सास बहू का प्यार | Saas Bahu Ka Pyar | Saas Bahu | Saas Bahu Story | Saas Bahu Ki Kahani

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” सास बहू का प्यार ” यह एक Saas Bahu Story है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।


स्कूल की छुट्टी होते ही विद्या लंबे-लंबे कदमों के साथ अपने घर की तरफ जा रही होती है। तभी उसकी सहेली लीला भागते हुए उसके पास आती है।

लीला, “अरे विद्या! रुक जा, हर रोज़ छुट्टी होते ही इतने लंबे-लंबे कदमों के साथ क्यों भागती रहती है? अरे! घर ही तो जाना है, घर कहीं उड़कर भाग थोड़ी ना जाएगा।”

विद्या, “लीला, तू नहीं समझेगी। मुझे जल्दी से घर जाकर सास बहू का सीरियल देखना है।”

लीला, “तुझे सास बहू’ की लड़ाई-झगड़ा देखना बहुत पसंद है ना? बंद कर दे ये सब देखना।”

विद्या, “मैं सास बहू के लड़ाई-झगड़े नहीं, बल्कि सास बहू का प्यार देखती हूँ।”

लीला, “सास बहू का प्यार..? सही है सही है, जा देख जाकर सास बहू का प्यार क्योंकि ऐसा सिर्फ टीवी सीरियल में ही पॉसिबल है। असल जिंदगी में तो सास बहू के बीच प्यार कभी हो ही नहीं सकता।”

विद्या, “ये तू गलत कह रही है, लीला। हर सास और बहू का रिश्ता लड़ाई-झगड़े का नहीं होता।

अब तो मेरी दीदी को ही देख ले। मेरी दीदी और उनकी सास के बीच बहुत प्यार है।”

लीला, “ऐसा हो ही नहीं सकता। मैं शर्त लगा सकती हूँ।”

विद्या, “ठीक है, एक महीने बाद गर्मियों की छुट्टी होने वाली है। तू मेरे साथ मेरी दीदी के घर चल, वहीं चल कर तू खुद देख लेना।

अगर मेरी बात सच निकली, तो तू मुझे ₹100 देगी। अगर तेरी बात सच निकली, तो मैं तुझे ₹100 दूंगी। मंजूर..?”

लीला, “हाँ मंजूर, क्योंकि मुझे पता है कि मैं ही जीतने वाली हूँ। सास बहू के बीच प्यार कभी हो ही नहीं सकता, इम्पॉसिबल है ये।”

गर्मियों की छुट्टियाँ होते ही विद्या लीला को लेकर अपनी बड़ी बहन के ससुराल चली जाती है। विद्या की बहन बैजयंती दरवाजा खोलती है और अपनी बहन को देखते ही उसे गले से लगा लेती है।

बैजयंती, “मेरी छोटी सी प्यारी सी गुड़िया रानी, मैं तेरा इंतजार कर रही थी।”

लीला, “दीदी, मैं भी आई हुई हूँ। थोड़ा ध्यान मुझ पर भी दे दीजिए।”

बैजयंती, “अरे लीला! तू तो कितनी बड़ी हो गई?”

इतने में बैजयंती की सास सुमित्रा पीछे से आवाज लगाती है।

सुमित्रा, “कौन आया है, बिटिया रानी?”

बैजयंती, “माँ, विद्या आई है और उसके साथ उसकी बचपन की सहेली लीला भी।”

बैजयंती, “चलो चलो अंदर चलो, माँ से मिलो।”

बैजयंती अपनी बहन विद्या और उसकी सहेली लीला को लेकर घर के अंदर चली जाती है।

सुमित्रा, “अरे लीला बिटिया,! मैंने तुम्हें बैजयंती की शादी में देखा था। तुमने ही बैजयंती के ससुर जी का कुर्ता जला दिया था ना?”

लीला, “अरे आंटी! छोड़ो ना, तब तो मैं छोटी बच्ची थी।”

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सुमित्रा, “ठीक है बच्चो, तुम लोग आपस में बात करो, मैं तुम सबके लिए बढ़िया चाय-नाश्ता लेकर आती हूँ।”

बैजयंती, “माँ, आप मेरे होते हुए चाय बनाएंगी, ये कैसे हो सकता है? आप मुझे पाप में धकेल रही हैं! आप बैठिए, मैं चाय-नाश्ता लेकर आती हूँ।”

सुमित्रा, “अरे बेटा! तुम्हारी बहनें आई हुई हैं, तुम लोग गपशप मारो, पुरानी यादें ताजा करो।

वैसे भी जब से तू आई है, तब से मैं किचन में नहीं गई हूँ। कम से कम आज तो मुझे चाय बना लेने दे।”

बैजयंती, “नहीं माँ, चाय बनाने में कितना टाइम लगेगा? बस मैं यूं गई और यूं आई। उसके बाद हम लोग ढेर सारी बातें करेंगे।”

बैजयंती के साथ सुमित्रा जबरदस्ती करती रहती है, लेकिन वो अपनी सास को चाय बनाने के लिए नहीं जाने देती और भागकर चाय बनाने लगती है।

विद्या, “देखा लीला, मैंने कहा था ना, मेरी दीदी की सासु माँ बहुत अच्छी हैं और उन दोनों के बीच बहुत प्यार है।”

लीला कुछ नहीं बोलती, सिर्फ मुँह बनाकर रह जाती है। थोड़ी देर बाद बैजयंती चाय बनाकर ले आती है और सभी लोग खुशी-खुशी चाय पीते हैं।

लीला, “सुमित्रा आंटी, अंकल कहीं नहीं दिखाई दे रहा।”

सुमित्रा, “बेटा, तेरे अंकल किसी काम से बाहर गए हुए हैं। वैसे, मेरी बेटी के हाथ की चाय कैसी लगी तुम्हें?”

लीला, “आपकी बेटी के हाथ की चाय? पर आपकी बेटी कहाँ है?”

सुमित्रा, “अरे! मैं बैजयंती बिटिया की बात कर रही हूँ।”

लीला, “बैजयंती दीदी तो आपकी बहू है ना?”

सुमित्रा, “बहू और बेटी में कोई फर्क नहीं होता, बेटा।”

रात को बैजयंती का पति विशाल काम से घर लौटता है।

विशाल, “लो माँ, आज मुझे सैलरी मिली है। पैसे संभाल कर रख लो।”

सुमित्रा, “अरे बेटा! अब इस घर की जिम्मेदारी मुझ पर मत सौंपा कर। हमारी बैजयंती बिटिया ही इस घर की मुखिया है। ये पैसे उसे ही दे दे, वो संभाल लेगी।”

विशाल, “अरे माँ! आप ही इस घर की मुखिया हो और हमेशा रहोगी।”

बैजयंती, “हाँ माँ, अभी मैं छोटी हूँ। ये जिम्मेदारी ना, आप ही संभालो।”

सब लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं। खाना खाने के बाद लीला चुपके से बैजयंती की सास के पास जाती है और उसे भड़काने की कोशिश करती है।

लीला, “आंटी, आपको नहीं लगता कि बैजयंती दीदी अच्छा बनने का कुछ ज्यादा ही नाटक करती है? मैंने अपने कानों से बैजयंती दीदी को ये कहते हुए सुना है कि आप उनकी गुलाम हो।

आपको सिर्फ पैसे थमा दिए और भाभी के लिए भैया बहुत सारे गिफ्ट लेकर आए हैं।”

इतना सुनते ही सुमित्रा ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगती है।

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सुमित्रा, “लीला बेटा, मुझे पता है कि वो मुझे गुलाम बनाकर रखती है। भला कौन सी माँ नहीं चाहेगी कि वो अपनी बेटी की गुलाम रहे?

और रही बात गिफ्ट की, तो विशाल हर बार मेरे लिए साड़ी ले आता है और बहू के लिए कुछ नहीं लाता। इसलिए कुछ ही दिनों पहले मैंने अपने बेटे को हड़काया था।

इस बार अगर जब सैलरी मिलेगी, तो तू बहू के लिए गिफ्ट लेकर आएगा। इसीलिए वो शायद लेकर आया होगा।”

जब इधर बात नहीं बनती, तब लीला बैजयंती से जाकर अकेले में मिलती है।

लीला, “भाभी, आप बहुत भोली हो। आपकी सास और आपके पति आपके सीधेपन का बहुत फायदा उठाते हैं।

मैंने अपने कानों से सुना, आपकी सासु माँ कह रही थी कि बैजयंती को एक कौड़ी देने की जरूरत नहीं है। उसे सिर्फ गिफ्ट दे दो, वो उसी में बहल जाएगी।”

बैजयंती, “ये तू कैसी बातें कर रही है, लीला? और अगर ऐसी बातें कर रही हैं, तब तो मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि आखिर कौन सी बेटी नहीं चाहेगी कि वो अपनी माँ की गुलाम रहे?

मैं तो चाहती हूँ कि वो मुझे भोला ही समझती रहे। मेरे भोलेपन का खूब फायदा उठाएं।”

अगले दिन जब विशाल काम पर चला जाता है, तब सीढ़ियों से फिसलकर सुमित्रा गिर जाती है।

बैजयंती, “माँ, मैंने कितनी बार कहा है कि आप फालतू में इधर-उधर मेहनत मत किया करो? क्या जरूरत थी छत पर जाने की?”

सुमित्रा, “अरे बिटिया! छत पर मेरे कपड़े सूख रहे थे, तो मैंने सोचा उठा लूँ। पता नहीं कैसे पैर फिसल गया?”

विद्या, “अरे दीदी! माँ जी को क्या हुआ?”

बैजयंती, “विद्या, माँ जी को चोट लग गई है।”

इतने में वहाँ पर लीला भी आ जाती है। विद्या और बैजयंती मिलकर सुमित्रा को बेड पर लेटा देती हैं।

बैजयंती, “तुम दोनों माँ के पास रुको, मैं तेल गर्म करके लाती हूँ।”

बैजयंती तेल गर्म करने चली जाती है।

लीला, “अरे विद्या, तू अपनी दीदी के साथ जा उनकी मदद कर।”

विद्या वहाँ से चली जाती है। इधर लीला सुमित्रा से बातें करने लगती है, क्योंकि उसे अब अकेले में मौका मिल गया था बात करने का।

लीला, “देखा माँ जी, आपके पैरों में इतनी ज्यादा चोट आई है और डॉक्टर को बुलवाने की बजाय सिर्फ तेल लगाकर आपको ठीक करना चाहती हैं। शायद वो चाहती ही नहीं की आप जल्द फिर से चल सकें।”

सुमित्रा, “बेटा, उसे अच्छी तरह से पता है कि मुझे डॉक्टर से एलर्जी है। मुझे इंजेक्शन से बहुत डर लगता है और मेरी बेटी बैजयंती के हाथों में जादू है।

वो जब भी मेरी मालिश करती है, गहरी से गहरी चोट बिल्कुल सही हो जाती है।”

लीला, “माँ जी, आप कितनी भोली हो?”

इतने में वहाँ पर बैजयंती और विद्या तेल गर्म करके ले आते हैं। बैजयंती अपनी सासु माँ के पैरों की मालिश करने लगती है और कुछ ही मिनटों में सारा दर्द खत्म हो जाता है।

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बैजयंती, “माँ, अब खड़े होकर ज़रा चलने की कोशिश करो।”

लीला, “अरे दीदी! माँ जी को चलने की कोशिश मत कराओ। उनकी चोट लगी हुई है, कहीं गिर गई तो?”

सुमित्रा, “विद्या, तू अपनी सहेली लीला के दिमाग का इलाज कर। मैंने तुझे बताया ना कि मेरी बेटी के हाथों में जादू है और मैं बिल्कुल ठीक हो चुकी हूँ। मैं तुझे अभी इसका सबूत देती हूँ।”

सुमित्रा बेड से उतरती है और चलने लगती है। अब उसके बिल्कुल भी दर्द नहीं हो रहा होता है।

सुमित्रा, “देखा तूने? मेरे पैर बिल्कुल ठीक हो चुके हैं। मेरी बेटी मुझे कभी कुछ नहीं होने देगी, ये मुझे पूरा भरोसा है।”

इस तरह जब भी मौका मिलता, लीला कभी सुमित्रा को उसकी बहू के खिलाफ़ भड़काती रहती, तो कभी बैजयंती को उसकी सास के खिलाफ़।

लेकिन दोनों के बीच का बंधन इतना मजबूत होता है कि दोनों हंसकर उसकी बातों को टाल देते हैं।

कुछ दिन बीत जाते हैं, लेकिन एक रोज़ सुमित्रा के कमरे से उनके दर्द से चिल्लाने की आवाज आती है।

विद्या, “दीदी, मुझे लगता है ये माँ जी की आवाज है!”

विद्या, लीला और बैजयंती भागकर सुमित्रा के कमरे में जाती हैं।

बैजयंती, “क्या हुआ माँ? आपके पेट में दर्द हो रहा है क्या?”

सुमित्रा, “बिटिया, मेरे बेटे का ख्याल रखना। ये दर्द अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। अब शायद मैं नहीं बच पाऊंगी। मेरा वक्त आ गया है।”

यह सुनते ही बैजयंती परेशान हो जाती है और जल्दी से तेल गर्म करके उनके पेट में मालिश करने लगती है, लेकिन दर्द कम नहीं होता।

तुरंत वो विशाल को फ़ोन करती है और उन्हें अस्पताल में ऐडमिट कर दिया जाता है।

डॉक्टर, “विशाल, आपकी माँ की किडनी फैल हो चुकी है। जल्द ही किडनी का इंतजाम करना होगा।”

विशाल, “डॉक्टर साहब, आप मेरी ये किडनी ले लीजिए, पर मेरी माँ को ठीक कर दीजिए।”

डॉक्टर विशाल की किडनी चेक करते हैं, लेकिन विशाल की किडनी उनकी माँ के काम नहीं आ सकती।

बैजयंती, “डॉक्टर साहब, जल्दी से मेरी किडनी चेक कीजिए और मेरी माँ को ठीक कीजिए। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी किडनी मेरी माँ के काम आएगी।”

डॉक्टर साहब बैजयंती की किडनी चेक करते हैं और बैजयंती की एक किडनी निकालकर सुमित्रा के अंदर डाल दी जाती है, जिससे उनकी जान बच जाती है।

लीला यह सब देखकर बहुत हैरान हो जाती है।

लीला, “भैया, दीदी, आंटी जी, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं आप दोनों से माफी मांगना चाहती हूँ।

मैंने आप दोनों के बीच कितनी फूट डालने की कोशिश की? पर आप दोनों के प्यार के आगे मैं हार गई।”

सुमित्रा, “यह कैसी बातें कर रही है तू, लीला?”

लीला, “हां माँ जी, मैं बिल्कुल सही कह रही हूँ। मैं क्या, कोई भी यकीन नहीं कर सकता कि सास बहू के बीच भी आज के जमाने में इतना प्यार हो सकता है। पर अब आपने ये साबित कर दिया। “

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लीला, “ये ले विद्या, तेरे ₹100। तू जीत गई।”

इस तरह सास बहू के बीच में प्यार और अटूट हो जाता है और सब लोग खुशी-खुशी ज़िन्दगी बिताते हैं।


दोस्तो ये Moral Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!


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