हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची भाई ” यह एक Moral Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bhai Bahan Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
एक गांव में बबलू और गुड्डू नाम के दो भाई रहते थे। बबलू गुड्डू से उम्र में बड़ा था और वह हमेशा गुड्डू से छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता रहता था।
इस बात से उनके पिता हरिया बहुत चिंतित रहते थे। एक दिन बबलू गुड्डू से बिना किसी कारण के झगड़ रहा था। तभी वहां हरिया आ गया।
हरिया, “मेरी समझ में नहीं आता बबलू, आखिर तुम्हें गुड्डू से क्या समस्या है? तुम हर छोटी-छोटी बात पर गुड्डू से झगड़ा करते रहते हो।”
बबलू, “हाँ हाँ, आप तो गुड्डू का ही पक्ष लेंगे पिताजी, क्योंकि ये आपका लाडला बेटा है।”
हरिया, “ऐसी बात नहीं है, बेटा। जितना प्रेम मैं गुड्डू से करता हूँ, उतना ही प्रेम मैं तुमसे भी करता हूँ।
मेरी समझ में यह नहीं आता कि आखिर तुम्हारे दिमाग में इतनी नफरत भर कौन रहा है?”
हरिया, “झूठ मत बोलिए पिताजी। सच तो यह है कि आप गुड्डू को हमेशा से मुझसे ज्यादा प्रेम करते हैं।
आप हमेशा गुड्डू का ही पक्ष लेते हैं। आप गुड्डू की बड़ी से बड़ी गलतियों को ऐसे नज़रअन्दाज़ कर देते हैं जैसे कि उसने कोई गलती की ही नहीं, बल्कि कोई महान कार्य किया हो।”
गुड्डू अपने बड़े भाई और पिता की बहस को काफी देर से सुन रहा था।
वह बबलू की ओर देखकर बोला, “ऐसी बात नहीं है भैया। जब मैं कोई गलती करता हूँ तो पिताजी मुझे डांटते भी हैं,
लेकिन बस मेरी समझ में नहीं आता कि आखिर आपको मुझसे इतनी चिढ़ क्यों है? आखिर मैं आपका छोटा भाई हूँ।”
बबलू, “मेरा कोई छोटा भाई नहीं है। मैं अपनी माँ की इकलौती संतान हूँ, समझा? मेरी माँ के मरने के बाद पिताजी ने तुम्हारी माँ से विवाह कर लिया।
तुम पिताजी की संतान जरूर हो, लेकिन मेरे भाई नहीं हो।”
हरिया, “बस बहुत हो गया, बबलू। अब मुझे यह बताओ कि आखिर तुम गुड्डू से झगड़ा क्यों कर रहे थे?”
बबलू, “तुम्हारे गांव की ज़मीन पर गुड्डू मुझसे बगैर पूछे एक ढाबा खोलने की तैयारी कर रहा था।”
हरिया, “उसे ढाबा खोलने के लिए मैंने ही बोला था। तुम तो कोई कामकाज करते नहीं हो और अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ। गुड्डू ही परिवार का खर्च उठाता है।”
बबलू, “बस यही सुनना बाकी रह गया था। तो आप यह कहना चाहते हैं कि मैं इसके टुकड़ों पर पल रहा हूँ?
पिताजी, वह जमीन मेरी है। मैं उस जमीन पर गुड्डू को कोई ढाबा नहीं खोलने दूंगा।”
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इतना कहकर बबलू क्रोधित होकर घर से बाहर निकल गया और गुड्डू अपने पिताजी की ओर देखकर बोला, “अब आपको भैया से इतनी सख्ती से बात नहीं करनी चाहिए थी, पिताजी।
आपने उनसे ऐसा क्यों कहा कि घर का खर्चा मैं ही उठाता हूँ? उन्हें कितना बुरा लगा होगा?”
हरिया, “तुम वाकई बहुत भोले हो गुड्डू। तुम्हारा बड़ा भाई तुमसे बगैर बात के झगड़ा करता रहता है और फिर भी तुम्हारे मन में उसके लिए इतना प्रेम और स्नेह है।”
गुड्डू, “वह मेरे बड़े भाई हैं, पिताजी। उन्हें मुझसे झगड़ने का पूरा अधिकार है। भैया मन के इतने बुरे भी नहीं हैं।
पिताजी, उन्हें जरूर कोई मेरे खिलाफ और आपके खिलाफ भड़काता रहता है। मुझे याद है बचपन में जब मैं दूसरी कक्षा में था और भैया पांचवी कक्षा में थे।
भैया मुझे कितने प्रेम से मेरी ऊँगली पकड़ कर विद्यालय ले जाया करते थे।”
हरिया, “मुझे तुम पर गर्व है बेटा कि मुझे तुम्हारे जैसी संतान मिली।”
इतना कहकर हरिया ने गुड्डू को गले से लगा लिया। उधर बबलू क्रोधित होकर सीधा गांव के व्यक्ति रोशन के पास पहुँच गया।
रोशन एक कपटी व्यक्ति था जो अंदर ही अंदर हरिया से बहुत जलता था। वह काफी वर्षों से बबलू के कान भर रहा था।
बबलू को अपनी तरफ आते देख रोशन मुस्कुराता हुआ बोला,
रोशन, “क्या बात है बबलू? लगता है अपने छोटे भाई गुड्डू से फिर से झगड़ा करके आए हो?”
बबलू, “अब तो हद पार हो गई है रोशन चाचा। आज तो मेरे पिताजी ने यह तक बोल दिया कि परिवार का खर्चा भी गुड्डू ही उठाता है, मानो मैं कुछ करता ही नहीं।”
रोशन, “अरे! तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें साफ-साफ समझा दिया कि तुम गुड्डू के टुकड़ों पर ही पल रहे हो। तुम उन दोनों के लिए बोझ हो।”
बबलू, “मैं अब इस गांव में नहीं रहूँगा, रोशन चाचा। मैं अपने परिवार को छोड़कर हमेशा के लिए चला जाऊंगा।”
रोशन, “अरे! ऐसी गलती मत करना बबलू। अगर तुमने ऐसा किया तो गुड्डू अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा। समझो, वह तुम्हारे पिताजी की सारी संपत्ति पर कब्जा कर लेगा।
मत भूलो हरिया की संपत्ति के असली वारिस तुम हो, न कि वह गुड्डू। तुम्हारे पिताजी ने सबसे पहले तुम्हारी माँ से भी विवाह किया था।”
बबलू, “आखिर पिताजी ने दूसरा विवाह क्यों किया?”
रोशन, “तुम्हारे पिताजी एक बहुत ही कठोर स्वभाव के व्यक्ति थे, एक नंबर के चरित्रहीन थे।
तुम्हारी माँ जब जीवित थी तो वह हरिया के स्वभाव से बहुत चिंतित रहती थी और इसी चिंता में वह स्वर्ग सिधार गईं। तुम्हारे पिताजी शायद इसी दिन का इंतजार कर रहे थे।
कुछ ही दिन बाद उन्होंने गुड्डू की माँ से विवाह कर लिया, जिनका देहांत अभी दो-तीन साल पहले हुआ है।”
बबलू, “तो फिर आप ही बताइए रोशन चाचा, मैं क्या करूँ?”
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रोशन, “हरिया के जो वकील हैं, वह मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। अभी कुछ दिन पहले ही हरिया अपने वकील के पास वसीयत बनवाने के लिए गए थे।
यह बात मुझे वकील ने नहीं बताई। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति किसके नाम करवाई है, जानते हो?”
बबलू, “किसके नाम?”
रोशन, “उन्होंने अपनी सारी संपत्ति गुड्डू के नाम कर दी है। यह बात मुझे उनके वकील ने ही बताई।
अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो तुम स्वयं जाकर वकील से पूछताछ कर सकते हो। ”
बबलू, “अगर ऐसी बात है रोशन चाचा, तो फिर मैं गुड्डू को नहीं छोड़ूंगा।”
रोशन, “ऐसी गलती भूलकर भी मत करना। मेरे पास एक और उपाय भी है।”
बबलू, “कैसा उपाय, रोशन चाचा?”
रोशन, “मैं तुमसे अभी कुछ देर पहले कह रहा था कि वह वकील मेरा बहुत अच्छा मित्र है। वह मेरे कहने पर वसीयत तुम्हारे नाम पलट देगा, पर इस बात का पता हरिया को कभी नहीं चल पाएगा।
जब हरिया इस दुनिया से चला जाएगा तो सारी संपत्ति के वारिस तुम हो जाओगे। उसके बाद, तुम गुड्डू को धक्के देकर बाहर निकाल देना।
इस राज़ को और तुम्हारे, मेरे और वकील के अलावा कभी कोई नहीं जान पाएगा। अगर तुम कहो तो मैं उस वकील से बात कर लेता हूँ।
तुम्हारे पिताजी को पता भी नहीं चलेगा और वह वकील वसीयत में सारी संपत्ति तुम्हारे नाम पलट देगा।”
तभी वहां पर रोशन की बेटी ऊषा आकर बोली, “पिताजी, आपको माँ बुला रही हैं।”
रोशन ऊषा की बात सुनकर वहां से चला गया। उषा बबलू की ओर प्यार से देखने लगी। दरअसल उषा और बबलू एक दूसरे से प्रेम करते थे।
ऊषा, “मैंने तुम्हारे और पिताजी के बीच की सारी बातें सुन ली हैं। तुम्हें काम करना है, कल पिताजी के साथ उस वकील के घर पर चले जाओ और वसीयत अपने नाम करवा लो।
जब तक तुम ऐसा नहीं करोगे, पिताजी मेरा विवाह तुमसे नहीं करेंगे।”
बबलू, “मैं कुछ समझा नहीं ऊषा, तुम क्या कहना चाहती हो?”
ऊषा, “तुम ही बताओ ना बबलू, कोई पिता उस लड़के से अपनी बेटी का विवाह क्यों करेगा जिसके हाथ में कुछ भी ना हो और फिलहाल तो तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है, तुम्हारे छोटे भाई गुड्डू का है।”
ऊषा की बात सुनकर बबलू के चेहरे पर क्रोध आ गया और अगले दिन वह रोशन के साथ अपने पिता के वकील के पास चला गया, जो शायद उन्हीं का ही इंतज़ार कर रहा था।
वकील, “हाँ, रोशन का फ़ोन आ गया था बबलू कि तुम आने वाले हो। देखो भाई, मैं तुम्हारे पिताजी की वसीयत तुम्हारे नाम पर दूंगा, लेकिन मुझे तुम्हारी संपत्ति में से 20% हिस्सा चाहिए।”
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बबलू, “20%..? कहीं आपका दिमाग खराब तो नहीं हो गया? आप जानते भी हैं कि आप क्या कह रहे हैं? यह रकम तो लाखों में पहुँच जाएगी।”
वकील, “अब देखो बबलू, तुम्हारे पिताजी ने सारी वसीयत तुम्हारे छोटे भाई के नाम कर रखी है। अगर तुम मुझे 20% नहीं देना चाहते हो तो कोई बात नहीं। तीन दिन बाद तो तुम वैसे भी सड़क पर आने ही वाले हो।”
बबलू, “मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा।”
वकील, “दरअसल, तुम्हारे पिताजी को ब्लड कैंसर है और यह बात उन्होंने तुमसे और तुम्हारे छोटे भाई से छुपा रखी है। उनकी मेडिकल रिपोर्ट्स मेरे पास अभी भी रखी हुई हैं। ज्यादा से ज्यादा वह तीन दिन के मेहमान हैं।”
रोशन बड़ी चालाकी से बबलू की ओर देखकर बोला,
रोशन, “यह सोचने का समय नहीं है। बबलू, इस वकील के मुँह पर 20% मारो और सारी वसीयत अपने नाम करवा लो। तीन दिन बाद तो तुम्हारा पिता वैसे ही मर जाएगा।”
बबलू गहरी सोच में डूबते हुए बोला, “ठीक है, मैं आपको 20% देने के लिए तैयार हूँ।”
वकील, “तो यहाँ अपना अंगूठा लगा दो और टेंशन फ्री होकर अपने घर चले जाओ। वसीयत तुम्हारे पिताजी के मरने के बाद ही सुनाई जाएगी।”
बबलू अंगूठा लगाकर रोशन के साथ लौट आया और तीन या चार दिन बाद अचानक हरिया की तबियत बिगड़ गई और उनकी मौत हो गई।
गुड्डू फूट-फूट कर रोने लगा। सारे गांव वाले वहाँ एकत्रित हो गए। तभी वकील वहाँ आ गया।
वकील, “गुड्डू, मैं तुम्हारे पिताजी का वकील हूँ। मैं यहाँ पर यह बताने के लिए आया हूँ कि तुम्हारे पिताजी ने संपत्ति किसके नाम की है?”
गुडडू,” ये बात आप कल आकर बता देना, मैं अभी सुनने और समझने की स्थिति में नहीं हूँ। मैं अपने पिताजी से बहुत प्रेम करता था। वो मुझे छोड़कर चले गए, मैं अकेला रह गया।”
वकील, “देखो, ये मेरी मजबूरी है गुड्डू। तुम्हारे पिताजी का आदेश था कि उनके मरने के दो घंटे बाद वसीयत पढ़कर सुना दी जाए। वसीयत के मुताबिक सारी संपत्ति उन्होंने तुम्हारे बड़े भाई के नाम कर दी है।”
इतना कहकर वकील वहाँ से चला गया। मगर गुड्डू को वकील की बात से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह फूट-फूट कर रोता रहा।
गुड्डू का अंतिम संस्कार बबलू ने किया। शाम के वक्त गुड्डू रोता हुआ जब घर पर आया तो बबलू क्रोधित होकर गुड्डू से बोला।
बबलू, “पिताजी ने सारी जायदाद मेरे नाम कर दी है, गुड्डू। अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है, तुम यहाँ से निकल जाओ।”
गुड्डू, “यह आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं भला कहाँ जाऊँगा? मेरा तो अब आपके अलावा संसार में कोई नहीं है।”
बबलू, “तुम्हारे संसार में सिर्फ पिताजी थे, जो अब चले गए हैं। कृपा करके तुम भी यहाँ से चले जाओ।”
गुड्डू, “ऐसा मत कीजिए, भैया। ऐसा मत कीजिए। मुझे इस घर में एक छोटी सी जगह दे दीजिए, मैं सारा जीवन उसी जगह में रहकर बिता लूँगा।”
बबलू, “इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।”
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इतना कहकर बबलू ने गुड्डू को धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया। गुड्डू रोता हुआ वहाँ से चला गया।
अगले दिन बबलू ने उषा से धूमधाम से विवाह कर लिया। गुड्डू दो दिन तक भूखा-प्यासा दूसरे गांव में भटकता रहा।
तभी उसे खेतों में बना हुआ एक घर नजर आया। गुड्डू वहाँ पर चला गया। एक व्यक्ति गुड्डू की ओर देखकर बोला।
व्यक्ति, “अरे, मैं तो तुम्हें जानता हूँ। तुम हरिया के ही पुत्र हो ना?”
गुड्डू, “हाँ।”
व्यक्ति, “मेरा नाम सुखिया है। मुझे दो दिन पहले ही पता लगा कि हरिया अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन बबलू ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया। ईश्वर उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।”
गुड्डू, “अरे? आप तो मेरे पूरे परिवार को जानते हैं।”
व्यक्ति, “इस घर को और इस खेत को देख रहे हो? यह घर तुम्हारे पिताजी का ही दिया हुआ है। हम सब तो सड़कों पर मारे-मारे फिर रहे थे।
तुम्हारे पिताजी ने ही हमें सहारा दिया। आज से इस घर और इस खेत के वारिस तुम हो।”
उस दिन के बाद से गुड्डू उसी घर में रहने लगा। वह दिन भर खेतों से मेहनत करके आता और शाम के वक्त घर पर सो जाता।
उधर बबलू एक दिन शाम के वक्त जब अपने घर पर लौटता है तो उसने देखा कि रोशन और उसकी पत्नी उसी के बारे में बात कर रहे थे। बबलू चुपके से उनकी सारी बातें सुनने लगा।
ऊषा, “पिताजी, आपके कहने पर मैंने उस बबलू से विवाह कर लिया। अब तो सारी संपत्ति मैंने आपके नाम भी कर दी है। अब मुझे उससे छुटकारा दिलाइए।”
रोशन, “चिंता मत कर बेटी, मैं सही मौके की तलाश में हूँ। इस संपत्ति को हड़पने के लिए वर्षों इंतज़ार किया है।
मैं नहीं चाहता कि मेरी छोटी सी गलती मेरी वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दे। मैं तो यह उपाय सोच रहा हूँ कि बबलू को जड़ से खत्म ही कर दिया जाए।”
यह सुनकर बबलू बुरी तरह आश्चर्यचकित हो गया और क्रोधित होकर सीधे रोशन के सामने आकर बोला।
बबलू, “मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी, रोशन। तो इसका मतलब पिताजी सही कहते थे, तुम हमेशा मेरे परिवार के खिलाफ़ मेरे कान भरते रहते थे?”
बबलू, “और उषा, तुम… तुम तो मेरी पत्नी हो।”
ऊषा, “काहे की पत्नी? मैंने सिर्फ पिताजी के कहने पर तुमसे विवाह किया है। निकल जाओ यहाँ से, इससे पहले कि मैं तुम्हें धक्के देकर बाहर निकाल दूँ।”
बबलू, “यह घर मेरा है।”
रोशन, “है नहीं, तुम्हारा था। तुम्हें शायद याद नहीं कि तुमने उस वकील के यहाँ पर अंगूठा भी लगाया था और जायदाद हथियाली थी। उसी वकील ने वसीयत पर तुम्हारा नाम नहीं बल्कि मेरा नाम लिखा था।”
रोशन और उसकी पत्नी उषा ने बबलू को धक्के देकर घर से बाहर निकाल दिया। बबलू पछतावे के आंसू लिए हुए वहाँ से चला गया।
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उसे अपने पिताजी और छोटे भाई की बहुत याद आने लगी। कुछ दिनों तक बबलू ऐसे ही भटकता हुआ उसी जगह पर पहुँच गया जहाँ उसका छोटा भाई रह रहा था।
अपने भाई को देखकर गुड्डू दौड़ता हुआ बबलू के पास पहुँच गया।
गुड्डू, “अरे भैया! आप की दशा इतनी बुरी कैसे हो गई?”
बबलू ने रोते हुए सारी घटना अपने भाई गुड्डू को बता दी।
गुड्डू, “चिंता मत कीजिए भैया, मैं हूँ ना।”
बबलू, “मैंने तुम्हारे साथ कितना बुरा किया, गुड्डू और तुम?”
बबलू, “नहीं भैया, मैं बचपन से जानता था कि कोई आपके मेरे खिलाफ़ कान भरता है। आप मन के इतने बुरे नहीं हैं।”
तभी वहाँ एक कार आकर रुकी। कार के अंदर से हरिया का वकील निकल कर बाहर आ गया और बबलू और गुड्डू की ओर देखकर बोला।
वकील, “मैंने तुम दोनों को कहाँ-कहाँ नहीं तलाश किया। अब मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम दोनों के साथ बहुत बुरा किया।
ईश्वर ने मुझे इसकी सजा दे दी है। मुझे भी तुम्हारे पिताजी की तरह ब्लड कैंसर हो गया है और मैं भी कुछ दिनों का ही मेहमान हूँ। मरने से पहले मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ।”
बबलू, “आपने बहुत देर कर दी वकील साहब। रोशन ने सारी संपत्ति अपने नाम कर ली है।
आपने जो अंगूठा मुझसे लगवाया था, उसका फायदा मेरी पत्नी और रोशन दोनों ने उठाया।”
वकील, “नहीं बबलू। दरअसल हरिया जी ने तुम दोनों को अपनी सम्पत्ति नाम की थी।
सम्पत्ति का वारिस गुड्डू आज भी है। रोशन ने सिर्फ तुम्हारे हिस्से की संपत्ति अपने नाम की है।”
बबलू, “यह क्या कह रहे हैं आप?”
वकील, “मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूँ। बचपन से ही रोशन तुम्हें तुम्हारे पिताजी और छोटे भाई के खिलाफ़ तुम्हें भड़काता रहा।
यहाँ तक कि उसने अपनी बेटी का विवाह भी तुम्हारा विश्वास जीतने के लिए कर दिया। मेरे पास उसके खिलाफ़ तमाम सबूत हैं। मैं पुलिस के सामने गवाही देने को तैयार हूँ।”
बबलू और गुड्डू वकील के साथ पुलिस स्टेशन चले गए। पुलिस स्टेशन में वकील ने अपना जुर्म स्वीकार किया।
इन्स्पेक्टर, ” अरे! जी तो चाहता है वकील कि तुम्हें भी जेल की काल कोठरी में डाल दूँ, लेकिन ईश्वर ने तुम्हें इससे कहीं बड़ी सजा दी है।”
इसके बाद पुलिस रोशन के घर के लिए निकल गई।
इन्स्पेक्टर, “रे पकड़ लो, हवलदार इन्हें।”
रोशन, “अरे रे ऐसे कैसे घुसे जा रहे हो गुंडों की तरह, भाई?”
इन्स्पेक्टर, “अरे! गुंडा गर्दी तो अब हम दिखाएंगे, कैसी होती है?”
रोशन, “अरे साहब! बताइए तो सही क्या बात है? अगर हमसे कोई गलती हो गई है तो ले दे कर रफा दफा करते हैं ना। इतनी तकलीफ ना लीजिए आप।”
इन्स्पेक्टर, “एक ऑन ड्यूटी ऑफिसर ने रिश्वत का प्रयास किया। रुक तू, तेरे पे ऐसी धारा लगाऊँगा कि देखता हूँ कैसे बाहर निकलता है? अरे! रुक तू।”
ऊषा, “पापा, ये सब क्या हो रहा है और मेरे पापा को कहाँ ले जा रहे हो?”
पुलिस, “मैं बताऊँ कहाँ ले जा रहे हैं? तुम्हारे असली ससुराल वहीं बैठकर बर्बाद करना है तुम लोग अपनी जिंदगी।”
इंस्पेक्टर, “वकील जी, आपने अपना सारा जुर्म कबूल कर लिया है। अब आपकी बारी। जाओ, निकलो यहाँ से।”
बबलू,”सच कहा है किसी ने, जैसा करोगे वैसा भरोगे।”
ऊषा,” तुम अपना मुँह बंद करो, समझे?”
बबलू, “मैंने कुछ नहीं बोला।”
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इंस्पेक्टर, “अरे ! चलो अब, सारी बातें यहीं करनी हैं क्या देवी? कुछ बातें थाने के लिए भी छोड़ दो। अरे, ले चलो इन्हें।”
ऊषा, “मेरे लिए फीमेल कॉन्स्टेबल लाओ पहले, फिर यहाँ आना।”
इन्सपेक्टर, “उसका भी उपाय है मेरे पास। गाड़ी में सीसीटीवी लगा हुआ है। लाइव रिपोर्होटिंग हो रही है हेडक्वार्टर में। अब तो चल सकती हो ना?”
वकील के खिलाफ सबूत जमा करके पुलिस ने रोशन और ऊषा को गिरफ्तार करके जेल में भेज दिया। बबलू और गुड्डू सगे भाइयों की तरह आपस में फिर से मिल जुलकर रहने लगे।
दोस्तों ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!