहीं लॉर्ड साहब, आप चलकर कैसे जाएंगे ? आपके पैर खराब हो जाएंगे ,आपके लिए अभी मैं गाड़ी बुलवाता हूँ वो आपको आराम से दुकान तक छोड़ देगी। “

बेटा,” हाँ बापू, ये सही रहेगा। “

सत्या,” हे भगवान ! क्या करूँ इस नालायक का ? चुपचाप चला वरना तेरा फ़ोन उठा के बाहर फेक दूंगा, पहले ही बता रहा हूँ। “

इसके बाद दोनों दुकान पहुंचते हैं। 

दुकान पहुंचने के बाद…
सत्या,” अब बैठा क्या है ? खड़े हो जा और हाथ बटा मेरा काम में। कोई भी पकौड़े लेने आए तो देना उन्हें, मैं आता हूँ तब तक। “

बेटा,” ले लो भाई ले लो, गरमा गर्म पकोड़े ले लो। धूम दाल पकोड़ा, पालक पकोड़ा, भुजिया गोभी पकोड़ा, ब्रेड पकौड़ा, आओ आओ और स्वादिष्ट पकोड़े खाओ। “

कुछ ही देर में वहाँ पर बहुत सारे लोग आ जाते हैं। “

पहला आदमी,” अरे ! मूंगदाल पकड़ा देना भाई। “

दूसरा आदमी,” मुझे भजिया गोभी पकोड़ा। “

तीसरा आदमी,” और मुझे ब्रेड पकोड़ा पैक कर दो। “

कुछ ही देर में अच्छी खासी बिक्री हो जाती है। 

बेटा (मन में),” मैंने इतनी बिक्री करवा दी, पर पिताजी फिर भी मुझे ही निकम्मा कहते हैं। “

तभी सत्या आ जाता है। 

सत्या,” बताओ, कितने की बिक्री हुई ? “

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विजय उसे सारे पैसे दे देता है। 

सत्या,” अरे वाह ! इतने की बिक्री ? तूने कोई झोल तो नहीं किया ना ? “

विजय,” अरे ! नहीं नहीं पिताजी, मैंने कुछ नहीं किया। वो तो बस आप ही मुझे निकम्मा कहते हैं वरना मैं आदमी बड़ा काम का हूँ। “

सत्या,” चुप कर बेवकूफ। “

विजय (मन में),” कभी खुश नहीं होते खडूस कहीं के। पता नहीं शायद भगवान चेहरे पर हँसी देना ही भूल गए। 

मैंने तो कभी हँसते हुए देखा ही नहीं। मैं भी दिखा दूंगा कि मैं क्या क्या कर सकता हूँ ? “

सत्या,” तू कुछ भी करना पर बस मेरा नाम मत डुबो देना। “

विजय (मन में),” मन की बात भी सुन सकते हैं क्या ? मैं दिखा दूंगा इन्हें, मैं भी बहुत अच्छे पकोड़े बना सकता हूँ। आँखे बंद करके भी पकोड़े बना सकता हूँ। “

फिर विजय बिना देखे ही पकोड़े के घोल में मसाले डालना शुरू करता हैं। 

विजय (गाना गाते हुए),” ये हैं विजय के पकोड़े ओ हो ओ, ये हैं मूंगदाल के पकोड़े। “

कुछ देर के बाद एक आदमी आता है। 

आदमी,” भाई, पकौड़े देना। “

विजय,” हाँ भाई, मेरे स्पेशल वाले पकौड़े खाओ और बताओ कैसे बने हैं ? “

आदमी,” अरे वाह विजय भैया ! इतने स्वादिष्ट पकोड़े। ये तो सत्या चाचा के हाथ के पकोड़े से भी ज्यादा स्वादिष्ट है। “

विजय,” देखा ना पिताजी, आपके अलावा सब मेरी कदर करते है। मैं निकम्मा नहीं हूँ। “

आज दुकान में अच्छी खासी बिक्री हो जाती है। दोनों घर पहुंचते है। अगले दिन फिर सत्या विजल को दुकान लेकर जाता है। 

सत्या,” विजय, जाओ और जाकर कल से भी ज्यादा स्वादिष्ट पकौड़े बनाना। “

विजय,” अब तो मानते हो ना कि मैं आपसे भी अच्छे पकोड़े बनाता हूँ ? ‘

तभी वहाँ पर एक अत्यंत ही मोटा आदमी आ जाता है। 

विजय,” पहले पिताजी इसे देखकर लग रहा था कि ये खाने का तो बहुत शौकीन है पर जाने कितने दिनों से उसे खाना नसीब नहीं हुआ ? “

मोटा आदमी,” भाई, आज तो मैं बहुत ही खाऊंगा।बहुत दिनों से स्वादिष्ट खाना नहीं खाया। “

दूसरा आदमी,” क्यों भाई..? भाभी ने खाना देने से मना कर दिया क्या ? “

मोटा आदमी,” अरे भाई ! पूछो ही मत। आज मेरी बीवी मायके चली गई है। कुछ दिन वही रहेंगी। 

वो कहती है, मैं मोटा हो गया हूँ तो मुझे बस घास फूस ही खिलाती रहती है। अब बताओ मैं क्या मोटा हो गया हूँ ? “

दूसरा आदमी,” अरे ! नहीं नहीं भाई, तुम कहाँ मोटे दिखते हो ? वो तो हर पत्नी को अपनी पति में कुछ ना कुछ बुराई दिखती ही रहती है। “

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मोटा आदमी,” आज मेरे पास दो खुशी से खाने के कारण है। “

दूसरा आदमी,” क्या क्या कारण है ? “

मोटा आदमी,” अरे ! पहला तो ये कि मेरी बीवी मायके चली गई है और कुछ दिन वहीं रहेंगी। 

और दूसरा ये कि मैं बहुत दिनों से स्वादिष्ट खाना नहीं खाया हूँ। तुम सब तो जानते ही हो कि मैं खाने का कितना शौकीन हूँ ? “

वहाँ बैठे सब हंसने लगते हैं। 

मोटा आदमी,” अरे विजय ! जल्दी से कुछ ना कुछ खाने के लिए लेकर आओ। “

विजय,” हाँ हाँ काका, आपके लिए मैं अपने हाथों से कुछ बनाकर लेकर आऊंगा। “

मोटा आदमी,” अरे विजय ! जल्दी लेकर आना और थोड़ा ज्यादा बनाना। “

दूसरा आदमी,” अरे भाई ! जब तक तुम ये खाओ। “

विजय,” अरे बाप रे ! यहाँ तो इतने सारे मसाले हैं। इनमे से कौन सा मसाला डालना है और कौन सा नहीं, ये तो मुझे समझ ही नहीं आ रहा है। 

अब मैं क्या करूँ ? एक काम करता हूँ, मैं फिर आंख बंद करके पकोड़े बनाता हूँ। वैसे भी आंख खोलकर तो सभी बना लेते हैं। आंख बंद करके काम करना भी कला है। “

फिर उसे जो मसाला हाथ में आ गया, वह डाल देता है। और फिर जल्दी से पकोड़े उस मोटे आदमी को परोस देता है।

वह उन पकोड़ों को खाकर कुर्सी से उठता है। विजय उसे देख कर डर जाता है। 

विजय (मन में),” कैसे बने होंगे ? कहीं बेस्वाद तो नहीं हो गए ? प्रभु ! रक्षा करना, नहीं तो एक तरफ ये मोटा और दूसरी तरफ मेरा हिटलर बाप दोनों मेरी चटनी बनाकर पकोड़े के साथ मुझे खाएंगे। “

मोटा आदमी,” अरे वाह ! तुमने क्या स्वादिष्ट पकौड़े बनाए हैं। इतने स्वादिष्ट पकोड़े तो मैंने कभी नहीं खाये। 

अभी तो मैंने कुछ खाया ही नहीं। लाओ लाओ और लाओ। जा और ले कर आओ। “

आज फिर से अच्छी कमाई हो जाती है। फिर वे दोनों घर जाते हैं।

सत्या,” अरे ! खुशखबरी है। हमारे शहर में फूड फेस्टिवल आयोजित किया गया है। और इस बार तू जाएगा, समझा ? “

विजय,” मैं..? पिताजी, मैं क्या करूँगा वहाँ पर और वैसे भी आप तो कहते हो ना कि मुझे कुछ काम धंधा नहीं आता ? मैं कुछ नहीं कर सकता तो मैं वहाँ कैसे जाऊंगा ? “

सत्या,” कोई परवर नहीं, चुप चाप जा। बोल दिया ना एक बार, समझ नहीं आता ? “

विजय,” ठीक है, चला जाऊंगा। “

सत्या,” दो दिन बाद आयोजन है तो तुझे कल ही निकलना पड़ेगा। “

विजय,” अरे बाप रे ! ये मैं कहाँ फंस गया ? “

फिर विजय मायूस होकर वहाँ पर बैठ जाता है और मन ही मन सोचने लगता है। 

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विजय (मन में),” हे भगवान ! अब मैं क्या करूँगा ? मुझे तो कुछ भी काम करना नहीं आता, तो मैं पकोड़े कैसे बना सकता हूँ ? “

तभी उसे किसी की आवाज सुनाई देती है। विजय आसपास देखता है पर उसे कोई भी नहीं दिखाई देता। 

आवाज़,” अरे विजय ! विजय मियाँ, इधर उधर काहे ताक रहे हो ? नीचे तो देखो नीचे। “

विजय किसी अजीब से दिखने वाली प्राणी को देखता है। 

विजय (मन में),” ये कौनसा प्राणी है ? हे भगवान ! अब तूने किस मुसीबत में फंसा दिया मुझे ? “

प्राणी,” अरे रे मिया ! घबराओ मत। और इतनी ज़ोर से मत चिल्लाओ, मैं तो बस तुम्हारी मदद करने आया हूँ। “

विजय,” अरे ! गजब है भाई, मान ना मान मैं तेरा मेहमान। कौन हो तुम और मेरी मदद क्यों करना चाहते हो ? “

प्राणी,” अरे भाई ! मुझे पता है कि तुम उस फूड फेस्टिवल के लिए परेशान हो। “

विजय,” हाँ, पर उससे तुम्हे क्या ? वो मेरी परेशानी है। “

प्राणी,” हाँ, पर मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ मियां। “

विजय ,” अच्छा… तुम और मेरी मदद ? “

प्राणी,” हाँ, और नहीं तो क्या ? मैं फूड फेस्टिवल के लिए खाना बनाने में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। “

विजय,” अच्छा… कैसे ? “

प्राणी,” अरे मियां ! अभी बताए ना कि मैं खाना बना सकता हूँ। “

विजय,” ओ हो तो अब ये चूहे के जैसा दिखने वाला आदमी, अरे ! नहीं नहीं, तुम्हे क्या कहूँ मैं तुम तो आदमी ही नहीं हो ? 

अजीब प्राणी, कौन हो तुम ? तुम मेरी मदद करोगे और वो भी खाना बनाने में ? “

आदमी,” अच्छा, तो तुम्हें क्या लगता है कि आँखे बंद करके तुम पकौड़े बनाते थे ? बेवकूफ इंसान, आँखे बंद करके कौन काम कर सकता है ?

और वो भी एक निकम्मा इंसान, बिलकुल नहीं। वो मैं ही था जो आज तक तुम्हारे पकोड़े बनाते आया हूँ। “

विजय,” अच्छा तुम थे ? “

प्राणी,”जी हाँ भाई साहब, वो मेरा ही कमाल था। “

विजय,” मतलब मैं जब आँखे बंद करता था, तुम ही मेरे पकोड़े में मसाले डालते थे और पकोड़े बना देते थे ? “

प्राणी,” हां, वो मैं ही था। मैं तुम्हारी दुकान के पास से गुजर रहा था। मुझे बहुत ही अच्छी सुगंध ने वहीं रोक लिया और जब मैं दुकान पर पहुंचा तब तुम्हें आँखे बंद करके पकोड़े बनाते हुए देखा। 

सच बताऊँ तो मैं बहुत ही हंसा। पर फिर मैंने तुम्हारी मदद कर दी। “

विजय,” अच्छा, तभी मैं सोचूं कि मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ ? अच्छा छुटूँगी, तुम तो बड़े कमाल के निकले यार। तुम्हारा नाम क्या है छुटंगी ? “

प्राणी,” प्रेम… प्रेम नाम है मेरा। नाम तो सुना ही होगा ? “

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विजय,” ड्रामा नहीं, सच में बोलो ना ? “

प्राणी,” अरे यार ! कुछ भी रख दो, वैसे भी हमारे यहाँ तो नाम वाम की कोई जरूरत नहीं होती। तुझे जरूरत पड़ेगी, तो तू ही रख ले जो तेरा मन करे। “

विजय (सोचते हुए),” तुम्हारा नाम… इतने पिद्दू से हो और छोटे से भी तो तुम्हारा नाम छुटंकी सही होगा ? “

प्राणी,” छुटंकी..? अरे मियां ! क्या नाम दिए हो तुम मुझको ? “

विजय,” आई लव दिस नेम, पर एक बात बताओ ? चूहे सा मुँह, पंख, बड़े बड़े कान और ऐसे अजीब से दिखने वाले हो तुम, कहाँ से आये हो तुम ? “

छुटंकी,” दुनिया से, मेरी दुनिया अलग है और बहुत दूर भी। हम हर साल यहाँ घूमने के लिए आते हैं। 

कुछ दिनों में चले जाएंगे। अब चलो सो जाओ, कल जाना भी है ना फूड फेस्टिवल में। “

विजय,” अरे ! हाँ, मैं तो भूल ही गया था। “

अगले दिन विजय फूड फेस्टिवल के लिए निकल जाता है। 

विजय (रास्ते में मंदिर में),” हे देवी माँ ! रक्षा करना, साथ दिनों मेरा। “

फूड फेस्टिवल में…
विजय देवी माँ का नाम लेकर शुरू हो जाता है। तभी एक गोरी मैम विजय के स्टोर के सामने आकर खड़ी हो जाती है। विजय उसे पकौड़े देता है। “

मैम,” व्हाट अ फैंटास्टिक फूड ? “

विजय,” हे माता रानी ! ये गोरी मैम मुझे अंग्रेजी में क्या गिटर पिटर कर रही है। जाने क्या क्या गालियां दे रही है ? “

छुटंकी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता है। वह उसकी और भी साथियों को बुला लेती है। 

मैम,” कम हियर, टेस्ट दिस फूड। “

विजय,” अरे मैडम जी ! अगर अच्छा ना लगा हो तो मत खाइएगा पर, पर ऐसे अंग्रेजी में गाली तो मत दीजिए। 

और इन सबको क्यों बुला रही हैं ? मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ, मुझे जाने दीजिए, मुझे मार नहीं खानी। “

पहली मैम,” प्लीज़ सर्व अस टू। “

दूसरी मैम,” प्लीज़ सर्व अस टू। “

तीसरी मैम,” प्लीज़ सर्व अस टू। “

विजय,” अरे रे ! मुझे माफ़ कर दीजिए। अगर अच्छा ना लगा हो तो मत खाइए, मैं पैसे भी नहीं मांगूंगा। पर मुझे छोड़ दीजिए। मैं आपके सामने हाथ जोड़ता हूँ, मुझे छोड़ दीजिए। “

छुटंकी,” अरे मियां ! ये तुम्हे मारने नहीं आये हैं। इन्हें हमारे पकोड़े बहुत अच्छे लगे हैं, वो तुमसे पकोड़े मांग रहे हैं। “

विजय,” क्या..? मतलब ये मुझे मारने नहीं आये हैं ? ये पकोड़े खाने आये हैं। “

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छुटंकी,” अरे ! हाँ भैया, मारेंगे नहीं तुम्हें। “

विजय सबको पकोड़े देता है। उसकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। इसके बाद वह और भी ज्यादा फेमस हो जाता है। 

अगले दिन विजय के पकौड़ों की इतनी तारीफ सुनकर विजय की दुकान पर मंत्री जी पहुँच जाते हैं। 

मंत्री,” भाई सत्या, मैंने तुम्हारी दुकान की बहुत ही तारीफ सुनी है भाई। मुझे भी तो तुम्हारे हाथ के पकोड़े खिलाओ। “

सत्या,” हाँ हाँ मंत्री साहब, अभी लेकर आता हूँ। “

विजय,” अरे पिताजी ! आप बाहर जाइए। “

सत्या,” क्यों ? “

विजय,” अरे ! अगर आप बाहर नहीं जाएंगे तो मैं पकोड़े कैसे बनाऊंगा। “

सत्या,” क्यों..? मैंने तेरे हाथ पकड़ रखे हैं क्या ? “

विजय,” अरे ! नहीं नहीं, हाथ नहीं पकड़ रखे तो क्या ? अगर आप नहीं जाएंगे तो वो कैसे आएगा ? “

सत्या,” वो कौन..? कौन आएगा, किसकी बात कर रहा है तू ? “

विजय,” अरे पिताजी ! इतने दिनों से ये पकोड़े की सब तारीफ कर रहे हैं, ये दरअसल मैं नहीं बनाता। “

सत्या ,” नालायक, फिर कौन बनाता है ? तू तब से हमारी आँखों में धूल झोंक रहा था ? “

विजय,” अरे ! नहीं नहीं पिताजी, मेरा ये मतलब नहीं था। “

सत्या ,” फिर… फिर क्या मतलब है ? “

विजय,” अरे ! मेरा मतलब है कि मैं पकोड़े बनाता हूँ, तब देवी माँ आती है और वही, ये सब उन्हीं का कमाल है। “

सत्या,” अरे दादा रे ! अच्छा मेरे आलसी निकम्मे बेटे पर माता रानी का आशीर्वाद है। बेवकूफ जा और जाकर जल्दी से मंत्री जी के लिए पकोड़े बनाकर लेकर आ। “

दूसरी ओर गुलाटी गांव के मुखिया के पास पहुँच जाता है। 

गुलाटी,” पटेल साहब, गजब हो गया। एक बहुत चौंका देने वाली खबर लेकर आया हूँ आज तो मैं। “

मुखिया,” क्या खबर लाये हो, जल्दी बताओ ? “

गुलाटी,” अरे पटेल साहब ! वो जो अपना विजय है ना ? “

मुखिया,” अरे ! हाँ हाँ, उसके पकोड़े के तो बहुत ही चर्चे हैं आजकल। “

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गुलाटी,” हाँ, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूँ, पटेल साहब। आपको पता है, उसके ऊपर देवी माँ का हाथ है ? “

मुखिया,” अच्छा… मतलब हमारे गांव पर देवी माँ का आशीर्वाद है ? जाओ जाकर विजय और पूरे गांव को बरगद के पेड़ के नीचे जमा होने को कहो। “

गुलाटी,” अरे विजय भैया ! “

विजय,” अरे गुलाटी ! मुझे कैसे याद किया ? “

गुलाटी,” अरे विजय ! मैंने नहीं मुखिया जी ने याद किया हैं तुमको, चलिए। “

विजय ,” देखा बापू, आप मुझे निकम्मा बेवकूफ कहते हो और देखो मेरी पहुँच। मुखिया जी ने खास तौर पर मुझे बुलाया है। “

विजय ,” चल छुटंकी, तू भी चल। “

छुटंकी,” अरे ! हाँ हाँ मियां, चलते हैं और चल कर देखते हैं आखिर माजरा क्या है ? “

कुछ ही देर में सब गांव वाले बरगद के पेड़ के नीचे जमा हो जाते हैं। 

मुखिया,” अरे गांव वालो ! मुझे अपने सूत्रों से पता चला है कि हमारे गांव पर देवी माँ की कृपा है। “

मोटा आदमी,” देवी माँ की कृपा ? “

दूसरा आदमी,” हाँ हाँ, देवी माँ की कृपा भाई। हमारे विजय लाल के ऊपर देवी माँ की कृपा है। “

गुलाटी,” हाँ हाँ, मैंने अपने कानों से सत्या चाचा और विजय की बात सुनी है। उसने खुद कहा था कि वो जब भी पकौड़े बनाने जाता है उससे पहले देवी माँ के उससे दर्शन होते हैं। “

तीसरा आदमी,” अरे ! पर हम कैसे विश्वास कर लें इस बात पर भैया ? “

मुखिया,” हाँ हाँ, इसीलिए तो हमने सबको बुलवाया है। “

विजय,” अरे बाप रे ! ये क्या हुआ ? अब मैं उनके लिए देवी माँ को कैसे बुलाऊं ? हे भगवान ! आप ही रक्षा करना। “

गुलाटी,” विजय, साबित कर दो कि तुम्हारे ऊपर देवी माँ की कृपा है। वो तुम्हें दर्शन देती हैं। “

विजय,” अरे ! पर गुलाटी भाई…। “

गुलाटी,” पर वर कुछ नहीं भाई, तुम्हें देवी माँ को बुलाना ही होगा। “

विजय,” अरे छुटंकी ! अब मैं क्या करूँ ? “

छुटंकी,” अरे मियां ! बुलाओ अब देवी माँ को। “

मोटा आदमी,” वैसे भी तुम दिन भर देवी माँ, देवी माँ करते रहते हो। बुलाओ बुलाओ। “

गुलाटी,” हाँ हाँ बुलाओ। “

विजय (मन में),” मेरा मजाक उड़ा लो तुम भी। हे देवी माँ ! बचा लेना मुझे। “

विजय ,” हे देवी माँ ! दर्शन दो, दर्शन दो, मुझे दर्शन दो। “

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सभी गांव वाले विजय की तरफ गौर से देखते हैं। 

गुलाटी,” अरे ! कहाँ हैं देवी माँ ? कब आएँगी और कितना इंतजार करवाएंगी देवी माँ ? “

मोटा आदमी,” हाँ देवी माँ, इतना वक़्त क्यों लग रहा है ? “

विजय,” अरे ! देवी माँ तुम्हारे जैसे फुरसत में थोड़े ही रहती हैं। उन्हें और भी बहुत सारे काम होते हैं, सब्र करो। “

विजय,” अब तू ही कुछ रास्ता बता, मैं क्या करूँ ? “

छुटंकी विजय के कानों में कुछ फुसफुसाकर आता है। 

विजय,” अरे देवी माँ ! आप आगईं ? “

आदमी,” अरे ! हमें तो नहीं दिख नहीं रही देवी माँ, कहाँ हैं ? “

गुलाटी (मन में),” अरे ! कहाँ हैं देवी माँ ? एक काम करता हूँ, मैं भी यही दिखाता हूँ कि मुझे भी दिख रही हैं। “

गुलाटी,” अरे ! तुम जैसे पापियों को देवी माँ दर्शन नहीं देंगी, पापी कहीं के। अरे देवी माँ ! अपने दर्शन दिए, हम तो धन्य हो गए। “

विजय,” अरे ! ये क्या हुआ ? ये गुलाटी, इसे कैसे कुछ भी दिखाई दे रहा है ? “

आदमी,” अरे ! नहीं नहीं, मैं पापी नहीं हूँ। मुझे भी देवी माँ ने दर्शन दिया भाई। “

मोटा आदमी,” अरे ! हाँ, मुझे भी देवी माँ दिखाई दे रही हैं भाई। विजय, तुझ पर तो सच में देवी माँ प्रसन्न हैं। “

धीरे धीरे सभी गांव वालों को देवी माँ ने दर्शन दिया। 

मुखिया,” अरे पर देवी माँ है कहां ? “

गुलाटी,” क्या कहा..? आपको देवी माँ नहीं दिख रही ? पूरे गाँव को दर्शन दिए देवी माँ ने, पर आपको नहीं मतलब…। “

मुखिया,” अरे ! नहीं नहीं, देवी माँ मुझे आशीर्वाद दीजिए और सदा अपना आशीर्वाद इस गांव पर बनाए रखना। “

विजय और छुटंकी एक तरफ होकर हंसने लगे। 

विजय,” अरे ! देखो इन सबको कैसे बेवकूफों की तरह मेरी बातों पर विश्वास कर रहे हैं ? “

छुटंकी,” अरे विजय मियां ! अब जाओ और जाकर इन्हें सच बता दो कि तुम्हें कोई देवी माँ दर्शन नहीं देती। “

सत्या,” शाबाश विजय, तुने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। तू मेरा निकम्मा बेटा नहीं तू तो मेरा लायक बेटा है। “

विजय,” अरे रे ! सूरज आज पूरब की जगह पश्चिम से कैसे निकल आया ? “

सत्या,” अब चलो दुकान पर और आप सब भी अपने अपने घर जाइए और अपने कामों में लगिए। “

छुटंकी ,” अच्छा विजय मियां, अब मुझे भी चलना चाहिए। मैं तो यहाँ छुट्टियां मनाने आया था। मेरा काम हो गया। “

विजय,” क्या..? तुम जा रहे हो ? और मेरी मदद कौन करेगा ? “

छुटंकी,” विजय, अब तुम्हें ये सब कुछ करना होगा और वैसे भी मेरे साथ रह कर तुम भी मेरे जैसे पकोड़े बनाने सीख गए हो। “

विजय,” छुटंकी मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी। “

छुटंकी,” अलविदा दोस्त। “


दोस्तो ये Jadui Kahani आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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