पांच चोर | PANCH CHOR | Hindi Kahani | Moral Story | Achhi Kahaniya | Best Hindi Stories

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” पांच चोर ” यह एक Hindi Story है। अगर आपको Hindi Stories, Hindi Kahani या Chor Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


तड़कापुर गांव में झुमरू नाम का नाई अपनी पत्नी शर्मिली के साथ रहता था।

वो बड़ा ही आलसी किस्म का आदमी था और थोड़ा बेवकूफ भी। लेकिन शर्मिली बहुत ही समझदार और तेज दिमाग की थी।

एक दिन झुमरू भागता हुआ घर आता है।

शर्मीली, “क्या हुआ? ऐसे भागते हुए क्यों आ रहे हो जैसे तुम्हारे पीछे पागल कुत्ता पड़ गया हो?”

झुमरू, “अरे… अरे! वो चौधरी के लोग मुझे पीटने के लिए आ रहे हैं।”

शर्मीली, “क्या कर दिया तुमने? मैं तो तंग आ चुकी हूँ तुम्हारी हरकतों से।”

झुमरू, “मैंने क्या किया? मैंने तो कुछ भी नहीं किया।”

शर्मीली, “तो वो लोग क्या पागल हैं, जो तुम्हें पीटने आ रहे हैं?”

तभी दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक होती है।

चौधरी का नौकर, “अरे, ओ झुमरू के बच्चे! बाहर निकल।”

शर्मीली, “क्या हुआ भाई जी? क्या बात है?”

नौकर, “कहाँ गया झुमरू का बच्चा? तुम्हें पता है, वो चौधरी जी की हजामत बनाते-बनाते सो गया और उसने बालों के साथ चौधरी के कान भी काट दिए।”

शर्मीली (हैरानी से), “ये तो बहुत बुरा हुआ भाई! अब गांव में लोग उन्हें कनकटा चौधरी कहेंगे।”

नौकर, “अपनी बकवास मत करो और बताओ, कहाँ है वो झुमरू का बच्चा?”

शर्मीली, “भाई उसे माफ कर दो। अभी तो वो घर पर नहीं है, वापस आता है तो मैं खुद उसे लेकर चौधरी जी के पास आउंगी

और उनके बचे हुए कान… मेरा मतलब है, बचे हुए बाल कटवा दूंगी।”

नौकर, “कोई जरूरत नहीं है उसे लेकर हमारे सामने आने की।”

चौधरी के नौकर वापस चले जाते हैं और झुमरू कुछ दिनों तक घर के बाहर नहीं निकलता।

शर्मीली, “सुनते हो? आज चार दिन हो गए हैं, तुम काम पर नहीं गए। कुछ काम नहीं करोगे तो घर कैसे चलेगा?”

झुमरू, “तुम तो जानती हो कि मुझे काम करना बिल्कुल पसंद नहीं है और रोज़-रोज़ मेरे पीछे काम पर जाने के लिए मत पड़ा करो।”

शर्मीली, “ठीक है, थोड़े दिनों में भीख मांगने के लिए तैयार हो जाओ।”

झुमरू, “भीख क्यों मांगूंगा मैं?”

शर्मीली, “क्योंकि घर में रखा सारा राशन खत्म हो जाएगा। फिर भीख मांगकर ही गुज़ारा करना पड़ेगा ना?

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तुम्हारे आलस की वजह से कोई तुम्हें काम नहीं देता! हर समय तुम्हें सिर्फ सोना होता है।”

झुमरू, “अब मुझे नींद आती है तो सोऊंगा ही ना।”

शर्मीली, “मुझे समझ नहीं आता, दुनिया में कौन सा ऐसा इंसान है जो खड़े-खड़े सोता है?

अपनी नींद की वजह से तुमने कितने लोगों से दुश्मनी मोल ले ली है? अब तो कोई हमारी मदद भी नहीं करता।”

झुमरू अपनी नींद की वजह से कितने ही लोगों के बाल काटते-काटते कान काट चुका था

और कितने लोगों की तो आधी मूंछें ही उड़ा चुका था। अब लोग झुमरू को हजामत के लिए नहीं बुलाते थे।

एक दिन…

शर्मीली, “राजा जी के यहाँ 12 साल बाद बेटा हुआ है। उन्होंने अपना खजाना खोल दिया है

और गरीबों को दिल खोलकर दान दे रहे हैं। तुम एक काम करो, राजमहल चले जाओ और महाराज से कुछ मांगकर लाओ।”

झुमरू, “क्या मांगकर लाऊं?”

शर्मीली, “अभी भी क्या मैं ही बताऊँ? खुद के पास भी थोड़ा दिमाग है कि नहीं? वहीं लगा लो ना।”

झुमरू राजमहल जाता है।

झुमरू, “महाराज, मुझे भी कुछ दान में दे दीजिए।”

महाराज, “क्या चाहिए तुम्हें, बोलो? आज हम मुँह मांगा दान दे रहे हैं।”

झुमरू, “महाराज, ये तो मेरी पत्नी ने नहीं बताया… पर आप कुछ भी दे दीजिए, जो आपको ठीक लगे।”

महाराज (गुस्से में), “अरे! तुम कैसे आदमी हो? मैं मुँह मांगा दान दे रहा हूँ और तुम्हें जो चाहिए वो भी नहीं पता।”

झुमरू, “महाराज, मुझे क्या चाहिए? मुझे तो बस सोने के लिए थोड़ी जमीन मिल जाए।”

महाराज, “ठीक है।”

महाराज झुमरू को गांव के बाहर एक जमीन का टुकड़ा देते हैं और झुमरू खुशी-खुशी घर वापस जाता है।

शर्मीली, “आ गए तुम? क्या लाए हो महाराज से? जल्दी से दो, मैं कुछ खाने का इंतजाम करती हूँ।”

झुमरू, “महाराज ने मुझे जमीन का टुकड़ा दिया है।”

शर्मीली (गुस्से में), “हे भगवान! तुम्हारे पास अक्ल है कि नहीं? हम जमीन के टुकड़े का क्या करेंगे?”

झुमरू, “ये तो तुम्हारी गलती है। मैंने तुमसे पूछा था कि महाराज से क्या माँगना है, तुमने ही मुझे कुछ नहीं बताया।”

शर्मीली, “तो तुमने महाराज से क्या कहा?”

झुमरू, “मैंने उनसे कहा कि आप मुझे कुछ भी दे दीजिए। महाराज ने कहा कि वे मुँह मांगा दान दे रहे हैं।

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बार-बार मुझसे ही पूछ रहे थे कि मुझे क्या चाहिए? इसलिए मैंने कह दिया कि मुझे तो जमीन पर सोने के लिए बस जगह चाहिए और महाराज ने मुझे जमीन का टुकड़ा दे दिया।”

शर्मीली (गुस्से से), “हे भगवान! सिर्फ सोना और सोना ही तुम्हारी ज़िन्दगी में है, इसके सिवा और कुछ भी नहीं।

हमारे पास ना तो हल है, ना खेत जोतने के लिए बैल, तो हम उस ज़मीन का क्या करेंगे?”

झुमरू, “तुम खुद चली जाती, तुमने मुझे क्यों भेजा?”

शर्मीली (झुंझलाकर), “बस, यही गलती कर दी मैंने, जो तुम्हें महाराज के पास भेज दिया।”

शर्मीली बहुत समझदार थी। उसने ठान लिया था कि वो इस जमीन पर खेती करेगी।

रातभर सोचने के बाद दूसरे दिन सुबह शर्मीली झुमरू को लेकर उस जमीन पर जाती है।

शर्मीली, “मेरी बात ध्यान से सुनो जी, मैं जैसे-जैसे करूँगी बस वैसे ही करते जाना और किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है।”

झुमरू, “ठीक है।”

शर्मीली और झुमरू जमीन पर इधर-उधर घूमने लगते हैं, जैसे वे कुछ ढूँढ रहे हों। जैसे ही कोई राहगीर दिखता, वे जमीन पर बैठ जाते।

इससे लोगों को ऐसा लगता कि वे किसी को देखकर ही रुक गए। राहगीरों के साथ-साथ नगर के पाँच बड़े चोरों की नजर भी उन पर पड़ती है।

पहला चोर, “ऐसा लगता है कि ये दोनों कुछ ढूँढ रहे हैं इस जमीन पर।”

दूसरा चोर, “तुम बिलकुल ठीक बोल रहे हो। मुझे भी ऐसा ही लग रहा है,

क्योंकि जब वे किसी को आते देखते हैं, तो एकदम से रुक जाते हैं। मानो वे यह नहीं बताना चाहते कि वे क्या ढूँढ रहे हैं?”

काफी देर बाद उनमें से एक चोर शर्मीली के पास आता।

चोर, “क्या हुआ बहन, कुछ ढूँढ रही हो क्या?”

शर्मीली: “नहीं नहीं, मैं तो कुछ भी नहीं ढूँढ रही।”

चोर, “अरे बहन! तुम मुझसे बता सकती हो। अगर बताओगी तो मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा।”

शर्मीली पहले तो थोड़ी नानुकर करती है, फिर चोर के बार-बार कहने पर उसे बताती है।

शर्मीली, “भाई, यह जमीन मेरे दादाजी की है। बहुत साल पहले उन्होंने इसमें सोने और चाँदी से भरा घड़ा कहीं दबा दिया था।

उस जगह का सही पता बताने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। मैं और मेरे पति उसी घड़े को ढूँढ रहे हैं। लेकिन कृपया यह बात किसी को मत बताना।”

चोर, “हाँ बहन, तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें मजदूरों की सहायता से इस पूरे खेत को खुदवाना चाहिए, ताकि घड़ा आसानी से मिल जाए।”

शर्मीली, “अरे! हाँ, यह तो आपने बिल्कुल सही सलाह दी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, भाई। मैं मजदूरों को लाकर खेत की खुदाई करवाऊँगी।”

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चोर, “लेकिन अब तो अँधेरा होने वाला है, बहन। तुम यह काम कल सुबह जल्दी करवा लेना।”

शर्मीली, “आपने बिल्कुल सही कहा। मैं कल सुबह मजदूरों के साथ आकर खेत की खुदाई करवाऊँगी।”

शर्मीली और झुमरू घर वापस चले जाते हैं। उधर, चोर अपने बाकी चार साथियों के साथ मिलकर पूरी रात खेत की खुदाई कर देता है। लेकिन उन्हें वहाँ कुछ नहीं मिलता।

दूसरे दिन सुबह शर्मीली और झुमरू खेत पर वापस आते हैं।

शर्मीली (मुस्कुराकर), “देखा तुमने, खेत की खुदाई हो गई है? तुम यहीं रुको और किसी से कोई बात मत करना। मैं अभी आती हूँ।”

शर्मीली गांव के बनिया के पास जाती है।

शर्मीली, “सेठ जी, मुझे थोड़ा गेहूं उधार दे दीजिए।”

सेठ, “उधार तो दे दूं, लेकिन तुम वापस कैसे करोगी? तुम्हारा पति तो कुछ काम भी नहीं करता।”

शर्मीली, “मैं जानती हूँ, लेकिन कुछ समय बाद मैं इसका तीन गुना गेहूं आपको वापस कर दूंगी।”

शर्मीली उस गेहूं को जमीन पर बो देती है। कुछ समय बाद उम्मीद से ज्यादा अच्छी फसल होती है।

लेकिन सभी चोरों की बुरी नजर शर्मीली और झुमरू पर होती है। गेहूं काटने के बाद शर्मीली सेठ को तीन गुना गेहूं वापस कर देती है और कुछ गेहूं बेचकर थोड़े सोने और चांदी के सिक्के खरीदती है।

उस रात चोर शर्मीली के घर आते हैं।

चोर, “इस फसल में तुम्हें हमें भी हिस्सा देना होगा क्योंकि तुम तो जानती हो, उस जमीन को खेती लायक खोद कर हमने ही तैयार किया था।”

शर्मीली, “मैंने तुम्हें बताया तो था कि उस ज़मीन में सोना मौजूद है। तुम इतनी मेहनत करने के बाद भी उसे हासिल नहीं कर सके,

लेकिन वो घड़ा मुझे मिल गया और मेरे पास है। तुम्हारा उस पर कोई हक नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं दूंगी।”

चोर, “ठीक है, तुम संभाल कर रहना। हम अपना हिस्सा खुद ले लेंगे।”

एक चोर घर में छुपकर बैठ जाता है, लेकिन शर्मीली उस चोर को घर के अंदर छुपते देख लेती है।

झुमरू चोरों की बात से कुछ डर हुआ था।

झुमरू, “तुमने बेकार में ही उनसे दुश्मनी मोल ली है। अब ना जाने वे क्या करेंगे?”

शर्मीली, “डरने की कोई जरूरत नहीं है।”

झुमरू, “तुमने वो सोने और चांदी के सिक्के कहाँ रखे हैं?”

शर्मीली, “मैंने दरवाजे के नीचे घड़े में सिक्के रखे हैं, उसके ऊपर मिठाई रख दी है।”

चोर, “अब तो पांचों में से सबसे समझदार मैं ही कहलाऊंगा। रात को जब ये दोनों सो जाएंगे, तो मैं वह घड़ा लेकर बाहर निकल आऊंगा।”

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रात को दोनों के सोने के बाद वह बाहर छुपे अपने साथियों के पास घड़ा लेकर जाता है।

चोर, “ये लो, मैं अकेले ही सिक्कों का घड़ा ढूंढकर ले आया।”

दूसरा चोर, “तुम तो बड़े हिम्मती निकले। हम सब तो ऐसे ही तुम्हें कमजोर समझते थे।”

पहला चोर, “अब तो मान गए? बड़ी मेहनत करी मैंने, मुझे भूख भी बहुत लग गई है,

इसलिए आते-आते इस घड़े में थोड़ी मिठाई भी रख ली है। चलो, पहले हम सब बैठकर ये मिठाइयाँ खाते हैं।”

सारे चोर मिठाई निकालकर मुँह में डालते हैं, लेकिन शर्मीली ने मिठाई की जगह मिर्ची के लड्डू बनाकर रखे होते हैं जिसे खाकर उनकी हालत खराब हो जाती है।

अगली सुबह सारे चोर बहुत गुस्से में वापस शर्मीली के घर जाते हैं।

शर्मीली, “आ गए तुम लोग? कैसी रही रात की दावत? तुम्हारी शक्लें देखकर लगता है कि दावत बड़ी ही स्वादिष्ट थी।”

चोर, “तुमने जो किया, वो बहुत गलत किया है। अब तुम सावधान रहना, हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे।”

एक चोर मौका पाकर वहां छिप जाता है।

रात में…
झुमरू, “तुमने उन सिक्कों को कहाँ रखा है? मुझे तो चोरों की बात से डर लग रहा है, ना जाने वे क्या करेंगे?”

शर्मीली, “तुम फिक्र मत करो, मैंने उन सिक्कों को नीम के पेड़ पर लटका दिया है। वहाँ उन चोरों को क्या, उनके परदादाओं को भी शक नहीं होगा।”

झुमरू, “खुद को बड़ा समझदार समझते हैं ये लोग।”

चोर, “नीम के पेड़ से सिक्कों की पोटली तो हम बहुत ही आसानी से उतार लेंगे।”

घर के बाहर अपने साथियों के पास जाकर वो पेड़ की तरफ इशारा करता है।

चोर, “वो देखो, इन बेवकूफों ने सिक्कों की पोटली पेड़ पर लटका रखी है। मैं पेड़ पर चढ़ता हूँ।”

लेकिन वहां सिक्के नहीं, मधुमक्खियों का छत्ता होता है। चोर अंधेरे में छत्ते पर हाथ लगाता है, तो एक मधुमक्खी उसके हाथ पर काट लेती है।

वह अपने हाथ को कमर पर रगड़ता है। नीचे खड़े बाकी चोरों को लगता है कि वह सिक्के अपनी जेब में डाल रहा है।

तभी एक दूसरी मधुमक्खी उस चोर को काटती है। वह फिर से अपने हाथ को जोर से झटकता है।

दूसरा चोर, “तुम यह जो कर रहे हो, वह ठीक नहीं है। आज तक हमने जो भी चोरियां की हैं, वह सब मिल-बांट कर ली हैं। आज तुम बेईमानी कर रहे हो।”

पहले चोर, “मुझे किसी ने काटा।”

तभी दूसरी मधुमक्खी उसके सीने पर काटती है। चोर जोर-जोर से अपना हाथ सीने पर मारने लगता है।

नीचे खड़े चोरों को अब लगता है कि वह सिक्के ऊपर की जेबों में भर रहा है।

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दूसरा चोर, “हमारे साथ बेईमानी करने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।”

पहला चोर, “रुक जाओ, मैं भी पेड़ पर चढ़ता हूँ।”

मधुमक्खी ने उसे भी काटा, तो उसने भी अपना हाथ कमर पर मारा।

तीसरा चोर, “अरे! कुछ तो शर्म करो। वह तो बेईमान हो ही गया था, तुम भी उसके साथ बेईमानी कर रहे हो। सारे सिक्के नीचे लेकर आओ, जो होगा मिलकर बांटेंगे।”

दूसरा चोर कुछ बोलता, उससे पहले ही दूसरी मधुमक्खी ने उसे काट लिया।

उसने फिर से अपने हाथ को कमर पर रगड़ा, लेकिन नीचे खड़े चोरों को ऐसा लगा कि दूसरा चोर भी अपनी जेब में सिक्के भर रहा है।

एक-एक करके सारे चोर पेड़ पर चढ़ जाते हैं।

पांचवां चोर, “रुक जाओ तुम सब, तुम सबने अपनी-अपनी जेब में सिक्के भर लिए। अब बाकी के बचे हुए सारे सिक्के सिर्फ मेरे हैं और किसी के नहीं।”

वह पूरी ताकत से छत्ते पर हाथ मारता है, जिससे मधुमक्खियां बुरी तरह से सबको काट लेती हैं और वे सभी पेड़ से नीचे गिर जाते हैं।

शर्मीली, “मुझे नहीं लगता कि अब वे पाँचों चोर कभी हमारे घर की तरफ वापस आएँगे।”

लेकिन कुछ समय बाद घर के बाहर कुछ आवाज़ें आने लगी।

शर्मीली, “ये तो उन चोरों की आवाज़ें हैं। ये फिर से वापस आ गए? लेकिन कोई बात नहीं, मैंने इन बेवकूफों को पहले भी चखमा दिया है और आज तो इनको सबक सिखाकर रहूंगी।”

उसने अपने पति की हजामत करने का उस्तरा हाथ में मजबूती से पकड़ा और खिड़की के पास खड़ी हो गई।

एक चोर ने खिड़की से अंदर झांका, तो शर्मीली ने उसकी नाक काट दी।

चोर, “खिड़की पर कोई नुकीली चीज़ टंगी हुई है, ध्यान से।”

एक-एक करके सारे चोरों ने खिड़की से अंदर जाने की कोशिश की और शर्मीली ने सबकी नाक काट दी।

सिर्फ एक चोर की नाक बच गई। वो किसी तरह अपने साथियों को लेकर वहाँ से हकीम के पास गया।

शर्मीली, “मुझे लगता है कि अब ये चोर कभी वापस नहीं आएंगे। उन्हें काफी सजा मिल चुकी है।”

झुमरू, “तुम सही कह रही हो। मेरे साथ रहकर समझदार हो गई हो तुम।”

दूसरी तरफ चोरों को यह समझ आ चुका था कि वे इतनी आसानी से शर्मीली से कुछ नहीं ले सकते।

इसीलिए वे भेष बदलकर राजा के पास उसकी शिकायत लेकर जाते हैं।

चोर, “महाराज! शर्मीली और झुमरू ने हमसे अपनी फसल का आधा हिस्सा देने की बात कहकर अपने खेत में खुदाई का काम करवाया।

लेकिन बाद में जब फसल अच्छी हुई, तो वह अपनी बात से मुकर गए। वे दोनों हमें फसल में कोई हिस्सा नहीं दे रहे। महाराज, आप हमें न्याय दिलाइए।”

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महाराज, “शर्मीली और झुमरू को दरबार में बुलाया जाए।”

शर्मीली, “महाराज की जय हो! महाराज, इन पाँचों ने जो भी कहा है, सब झूठ है। मैं भला क्यों इन्हें अपनी फसल का हिस्सा दूँ?

इनके पास क्या सबूत है कि मैंने इन्हें हिस्सा देने को कहा था? और दूसरी बात… महाराज, आपने इन्हें पहचाना नहीं?

ये आपके राज्य के वही पाँच मशहूर चोर हैं, जिन्हें सेनापति जी कब से ढूंढ रहे हैं? आज ये आपके सामने भेष बदलकर आए हैं।”

सेनापति चोरों को पहचान जाते हैं।

महाराज, “शर्मीली, तुम बहुत ही समझदार और वीर हो। हम तुम्हारी सूझबूझ से बहुत प्रसन्न हुए।

इसलिए हम झुमरू को अपने महल में काम पर रखते हैं और क्योंकि तुमने राज्य के चोरों को पकड़वाया है, हम तुम्हें इनाम में और ज़मीन देते हैं।”

इस तरह अपनी सूझबूझ और हिम्मत से शर्मीली ना सिर्फ चोरों को पकड़वाती है, बल्कि झुमरू को राजमहल में काम भी दिलवाती है और अपने घर की स्थिति को भी सुधार लेती है।


दोस्तो ये Hindi Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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