लालची आम वाला | Lalchi Aam Wala | Hindi Kahani | Moral Story | Bedtime Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची आम वाला ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में सुरेश नाम का एक आलसी आदमी रहता था, जो की कम मेहनत करके ज्यादा पैसे कमाना चाहता था।

उर्मिला, “तुम्हारे लालच की वजह से हमारा सब कुछ बिक गया और हमें इस छोटे से घर में आकर रहना पड़ रहा है।

जल्दी से कोई अच्छा सा काम ढूंढ लो, जिससे कम से कम हम अपना जीवन यापन तो ठीक से कर सकें।”

सुरेश, “अरे! तुम चिंता क्यों करती हो? इस बार मैं कोई ऐसा काम करूँगा, जिससे हमारे पास जल्द से जल्द बहुत सारे पैसे आ जाएं।”

उर्मिला, “अरे! चिंता कैसे ना करूँ? तुम्हारे जल्द से जल्द पैसे कमाने के चक्कर में हमारा सब कुछ बिक गया।

पर इस बार तुम ऐसा क्या सोच रहे हो, जो तुम जल्द से जल्द बिना मेहनत से पैसे कमा लोगे?”

सुरेश, “हा हा हा… वो तो मैंने अभी तक सोचा ही नहीं, पर तुम देखना एक दिन हमारे पास सब कुछ होगा… पैसा, बंगला, गाड़ी सब कुछ और तुम महारानियों के जैसे हुक्म चलाना बस हां।”

उर्मिला, “हाँ हाँ, जैसे सब तुम्हारे नौकरी पर आने का इंतजार ही तो कर रहे हैं।”

सुरेश, “अच्छा सुनो, मुझे किसी काम से शहर जाना है तो मुझे थैला दे दो और कुछ चाहिए हो तो बता देना।”

रास्ते में…

सुरेश, “अरे! अब तो मैं बहुत ही थक गया हूँ। चलो ये पास में बगीचा है, यहीं पर जाकर थोड़ा आराम कर लेता हूँ।”

सुरेश बगीचे में आराम करने लगता है।

सुरेश, “वैसे उर्मिला आज बात तो सही कह रही थी। मुझे कोई ना कोई काम तो ढूंढना ही होगा पर ऐसा कौन सा काम करूँ जिससे बहुत सारा मुनाफा हो?

अरे! ये क्या आम..? क्यों ना मैं फलों का व्यापार करूँ? हाँ, मैं अपना एक फलों का बगीचा लगाऊंगा।

हाँ, और फिर मुझे बहुत सारा मुनाफा होगा। मैं आज ही शहर से बीज लेकर आता हूँ। अरे! नहीं नहीं, पर उसमें तो बहुत समय लगेगा। तब तक मैं क्या करूँगा?

और अगर मैं मंडी से फल खरीदकर भी बेचूं, तब भी मुझे ज्यादा मुनाफा नहीं होगा और मेहनत भी बहुत लगेगी, हाँ।

तब तो मुझे कुछ और ही सोचना होगा। और इतनी मेहनत… ना बाबा ना, मैं नहीं कर सकता।

मुझे कुछ और ही सोचना होगा। पर अभी तो मैं इस बगीचे से फल लेकर जाता हूं, उर्मिला और बच्चे खुश हो जाएंगे।”

सुरेश, “अरे उर्मिला! देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आया हूँ?”

बंकू, “अरे वाह पिताजी! आप मेरे लिए इतने सारे फल लेकर आए हो?”

रात में सुरेश पलंग पर लेटा होता है, तभी उसे एक तरकीब सूझती है।

सुरेश, “क्यों ना मैं सभी पेड़ों पर से फल तोड़कर बेचना शुरू करूँ? और वैसे भी एक पेड़ पर इतने सारे फल होते हैं, मैं तो तोड़ भी लूँगा तो किसे पता चलेगा? हाँ, मैं कल से ही ये काम शुरू करूँगा।”

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सुरेश, “अरे उर्मिला! मैं आज से एक नया काम शुरू करने जा रहा हूँ। जाओ, मेरे लिए दही शक्कर तो लेकर आओ।”

उर्मिला, “हाँ वो सब तो ठीक है, पर तुम ऐसा कौन सा काम करोगे?”

सुरेश, “अरे! तुम आम खाओ, गुठलियाँ क्यों गिन रही हो?”

सुरेश एक सुनसान बगीचे में कुछ फल तोड़ने के लिए जाता है।

सुरेश, “चलो, आज का काम तो अच्छे से हो गया और कोई दिक्कत भी नहीं आई। अरे! कुत्ते… ये कुत्ते यहाँ क्या कर रहे हैं? भागो, भागो यहाँ से।”

तभी कुत्तों से बचकर सुरेश भागने लगता है। जैसे तैसे उनसे बचकर वो घर पहुंचता है।

सुरेश, “आज तो बाल बाल बच गया, नहीं तो ये कुत्ते मेरी जान ही ले लेते। अरे उर्मिला! दरवाजा खोलो भई।”

उर्मिला, “अरे! ये क्या हालत बनाकर आए हो? और किससे मार खाकर आए हो? बताओ, ऐसा क्या काम कर रहे हो जो लोगों की मार खानी पड़ रही है?”

सुरेश, “अरे! वो मेरे पीछे कुत्ते पड़ गए थे, उनसे बचकर आया हूँ। अब हटो यहाँ से, तुम्हें तो मेरी कुछ पड़ी ही नहीं है।”

सुरेश (मन में), “अरे! अब मैं ऐसा क्या करूँ जिससे कि मैं अमीर बन जाऊं? अगर मंडी से फल लेकर आया तो बहुत ही महंगे पड़ेंगे।

तो अब मैं ऐसा क्या करूँ जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे?”

बंकू, “पिताजी पिताजी, आप इतने मीठे फल कहाँ से लेकर आए? अगर मैं फलों का व्यापारी होता तो आपको इन फलों के दुगने तिगुने दाम दे देता। इतने स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक नहीं खाए।”

और वहाँ से चला जाता है।

सुरेश, “हां, साहबजादे को बात बनाने को बोल दो बस। इतना आसान होता है क्या व्यापार करना, जो दुगने तिगुने दाम दे देता?

क्या… दुगुने और तिगुने दाम दे देता? हाँ, अब मुझे समझ में आ गया है कि मुझे क्या करना है। अब से मैं ऐसे ही पेड़ों पर से फल तोड़कर बाजार में बेच आऊंगा।

वैसे भी एक पेड़ पर इतने सारे फल होते हैं तो अगर मैंने कुछ फल तोड़ भी लिए तो किसे पता चलेगा? वाह सुरेश वाह! क्या दिमाग लगाया है तूने?”

फिर सुरेश एक बगीचे में से कुछ फल तोड़कर बाजार में बेच आता है।

सुरेश, “उर्मिला, अरे ओ उर्मिला!”

उर्मिला, “अरे! क्या हुआ? कोई कुबेर का खजाना हाथ लग गया है क्या, जो इतने चहक रहे हो?”

सुरेश, “खजाना ही हाथ लगा है, समझ ले। तू बोल रही थी ना कि घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता है। ले पैसे, और तुझे जो चाहिए ले लेना है।”

उर्मिला, “इतने सारे पैसे..? कहाँ से लेकर आए आप? कहीं चोरी तो नहीं की ना आपने या किसी की जेब काटी या खून? बोलो, कहाँ डाका मारकर आए हो?”

सुरेश, “अजीब बीवी है मेरी। एक तो पति बाहर से थका हारा घर में आया है और ऊपर से तुझे थानेदार की तरह सवाल करने से ही फुर्सत नहीं मिलती। चल जा और मेरे लिए खाना लगा दे।”

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अगले दिन सुरेश मार्केट में चुराए हुए फल बेचने जाता है।

सुरेश, “अरे भाई! सुनो ज़रा, ये सारी फलों की पेटियाँ बेचनी हैं ज़रा सही से भाव लगा दो।”

दुकानदार, “अरे वाह भाई साहब! आप तो इतने तरह-तरह के फल लाए हैं और दिखने में भी लाजवाब हैं।

इनके तो आपको अच्छे खासे दाम मिल जाएंगे। लगता है कहीं के बहुत बड़े व्यापारी हो।”

सुरेश, “ज्यादा बकैती मत करो हमारे सामने, समझे..? और चुपचाप अपना काम करो।”

फिर दुकानदार सुरेश की सारी फलों की पेटियाँ ले लेता है और उसे फलों के बदले अच्छे खासे पैसे दे देता है। इतने सारे पैसे देखकर सुरेश का लालच और भी बढ़ जाता है।

सुरेश, “अरे वाह सुरेश! तू तो मालामाल हो गया रे। अब तो मैं ऐसे ही रोज़ फल तोड़ कर यहाँ पर बेचने आऊंगा।

अरे वाह! आज तो मेरी चांदी ही चांदी है। मुझे ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी और इतने सारे पैसे भी मिल गए।”

कुछ हफ्ते तक सुरेश ऐसे ही फलों की चोरी करके मंडी में बेच आता। उसे इन सब से बहुत ज्यादा फायदा होने लगा तो उसका लालच और भी बढ़ने लगा।

उर्मिला, “ऐसा कौन सा काम करने लगे हो आप आजकल, जो रातो-रात इतने पैसे कमा लाते हो? कहीं कोई गलत काम तो शुरू नहीं कर दिया ना आपने?”

सुरेश, “अरे! मैंने तुझे कहा था ना कि मैं कोई ऐसा काम करूँगा जिससे हम बहुत जल्दी अमीर हो जाएंगे?”

अब सुरेश की हालत में बहुत सुधार आ जाता है। वो एक बड़ा मकान ले लेता है।

आदमी, “अरे सुरेश भाई! क्या बात हैं, कोई लॉटरी लगी है क्या जो इतनी जल्दी इतना बड़ा मकान ले लिए?”

सुरेश, “हाँ भाई, बस यही समझ लो कि लॉटरी ही लगी हैं मेरी।”

गाँव के कुछ लोग खड़े होकर उसके बारे में बातें कर रहे थे।

पहला आदमी, “अरे भाई! तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि मेरे बगीचे से फल बहुत कम हो रहा हैं। क्या तुम्हे भी ऐसा ही लगता है?”

दूसरा आदमी, “हाँ, बात तो सही कह रहे हो भैया। लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा है।”

पहला आदमी, “कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे फल कोई चोरी कर रहा है?”

तीसरा आदमी, “क्या भाई, तुम भी बिना सर-पैर की बातें करते हो? तुमने फलों को गिनकर रखा था क्या, जो कह रहे हो कि चोरी हो गए?

और वैसे भी अभी तो तुम्हारे बगीचे में बहुत सारे फल नहीं पके हैं। कोई इन कच्चे फलों को चोरी क्यों करेगा, तुम ही बताओ? ये तो खाने में भी बेस्वाद ही लगेंगे?”

चौथा आदमी, “अरे भाई,श! तुम्हें पता है, आज सुरेश ने एक नई कार खरीद ली भैया?”

पांचवा आदमी, “क्या… कार खरीद ली? अरे! सुबह से कोई मिला नहीं क्या, जो हमें बुद्धू बना रहे हो?”

दूसरा आदमी, “हाँ हाँ। यहाँ हम दिन-रात मेहनत करते हैं, पर फिर भी हमें घर का खर्चा चलाने में इतनी दिक्कत आती है। और वो तो निकम्मा है, वो भला कार कैसे खरीद सकता है, बताओ?”

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चौथा आदमी, “अरे! नहीं नहीं, मैं सच कह रहा हूँ भैया। मैं अपनी आँखों से देखकर आ रहा हूँ।”

पहला आदमी, “वैसे सुरेश आजकल ऐसा कौन सा काम करने लगा है भाई, जो उसने इतनी जल्दी कार और मकान खरीद लिया?”

तीसरा आदमी, “वैसे आजकल वो रोज़ सुबह-सुबह शहर जाता है और देर रात को लौटता है।”

अगली सुबह सुरेश फिर चुराए हुए फलों को मंडी में जाकर बेचने जाता है।

सुरेश, “अरे भाई! ज़रा सुनो… मेरे पास बहुत सारे कच्चे फल भी हैं, क्या तुम उन्हें भी खरीद लोगे?”

दुकानदार, “नहीं नहीं भाई, कच्चे फल तो हम नहीं लेते। क्योंकि वो ज्यादा बिकते नहीं हैं और ज्यादा स्वादिष्ट भी नहीं लगते। मैं तुम्हें उन्हें पकाने की एक तरकीब बता सकता हूँ।”

सुरेश, “अरे भाई! बताओ बताओ।”

फिर मंडी का आदमी सुरेश को फल जल्दी पकने वाली दवाई दे देता है।

दुकानदार, “इस दवाई से तुम्हारे फल बहुत ही जल्दी पक जाएंगे, समझे?”

रात को सुरेश फिर से किसी के बगीचे में चोरी करने जाता है। और पेड़ पर चढ़कर फल चुराते समय गिर जाता है।

सुरेश, “अरे बाप रे! बहुत जोरों की लगी हैं। खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा।”

तभी बगीचे का मालिक वहाँ पर पहुँच जाता है।

मलिक, “अरे! कौन है… कौन है वहाँ पर?”

फिर जैसे-तैसे खड़े होकर सुरेश दौड़ने लगता है।

कुछ दूर जाकर…

सुरेश, “हे राम! आई ओह! आज तो बाल-बाल बच गया।”

उर्मिला, “अरे! क्या हुआ? आप ऐसे क्यों लंगड़ा रहे हो और कहाँ थे आप इतनी देर से?”

सुरेश, “अरे! कुछ नहीं, वो मैं बस चलते-चलते फिसल गया।”

उर्मिला सुरेश को लंगड़ाते हुए देखकर हंसने लगती है।

सुरेश, “अरे! अब क्या हंस रही हो? मेरी मदद करो चलने में।”

अगले दिन कुछ लोग चौराहे पर खड़े होकर बातें कर रहे होते हैं। तभी सुरेश लंगड़ाते हुए पास से गुजरता है।

आदमी, “अरे सुरेश! क्या हुआ भैया? ऐसे लंगड़ाते हुए क्यों चल रहा है?”

सुरेश, “अरे! कुछ नहीं भाई, वो कल चलते-चलते पैर फिसल गया था तो लग गई।”

रतन को सुरेश पर शक होता है।

रतन (मन में), “ये सुरेश तो कल रात वाले चोर जैसे ही चल रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश ही मेरे फलों की चोरी कर रहा था?

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पर अगर मैं ऐसे ही कहूँगा तो कोई भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करेगा और सुरेश भी कोई ना कोई बहाना बना देगा। मुझे इससे रंगे हाथों पकड़ना होगा। मुझे कुछ ना कुछ तो सोचना ही होगा।”

रात को सुरेश फिर से रतन के बगीचे में चोरी करने के लिए पहुँच जाता है।

सुरेश, “आज तो मैं इसके बगीचे से बहुत सारे फल तोड़ दूंगा ताकि मुझे बार-बार मेहनत करने की जरूरत ही ना पड़े।

और वैसे भी आज तो मैं फलों को पकाने वाली दवाई भी तो लेकर आ गया हूँ, बस उसे इन कच्चे फलों में डाल दूंगा।”

सुरेश रतन के बगीचे के बहुत सारे फल तोड़ लेता है और अपने घर के गोडाउन में चुपके से रख देता है और उसमें फल जल्दी पकने वाली दवाई डाल देता है।

अगले दिन रतन देखता है कि उसके बगीचे के बहुत से फल गायब हैं।

रतन, “अरे भाई! तुम्हें पता है, मेरे बगीचे के फल जादुई हैं।”

दूसरा आदमी, “क्या-क्या बात कर रहे है रतन भाई, सच में?”

रतन, “हां हां, सच में। देख, मैं रोज़ अपने फल धूप में रख देता हूँ तो ये सोने के हो जाते हैं।”

ये बात सुरेश तक भी पहुँच जाती है।

सुरेश, “अरे! मैं ऐसे ही मंडी में जाकर इन फलों को बेच देता था। हे भगवान! अगर मुझे ज़रा भी इसके बारे में पता होता तो मैं हर रोज़ इन फलों को धूप में रख देता।

चलो कोई बात नहीं, अभी मेरे पास बहुत सारे फल हैं। मैं इन्हें धूप में रख देता हूँ। मेरी तो चांदी ही चांदी है… अरे! नहीं नहीं, चांदी नहीं, सोना ही सोना है।

फिर उसके बाद मुझे कोई धंधा नहीं करना पड़ेगा। अरे वाह सुरेश! तेरे हाथ तो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी लग गई रे।”

तभी वहां रतन पुलिस को लेकर आ जाता है।

रतन, “इंस्पेक्टर साहब, गिरफ्तार कर लीजिए इस चोर को। इसकी वजह से मेरा और इन गांव वालों का बहुत सारा नुकसान हुआ है।”

सुरेश, “अरे! क्या-क्या बात कर रहे हो तुम? अरे! तुम मुझ पर ऐसे चोरी का इल्जाम नहीं लगा सकते। और तुम्हारे पास क्या सबूत है कि ये फल तुम्हारे हैं?”

रतन, “मुझे पता था कि तुम अपना गुनाह कबूल नहीं करोगे, इसलिए मैंने सारे फलों पर ये निशान बना दिया था।

कल मेरे बगीचे में जो चोर था वो पेड़ पर से गिर गया था और वो उस तरह लंगड़ा रहा था जैसे आज सुबह तुम लंगड़ा रहे थे।

इसका मतलब साफ है कि मेरे और गांव के लोगों के फल तुम्हीं ने चुराए हैं। अब तुम खुद अपना गुनाह कबूल करते हो या पुलिस कबूल करवाए?”

उर्मिला, “सुरेश, मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी कि आप चोरी करेंगे। मैं बार-बार आपसे पूछती रही कि ऐसा कौन सा काम कर रहे हो जो इतनी जल्दी पैसा कमा लेते हो?

पर आप हर बार मेरी बातें टाल देते थे। आपके लालच की वजह से आज ये दिन भी देखना पड़ रहा है। क्या सीखेगा बंकू आपको देखकर… चोरी करना?”

सुरेश, “मुझे माफ कर दो, उर्मिला। मैं भी क्या करता? मुझे पैसे कमाने का इससे आसान तरीका और कोई नहीं मिला।”

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उर्मिला,”अगर मेहनत करके आप मुझे दो वक्त की रोटी भी खिला देते तो मैं खुश रहती, पर ऐसे चोरी का मुझे एक रूपया भी गंवारा नहीं।

मैं ये आपका बंगला, गाड़ी सब छोड़कर मेरे इस पुराने घर में फिर से जा रही हूँ।”

रतन, “सुरेश, तुम्हारे लालच की वजह से मेरा और इन सारे गांव वालों का बहुत ही ज्यादा नुकसान हुआ है। अब उसका भुगतान कौन भरेगा?”

सुरेश, “मुझे माफ कर दो भाई। अपने लालच की वजह से मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है।

मुझे एक और मौका दे दो। मैं कभी भी गलत काम करके पैसा नहीं कमाऊंगा।”

सुरेश अपनी गलती पर बहुत ज्यादा शर्मिंदा हो जाता है।

रतन, “तुम्हें देखकर तो दया छोड़ो, दो थप्पड़ और मारने का मन करता है, लेकिन तुम्हारी बीवी और बच्चों पर दया कर रहे हैं।

अगर आइंदा कोई ऐसी हरकत की तो माफी का कोई मौका नहीं मिलेगा, याद रखना।”

सुरेश, “हाँ हाँ भैया, मैं वादा करता हूँ कि मैं मेहनत करके ही कमाऊंगा और अब से जल्दी पैसे कमाने के बारे में नहीं सोचूंगा भैया।”


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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