हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” पेटू राम ” यह एक Funny Story है। अगर आपको Short Funny Stories, Hindi Funny Stories या Majedar Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
माधवपुर नाम के गांव में गेंदा नाम का एक मोटा आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। गेंदा को खाने का खूब शौक था।
वो एक समय में 100 आदमियों का खाना आराम से खा जाता था, इसलिए उसके घर में कोई नौकर नहीं टिकता था।
पत्नी, “सुनो जी, मुझे मायके जाना है। मेरे चचेरे भाई के बेटे के तीसरे बच्चे का मुंडन है।”
गेंदा, “ना ना, कभी ना। तुम्हारे मायके तो कभी नहीं जाना है। याद है, पिछली बार तुम्हारे घर के बच्चों ने मेरा कितना मज़ाक बनाया था? वो शरारती बच्चे बहुत खतरनाक हैं।”
पत्नी, “हाँ, तो कितनी बार कहा है, अपना वजन कम करो, पर तुम सुनते ही कहाँ हो? खाने से ऐसा हाल है कि कम होने का नाम ही नहीं लेता।
जहाँ जाना होता है, आप बाद में पहुँचते हो, आपकी तोंद पहले पहुँच जाती है।”
गेंदा, “देखो, अब तुम अपना भाषण मत शुरू करो। तुम चली गई तो मेरा खाना-पीना कौन देखेगा? अरे! नहीं भाग्यवान, अभी तो रोंदू भी गांव से नहीं लौटा।”
पत्नी, “हाँ हाँ, ठीक है। वैसे भी तुम्हें साथ चलने को नहीं कह रही। मैं बस बता रही हूँ कि मैं जा रही हूँ।
और जब गांव जा रही हूँ, तो सोच रही हूँ कि सब आस-पड़ोस और रिश्तेदारों से भी मिल लूँ। कौन सा रोज़-रोज़ जाना होता है? तो एक महीना लग जाएगा, हाँ।”
गेंदा, “क्या… एक महीना? पगला तो नहीं गई हो? यहाँ इतने दिन घर-बार कौन देखेगा?”
पत्नी, “सुनो, इस बार मैं नहीं रुकने वाली। और शुक्र करो, एक महीना बोल रही हूँ, वरना औरतें तो 6-6 महीने के लिए मायके जाती हैं। मैंने एक नौकर बुला लिया है, तुमको कोई परेशानी नहीं होगी।”
गेंदा, “वाह सेठानी! ये की ना बढ़िया सेठानी वाली बात। ये बहुत ठीक किया तुमने।”
पत्नी, “सुनो, नौकर आ गया है। उठो, वरना मुझे जाने में देर हो जाएगी।”
गेंदा, “हाँ हाँ, ठीक है। तुम जाओ। हरी ओम…हरी ओम। अरे वाह! सुबह हो गई। लेकिन मुझे किसी ने उठाया नहीं।”
गेंदा, “ऐ सुनो… सुनो ना। कहाँ मर गया? ऐ सुनो, सुनता क्यों नहीं बे? इतनी ज़ोर से चिल्ला रहा हूँ, बहरे हो क्या? कुछ सुनाई नहीं देता?”
नौकर, “मुझे लगा, यहाँ कोई ‘ऐ’ नाम का नौकर है। आप उसको बुला रहे हो।”
गेंदा, “चुप कर, पहले तो ये बता कि तेरा नाम क्या है?”
नौकर, “मेरा नाम…हीं हीं हीं”
गेंदा, “अबे! हंस काहे को रहा है? क्या नाम है तेरा, बताता क्यों नहीं?”
नौकर, “मुंजा, मेरा नाम मुंजा है, मुंजा।”
गेंदा, “हूं… ये बता 11 बज गए, मुझे अभी तक जगाया क्यों नहीं?”
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मुंजा, “मालकिन ने बोला नहीं कि आपको जगाना है, तो नहीं जगाया।”
गेंदा, “अच्छा-अच्छा, ज्यादा बातें मत बना। कल से मुझे 9… नहीं नहीं, साढ़े दस… नहीं, ठीक 11 बजे उठा दिया कर।”
मुंजा, “9 बजे उठाने की क्या जरूरत है? वो तो जैसे आज उठे हो, कल भी उठ जाना।”
गेंदा, “अरे! तुझे जितना बोला है, उतना किया कर। 11 बजे उठाना है बस। अब जा, चाय ले आ और अखबार पकड़ाता जा।”
नौकर हां में सिर हिलाकर अखबार दे कर चला गया। गेंदा बिस्तर पर बैठे-बैठे अखबार पढ़ने लगा।
गेंदा, “अरे गुंजा! इतनी देर हो गई, चाय न आई। क्या बात हो गई? अरे गुंजा! अरे कहाँ मर गया बे? चाय क्यों नहीं आई अब तक? कब से राह देख रहा हूँ?”
मुंजा, “सेठ जी, पहली बात मेरा नाम जो है, मुंजा है ना कि गुंजा। बेचारी चाय तो आपकी राह देख रही है, मालिक। दो बार बनके ठंडी भी हो गई।”
गेंदा, “अबे! तो लाया क्यों नहीं?”
मुंजा, “मैं तो कब से इंतजार कर रहा हूँ? आप बिस्तर से उठकर हाथ-मुँह तो धो लो, मालिक।”
गेंदा, “मुंजा… मुंजा, मुझे मुँह धोने से पहले चाय पीनी है। चाय पीए बिना मैं बिस्तर से नहीं उठ पाता, समझा? जा अब लेके आ।”
मुंजा हां में सिर हिलाकर भाग गया।
गेंदा, “इसने तो सुबह सुबह दिमाग हिला दिया।”
मुंजा दो कप चाय ले आया।
गेंदा, “दो कप चाय क्यों लाया?”
मुंजा, “मुझे लगा आज आपको ज्यादा परेशानी हो गई है, तो एक कप और ले आया।”
गेंदा, “परेशानी नहीं, बेटा… बहुत परेशानी हो गई है। तूने मेरा पूरा एक घंटा बर्बाद कर दिया।
इस टाइम तो मैं दूजी बार चाय पीता हूँ। चल ऐसा कर, अब एक कप वो वाली भी ले आ।”
मुंजा गेंदा का मुँह देखने लगा।
गेंदा, “अरे! बहरा है क्या? कोई बात एक बार में सुनाई नहीं देती तुझे?”
चाय पीकर गेंदा तैयार होकर निकलने लगा।
मुंजा टिफिन लेकर आया।
गेंदा, “देख, जच रहा हूँ ना इस कुरते में? पूरा सेठ दिखता हूँ ना?”
मुंजा, “कुरता बढ़िया है, पर…”
गेंदा, “पर क्या?”
मुंजा, “आप पर थोड़ा टाइट लग रहा है। पूरा पेट जो है फंसा हुआ है, हाँ। सांस कैसे आएगी?”
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गेंदा, “कहाँ… कहाँ फंसा हुआ है? अरे! सब ठीक तो है। और ई तो आजकल का फैशन है। अरे! तुझे क्या पता है? तू ठहरा नौकर जात।
अरे! ये क्या, एक ही डब्बा? मैं रोज़ चार डब्बे लेके जाता हूँ। चल कोई नहीं, तू नया है, तो माफ़ किया। खाना बना के रखियो, मैं दोपहर में आके खा लूँगा।”
कुछ देर बाद…
मुंजा, “क्या काम है भाई?”
सब्जी वाला, “भैया, ऐसा है मैं यहाँ रोज़ सब्जी देता हूँ। सेठानी बोल के गई कि मुंह के पीछे मैं सब्जी दे जाया करूँ।”
मुंजा, “अच्छा, दे दो।”
मुंजा ने सब्जी निकालकर तोलने के लिए दी।
सब्जी वाला, “हा हा हा… अरे! इतनी सब्जी से कुछ नहीं होगा भाई।”
मुंजा, “घर में खाली मालिक ही तो है। इतनी सब्जी बहुत है।”
सब्जी वाला, “भैया, मैं रोज़ इतनी सारी सब्जी देता हूँ, समझे?”
मुंजा, “इतनी सारी..? इसमें तो 100 आदमी पेट भर के खा लें।”
सब्जी वाला, “हूं… तब भी सेठानी कहै कि रोज़ सब्जी कम पड़ै। अब सोच लो तुम।”
सुनकर मुंजा को चक्कर आ गया। सब्जी वाले ने उसे पकड़ा।
सब्जी वाला, “ऐ नए-नए आए हो, सब समझ जाओगे। ई लो, ई सब सब्जी रखो और पकाओ।”
मुंजा, “आदमी जात है कि हाथी? गजराज भी इतना नहीं खाता जितना कि ये। एक बार में तीन कप चाय पी गया।
बड़ा वाला डिब्बा भर के खाना बनाके दिया, अब फिर इतना बनाना पड़ेगा। तभी कोई नौकर नहीं टिकता भैया यहाँ।”
मुंजा ने रसोई में बड़े-बड़े पतीलों में खाना बनाया।
मुंजा, “हे प्रभु! इतना खाना तो किसी बारात में पकता है।”
तभी बाहर से गेंदा की आवाज आई।
गेंदा, “मुंजा… ओह मुंजा! खाना ले आ। पेट में चूहे कूद रहे हैं।”
मुंजा, “ये क्या… 1 घंटे में ही आ गया?”
मुंजा, “अभी… अभी लाया सेठ जी।”
गेंदा, “रसोई से खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है। चलो, मैं ही चलकर देख आता हूँ कि खाने में क्या बना है?”
गेंदा, “मुंजा… अरे ओह मुंजा! मुझे निकाल, मैं फंस गया रे।”
मुंजा, “अरे! ई मोटे का पेट तो दरवाजे में फंस गया। अब क्या करूँ? कैसे निकालूँ इस हाथी को?”
गेंदा, “अरे… अरे! देख क्या रहा है? कुछ कर। अरे! जान निकल रही है रे। अरे! ये क्या कर रहा है, मुंजा? ठहर तू। मुझे यहाँ से निकलने दे, बताता हूँ तुझे।”
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मुंजा, “दबेगा नहीं तो आपका पेट कैसे बाहर निकलेगा? अब मैं कुछ नहीं करता, आप खुद ही कर लो।”
गेंदा, “हे प्रभु! ये कौन सी मुसीबत में फंस गया? अच्छा ऐसा कर, कोई और उपाय सोच। इसमें तो बहुत दुख रहा है।”
मुंजा ने कुछ सोचकर ज़ोर से एक घूंसा गेंदा के पेट में मारा। गेंदा का पेट गोल-गोल हिला और वो पीछे की तरफ गिर गया।
गेंदा, “अरे! मर गया… मर गया रे। कोई बचाओ।”
मुंजा, “मालिक बाहर निकल गए, मालिक बाहर निकल गए।”
गेंदा, “अरे! अब उठा तो सही।”
मुंजा ने गेंदा को उठाया।
गेंदा, “बच गया, बच गया।”
मुंजा, “आप आराम से बैठो, मैं खाना लाता हूँ।”
गेंदा, “ये क्या बकवास सब्जी बनाई है? बैंगन… इसमें नमक कितना पड़ा है? और इस भिंडी को इतना क्यों चला दिया रे? पालक कड़वा क्यों है? दही दही कहाँ है?”
मुंजा, “अभी… अभी लाया।”
गेंदा, “सुन… दही, आलू और पनीर के बिना मैं खाना नहीं खाता। जा, जल्दी से ले आ। सुन… थोड़ी पुरिया भी लेते आना।”
गेंदा जल्दी से जितना खाना लगा था, सब खा गया।
गेंदा, “मुंजा… अरे ओ मुंजा! कहाँ मर गया? बहुत भूख लगी है। पेट में चूहे कूद रहे हैं।”
मुंजा ने खाना लाकर रखा। गेंदा को खाने पर टूटता देख वो आँखें बड़ी करके देखने लगा।
गेंदा, “अरे! ऐसे क्या देख रहा है? नजर लगाएगा क्या? चल, अचार और पापड़ ले आ। सुन.. आज भूख ज्यादा लग रही है तो ऐसा कर, 50 रोटी, 100 पूरी और चार-पांच सब्जी और बना दे।”
मुंजा हाँ में सिर हिलाकर चला गया। उसके बाद मुंजा बना-बनाकर देता गया और गेंदा खाता गया। आखिर में मुंजा थककर रसोई में बैठ गया।
मुंजा, “अरे! इस मोटे ने तो जान ही निकाल दी। मैं तो यहाँ खुश होकर काम करने आया था कि एक आदमी का काम है। मुझे क्या पता था कि ये मोटा अकेला 200 आदमियों के बराबर है?”
गेंदा, “मुंजा… मुंजा।”
मुंजा, “मालिक, अब क्या लाऊँ? सब राशन खत्म हो गया।”
गेंदा, “अरे! मीठा ले आ।”
मुंजा पतीले में खीर लेकर आ गया।
गेंदा, “अरे! ये क्या… बस इतनी सी खीर? इसमें मेरा क्या होगा? ऐसा कर, हलवाई की दुकान से पांच किलो जलेबी और रबड़ी ले आ।”
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मुंजा, “मालिक, रूपया?”
गेंदा, “रूपया… हा हा हा… हलवाई अपना आदमी है, रुपया नहीं मांगेगा। उसको बोलना गेंदा के हिसाब में लिख लेना।”
मुंजा सिर हिलाकर चला गया।
हलवाई की दुकान पर…
मुंजा, “भैया, पांच किलो जलेबी और रबड़ी दे दो।”
हलवाई, “भैया, घर में कोई दावत है क्या?”
मुंजा, “ना ना, मेरा मालिक खुद ही दावत है। मेरा मतलब है कि ये सब मेरे मालिक को खाना है।”
हलवाई, “अच्छा अच्छा, तो तुम गेंदा के यहाँ से आए हो? मैं सोच ही रहा था कि आज उसके यहाँ से कोई आया क्यों नहीं?
ये लो पांच किलो जलेबी और रबड़ी और मोतीचूर के लड्डू। उसको कहना, आज बेसन के खत्म हो गए हैं।”
मुंजा, “पर लड्डू नहीं लेने।”
हलवाई, “लेकर जाओ, भैया। तुम नये लगते हो, पर हमारा तो ये रोज़ का काम है। नहीं ले गए, तो आधे घंटे में दोबारा आना पड़ेगा।”
मुंजा, “अच्छा अच्छा, ठीक है।”
घर में गेंदा सब खा गया। फिर पेड़ पर हाथ फेरकर अंगड़ाई लेते हुए जाकर अपने कमरे में सो गया।
गेंदा, “हाअ…अब बहुत नींद आ रही है।”
मुंजा घर का काम करते हुए गेंदा के कमरे से बाहर निकला।
मुंजा, “इतने ज़ोर की आवाज़ कहा से आ रही हैं?”
उसने कमरे में जाकर देखा। गेंदा ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे ले रहा था।
मुंजा, “रे बाबा रे! ये आदमी है कि राक्षस है। इतना ज़ोर से खर्राटे ले रहा है, भैया।”
तभी उसकी नजर गेंदा के पेट पर पड़ी। खर्राटों के साथ उसका पेट ज़ोर-ज़ोर से हिल रहा था।
मुंजा ने पास जाकर अपनी एक ऊँगली गेंदा के पेट में डाली तो वो और ज़ोर से हिलने लगा।
मुंजा खुश होकर ताली बजाने लगा। उसने फिर से ऊँगली गेंदा के पेट में डाली तो वो और ज़ोर से हिला।
मुंजा फिर से खुश होकर ताली बजाने लगा।
तभी गेंदा ने आँखें खोली।
गेंदा, “कौ कौ… कौन है बे?”
मुंजा घबराकर गेंदा के पलंग के नीचे घुस गया।
गेंदा, “अरे! कोई नहीं है।”
गेंदा ने उठकर अलमारी खोली और सुपारी निकालकर खाई और फिर वो अपने पलंग पर जैसे ही सोने के लिए बैठा, वो टूट गया और गेंदा मुंजा पर गिर गया।
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मुंजा, “अबे… अबे मोटे! हट ना।”
गेंदा, “भूत… भूत… भूत।”
ये कहता हुआ वो उठने की कोशिश करता है और फिर मुंजा पर बैठ जाता है।
मुंजा, “ऐ बचाओ बचाओ।”
गेंदा, “भूत… भूत… भूत।”
गिरता पड़ता वो बाहर जाता है कि तभी उसकी पत्नी आ गई।
पत्नी, “अरे! क्यों ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे हो?”
गेंदा, “भूत… कमरे में भूत हैं।”
पत्नी, “आपके जैसे भूत के रहते किसी और भूत की हिम्मत है, जो इधर घर में आजाए?”
गेंदा, “डर से मेरी जान निकल रही है और तुम… तुम वापस कैसे आ गई?”
पत्नी, “रास्ते में ना बाजार में चूड़ियों और साड़ियों की सेल लगी थी, तो वहाँ चली गई। बस ई चक्कर में ट्रेन निकल गई।”
तभी मुंजा कमर पकड़ कर टेढ़ा-मेढ़ा चलता हुआ रोते हुए आया।
पत्नी, “ऐ मुंजा! ई का हाल बना रखा है?”
मुंजा, “आह… आह… हाय! मार डाला रे। मार डाला रे… आय मार डाला।”
पत्नी, “का हुआ, कुछ बोल तो?
मुंजा ने हाथ जोड़े और रोते हुए वहाँ से भाग गया।
गेंदा, “ब ब… मैंने कुछ नहीं किया।”
गेंदा ने ज़ोर से डकार ली।
गेंदा, “आह… आज ससुरी डकार नहीं आ रही थी। अब जाकर संतुष्टि मिली है।”
पत्नी अपना हाथ सिर पर रखकर बैठ गई।
दोस्तो ये Funny Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!