हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” जासूस राजा ” यह एक Raja Rani Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Raja Rani Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक बार की बात है। चाणक्यपुरी राज्य से होकर एक बहुत बड़े संत महात्मा गुजर रहे थे।
उन्हें एक व्यक्ति दिखा, जो उन्हें देखकर छुपने की कोशिश कर रहा था।
वो व्यक्ति एक चोर था और चोरी करने के लिए निकला था। चोर ने संत को पहचान लिया था, इसलिए वह संत से छुप रहा था। पर संत ने उसे देख लिया।
संत, “तुम कौन हो और मुझे देखकर छुप क्यों रहे हो?”
चोर, “मैं एक चोर हूँ और चोरी करने जा रहा हूँ।”
संत, “भाई, यह धंधा छोड़ दो। कोई ऐसा काम-धंधा करो जिससे तुम्हें किसी को देखकर भय न लगे और ना ही छिपने की जरूरत पड़े।”
चोर, “महाराज, मेरे पिताजी एक चोर थे। मुझे सिर्फ यही काम आता है और दूसरा कोई काम नहीं आता।
मैं तो पढ़ा-लिखा भी नहीं हूँ और ना ही मेरे पास इतना धन है कि व्यापार कर सकूँ।
यदि मैं चोरी नहीं करूँगा तो फिर अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करूँगा, महाराज?”
चोरी की बात सुनकर संत महात्मा कुछ क्षणों के लिए मौन हो जाते हैं, फिर बोलते हैं।
संत, “ठीक है, अगर तुम्हारे पास कोई और काम नहीं है और यह काम करना तुम्हारी मजबूरी है, तो तुम बेशक यह काम करो। लेकिन मेरी एक बात मान लो।”
चोर, “महाराज, मैं जानता हूँ आप बड़े ज्ञानी हैं। मैं आपकी बात जरूर मानूंगा। आप आज्ञा दीजिए।”
संत, “तुम पहले वादा करो कि तुम मेरी बात मानोगे।”
चोर, “महाराज, मैं वादा करता हूँ… आप जो भी बोलेंगे, मैं आपकी उस बात को जरूर मानूंगा।”
संत, “तुम किसी भी परिस्थिति में झूठ मत बोलना, सदा सच बोलना। तुम्हारा कल्याण होगा।”
चोर, “अगर मैं झूठ नहीं बोलूंगा तो काम कैसे चलेगा? परंतु अब तो मैंने आपसे वादा कर दिया है, तो कुछ भी हो जाए… मैं अपना वादा पूरा करूंगा, महाराज।”
संत अपने रास्ते पर आगे चल देते हैं और चोर भी चोरी करने के लिए आगे बढ़ जाता है।
थोड़ी दूर पर उसे एक एक व्यक्ति दिखता है और वह फिर से छुप जाता है।
आदमी (चोर से), “तुम कौन हो, भाई और इस समय कहाँ जा रहे हो?”
चोर मन ही मन विचार करता है, “झूठ तो मुझे बोलना नहीं है, इसलिए सच बता देता हूँ, जो होगा देखा जाएगा।”
चोर, “मैं चोर हूँ और चोरी करने के इरादे से अपने घर से निकला हूँ।”
जासूस राजा | JASOOS RAJA | Hindi Kahani | Raja Rani Ki Kahani | Hindi Kahaniyan | Hindi Stories
आदमी, “तुम कैसे चोर हो, जो स्वयं ही बता रहे हो कि मैं चोर हूँ? क्यों हँसी कर रहे हो मेरे साथ? तुम अवश्य ही कोई सैनिक या गुप्तचर मालूम होते हो।”
चोर, “नहीं, मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं वास्तव में ही चोर हूँ और चोरी करना मेरा धंधा है।”
आदमी, “भाई, चोर तो मैं भी हूँ। परंतु अभी नया-नया ही काम शुरू किया है। अच्छा हुआ जो तुम मिल गए।
क्या आज मैं तुम्हारे साथ चोरी करने आ सकता हूँ? मुझे चोरी करनी सीखनी है।”
चोर, “ठीक है, जो मिलेगा, दोनों मिलकर बाँट लेंगे।”
आदमी, “वैसे तुम चोरी करने कहाँ जा रहे थे?”
चोर, “अभी तो ऐसा कोई विचार नहीं है। देखते हैं… जहाँ मौका मिल जाएगा, वहीं चोरी कर लेंगे।”
आदमी, “अगर तुम चाहो तो हम राजमहल में चोरी कर सकते हैं।”
चोर, “पागल हो गए हो क्या? राजमहल में कैसे घुसेंगे?”
आदमी, “घबराओ नहीं। मेरी बात ध्यान से सुनो, मैं पहले राजमहल में नौकर था, परंतु महाराज ने एक छोटी-सी बात पर नाराज होकर मुझे नौकरी से निकाल दिया
और आज उनकी वजह से मुझे चोरी करने की जरूरत पड़ रही है।”
चोर, “अगर महाराज ने तुम्हें निकाल दिया, तो तुमने कहीं और काम क्यों नहीं ढूंढा?”
आदमी, “क्योंकि राजा ने मुझे अपने महल से निकाल दिया, तो किसी दूसरे ने मुझे काम देने की हिम्मत नहीं की और इसलिए मजबूरी में मुझे यह धंधा अपनाना पड़ा।”
चोर, “चोरी करना अच्छी बात नहीं होती, समझे?”
आदमी, “फिर तुम क्यों चोरी करते हो, भाई?”
चोर, “मुझे चोरी करने के अलावा और दूसरा कोई काम नहीं आता और ना ही मैं पढ़ा-लिखा हूँ, समझे? इसलिए चोरी करना मेरी मजबूरी है।”
आदमी, “इसका मतलब हुआ कि हम दोनों ही मजबूरी में चोरी करते हैं।
देखो, मुझे राजमहल के एक-एक गुप्त द्वार का पता है। चलो, आज हम राजमहल में भाग्य आजमाते हैं।”
दोनों साथ मिलकर राजमहल के पीछे की तरफ पहुँच जाते हैं। वह व्यक्ति छुपा हुआ एक गुप्त दरवाजा खोलते हुए चोर से कहता है,
आदमी, “तुम पुराने चोर हो, अंधेरे में देखने का तुम्हें अभ्यास है, इसलिए तुम अंदर जाकर सारा माल इकट्ठा करके ले आओ। मैं यहीं पहरा देता हूँ।”
चोर, “इतने बड़े महल में मुझे कैसे पता चलेगा कि सारा धन कहाँ रखा हुआ है?”
आदमी, “तुम इस द्वार से अंदर जाओगे तो तुम्हें एक बड़ा कमरा दिखाई देगा। वहाँ पर बहुत सारी संदूकें हैं, लेकिन मुख्य द्वार के पास दाहिने तरफ जो एक बड़ा-सा संदूक रखा है, उसे खोलना।
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उसे खोलने के बाद तुम्हें उसमें एक चरखी दिखेगी। जैसे ही तुम उस चरखी को घुमाओगे, तो वो मुख्य द्वार खुल जाएगा।”
चोर, “भाई, तुम्हें तो सच में महल के बारे में सब कुछ पता है।”
आदमी, “उसके बाद तुम उस मुख्य द्वार से अंदर जाना और उस कमरे के बीचों बीच तुम्हें एक और संदूक दिखेगा।
तुम उसे खोलोगे तो उसके अंदर तुम्हें चाभियों का गुच्छा मिल जाएगा। दूसरे दरवाजे के बाईं तरफ बक्सा दिखेगा, जो देखने में सबसे छोटा होगा
और एक बड़े से बक्से के ऊपर रखा होगा। चाभियों के गुच्छे में जो सबसे छोटी चाभी होगी ना, उस चाभी से उस छोटे बक्से को खोल लेना,
उसमें तुम्हें एक और छोटा सा संदूक दिखेगा। उस संदूक में बहुमूल्य हीरे रखे हैं, बस वही लेकर आ जाना।”
चोर बिल्कुल वैसा ही करता है जैसा उस व्यक्ति ने बताया था और हीरे लेकर वापस आ जाता है।
चोर, “भाई, तुमने जैसा कहा था, अंदर सब कुछ वैसा ही था। हाँ, ये लो तुम्हारे हिस्से का हीरा। मैंने उसमें से दो हीरे निकाले, एक तुम्हारा और एक मेरा।”
आदमी, “लेकिन उस संदूक में तो तीन हीरे थे, तुम दो ही क्यों लेकर वापस आ गए भाई?”
चोर, “भाई देखो, हम दो थे। अगर मैं तीन हीरे लेकर आता, तो वह तीसरा हीरा हम दोनों में बांटना बहुत मुश्किल था।
इसलिए मैंने उस संदूक से सिर्फ दो ही हीरे निकाले ताकि हमारे बीच किसी तरह का मतभेद न हो जाए।”
आदमी, “अरे भाई! तुम बड़े विचित्र चोर हो। तुम चाहते तो वो एक हीरा अपने पास रख सकते थे।”
चोर, “मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता हूँ। इसलिए मैंने वह एक हीरा संदूक में वापस रख दिया
और हम दोनों के लिए एक-एक हीरा लेकर ही बाहर आया। ये लो, तुम्हारा हीरा।”
उस व्यक्ति को एक हीरा देकर चोर वहाँ से चला गया।
आदमी, “मुझे लगता है कि यह मुझसे झूठ बोल रहा है। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि अपनी जान जोखिम में डालकर कोई महल के अंदर चोरी करने जाएगा
और सामने रखे हुए तीन हीरों में से सिर्फ दो ही हीरे लेकर वापस आएगा और उसमें भी एक हीरा मुझे दे देगा? यह अवश्य ही झूठ बोल रहा है।”
सुबह होते ही यह खबर फैल गई कि राजमहल में चोरी हो गई है।
राजा ने मंत्री से कहा, “चोर के बारे में पता लगाइए। खजाने का द्वार खुला हुआ मिला है,
अवश्य ही यह किसी भेदी का काम है। शीघ्र ही इसकी जांच करो और चोर का पता लगाओ।”
मंत्री, “जो आज्ञा महाराज! मैं जल्द ही चोर का पता करता हूँ।”
मंत्री ने खजाने के कमरे का निरीक्षण किया तो देखा, सारे बक्से वैसे के वैसे ही बंद पड़े थे, सिर्फ एक छोटा सा बक्सा खुला था, जिसमें तीन कीमती हीरे रखे थे।
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मंत्री ने संदूक खोला तो देखा, उसमें एक हीरा रखा हुआ है।
मंत्री ने अपने मन में सोचा, “एक हीरा तो इस संदूक के अंदर ही है।
लगता है वो चोर जल्दबाजी में एक हीरा रखना भूल गया है। अगर मैं यह हीरा अपने पास रख लूँ तो मैं कितना धनवान हो जाऊंगा?
चोर अगर पकड़ा गया, तो वह लाख कहे कि मैंने सिर्फ दो हीरे चुराए हैं, उसकी बात कौन मानेगा? मैं यह हीरा अपने पास ही रख लेता हूँ।”
मंत्री फिर राजा के पास जाता है।
मंत्री, “महाराज, सारे बक्से तो ठीक हैं, सिर्फ एक बक्सा खुला हुआ है, जिसमें तीन कीमती हीरे रखे थे और वही चोरी हुए हैं।”
राजा, “क्या कहा… तीन हीरे चोरी हुए हैं?”
मंत्री, “जी महाराज, उस छोटे बक्से में रखे हुए तीनों कीमती हीरे चोर ले गया, महाराज।”
राजा, “हम्म… ठीक है मंत्री जी, आप जल्द ही चोर का पता लगाइए और उसे हमारे सामने प्रस्तुत कीजिए।”
तलाश शुरू की गई और जल्द ही चोर को राजा के सामने खड़ा कर दिया गया।
राजा, “क्या रात में तुमने ही राजमहल में घुसकर चोरी की थी?”
चोर, “जी महाराज, मैंने ही चोरी की है और मैं इसका दंड भुगतने को भी तैयार हूँ। परंतु मेरे साथ एक अन्य भी इस चोरी में शामिल था।”
मंत्री, “वो कौन था, उसका नाम बताओ?”
चोर, “मैं उसका नाम नहीं जानता और ना ही उसके घर का पता जानता हूँ। कल रात को पहली बार ही मैं उससे मिला था।
मुझे उसके बारे में और कुछ भी नहीं पता है। उसने ही मुझे गुप्त दरवाजे से खजाने के अंदर जाने का रास्ता बताया था।”
मंत्री, “क्या कहानी सुना रहा है झूठा कहीं का? अपने साथी का नाम जल्दी बताओ, वरना मैं तुम्हारी गाल खिंचवा दूंगा, समझे?”
चोर, “आप जो सलूक चाहे मेरे साथ करें, परंतु मैं सच कह रहा हूँ। मुझे उसका नाम पता नहीं मालूम।
मैं रात की सारी घटना आप लोगों को बता चुका हूँ और मैं जो भी कह रहा हूँ, सच कह रहा हूँ। ये मेरे हिस्से का एक हीरा है, जो मैंने अपने पास रखा था।”
मंत्री, “तुम चोर हो, तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता। तुम कहते हो कि तुमने दो हीरे चुराए थे
और एक हीरा अपने साथी को दे दिया। लेकिन चोरी तो तीन हीरों की हुई है, फिर वह तीसरा हीरा कहाँ गया?”
चोर, “मैं नहीं जानता। मैंने सिर्फ दो हीरे ही चुराए थे। तीसरा हीरा मैंने वापस उस संदूक में ही रख दिया था।”
मंत्री, “अगर तुम्हारी बात पर यकीन किया जाए तो यह बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया?”
चोर, “मंत्री जी, हम दो साथी थे और संदूक में तीन हीरे थे। अगर मैं तीनों हीरे चुराता, तो तीसरे हीरे का बंटवारा करना बहुत ही मुश्किल था।
हम दोनों चोरों के बीच कोई मतभेद न हो, ये सोचकर मैंने एक हीरा संदूक में वापस रख दिया था और दो हीरे ही अपने साथ लेकर बाहर निकल गया था।”
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मंत्री कुछ कहता, उसके पहले ही महाराज बीच में बोल पड़े।
राजा, “मंत्री जी, ये चोर बिल्कुल ठीक कह रहा है। इसने सिर्फ दो हीरे ही चुराए थे, जिसमें से एक हीरा इसने अपने साथी को दे दिया था और एक स्वयं रखा था।
अपने हिस्से का हीरा इसने दे दिया और इसके साथी के हिस्से का हीरा मेरे पास है, क्योंकि मैं ही इसका साथी था।
रात को जब मैं भेष बदलकर राज्य में घूम रहा था, उस समय मेरी मुलाकात इस चोर से हुई थी। जो हीरा इसने मुझे दिया था, वो हीरा ये है।”
महाराज ने अपनी जेब से एक हीरा निकालकर सामने रख दिया। दरबार में सन्नाटा छा गया। सब मौन थे।
थोड़ी देर बाद राजा, “जब ये चोर मेरा हिस्सा मुझे देकर चला गया, तो मैंने खजाने में जाकर इसकी जांच की क्योंकि मुझे लग रहा था कि ये चोर झूठ बोल रहा है
और इसने वो तीसरा हीरा अपनी जेब में रख लिया है और मुझे सिर्फ एक हीरा देकर चला गया।
लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि जब मैंने संदूक में देखा, तो एक हीरा वहीं पर था, जो इस समय मंत्री जी की जेब में है।”
राजा, “मंत्री जी, आप उस तीसरे हीरे को अपनी जेब से खुद निकालेंगे या मैं सैनिकों को आदेश दूं?”
मंत्री हीरा निकाल कर महाराज को देता है।
राजा, “राजमहल में चोरी के अपराध में मंत्री को कारागार में डाल दिया जाए।”
राजा, “और तुम कैसे चोर हो, जो चोरी भी करते हो और सच भी बोलते हो?”
चोर, “महाराज, मैं एक संत महात्मा से मिला था, जिन्होंने मुझसे सदा सच बोलने का वादा करवाया था।
क्योंकि मुझे कोई दूसरा काम नहीं आता महाराज, इसलिए चोरी करना मेरी मजबूरी है।”
राजा, “मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ और तुम्हें अपना मंत्री बनाना चाहता हूँ।”
चोर, “महाराज, आपकी बड़ी कृपा दृष्टि है, परंतु आज मुझे यह मंत्री का पद सिर्फ उन संत महात्मा के वचनों द्वारा ही प्राप्त हुआ है।
इसलिए मैं अपने जीवन का कल्याण करने के लिए उन संत महात्मा के पास ही जाना चाहता हूँ
और उनकी ही सेवा-सुमिरन में अपना बाकी का जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ।”
राजा, “हम्म… उन संत महात्मा से हम भी मिलना चाहेंगे, जिन्होंने एक चोर को उसके अवगुण के साथ इतना गुणवान बना दिया।
ऐसे संत को हमारे राजमहल में होना चाहिए, यह हमारे राज्य के लिए बहुत ही हितकर होगा।”
राजा के आदेश पर संत को ढूंढा जाता है। संत को राज्य का राजगुरु बना दिया जाता है
और संत के आदेश को मानकर चोर राज्य का मंत्री बनने को तैयार हो जाता है।
इस तरह संत और चोर दोनों ही उस चाणक्यपुरी राज्य का हिस्सा बन जाते हैं।
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