भुलक्कड़ पति | Bhulakkad Pati | Husband Wife Story | Hindi Kahani | Pati Patni Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” भुलक्कड़ पति ” यह एक Husband Wife Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Pati Patni Ki Kahani पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


एक गांव में पुठा नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी शर्मिली के साथ रहता था। पुख्ता की भूलने की आदत के कारण उसे गांव में सब लोग भूलाराम कहते थे।

दोपहर के 12 बज चुके थे और पुठा अभी तक सो रहा था। शर्मिली क्रोधित होकर पुठा के पास आकर बोली, “अरे भोला जी, कब तक सोते रहोगे?

क्या काम पे नहीं जाना? 3 घंटे से उठाने का प्रयास कर रही हूँ, लेकिन तुम्हारी नींद है जो खुलने का नाम ही नहीं ले रही।”

शर्मिली की आवाज सुनकर पुठा की आँखें खुल गईं और हड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखने लगा।

शर्मिली, “अजी, ऐसे क्या देख रहे हो? अपने ही घर पर बैठे हुए हो आप।”

पुठा, “वो तो सब ठीक है, लेकिन मैं कहाँ पर हूँ?”

शर्मिली, “ज़ाहिर सी बात है, कल रात आप अपने ही घर पर सोये थे तो अपने ही घर पर उठोगे ना, जंगल में तो उठोगे नहीं।”

पुठा, “अरे! याद आया, याद आया। ये तो मेरा ही घर है, लेकिन तुमने मुझे इतनी सुबह सुबह क्यों उठा दिया?”

शर्मिली, “ज़रा आकाश की तरफ भी नजर दौड़ा लीजिए। आपको पता लग जाएगा कि दोपहर के 12 बज गए हैं।

सुबह हुए 6 घंटे हो चुके हैं। बड़ी मुश्किल से मंगत भैया के यहाँ बड़ी मिन्नतें करके तुम्हें काम पर लगवाया था और जब से तुम्हें काम पर लगवाया है तब से एक बार भी तुम समय से काम पर नहीं पहुंचे।”

पुठा, “हाँ, तुम सही कहती हो। मैं तो भूल ही गया कि आज मंगत भैया ने मुझे सुबह 8 बजे ही काम पर बुलाया था। मैं जल्दी से तैयार हो जाता हूँ, तुम नाश्ता लगा दो।”

शर्मिली, “नाश्ता करके क्या करेंगे? अब दोपहर के 12:00 बज गए हैं। अब तो भोजन ही करिए।”

पुठा तैयार होकर भोजन करने बैठ गया, मगर भोजन करके उसका मूड खराब हो गया।

पुठा, “अरे मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, शर्मिली कि मुझे दोपहर के समय अरहर की दाल पसंद नहीं है। तुमसे मैंने चने की दाल बनाने को कहा था।”

शर्मिली, “आप कब से चने की दाल खाने लगे? आपका तो चने की दाल खाने से पेट खराब हो जाता है ना?”

पुठा, “अरे अरे! लगता है मैं फिर भूल गया हूँ। मुझे तो अरहर की दाल बहुत पसंद है।

गलती हो गई, गलती हो गई है क्षमा कर दो। कल से मैं सुबह 8 बजे ही आ जाऊंगा मंगत लाल भैया।”

शर्मिली, “अरे! क्या कह रहे हैं आप? अभी तो आप अपने घर पर ही हैं, मंगत भैया के यहाँ अभी गए ही नहीं आप।

जब वहाँ पहुँच जाना, तब उनसे अपनी गलती के क्षमा मांग लेना।”

पुठा खामोशी से भोजन समाप्त करते हुए अपनी पत्नी शर्मिली से बोला, “दाल तुमने वाकई बहुत स्वादिष्ट बनाई है शर्मिली, हमेशा की तरह लेकिन हमेशा की ही तरह तुम मुझे आम का आचार देना तो भूल ही गई हो।”

शर्मिली, “अरे! इस कटोरी को गौर से देखिये, आपने दाल कम और आम का आचार ज्यादा खाया है।”

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पुठा, “अच्छा, ऐसी बात है। तभी मैं सोच रहा था कि ये आज इतना खट्टा क्यों लग रहा है? ये आचार था।”

शर्मिली, “अब मुझ पर एक एहसान करेंगे आप? जल्दी से काम पे जाइए नहीं तो भूल जाऊँगी कि आप मेरे पति हो और मैं आपकी पत्नी।”

पुठा चुपचाप मुस्कुराता हुआ अपने घर से बाहर निकल गया। वो कुछ दूर ही पहुंचा था कि तभी गांव के मुखिया ने पुठा की ओर देखा और बोला, “क्या हाल है पुठा, आज सुबह-सुबह ही काम पर जा रहे हो?”

पुठा, “जी मुखिया जी, मंगत भैया ने सुबह 8 बजे ही काम पर बुलाया था। इसीलिए सुबह जल्दी उठकर मैं काम पर जा रहा हूँ। आजकल उनका काम बहुत तेजी से चल रहा है।”

मुखिया, “लेकिन अभी तो सुबह के साढ़े सात ही बजे हैं। आधे घंटे पहले क्यों जा रहे हो भाई?”

पुख्ता, ” समय से पहले पहुंचना तो अच्छी बात होती है, मुखिया जी।”

तभी मुखिया के बगल में बैठा बल्ली मुस्कुराते हुए बोला, “अरे मुखिया जी! क्यों टांग खींच रहे हैं पुठा जी की?”

बल्ली, “पुट्ठा जी, मुखिया जी आपकी टांग खींच रहे हैं। क्या आपको इस बात का आभास नहीं है?”

पुट्ठा, “नहीं, मुखिया जी की तो मजाक करने की पुरानी आदत है।”

बल्ली, “तो फिर अपने घर वापस चले जाओ और 2 घंटे बाद काम पर जाना।”

पुठा, “लेकिन क्यों?”

बल्ली, “क्योंकि अभी तो सुबह के 5 बजे हैं। मंगत भैया तो सो रहे होंगे।

सुबह-सुबह अगर उन्हें उठा दोगे तो वो तुमसे नाराज़ हो जाएंगे और हो सकता है तुम्हें काम से ही निकाल दे। “

पुठा के चलते हुए कदम रुक गए और वह गहरी सोच में डूब गया।

पुठा, “बहुत बहुत शुक्रिया बल्ली भैया! तुमने मुझे बचा लिया नहीं तो मेरी पत्नी शर्मिली मुझे तो आज काम से ही निकालवा देती।”

पुठा दोबारा अपने घर की ओर चला गया। मुखिया और बल्ली दोनों जोर-जोर से हंसने लगे।

मुखिया, “अरे! ये तूने क्या किया बल्ली? जब शर्मिली को पता लगेगा कि तूने पुठा को बेवकूफ बनाकर घर भेज दिया है तो वो तेरी हड्डी-पसली एक कर देगी।”

बल्ली, “अरे! मैंने अपनी जिंदगी में बड़े-बड़े भूलने वाले लोग देखे हैं, लेकिन इस पुठा को तो अजीब भूलने की बीमारी है। ये तो कभी-कभी रात को सुबह समझ लेता है और सुबह को रात।”

मुखिया, ” ऐसा नहीं है बल्ली, उस बेचारे को एक तो भूलने की बिमारी भी है और ऊपर से वो बहुत भोला भी है।”

मुखिया, “सही कहा मुखिया जी, लेकिन आज की हरकत देखकर मुझे ऐसा लगा है कि इसे आज भूलने का फिर से बड़ा भयंकर वाला दौरा पड़ा है।”

मुखिया, “अब जल्दी से यहाँ से चला जा बल्ली, कुछ देर बाद शर्मिली यहाँ आती होगी।”

बल्ली, “हाँ…सही कह रहे हो मुखिया जी, मैं चला।”

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उधर पुठा को वापस घर आता देख शर्मिली क्रोधित हो कर बोली, “अरे! अब क्या हुआ, वापस क्यों आ गए?

क्या आज काम नहीं लगा? तुम तो कह रहे थे कि मंगत भैया ने सुबह-सुबह 8 बजे ही तुम्हें बुलाया था। कहीं मंगत भैया ने तुम्हें काम से तो नहीं निकाल दिया?”

पुठा, “शर्मिली, मैं तुम्हारी इस आदत से तंग आ चुका हूँ। एक तो तुमने मुझे सुबह 5 बजे ही उठा दिया और ऊपर से नाराज़ हो रही हो।”

शर्मिली, “ये तुमसे किसने कहा कि इस वक्त सुबह के 5 बजे हैं?”

पुठा, “बल्ली भैया ने।”

शर्मिली, “आज मैं इस नाशमिटे बल्ली की खबर लेकर ही रहूंगी। मैं आपसे तंग आ चुकी हूँ, सच में।

सच तो यह है कि आपने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया। अरे! उसने आज आपको दोबारा मूर्ख बनाया है।”

पुठा, “क्या मतलब?”

शर्मिली, “मतलब ये है कि अभी इसी वक्त चुपचाप काम पर चले जाओ। कुछ देर बाद शाम हो जाएगी।

जब सूरज सर पर चढ़ता है तो उसे दोपहर बोलते हैं। सुबह के 5 बजे के वक्त सूरज नहीं निकलता।”

पुठा, “अरे! ये तो मैं भूल ही गया। तुम सही कहती हो शर्मिली। अब काम पर जाते वक्त किसी से बात नहीं करूंगा। सीधे मंगत भैया के यहाँ पर चला जाऊंगा।”

पुठा दोबारा वहाँ से चुपचाप चला गया और शर्मिली गुस्से से मुखिया के पास जाकर बोली, “ये बल्ली कहाँ गया, मुखिया जी?”

मुखिया, “अभी अभी तो यहीं बैठा था शर्मिली, क्या हुआ? बहुत गुस्से में नजर आ रही हो तुम?”

शर्मिली, “मुखिया जी, बनिए मत। मैं जानती हूँ कि आपको सब पता है।

आप हर बार बल्ली को बचा लेते हो, लेकिन आज मैं उसे छोड़ूंगी नहीं।”

मुखिया, “अरे! बताओ तो, क्या हुआ है?”

शर्मिली, “बोल तो ऐसे रहे हैं जैसे आपको कुछ पता ही नहीं हो। उसने मेरे पति को दोबारा बेवकूफ बनाकर घर पर भेज दिया।”

मुखिया, “अरे शर्मिली! अब गुस्सा खत्म भी करो। बल्ली हमारे ही गांव का तो है और गांव में एक दूसरे से मजाक तो चलता ही है।”

शर्मिली, “मुझे पता था आप यही कहोगे। लेकिन मैं आपसे कह देती हूँ, बल्ली आ जाए तो उसको समझा देना।

अगर उसने दोबारा कभी मेरे पति को मूर्ख बनाया तो मैं अब आपके पास शिकायत लेकर नहीं आऊँगी, बल्कि उसके घर में घुसकर उसकी हड्डी-पसली एक कर दूंगी।”

इतना कहकर शर्मिली वहाँ से चली गई। उधर पुठा काम पर पहुँच गया, मगर उसने देखा कि मंगत लाल की ईंटों के भट्टे पर सन्नाटा छाया हुआ था।

मंगतलाल कुर्सी बिछाए अपने साथी संपत के साथ गप्पे लड़ा रहा था।

मंगतलाल, “अरे! क्या हुआ पुठा जी? आज आप कैसे आ गए?”

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पुठा, “कैसी बातें कर रहे हैं मंगत भैया? आपने ही तो मुझे सुबह 8 बजे बुलाया था।”

मंगतलाल, “हां, बुलाया तो था। लेकिन इस वक्त तो दोपहर के 1 बज रहे हैं। सुबह के 8 तो कब के बज चुके हैं?”

पुठा, “माफ़ करना मंगत भैया, आप तो जानते हैं कि मुझे भूलने की आदत है।”

संपत, “ये किसने कहा तुम्हें भूलने की आदत है पुठा? पूरी बात तो बता रहे हो तुम कि मंगत भैया ने सुबह 8 बजे तुम्हें काम पर बुलाया था।”

मंगतलाल, “पुठा तुम्हें भूलने की बीमारी नहीं है, बल्कि तुम्हें कुछ बातें देर से याद आती हैं।

वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, मैंने तुम्हें सुबह 8 बजे एक हफ्ते पहले काम पर बुलाया था और कल शाम को जाते वक्त मैंने सभी मजदूरों से कहा था कि आज की छुट्टी है। आज मेरे शहर से कुछ मेहमान आने वाले हैं।”

मंगत लाल की बात सुनकर पुट्ठा क्रोधित हो गया और गुस्से से बड़बड़ाता हुआ बोला।

पुठा, “क्या… आज की छुट्टी थी? और मेरी पत्नी शर्मिली ने मुझे सुबह ही काम पर आने के लिए जगा दिया। आज मैं अपनी पत्नी शर्मिली की खबर लेकर रहूंगा।”

संपत, “अरे पुट्ठा जी! इसमें आपकी पत्नी शर्मिली की क्या गलती है? आप तो उसे बताना ही भूल गए होंगे कि आज काम की छुट्टी है।”

पुठा, “बिलकुल सही कहा संपत भैया, ये बात भी मैं अभी कुछ देर पहले ही भूल गया हूँ।”

मंगत लाल, “कोई बात नहीं पुठा, अब तुम घर जाओ, कल आराम से काम पर आना। मेरे मेहमान आने वाले होंगे।”

मंगतलाल की बात सुनकर पुठा चुपचाप वहाँ से चला गया। बुढ़ा के जाते ही एक कार मंगतलाल के पास आकर रुकी। कार में से एक व्यक्ति बाहर निकल कर खड़ा हो गया।

मंगतलाल, “मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था यश।”

यश, “तुम हमारी गैंग के लिए बरसों से काम कर रहे हो, मंगतलाल। इतने सालों में किसी को शक नहीं हुआ कि तुम हमारी गैंग से जुड़े हो।”

मंगतलाल, “मुझे सिर्फ पैसों से मतलब है यश जी। और पैसों के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।

गांव में ये शराफत का चोला ओढ़ कर रखना ही पड़ता है, नहीं तो गांव के लोग शहर वालों से ज्यादा खतरनाक होते हैं। लाठी डंडों से ही पीट-पीटकर मार डालते हैं।”

यश, “मैं आज तुम्हारे लिए बहुत खास काम लेकर आया हूँ। तुम्हें अपने ही गांव के मुखिया को उसके परिवार सहित बम से उड़ाना है। तुम्हें इस काम के लिए 10 करोड़ रुपए मिलेंगे।”

मंगतलाल, “10 करोड़ रुपए मामूली मुखिया के लिए? ऐसा क्या खास है मुखिया में?”

यश, “मुखिया की शहर में 200 बीघा जमीन पड़ी हुई थी, जिस पर काफी वर्षों से मुकदमा चल रहा था।

कुछ दिन पहले मुखिया उस मुकदमे को जीत गया। मुखिया की ऑपोजिट पार्टी ने उसे और उसके परिवार को मरवाने के लिए अच्छी खासी रकम पेश की है।

मुखिया की जमीन हवाई के बगल में है, जिसकी कीमत करोड़ों में नहीं, बल्कि अरबों में है। तुम्हें इस काम के लिए 10 करोड़ रुपए ऑफर किये गए हैं।”

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मंगतलाल, “मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं हूँ यश। 25 करोड़ रुपए से कम मैं नहीं मानूंगा।”

यश, “मुझे पता था मंगतलाल कि तुम एक नंबर के लालची व्यक्ति हो। और मैं जानता था कि तुम 25 करोड़ रुपए ही मांगोगे।

लेकिन मैं चाहता तो तुम्हे नहीं बताता कि आखिर मामला क्या है?”

मंगतलाल, “और तुम ये भी जानते हो कि मैं कोई भी काम करने से पहले मामले की जड़ तक पहुंचता हूँ।

पिछली बार शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन राजन कसाना के घर पर बम ब्लास्ट मैंने ही करवाए थे। आज तक पुलिस उसका सुराग नहीं लगा सकी।”

यश, “कॉन्फिडेंस होना अच्छी बात है, लेकिन तुम अब ओवरकॉन्फिडेंट हो रहे हो। मत भूलो कि पुलिस आज भी तुम्हारे गांव की सीमा के आसपास घूमती रहती है।”

मंगतलाल, “और वो मेरे गांव की सीमा के आसपास ही घूमती रहेंगी, मुझ तक नहीं पहुँच पाएंगी।”

यश, “मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहता। मैं तुम्हे तुम्हारी कीमत देने को तैयार हूँ। तुम्हारे अकाउंट में आज शाम को 25 करोड़ रुपए जमा कर दिए जाएंगे।”

यश ने एक मोटा बैग मंगतलाल के हाथ में थमा दिया।

यश, “इस बैग को मुखिया के घर पर रख देना।”

इतना बोलकर यश वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी वह किसी को देख कर चौंक गया। सामने पुठा खड़ा था। पुठा को देखकर तीनों के पसीने छूट गए।

मंगतलाल, “पुठा, तू… यहाँ कब से खड़ा है? मैंने तुझे घर जाने के लिए कहा था ना?”

पुठा, “क्या… आपने मुझे घर जाने के लिए बोला था? शायद मैं फिर भूल गया हूँ।”

संपत, “लेकिन तुम तो हमारी आँखों के सामने चले गए थे।”

मंगतलाल, “लेकिन मैं तो सीधे घर से अभी आया हूँ। आपने मुझे जाने के लिए कब बोला?”

संपत, “कभी-कभी तो ऐसा लगता है मंगतलाल कि पुठा को जान से मार दूं।”

यश, “ये नमूना कौन है? इसने तो हमारी सारी बातें सुन ली होंगी। ये हमारे लिए खतरा है।”

मंगतलाल, “पागल मत बनो, ये मेरे ही गांव का भुलक्कड़ पुठा है। इसे भूलने की आदत है।”

तभी मंगत लाल के दिमाग में एक विचार तेजी से कौंधा, वो बम वाला वही बैग उठा को पकड़ाते हुए बोला।

मंगतलाल, “पुठा, तुम काम पर कल से आना आज नहीं। और हाँ, इस बैग को मुखिया जी के घर याद से दे देना। तुम्हे याद तो रहेगा ना?”

पुठा, “जी बिलकुल मंगत भैया, मैं इस बैग को बल्ली के घर दे दूंगा।”

मंगतलाल, “बल्ली के घर में नहीं पुठा, मुखिया के घर पर दे आना। इस बात को मत भूल जाना, नहीं तो मैं तुम्हारी पत्नी शर्मिली से तुम्हारी शिकायत कर दूंगा।”

शर्मीली का नाम सुनते ही पुट्ठा के माथे पर पसीना आ गया।

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पुठा, “जी जी बिलकुल मंगत भैया, मैं सारी बात भूल जाऊंगा, लेकिन ये बात नहीं भूलूंगा कि मुझे इस बैग को मुखिया के घर पर छोड़कर आना है।”

संपत, “ये क्या किया तुमने मंगत भैया? इस बैग में तो बम है। ये मूर्ख बैग किसी दूसरे को ना पकड़ा दे या अपने ही घर पर ना रख दे।”

यश, “तुम्हें हो क्या गया है मंगतलाल? तुमने एक भुलक्कड़ आदमी को इतना खतरनाक काम सौंप दिया।”

मंगतलाल, “तुम दोनों बिल्कुल मूर्ख के मूर्ख ही रहोगे। ये पुठा है, मैं ऐसे बहुत सालों से जानता हूँ।

ये सब कुछ भूल जाता है लेकिन कभी भी मेरा नाम और अपनी पत्नी शर्मिली का नाम नहीं भूलता। तुम लोगों ने देखा नहीं, शर्मिली का नाम सुनते ही ये कैसे डर गया?

अब ये मुखिया के घर पर बैग पहुंचा देगा और मुखिया अपने परिवार सहित बम धमाके से मर जाएगा।

सारा इलज़ाम पुठा के ऊपर लगेगा और पुठा को ये याद भी नहीं रहेगा कि ये बैग मैंने उसे दिया था।”

यश, “लेकिन अब करना क्या है?”

मंगतलाल, “कुछ नहीं। तुम यहीं पर ठहरो, मैं और संपत पुठा के पीछे जाते हैं। पुठा जैसे ही इस बैग को मुखिया के घर पर देगा, मैं दूर से रिमोट कंट्रोल का बटन दबा दूंगा।”

संपत और मंगतलाल पुठा के पीछे लग गए। मगर उन दोनों ने देखा कि पुठा मुखिया के घर के करीब जाकर अचानक रुक गया।

पुठा, “मंगल भैया ने ये बैग किसके घर पर देने के लिए बोला था?”

पुठा सोच में डूबते हुए बड़बड़ाया, “मंगत भैया ने मुझे मुखिया जी के यहाँ पर क्यों देने के लिए कहा होगा?

मेरा ख्याल है कि उन्होंने आई जी को ये बैग देने के लिए बोला है। अरे अरे! मुझे सब याद आ गया।

हमारे गांव में पिछले कुछ दिनों से आई जी साहब कुछ पुलिस वालों को लेकर घूम रहे हैं। जरूर ये बैग मंगत भैया ने आई जी के यहाँ पर देने के लिए बोला होगा।”

इतना कहकर पुठा सीधे गांव की पुलिस चौकी की ओर मुड़ गया। पुठा को पुलिस चौकी की ओर जाता देख संपत और मंगतलाल के पसीने छूट गए।

संपत, “अरे मंगत भैया! ये कहाँ जा रहा है? इसे रोको।”

मंगतलाल, “अरे! पागल हो गया है क्या? अब अगर इसके साथ हमें किसी ने देख लिया तो हमारी पोल खुल सकती है।

अगर इस भुलक्कड़ ने ये बैग पुलिस के हाथ में पकड़ा दिया तो क्या होगा? यहाँ से भागने में ही भलाई है।”

पुठा पुलिस चौकी के अंदर घुस गया और उसने वह बैग आई जी के हाथ में दे दिया।

आई जी, “ये बैग तुम्हें किसने दिया है?”

पुठा, “मैं बिल्कुल नहीं भूला हूँ आई जी साहब। मुझे ये बैग मंगत भैया और संपत भैया ने दिया है और मुझसे यही कहा कि ये बैग आई जी को ही देना।”

आई जी ने बैग खोला तो उसके पसीने छूट गए।

आई जी, “अरे, इसमें तो बम है।”

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बम का नाम सुनते ही खलबली मच गई। पुलिस वाले पुठा को अच्छी तरह से जानते थे।

हवलदार, “सर, मेरी समझ में सब कुछ आ चुका है। इस पुठा को भूलने की बिमारी है।

जरूर उन दोनों ने इसके भूलने की आदत का फायदा उठाकर ये बैग किसी के यहाँ पर भेजा होगा और गलती से पुठा भूलकर यहाँ ले आया।

और फिर हमारा शक तो पहले से ही मंगतलाल और संपत पर था। इस बैग में रखे बॉम्ब ने हमारे शक की पुष्टि कर दी।”

आई जी, “चलो इस पुठा की भूलने की कोई तो आदत कम आई।”

हवलदार,” सर, इसके भूलने की आदत ने ही दो बड़े बड़े मुजरिमों को शिकंजे में फसा दिया सर।”

कुछ देर बाद आई जी ने पुलिस बल के साथ संपत और मंगतलाल को गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन बाद यश भी पकड़ा गया।

आई जी ने गांव में सब के सामने पुख्ता को सम्मानित किया और इस तरह उस समय के बहुत बड़े स्मगलर पकड़े गए और उन्हें आजीवन कारावास की सजा हो गई।

इस तरह भूलाराम की भूलने की आदत ने सबकी जान बचा। दी।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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