पापी बुढ़िया | Papi Budhiya | Moral Story in Hindi | Hindi Kahani | Bedtime Story in Hindi

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” पापी बुढ़िया ” यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


चंदन नगर गांव में करोड़ीमल नाम का लालची जमींदार रहता था। उससे सभी गांव वाले बहुत दुखी थे।

जो भी गांव वाला उससे कुछ पैसे उधार लेता, वो जमींदार करोड़ीमल का गुलाम बन जाता।

एक दिन जमींदार के दो आदमी गांव के रतन नामक किसान को लाठी-डंडे से मार रहे होते हैं।

जमींदार, “अरे! मारो रे और मारो! ससुरा हमारा रुपया लेकर बैठ गया है, और अब जब हमारा रुपया ब्याज सहित चुकता करने की बारी आई तो नाटक कर रहा है। अरे मारो इसे, और मारो!”

रतन, “अरे जमींदार जी! मुझे छोड़ दीजिए। अब तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचा।

जो जमीन थी, वो भी आपको दे दी। अब और कहाँ से चुकता करूं आपका ब्याज?”

जमींदार, “अरे रतन! हमने तुमसे पहले ही कहा था, हमारा ब्याज तो तुम्हें सूद समेत लौटाना ही होगा, वरना अच्छा नहीं होगा। गांव में रहना है तो जल्दी ही मेरा ब्याज मुझे लौटा दो, समझे?”

रतन, “बस थोड़े दिन की और मोहलत दे दो, जमींदार जी। मैं कुछ भी करके आपका रुपया ब्याज समेत लौटा दूंगा।”

जमींदार, “अच्छा अच्छा, ठीक है ठीक है। चलो रतन, देते हैं तुम्हें दो दिन और, लेकिन दो दिन बाद अगर मेरे रुपए ब्याज समेत नहीं लौटा पाए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा, बता रहा हूँ।”

रतन जमींदार की बात सुनकर बहुत दुखी होता है और दुखी मन से वहाँ से अपने घर चला जाता है, जहाँ उसकी पत्नी रीमा बैठी चूल्हे पर कुछ रोटियां बना रही होती है।

रीमा, “अरे! आ गए आप? कब से आपकी राह देख रही थी?

घर में जो भी आता था, उसकी रोटियां बना दी हैं। जल्दी खा लीजिए, आपको बहुत भूख लगी होगी।”

रतन, “नहीं भाग्यवान, आज ये रोटियां तुम ही खाओ। रोज़ अपने हिस्से की तो मुझे दे देती हो, तुम ही खाओ भाग्यवान।

क्या पता आज के बाद हमें रोटियां खाने का अवसर मिले या न मिले?;मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा भाग्यवान, अब क्या होगा?”

रीमा, “अरे! ये आप क्या बोल रहे हैं जी? आखिर क्या हुआ? क्यों ऐसी बातें कर रहे हैं? बताइए जी, मुझे बहुत डर लग रहा है।”

रतन, “जमींदार से खेती करने के लिए जो पैसे लिए थे, अब वो पैसे ब्याज समेत चुकता करने होंगे। नहीं तो ना जाने क्या होगा, भाग्यवान?

वो लालची जमींदार कुछ भी कर सकता है। न तो खेत में फसल अच्छी हुई, न कोई मुनाफा। अब कहाँ से लौटाऊंगा मैं उसके पैसे?”

रीमा, “आप दुखी मत हो। देखना, ऊपर वाला ज्यादा दिनों तक हमें परेशानियां नहीं देगा। देखना जल्दी ही वो हमारी सुनेगा।”

रतन, “हाँ भाग्यवान, ना जाने वो दिन कब आएगा?”

दो दिन बीत जाते हैं। रतन के घर जमींदार और उसके दो नौकर, जिनके हाथ में बड़े-बड़े डंडे होते हैं, आ जाते हैं।

जमींदार, “अरे ओ रतन! अरे! कहाँ है रे? दो दिन बीत चुके हैं और तूने अभी तक मेरे रुपये ब्याज समेत नहीं चुकाए हैं। क्या रे तू भूल गया मैंने क्या कहा था? अरे कहाँ है रे तू?”

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रतन और उसकी पत्नी दोनों अपनी झोपड़ी से बाहर आते हैं। जमींदार को देखकर दोनों बहुत डर जाते हैं।

रतन, “अरे मालिक! मुझे माफ़ कर दीजिए। मालिक, मेरे पास सच में आपको देने के लिए कुछ नहीं है।

आखिर कहाँ से लौटाऊं मैं आपके रुपए? माफ़ कर दीजिए मालिक।”

जमींदार, “क्या? कुछ नहीं है? तो तू ऐसे मेरे रुपए ब्याज सहित नहीं चुकाएगा? रुक, अभी मज़ा चखाता हूँ तुझे।

अरे ओ बिल्लू! ओ जग्गी!… दिखाओ अपने हाथों का कमाल और फेंक दो इस रतन का सारा सामान झोपड़ी के बाहर, और आग लगा दो इसकी दो कौड़ी की झोपड़ी को। मुझसे होशियारी करता है। जानता नहीं है मुझे, मैं कौन हूँ?”

जिसके बाद बिल्लू और जग्गी रतन की झोपड़ी का सारा सामान बाहर फेंक देते हैं और झोपड़ी को आग लगा देते हैं।

जमींदार, “सुन रतन, अब तू इस गांव में और नहीं रुक सकता है समझा। तेरे पास जब तक रुपए नहीं होंगे तो इस गांव में वापस मत आना समझा। चल, जा यहाँ से चल।”

रतन, “अरे मालिक! आप क्या बोल रहे हैं मालिक? आखिर में गरीब अपनी पत्नी के साथ कहाँ जाऊंगा?”

थोड़ी देर बाद दुखी मन से रतन और उसकी पत्नी दूसरे गांव की तरफ चल पड़ते हैं। तभी वो देखते हैं कि दो चोर बड़ी ही चालाकी से काला कम्बल ओढ़े एक झोपड़ी से निकलते हैं, जिनके हाथ में एक मिट्टी की हांडी होती है।

पहला चोर, “अरे! जल्दी चलो। इससे पहले कि उस चालाक और भयानक अम्मा की आंख खुल जाए, हमें यहाँ से निकलना होगा भैया। अरे! इस हांडी में बहुत अधिक धन होगा। “

दूसरा चोर, ” हाँ, सही कहा तुमने। वो अम्मा बहुत ही भयानक है भैया।

अगर उसे पता लग गया कि हम उसके धन से भरी हांडी को उठाने आए हैं, तो न जाने हमारा क्या हाल करेगी? हाँ चलो चलो, जल्दी चलो यहाँ से।”

रतन, “अरे आखिर ये लोग किसके घर से चोरी करके भाग रहे हैं? भाग्यवान, अंदर जाकर देखना होगा, चलो अंदर चलते हैं।”

तब वो दोनों उस झोपड़ी के अंदर जाते हैं जहाँ एक बूढ़ी अम्मा देखने में बड़ी डरावनी होती है, चारपाई पर लेटी खर्राटे मारकर सो रही होती है। रतन और उसकी पत्नी दोनों उसे देखकर हैरान हो जाते हैं।

रतन, “अरे! अपनी आँखें खोलिए, अम्मा। उठिए, लगता है दो चोर आपकी इस झोपड़ी में से कुछ चुरा के ले गए हैं। खोलिए, अपनी आँखें खोलिए।”

जिसके बाद अम्मा अपनी आँखें खोलती है और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगती है।

अम्मा, “अरे रे! कहाँ गई मेरी हांडी? कौन ले गया? आखिर तुम दोनों हो कौन और यहाँ मेरी झोपड़ी में क्या कर रहे हो, बताओ मुझे?”

रतन, “अम्मा, हम दूसरे गांव से आए हैं। और इधर से गुजर रहे थे। हमने दो चोरों को तुम्हारी झोपड़ी से एक हांडी चुराकर जाते देखा।”

अम्मा, “अरे! अरे ले गए, चोर मेरी हांडी ले गए। हे भगवान! अब मैं क्या करूँगी? वही हांडी में तो कुछ पैसे थे मेरे पास, वो भी वो चोर ले गए।

अब क्या करूँगी मैं? अब मैं तो बहुत बूढ़ी हो चुकी हूँ। जो कुछ भी मेरे पास धन था, वो चोर ले गए।

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मैं कैसी अभागी हूँ? कोई नहीं है मेरा इस संसार में।लेकिन तुम दोनों आखिर इतनी रात को कहाँ जा रहे थे, बेटा?”

रतन, “अम्मा, वो क्या बताऊँ…? मैं बहुत ही दुखियारा हूँ। अब तो रहने के लिए भी कोई आसरा नहीं है। अब मैं जाने अपनी पत्नी के साथ कहाँ जाऊंगा, कुछ समझ नहीं आ रहा है?”

जिसके बाद रतन बूढ़ी अम्मा को सारी बात बता देता है।

अम्मा (मन में), “चलो अच्छा है, अच्छा है। अब कहीं और मुझे अपने अगले शिकार को ढूंढने जाना नहीं पड़ेगा।

ये दोनों मूर्ख तो खुद ही चल कर मेरे पास आ गए हाँ। बस अब मैं इन्हें यहाँ से जाने नहीं दूंगी।”

अम्मा, “अच्छा तो ये बात है, तुम उस ज़मींदार के सताए हो बेटा? लेकिन तुम चिंता मत करो। मुझ भागी का तो वैसे भी कोई नहीं है।

तुम कुछ दिन मेरे पास ही, मेरी इस झोपड़ी में रुक जाओ। आखिर अब तुम कहाँ जाओगे? रुक जाओ यहीं, बेटा।”

उस बूढ़ी अम्मा की बात सुनकर रतन और उसकी पत्नी बहुत खुश हो जाते हैं।

रतन, “हाँ हाँ, क्यों नहीं अम्मा? यह तो हमारे लिए अच्छा ही होगा। आखिर हम कहाँ जाएंगे? कुछ दिन तुम्हारे पास ही आसरा मिल जाएगा तो अच्छा रहेगा।”

अम्मा, “हाँ अम्मा, तुम्हारा बहुत धन्यवाद! तुम बहुत ही अच्छी हो अम्मा, बहुत ही अच्छी… हाँ।”

जिसके बाद रतन और उसकी पत्नी बूढ़ी अम्मा के पास ही रहने लगते हैं। अगली सुबह रतन उठता है और देखता है कि बूढ़ी अम्मा अपनी झोपड़ी में थी ही नहीं। और तभी कुछ गांव वालों की चिल्लाने की आवाज आती है।

गांव वाले, “अरे अरे! ये क्या हुआ? अरे! लगता है आज वो जानवर अपने कालू लोहार को उठा कर ले गया। अरे अरे! ये क्या हो गया?”

कालू की पत्नी, “रात यहाँ अपनी झोपड़ी में तो सो रहे थे, लेकिन जब आंधी रात को मेरी आँख खुली तो वो यहाँ नहीं थे। लगता है ले गया उन्हें वो जानवर। उठाकर ले गया मेरे पति को। अब मैं क्या करूँगी?”

रीमा, “अजी, ये गांव वाले क्या बोल रहे हैं, कौन जानवर? ये किसके बारे में बात कर रहे हैं? मुझे तो बहुत डर लग रहा है जी।”

रतन, “ये आप लोग क्या बोल रहे हैं? आखिर कौन जानवर और क्यों उठा कर ले गया कालू लोहार को?”

गांव वाला, “अरे भाई! लगता है तुम यहाँ नए हो, इसीलिए नहीं जानते। यहाँ कई दिनों से किसी जानवर के होने की आशंका है जो अब रोज़ किसी ना किसी गांव वाले को उठाकर ले जाता है भैया।

और फिर वो गांव वाला लौटकर वापस नहीं आता। और तो और भैया, उस जानवर को यहाँ किसी भी गांव वाले ने नहीं देखा। तुम जो भी हो, चले जाओ यहाँ से।”

जिसके बाद सभी गांव वाले वहाँ से चले जाते हैं। फिर अम्मा अपने हाथ में कुछ लकड़ियां लेकर झोपड़ी में आती है।

रतन, “अरे अम्मा! तुम कहाँ गई थी? क्या तुम्हें पता है यहाँ इस गांव में कोई जानवर यहाँ के लोगों को उठा कर ले जाता है? आखिर कहाँ गई थी तुम?

रीमा, हां अम्मा, मुझे तो बड़ा डर लग रहा है। लगता है अब हमें यहाँ और नहीं रुकना चाहिए।”

अम्मा, “अरे! नहीं बिटिया, ऐसा कुछ नहीं है। ये गांव वाले तो पागल हो गए हैं। ना जाने क्या कहानियां बनाते हैं? तुम इन गांव वालों की बातों पर ध्यान मत दो, हाँ।

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और मैं तो यही पास में भोजन बनाने के लिए लकड़ियां काटने गई थी बेटा। बिना लकड़ियों के तो चूल्हा नहीं जल सकता है ना?”

रतन, “अच्छा ठीक है अम्मा, तुम कहती हो तो मान लेता हूँ। लेकिन अभी तो बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। क्या कुछ खाने को मिलेगा अम्मा?”

अम्मा, “हाँ बेटा, मेरे पास जो भी अनाज है, वो अंदर रसोई में है। बेटा। वही तुम दोनों पति-पत्नी पकाकर खा लो। अच्छा, अब मैं बहुत थक गई हूँ, आराम करती हूँ।”

जिसके बाद बूढ़ी अम्मा वहाँ से चली जाती हैं।

रीमा, “देखिए जी, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रही है। ना जाने क्यों यहाँ मुझे कुछ सही नहीं लग रहा? अब चलिए यहाँ से।”

रतन, “अरे भाग्यवान! आखिर हम कहाँ जाएंगे? तुम तो जानती हो सरपंच को, बिना उसके पैसे चुकता किए वो हमें हमारे घर में नहीं रहने देगा।

आखिर कहाँ जाएंगे हम? कुछ नहीं होगा, भाग्यवान तुम बेकार में ही चिंता कर रही हो। अच्छा चलो अब रसोई में जो भी अनाज है, उसे पकाकर ले आओ। बहुत भूख लगी है भाग्यवान।”

रीमा, “अच्छा ठीक है, तुम कहते हो तो मान लेती हूँ। अब और कर भी क्या सकते हैं जी? लेकर आती हूँ भोजन।”

रतन की पत्नी अम्मा की रसोई में जाती है।

रीमा, “अरे! अब अनाज कहाँ रखा होगा? मुझे तो कहीं नजर ही नहीं आ रहा। अरे! लगता है इस मिट्टी की हांडी में होगा अनाज।

अरे अरे! ये तो जानवर की हड्डियाँ लगती हैं। यह अनाज तो नहीं है। आखिर यह यहाँ कैसे आई?”

तभी रतन वहाँ आता है।

रतन, “अरे भाग्यवान! क्यों चिल्ला रही हो?”

रीमा, “ये देखिए जी, जानवर की हड्डियाँ।”

रतन ये देखकर हैरान हो जाता है।

रतन, “हाँ भाग्यवान, यह तो सच में किसी की हड्डियां हैं। लेकिन किसी जानवर की तो नहीं लगती। लेकिन यहाँ इस मिट्टी की हांडी में क्या कर रही हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा।”

आधी रात को रतन और उसकी पत्नी आराम से सो रहे होते हैं। तभी अम्मा चुपके से एक मिट्टी की हांडी लेकर अपनी झोपड़ी के बाहर चली जाती है।

अगली सुबह होती है और अम्मा फिर से अपनी झोपड़ी में नहीं होती। गाँव वालों के चिल्लाने की आवाजें आ रही होती हैं।

इस बार गांव वालों के सामने वही दो चोर लेटे हुए थे जिन्हें रतन ने अम्मा की मिट्टी की हांडी ले जाते हुए देखा था।

गाँव वाला, “अरे लगता है इन दोनों को भी उसी जानवर ने मारा, भैया। देखो तो सही इसका तो सारा मांस ही खा गया वो जानवर। हाय हाय बेचारा, शरीर की सारी हड्डियों तक नोच गया।

दूसरा गाँव वाला, “न जाने क्या हो गया है हमारे गाँव को? किसकी नजर लग गई है? न जाने अगला नंबर किसका होगा?”

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गाँव वाला, “सही कह रहे हो भाई, पहले कालू लोहार, फिर ये दोनों चोर। अब आगे क्या होगा?”

रतन, “यह वही चोर है, जो अम्मा की हांडी चुराकर ले गए थे। अब इनकी यह हालत किसने की? मुझे समझ में नहीं आ रहा है।

लेकिन मुझे इसका पता लगाना ही होगा, नहीं तो न जाने उस जानवर का अगला शिकार कौन होगा?”

रात को रतन और उसकी पत्नी सो रहे होते हैं। अम्मा चुपके से अपनी झोपड़ी से बाहर जाती है और एक बोरी लेकर आती है, जिसमें रतन की पत्नी को लिटा देती है और बोरी को खींचते हुए ले जाती है।

अगली सुबह रतन अपनी पत्नी को झोपड़ी में ना पाकर हैरान हो जाता है।

रतन, “अरे भाग्यवान! कहाँ चली गई? कहीं नजर नहीं आ रही। अरे भाग्यवान! तुम कहाँ हो?”

रतन अपनी पत्नी को ढूंढने लगता है, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आती। गाँव वाले आकर पूछते हैं।

गाँव वाला, “अरे भाई! क्यों चिल्ला रहे हो? सब ठीक तो है?”

रतन, “मेरी पत्नी कहीं नजर नहीं आ रही है। सब जगह देख चुका हूँ, लेकिन वह कहीं नहीं मिल रही।”

गाँव वाला, “भाई, यहाँ तो बीते दिनों से कोई जानवर लोगों को उठा ले जाता है। हो सकता है तुम्हारी पत्नी को भी वही जानवर ले गया हो। अब तो ऊपर वाला ही भला करे, भाई।”

रतन, “नहीं नहीं, ये क्या बोल रहे हो तुम? मेरी पत्नी को कुछ नहीं हुआ होगा। मेरी पत्नी जीवित है, समझे तुम?”

गाँव वाला, “अरे भैया! तुम भी ना… देख नहीं रहे हो क्या है अपने गांव में क्या हो रहा है?

ये सब उस जानवर का ही किया धरा भैया, लेकिन अब तुम्हे क्या ही बोलें भैया? जाने दो।”

जिसके बाद गाँव वाले चले जाते हैं। रतन अम्मा की झोपड़ी में जाता है और देखता है कि अम्मा कुछ लकड़ियाँ लेकर आ रही है।

रतन, “अरे अम्मा! तुम कहाँ से आ रही हो? मेरी पत्नी कहाँ चली गई है, सुबह से कहीं दिखाई नहीं दे रही है?”

अम्मा, “बेटा, तुम फिर से गाँव वालों की बातों में आ गए हो। तुम्हारी पत्नी आ जाएगी, इतनी चिंता क्यों करते हो?

अच्छा, अब मैं बहुत थक गई हूँ, थोड़ा आराम कर लेती हूँ।”

आधी रात हो जाती है लेकिन रतन की पत्नी वापस नहीं लौटती। तभी रतन देखता है कि अम्मा चुपके से एक मिट्टी की हांडी लेकर जा रही है।

वह देखता है कि अम्मा जंगल में एक बूढ़े तांत्रिक के पास जाती है, जो एक पेड़ के नीचे अपनी आराधना में लीन होता है।

अम्मा, “ये लीजिए बाबा, और इंसान की हड्डियों मैंने इस मिट्टी की हांडी में एकत्र कर ली है। अब बस कुछ ही समय की बात है फिर मुझे वो खजाना तो मिल जाएगा और मैं हमेशा के लिए जवान हो जाऊँगी ना बाबा?

तांत्रिक, “हाँ हां, क्यों नहीं? तुमने कुछ ही समय में हमें खूब सारी इंसानों की हड्डियों दे दी तो अवश्य ही।

बस कुछ और ही इंसानों की हड्डियों शेष हैं। उसके बाद तुम्हें वो अपार खजाना मिल जाएगा और तुम हमेशा के लिए जवान हो जाओगी।

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और हमें मिलेगा सबसे शक्तिशाली होने का वरदान। हा हा हा…”

अम्मा, “हाँ, बस रतन की पत्नी को अपना शिकार बनाना है।बाबा, कल मैं उसे अपना शिकार बना लूँगी, जिसके बाद उसकी हड्डियाँ लाकर मैं आपको दे दूंगी। जिसके बाद मैं सबसे खूबसूरत और धनवान हो जाऊँगी।”

तांत्रिक, “अरे! हाँ हाँ, ये बिलकुल सत्य है। कल हम स्वयं तुम्हें वो खजाना दे देंगे, हाँ।”

सारी बातें सुनकर रतन हैरान हो जाता है।

रतन, “अरे! तो यह अम्मा ही वह जानवर है जो गाँव वालों को मूर्ख बना रही है। मेरी पत्नी के प्राण संकट में हैं।

अब मुझे कुछ करना होगा। इस दुष्ट अम्मा की सच्चाई गाँव के सामने लानी ही होगी, हां।”

अगली सुबह अम्मा जंगल में जाती है। जंगल के बीच कुछ दूरी पर जहाँ पहले से ही कई सारी लड़कियाँ पड़ी होती हैं।

अम्मा उन लड़कियों को अपने हाथों से हटा देती है। रतन यह देखकर हैरान हो जाता है कि उन्हीं लड़कियों के बीच बेहोश अवस्था में उसकी पत्नी लेटी होती है।

अम्मा, “हाँ, तू ही है अब मेरा आखिरी शिकार। अब बस शाम होने का इंतजार है, जिसके बाद मैं तुझे मार दूंगी हाँ और तेरी हड्डियों को तांत्रिक बाबा को दे दूंगी। जिसके बाद मैं सबसे जवान, सबसे हसीन और सबसे धनवान।”

रतन, “अच्छा अच्छा, तो यहाँ है मेरी पत्नी। नहीं नहीं, मैं इस अम्मा की सच्चाई सबके सामने, पूरे गांव वालों के सामने लाकर ही रहूंगा और कुछ नहीं होने दूंगा अपनी पत्नी को।

शाम के वक्त अम्मा फिर से रतन की पत्नी के पास आती है और देखकर हैरान हो जाती है कि रतन की पत्नी के मांस के टुकड़े और कुछ हड्डियाँ चारों ओर पड़ी हुई हैं।

अम्मा, “अरे अरे! ये क्या हुआ? लगता है कोई जानवर रतन की पत्नी को खा गया।

अरे अरे! अब इसकी ये सिर्फ कुछ ही हड्डियाँ बची हैं। इन्हें ले जाकर तांत्रिक को देना होगा, नहीं तो मैं कभी जवान नहीं हो पाऊंगी।”

अम्मा अपने हाथ में फिर से एक मिट्टी की हांडी लेकर तांत्रिक के पास जाती है।

अम्मा, “ये लीजिए बाबा, मैं ले आई कुछ और इंसानी हड्डियाँ। अब तो आप खुश हो? और अब तो मैं हमेशा के लिए जवान और धनवान हो जाऊँगी ना?”

तांत्रिक, “अरे वाह! लाओ, दो ये इंसान की हड्डियाँ हमें। आज तो तुमने हमें बहुत खुश किया।

अब हम तुम्हें अवश्य ही अपनी शक्तियों से जवान कर देंगे और खजाना देंगे, इतना खजाना कि तुम सबसे धनवान बन जाओगी।”

तांत्रिक हांडी लेकर देखता है और गुस्से से लाल हो जाता है।

तांत्रिक, “हम से होशियरी करती है? ये किसी इंसान की नहीं बल्कि किसी जानवर की हड्डियाँ है, मूर्ख। हमें मूर्ख समझती है?

आज हमारी तपस्या पूरी होने वाली है, लेकिन तूने हमारे साथ छल करना चाहा? नहीं, आज हमारी तपस्या पूरी होने से कोई नहीं रोक सकता है।

आज मैं इस संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली हो जाऊंगा। हाँ, फिर चाहे उसके लिए मुझे तुझे ही अपना शिकार क्यों ना बनाना पड़े? ऐसे ही इंसानी हड्डियों से आज मेरी तपस्या पूरी होगी।

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अम्मा, “नहीं नहीं बाबा, ये आप क्या बोल रहे हैं? मैं तो रतन की पत्नी की ही हड्डियाँ लेकर आई थी। नहीं नहीं, मुझे क्षमा कर दीजिए।”

तांत्रिक, ” नहीं, तू अब नहीं बच पाएगी मेरी पत्नी मेरे हाथों से।”

तांत्रिक अम्मा को मारने के लिए आगे बढ़ा ही होता है, तभी वहां कुछ गांव वाले आग की मशाल लिए रतन और उसकी पत्नी के साथ आते हैं।

गांव वाले, “अरे रुक ओ तांत्रिक ओये, अब हम तुझे तेरी तपस्या पूरी कराते हैं।”

अम्मा, “नहीं नहीं, छोड़ दो मुझे। मैंने कुछ नहीं किया। मैंने जो भी किया, तांत्रिक के कहने पर किया था।”

रतन, “तुम्हारा सच अब सबके सामने आ गया है, दुष्ट अम्मा। आज तुम मेरी पत्नी को भी मारकर इसकी हड्डियाँ तांत्रिक को दे देती।

अगर मैं वहाँ अपनी पत्नी की जगह जानवरों की हड्डियाँ नहीं रखता तो तुम मेरी पत्नी को अपना शिकार बना चुकी होती। जैसे बाकी गांव वालों को अपना शिकार बनाया।”

अम्मा, “अच्छा, तो ये सब तुने किया है। लेकिन मुझे माफ कर दो। मैंने जो भी किया, तांत्रिक के कहने पर किया।”

गांव वाले, “दुष्ट अम्मा, इस तांत्रिक की बातों में आकर तुमने गांव वालों को मौत के घाट उतार दिया। तुम दोनों को अपने किए की सजा अवश्य मिलेगी।”

दूसरे लोग, “हाँ हाँ, इस अम्मा और तांत्रिक को पुलिस के हवाले कर दो। अब वो ही इन्हें सजा देंगे”

इंस्पेक्टर, “अच्छा तो ये सब इन दोनों का किया कराया है। गांव के लोगों को यही मार रहे थे। इस ढोंगी तांत्रिक को तो हम कितने समय से ढूंढ रहे थे?

आज जाकर हाथ आया है। अब चलो जेल में करना तपस्या और तुम भी दुष्ट अम्मा वहीं धनवान होना… चलो।”

जिसके बाद दोनों पुलिस वाले अम्मा और तांत्रिक को लेकर वहाँ से चले जाते हैं। जिसके बाद सभी गांव वाले रतन को अपने गले से लगा लेते हैं।

अब रतन और उसकी पत्नी खुशी खुशी गांव के लोगों के साथ ही रहने लगते हैं और इस तरह रतन को हमेशा के लिए करोड़ीमल जमींदार से छुटकारा भी मिल जाता है।


तो दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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