हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है – ” विधवा बहू की डोली ” यह एक Family Story है। अगर आपको Family Stories, Moral Stories या Rishto Ki Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
सुभद्रा ने अपने इकलौते बेटे वरुण की शादी एक कम पढ़ी-लिखी लड़की ज्योत्सना से की थी, ताकि उसकी बहू कभी नौकरी न करे और अच्छी तरह घर संभाले।
सब कुछ सुभद्रा की सोच के मुताबिक सब कुछ चल रहा था कि अचानक उसके बेटे वरुण की मौत हो गई।
अब सुभद्रा अपनी विधवा बहू ज्योत्सना के भविष्य को लेकर चिंतित हो जाती है। ये जानने के लिए देखते हैं “विधवा बहू की डोली”।
सुभद्रा देवी अपने बेटे वरुण की शादी की तैयारियां कर रही थी। आज वरुण की शादी ज्योत्सना के साथ होने वाली थी।
ज्योत्सना दसवीं पास थी, लेकिन घर के कामकाज में निपुण थी। धूमधाम से वरुण की शादी ज्योत्सना के साथ हो जाती है।
ससुराल आते ही उसने घर और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठा ली।
ज्योत्सना, “माँ-बाबूजी, आप दोनों के लिए अदरक वाली चाय लाई हूँ।”
पंकज, “लाओ बहू, अदरक वाली चाय तो मुझे बहुत पसंद है। तुमने आते ही हम लोगों की पसंद और नापसंद का ख्याल रखना शुरू कर दिया।”
ज्योत्सना, “जी, इन्होंने मुझे सब बता दिया है कि आपको और मां जी को क्या पसंद है और क्या नहीं? आप लोग चाय पीजिए, मैं नाश्ते की तैयारी करती हूँ।”
पंकज, “ठीक है बहू।”
ज्योत्सना वहाँ से चली जाती है। उसके जाने के बाद,
पंकज, “वरुण की माँ, क्यों न हम भी अपने घर में कामवाली रख लें? ज्योत्सना की मदद कर दिया करेगी।
ज्योत्सना की अभी नई-नई शादी हुई है। उसकी उम्र भी बहुत कम है। अभी उसके सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ डालना ठीक नहीं है।”
सुभद्रा, “उसकी कोई जरूरत नहीं है। हमारे घर में ज़्यादा काम भी नहीं है। अभी से काम करने की आदत डालेगी, तभी तो आगे चलकर सब कुछ संभाल पाएगी।”
पंकज, “जैसी तुम्हारी मर्जी।”
ज्योत्सना घर के सारे काम करती — सुबह उठकर सास और ससुर को उनकी दवाइयां, चाय देने से लेकर नाश्ता, खाना बनाना, कपड़े धोना — सारे काम वो अकेली ही किया करती।
वरुण भी हर छोटे-मोटे काम के लिए ज्योत्सना को ही पुकारा करता।
वरुण, “ज्योत्सना, कहां हो? मेरी पीली वाली शर्ट प्रेस नहीं है यार, मुझे आज वही पहनकर ऑफिस जाना है।”
ज्योत्सना, “आपके लिए लंच पैक कर रही हूँ, 2 मिनट में आई।”
ज्योत्सना भागकर झटपट वरुण की शर्ट पर प्रेस करने लगी। धीरे-धीरे समय गुजर रहा था। सब ठीक-ठाक चल रहा था कि एक दिन…
विधवा बहू की डोली | VIDHWA BAHU KI DOLI | Saas Bahu Ki Kahani | Family Story | Saas Bahu Story in Hindi
वरुण, “माँ-बाबूजी, कल मुझे ऑफिस के काम से चंडीगढ़ जाना है। छह महीने वहीं रहकर काम करना है।”
पंकज, “छह महीने?”
वरुण, “दरअसल पापा, चंडीगढ़ में हमारे ऑफिस की नई ब्रांच खुली है और मुझे उसका मैनेजर बनाया गया है।”
पंकज, “तो ज्योत्सना को भी अपने साथ लेता जा।”
वरुण, “पापा, अभी तो वहाँ जाकर मुझे खुद के रहने का इंतजाम करना होगा। मैं कुछ दिनों के बाद ज्योत्सना को वहाँ बुला लूँगा।”
माँ और पिता से बात करके वरुण अपने कमरे में चला गया।
सुभद्रा, “ज्योत्सना को चंडीगढ़ जाने की क्या जरूरत है? वो चली गई तो घर कौन संभालेगा?”
पंकज, “और वहाँ हमारे वरुण को कौन संभालेगा? सुभद्रा, ज्योत्सना अभी बच्ची है।
अभी उसका समय वरुण के साथ हँसने-खेलने में गुजरना चाहिए। गृहस्थी का बोझ उठाने के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है।”
इधर दूसरे दिन वरुण चंडीगढ़ जाने के लिए घर से निकल गया। सबने खुशी-खुशी लेकिन ज्योत्सना ने नम आँखों से वरुण को विदा किया।
ज्योत्सना, “मेरा दिल बहुत घबरा रहा है न जाने क्यों… आपको कहीं जाने देने का मन नहीं करता।”
वरुण, “चिंता मत करो ज्योत्सना, वहाँ पहुंचते ही मैं किराये पर एक कमरा ले लूँगा। फिर तो मैं तुम्हें बुला लूँगा।”
वरुण चंडीगढ़ के लिए घर से निकल गया और बस में जाकर बैठ गया। रास्ते में बस का बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया।
बस पलट गई और बस में सवार सभी यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई।
ये खबर जब वरुण के घर तक पहुँची, तो सब शॉक्ड रह गए। वरुण के माता-पिता के लिए अपने जवान बेटे को खोना किसी भयंकर पीड़ा से कम नहीं था।
लेकिन ज्योत्सना का दुख तो बयां कर पाना भी मुश्किल है। वह अंदर से टूट गई।
वो अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। वह बहुत उदास रहने लगी और हर समय वरुण की यादों में खोई रहती।
एक दिन…
पंकज, “वरुण की माँ, मुझसे ज्योत्सना की हालत देखी नहीं जाती। वो वरुण को खोने के दुख से उभर नहीं पा रही है।”
सुभद्रा, “वरुण हमारा इकलौता बेटा था। उसे खोने का दुख हमें भी कम नहीं है।”
पंकज, “सुभद्रा, हमारी उम्र अब हो चली है, लेकिन ज्योत्सना अभी बहुत छोटी है। उसकी उम्र ही क्या है?
उसे अपनी ज़िन्दगी जीने और हँसने-खेलने का पूरा अधिकार है।”
सुभद्रा, “आप क्या चाहते हैं?”
पंकज, “मैं चाहता हूँ कि हम ज्योत्सना की दूसरी शादी कर दें। लेकिन उससे पहले मैं उसे पढ़ाना चाहता हूँ।”
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सुभद्रा, “ठीक है, एक बार ज्योत्सना से भी इस बारे में बात कर लीजिए। मैं उसे बुलाकर लाती हूँ।”
सुभद्रा देवी ज्योत्सना को बुलवाने के लिए उसके कमरे में जाती हैं। वहाँ उन्होंने देखा कि ज्योत्सना बेहोश होकर ज़मीन पर गिरी हुई है।
सुभद्रा देवी दौड़कर अपने पति पंकज के पास गईं और ज्योत्सना के बारे में बताया। दोनों ने फ़ोन करके डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने जब ज्योत्सना का चेकअप किया…
डॉक्टर, “आपकी बहू माँ बनने वाली है। आप लोगों को इनका बहुत ख्याल रखना होगा।
चिंता के कारण बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है और बच्चा मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है।”
डॉक्टर की बात सुनकर पंकज और सुभद्रा ने फैसला लिया कि वो ज्योत्सना को आगे पढ़ाएंगे ताकि उसका मन कहीं लगे और वो खुश रह सके।
पंकज ने ज्योत्सना का एडमिशन बारहवीं कक्षा में करवा दिया। ज्योत्सना अब बारहवीं की पढ़ाई करने लगी।
सुभद्रा देवी उसके खाने-पीने का बहुत ख्याल रखती। धीरे-धीरे समय बीतता गया और नौ महीने बाद ज्योत्सना ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया।
इसके साथ ही वह अपनी पढ़ाई भी करती रही। सुभद्रा देवी और पंकज अपनी पोती अनन्या को पाकर बहुत खुश थे।
वे दोनों ज्योत्सना के साथ-साथ अनन्या का बहुत ख्याल रखते। ज्योत्सना को लेकर सुभद्रा देवी के मन में भी बहुत बदलाव आ गया था।
एक दिन ज्योत्सना रसोई में बर्तन धो रही थी, तभी वहाँ सुभद्रा देवी आईं।
सुभद्रा, “ज्योत्सना बहू, ये सब छोड़। तू अनन्या के पास जा, उसके साथ खेलेगी तो तेरा दिल बहलेगा और साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी कर। घर का काम मैं कर लूंगी।”
ज्योत्सना नन्हीं और प्यारी बेटी अनन्या को पाकर अब खुश रहने लगी थी।
वो अनन्या के साथ ढेर सारा समय गुजारती और बाकी समय में अपनी पढ़ाई करती।
धीरे-धीरे अनन्या बड़ी हो रही थी और ज्योत्सना भी अब कॉलेज में पहुँच गई थी।
एक दिन…
पंकज, “ज्योत्सना बहू, मैं चाहता हूँ कि तू बी.एड की पढ़ाई कर ले। मैं कल ही तेरा एडमिशन करवा दूंगा।”
ज्योत्सना “ठीक है बाबू जी।”
पंकज ने ज्योत्सना का एडमिशन बी.एड में करवा दिया। अब ज्योत्सना रोज़ कॉलेज जाने लगी। अनन्या भी 2 साल की हो गई थी।
एक दिन —
अनन्या, “मम्मा, मुझे भी आपके साथ कॉलेज जाना है।”
ज्योत्सना, “अनन्या बेटी, मुझे कॉलेज में पढ़ाई करनी है। तुम घर में दादाजी-दादी जी के साथ खेलो।”
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अनन्या, “नहीं, मुझे आपके साथ कॉलेज जाना है।”
सुभद्रा, “इसे अपने साथ ले जा, ज्योत्सना। ये सारा दिन तुझे याद करती है और तेरे पास आने की ज़िद्द करती है। तेरे साथ कॉलेज जाएगी तो इसका दिल बहल जाएगा।”
उस दिन ज्योत्सना अनन्या को अपने साथ कॉलेज ले गई।
ज्योत्सना की क्लास में सब अनन्या को बहुत प्यार करने लगे। कोई उसे चॉकलेट देता तो कोई उसके साथ खेलता।
तभी ज्योत्सना ने देखा कि राजन अनन्या को अपनी गोद में लेकर उसके साथ बातें कर रहा था।
राजन ज्योत्सना की क्लास में पढ़ता था।
ज्योत्सना, “क्या बातें कर रहे हो राजन? अनन्या परेशान तो नहीं कर रही है ना?”
राजन, “अरे! नहीं, बहुत प्यारी बच्ची है। इससे बातें करके मुझे अपना बचपन याद आ गया। तुम इसे रोज़ अपने साथ कॉलेज लाया करो।”
अब ज्योत्सना रोज़ अनन्या को अपने साथ कॉलेज लाने लगी। धीरे-धीरे राजन ने अनन्या के साथ गहरी दोस्ती कर ली।
अनन्या के कारण राजन और ज्योत्सना में भी गहरी दोस्ती हो गई। दोनों एक-दूसरे के करीब आने लगे।
एक दिन की बात है। ज्योत्सना और अनन्या दोनों कॉलेज में थे कि तभी बहुत तेज बारिश होने लगी।
ज्योत्सना, “ओह! अब मैं घर कैसे जाऊंगी?”
ज्योत्सना के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर राजन उसके पास आया और बोला —
राजन, “क्या बात है ज्योत्सना, परेशान क्यों हो?”
ज्योत्सना, “देखो ना राजन, बाहर कितनी तेज बारिश हो रही है? मैं अनन्या को लेकर घर कैसे जाऊंगी? बाहर बस स्टॉप पर भी पानी भर गया होगा।”
राजन, “तुम फिक्र मत करो, मैं अभी ऑटो बुलाकर लाता हूँ।”
राजन कॉलेज से बाहर गया। बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी और सड़क पर पानी भरा हुआ था।
लेकिन राजन अपनी परवाह न करते हुए बड़ी मुश्किलों से एक ऑटो वाले को बुलाकर लाया।
राजन, “चलो ज्योत्सना, अनन्या को लेकर इस ऑटो पर बैठ जाओ। मैं तुम दोनों को घर तक छोड़ देता हूँ।”
ज्योत्सना, अनन्या और राजन तीनों ऑटो पर बैठ जाते हैं और उस दिन राजन ने दोनों को घर तक छोड़ा।
ज्योत्सना, “राजन, मेरे घर नहीं आओगे? मैं तुम्हें अपनी माँ जी और बाबू जी से मिलवाऊंगी।”
राजन, “हाँ, क्यों नहीं?”
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राजन ज्योत्सना के घर आया। ज्योत्सना ने उसे पंकज और सुभद्रा से मिलवाया और बताया कि कैसे राजन ने तेज बारिश में भी भीगते हुए उसे और अनन्या को सुरक्षित घर तक पहुंचाया?
सुभद्रा, “ये तो तुमने बहुत अच्छा किया बेटा, वरना ये दोनों कॉलेज में न जाने कितनी देर बारिश रुकने का इंतज़ार करती रहतीं?”
पंकज, “राजन बेटे, तुम आते रहना और कॉलेज में ज्योत्सना का ख्याल रखना।”
उस दिन के बाद से राजन अक्सर ज्योत्सना के घर आने लगा और अनन्या के साथ ढेर सारी बातें करता।
धीरे-धीरे दोनों की पढ़ाई पूरी हो गई और उन्हें सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी भी मिल गई।
एक दिन —
पंकज, “सुभद्रा, क्या ज्योत्सना को अपनी जिंदगी नए तरह से शुरू नहीं करनी चाहिए?”
सुभद्रा, “आप क्या कहना चाहते हैं?”
पंकज, “मैं चाहता हूँ कि ज्योत्सना की शादी हो जाए। वो अपना घर बसा ले। अनन्या को भी पिता का प्यार मिल जाएगा।”
सुभद्रा, “लेकिन ज्योत्सना से शादी करेगा कौन?”
पंकज, “मेरी नजर में एक लड़का है।”
सुभद्रा, “हाँ? कौन है वो?”
पंकज, “राजन। राजन, ज्योत्सना का बहुत अच्छा दोस्त है और वो अनन्या को भी बहुत प्यार करता है।
लेकिन हमें इस बारे में ज्योत्सना और राजन से भी बात कर लेनी चाहिए। मैंने राजन को फोन कर दिया है।
वो आज शाम को हमारे घर आएगा। हम राजन और ज्योत्सना दोनों से बात कर लेंगे।”
सुभद्रा, “ठीक है।”
शाम को जब ज्योत्सना स्कूल से लौटी तो उसने देखा कि राजन उसके घर आए हैं और उसके सास-ससुर से बातें कर रहा है।
ज्योत्सना, “अरे राजन! तुम… तुम कब आए?”
राजन, “अभी-अभी आया हूँ। दरअसल, मुझे अंकल ने बुलाया।”
पंकज, “ज्योत्सना बहू, मैं तुम दोनों से कुछ बात करना चाहता हूँ।”
ज्योत्सना, “जी बाबू जी, कहिए।”
पंकज, “बहू, मैं चाहता हूँ कि तुम और राजन शादी कर लो।”
ज्योत्सना, “ये आप क्या कह रहे हैं, बाबू जी। ये कभी नहीं हो सकता।”
सुभद्रा, “ज्योत्सना बहू, बीती बातों को भूल कर आगे बढ़ना ही ज़िंदगी है। तेरे सामने अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है। हमारे बाद तेरा और अनन्या का ख्याल कौन रखेगा?”
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पंकज, “राजन बेटे, ज्योत्सना अब मेरी बहू नहीं, बेटी है। क्या तुम जिंदगी भर इसका ख्याल रखोगे?”
राजन, “अंकल, सच कहूं तो मैं ज्योत्सना और अनन्या से बहुत प्यार करने लगा हूँ।
मैं ज्योत्सना को अनन्या के साथ अपनाने के लिए तैयार हूँ और वादा करता हूँ कि उन्हें जिंदगी भर खुश रखूँगा।”
सुभद्रा, “देर किस बात की? हम कल ही तुम्हारे घर आएँगे, तुम्हारे माता-पिता से मिलकर शादी की तारीख पक्की कर देंगे।”
राजन के माता-पिता सुभद्रा देवी और पंकज से मिलकर बहुत प्रभावित हुए। दोनों की रजामंदी से राजन और ज्योत्सना की शादी तय हो गई।
सुभद्रा देवी और पंकज ने ज्योत्सना की शादी सास-ससुर बनकर नहीं, बल्कि माता-पिता बनकर की।
पंकज ने ज्योत्सना का कन्यादान किया और ज्योत्सना को डोली में बिठाकर ससुराल विदा किया।
दोस्तो ये Family Story आपको कैसी लगी, नीचे Comment में हमें जरूर बताइएगा। कहानी को पूरा पढ़ने के लिए शुक्रिया!