हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” लालची समोसेवाला ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Moral Stories, Hindi Stories या Hindi Moral Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
महेश अपनी पत्नी सुधा के साथ समरपुर नाम के गांव में रहता था और खेती-बाड़ी का काम करता था।
लेकिन महेश को खेती-बाड़ी का काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
इसलिए अब वह खेती-बाड़ी छोड़कर कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिसमें उसे अच्छा-खासा मुनाफा हो।
एक दिन महेश अपनी पत्नी सुधा के साथ बाजार में दशहरे का मेला देखने गया।
मेला देखने के बाद उन दोनों को थोड़ी भूख लगी, तो वे दोनों बाजार में खड़े समोसे वाले के पास गए और समोसे खाने लगे।
देखते ही देखते उस समोसे वाले की दुकान पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। उसकी दुकान पर इतनी भीड़ देखकर महेश के दिमाग में भी एक समोसे की दुकान खोलने का विचार आया
और उसने मन ही मन सोचा, “ये समोसे वाला दिन भर में कम से कम तीन से चार हजार रुपये तो कमाता ही होगा।
इसके एक समोसे बनाने की लागत लगभग पाँच रुपये होगी और एक समोसा ये ग्राहकों को ₹10 का बेचता है।
मतलब सीधे-सीधे एक समोसे पर पाँच रुपये का मुनाफा। मतलब एक दिन का मुनाफा 2000 है, तो महीने का सीधा ₹60,000 का फायदा।”
समोसे वाले की अच्छी-खासी भीड़ देखकर महेश भी अब बाजार में समोसे का एक ठेला लगाने का निर्णय ले लेता है और वह घर जाकर अपनी पत्नी सुधा से इस बारे में बात करता है।
सुधा भी बाजार में समोसे की दुकान खोलने के लिए राजी हो जाती है और कहती है, “आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली।
मैं भी कब से आपको समोसे का ठेला खोलने के लिए कहना चाहती थी? लेकिन आपसे इसलिए नहीं कहा कि कहीं आप मुझसे गुस्सा ना हो जाएं।
मेरी माँ ने मुझे शादी से पहले समोसे बनाने सिखाए थे। मैं हर रोज़ सुबह जल्दी उठकर समोसे और उसके साथ खाने के लिए हरी और लाल चटनी बना दिया करूंगी।
उसके बाद हम दोनों बाजार जाकर उन समोसों को अच्छे दामों पर बेचा करेंगे।”
महेश, “ठीक है सुधा, तुम मुझे समोसे और चटनी बनाने के सारे सामान की एक लिस्ट बना कर दे दो।
मैं आज ही बाजार से तुम्हारे लिए सारा सामान और एक ठेला किराये पर ले आता हूँ और कल से ही बाजार में समोसे बेचना शुरू कर देता हूँ।”
अब सुधा उसे एक लिस्ट बनाकर देती है और महेश बाजार जाकर अपनी बचत के कुछ पैसों से लिस्ट में लिखा सारा सामान और एक ठेला किराये पर ले आता है।
अगले दिन सुबह सुधा 4 बजे उठकर समोसे बनाने के लिए तैयारी शुरू कर देती है। समोसे का सारा सामान तैयार करके वह महेश के साथ बाजार में समोसे बेचने जाती है
और ठेले पर गरमा-गरम समोसे तलना शुरू कर देती है। उन समोसे की खुशबू से लोग महेश के ठेले पर खींचे चले आते हैं।
ग्राहक, “अरे भैया! तुम्हारे ठेले में तो समोसे की बहुत अच्छी सुगंध आ रही है। लगता है तुमने आज से अपना ठेला लगाना शुरू किया है।”
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महेश, “सही कहा भैया, आज बाजार में हमारी दुकान का पहला दिन है। ये लीजिए और गरमा-गरम समोसे खाइए सिर्फ ₹10 का एक। एक बार खाएंगे, तो बार-बार लौटकर हमारे पास ही आएंगे।”
महेश की बातों से खुश होकर वह ग्राहक एक समोसे को चखकर देखता है। उसे वह समोसा बहुत ही स्वादिष्ट लगता है।
ग्राहक, “वाह भैया! क्या समोसा बनाया है? मैंने अपनी जिंदगी में कभी इससे ज्यादा स्वादिष्ट समोसा नहीं खाया।
और इसके साथ ये खट्टी-मीठी चटनी… खाकर मज़ा ही आ गया। आप एक काम करो, मेरे घरवालों के लिए भी छह समोसे पैक कर दो।”
अपने पहले ग्राहक से अच्छी बिक्री होने पर महेश और सुधा बहुत खुश होते हैं और देखते ही देखते उनके ठेले पर ग्राहकों की भीड़ लग जाती है।
वे रोज़ बाजार में गरमा-गरम समोसे बेचते हैं और कुछ ही दिनों में उनकी दुकान बहुत अच्छी चलने लगती है। उन्हें बहुत अच्छा मुनाफा भी होने लगता है।
लेकिन कुछ समय के बाद महेश के मन में पैसों का लालच बढ़ने लगता है। एक दिन वह अपनी पत्नी से कहता है, “हम इतने समय से बाजार में समोसे बेच रहे हैं
और लोगों को तुम्हारे हाथ के बने समोसे पसंद भी बहुत आते हैं। क्यों ना हम एक समोसे का दाम ₹10 से बढ़ाकर ₹15 कर दें? वैसे भी तुम्हारे हाथ के बने स्वादिष्ट समोसे खाने के लिए लोग ₹15 भी दे देंगे।”
सुधा, “अरे! नहीं जी, अगर हमने एकदम से अपने समोसों का दाम सीधे ₹5 बढ़ा दिया ना, तो हमारे सभी ग्राहक टूट जाएंगे।
वैसे भी हमें ₹10 का समोसा बेचकर अच्छा मुनाफा तो हो ही रहा है, तो फिर हम दाम बढ़ाने की भला क्या जरूरत है?”
महेश, “तू चुप रह, तुझे दुकानदारी के बारे में अभी कुछ भी नहीं पता। तू बस समोसे बना, बाकी सब मैं खुद संभाल लूँगा। आई बड़ी मुझे दुकानदारी समझाने वाली।”
सुधा के समझाने पर भी महेश उसकी बात नहीं सुनता और अगले दिन से वह एक समोसे को ₹10 के बजाय ₹15 में बेचना शुरू कर देता है।
लेकिन एक समोसे के लिए ₹15 सुनकर आधे से ज्यादा ग्राहक समोसे खाए बिना ही उसकी दुकान से चले जाते हैं।
देखते ही देखते महेश की दुकान के पास नत्थू समोसे वाले की दुकान पर भीड़ लगनी शुरू हो जाती है।
पूरे दिन में बड़ी ही मुश्किल से महेश आधे ही समोसे बेच पाता है। शाम को जब वह दोनों घर लौटते हैं, तो सुधा कहती है, “मैंने आपसे कहा था ना कि अगर आपने दाम बढ़ाया तो हमारे ग्राहक टूट जाएंगे?
देखिए, आज हमारे आधे समोसे भी नहीं बिक पाए। अगर आपने दाम घटाकर दोबारा से ₹10 नहीं किया, तो हमारे बचे-खुचे थोड़े से ग्राहक भी हमसे समोसे नहीं खरीदेंगे।”
महेश, “देख सुधा, मैंने तुझे कल भी समझाया था और आज फिर समझा रहा हूँ। दुकानदारी कैसे करनी है, ये तू मुझे मत समझा।
अगर एक दिन ग्राहक नहीं आए तो क्या हुआ? जब किसी और दुकान पर उन्हें ऐसा स्वाद नहीं मिलेगा, तो भागते हुए हमारी दुकान पर ही आएँगे। तू ज्यादा मत सोच और आराम से सो जा।”
महेश की बातें सुनकर सुधा परेशान हो जाती है। जब अगले दिन वे दोनों बाजार में समोसों का ठेला लगाते हैं,
तो उनकी दुकान पर कल से भी कम समोसे बिक पाते हैं और देखते ही देखते नत्थू हलवाई की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लग जाती है।
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लेकिन ये सब देखकर भी महेश अपना लालच नहीं छोड़ता और मन ही मन कहता है, “इस नत्थू समोसे वाले का तो मुझे कुछ करना ही पड़ेगा।
अगर सब लोग इसी तरह इससे समोसे खरीदते रहे, तो मैं तो बर्बाद हो जाऊंगा।”
अब अगले दिन सुबह जल्दी उठकर महेश बाजार जाता है और नत्थू हलवाई की नजरों से छिपकर उसके आलू के मसाले में खराब मसाला मिला देता है
और जल्दी से वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाता है। फिर वह सुधा के साथ अपना ठेला लेकर बाजार पहुँच जाता है।
अब नत्थू हलवाई गरमा-गरम समोसे तलना शुरू करता है और उसकी दुकान के बाहर भीड़ लगनी शुरू हो जाती है।
उसकी दुकान पर भीड़ देखकर महेश मन ही मन बहुत खुश होता है।
उसे इतना खुश देखकर सुधा पूछती है, “अरे! हमारी दुकान पर ना तो सुबह से एक भी ग्राहक आया है
और ना ही हमारी कोई लॉटरी लगी है, तो फिर आप इतने खुश क्यों हो रहे हैं? सच-सच बताइए, क्या चल रहा है आपके दिमाग में?”
महेश, “कुछ नहीं मेरी प्यारी सुधा। वो कहते हैं ना कि जब सीधी ऊँगली से घी ना निकले, तो ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है।
बस थोड़ी देर सब्र करो और देखती जाओ, उसकी दुकान के आगे लगी भीड़ कैसे हमारे पास खींची चली आती है?”
महेश की बात सुनकर सुधा सोच में पड़ जाती है और देखती है कि नत्थू हलवाई की दुकान के समोसे लोग पास के रखे कूड़ेदान में फेंक रहे हैं।
उसे ये देखकर कुछ समझ नहीं आता। तभी एक ग्राहक नत्थू हलवाई से कहता है, “अरे भैया! ये क्या समोसा बना है?
छी छी… इतना भद्दा स्वाद! ऐसा लग रहा है, जैसे खराब आलू का मसाला बनाकर इसके अंदर डाल दिया है।
तुम्हें भला इतना भी क्या लालच हो गया कि खराब सामान के समोसे बनाकर हमें बेच रहे हो?
रहने दो भैया, तुम्हारा ये ₹10 का समोसा खाने से अच्छा तो मैं महेश की दुकान से ₹15 का समोसा खरीद लूँगा।
उसका समोसा महंगा है, पर कम से कम वो तुम्हारी तरह खराब सामान तो इस्तेमाल नहीं करता।”
उस ग्राहक की बात सुनकर नत्थू हलवाई असमंजस में पड़ जाता है और सोचता है कि आखिर उसके सारे समोसे खराब कैसे हो गए?
और तभी कुछ ही देर में महेश की दुकान के आगे ग्राहकों की भीड़ लग जाती है।
ग्राहक, “अरे भैया! अब तो तुम्हारे यहाँ से ही समोसे खरीदकर खाया करेंगे। ₹5 के लालच में अपनी सेहत से खिलवाड़ नहीं करेंगे।”
महेश, “भैया, मेरा तो ये उसूल है कि सामान चाहे ₹2 महंगा बेच लूँगा, लेकिन घटिया सामान इस्तेमाल करके किसी की सेहत के साथ खिलवाड़ नहीं करूँगा।”
देखते ही देखते महेश के सभी पुराने ग्राहक उसकी दुकान पर लौट आते हैं और अब हर रोज़ सुबह वह बाजार जाकर मौका देखकर नत्थू समोसे वाले के आलू में खराब मसाला मिला देता है।
कुछ दिनों में नत्थू समोसे वाले की दुकान बिल्कुल ठप पड़ जाती है और महेश की दुकान दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगती है।
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लेकिन कहते हैं ना कि बेईमानी से किया गया काम ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता।
ऐसे ही कुछ दिनों बाद, जब महेश को मौका मिलता है और वह नत्थू के समोसों के आलू में खराब मसाला मिला रहा होता है,
तो पास की एक दुकान वाले महेश को ऐसा करते देख लेते हैं और यह बात जाकर नत्थू समोसे वाले को बता देते हैं।
नत्थू समोसे वाला उनकी बात सुनकर आग बबूला हो जाता है और जब अगले दिन महेश फिर से उसके समोसों में खराब मसाला मिलाने जाता है,
तो नत्थू समोसे वाला बाजार के बाकी दुकानदारों के साथ उसे ऐसा करते हुए रंगे हाथों पकड़ लेता है और सभी दुकानदार मिलकर महेश को बुरी तरह पीटते हैं।
जब ग्राहकों को महेश की गिरी हुई हरकत के बारे में पता चलता है, तो सभी ग्राहक उससे समोसे खरीदना बंद कर देते हैं। कुछ ही दिनों में उसे अपना समोसे का ठेला बंद करना पड़ता है।
पूरे गांव में उसका नाम खराब होने के बाद अब वह गांव में कोई भी काम शुरू नहीं कर पाता है और ना ही गांव में कोई उसे अपने यहाँ काम पर रखता है।
अंत में जब उसे कोई काम नहीं मिलता, तो उसे अपना घर चलाने के लिए अपनी पत्नी के साथ मिलकर खेती का ही काम करना पड़ता है
और उसके लालच का परिणाम उसके साथ-साथ उसकी पत्नी को भी भुगतना पड़ता है।
दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!